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Wednesday 15 September 2021

नवग्रहों के वेद मंत्र

नवग्रहों के वेद मंत्र
सूर्य : ॐ आकृष्णेन रजसा वर्त्तमानो निवेशयन्नमृतं मतर्य च

हिरण्येन सविता रथेना देवो याति भुवनानि पश्यन॥
इदं सूर्याय न मम॥

चन्द्र : ॐ इमं देवाSसपत् न ग्वं सुवध्वम् महते क्षत्राय महते ज्येष्ठयाय
महते जानराज्यायेन्द्रस्येन्द्रियाय इमममुष्य पुत्रमुष्यै पुत्रमस्यै विश एष
वोSमी राजा सोमोSस्माकं ब्राह्मणानां ग्वं राजा॥ इदं चन्द्रमसे न मम॥

गुरू : ॐ बृहस्पते अति यदर्यो अहार्द् द्युमद्विभाति क्रतुमज्जनेषु।
यददीदयच्छवस ॠतप्रजात तदस्मासु द्रविणं धेहि चित्रम॥
इदं बृहस्पतये, इदं न मम॥

शुक्र : ॐ अन्नात् परिस्रुतो रसं ब्रह्मणा व्यपिबत् क्षत्रं पय:।
सोमं प्रजापति: ॠतेन सत्यमिन्द्रियं पिवानं ग्वं
शुक्रमन्धसSइन्द्रस्येन्द्रियमिदं पयोSमृतं मधु॥ इदं शुक्राय, न मम।

मंगल : ॐ अग्निमूर्द्धा दिव: ककुपति: पृथिव्या अयम्।
अपा ग्वं रेता ग्वं सि जिन्वति। इदं भौमाय, इदं न मम॥

बुध : ॐ उदबुध्यस्वाग्ने प्रति जागृहित्वमिष्टापूर्ते स ग्वं सृजेथामयं च।
अस्मिन्त्सधस्थे अध्युत्तरस्मिन् विश्वेदेवा यजमानश्च सीदत॥
इदं बुधाय, इदं न मम॥

शनि : ॐ शन्नो देविरभिष्टय आपो भवन्तु पीतये।
शंय्योरभिस्त्रवन्तु न:। इदं शनैश्चराय, इदं न मम॥

राहु : ॐ कयानश्चित्र आ भुवद्वती सदा वृध: सखा।
कया शचिंष्ठया वृता॥ इदं राहवे, इदं न मम॥

केतु : ॐ केतुं कृण्वन्न केतवे पेशो मर्या अपेशसे।सम्मोहन विद्या भारतवर्ष की प्राचीनतम और सर्वश्रेष्ठ विद्या है,मन की बिखरी हुई शक्तियों को एकत्रित करके या एकाग्र करके उस बढ़ी हुई शक्ति से किसी को प्रभावित करना ही सम्मोहन विद्या है। इसकी जड़ें सुदूर गहराईयों तक स्थित हैं।भारतीय अध्यात्म, योग और उसकी शक्तियों से जुड़ा हुआ है। योग शब्द का अर्थ ही 'जुडऩा' है,आध्यात्मिक अर्थ में लेते हैं तो इसका मतलब आत्मा का परमात्मा से मिलन और दोनों का एकाकार हो जाना ही है। भक्त का भगवान से, मानव का ईश्वर से, व्यष्टि का समष्टि से, तथा पिण्ड का ब्रह्माण्ड से मिलन ही योग कहा गया है। हकीकत में देखा जाए तो यौगिक क्रियाओं का उद्देश्य मन को पूर्ण रूप से एकाग्र करके प्रभु यानि ईश्वर में समर्पित कर देना है।.

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