Saturday, 21 August 2021

श्री राम दुर्गम स्तोत्रं

श्री राम दुर्गम स्तोत्रं
सभी प्रकार की किसी भी लौकिक अलौकिक बाधा को दूर करने में श्री राम दुर्गम का अचूक प्रभाव है सभी प्रकार की कामनाओ की भी पूर्ति करता है शत्रुओ से रक्षा होती है नित्य कम  से कम २१ पाठ करे । 

विनियोगः ॐ अस्य श्री राम दुर्गस्य् विश्वामित्र ऋषिः अनुष्टुप छन्दः श्री रामो देवता श्री राम प्रीत्यर्थे जपे विनियोगः । 

श्री रामो रक्षतु प्राच्यां रक्षेदयाम्यां च लक्ष्मणः । प्रतीच्यां भरतो रक्षेद उदीच्यां शत्रु मर्दनः ॥१ ॥  
ईशान्यां जानकी रक्षेद आग्नेयाम रविनन्दनः । विभीषणस्तु नैऋत्यां वायव्यां वायुनन्दनः ॥२ ॥  
ऊर्ध्वं रक्षेन्महाविष्णुर्मध्यं रक्षेन्नृकेशरी । अधस्तु वामनः पातु सर्वतः पातु केशवः ॥ ३ ॥ 
सर्वतः कपिसेनाद्यैः सदा मर्कटनायकः । चतुर्द्वारं सदा रक्षेदच्चतुर्भिः कपिपुंगवैः ॥ ४॥ 
श्री रामाख्यं महादुर्गं विश्वामित्रकृतं शुभम । यः स्मरेद भय काले तु सर्व शत्रु विनाशनम ॥ ५ ॥ 
रामदुर्गं पठेद भक्त्या सर्वोपद्रवनाशनं । सर्वसम्पदप्रदम् नृणां च गच्छेद वैष्णव पदं ॥ ६ ॥ 

इति  श्री रामदुर्गं सम्पूर्णम ॥

कलिकाल की अधिष्ठात्री माँ महालक्ष्मी है |

"सर्वे गुणा काञ्चन मा श्रयन्तु " 
कलिकाल की अधिष्ठात्री माँ महालक्ष्मी है | लोकउक्ति अनुसार जिन पर माँ महालक्ष्मी की पूर्ण कृपा हो वो स्वतः सभी गुणो से युक्त माना जाता है | लक्ष्मी की कृपा को सभी लौकिक सामर्थ्य ओर सुखकारी का पर्याय माना जाता है | आध्यात्मिक संपदा ओर मनोनिग्रह अलग विषय है | भौतिक जगत मे लक्ष्मीवान होना ही सभी सुख समृद्धि सामर्थ्य का पर्याय देखा जाता है |
माँ महालक्ष्मी का प्रागट्य समुद्र मंथन से हुआ था |
माँ महालक्ष्मी को अनेकों रूप स्वरूप मे आराधित किया जाता रहा है |
मुख्यतः अष्ट लक्ष्मी का आराधन आदिकाल से प्रचलित है| जो समस्त सुखाकारी वैभव संपदा सामर्थ्य का पर्याय बन जाता है |
वैदिक काल से मनुष्य लक्ष्मीवान बने रहेने को लालायित रहा है | कुछ आध्यात्मिक ओर सात्विक मार्ग का अनुसरण करते है तो कुछ तांत्रिक मांत्रिक यंत्र ओर टोटके से समृद्धि की कामना पुष्ट करते रहे है |
वेसे तो प्रारब्ध अनुसार ओर नीति संगत अर्चित सात्विक धन ही लक्ष्मी माना गया है | किन्तु कली प्रभाव से येनकेन प्रकार से भी बस धन की कामना पूर्ति को सभी उध्यमी दिखते है |
केवल सुवर्ण चाँदी या रूपिया पैसा ही धन नहीं ...!! धन को सीमित रूप मे देखा गया है | जब की देह की स्वास्थ्यता को प्रथम धन माना गया है, निरामय स्वस्थ पुष्ट तन भी संपदा है | साथ ही उपासना मार्ग मे लक्ष्मी के अष्ट स्वरूपो का निर्देश वर्णन ओर आराधन मिलता है | नित्य या पर्व विशेष पर गुरु आज्ञा अथवा कुलाचार प्रादेशिक मान्यता रीत रिवाजो से माँ महालक्ष्मी का आराधन हमारी जीवन प्रणाली मे समिलित देखा गया है |
 मुख्यतः श्रीयंत्र ,  श्रीसूक्त , अष्टलक्ष्मी स्तोत्र , कल्याण वृष्टि स्तोत्र , कनकधारा स्तोत्र जेसे सहज ओर शिग्र फल दायक स्तोत्रावली से आराधन मार्ग प्रसस्त है |
माँ महालक्ष्मी की शिग्र कृपा प्राप्ति हेतु आराधन मे सहायक श्रीयंत्र , कुबेर ,दक्षिणावर्ती शंख ,सियाल सिंगी , मोती , कमल , कमलकट्टा ,सिंधुर ,काली हल्दी,घोड़े की नाल , सिद्ध वनस्पति खास द्रव्य ओर गुरु पुष्यामृत -रवि पुष्यामृत जेसे सिद्ध योग ,खास नक्षत्र , दिवस वार आदि का शास्त्र आज्ञा अथवा गुरु आज्ञा अनुसार अनुभवो के आधार पर प्रयोजन होता रहा है |
मुख्यतः भाव की शुद्धि सात्विक्ता हो तो पवित्र अनुष्ठान तुरंत फल दायक बनते है | 
.. अष्टलक्ष्मी स्तोत्रम् ..
   .. आदिलक्ष्मी ..
सुमनसवन्दित सुन्दरि माधवि
     चन्द्र सहोदरि हेममये .
मुनिगणमण्डित मोक्षप्रदायिनि
     मञ्जुळभाषिणि वेदनुते ..
पङ्कजवासिनि देवसुपूजित
     सद्गुणवर्षिणि शान्तियुते .
जयजय हे मधुसूदन कामिनि
     आदिलक्ष्मि सदा पालय माम् .. १..

   .. धान्यलक्ष्मी ..
अहिकलि कल्मषनाशिनि कामिनि
     वैदिकरूपिणि वेदमये .
क्षीरसमुद्भव मङ्गलरूपिणि
     मन्त्रनिवासिनि मन्त्रनुते ..
मङ्गलदायिनि अम्बुजवासिनि
     देवगणाश्रित पादयुते .
जयजय हे मधुसूदन कामिनि
     धान्यलक्ष्मि सदा पालय माम् .. २..

  .. धैर्यलक्ष्मी ..
जयवरवर्णिनि वैष्णवि भार्गवि
     मन्त्रस्वरूपिणि मन्त्रमये .
सुरगणपूजित शीघ्रफलप्रद
     ज्ञानविकासिनि शास्त्रनुते ..
भवभयहारिणि पापविमोचनि
     साधुजनाश्रित पादयुते .
जयजय हे मधुसूदन कामिनि
     धैर्यलक्ष्मि सदा पालय माम् .. ३..

   .. गजलक्ष्मी ..
जयजय दुर्गतिनाशिनि कामिनि
     सर्वफलप्रद शास्त्रमये .
रथगज तुरगपदादि समावृत
     परिजनमण्डित लोकनुते ..
हरिहर ब्रह्म सुपूजित सेवित
     तापनिवारिणि पादयुते .
जयजय हे मधुसूदन कामिनि
     गजलक्ष्मि रूपेण पालय माम् .. ४..

   .. सन्तानलक्ष्मी ..
अहिखग वाहिनि मोहिनि चक्रिणि
     रागविवर्धिनि ज्ञानमये .
गुणगणवारिधि लोकहितैषिणि
     स्वरसप्त भूषित गाननुते ..
सकल सुरासुर देवमुनीश्वर
     मानववन्दित पादयुते .
जयजय हे मधुसूदन कामिनि
     सन्तानलक्ष्मि त्वं पालय माम् .. ५..

   .. विजयलक्ष्मी ..
जय कमलासनि सद्गतिदायिनि
     ज्ञानविकासिनि गानमये .
अनुदिनमर्चित कुङ्कुमधूसर- 
     भूषित वासित वाद्यनुते ..
कनकधरास्तुति वैभव वन्दित
     शङ्कर देशिक मान्य पदे .
जयजय हे मधुसूदन कामिनि
     विजयलक्ष्मि सदा पालय माम् .. ६..

   .. विद्यालक्ष्मी ..
प्रणत सुरेश्वरि भारति भार्गवि
     शोकविनाशिनि रत्नमये .
मणिमयभूषित कर्णविभूषण
     शान्तिसमावृत हास्यमुखे ..
नवनिधिदायिनि कलिमलहारिणि
     कामित फलप्रद हस्तयुते .
जयजय हे मधुसूदन कामिनि
     विद्यालक्ष्मि सदा पालय माम् ..७..

   .. धनलक्ष्मी ..
धिमिधिमि धिंधिमि धिंधिमि धिंधिमि
     दुन्दुभि नाद सुपूर्णमये .
घुमघुम घुंघुम घुंघुम घुंघुम
    शङ्खनिनाद सुवाद्यनुते ..
वेदपुराणेतिहास सुपूजित
     वैदिकमार्ग प्रदर्शयुते .
जयजय हे मधुसूदन कामिनि
     धनलक्ष्मि रूपेण पालय माम् .. ८..

श्री सूक्त माता महालक्ष्मी की आराधना के दिव्य वेदमंत्र हैं l यह ऋग्वेद में है l धन की अधिष्ठात्री देवी मां लक्ष्मी जी की शीग्र कृपा प्राप्ति के लिए ऋग्वेद में वर्णित श्रीसूक्त का पाठ एक ऐसी साधना है जो कभी व्यर्थ नहीं जाती है l महालक्ष्मी की प्रसन्नता के लिए ही शास्त्रों में नवरात्रि, दीपावली या सामान्य दिनों में भी श्रीसूक्त के पाठ का महत्व और विधान बताया गया है l दरिद्रता और आर्थिंक तंगी से छुटकारे के लिए यह अचूक प्रभावकारी माना जाता है l
 माँ महालक्ष्मी के आह्वान एवं कृपा प्राप्ति के लिए श्रीसूक्त पाठ की विधि द्वारा आप बिना किसी विशेष व्यय के भक्ति एवं श्रद्धापूर्वक माँ महालक्ष्मी की आराधना करके आत्मिक शांति एवं समृद्धि को स्वयं अनुभव कर सकते हैं। यदि संस्कृत में मंत्र पाठ संभव न हो तो हिंदी में ही पाठ करें। दीपावली पर्व पांच पर्वों का महोत्सव है। कार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी (धनतेरस) से प्रारंभ होकर कार्तिक शुक्ल द्वितीया (भैयादूज) तक पांच दिन चलने वाला दीपावली पर्व धन एवं समृद्धि प्राप्ति, व्यापार वृद्धि ऋण मुक्ति आदि उद्देश्यों की पूर्ति के लिए मनाया जाता है। 
श्रीसूक्त का पाठ धन त्रयोदशी से भैयादूज तक पांच दिन संध्या समय किया जाए तो अति उत्तम है। धन त्रयोदशी के दिन गोधूलि वेला में साधक स्वच्छ होकर पूर्वाभिमुख होकर सफेद आसन पर बैठें। अपने सामने लकड़ी की पटरी पर लाल अथवा सफेद कपड़ा बिछाएं। उस पर एक थाली में अष्टगंध अथवा कुमकुम (रोली) से स्वस्तिक चिह्न बनाएं। गुलाब के पुष्प की पत्तियों से थाली सजाएं, संभव हो तो कमल का पुष्प भी रखें। उस गुलाब की पत्तियों से भरी थाली में मां लक्ष्मी एवं विष्णु भगवान का चित्र अथवा मूर्ति रखें। साथ ही थाली में श्रीयंत्र, दक्षिणावर्ती शंख अथवा शालिग्राम में से जो भी वस्तु आपके पास उपलब्ध हो रक्खे। सुगंधित धूप अथवा गुलाब की अगरबत्ती जलाएं। थाली में शुद्ध गौ घी का एक दीपक भी जरूर जलाएं। खीर अथवा मिश्री का नैवेद्य रखें। तत्पश्चात् निम्नलिखित विधि से श्री सूक्त की ऋचाओं का पाठ करें। 
ऋग्वेद में बताया गया है कि यदि इन ऋचाओं का पाठ करते हुए शुद्ध गौ घी से हवन भी किया जाए तो इसका फल द्विगुणित होता है। सर्वप्रथम दाएं हाथ में जल लेकर निम्न मंत्र से पूजन सामग्री एवं स्वयं पर छिड़कें। 
मंत्र:-
अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोऽपि वा |
यः स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यान्तरः शुचिः।। 
अर्थ- पवित्र हो या अपवित्र अथवा किसी भी अवस्था में हे जो पुंडरीकाक्ष (विष्णु भगवान) का स्मरण करता है वह अंदर और बाहर से पवित्र हो जाता है। उसके बाद निम्न मंत्रों से तीन बार आचमन करें- श्री महालक्ष्म्यै नमः ऐं आत्मा तत्वं शोधयामि नमः स्वाहा। 
अर्थ- श्री महालक्ष्मी को मेरा नमन। मैं आत्मा तत्व को शुद्ध करता हूं। श्री महालक्ष्म्यै नमः ह्रीं विद्या तत्वं शोधयामि नमः स्वाहा अर्थ- श्री महालक्ष्मी को मेरा नमन। मैं विद्या तत्व को शुद्ध करता हूं। श्री महालक्ष्म्यै नमः क्लीं शिव तत्वं शोधयामि नमः स्वाहा अर्थ-श्री महालक्ष्मी को मेरा नमन। मैं शिव तत्व को शुद्ध करता हूं। (तत्पश्चात् दाएं हाथ में चावल लेकर संकल्प करें।) 
हे मां लक्ष्मी, मैं समस्त लौकिक कामनाओं की पूर्ति के लिए श्रीसूक्त माँ महालक्ष्मी जी की जो साधना कर रहा हूं, आपकी कृपा के बिना कुछ भी कहां संभव है। हे माता श्री लक्ष्मी, मुझ पर प्रसन्न होकर साधना के सफल होने का आशीर्वाद दें। (हाथ के चावल भूमि पर चढ़ा दें।) विनियोग करें (दाएं हाथ में जल लें।) 
मंत्रा:  
हिरण्यवर्णामिति पंषदषर्चस्य सूक्तस्य, श्री आनन्द, कर्दमचिक्लीत, इन्दिरासुता महाऋषयः। श्रीरग्निदेवता। आद्यस्तिस्तोनुष्टुभः चतुर्थी वृहती।
 पंचमी षष्ठ्यो त्रिष्टुभो, ततो अष्टावनुष्टुभः अन्त्याः प्रस्तारपंक्तिः। 
हिरण्यवर्णमिति बीजं, ताम् आवह जातवेद इति शक्तिः, 
कीर्ति ऋद्धि ददातु में इति कीलकम्। 
श्री महालक्ष्मी प्रसाद सिद्धयर्थे जपे विनियोगः। (जल भूमि पर छोड़ दें।) 
अर्थ- इस पंद्रह ऋचाओं वाले श्री सूक्त के कर्दम और चिक्लीत ऋषि हैं अर्थात् प्रथम तंत्र की इंदिरा ऋषि है, आनंद कर्दम और चिक्लीत इंदिरा पुंज है और शेष चैदह मंत्रों के द्रष्टा हैं। प्रथम तीन ऋचाओं का अनुष्टुप, चतुर्थ ऋचा का वहती, पंचम व षष्ठ ऋचा का त्रिष्टुप एवं सातवीं से चैदहवीं ऋचा का अनुष्टुप् छंद है। 
पंद्रह व सोलहवीं ऋचा का प्रसार भक्ति छंद है। श्री और अग्नि देवता हैं। ’हिरण्यवर्णा’ प्रथम ऋचा बीज और ’कां सोस्मितां’ चतुर्थ ऋचा शक्ति है। 
धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष प्राप्ति के लिए विनियोग है। 
(हाथ जोड़ कर लक्ष्मीजी एवं विष्णुजी का ध्यान करें।) गुलाबी कमल दल पर बैठी हुई, पराग राशि के समान पीतवर्णा, हाथों में कमल पुष्प धारण किए हुए, मणियों युक्त अलंकारों को धारण किए हुए, समस्त लोकों की जननी माँ श्रीमहालक्ष्मी को हम वंदना करते हैं। 
इस सूक्त की ऋचाओं में से १५ ऋचाएँ मूल 'श्री-सूक्त’ माना जाता है l यह सूक्त ऋग्वेद संहिता के अष्टक ४ अध्याय ४ के अन्तिम मण्डल ५ के अन्त में ‘परिशिष्ट’ के रुप में आया है l इसी को ‘खिल-सूक्त’ भी कहते हैं l मूलतः यह ऋग्वेद में आनंदकर्दम ऋषि द्वारा श्री देवता को समर्पित काव्यांश है l निरुक्त एवं शौनक आदि ने भी इसका उल्लेख किया है l इस सूक्त की सोलहवीं ऋचा फलश्रुति स्वरुप है l इसके पश्चात् १७ से २५ वीं ऋचाएँ फल-स्तुति रुप ही हैं, जिन्हें ‘लक्ष्मी-सूक्त’ कहते हैं l सोलहवीं ऋचा के अनुसार श्रीसूक्त की प्रारम्भिक १५ ऋचाएँ कर्म-काण्ड-उपासना के लिए प्रयोज्य है l अतः ये १५ ऋचाएं ही लक्ष्मी-प्राप्ति के लिए अनेक प्रकार के आगम-तन्त्रानुसार साधना में प्रयुक्त होती हैं l
।।श्री सूक्त।।

ॐ हिरण्यवर्णां हरिणीं सुवर्णरजतस्रजाम् ।
चन्द्रां हिरण्यमयीं लक्ष्मीं जातवेदो मऽआवह ।।१
हे अग्निदेव, आप मेरे लिए उस लक्ष्मी देवी का आवाहन करें जिनका वर्ण स्वर्णकान्ति के समान है ,जो स्वर्ण और रजत की मालाओं से अलंकृत हैं ,जो परम सुंदरी दारिद्र्य का हरण करती हैं और जो चन्द्रमा के समान स्वर्णिम आभा से युक्त हैं l

तां म आवह जात-वेदो, लक्ष्मीमनप-गामिनीम् ।
यस्यां हिरण्यं विन्देयं, गामश्वं पुरूषानहम् ।।२
हे जातवेदा अग्निदेव,आप मेरे लिए उन जगत-प्रसिद्ध वापस नहीं लौटने वाली (सदा साथ रहनेवाली ) लक्ष्मी जी को बुलाएं जिनके आगमन से मैं स्वर्ण,गौ,अश्व,बंधू-बांधव ,पुत्र-पौत्र को प्राप्त कर सकूँ ।

अश्वपूर्वां रथ-मध्यां, हस्ति-नाद-प्रमोदिनीम् ।
श्रियं देवीमुपह्वये, श्रीर्मा देवी जुषताम् ।।३
जिस देवी के आगे घोड़े और मध्य में रथ है,ऐसे रथ पर आरूढ़ गज-निनाद से प्रमुद्कारिणी देदीप्यमान लक्ष्मी देवी का मैं यहाँ आवाहन करता हूँ जिससे वे मुझ पर प्रसन्न हों ।

कां सोऽस्मितां हिरण्यप्राकारामार्द्रा ज्वलन्तीं तृप्तां तर्पयन्तीं।
पद्मे स्थितां पद्म-वर्णां तामिहोपह्वये श्रियम्।।४
मुखारविंद पर मधुर स्मिति से जिनका स्वरुप अवर्णनीय है,जो स्वर्ण से आविष्ट ,दयाभाव से आर्द्र देदीप्यमान हैं और जो स्वयं तृप्त होते हुए दूसरों के मनोरथ को पूरा करने वाली हैं कमल पर विराजमान कमल-सदृश उस लक्ष्मी देवी का मैं आवाहन करता हूँ ।

चन्द्रां प्रभासां यशसा ज्वलन्तीं श्रियं लोके देव-जुष्टामुदाराम्।
तां पद्म-नेमिं शरणमहं प्रपद्ये अलक्ष्मीर्मे नश्यतां त्वां वृणोमि।।५
चन्द्रमा के समान प्रभावती ,अपनी यश-कीर्ति से देदीप्यमती, स्वर्गलोक में देवों द्वारा पूजिता ,उदारहृदया ,कमल-नेमि (कमल-चक्रिता/पद्म-स्थिता ) लक्ष्मी देवी, मैं आपका शरणागत हूँ । आपकी कृपा से मेरी दरिद्रता दूर हो।

आदित्यवर्णे तपसोधिsजातो वनस्पतिस्तव वृक्षोऽथबिल्वः।
तस्य फलानि तपसानुदन्तु या अन्तरा याष्च बाह्या अलक्ष्मीः।।६
हे सूर्यकांतियुक्ता देवी , जिस प्रकार आपके तेज से सारी वनसम्पदाएँ उत्पन्न हुई हैं,जिस प्रकार आपके तेज से बिल्ववृक्ष और उसके फल उत्पन्न हुए हैं,उसी प्रकार आप अपने तेज से मेरे बाह्य और आभ्यंतर की दरिद्रता को विनष्ट कर दें।

उपैतु मां देवसखः कीर्तिष्च मणिना सह ।
प्रादुर्भूतोस्मि राष्ट्रेऽस्मिन् कीर्तिमृद्धिं ददातु मे।।७
हे लक्ष्मी देवी ,देवसखा अर्थात् महादेव के सखा कुबेर के समान मुझे मणि ( संपत्ति ) के साथ कीर्ति प्राप्त हो , मैं इस राष्ट्र में उत्पन्न हुआ हूं ,मुझे कीर्ति और समृद्धि प्रदान करें ।

क्षुत्पिपासामलां जयेष्ठामलक्ष्मीं नाशयाम्यहम् ।
अभूतिमसमृद्धिं च सर्वान् निर्णुद मे गृहात् ।। ८
क्षुधा और पिपासा (भूख-प्यास) रूपी मलिनता की वाहिका आपकी ज्येष्ठ बहन अलक्ष्मी को मैं ( आपके प्रताप से ) नष्ट करता हूँ । हे लक्ष्मी देवी ,आप मेरे घर से अनैश्वर्य अशुभता जैसे सभी विघ्नों को दूर करें ।

गन्धद्वारां दुराधर्षां नित्यपुष्टां करीषिणीम् ।
ईश्वरीं सर्वभूतानां तामिहोपह्वये श्रियम् ।।९
सुगन्धित द्रव्यों के अर्पण से प्रसन्न होने वाली, किसी से भी नहीं हारनेवाली ,सर्वदा समृद्धि देने वाली ( इच्छाओं की पुष्टि करनेवाली ), समस्त जीवों की स्वामिनी लक्ष्मी देवी का मैं यहां आवाहन करता हूं ।

मनसः काममाकूतिं वाचः सत्यमशीमहि ।
पशूनां रूपमन्नस्य मयि श्रीः श्रयतां यशः॥१०
हे लक्ष्मी देवी, आपकी कृपा से मेरी सभी मानसिक इच्छा की पूर्ति हो जाए, वचन सत्य हो जाय ,पशुधन रूप-सौन्दर्य और अन्न को मैं प्राप्त करूं तथा मुझे संपत्ति और यश प्राप्त हो जाय।

कर्दमेन प्रजाभूता मयि सम्भव कर्दम ।
श्रियं वासय मे कुले मातरं पद्ममालिनीम् ॥११
हे कर्दम ऋषि (लक्ष्मी-पुत्र ) ,आप मुझ में निवास कीजिये और आपके सद्प्रयास से जो लक्ष्मी देवी आविर्भूत होकर आप-सा प्रकृष्ट पुत्र वाली माता हुई उस कमलमाला-धारिणी लक्ष्मी माता को मेरे कुल में निवास कराये ।

आपः सृजन्तु स्निग्धानि चिक्लीत वस मे गृहे ।
नि च देवीं मातरं श्रियं वासय मे कुले ॥ १२
जिस प्रकार वरुणदेव स्निग्ध द्रव्यों को उत्पन्न करते है ( जिस प्रकार जल से स्निग्धता आती है ), उसी प्रकार, हे लक्ष्मीपुत्र चिक्लीत , आप मेरे घर में निवास करें और दिव्यगुणयुक्ता श्रेयमान माता लक्ष्मी को मेरे कुल में निवास कराकर इसे स्निग्ध कर दें ।

आर्द्रां पुष्करिणीं पुष्टिं पिङ्गलां पद्ममालिनीम् ।
चन्द्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आवह ॥ १३
हे अग्निदेव, आप मेरे लिए कमल-पुष्करिणी की आर्द्रता से आर्द्र शरीर वाली ,पुष्टिकारिणी,पीतवर्णा,कमल की माला धारण करने वाली, चन्द्रमा के समान स्वर्णिम आभा वाली लक्ष्मी देवी का आवाहन करें ।

आर्द्रां यः करिणीं यष्टिं सुवर्णां हेममालिनीम् ।
सूर्यां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आवह ॥ १४
हे अग्निदेव , आप मेरे लिए दयाभाव से आर्द्रचित्त, क्रियाशील करनेवाली ,शासन-दंड-धारिणी ( कोमलांगी ) , सुन्दर वर्णवाली,स्वर्णमाला-धारिणी सूर्य के समान स्वर्णिम आभामयी लक्ष्मी देवी का आवाहन करें ।

तां म आवह जातवेदो लक्ष्मीमनपगामिनीम् ।
यस्या हिरण्यं प्रभूतं गावो दास्योऽश्वन्विन्देयं पुरुषानहम् ।।१५
हे अग्निदेव , आप मेरे लिए स्थिर ( दूर न जानेवाली ) लक्ष्मी देवी का आवाहन करें जिनकी कृपा से मुझे प्रचुर स्वर्ण-धन ,गौ ,घोड़े और संतान प्राप्त हों ।

यः शुचिः प्रयतो भूत्वा जुहुयादाज्यमन्वहम् ।
सूक्तं पञ्चदशर्चं च श्रीकामः सततं जपेत् ॥१६
जो नित्य पवित्र होकर इस पंचदश ऋचा वाले सूक्त से भक्तिपूर्वक घी की आहुति देता है और इसका पाठ ( जप ) करता है उसकी श्री ( लक्ष्मी ) की कामना पूर्ण होती है.
ll ॐ शांतिः शांतिः शांतिः ll ( इस के साथ सिद्ध लक्ष्मी सूक्त को भी जोड़ा गया हे )

"श्री लक्ष्मीसूक्तम्‌"

पद्मानने पद्मिनि पद्मपत्रे पद्मप्रिये पद्मदलायताक्षि।
विश्वप्रिये विश्वमनोऽनुकूले त्वत्पादपद्मं मयि सन्निधत्स्व॥
- हे लक्ष्मी देवी! आप कमलमुखी, कमल पुष्प पर विराजमान, कमल-दल के समान नेत्रों वाली, कमल पुष्पों को पसंद करने वाली हैं। सृष्टि के सभी जीव आपकी कृपा की कामना करते हैं। आप सबको मनोनुकूल फल देने वाली हैं। हे देवी! आपके चरण-कमल सदैव मेरे हृदय में स्थित हों।

पद्मानने पद्मऊरू पद्माक्षी पद्मसम्भवे।
तन्मे भजसिं पद्माक्षि येन सौख्यं लभाम्यहम्‌॥
- हे लक्ष्मी देवी! आपका श्रीमुख, ऊरु भाग, नेत्र आदि कमल के समान हैं। आपकी उत्पत्ति कमल से हुई है। हे कमलनयनी! मैं आपका स्मरण करता हूँ, आप मुझ पर कृपा करें।

अश्वदायी गोदायी धनदायी महाधने।
धनं मे जुष तां देवि सर्वांकामांश्च देहि मे॥
- हे देवी! अश्व, गौ, धन आदि देने में आप समर्थ हैं। आप मुझे धन प्रदान करें। हे माता! मेरी सभी कामनाओं को आप पूर्ण करें।

पुत्र पौत्र धनं धान्यं हस्त्यश्वादिगवेरथम्‌।
प्रजानां भवसी माता आयुष्मंतं करोतु मे॥
- हे देवी! आप सृष्टि के समस्त जीवों की माता हैं। आप मुझे पुत्र-पौत्र, धन-धान्य, हाथी-घोड़े, गौ, बैल, रथ आदि प्रदान करें। आप मुझे दीर्घ-आयुष्य बनाएँ।

धनमाग्नि धनं वायुर्धनं सूर्यो धनं वसु।
धन मिंद्रो बृहस्पतिर्वरुणां धनमस्तु मे॥
- हे लक्ष्मी! आप मुझे अग्नि, धन, वायु, सूर्य, जल, बृहस्पति, वरुण आदि की कृपा द्वारा धन की प्राप्ति कराएँ।

वैनतेय सोमं पिव सोमं पिवतु वृत्रहा।
सोमं धनस्य सोमिनो मह्यं ददातु सोमिनः॥
- हे वैनतेय पुत्र गरुड़! वृत्रासुर के वधकर्ता, इंद्र, आदि समस्त देव जो अमृत पीने वाले हैं, मुझे अमृतयुक्त धन प्रदान करें।

न क्रोधो न च मात्सर्यं न लोभो नाशुभामतिः।
भवन्ति कृतपुण्यानां भक्तानां सूक्त जापिनाम्‌॥
- इस सूक्त का पाठ करने वाले की क्रोध, मत्सर, लोभ व अन्य अशुभ कर्मों में वृत्ति नहीं रहती, वे सत्कर्म की ओर प्रेरित होते हैं।

सरसिजनिलये सरोजहस्ते धवलतरांशुक गंधमाल्यशोभे।
भगवति हरिवल्लभे मनोज्ञे त्रिभुवनभूतिकरी प्रसीद मह्यम्‌॥
- हे त्रिभुवनेश्वरी! हे कमलनिवासिनी! आप हाथ में कमल धारण किए रहती हैं। श्वेत, स्वच्छ वस्त्र, चंदन व माला से युक्त हे विष्णुप्रिया देवी! आप सबके मन की जानने वाली हैं। आप मुझ दीन पर कृपा करें।

विष्णुपत्नीं क्षमां देवीं माधवीं माधवप्रियाम्‌।
लक्ष्मीं प्रियसखीं देवीं नमाम्यच्युतवल्लभाम॥
- भगवान विष्णु की प्रिय पत्नी, माधवप्रिया, भगवान अच्युत की प्रेयसी, क्षमा की मूर्ति, लक्ष्मी देवी मैं आपको बारंबार नमन करता हूँ।

महादेव्यै च विद्महे विष्णुपत्न्यै च धीमहि।
तन्नो लक्ष्मीः प्रचोदयात्‌॥
- हम महादेवी लक्ष्मी का स्मरण करते हैं। विष्णुपत्नी लक्ष्मी हम पर कृपा करें, वे देवी हमें सत्कार्यों की ओर प्रवृत्त करें।

चंद्रप्रभां लक्ष्मीमेशानीं सूर्याभांलक्ष्मीमेश्वरीम्‌।
चंद्र सूर्याग्निसंकाशां श्रिय देवीमुपास्महे॥
- जो चंद्रमा की आभा के समान शीतल और सूर्य के समान परम तेजोमय हैं उन परमेश्वरी लक्ष्मीजी की हम आराधना करते हैं।

श्रीर्वर्चस्वमायुष्यमारोग्यमाभिधाच्छ्रोभमानं महीयते।
धान्य धनं पशु बहु पुत्रलाभम्‌ सत्संवत्सरं दीर्घमायुः॥
- इस लक्ष्मी सूक्त का पाठ करने से व्यक्ति श्री, तेज, आयु, स्वास्थ्य से युक्त होकर शोभायमान रहता है। वह धन-धान्य व पशु धन सम्पन्न, पुत्रवान होकर दीर्घायु होता है।
॥ इति श्रीलक्ष्मी सूक्तम्‌ संपूर्णम्‌ ॥
पंडित आशु बहुगुणा
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दुर्गा सप्तशती पाठ विधि

  दुर्गा सप्तशती दुर्गा सप्तशती पाठ विधि पूजनकर्ता स्नान करके, आसन शुद्धि की क्रिया सम्पन्न करके, शुद्ध आसन पर बैठ जाएँ। माथे पर अपनी पसंद क...