ज्ञानांजन शलाका द्वारा अज्ञानता को दूर कर ज्ञान चक्षुओं को खोल देने वले श्री सदगुरुदेव को नमस्कार है। कैलाश पर्वत की चोटी पर बैठे हुये भगवान शिव से रावण ने निवेदन किया हे प्रभु आप मुझे ऐसी कोई तंत्र विद्या बतायें जिससे क्षणमात्र मे सिद्धि की प्राप्ति हो जाये। भगवान शिव बोले हे वस्त तुमने यह श्रेष्ठ प्रश्न पूछा है अत: लोक हितार्थ मैं उड्डीस तंत्र का वर्णन कर रहा हूँ।
जिसे उड्डीस तंत्र का पता नही है वह दूसरो पर गुस्सा करने के बाद कर भी क्या सकता है वह केवल अपने लहू और आत्मा मे चीत्कार कर सकता है और अपने ही शरीर को जला सकता है अपनी दिन चर्या को बरबाद कर सकता है। जैसे रात मे चन्द्रमा नही हो तो रात बेकार लगती है दिन मे सूर्य नही उदय हो तो दिन बेकार हो जाता है जिस राज्य मे राजा नही होता वह राज्य बेकार होती है वैसे बिना गुरु के कोई भी मंत्र की सिद्धि नही होती है।
पुस्तकों को पढकर किसी भी विद्या का ज्ञान नही होता है बिना गुरु के किसी भी तंत्र का अनुष्ठान हो ही नही सकता है,कलयुग मे जब गुरु की मान्यता ही समाप्त हो जाती है तो तंत्र के नाम पर केवल मदारी जैसे करिश्मे दिखाने से कोई तांत्रिक नही बनता है,गुरु मिलते भी है तो वे केवल अपना भंडार भरने वाले होते है,जो झूठ बोलना जानता हो और मजाक करने के बाद अपनी प्रस्तुति देना जानता हो कलयुग मे वही ज्ञानी और भक्ति से युक्त जान पडता है,इस समय मे भजन और कीर्तन भी चकाचौंध मे किये जाते है जो जितना मोहक और कामुक गाना बजाना नृत्य करना जानता है वही बडा भजन गाने वाला और भक्त कहलाता है।
उड्डीस तंत्र मे षडकर्म का उल्लेख जरूरी है इनके विधिवत अनुष्ठान से मनुष्य कुछ सिद्धिया जरूर प्राप्त कर सकता है जिससे वह अपनी जीविका और घोर जिन्दगी को खुशी जिन्दगी मे बदल सकता है। षटकर्म विधान मे शान्ति कर्म वशीकरण स्तंभन बैरभाव उच्चाटन और मारण आदि षटकर्म कहे गये है। जब मनुष्य अधिक क्रूर व्यक्तियों और समुदाय मे घिर जाता है चारो तरफ़ कलह और मारधाड ही देखने को मिलती है कसाई का काम करने वाले बढ जाते है तो शान्ति कर्म की प्रधानता बताई जाती है इस शान्ति कर्म वाले विधान करने से क्रूर शक्तियां पलायन कर जाती है और खुशहाली आजाती है लोग एक दूसरे के प्रति दया करना शुरु कर देते है। यही शान्ति कर्म जब शरीर मे रोग पैदा होते है ग्रहो का दोष पैदा हो जाता है तो किये जाते है।
जब अपना स्थान बनाने केलिये और अपने को सभी के प्रति सम्मान के भाव मे प्रस्तुत करने के लिये सभी को अपने प्रभाव मे लाने के लिये जो कार्य किये जाते है वह वशीकरण की श्रेणी मे आते है।पति पत्नी मे जब बैर भाव पैदा हो जाये माता पुत्र अलग अलग हो जाये पिता का सहयोग नही बन रहा हो भाई बहिन ही खुद के बैरी हो जाये तो वशीकरण नामक प्रयोग लाभदायी होता है।
जब समस्याये लगातार आगे बढती आ रही हो बैर करने वाले लोग चारो तरफ़ से घेरा डाल रहे हो पुलिस मुकद्दमा अस्प्ताल आदि के कारण लगातार घेरने लगे हो तो स्तम्भन नाम का तंत्र प्रयोग किया जाता है यही प्रयोग वे लोग भी अपनाते है जो अपने साथ के लोगो से आगे निकलने की होड मे अपने प्रभाव को हमेशा रखने के लिये उन्हे पीछे करना चाहते है लेकिन यह पापकर्म के अन्दर आने से उड्डीस तंत्र मे इसका प्रयोग खुद के लिये हानिकारक बन जाता है,जहां कोई बैर से आगे बढने की योजना को बनाता है और छल फ़रेब से आगे निकलने की क्रिया को करता है अनुचित काम करने के बाद वह आगे जाना चाहता है उसके लिये स्तम्भन का कार्य करना हितकर होता है।