Thursday, 26 September 2024

श्री बगला प्रत्यंगिरा कवचम्

 


श्री बगला प्रत्यंगिरा कवचम्
।। श्री शिव उवाच ।।
अधुनाऽहं प्रवक्ष्यामि बगलायाः सुदुर्लभम् ।
यस्य पठन मात्रेण पवनोपि स्थिरायते ।।
प्रत्यंगिरां तां देवेशि श्रृणुष्व कमलानने ।
यस्य स्मरण मात्रेण शत्रवो विलयं गताः ।।
।। श्री देव्युवाच ।।
स्नेहोऽस्ति यदि मे नाथ संसारार्णव तारक ।
तथा कथय मां शम्भो बगलाप्रत्यंगिरा मम ।।
।। श्री भैरव उवाच ।।
यं यं प्रार्थयते मन्त्री हठात्तंतमवाप्नुयात् ।
विद्वेषणाकर्षणे च स्तम्भनं वैरिणां विभो ।।
उच्चाटनं मारणं च येन कर्तुं क्षमो भवेत् ।
तत्सर्वं ब्रूहि मे देव यदि मां दयसे हर ।।
।। श्री सदाशिव उवाच ।।
अधुना हि महादेवि परानिष्ठा मतिर्भवेत् ।
अतएव महेशानि किंचिन्न वक्तुतुमर्हसि ।।
।। श्री पार्वत्युवाच ।।
जिघान्सन्तं तेन ब्रह्महा भवेत् ।
श्रृतिरेषाहि गिरिश कथं मां त्वं निनिन्दसि ।।
।। श्री शिव उवाच ।।
साधु साधु प्रवक्ष्यामि श्रृणुष्वावहितानघे ।
प्रत्यंगिरां बगलायाः सर्वशत्रुनिवारिणीम् ।।
नाशिनीं सर्व-दुष्टानां सर्व-पापौघ-हारिणिम् ।
सर्व-प्राणि-हितां देवीं सर्व दुःख विनाशिनीम् ।।
भोगदां मोक्षदां चैव राज्य सौभाग्य दायिनीम् ।
मन्त्र-दोष-प्रमोचनीं ग्रह-दोष निवारिणीम् ।।

विनियोगः- ॐ अस्य श्रीबगला प्रत्यंगिरा मन्त्रस्य नारद ऋषिस्त्रिष्टुप् छन्दः, प्रत्यंगिरा देवता, ह्लीं बीजं, हुं शक्तिः, ह्रीं कीलकं, ह्लीं ह्लीं ह्लीं ह्लीं प्रत्यंगिरा मम शत्रु विनाशे विनियोगः ।
ॐ प्रत्यंगिरायै नमः । प्रत्यंगिरे सकल कामान् साधय मम रक्षां कुरु-कुरु सर्वान् शत्रून् खादय खादय मारय मारय घातय घातय ॐ ह्रीं फट् स्वाहा ।
ॐ भ्रामरी स्तम्भिनी देवी क्षोभिणी-मोहिनी तथा ।
संहारिणी द्राविणी च जृम्भिणी रौद्र-रुपिणी ।।
इत्यष्टौ शक्तयो देवि शत्रु पक्षे नियोजिताः ।
धारयेत् कणऽठदेशे च सर्वशत्रु विनाशिनी ।।
ॐ ह्रीं भ्रामरि सर्व-शत्रून् भ्रामय-भ्रामय ॐ ह्रीं स्वाहा । ॐ ह्रीं स्तम्भिनी मम शत्रून् स्तम्भय-स्तम्भय ॐ ह्रीं स्वाहा । ॐ ह्रीं क्षोभिणी मम शत्रून् क्षोभय-क्षोभय ॐ ह्रीं स्वाहा । ॐ ह्रीं मोहिनी मम शत्रून्मोहय मोहय ॐ ह्रीं स्वाहा । ॐ ह्रीं संहारिणि मम शत्रून् संहारय संहारय ॐ ह्रीं स्वाहा । ॐ ह्रीं द्राविणि मम शत्रून् द्रावय द्रावय ॐ ह्रीं स्वाहा । ॐ ह्रीं जृम्भिणि मम शत्रून् जृम्भय जृम्भय ॐ ह्रीं स्वाहा । ॐ ह्रीं रौद्रि मम शत्रून् सन्तापय सन्तापय ॐ ह्रीं स्वाहा ।
इयं विद्या महा-विद्या सर्व-शत्रु-निवारिणी ।
धारिता साधकेन्द्रेण सर्वान् दुष्टान् विनाशयेत् ।।
त्रि-सन्ध्यमेक-सन्धऽयं वा यः पठेत्स्थिरमानसः ।
न तस्य दुर्लभं लोके कल्पवृक्ष इव स्थितः ।।
यं य स्पृशति हस्तेन यं यं पश्यति चक्षुषा ।
स एव दासतां याति सारात्सारामिमं मनुम् ।।

।। श्री रुद्रयामले शिव-पार्वति सम्वादे बगला प्रत्यंगिरा कवचम् ।

श्रीराम ज्योतिष सदन पंडित आशु बहुगुणा

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एक नारियल का चमत्कार, अब नहीं बिगड़ेंगे आपके काम

 


एक नारियल का चमत्कार, अब नहीं बिगड़ेंगे आपके काम क्योंकि...
क्या आपके कार्य बार-बार बिगड़ जाते हैं? किसी भी कार्य की सफलता में कड़ी मेहनत करनी पड़ती है? क्या अंतिम पलों में आपके हाथ से सफलता हाथ निकल जाती है? यदि आपको लगता है आपका भाग्य आपका साथ नहीं दे रहा है तो शास्त्रों के अनुसार कई उपाय बताए गए हैं।

शास्त्रों के अनुसार जब देवी-देवता आपसे रुष्ट या असप्रसन्न होते हैं तब आपको कार्यों में सफलता प्राप्त नहीं हो पाती। इसके अलावा कुंडली में यदि कोई ग्रह दोष हो तब भी काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है। इस प्रकार की परिस्थितियों से बचने के लिए कई उपाय बताए गए हैं, जो कि निश्चित रूप से लाभदायक ही हैं। इन्हीं उपायों में से एक उपाय ये है कि एक नारियल पानी में बहा दिया जाए।

नारियल पानी में कैसे बहना है? इस संबंध में ध्यान रखें ये बातें-

किसी भी पवित्र बहती नदी के किनारे एक नारियल लेकर जाएं। किनारे पर पहुंचकर अपना नाम और गौत्र बोलें। इसके साथ ही प्रार्थना करें कि आपकी समस्याएं दूर हो जाएं। अब नारियल को नदी में प्रवाहित कर दें। इसके तुरंत बाद वहां से घर लौट आएं। नदी किनारे से लौटते समय ध्यान रखें पीछे पलटकर न देखें। अन्यथा उपाय निष्फल हो जाएगा।

इसप्रकार नारियल नदी में बहाने से निश्चित ही आपको सकारात्मक परिणाम प्राप्त होने लगेंगे। बिगड़े कार्य बनने लगेंगे। भाग्य का साथ मिलने लगेगा, दुर्भाग्य का नाश होगा। इसके अलावा ध्यान रखें कि किसी भी प्रकार अधार्मिक कृत्यों से खुद को दूर रखें और किसी का मन न दुखाएं

श्रीराम ज्योतिष सदन पंडित आशु बहुगुणा

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सिद्ध बागला भगवती मंत्र

 


मंत्र : ॐ मलयाचल बागला भगवती माहाक्रूरी माहाकराली
राज मुख बन्धनं , ग्राम मुख बन्धनं , ग्राम पुरुष बन्धनं ,
काल मुख बन्धनं , चौर मुख बन्धनं , व्याघ्र मुख बन्धनं ,
सर्व दुष्ट ग्रेह बन्धनं , सर्व जन बन्धनं , वाशिकुरु हूँ फट स्वाहः ||

विधान : इस मंत्र का जाप माता बागला के सामान्य नियमो का पालन करते हुए १ माला प्रतिदिन करें ११ दिनों तक और दसांश हवन करें और नित्य १ माला जाप करते रहें मंत्र जागृत हो जाए गा | किसी भी प्रयोग को करने के लिए संकल्प लें (इछित गिनती का कम से कम ३ माला) और हवन कर दें प्रयोग सिद्ध होगा | रक्षा के लिए ७ बार मंत्र पढ़ के छाती पे और दसो दीशाओ मैं फुक मार दें , किसी भी चीज़ का भये नहीं रहे गा | नियमित जाप से मंत्र मैं लिखे सभी कार्य स्वम सिद्ध होते हैं अलग से प्रयोग की अवशाकता नहीं है | मंत्र का ग्रहन , दिवाली आदी पर्व में जाप कर पूर्णता जागृत कर लें | नज़र दोष के लिए मंत्र को पढ़ते हुए मोर पंख से झाडे | पिला नवद्य ज़रोर अर्पित करे | ध्यान मग्न होकर जाप करने से जल्दी सिद्ध हो |

श्रीराम ज्योतिष सदन पंडित आशु बहुगुणा

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परेशानी से बचने का उपाय श्री लक्ष्मीविनायक मंत्र

 


परेशानी से बचने का उपाय

वैदिक चिंतनधारा में व्यक्ति के विचार एवं निर्णयों को विकृत करने वाला तत्व ‘विघ्न’ तथा उसके काम-धंधे में रुकावटें डालने वाला तत्व बाधा कहलाता है। इन विघ्न-बाधाओं को दूर करने की क्षमता भगवान श्रीगणोश जी में है। मां लक्ष्मी तो स्वभाव से ही धन, संपत्ति एवं वैभव स्वरूपा हैं, इसीलिए व्यापार एवं काम-धंधे में आने वाली विघ्न-बाधाओं को दूर कर धन-संपत्ति प्राप्त करने के लिए श्रीलक्ष्मी गणोशजी के पूजन की परंपरा हमारे यहां आदिकाल से है।
श्री लक्ष्मीविनायक मंत्र :

ऊं श्रीं गं सौम्याय गणपतये वरवरद सर्वजनं मे वशमानय स्वाहा।
विनियोग :

ऊं अस्य श्री लक्ष्मी विनायक मंत्रस्य अंतर्यामी ऋषि:गायत्री छन्द: श्री लक्ष्मी विनायको देवता श्रीं बीजं स्वाहा शक्ति: सर्वाभीष्ट सिद्धये जपे विनियोग:।
करन्यास - अंगन्यास

ऊं श्रीं गां अंगुष्ठाभ्यां नम:। - ऊं श्रीं गां हृदयाय नम:।
ऊं श्रीं गीं तर्जनीभ्यां नम:। - ऊं श्रीं गीं शिरसे स्वाहा।
ऊं श्रीं गूं मध्यमाभ्यां नम:। - ऊं श्रीं गूं शिखायै वषट्।
ऊं श्रीं गैं अनामिकाभ्यां नम:। - ऊं श्रीं गैं कवचाय हुम्।
ऊं श्रीं गौं कनिष्ठकाभ्यां नम:। - ऊं श्रीं गौं नेत्रत्रयाय वौषट्।
ऊं श्रीं ग: करतलकरपृष्ठाभ्यां नम:। ऊं श्रीं ग: अस्त्रायं फट्।
ध्यान

दन्ताभये चक्रदरौदधानं कराग्रगस्वर्णघटं त्रिनेत्रम्।
धृताब्जयालिंगितमब्धिपु˜या लक्ष्मीगणोशं कनकाभमीडे ।।
विधि

नित्य नियम से निवृत्त होकर आसन पर पूर्वाभिमुख या उत्तराभिमुख बैठकर आचमन एवं प्राणायाम कर श्रीलक्ष्मी विनायक मंत्र के अनुष्ठान का संकल्प करना चाहिए। तत्पश्चात चौकी या पटरे पर लाल कपड़ा बिछाएं। भोजपत्र/रजत पत्र पर असृगंध एवं चमेली की कलम से लिखित इस लक्ष्मी विनायक मंत्र पर पंचोपचार या षोडशोपचार से भगवान लक्ष्मी गणोश जी का पूजन करना चाहिए। इसके बाद विधिवत विनियोग, न्यास एवं ध्यान कर एकाग्रतापूर्वक मंत्र का जप करना चाहिए। इस अनुष्ठान में जपसंख्या सवा लाख से चार लाख तक है।
अनुष्ठान के नियम

साधक स्नान कर रेशमी वस्त्र धारण करे। भस्म का त्रिपुंड या तिलक लगाकर रुद्राक्ष या लाल चंदन की माला पर जप करना चाहिए। इस जप को परेशानियों का नाश करने वाला माना गया है।
पूजन में लाल चंदन, दूर्वा, रक्तकनेर, कमल के पुष्प, मोदक एवं पंचमेवा अर्पित किए जाते हैं।
भक्ति भाव से पूजन, मनोयोगपूर्वक जप एवं श्रद्धा सहित हवन करने से सभी कामनाएं पूरी होती हैं।
अनुष्ठान के दिनों में गणपत्यथर्वशीर्षसूक्त, श्रीसूक्त, लक्ष्मीसूक्त कनकधारास्तोत्र आदि का पाठ करना फलदायक है।

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मंत्र जाप करने के भी कुछ नियम होते हैं।

 

मंत्र जाप करने के नियम


मंत्र जाप करने के भी कुछ नियम होते हैं। यदि आप उन नियमों का पालन करेंगे तो आपके घर में न केवल सुख-शांति आयेगी, बल्कि आपका स्वाकस्य्े भी अच्छाी रहेगा
1-वाचिक जप
वाणी द्वारा सस्वर मंत्र का उच्चारण करना वाचिक जप की श्रेणी में आता है।
2- उपांशु जप- अपने इष्ट भगवान के ध्यान में मन लगाकर, जुबान और ओंठों को कुछ कम्पित करते हुए, इस प्रकार मंत्र का उच्चारण करें कि केवल स्वंय को ही सुनाई पड़े। ऐसे मंत्रोचारण को उपांशु जप कहते है।
3- मानसिक जप- इस जप में किसी भी प्रकार के नियम की बाध्यता नहीं होती है। सोते समय, चलते समय, यात्रा में एंव शौच आदि करते वक्त भी ’ मंत्र’ जप का अभ्यास किया जाता है। मानसिक जप सभी दिशाओं एंव दशाओं में करने का प्रावधान है।
इन नियमों का भी पालन करें
1- शरीर की शुद्धि आवश्यक है। अतः स्नान करके ही आसन ग्रहण करना चाहिए। साधना करने के लिए सफेद कपड़ों का प्रयोग करना सर्वथा उचित रहता है।
2- साधना के लिए कुश के आसन पर बैठना चाहिए क्योंकि कुश उष्मा का सुचालक होता है। और जिससे मंत्रोचार से उत्पन्न उर्जा हमारे शरीर में समाहित होती है।
3- मेरूदण्ड हमेशा सीधा रखना चाहिए, ताकि सुषुम्ना में प्राण का प्रवाह आसानी से हो सके।
4- साधारण जप में तुलसी की माला का प्रयोग करना चाहिए। कार्य सिद्ध की कामना में चन्दन या रूद्राक्ष की माला प्रयोग हितकर रहता है।
5- ब्रह्रममुहूर्त में उठकर ही साधना करना चाहिए क्योंकि प्रातः काल का समय शुद्ध वायु से परिपूर्ण होता है। साधना नियमित और निश्चित समय पर ही की जानी चाहिए।
6- अक्षत, अंगुलियों के पर्व, पुष्प आदि से मंत्र जप की संख्या नहीं गिननी चाहिए।
7- मंत्र शक्ति का अनुभव करने के लिए कम से कम एक माला नित्य जाप करना चाहिए।
8- मंत्र का जप प्रातः काल पूर्व दिशा की ओर मुख करके करना चाहिए एंव सांयकाल में पश्चिम दिशा की ओर मुख करके जप करना श्रेष्ठ माना गया है।

 

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दुर्गा सप्तशती पाठ विधि

  दुर्गा सप्तशती दुर्गा सप्तशती पाठ विधि पूजनकर्ता स्नान करके, आसन शुद्धि की क्रिया सम्पन्न करके, शुद्ध आसन पर बैठ जाएँ। माथे पर अपनी पसंद क...