Wednesday, 22 January 2025

श्री कालभैरवाष्टमी विशेष साधना क्रम

 


 श्री कालभैरवाष्टमी विशेष साधना क्रम
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दसों दिशाओं से रक्षा करते हैं श्री #भैरव।
श्री भैरव के अनेक रूप हैं जिसमें प्रमुख रूप से #बटुक भैरव, #महाकाल भैरव तथा स्वर्णाकर्षण भैरव प्रमुख हैं। जिस भैरव की पूजा करें उसी रूप के नाम का उच्चारण होना चाहिए। सभी भैरवों में बटुक भैरव उपासना का अधिक प्रचलन है। तांत्रिक ग्रंथों में अष्ट भैरव के नामों की प्रसिद्धि है। वे इस प्रकार हैं-
1. असितांग भैरव,
2. चंड भैरव,
3. रूरू भैरव,
4. क्रोध भैरव,
5. उन्मत्त भैरव,
6. कपाल भैरव,
7. भीषण भैरव
8. संहार भैरव।
क्षेत्रपाल व दण्डपाणि के नाम से भी इन्हें जाना जाता है। श्री भैरव से काल भी भयभीत रहता है अत: उनका एक रूप'काल भैरव'के नाम से विख्यात हैं।
दुष्टों का दमन करने के कारण इन्हें"आमर्दक"कहा गया है।
शिवजी ने भैरव को काशी के कोतवाल पद पर प्रतिष्ठित किया है।
जिन व्यक्तियों की जन्म कुंडली में शनि, मंगल, राहु आदि पाप ग्रह अशुभ फलदायक हों, नीचगत अथवा शत्रु क्षेत्रीय हों। शनि की साढ़े-साती या ढैय्या से पीडित हों, तो वे व्यक्ति भैरव जयंती अथवा किसी माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी, रविवार, मंगलवार या बुधवार प्रारम्भ कर बटुक भैरव मूल मंत्र की एक माला (108 बार) का जाप प्रतिदिन रूद्राक्ष की माला से 41 दिन तक करें, अवश्य ही शुभ फलों की प्राप्ति होगी।
भगवान भैरव की महिमा अनेक शास्त्रों में मिलती है। भैरव जहाँ शिव के गण के रूप में जाने जाते हैं, वहीं वे दुर्गा के अनुचारी माने गए हैं। भैरव की सवारी कुत्ता है। चमेली फूल प्रिय होने के कारण उपासना में इसका विशेष महत्व है। साथ ही भैरव रात्रि के देवता माने जाते हैं और इनकी आराधना का खास समय भी मध्य रात्रि में 12 से 3 बजे का माना जाता है।
भैरव के नाम जप मात्र से मनुष्य को कई रोगों से मुक्ति मिलती है। वे संतान को लंबी उम्र प्रदान करते है। अगर आप भूत-प्रेत बाधा, तांत्रिक क्रियाओं से परेशान है, तो आप शनिवार या मंगलवार कभी भी अपने घर में भैरव पाठ का वाचन कराने से समस्त कष्टों और परेशानियों से मुक्त हो सकते हैं।
जन्मकुंडली में अगर आप मंगल ग्रह के दोषों से परेशान हैं तो भैरव की पूजा करके पत्रिका के दोषों का निवारण आसानी से कर सकते है। राहु केतु के उपायों के लिए भी इनका पूजन करना अच्छा माना जाता है। भैरव की पूजा में काली उड़द और उड़द से बने मिष्ठान्न इमरती, दही बड़े, दूध और मेवा का भोग लगानालाभकारी है इससे भैरव प्रसन्न होते है।
भैरव की पूजा-अर्चना करने से परिवार में सुख-शांति, समृद्धि के साथ-साथ स्वास्थ्य की रक्षा भी होती है। तंत्र के ये जाने-माने महान देवता काशी के कोतवाल माने जाते हैं। भैरव तंत्रोक्त, बटुक भैरव कवच, काल भैरव स्तोत्र, बटुक भैरव ब्रह्म कवच आदि का नियमित पाठ करने से अपनी अनेक समस्याओं का निदान कर सकते हैं। भैरव कवच से असामायिक मृत्यु से बचा जा सकता है।
खास तौर पर कालभैरव अष्टमी पर भैरव के दर्शन करने से आपको अशुभ कर्मों से मुक्ति मिल सकती है। भारत भर में कई परिवारों में कुलदेवता के रूप में भैरव की पूजा करने का विधान हैं। वैसे तो आम आदमी, शनि, कालिका माँ और काल भैरव का नाम सुनते ही घबराने लगते हैं, लेकिन सच्चे दिल से की गई इनकी आराधना आपके जीवन के रूप-रंग को बदल सकती है। ये सभी देवता आपको घबराने के लिए नहीं बल्कि आपको सुखी जीवन देने के लिए तत्पर रहते है बशर्ते आप सही रास्ते पर चलते रहे।
भैरव अपने भक्तों की सारी मनोकामनाएँ पूर्ण करके उनके कर्म सिद्धि को अपने आशीर्वाद से नवाजते है। भैरव उपासना जल्दी फल देने के साथ-साथ क्रूर ग्रहों के प्रभाव को समाप्त खत्म कर देती है। शनि या राहु से पीडि़त व्यक्ति अगर शनिवार और रविवार को काल भैरव के मंदिर में जाकर उनका दर्शन करें। तो उसके सारे कार्य सकुशल संपन्न हो जाते है।
एक बार भगवान शिव के क्रोधित होने पर काल भैरव की उत्पत्ति हुई। काल भैरव ने ब्रह्माजी के उस मस्तक को अपने नाखून से काट दिया जिससे उन्होंने असमर्थता जताई। तब ब्रह्म हत्या को लेकर हुई आकाशवाणी के तहत ही भगवान काल भैरव काशी में स्थापित हो गए थे।
मध्यप्रदेश के उज्जैन में भी कालभैरव के ऐतिहासिक मंदिर है, जो बहुत महत्व का है। पुरानी धार्मिक मान्यता के अनुसार भगवान कालभैरव को यह वरदान है कि भगवान शिव की पूजा से पहले उनकी पूजा होगी। इसलिए उज्जैन दर्शन के समय कालभैरव के मंदिर जाना अनिवार्य है। तभी महाकाल की पूजा का लाभ आपको मिल पाता है।

श्री बटुक भैरव माला मन्त्रंम्

 


श्री बटुक भैरव माला मन्त्रंम्

विनियोग
ॐ अस्य श्री बटुक भैरव माला मन्त्रस्य बृहदारण्यक ऋषिः, अनुष्टुप् छन्दः, श्री बटुक भैरवो देवता, ह्रीं बीजं, बटुकाय,शक्तिः, आपदुद्धारणाय कीलकं, ममाभिष्ट सिद्ध्यर्थे जपे विनियोगः

माला मन्त्र

ॐ ऐं ह्रीं श्रीं ह्रीं ॐ ह्रीं बटुकाय आपदुद्धारणाय
 कुरु कुरु बटुकाय ह्रीं द्रां द्रीं क्लीं क्लूं सः
हौं जूं सः ह्रां ह्रीं ह्रूं भ्रां भ्रीं भ्रुं डमल वरयूं हौं हौं
महा कालाय महा भैरवाय मां रक्ष रक्ष,
मम पुत्रान् रक्ष रक्ष, मम भ्रातृन् रक्ष रक्ष,
मम शिष्यान् रक्ष रक्ष, साधकान् रक्ष रक्ष, मम परिवारान् रक्ष रक्ष,
ममोपरि दुष्ट दृष्टि दुष्ट बुद्धि दुष्ट प्रयोगान्
कारकान् दुष्ट प्रयोगान् कुर्वति कारयति करिष्यति तां हन हन,
उच्चाटय उच्चाटय,स्तम्भय स्तम्भय,
 मारय मारय, मथ मथ,धुन धुन
छेदय छेदय, छिन्धि छिन्धि,
हन हन, फ्रें फ्रें फ्रें, खें खें खें, ह्रीं ह्रीं ह्रीं,
ह्रूं ह्रूं ह्रूं, दुं दुं दुं, दुष्टं दारय दारय,
दारिद्रं हन हन, पापं मथ मथ,
आरोग्यं कुरु कुरु, पर बलानि क्षोभय क्षोभय,
 क्षौं क्षौं क्षौं ह्रीं बटुकाय, केलि रुद्राय नमः |    

श्रीनृसिंहमाला मंत्र

 

 


श्रीगणेशाय नमः । अस्य श्रीनृसिंहमाला मंत्रस्य नारदभगवान् ऋषिः । अनुष्टुभ छन्दः ॥

श्री नृसिंहदेवता । आं बीजम् । लं शवित्तः । मेरुकीलकम् । श्रीनृसिंहप्रीत्यर्थे जपे विनियोगः ।

ॐ नमो नृसिंहाय ज्वालामुखाग्निनेत्राय शंखचक्रगदाप्रहस्ताय ।

योगरुपाय हिरण्यकशिपुच्छेदनान्त्रमालाविभूषणाय हन हन दह दह वच वच रक्ष वो नृसिंहाय पूर्वदिशां बंध बंध रौद्ररभसिंहाय दक्षिणदिशां बंध बंध पावननृसिंहाय पश्चिमदिशां बंध बंध दारुणनृसिंहाय उत्तरदिशां बंध बंध ज्वालानृसिंहाय आकाशदिशां बंध बंध लक्ष्मीनृसिंहाय पातालदिशां बंध बंध कः कः कंपय कंपय आवेशय आवेशय अवतारय अवतारय शीघ्रं शीघ्रम् ।

ॐ नमो नारसिंहाय नवकोटिदेवग्रहोच्चाटनाय ।

ॐ नमो नारसिंहाय अष्टकोटिगंधर्व ग्रहोच्चटनाय ।

ॐ नमोनृसिंहाय । सप्तकोटिकिन्नर ग्रहोच्चाटनाय। ॐ नमो नारसिंहाय षट्कोटिशाकिनी - ग्रहोच्चटनाय ।

ॐ नमो नारसिंहाय पंचकोटि पन्नग्रहोच्चटनाय । ॐ नमो नारसिंहाय चतुष्कोटि ब्रह्मराक्षसग्रहोच्चाटनाय ।

ॐ नमो नारसिंहाय द्विकोटिदनुग्रहोच्चाटनाय । ॐ नमो नारसिंहाय एक कोटिग्रहोच्चाटनाय ।

ॐ नमो नारसिंहाय अरिमुरिचोरराक्षसजितिः वारं वारम् । श्रीभय चोरभय व्याधिभय सकल भयकण्टकान् विध्वंसय विध्वंसय ।

शरणागत वज्रपंजराय विश्वह्रदयाय प्रल्हादवरदाय क्ष्रौं श्रीं नृसिंहाय स्वाहा ॥

ॐ नमो नारसिंहाय मुन्दल शंखचक्र गदापद्महस्ताय नीलप्रभांगवर्णाय भीमाय भीषणाय ज्वाला करालभयभाषित श्रीनृसिंहहिरण्यकश्यपवक्षस्थलविदाहरणात जय जय एहि एहि भगवन् भगवन् गरुडध्वज गरुडध्वज मम सर्वोपद्रवं वज्रदेहेन चूर्णय चूर्णय आपत्समुद्रं शोषय शोषय ।

असुरगंधर्वयक्षप्रह्मराक्षस भूतप्रेत पिशाचादीन् विध्वंसय विध्वंसय । पूर्वाखिलं मूलय मूलय ।

प्रतिच्छां स्त्म्भय परमंत्रयंत्र परतंत्र परकष्टं छिन्धि छिन्धि भिन्धि हं फट् स्वाहा ।

इति श्री अथर्वण नृसिंहमालामन्त्रः समाप्तः । श्री नृसिंहार्पणमस्तु ॥५

खतरनाक नरसिंह मंत्र


 

 

 खतरनाक नरसिंह मंत्र तांत्रिक बन्धन किया कराया,घर,व्यापार,शरीर बंधन कट जायेंगा, मंत्र तंत्रों की काट

सभी तांत्रिक बन्धन खोलने के उपाय, घर,व्यापार,शरीर बंधन खुल जायेंगा,गुप्त नरसिंह बंधन तोड़ने का मंत्र

ॐ नमो नृसिंहाय कपिल जटाय मम सर्व रोगान् बन्ध बन्ध, सर्व ग्रहान बन्ध बन्ध, सर्व दोषादीनां बन्ध बन्ध, सर्व वृश्चिकादिनां विषं बन्ध बन्ध, सर्व भूत प्रेत, पिशाच, डाकिनी शाकिनी, यंत्र मंत्रादीन् बन्ध बन्ध, कीलय कीलय चूर्णय चूर्णय, मर्दय मर्दय, ऐं ऐं एहि एहि, मम येये विरोधिन्स्तान् सर्वान् सर्वतो हन हन, दह दह, मथ मथ, पच पच, चक्रेण, गदा, वज्रेण भष्मी कुरु कुरु स्वाहा।
ॐ क्लीं श्रीं ह्रीं ह्रीं क्ष्रीं क्ष्रीं क्ष्रौं नृसिंहाय नमः स्वाहा।

श्रीराम ज्योतिष सदन

 


 "ॐ गणेशाय नमः"
ॐ रां रामाय नमः
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महाँकालभैरव_साधना

 


 

 महाँकालभैरव_साधना

           यह रक्षा कारक साधना है, जिन्हें दुसरों से धोखे अगर बार बार मिलते हों,अनजाना भय लगता हो, शत्रु हैरान या बदनामी करते हों, उनके लिए ये रामबाण साधना है। ये किसी भी रविवार या अष्टमी की रात्रि में कर सकते हैं।
संकल्प लेकर गुरुदेव, गणपति को प्रणाम करें भैरवजी के यंत्र या चित्र के सामने स्नान करके रात्रि 9 बजे काले या लाल आसन पर दक्षिण दिशा की तरफ मुख करके बैठ जाएं।
अपने सामने काले वस्त्र पर सूखा नारियल , एक कपूर के टुकड़े , 11 लौंग 11 इलायची थोड़ा लोबान या  धूप रखें। सरसों के तेल का दीपक जलाएं। हाथ में नारियल लेकर अपनी मनोकामना बोलें। नारियल परसिंदूर,अक्षत,काले तिल लाल पुष्प, थोड़ा गुड़ या जलेबी अर्पित करें।
दक्षिण दिशा की ओर देखकर इस मन्त्र का 108 बार जप हकीक या रुद्राक्ष से करें।
मंत्र:- ॐ भ्रां भ्रीं भ्रूं भ्रः! ह्रां ह्रीं ह्रूं ह्रः!ख्रां ख्रीं ख्रूं ख्रः!घ्रां घ्रीं घ्रूं घ्र:! म्रां म्रीं म्रूं म्र:! म्रों म्रों म्रों म्रों! क्लों क्लों क्लों क्लों!श्रों श्रों श्रों श्रों! ज्रों ज्रों  ज्रों ज्रों। हूँ हूँ हूँ हूँ। हूँ हूँ हूँ हूँ फट सर्वतो रक्ष रक्ष रक्ष रक्ष भैरव नाथ हूँ फट।
जप के बाद क्षमा प्रार्थना करें, अपनी इच्छा पूर्ण होने का अनुरोध करें। भोग गुड़ या जलेबी को घर के बाहर कुत्ते के लिए रख दें,फिर इस बाकी सामान को उसी रात्रि या अगले दिन काले कपडे़ में बांधकर भैरव मंदिर में चढ़ा दें या फिर जल में प्रवाहित कर दें या सुनसान जगह पर छोड़ दें।

महाभैरवाष्टकम्

  

 


 

महाभैरवाष्टकम्॥
श्रीगणेशाय नमः॥
         ॐ अस्य श्रीबटुकभैरवाष्टक स्तोत्र मन्त्रस्य ईश्वर ऋषिः गायत्री छन्दः  बटुकभैरवो देवताः ह्रीं बीजम्  बटुकायेतिशक्तिः प्रणवः कीलकम्  धर्मार्थ काममोक्षार्थे पाठे विनियोगः ॥
अथ करन्यास:-
कं अङ्गुष्टाभ्यां नमः ।
हं तर्जनीभ्यां स्वाहा ।
खं मध्यमाभ्यां वषट् ।
सं अनामिकाभ्यां हूं ।
गं कनिष्टिकाभ्यां वौषट् ।
क्षं करतलकरपृष्टाभ्यां फट् ॥
अथ हृदयादिन्यासः :-
कं हृदयाय नमः ।
हं शिरसे स्वाहा ।
खं शिखायै वषट् ।
सं कवचाय हूं ।
गं नेत्रत्रयाय वौषट् ।
क्षं अस्त्राय फट् ॥
अथाङ्ग न्यासः :-
क्षं नमः हृदि ।
कं नमः नासिकयोः ।
हं नमः ललाटे ।
खं नमः मुखे ।
सं नमः जिह्वायाम् ।
रं नमः कण्ठे ।
मं नमः स्तनयोः ।
नमः नमः सर्वाङ्गेषु ॥
॥ आज्ञा ॥
तीक्ष्णदंष्ट्र महाकाय कल्पान्त दहनोपम।
भैरवाय नमस्तुभ्यमनुज्ञान्दातुमर्हसि ॥१॥
अथ ध्यानम् :-
करकलितकपालः कुण्डलीदण्डपाणि
स्तरुणतिमिरनीलोव्यालयज्ञोपवीती।
क्रतुसमयसपर्या विघ्नविच्छेदहेतु-
र्जयतिबटुकनाथः सिद्धिदः साधकानाम् ॥२॥
॥ इति ध्यानम् ॥
पूर्वे आसिताङ्गभैरवाय नमः पूर्वदिशि मां रक्ष रक्ष कालकण्टकान्
भक्ष भक्ष आवाहयाम्यहमत्रतिष्ट तिष्ट हूं फट् स्वाहा।
आग्नेये रुरुभैरवाय नमः आग्नेये मां रक्ष रक्ष कालकण्टकान्
भक्ष भक्ष आवाहयाम्यहमत्रतिष्ट तिष्ट हूं फट् स्वाहा।
दक्षिणे चण्डभैरवाय नमः दक्षिणे मां रक्ष रक्ष कालकण्टकान्
भक्ष भक्ष आवाहयाम्यहमत्रतिष्ट तिष्ट हूं फट् स्वाहा।
नैरृत्ये क्रोधभैरवाय नमः नैरृत्यां मां रक्ष रक्ष कालकण्टकान्
भक्ष भक्ष आवाहयाम्यहमत्रतिष्ट तिष्ट हूं फट् स्वाहा।
प्रतिच्यां उन्मत्तभैरवाय नमः प्रतिच्यां मां रक्ष रक्ष कालकण्टकान्
भक्ष भक्ष आवाहयाम्यहमत्रतिष्ट तिष्ट हूं फट् स्वाहा।
वायव्ये कपालभैरवाय नमः वायव्ये मां रक्ष रक्ष कालकण्टकान्
भक्ष भक्ष आवाहयाम्यहमत्रतिष्ट तिष्ट हूं फट् स्वाहा।
उदिच्यां भीषणभैरवाय नमः उदिच्यां मां रक्ष रक्ष कालकण्टकान्
भक्ष भक्ष आवाहयाम्यहमत्रतिष्ट तिष्ट हूं फट् स्वाहा।
ईशान्यां संहारभैरवाय नमः ईशाने मां रक्ष रक्ष
कालकण्टकान् भक्ष भक्ष आवाहयाम्यहमत्रतिष्ट तिष्ट हूं फट् स्वाहा।
मंत्र:-नमो भगवते भैरवाय नमः क्लीं क्लीं क्लीं॥
हकीक माला से कम से कम 1/5/11 माला करें।
इति मन्त्रमष्टोत्तर शतं जप्त्वा चतुर्विध पुरुषार्थ सिद्धये महासिद्धिकर भैरवाष्टक स्तोत्र पाठे विनियोगः ॥
यं यं यं यक्षरूपं दिशिचकृतपदं भूमिकम्पायमानं
सं सं संहारमूर्तिं शिरमुकुटजटा भालदेशेऽर्धचन्द्रम् ।
दं दं दं दीर्घकायं विकृतनख मुखं चोर्ध्वरोमं करालं
पं पं पं पापनाशं नतिरिह सततं भैरवं क्षेत्रपालम् ॥१॥
रं रं रं रक्तवर्णं कटिनतनुमयं तीक्ष्णदंष्ट्रं च भीमं
घं घं घं घोरघोषं घ घ घनघटितं घुर्घुरा घोरनादम् ।
कं कं कं कालपाशं ध्रिकि ध्रिकि चकितं कालमेघावभासं
तं तं तं दिव्यदेहं नतिरिह सततं भैरवं क्षेत्रपालम् ॥२॥
लं लं लं लम्बदन्तं ल ल ल लितल ल्लोलजिह्वा करालं
धूं धूं धूं धूम्रवर्णं स्फुट विकृतनखमुखं भास्वरं भीमरूपम् ।
रुं रुं रुं रूण्डमालं रुधिरमयतनुं ताम्रनेत्रं सुभीमं
नं नं नं नग्नरूपं नतिरिह सततं भैरवं क्षेत्रपालम् ॥३॥
वं वं वं वायुवेगं ग्रहगणनमितं ब्रह्मरुद्रैस्सुसेव्यं
खं खं खं खड्गहस्तं त्रिभुवननिलयं घोररूपं महोग्रम् ।
चं चं चं व्यालहस्तं चालित चल चला चालितं भूतचक्रं
मं मं मं मातृरूपं नतिरिह सततं भैरवं क्षेत्रपालम् ॥४॥
शं शं शं शङ्खहस्तं शशिशकलयरं सर्पयज्ञोपवीतं
मं मं मं मन्त्रवर्णं सकलजननुतं मन्त्र सूक्ष्मं सुनित्यम् ।
भं भं भं भूतनाथं किलिकिलिकिलितं गेहगेहेरटन्तं
अं अं अं मुख्यदेवं नतिरिह सततं भैरवं क्षेत्रपालम् ॥५॥
खं खं खं खड्गभेदं विषममृतमयं कालकालं सुकालं
क्षं क्षं क्षं क्षिप्रवेगं दहदहदहनं तप्तसन्तप्तमानम् ।
हं हं हं कारनादं प्रकटितदपातं गर्जितां भोपिभूमिं
बं बं बं बाललीलं नतिरिह सततं भैरवं क्षेत्रपालम् ॥६॥
सं सं सं सिद्धियोगं सकलगुणमयं रौद्ररूपं सुरौद्रं
पं पं पं पद्मनाभं हरिहरनुतं चन्द्रसूर्याग्नि नेत्रम् ।
ऐं ऐं ऐं ऐश्वर्यरूपं सततभयहरं सर्वदेवस्वरूपं
रौं रौं रौं रौद्रनादं नतिरिह सततं भैरवं क्षेत्रपालम् ॥७॥
हं हं हं हंसहास्यं कलितकरतलेकालदण्डं करालं
थं थं थं स्थैर्यरूपं शिरकपिलजटं मुक्तिदं दीर्घहास्यम् ।
टं टं टंकारभीमं त्रिदशवरनुतं लटलटं कामिनां दर्पहारं
भूं भूं भूं (भुं भुं भुं) भूतनाथं नतिरिह सततं भैरवं क्षेत्रपालम्॥८॥
भैरवस्याष्टकं स्तोत्रं पवित्रं पापनाशनम्।
महाभयहरं दिव्यं सिद्धिदं रोगनाशनम् ॥
॥ इति श्रीरुद्रयामलेतन्त्रे महाभैरवाष्टकं सम्पूर्णम् ॥


भैरवजी को काशी_के_कोतवाल माना जाता है।


 भैरवजी को काशी_के_कोतवाल माना जाता है। मार्गशीर्ष कृष्ण अष्टमी के दिन भगवान महादेव ने कालभैरव के रूप में अवतार लिया था। कालभैरव भगवान महादेव का अत्यंत ही  रौद्र, भयाक्रांत, वीभत्स, विकराल प्रचंड स्वरूप है।
भैरवबाबा के 12 स्वरुप है जिनमें से 8 स्वरुप को उग्र तथा शेष को सौम्य माना गया है। तेल का दीपक लगा कर एवं  कपित्थ फल ( कैथ/कोठा) उसमें गुड़ और भुना जीरा भर भोग रखें इनकी उपासना आपके सभी दुखों-कष्टों को दूर करने में फलदायी मानी गयी है इसके अतरिक्त भैरव जी के 108 नाम का प्रतिदिन जप करने से घर से हर प्रकार का अनिष्ट दूर होने लगते हैं। आप चाहें तो काली मिर्च और लौंग से मंत्र में स्वाहा लगा कर हवन भी कर सकते हैं।
जैसे:- ॐ ह्रीं भैरवाय स्वाहा। घर से नकारात्मक शक्तियाँ प्रभावहीन होने लगती हैं।

कालभैरवः तान्त्रोक्तकवच!!

 कालभैरवः!!
   भगवान शिव के ही अंश हैं। ऐसा माना जाता है कि कालाष्टमी के दिन भगवान भैरव की पूजा अर्चना करने से जीवन में स्वयं की एवं घर की रक्षा करते हैं आने वाली बाधाओं का नाश हो जाता है और जातक सुखी और निरोगी रहता है।
कालभैरव को प्रसन्न करने के लिए कवच स्तोत्र के 5/11पाठ कर सकते हैं। और अधिक करना चाहें तो काले आसन पर दक्षिण दिशा की ओर मुख करके वैठ जाएं रुद्राक्ष या काली हकीक माला से "ॐ ह्रीं भ्रं भैरवाय नमः"!  की 21 माला जप करें!
              


    !!तान्त्रोक्तकवच!!
ऊँ सहस्त्रारे महाचक्रे कर्पूरधवले गुरुः।
पातु मां बटुको देवो भैरवः सर्वकर्मसु।।
पूर्वस्यामसितांगो मां दिशि रक्षतु सर्वदा।
संहार भैरवः पायादीशान्यां च महेश्वरः।।
ऊर्ध्वं पातु विधाता च पाताले नन्दको विभुः।
सद्योजातस्तु मां पायात् सर्वतो देवसेवितः।।
रामदेवो वनान्ते च वने घोरस्तथावतु।
जले तत्पुरुषः पातु स्थले ईशान एव च।।
डाकिनी पुत्रकः पातु पुत्रान् में सर्वतः प्रभुः।
हाकिनी पुत्रकः पातु दारास्तु लाकिनी सुतः।।
पातु शाकिनिका पुत्रः सैन्यं वै कालभैरवः।
मालिनी पुत्रकः पातु पशूनश्वान् गंजास्तथा।।
महाकालोऽवतु क्षेत्रं श्रियं मे सर्वतो गिरा।
वाद्यम् वाद्यप्रियः पातु भैरवो नित्यसम्पदा।।
कालभैरव अष्टमी के दिन बाबा भैरव नाथ को चमेली के पुष्प चड़ाये, तेल का दीपक लगाएँ, नैवेद्य में पापड़,उड़द की दाल के पकोड़े मलपुए,गुड़,जलेबी,पान का भोग लगाएं। इसके बाद थोड़ा प्रसाद ग्रहण करें एवं थोड़ा किसी कुत्ते को खिला दें। कुत्ता बाबा भैरव नाथ की सवारी माना जाता है।अतः बाबा भैरवनाथ को कुत्ता अतिप्रिय होता है।

भूतेश्वर_विशेषमंत्र!!

 भूतेश्वर_विशेषमंत्र!!
        यह मंत्र विशेष लाभदायक है शिवलिंग या मूर्ति को स्नान या हवन यज्ञ करते समय इस मंत्र का जप करने से असाध्यता भी साध्य हो जाती है।
    मंत्र:- ओम नमो भगवते भूतेश्वराय  कलि कलि नखाय रौद्र द्रंष्टाय  कराल वक्त्राय त्रिनगर धग धग धगिता पिशंग ललाट नेत्राय तीव्र कोपानल मित तेजसे पाश शूल खटवांग डमरू धनुर्बाण मुग्ददरामय  दंड त्रास समुद्राव्ययद  संपदार्द दंड मंडिताय कपिल जटाजूर्ध चंद्र धारिणोभस्म  राग रंजित निग्रहाय उग्रफण काल कूटाटोप  मंडित कंठ देशाय जय जय जय जय भूत नाथामरात्मने रूपं दर्शय दर्शय: नृत्य नृत्य चल चल पावन बंन्ध बंन्ध हुकारेण त्राशय त्राशय वज्र दंडेन हन हन निशित खंगेन छिंन्न छिंन्न शूलाग्रेण भिन्न-भिन्न मुद्गरेण चूर्णय चूर्णय सर्व ग्रहाणाम वेषया वेषय स्वाहा।
ओम नमो शम्भवाय च मयोभवाय च नमः शंकराय च मयस्कराय च नमः शिवाय च शिवतराय च।।
यजु/अ१६/मं४१।।


अगस्त्य ऋषि कृत सरस्वती स्तोत्रम्

  अगस्त्य ऋषि कृत सरस्वती स्तोत्रम्  देवी सरस्वती को समर्पित एक पवित्र मंत्र है, जिन्हें ज्ञान, बुद्धि और शिक्षा के रूप में पूजा जाता है। ...