भारतीय ज्योतिष शास्त्र में कमजोर ग्रहों से शुभ प्रभाव लेने के लिए हम उन्हें रत्न द्वारा बल देते है .. रत्न मुख्यतः नौ प्रकार के होते है जैसे सूर्य के लिए माणिक, चन्द्र के लिए मोती, मंगल के लिए मूँगा, बुध के लिए पन्ना, गुरु के लिए पुखराज, शुक्र के लिए हीरा, शनि के लिए नीलम, राहु के लिए गोमेद, केतु के लिए लहसुनियाँ सभी रत्नों का उप रत्न भी होता है जितना अच्छा रत्न होता है उसका प्रभाव भी उतना अधिक होता है , सभी रत्नों का उनके ग्रहों के अनुसार दिन और अंगुलिया निर्धारित की गई है, रत्नों को शुभ समय में धारण करे , इसके अन्दर दैवीय शक्तिया होती है .. आज कई लोग इसे पाखंड मानते है अगर ऐसा है तो मूंगा नीलम और मानिक एक ही हाँथ में पहन कर देखे . इन्शान अपने आप समझ जायेगा की कुछ तो है इसके अन्दर .. बस रत्नों के प्रति आदर सत्कार और सम्मान होना चाहिए .. मानो तो ये गंगा जल है ना मानो तो बहता पानी .. कभी भी राशियों के हिसाब से रत्न ना पहने हमेशा कुंडली के द्वारा शुभ ग्रहों की स्थिति को देखते हुए रत्न का चुनाव करे ..
सामान्यत: रत्नों के बारे में भ्रांति होती है जैसे विवाह न हो रहा हो तो पुखराज पहन लें, मांगलिक हो तो मूँगा पहन लें, गुस्सा आता हो तो मोती पहन लें। मगर कौन सा रत्न कब पहना जाए इसके लिए कुंडली का सूक्ष्म निरीक्षण जरूरी होता है। लग्न कुंडली, नवमांश, ग्रहों का बलाबल, दशा-महादशाएँ आदि सभी का अध्ययन करने के बाद ही रत्न पहनने की सलाह दी जाती है। लग्न कुंडली के अनुसार कारकर ग्रहों के (लग्न, पंचम, नवम,) रत्न पहने जा सकते हैं .रत्न पहनने के लिए दशा-महादशाओं का अध्ययन भी जरूरी है। केंद्र या त्रिकोण के स्वामी की ग्रह महादशा में उस ग्रह का रत्न पहनने से अधिक लाभ मिलता है।
3, 6, 8, 12 के स्वामी ग्रहों के रत्न नहीं पहनने चाहिए। इनको शांत रखने के लिए दान-मंत्र जाप का सहारा लेना चाहिए। किसी भी लग्न के तीसरे, छठे, सातवें, आठवें और व्यय भाव यानी बारहवें भाव के स्वामी के रत्न नहीं पहनने चाहिए।
कौन सा रत्न किस धातु में पहने इसका भी बड़ा प्रभाव होता है जैसे
मोती -- चांदी में , हीरा, पन्ना , माणिक्य , नीलम , पुखराज -सोने में , और लहसुनिया -गोमेद - पंचधातु में पहनने से अधिक लाभ होता है ,
आज कल बाजार में नकली रत्न बहुत सारे आ रहे है, इसलिए रत्न लेने से पहले उसे पहले जाँच या परख कर के ही ख़रीदे ,रत्नों में अद्भूत शक्ति होती है. रत्न अगर किसी के भाग्य को आसमन पर पहुंचा सकता है तो किसी को आसमान से ज़मीन पर लाने की क्षमता भी रखता है. रत्न के विपरीत प्रभाव से बचने के लिए सही प्रकर से जांच करवाकर ही रत्न धारण करना चाहिए. ग्रहों की स्थिति के अनुसार रत्न धारण करना चाहिए. रत्न शरीर से टच होने चाहिए , क्योंकी रत्नों का काम सूर्य से उर्जा लेकर उसे शरीर में प्रवाहित करना होता है ,
रत्न को धारण करने से पूर्व उसे पहले गंगाजल अथवा पंचामृत से स्नान करायें.उसके बाद रत्न को स्थापित करें. शुद्ध घी का दीपक जलाकर रत्न के अधिष्ठाता ग्रह के मन्त्र का पूर्ण संख्या में जाप करने के पश्चात उस रत्न को धारण करें।