रविवार, 4 जनवरी 2015

महासिद्ध गुरू मत्स्येन्द्रनाथ चालीसा

 
                  
गणपति गिरजा पुत्र को सुवरु बारम्बार
हाथ जोड़ विन ती करु शारदा नाम आधार
सत्य श्री आकाम नमः आदेश
माता पिता कुलगुरू देवता सत्संग को आदेश
आकाश चन्द्र सूरज पावन पाणी को आदेश
नव नाथ चौरासी सिद्ध अनन्त कोटी सिद्धो को आदेश
सकल लोक के सर्व सन्तो को सत-सत आदेश
सतगुरू मछेन्द्रनाथ को ह्रदय पुष्प अर्पित कर आदेश
                 नमः शिवाय
जय - जय गुरू मछेन्द्रनाथ अविनाशी   कृपा करो गुरूदेव प्रकाशी
जय - जय मछेन्द्रनाथ गुण ज्ञानी इच्छा रूप योगी वरदानी
 अलख निरंजन तुम्हारो नामा सदा करो भक्तन हित कामा
नाम तुम्हारा जो कोइ गावे जन्म जन्म के दु: मिट जावे
जो कोइ गुरू मछेन्द्र नाम सुनावे भूत पिशाच निक्ट नहीं आवे
ज्ञान तुम्हारा योग से पावे रूप तुम्हारा वर्णत जावे
निराकार तुम हो निर्वाणी महिमा तुम्हारी वेद ना जानी
घट - घट के तुम अन्तर्यामी सिद्ध चौरासी करे प्रणामी
भस्म अंग गल नाद विराजे जटा सीस अति सुन्दर साजे
तुम बिन देव और नहीं दूजा देव मुनि जन करते पूजा
चिदानन्द सन्तन हितकारी मंगल करण अमंगल हारी
पूर्ण ब्रह्म सकल घटवासी गुरू मछेन्द्र सकल प्रकाशी
गुरू मछेन्द्र-गुरू मछेन्द्र जो कोइ ध्यावे ब्रह्म रूप के दर्शन पावे
शंकर रूप धर डमरू बाजे कानन कुण्डल सुन्दर साजे
नित्यानन्द है नाम तुम्हारा असुर मार भक्तन रखवारा
अति विशाल है रूप तुम्हारा सुर नर मुनि जन पावे पारा
दीन बन्धु दीन हितकारी हरो पाप हम शरण तुम्हारी
योग युक्ति में हो प्रकाशा । सदा करो सन्तन तन वासा ॥
प्रातःकाल ले नाम  तुम्हारा  । सिद्धि बड़े अरू योग प्रचारा ॥
हठ-हठ-हठ गुरू मछेन्द्र हठीले । मार-मार बैरी के कीले ॥
चल-चल-चल गुरू मछेन्द्र विकराला । दुश्मन मार करो बेहाला ॥
जय-जय-जय गुरू मछेन्द्र अविनाशी । अपने जन की हरो चौरासी ॥
अचल अगम है गुरू मछेन्द्र योगी । सिद्धि देवो हरो रसभोगी ॥
काटो मार्ग यम को तुम आई । तुम बिन मेरा कौन साहाई ॥
अजर अमर है तुम्हारी देहा । सनकादिक सब जो रही नेहा ॥
कोटिन रवि सम तेज तुम्हारा । हे प्रसिद्ध जगत उजियारा ॥
योगी लिखे तुम्हारी माया । पार ब्रह्म से ध्यान लगाया ॥
ध्यान तुम्हारा जो कोइ लावे । अष्ट सिद्धि नव निधि धर पावे ॥
शिव मछेन्द्र है नाम तुम्हारा । पापी इष्ट अधम को तारा ॥
अगम अगोचर निर्भय नाथा । सदा रहो सन्तन के साथा ॥
शंकर रूप अवतार तुम्हारा । गोरख, गोपीचन्द्र भरथरी को तारा ॥
सुन लीजो प्रभु अरज हमारी । कृपा सिन्धु योगी चमत्कारी ॥
पूर्ण आस दास कीजे । सेवक जान ज्ञान को दीजे ॥
पतित पावन अधम अधारा । तिनके हेतु तुम लेत अवतारा ॥
अलख निरंजन नाम तुम्हारा । अगम पथ जिन योग प्रचारा ॥
जय-जय-जय गुरू मछेन्द्र भगवाना । सदा करो भक्तन कल्याना ॥
जय-जय-जय गुरू मछेन्द्र अविनाशी । सेवा करे सिद्ध चौरासी ॥
जो यह पढ़हि गुरू मछेन्द्र चालीसा । होय सिद्ध साक्षी जगदीशा ॥
हाथ जोड़कर ध्यान लगावे । और श्रद्धा से भेंट चढ़ावे ॥
बारह पाठ पढ़े नित जोई । मनोकामना पूर्ण होई ॥
  -दोहा-
सुने सुनावे प्रेम वश, पूजे अपने हाथ ।
मन इच्छा सब कामना, पूरे गुरू मछेन्द्रनाथ ॥
अगम अगोचर नाथ तुम, पार ब्रह्म अवतार ।
कानन कुंडल सिर जटा, अंविभूति अपार ।
सिद्ध पुरुष योगेश्वरी, दो मुझको उपदेश ॥
हर समय सेवा करू, सुबह शाम आदेश ॥

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