भारतीय संस्कृति में प्रत्येक मनुष्य अपने धर्म को बड़े विस्वास एवं आस्था के साथ निभाता है! हिन्दू पूजा करते समय या कहीं जाते समय अवस्य तिलक लगता है! महिलाये भी सुहाग के प्रतीक चिन्ह हेतु तिलक लगाती है! महिलाये लाल तिलक ही लगाती है क्योकि पति जाते समय उस तिलक को देखकर जाता है, जो सूर्य की लालिमा का प्रतीक होता है,एवं तिलक को देखकर पति को ये प्रेरणा मिलती है कि आज का दिन सूर्य कि लालिमा जैसा ( सुखमय ) रहें! एवं हर मांगलिक कार्य,शादी-विवाह,धार्मिक आयोजन,सामाजिक आयोजन में व्यक्ति तिलक लगाकर जाता है !
किसी आयोजन में आने वाले व्यक्ति का स्वागत-सत्कार हम तिलक लगाकर ही करते है! विशेषकर शादी-विवाह में बहन-बेटी या सुहागन आने वाले प्रत्येक व्यक्ति का स्वागत तिलक लगाकर करती है! विशेषकर यह प्रथा मध्यप्रदेश में मालवा एवं निमाड़ में यह प्रथा आज भी है!
तिलक मस्तक पर दोनों भौंहों के बीच नासिका के ऊपर प्रारंभिक स्थल पर लगाए जाते हैं जो हमारे चिंतन-मनन का स्थान है- यह चेतन-अवचेतन अवस्था में भी जागृत एवं सक्रिय रहता है, इसे आज्ञा-चक्र भी कहते हैं।
इसी चक्र के एक ओर दाईं ओर अजिमा नाड़ी होती है तथा दूसरी ओर वर्णा नाड़ी है।
इन दोनों के संगम बिंदु पर स्थित चक्र को निर्मल, विवेकशील, ऊर्जावान, जागृत रखने के साथ ही तनावमुक्त रहने हेतु ही तिलक लगाया जाता है।
इस बिंदु पर यदि सौभाग्यसूचक द्रव्य जैसे चंदन, केशर, कुमकुम आदि का तिलक लगाने से सात्विक एवं तेजपूर्ण होकर आत्मविश्वास में अभूतपूर्ण वृद्धि होती है, मन में निर्मलता, शांति एवं संयम में वृद्धि होती है।