हर हर महादेव
पंचमुख शिव के आग्नेय,वायव्य और सौम्य तीन स्वरुप- धर्म है। इन तीनो स्वरुप धर्मों में से प्रत्येक के तीन तीन भेद है - आग्नेय प्राण के वायु,इंद्र,अग्नि तथा वायव्य प्राण के वायु,शब्द,अग्नि और सौम्य प्राण के वरुण,चन्द्र, दिक् भेद है। इन भेदों से शिव की नौ शक्तियाँ हो जाती है। वे नौ शक्तियाँ घोर है-उग्र है और उन सबका आधारभूत परोरज नाम का सर्वप्रतिष्ठारूप शान्तिमय प्राजापत्य प्राण है। इस प्रकार पञ्चवक्त्र शिव की दस शक्तियों के प्रतीक शिव के दस हाथ और दस आयुध है। शिव का टंक आयुध आग्नेय ताप का सूचक है। शूल आयुध वायव्य ताप का सूचक है,वज्र आयुध ऐन्द्र ताप का सूचक है। पाश आयुध वारुण ताप का सूचक है। खड़ग आयुध चान्द्र शक्ति का सूचक है।अंकुश आयुध दिश्योहेति का सूचक है। नाग आयुध सज्चर नाड़ी तथा विषाक्त वायु का संकेत है। जिस वायु सूत्र से रूद्र प्रविष्ट होते है,उसे सज्चर नाड़ी कहते है। इस सज्चर नाड़ी का सम्बन्ध नाक्षत्रिक-सर्पप्राण से है। आकाशीय समस्त ग्रह नक्षत्र सर्पाकार है,उनमे यही सौर तेज़ व्याप्त रहता है और सब ग्रह रूप सर्पों के साथ रूद्र-सूर्य का भोग होता है,इसलिए शिव के शरीर(मूर्ति)में साँप लपेट दिए जाते है। पञ्च वक्त्र शिव की दृष्टि प्रकाश रूपा है जो अग्नि ज्वाला के प्रतीक रूप में प्रदर्शित की जाती है। शिव के माथे में चद्रमा है। वह सोमाहुति का प्रतीक है तथा शिव की अभय मुद्रा शान्त रूप परोरजाः प्राण का प्रतीक है। शिव स्वर-वाक् के अधिष्ठात्र देवता है,इसका प्रतीक घंटा है,जिसे शिव धारण करते है। पञ्च वक्त्र शिव का यही रूप है।