मंत्र – ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं ग्लौं गं गणपतये वर वरद सर्वजनं मे वशमानय स्वाहा । यह मन्त्र संसार का वशीकरण कर सर्वसिद्धि देने वाला है । विनियोगः- ॐ अस्य श्री महागणपति मंत्रस्य गणक ऋषिः (शिरसि), निवृद गायत्री छन्दः (मुखे), महागणपतये देवताये (हृदि), सर्वाभीष्ट सिद्धयर्थे जपे विनियोगः। ध्यानम् : हस्तीन्द्रा चूडमरुणच्छायं त्रिनेत्रं रसा दाश्लिष्टं प्रियया स पद्मकरया साङ्कस्थया सङ्गतम् । बीजापूर गदा धनुस्त्रिशिख युक् चक्राब्ज पाशोत्पलम् ब्रीह्यग्र स्व विषाण रत्न कलशान् हस्तैर्वहन्तं भजे ॥ कराङ्गन्यासः – श्रीं ह्रीं क्लीं ग्लौं गं गां अंगुष्ठाभ्यां नमः । श्रीं ह्रीं क्लीं ग्लौं गं गी तर्जनीभ्यां स्वाहा । श्रीं ह्रीं क्लीं ग्लौं गं गूं मध्यमाभ्यां वषट् । श्रीं ह्रीं क्लीं ग्लौं गं गैं अनामिकाभ्यां हुं । श्रीं ह्रीं क्लीं ग्लौं गं गौं कनिष्ठाभ्यां वौषट् । श्रीं ह्रीं क्लीं ग्लौं गं गः करतल करपृष्ठाभ्यां फट् । इसी तरह से हृदयादि न्यास करें । यंत्रोद्धार – त्रिकोण के बाहर षट्कोण उसके बाहर अष्टदल, उसके बाहर भूपूर की रचना करें । गणपति तर्पण एवं गुरुमण्डल पूजन करने के पश्चात् त्रिकोण के बाहर १. पूर्वे – श्रियै सह श्रीपतये नमः । २. दक्षिणे – गौर्ये सह गौरीपतये नमः । ३. पश्चिमे – रत्यै सह रतिपतये नमः। ४. उत्तरे – ॐ मह्यै नमः ॐ वराहाय नमः । ५. देवताग्रे – ॐ लक्ष्मी सहित गणनायकाय नमः । गंधार्चन से पूजन तर्पण करें । प्रत्येक आवरण के अंत में अभीष्ट सिद्धिं मे देहि शरणागत वत्सल । भक्त्या समर्पये तुभ्यं अमुकावरणार्चनम् ॥ से पुष्पाञ्जलि देवें तथा बाद में पूजिताः तर्पिताः सन्तु कहकर अर्घपात्र से जल छोड़ें । द्वितीयावरणम् – (षटकोणे – अग्रे) पूर्वे – ॐ सिद्धि सहिता मोदाय नमः श्री पा० ॥ १ ॥ अग्निकोणे – ॐ समृद्धि सहित प्रमोदाय नमः श्री पा० ॥ २ ॥ नैर्ऋत्ये – ॐ मदद्रवा सहित विघ्नाय नमः श्री पा० ॥ ३ ॥ वायुकोणे – ॐ द्राविणी सहित विघ्नकर्त्रे नमः श्री पा० ॥ ४ ॥ ईशाने – ॐ कांति सहिताय सुमुखाय नमः श्री पा० ॥ ५ ॥ पश्चिमे – ॐ मदनावती सहिताय दुर्मुखाय नमः श्री पा० ॥ ६ ॥ षट्कोण के दोनों ओर – ॐ वसुधा सहित शङ्खनिधये नमः, वसुमती सहित पद्मनिधये नमः । आवरण देवताओं के गंधार्चन तर्पण, ‘ॐ अभीष्ट सिद्धिं …………… द्वितीयावरणार्चनम्’ से पुष्पाञ्जलि देवें तथा बाद में पूजिताः तर्पिताः सन्तु कहकर अर्घपात्र से जल छोड़ें । तृतीयावरणम् – (षट्कोण में अङ्गन्यास की तरह) “ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं ग्लौं गं गां हृदयाय नमः’ । श्रीं ह्रीं क्लीं ग्लौं गं गी शिरसे स्वाहा । श्रीं ह्रीं क्लीं ग्लौं गं गूं शिखायै वषट् । श्रीं ह्रीं क्लीं ग्लौं गं मैं कवचाय हुं । श्रीं ह्रीं क्लीं ग्लौं गं गौं नेत्रत्रयाय वौषट् । श्रीं ह्रीं क्लीं ग्लौं गं गः अस्त्राय फट् । शेष देवताओं का पूजन अष्टदल व भुपूर की उच्छिष्ट गणपति यंत्र पूजा विधि के समान षडङ्ग पूजा कर पुष्पाञ्जलि प्रदान करें ‘ॐ अभीष्ट सिद्धिं …… तृतीयावरणार्चनम्’ । बाद में पूजिता: तर्पिताः सन्तु कहकर अर्घपात्र से जल छोड़ें । चतुर्थावरणम् :- अष्टदल में ब्राह्मी आदि शक्तियों का पूजन उच्छिष्ट गणपति यंत्र की तरह से करें । यथा – ॐ ब्राह्मयै नमः, ब्राह्मी श्री पा० पू० त० नमः ॥ १ ॥ ॐ महेश्वर्यै नमः, माहेश्वरी श्री पा० ॥ २ ॥ ॐ कौमार्यै नमः, कौमारी श्री पा० पू० त० ॥ ३ ॥ ॐ वैष्णव्यै नमः, वैष्णवी श्री पा० ॥ ४ ॥ ॐ वाराह्यै नमः, वाराहीं श्री पा० ॥ ५ ॥ ॐ इन्द्राण्यै नमः, इन्द्राणी श्री पा० ॥ ६ ॥ ॐ चामुण्डायै नमः, चामुण्डा श्री पा० ॥ ७ ॥ ॐ महालक्ष्म्यै नमः, महालक्ष्मी श्री पा० पू० त० ॥ ८ ॥ पंचम तथा षष्टम् आवरणपूजा में इन्द्रादि लोकपालों व आयुधों का पूजन तर्पण उच्छिष्ट गणपति यंत्रार्चन जैसे करें । यथा – पञ्चमावरण – पूर्वे – ॐ इन्द्राय नमः, इन्द्र श्री पा० पू० त० नमः ॥ १ ॥ ॐ अग्नये नमः श्री पा० ॥ २ ॥ ॐ यमाय नमः श्री पा० ॥ ३ ॥ ॐ निर्ऋतये नमः श्री पा० ॥ ४ ॥ ॐ वरुणाय नमः श्री पा० ॥ ४ ॥ ॐ वायवे नमः श्री पा० ॥ ५ ॥ ॐ कुबेराय नमः श्री पा० ॥ ६ ॥ ऐशान्ये – ॐ ईशानाय नम० श्री पा० ॥ ७ ॥ इन्द्रेईशानयोर्मध्ये – ॐ ब्रह्मणे नमः ब्रह्मा श्री पा० ॥ ८ ॥ वरुणनैर्ऋतर्योर्मध्ये – ॐ अनंताय नमः अनन्त श्री पा० पू० त० ॥ ९ ॥ षष्ठावरण – ॐ वं वज्राय नमः श्री पा० ॥ १ ॥ ॐ शं शक्त्यै नमः श्री० पा० ॥ २ ॥ ॐ दं दण्डाय नमः श्री पा० ॥ ३ ॥ ॐ खं खड्गाय नमः श्री० पा० ॥ ४ ॥ ॐ पां पाशाय नमः श्री० पा० ॥ ५ ॥ ॐ अं अंकुशाय नमः श्री० पा० ॥ ६ ॥ ॐ गं गदायै नमः श्री० पा० ॥ ७ ॥ ॐ त्रिं त्रिशूलाय नमः श्री पा० ॥ ८ ॥ ॐ पं पद्माय नमः श्री पा० ॥ ९ ॥ ॐ चं चक्राय नमः, चक्र श्री पा० पू० त० नमः ॥ १० ॥
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Friday, 10 September 2021
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