Friday, 17 September 2021

गणपति पूजन में तुलसी निषिद्ध क्यों

गणपति पूजन में तुलसी निषिद्ध क्यों 
मनोहारिणी तुलसी समस्त पौधों में श्रेष्ठ मानी जाती हैं। इन्हें समस्त पूजन कर्मो में प्रमुखता दी जाती है साथ ही मंदिरों में चरणामृत में भी तुलसी का प्रयोग होता है तथा ऎसी कामना होती है कि यह अकाल मृत्यु को हरने वाली तथा सर्व व्याधियों का नाश करने वाली हैं परन्तु यही पूज्य तुलसी देवों को भगवान श्री गणेश की पूजा में निषिद्ध मानी गई हैं। इनसे सम्बद्ध ब्रrाकल्प में एक कथा मिलती है जो कि इसके कारण को व्यक्त करती है।
कथा — एक समय नवयौवना, सम्पन्ना तुलसी देवी नारायण परायण होकर तपस्या के निमित्त से तीर्थो में भ्रमण करती हुई गंगा तट पर पहुँचीं। वहाँ पर उन्होंने गणेश को देखा, जो कि तरूण युवा लग रहे थे। अत्यन्त सुन्दर, शुद्ध और पीताम्बर धारण किए हुए थे, आभूषणों से विभूषित थे, सुन्दरता जिनके मन का अपहरण नहीं कर सकती, जो कामनारहित, जितेन्द्रियों में सर्वश्रेष्ठ, योगियों के योगी तथा जो श्रीकृष्ण की आराधना में घ्यानरत थे। उन्हें देखते ही तुलसी का मन उनकी ओर आकर्षित हो गया। तब तुलसी उनका उपहास उडाने लगीं। घ्यानभंग होने पर गणेश जी ने उनसे उनका परिचय पूछा और उनके वहां आगमन का कारण जानना चाहा। गणेश जी ने कहा—माता! तपस्वियों का घ्यान भंग करना सदा पापजनक और अमंगलकारी होता है। "" शुभे! भगवान श्रीकृष्ण आपका कल्याण करें, मेरे घ्यान भंग से उत्पन्न दोष आपके लिए अमंगलकारक न हो। ""
इस पर तुलसी ने कहा—प्रभो! मैं धर्मात्मज की कन्या हूं और तपस्या में संलग्न हूं। मेरी यह तपस्या पति प्राप्ति के लिए है। अत: आप मुझसे विवाह कर लीजिए। तुलसी की यह बात सुनकर बुद्धि श्रेष्ठ गणेश जी ने उत्तर दिया— " हे माता! विवाह करना बडा भयंकर होता है, मैं ब्रम्हचारी हूं। विवाह तपस्या के लिए नाशक, मोक्षद्वार के रास्ता बंद करने वाला, भव बंधन की रस्सी, संशयों का उद्गम स्थान है। अत: आप मेरी ओर से अपना घ्यान हटा लें और किसी अन्य को पति के रूप में तलाश करें। तब कुपित होकर तुलसी ने भगवान गणेश को शाप देते हुए कहा—"कि आपका विवाह अवश्य होगा।" यह सुनकर शिव पुत्र गणेश ने भी तुलसी को शाप दिया—" देवी, तुम भी निश्चित रूप से असुरों द्वारा ग्रस्त होकर वृक्ष बन जाओगी। "
इस शाप को सुनकर तुलसी ने व्यथित होकर भगवान श्री गणेश की वंदना की। तब प्रसन्न होकर गणेश जी ने तुलसी से कहा—हे मनोरमे! तुम पौधों की सारभूता बनोगी और समयांतर से भगवान नारायण की प्रिया बनोगी। सभी देवता आपसे स्नेह रखेंगे परन्तु श्रीकृष्ण के लिए आप विशेष प्रिय रहेंगी। आपकी पूजा मनुष्यों के लिए मुक्तिदायिनी होगी तथा मेरे पूजन में आप सदैव त्याज्य रहेंगी। ऎसा कहकर गणेश जी पुन: तप करने चले गए। इधर तुलसी देवी दु:खित ह्वदय से पुष्कर में जा पहुंची और निराहार रहकर तपस्या में संलग्न हो गई। तत्पश्चात गणेश के शाप से वह चिरकाल तक शंखचूड की प्रिय पत्नी बनी रहीं। जब शंखचूड शंकर जी के त्रिशूल से मृत्यु को प्राप्त हुआ तो नारायण प्रिया तुलसी का वृक्ष रूप में प्रादुर्भाव हुआ है।

अदृश्य बला से मुक्ति

कभी-कभी व्यक्ति का चौराहे पर रखी हुई वस्तु पर पैर पड़ जाता है या लाग हो जाती है या कोई व्यंतर
अदृश्य बला से मुक्ति
आत्मा का शरीर से स्पर्श हो जाता है अथवा प्रेतात्मा आदि का साया पड़ जाता है तो व्यक्ति तुरंत अस्वस्थ हो जाता है। वह पागलों जैसी हरकतें कर सकता है, ज्वर से पीड़ित हो सकता है, उसका खाना-पीना छूट सकता है। इन सब कारणों का निदान चिकित्सकों के पास नहीं होता, इनका उपचार सिर्फ टोटकों द्वारा ही संभव होता है।
यह टोटका निम्न प्रकार से किया जाता है-
* सबसे पहले गाय के गोबर का कंडा व जली लकड़ी की राख को पानी से भिगोकर एक लड्डू बनाएँ।
* इसके बाद इसमें एक सिक्का गाड़ दें।
* फिर उस पर काजल और रोली की सात बिंदी लगा दें।
* तत्पश्चात्‌लोहे की एक कील उसमें गाड़ दें।
* अब उस लड्डू को अस्वस्थ व्यक्ति के ऊपर से सात बार उतारकर चुपचाप नजदीक के किसी चौराहे पर रख आएँ।
* आते-जाते समय किसी से बातचीत न करें तथा पीछे मुड़कर भी न देखें। इस क्रिया से रोगी बहुत जल्दी स्वस्थ हो जाएगा।
दूसरा प्रयोग :
* झाडू व धान कूटने वाला मूसल अस्वस्थ व्यक्ति के ऊपर से उतारकर उसके सिरहाने रख दें।
* अपने बाएँ पैर का जूता अस्वस्थ व्यक्ति के ऊपर से सात बार उतारकर (घुमाकर) प्रत्येक बार उल्टा जूता जमीन पर पीटें।
* सात ही बार वह जूता उस व्यक्ति को सुँघाएँ, इस प्रक्रिया से भी अस्वस्थ व्यक्ति ठीक हो जाएगा।
किसी भटकती आत्मा की लाग
* यदि किसी व्यक्ति को किसी भटकती आत्मा (शाकिनी, प्रेतनी) की लाग हो गई हो तो गंधक, गुग्गुल, लाख, लोबान, हाथी दाँत, सर्प की केंचुली व पीड़ित व्यक्ति के सिर का एक बाल लेकर सबको मिलाकर व पीसकर जलाएँ तथा उसका धुआँ रोगी को दें। इससे व्यक्ति पर से लाग हट जाती है।...

श्री घंटाकर्ण मूल मंत्र

श्री घंटाकर्ण मूल मंत्र ::----
ॐ ह्रीं घंटाकर्णो महावीर: , सर्वव्याधि-विनाशकः !
विस्फोटक भयं प्राप्ते, रक्ष रक्ष महाबलः ||
यत्र त्वं तिष्ठसे देव, लिखितोऽक्षर-पंक्तिभिः !
रोगास्तत्र प्रणश्यन्ति, वात-पित्त-कफोद्भवाः ||
तत्र राजभयं नास्ति, यान्ति कर्णे जपात्क्षयम् !
शाकिनी भूत वेताला, राक्षसाः प्रभवन्ति न ||
नाकाले मरणं तस्य, न च सर्पेण दंश्यते ,
अग्निचौरभयं नास्ति, ॐ ह्रीं घंटाकर्ण नमोस्तु ते !
ॐ नर वीर ठः ठः ठः स्वाहा ||
विधिः- यह मंत्र छत्तीस हजार जाप कर सिद्ध करें । इस मंत्र के प्रयोग के लिए इच्छुक उपासकों को पहले गुरु-पुष्य, रवि-पुष्य, अमृत-सिद्धि-योग, सर्वार्थ -सिद्धि-योग या दिपावली की रात्रि से आरम्भ कर छत्तीस हजार का अनुष्ठान करें । बाद में कार्य साधना के लिये प्रयोग में लाने से ही पूर्ण फल की प्राप्ति होना सुलभ होता है ।
विभिन्न प्रयोगः- इस को सिद्ध करने पर केवल इक्कीस बार जपने से राज्य भय, अग्नि भय, सर्प, चोर आदि का भय दूर हो जाता है । भूत-प्रेत बाधा शान्त होती है । मोर-पंख से झाड़ा देने पर वात, पित्त, कफ-सम्बन्धी व्याधियों का उपचार होता है ।
1॰ मकान, गोदाम, दुकान घर में भूत आदि का उपद्रव हो तो दस हजार जप तथा दस हजार गुग्गुल की गोलियों से हवन किया जाये, तो भूत-प्रेत का भय मिट जाता है । राक्षस उपद्रव हो, तो ग्यारह हजार जप व गुग्गुल से हवन करें ।
2॰ अष्टगन्ध से मंत्र को लिखकर गेरुआ रंग के नौ तंतुओं का डोरा बनाकर नवमी के दिन नौ गांठ लगाकर इक्कीस बार मंत्रित कर हाथ के बाँधने से चौरासी प्रकार के वायु उपद्रव नष्ट हो जाते हैं ।
3॰ इस मंत्र का प्रतिदिन १०८ बार जप करने से चोर, बैरी व सारे उपद्रव नाश हो जाते हैं तथा अकाल मृत्यु नहीं होती तथा उपासक पूर्णायु को प्राप्त होता है ।
4॰ आग लगने पर सात बार पानी को अभिमंत्रित कर छींटने से आग शान्त होती है ।
5॰ मोर-पंख से इस मंत्र द्वारा झाड़े तो शारीरिक नाड़ी रोग व श्वेत कोढ़ दूर हो जाता है ।
6॰ कुंवारी कन्या के हाथ से कता सूत के सात तंतु लेकर इक्कीस बार अभिमंत्रित करके धूप देकर गले या हाथ में बाँधने पर ज्वर, एकान्तरा, तिजारी आदि चले जाते हैं ।
7॰ सात बार जल अभिमंत्रित कर पिलाने से पेट की पीड़ा शान्त होती है ।
8॰ पशुओं के रोग हो जाने पर मंत्र को कान में पढ़ने पर या अभिमंत्रित जल पिलाने से रोग दूर हो जाता है । यदि घंटी अभिमंत्रित कर पशु के गले में बाँध दी जाए, तो प्राणी उस घंटी की नाद सुनता है तथा निरोग रहता है ।
9॰ गर्भ पीड़ा के समय जल अभिमंत्रित कर गर्भवती को पिलावे, तो पीड़ा दूर होकर बच्चा आराम से होता है, मंत्र से 21 बार मंत्रित करे ।
10॰ सर्प का उपद्रव मकान आदि में हो, तो पानी को १०८ बार मंत्रित कर मकानादि में छिड़कने से भय दूर होता है । सर्प काटने पर जल को ३१ बार मंत्रित कर पिलावे तो विष दूर हो ।
11.इस मंत्र का जप करने से सब प्रकार की भूत - प्रेत - बाधा दूर होतें हैं | सर्व विपत्ति-हर्ता मंत्र है !

नजर दोष से बंधी दूकान

नजर दोष से बंधी दूकान ( तंत्र-मन्त्र प्रयोग वाली)कैसे खोलें ?– ----यदि कोई शत्रु आपसी जलन या द्वेष, व्यापारिक प्रतिस्पर्धा के कारण आप पर तंत्र-मंत्र का कोई प्रयोग करके आपके व्यवसाय में बाधा डाल रहा हो, तो ईसे में नीचे लिखे सरल शाबर मंत्र का प्रयोग करके आप अपनी तथा अपने व्यवसाय की रक्षा कर सकते हैं । सर्वप्रथम इस मंत्र की दस माला जपकर हवन करें । मंत्र सिद्ध हो जाने पर रविवार या मंगलवार की रात इसका प्रयोग करें । मंत्रः- “उलटत वेद पलटत काया, जाओ बच्चा तुम्हें गुरु ने बुलाया, सत नाम आदेश गुरु का ।” रविवार या मंगलवार की रात को 11 बजे के बाद घर से निकलकर चौराहे की ओर जाएँ, अपने साथ थोड़ी-सी शराब लेते जाएँ । मार्ग में सात कंकड़ उठाते जाएँ । चौराहे पर पहुँचकर एक कंकड़ पूर्व दिशा की ओर फेंकते हुए उपर्युक्त मंत्र पढ़ें, फिर एक दक्षिण, फिर क्रमशः पश्चिम, उत्तर, ऊपर, नीचे तथा सातवीं कंकड़ चौराहे के बीच रखकर उस शराब चढ़ा दें । यह सब करते समय निरन्तर उक्त मन्त्र का उच्चारण करते रहें । फिर पीछे पलट कर सीधे बिना किसी से बोले और बिना पीछे मुड़कर देखे अपने घर वापस आ जाएँ । घर पर पहले से द्वार के बाहर पानी रखे रहें । उसी पानी से हाथ-पैर धोकर कुछ जल अपने ऊपर छिड़क कर, तब अन्दर जाएँ । एक बात का अवश्य ध्यान रखें कि आते-जाते समय आपके घर का कोई सदस्य आपके सामने न पड़े और चौराहे से लौटते समय यदि आपको कोई बुलाए या कोई आवाज सुनाई दे, तब भी मुड़कर न देखें ।

मन्त्र ऐसे दिव्यशब्दों का समूह है।

। जपात सिद्धिर्जपातसिद्धिर्जपात्सिद्धिर्नसंशय: ।

---मन्त्र ऐसे दिव्यशब्दों का समूह है ,जिसे दृढ इच्छाशक्तिपूर्वक उच्चारण एवं मनन से ही हम अलौकिक काम कर सकते हैं । चुने हुए गुप्त शब्द ही मन्त्र हैं । इनमें शब्दों का ऐसा क्रम दिया जाता है ,कि उनके मौन या अमौन अवस्था में उच्चारण मात्र से शून्य महाकाश में एक विचित्र कम्पन उत्पन्न होती है ,जिसमें अभिसिप्त कार्यसिद्धि एवं रचनात्मक प्रबल -प्रछिन्न शक्ति होती है -----।
अस्तु ------मन्त्र शास्त्र के अनुसार वेदमन्त्रों को ब्रह्मा में शक्ति प्रदान की । तांत्रिक प्रयोगों को भगवान शिव ने शक्ति संपन्न किया । इसी प्रकार कलियुग में शिवावतार श्री शाबरनाथ जी ने शाबर मन्त्रों को अद्भुत शक्ति प्रदान की । शाबरमन्त्र अनमिल बेजोड़ शब्दों का एक समूह होता है ,जो कि अर्थहीन मालूम देते हैं ,परन्तु भगवान शंकर जी के प्रताप से ये मन्त्र अवन्ध्य प्रभाव रखते हैं ----
"अनमिल आखर अर्थ न जापू । प्रकट प्रभाव महेश प्रतापू {रामचरित मानस }
नोट -यंत्र -मन्त्र एवं तंत्रों के योग्य बनें ,किसी गुरु के सान्निध्य में सिद्धि करें ,साथ ही गुप्तता रखें, तब फिर इनके चमत्कार से अपनी और जग की रक्षा करें ।

लोक कल्याण-कारक शाबर मन्त्र

लोक कल्याण-कारक शाबर मन्त्र १॰ अरिष्ट-शान्ति अथवा अरिष्ट-नाशक मन्त्रः- क॰ “ह्रीं हीं ह्रीं” ख॰ “ह्रीं हों ह्रीं” ग॰ “ॐ ह्रीं फ्रीं ख्रीं” घ॰ “ॐ ह्रीं थ्रीं फ्रीं ह्रीं” विधिः- उक्त मन्त्रों में से किसी भी एक मन्त्र को सिद्ध करें । ४० दिन तक प्रतिदिन १ माला जप करने से मन्त्र सिद्ध होता है । बाद में संकट के समय मन्त्र का जप करने से सभी संकट समाप्त हो जाते हैं । 
२॰ सर्व-शुभ-दायक मन्त्रः- मन्त्र – ” ॐ ख्रीं छ्रीं ह्रीं थ्रीं फ्रीं ह्रीं ।” विधिः- उक्त मन्त्र का सदैव स्मरण करने से सभी प्रकार के अरिष्ट दूर होते हैं । अपने हाथ में रक्त पुष्प (कनेर या गुलाब) लेकर उक्त मन्त्र का १०८ बार जप कर अपनी इष्ट-देवी पर चढ़ाए अथवा अखण्ड भोज-पत्र पर उक्त मन्त्र को दाड़िम की कलम से चन्दन-केसर से लिखें और शुभ-योग में उसकी पञ्चोपचारों से पूजा करें । 
३॰ अशान्ति-निवारक-मन्त्रः- मन्त्रः- “ॐ क्षौं क्षौं ।” विधिः- उक्त मन्त्र के सतत जप से शान्ति मिलती है । कुटुम्ब का प्रमुख व्यक्ति करे, तो पूरे कुटुम्ब को शान्ति मिलती है ।
४॰ शान्ति, सुख-प्राप्ति-मन्त्रः- मन्त्रः- “ॐ ह्रीं सः हीं ठं ठं ठं ।” विधिः- शुभ योग में उक्त मन्त्र का १२५ माला जप करे । इससे मन्त्र-सिद्धि होगी । बाद में दूध से १०८ अहुतियाँ दें, तो शान्ति, सुख, बल-बुद्धि की प्राप्ति होती है ।
५॰ रोग-शान्ति-मन्त्रः- मन्त्रः- “ॐ क्षीं क्षीं क्षीं क्षीं क्षीं फट् ।” विधिः- उक्त मन्त्र का ५०० बार जप करने से रोग-निवारण होता है । प्रतिदिन जप करने से सु-स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है । कुटुम्ब में रोग की समस्या हो, तो कुटुम्ब का प्रधान व्यक्ति उक्त मन्त्र से अभिमन्त्रित जल को रोगी के रहने के स्थान में छिड़के । इससे रोग की शान्ति होगी । जब तक रोग की शान्ति न हो, तब तक प्रयोग करता रहे ।
६॰ सर्व-उपद्रव-शान्ति-मन्त्रः- मन्त्रः- “ॐ घण्टा-कारिणी महा-वीरी सर्व-उपद्रव-नाशनं कुरु कुरु स्वाहा ।” विधिः- पहले इष्ट-देवी को पूर्वाभिमुख होकर धूप-दीप-नैवेद्य अर्पित करें । फिर उक्त मन्त्र का ३५०० बार जप करें । बाद में पश्चिमाभिमुख होकर गुग्गुल से १००० आहुतियाँ दें । ऐसा तीन दिन तक करें । इससे कुटुम्ब में शान्ति होगी ।
७॰ ग्रह-बाधा-शान्ति मन्त्रः- मन्त्रः- “ऐं ह्रीं क्लीं दह दह ।” विधिः- सोम-प्रदोष से ७ दिन तक, माल-पुआ व कस्तूरी से उक्त मन्त्र से १०८ आहुतियाँ दें । इससे सभी प्रकार की ग्रह-बाधाएँ नष्ट होती हैं ।
८॰ देव-बाधा-शान्ति-मन्त्रः- मन्त्रः- “ॐ सर्वेश्वराय हुम् ।” विधिः- सोमवार से प्रारम्भ कर नौ दिन तक उक्त मन्त्र का ३ माला जप करें । बाद में घृत और काले-तिल से आहुति दें । इससे दैवी-बाधाएँ दूर होती हैं और सुख-शान्ति की प्राप्ति होती है ।

दुर्गा सप्तशती पाठ विधि

  दुर्गा सप्तशती दुर्गा सप्तशती पाठ विधि पूजनकर्ता स्नान करके, आसन शुद्धि की क्रिया सम्पन्न करके, शुद्ध आसन पर बैठ जाएँ। माथे पर अपनी पसंद क...