Thursday, 2 September 2021

श्री गणेशास्त्र महास्त्रोत्र

  श्री गणेशास्त्र महास्त्रोत्र  
इस स्त्रोत में भगवान गणपति के 32 रूपों की शक्ति समाहित है
इसके नित्य एक पाठ से गणेश जी के विभिन्न रूप जागृत होकर साधक को मनोवांछित लाभ देते हैं 
सर्व कार्य सिद्धि हेतु इसका पाठ किया जाता है

 गणेश मंत्र-- ओम श्रीं ह्लीं क्लीं ग्लौं गं गणपतये वर वरद सर्वजनम्मे वशमानय ठ: ठ:

1., ओम नमो बाल गणपतये सूर्य वर्णाय  चतुर्भुजाय बाल मुखाय शीघ्र प्रसन्नाय मम सर्वान  विघ्नान नाशय नाशय  गां गीं  गूं  गैं गौं ग: हूं फट स्वाहा
2.: ओम नमो तरुण गणपतये रक्त वर्णाय मध्यकालीन सूर्य स्वरूपाय षडहस्ताय प्रचंड सम्मोहनाय सदा माम रक्ष रक्ष मम ह्रदये सुस्थिरो भव ,वरप्रदो भव ,साक्षात्कार सिद्धि प्रदो भव ,,चर्म चक्षुष्क दर्शन प्रदो भव, चतु: षष्टि विद्याप्रवीणां   कुरु कुरु गां गीं गूं गैं गौं ग: हूं फट स्वाहा
3.ओम नमो भक्ति गणपतये पूर्ण चंद्र स्वरूपाय चंद्र वर्णाय  चतुर्हस्ताय   दुग्ध प्रियाय मम शरीरे अमृत वर्षा कुरु कुरु गां गीं गूं गैं गौं ग:  हूं फट स्वाहा
4. ओम नमो ़वीर गणपतये रक्त बर्णाय कवच, टंक ,पाश,खड़ग, परशु ,शक्ति ,धनुष ,भालसर्प, बेताल ,बाण गदा, खेटक,उत्पल, चक्र ,ध्वजा धारणाय षोडश  हस्ताय मम्  समस्त शत्रून  मारय मारय काटय काटय छेदय  छेदय  पाशय पाशय  भंजय भंजय उन्मूलय उन्मूलय घातय  घातय कम्पय कम्पय भक्षय भक्षय  गां  गीं गूं गें  गौं ग:  हूं फट स्वाहा
:5. ओम नमो शक्ति गणपतये ,हरित वर्ण शक्ति सहिताय, अस्त सूर्य वर्णाय, अभय मुद्रा धारणाय, मम जन्मांगे स्थित समस्त क्रूर ग्रह बाधा उच्चाटय उच्चाटय  शांतय शांतय, गां, गीं  गूं गैं गौं ग: हूं फट स्वाहा
6.ओम नमो द्धिज गणपतये ब्रहम स्वरूपाय चतुर्मुखाय कमंडलु पुस्तक अक्षमाला दंड धारणाय,  चतुर्हस्ताय  स्वतंत्र स्वमंत्र स्वयंत्र स्वज्ञान प्रकाशय प्रकाशय  गुप्त ज्ञान उदघाटय उदघाटय  पर तंत्र, पर मंत्र ,पर यंत्र , नाशय नाशय गां  गीं  गूं गैं गौं ग:  हूं  फट स्वाहा
7.ओम नमो सिद्धि गणपतये स्वर्ण वर्णाय  चतुर्हस्ताय, शुण्डाग्रे दाडिम फल धारणाय, सर्व सिद्धिम कुरु कुरु गां गीं गूं गैं गौं ग: हूं फट स्वाहा
8.ओम नमो उच्छिष्ट गणपतये शक्ति सहिताय षट हस्ताय नीलवर्णाय , दक्षिण शुण्ड युक्ताय,तंत्र क्षेत्राधिपतये मारण मोहन उच्चाटन आकर्षण वश्यं सम्मोहन विद्या सहित सर्व तंत्र सिद्धिम  कुरु कुरु गां गीं गूं गैं गौं ग: हूं फट स्वाहा

:9. ओम नमो विघ्न गणपतये पिंगल  वर्णाय अष्टभुजाय विष्णु स्वरूपाय शंख चक्र पुष्प इच्छुपात्र, पुष्पवाण परशु पाश माला युक्ताय  रत्न आभूषण सुसज्जिताय मम शरीरे सर्वान रोगान  नाशय नाशय  गां गीं गूं गैं गौं ग: हूं फट स्वाहा

10.ओम नमो क्षिप्र  गणपतये रक्त वर्णाय  चतुर्भुजाय भग्नदंत पाश, परशु  कल्पवृक्ष धारणाय शुण्डाग्रे  रत्न कलश सहिताय  सर्व शांति कुरु कुरु स्वस्तिम  कुरु कुरु पुष्टिम  कुरु कुरु श्रियम देहि देहि यशो देही देही आयुष्य देहि देहि आरोग्यं देहि देहि पुत्र पौत्रान  देहि देहि सर्व कामांश्च देही देही  गां  गीं गूं गैं गौं ग: हूं फट् स्वाहा
 11.ओम नमो हेरम्ब गणपतये सिंहवाहिने पंचमुखाय गौरवर्णाय दशभुजाय परराष्ट् गजाश्वम, रथसैन्य शस्त्रास्त्र बलम्   स्तम्भय स्तम्भय उच्चाटय उच्चाटय मारय मारय खादय खादय विदारय विदारय  भीषय भीषय कम्पय कम्पय भक्षय भक्षय त्वरित त्वरित बन्धय बन्धय  प्रमुख प्रमुख स्फुट स्फुट ठं ठं ठं ठं गां गीं गूं गैं गौं ग: हूं फट् स्वाहा

12.ओम नमो लक्ष्मी गणपतये अष्टभुजाय सिद्धि बुद्धि सहिताय श्वैत वर्णाय मम सर्व दुखं हर हर दारिद्रम निवारय निवारय यशम देही यौवनम देही धनं देही राज्यम देही गां गीं गूं गैं गौं ग हूं फट् स्वाहा
13..ओम नमो महागणपतये पीत वर्णाय दक्षिण शुण्डयुक्ताय बामांगे  शक्ति सहिताय
अर्धचंद्र मुकुट धारणाय दशभुजाय मम जन्मांगे  स्थित देवग्रह  योनि ग्रह  योगिनी ग्रह,  दैत्यग्रह , दानव ग्रह, राक्षसग्रह,  ब्रह्मराक्षस ग्रह,सिद्धग्रह, यक्ष ग्रह,
विद्याधर ग्रह ,किन्नर ग्रह , गंधर्व ग्रह, अप्सरा ग्रह, भूत ग्रह पिशाच ग्रह, ,कुष्मांडग्रह, गजादि ग्रह,  पूतनाग्रह, बालग्रह  सूर्यादि  नवग्रह मुद्गगल ग्रह,  पितृग्रह बेताल ग्रह,  शत्रुग्रह राजग्रह चोरवैरी ग्रह,  नेतृगृह देवता ग्रह, आधिग्रह व्याधिग्रह  अपस्मरादि ग्रह,  गृह ग्रह , पुर ग्रह, उरग ग्रह  सरज ग्रह   उक्तग्रह ,डामर ग्रह , उदकग्रह ,अग्नि ग्रह ,आकाश ग्रह, भू : ग्रह,  वायु ग्रह , शालि ग्रह,  धान्यादि ग्रह बिषय ग्रह, ग्रहानाति ग्रह, घोर ग्रह, छायाग्रह, सर्प ग्रह, विषजीव ग्रह,   वृश्चिक ग्रह, काल ग्रह, शाल्य ग्रहादि सर्वान ग्रहान नाशय नाशय  कालाग्निरूद्र स्वरूपेण   दह दह अनुनय अनुनय   शोषय शोषय मूकय मूकय कम्पय कम्पय भक्षय भक्षय निमीलय निमीलय  मर्दय मर्दय विद्रावय विद्रावय निधन निधन स्तम्भय स्तम्भय उच्चाटय उच्चाटय उष्टन्धय उष्टन्धय मारय मारय चण्ड चण्ड प्रचण्ड प्रचण्ड क्रोध क्रोध ज्वल ज्वल  प्रज्वल प्रज्वल ज्वालादित्य वदने उग्र ग्रस उग्र ग्रस  विजृम्भय विजृम्भय घोषय घोषय मारय मारय हन हन गां गीं गूं गैं गौं ग: हूं फट् स्वाहा

14..ओम नमो विजय गणपतये रक्तवर्णाय मूषकवाहिने  चतुर्भुजाय सर्व क्षेत्रे विजयं देही देही गां गीं गूं गैं गौं ग: हूं फट् स्वाहा
15..ओम नमो नृत्य गणपतये दक्षिण शुण्ड युक्ताय कल्पवृक्ष समीपे नृत्यमयाय  सर्वदिशो बंधनामि महेश्वर बंधनामि,  पितामह बंधनामि  महाविष्णु बंंधनामि,  कार्तिकेय बंधनामि, दशदिकपाल बंधनामि ,सर्वान असुरान बंधनामि, ब्रहमास्त्रान बंधनामि अघोरं बंधनामि , सर्वान सुरान बंधनामि सर्वान द्बिजान बंधनामि  केशरीम बंधनामि सत्वान बंधनामि व्याघा्न बंधनामि गजान बंधनामि  चौरान बंधनामि शत्रुन बंधनामि महामारीं बंधनामि,
सर्वा यक्षिणी बंधनामि, आब्रहं स्तम्भ पर्यंतं  सर्वान चराचार जीवान बंधनामि  माया ज्वालिनी स्तम्भय स्तम्भय सर्व वाणीम मूकय मूकय , कीलय कीलय गतिं स्तम्भय स्तम्भय, चौरादि सर्वान दुष्ट पुरूषान बंधय बंधय दिशा विदिशा रात्र्याकर्षण पाताल घा्ण  भ्रूचक्ष: शिर: श्रोत्रे हस्तौ पादौं गतिं मतिं मुखं जिव्हां वाचां शब्द पंचाशत कोटि योजन विस्तीर्णान, भू-ब्रहमांड देवान बंधनामि, मंडलं बंधनामि व्याधान  क्रमय क्रमय रक्ष रक्ष हुं फट स्वाहा
16..ओम नमो ऊर्ध्व गणपतये वामांगे हरित शक्ति सहिताय अष्टभुजाय कनकवर्णाय मम शरीरे कुंडलिनी शक्तिम प्रकाशय  प्रकाशय  गां गीं गूं गैं गौं ग: हूं फट् स्वाहा
17..: ओम नमो एकाक्षर गणपतये रक्तपुष्प माला धारिण्ये त्रिनेत्राय अर्ध चंद्र मुकुट धारणाय मूषकवाहिने पदमासन स्थिताय योग सिद्धिम  देही देही गां गीं गूं गैं गौं ग: हूं फट् स्वाहा

18.. ओम नमो वर गणपतये वामांगे शक्ति सहिताय त्रिनेत्राय अर्ध चंद्र मुकुट धारणाय वरं देही देही अभयं देही देही गां गीं गूं गैं गौं ग: हूं फट् स्वाहा
19.ओम नमो त्रयक्षर गणपतये  ॐकार स्वरूपाय स्वर्णप्रकाश युक्ताय शूप कर्णाय मोक्षं कुरू कुरू  गां गीं गूं गैं गौं ग:  हूं फट् स्वाहा
20..ओम नमो क्षिप्र प्रसाद गणपतये रक्तचंदन अंकिताय षट्भुजाय कुशासन स्थिताय कल्पवृक्ष सहिताय त्वरित कार्य सिद्धि प्रदानाय गां गीं गूं गैं गौं ग: हूं फट् स्वाहा

21..ओम नमो हरिद्रा गणपतये पीत वर्णाय चतुर्भुजाय शत्रु वाक् स्तम्भनाय आत्म विरोधिणाम शिरो ललाट मुख नेत्र कर्ण नासिकोरू पाद रेणु दंतोष्ठ  जिव्हाम तालु गुह्म गुदा कटि सर्वागेषुं केशादि पाद पर्यंतं स्तम्भय स्तम्भय मारय मारय गां गीं गूं गैं गौं ग: हूं फट् स्वाहा

22.ओम नमो एकदंत गणपतये नीलवर्णाय चतुर्भुजाय भग्नदंत सहिताय गारूण वारूण  सर्प पर्वत वह्मि दैवत अघोर नारायण विष्णु ब्रह्मा रूद्र वजा्स्त्राणि भंजय भंजय निवारय निवारय तेषां मंत्र यंत्र तंत्राणि विध्वंसय विध्वंसय  गां गीं गूं गैं गौं ग: हूं फट् स्वाहा

23.ओम नमो सृष्टि गणपतये रक्तवर्णाय मूषकवाहिने चतुर्भुजाय आम्रफल पाश अंकुश भग्नदंत युक्ताय आयुष्मन्तं कुरू कुरू सततं मम ह्रदय चिंतित मनोरथ सिद्धिम कुरू कुरू चिदानंदकांत कुरू वाक् सिद्धिम देही देही अकाल मृत्यु विनाशनम  कुरू कुरू,अपमृत्यु निर्दलनं कुरू कुरू अकालमृत्यु भय निवारय निवारय ममैव कर स्पर्शान नाना रोगान नाशय नाशय गां गीं गूं गैं गौं ग;  हूं फट्  स्वाहा

24. ओम नमो उद्दण्ड गणपतये वामांगे हरित वर्ण शक्ति युक्ताय दसभुजाय मम सर्व  दुष्टान मर्दय मर्दय मारय मारय शोषय शोषय चण्डय चण्डय प्रचण्डय प्रचण्डय  गां गीं गूं गैं गौं ग: हूं फट् स्वाहा

25.ओम नमो ऋणमोचन गणपतये शुक्लवर्णाय चतुर्हस्तायै मम कर्म क्षेत्रे  स्थित पितृ ऋण , मातृऋण, स्त्रीऋण, पुत्र ऋण,मित्र ऋण,राज्य ऋण, देव ऋण, ग्रह ऋण, पंचभूत इत्यादि  समस्त ऋणान उन्मूलन उन्मूलन गां गीं गूं गैं गौं ग:हूं फट् स्वाहा

: 26.ओम नमो ढुण्डी गणपतये सिंदूरवर्णाय चतुर्भुजाय रत्नकुम्भ धारणाय मम सर्व दोष हारिणे सर्व विघ्न छेदिने सर्व पाप  निकृन्तिने सर्व श्रृंखला त्रोटिने, सर्व यंत्र स्फोटिने गां गीं गूं गैं गौं ग: हूं फट् स्वाहा

27.ओम नमो द्बिमुख गणपतये चतुर्हस्ताय ,नील हरित वर्णाय, रत्न मुकुट सुशोभिताय सपरिवारम मां रक्ष रक्ष क्षमस्वापराधं क्षमस्वापराधं नमस्ते नमस्ते गां गीं गूं गैं गौं ग: हूं फट् स्वाहा

 28.ओम नमो त्रिमुख गणपतये स्वर्ण कमलासन स्थिताय रक्तवर्णाय  अभयं कुरू कुरू कृपां कुरू कुरू सिद्धिम कुरू कुरू गां गीं गूं गैं गौं ग: हूं फट् स्वाहा

29.ओम नमो सिंह गणपतये श्वेत वर्णाय सिंहवाहिने अष्टभुजाय मम शरीरे सर्वान बिषान्   शोकान् हर हर गां गीं गूं गैं गौं ग: हूं फट् स्वाहा

30.ओम नमो योग गणपतये योगासन स्थिताय इन्द्र स्वरूपाय रस सिद्धिम देही देही गां गीं गूं गैं गौं ग: हूं फट् स्वाहा

31.ओम नमो दुर्गा गणपतये स्वर्ण आभा युक्ताय, रक्तवर्ण वस्त्र  सुशोभिताय , मम समस्त प्रकट अप्रकट भयान् नाशय नाशय गां गीं गूं गैं गौं ग: हूं फट् स्वाहा

32..ओम नमो संकष्ट हरण गणपतये उदित सूर्य स्वरूपाय वामांगे हरित वर्ण शक्ति सहिताय नीलवस्त्र सुशोभिताय शक्तिम देही देही गां गीं गूं गैं गौं ग: हूं फट् स्वाहा

ग्रहो से आजीविका का चुनाव लग्न कुन्डली

ग्रहो से आजीविका का चुनाव लग्न कुन्डली 

लग्न कुन्डली , चन्द्र कुंडली ओर सूर्य कुंडली मे जो सर्वाधिक बली हो उस कुंडली से जो ग्रह 10 भाव मे बेठा हो उस ग्रह से सम्बंधित कार्य का चुनाव करना चाईए . यदि कोई ग्रह ना हो तो उस राशी का राशी पती नवांश मे जिस राशी मे बेठा हो. उस राशी पती से सम्बंधित कार्य करना चाईए.

 
 
सूर्य से संबंधित व्यापार
सरकारी नौकरी, सरकारी सेवा, उच्च स्तरीय प्रशासनिक सेवा, मजिस्ट्रेट, राजनीति, सोने का काम करने वाले, जौहरी, फाइनेंस, प्रबंधक, राजदूत, चिकित्सक (फिजिशियन), दवाइयों से संबंधी मैनेजमेंट, उपदेशक, मंत्र कार्य, फल विक्रेता, वस्त्र, घास फूस ( नारियल रेशा, बांस तृण आदि) से निर्मित सामग्री, तांबा, स्वर्ण, माणिक, सींग या हड्डी के बने समान, खेती बाड़ी, धन विनियोग, बीमा एजेंट, गेहूं से संबंधी, विदेश सेवा, उड्डयन, औषधि, चिकित्सा, सभी प्रकार के अनाज, लाल रंग के पदार्थ, शहद, लकड़ी व प्लाई वुड का कार्य, इमारत बनाने में काम आने वाला लकड़ी, सर्राफा, वानिकी, ऊन व ऊनी वस्त्र, पदार्थ विज्ञान, अंतरिक्ष विज्ञान, फोटोग्राफी, नाटक, फिल्मों का निर्देशन इत्यादि

चंद्रमा से संबंधित व्यापार
जल से उपरत्न वस्तुएं, पेय पदार्थ, दूध, डेयरी प्रोडक्ट (दही, घी, मक्खन) खाद्य पदार्थ, आइसक्रीम, कोल्ड ड्रिंक्स, मिनरल वाटर, आइस क्रीम, श्वेत पदार्थ, चांदी, चावल, नमक,चीनी, पुष्प सज्जा, मोती, मूंगा, शंख, क्रॉकरी ( चीनी मिट्टी ), कोमल मिट्टी ( मुलतानी ), प्लास्टर ऑफ पेरिस, सब्जी, वस्त्र व्यवसाय, रेडीमेड वस्त्र, जादूगर, फोटोग्राफिक्स व वीडियो मिक्सिंग, विदेशी कार्य, आयुर्वेदिक दवाएं, मनोविनोद के कार्य, आचार -चटनी -मुरब्बे, जल आपूर्ति विभाग, नहरी एवं सिंचाई विभाग, पुष्प सज्जा, मशरूम, मत्स्य से संबंधित क्षेत्र, सब्जियां, लांड्री, आयात -निर्यात, शीशा, चश्मा, महिला कल्याण, नेवी ( नौ सेना ), जल आपूर्ति विभाग, नहरी एवं सिंचाई विभाग, आबकारी विभाग, नाविक, यात्रा से संबंधित कार्य, अस्पताल, नर्सिंग, परिवहन, जनसंपर्क अधिकारी,

 मंगल से संबंधित व्यापार

पुलिस व सेना की नौकरी, अग्नि कार्य, बिजली का कार्य, विद्युत् विभाग, साहसिक कार्य, धातु कार्य, जमीन का क्रय –विक्रय, भूमि के कार्य, भूमि विज्ञान, रक्षा विभाग, खनिज पदार्थ, इलेक्ट्रिक एवं इलेक्ट्रोनिक इंजीनियर, मकेनिक, वकालत, ब्लड बैंक, शल्य चिकित्सक, केमिस्ट, दवा विक्रेता, खून बेचना, सिविल इंजीनियरिंग, शस्त्र निर्माण, बॉडी बिल्डिंग, साहसिक खेल, कुश्ती, स्पोर्टस, खिलाड़ी, फायर ब्रिगेड, आतिशबाजी, रसायन शास्त्र, सर्कस, नौकरी दिलवाने के कार्य, शक्तिवर्धक कार्य, अग्नि बीमा, चूल्हा, ईंधन, पारा, पत्थर, मिट्टी का समान, तांबे से संबंधित कार्य, धातुओं से संबंधित कार्य क्षेत्र, लाल रंग के पदार्थ, बेकरी, कैटरिंग, हलवाई, रसोइया, इंटों का भट्ठा, बर्तनों का कार्य, होटल एवं रेस्तरां,फास्ट -फ़ूड, जूआ, मिटटी के बर्तन व खिलौने, नाई, औज़ार, भट्ठी इत्यादि ।

बुध ग्रह से संबंधित व्यापार
व्यापार कार्य, वेदों का अध्यापन, लेखन कार्य ( लेखक ), ज्योतिष कार्य, प्रकाशन का कार्य, चार्टड एकाउटेंट, मुनीम, शिक्षक, गणितज्ञ, कन्सलटैंसी, वकील, ब्याज, बट्टा, पूंजी निवेश, शेयर मार्केट, कम्प्यूटर जॉब, लेखन, वाणीप्रधान कार्य, एंकरिंग, शिल्पकला, काव्य रचना, पुरोहित का कार्य, कथा वाचक, गायन विद्या, वैद्य, गणित व कॉमर्स के अध्यापक, वनस्पति, बीजों व पौधों का कार्य, समाचार पत्र, दलाली के कार्य, वाणिज्य संबंधी, टेलीफोन विभाग, डाक, कोरियर, यातायात, पत्रकारिता, मीडिया, बीमा कंपनी, संचार क्षेत्र, दलाली, आढ़त, हरे पदार्थ, सब्जियां, लेखाकार, कम्प्यूटर,फोटोस्टेट, मुद्रण, डाक -तार, समाचार पत्र, दूत कर्म, टाइपिस्ट, कोरियर सेवा, बीमा, सेल्स टैक्स, आयकर विभाग, सेल्स मैन, हास्य व्यंग के चित्रकार या कलाकार इत्यादि।

बृहस्पति ग्रह से सम्बन्धित व्यापार
ब्राह्मण का कार्य, धर्मोपदेश का कार्य, धर्मार्थ संस्थान, धार्मिक व्यवसाय, कर्मकाण्ड, ज्योतिष, राजनीति, न्यायालय संबंधित कार्य, न्यायाधीश, कानून, वकील, बैंकिंग कार्य, कोषाध्यक्ष, राजनीति, अर्थशास्त्र, पुराण, मांगलिक कार्य, अध्यापन कार्य, शिक्षक, शिक्षण संस्थाएं, पुस्तकालय, प्रकाशन, प्रबंधन, पुरोहित, शिक्षण संस्थाएं, किताबों से संबंधित कार्य, परामर्श कार्य, पीले पदार्थ, स्वर्ण, पुरोहित, संपादन, छपाई, कागज से संबंधित कार्य, ब्याज कार्य, गृह निर्माण, उत्तम फर्नीचर, शयन उपकरण, गर्भ संबंधित कार्य, खाने पीने की वस्तुएं, स्वर्ण कार्य, वस्त्रों से संबंधित, लकड़ी से संबंधित कार्य, सभी प्रकार के फल, मिठाइयाँ, मोम, घी, किराना इत्यादि|

शुक्र ग्रह से संबंधित व्यापार
कलात्मक कार्य, संगीत (गायन , वादन , नृत्य), अभिनय, चलचित्र संबंधी डेकोरेशन, ड्रेस डिजायनिंग, मनोरंजन के साधन, फिल्म उद्योग, वीडियो पार्लर, मैरिज ब्यूरो, इंटीरियर डेकोरेशन, फैशन डिजाइनिंग, पेंटिंग, श्रृंगार के साधन, कॉस्मेटिक, इत्र, गिफ्ट हॉउस, चित्रकला तथा स्त्रियों के काम में आने वाले पदार्थ, विवाह से संबंधित कार्य, महिलाओं से संबंधित कार्य, विलासितापूर्ण वस्तु, गाड़ी, वाहन व्यापारी, ट्रांसपोर्ट, सजावटी वस्तुएं, मिठाई संबंधी, रेस्टोरेंट, होटल, खाद्य पदार्थ, श्वेत पदार्थ, दूध से बने पदार्थ, दूध उत्पादन ( दुग्धशाला ), दही, चावल, धान, गुड़, खाद्य पदार्थ, सोना, चांदी, हीरा, जौहरी, वस्त्र निर्माता, गारमेंट्स, पशु चिकित्सा, हाथी घोड़ा पालना, टूरिज्म, चाय – कॉफी, शुक्र + मंगल – रत्न व्यापारी, शुक्र + राहु या शनि – ब्यूटी पार्लर, शुक्र + चन्द्र – सोडावाटर फेक्ट्री, तेल, शर्बत, फल, तरल रंग आदि।

शनि ग्रह से संबंधित व्यापार
लोहा संबंधित कार्य, मशीनी के कार्य , केमिकल प्रोडक्ट , ज्वलनशील तेल ( पेट्रोल, डीजल आदि), कुकिंग गैस, प्राचीन वस्तुएं, पुरातत्व विभाग, अनुसंधान कार्य, ज्योतिष कार्य, लोहे से संबंधित कच्ची धातु, कोयला, चमड़े का काम, जूते, अधिक श्रम वाला कार्य, नौकरी, मजदूरी, ठेकेदारी, दस्तकारी, मरम्मत के कार्य, लकड़ी का कार्य, मोटा अनाज, प्लास्टिक एवं रबर उद्योग, काले पदार्थ, स्पेयर पार्ट्स, भवन निर्माण सामग्री, पत्थर एवं चिप्स, ईंट, शीशा, टाइल्स, राजमिस्त्री, बढ़ई, श्रम एवं समाज कल्याण विभाग, टायर उद्योग, पलम्बर, घड़ियों का काम, कबाड़ी का काम, जल्लाद, तेल निकालना, पीडब्लूडी, सड़क निर्माण, सीमेंट। शनि + गुरु + मंगल – इलेक्ट्रिक इंजीनियर । शनि + बुध + गुरु – मेकेनिकल इंजीनियर । शनि + शुक्र – पत्थर की मूर्ति इत्यादि

राहु से संबंधित व्यवसाय
कम्प्युटर, बिजली, अनुसंधान, आकस्मिक लाभ वाले कार्य, मशीनों से संबंधित, तामसिक पदार्थ, जासूसी गुप्त कार्य, विषय संबंधी, कीट नाशक, एण्टी बायोटिक दवाईयां, पहलवानी, जुआ, सट्टा, मुर्दाघर, सपेरा, पशु वधशाला, जहरीली दवा, चमड़ा व खाल आदि।

केतु से संबंधित व्यापार
केतु को यदि कुंडली में एकल अवस्था में गिना जाए तो के तो धर्म का कारक होता है ऐसी स्थिति में जातक धर्म से संबंधित कार्य भक्ति चिकित्सा आदि कार्य करता है।

यजुर्वेद में वर्णित है नवग्रहों के सुंदर मंत्र

 यजुर्वेद मे वर्णित है नवग्रहों के सुंदर मंत्र

वैदिक काल से ग्रहों की अनुकूलता के प्रयास किए जाते रहे हैं। यजुर्वेद में 9 ग्रहों की प्रसन्नता के लिए उनका आह्वान किया गया है। यह मंत्र चमत्कारी रूप से प्रभावशाली हैं। 

प्रस्तुत है नवग्रहों के लिए विलक्षण वैदिक मंत्र- 

* सूर्य- ॐ आ कृष्णेन रजसा वर्तमानो निवेशयन्नमृतं मर्त्यं च। हिरण्ययेन सविता रथेना देवो याति भुवनानि पश्यन् (यजु. 33। 43, 34। 31) 

* चन्द्र- ॐ इमं देवा असपत्नं सुवध्यं महते क्षत्राय महते ज्यैष्ठ्याय महते जानराज्यायेन्द्रस्येन्द्रियाय। इमममुष्य पुत्रममुष्ये पुत्रमस्यै विश एष वोऽमी राजा सोमोऽस्माकं ब्राह्मणानां राजा।।
(यजु. 10। 18) 

* भौम- ॐ अग्निमूर्धा दिव: ककुत्पति: पृथिव्या अयम्। अपां रेतां सि जिन्वति।। (यजु. 3।12) 

* बुध- ॐ उद्बुध्यस्वाग्ने प्रति जागृहि त्वमिष्टापूर्ते सं सृजेधामयं च। अस्मिन्त्सधस्‍थे अध्‍युत्तरस्मिन् विश्वे देवा यशमानश्च सीदत।। (यजु. 15।54) 

* गुरु- ॐ बृहस्पते अति यदर्यो अर्हाद् द्युमद्विभाति क्रतुमज्जनेषु। यद्दीदयच्छवस ऋतुप्रजात तदस्मासु द्रविणं धेहि चित्रम्।। (यजु. 26।3) 

* शुक्र- ॐ अन्नात्परिस्त्रुतो रसं ब्रह्मणा व्यपित्क्षत्रं पय: सोमं प्रजापति:। ऋतेन सत्यमिन्द्रियं विपानं शुक्रमन्धस इन्द्रस्येन्द्रियमिदं पयोऽमृतं मधु।। (यजु. 19।75) 

* शनि- ॐ शं नो देवीरभिष्टय आपो भवन्तु पीतये। शं योरभि स्त्रवन्तु न:।। (यजु. 36।12) 

* राहु- ॐ कया नश्चित्र आ भुवदूती सदावृध: सखा। कया शचिष्ठया वृता।। (यजु. 36।4) 

* केतु- ॐ केतुं कृण्वन्नकेतवे पेशो मर्या अपेशसे। समुषद्भिरजायथा:।। (यजु. 29।37)

कनकधारा मंत्र यंत्र

कनकधारा मंत्र यंत्र
हम सभी जीवन में ‍आर्थिक तंगी को लेकर बेहद परेशान रहते हैं। धन प्राप्ति के लिए हरसंभव श्रेष्ठ उपाय करना चाहते हैं। धन प्राप्ति और धन संचय के लिए पुराणों में वर्णित कनकधारा यंत्र एवं स्तोत्र चमत्कारिक रूप से लाभ प्रदान करते हैं। इस यंत्र की विशेषता भी यही है कि यह किसी भी प्रकार की विशेष माला, जाप, पूजन, विधि-विधान की माँग नहीं करता बल्कि सिर्फ दिन में एक बार इसको पढ़ना पर्याप्त है।

साथ ही प्रतिदिन इसके सामने दीपक और अगरबत्ती लगाना आवश्यक है। अगर किसी दिन यह भी भूल जाएँ तो बाधा नहीं आती क्योंकि यह सिद्ध मंत्र होने के कारण चैतन्य माना जाता है। वेबदुनिया के यूजर्स के लिए हम दे रहे हैं कनकधारा स्तोत्र का संस्कृत पाठ एवं हिन्दी अनुवाद। आपको सिर्फ कनकधारा यंत्र कहीं से लाकर पूजाघर में रखना है।

यह किसी भी तंत्र-मंत्र संबंधी सामग्री की दुकान पर आसानी से उपलब्ध है। माँ लक्ष्मी की प्रसन्नता के लिए जितने भी यंत्र हैं, उनमें कनकधारा यंत्र तथा स्तोत्र सबसे ज्यादा प्रभावशाली एवं अतिशीघ्र फलदायी है।हम सभी जीवन में ‍आर्थिक तंगी को लेकर बेहद परेशान रहते हैं। धन प्राप्ति के लिए हरसंभव श्रेष्ठ उपाय करना चाहते हैं। धन प्राप्ति और धन संचय के लिए पुराणों में वर्णित कनकधारा यंत्र एवं स्तोत्र चमत्कारिक रूप से लाभ प्रदान करते हैं।

।। श्री कनकधारा स्तोत्रम् ।।

अंगहरे पुलकभूषण माश्रयन्ती भृगांगनैव मुकुलाभरणं तमालम।
अंगीकृताखिल विभूतिरपांगलीला मांगल्यदास्तु मम मंगलदेवताया:।।1।।

मुग्ध्या मुहुर्विदधती वदनै मुरारै: प्रेमत्रपाप्रणिहितानि गतागतानि।
माला दृशोर्मधुकर विमहोत्पले या सा मै श्रियं दिशतु सागर सम्भवाया:।।2।।

विश्वामरेन्द्रपदविभ्रमदानदक्षमानन्द हेतु रधिकं मधुविद्विषोपि।
ईषन्निषीदतु मयि क्षणमीक्षणार्द्धमिन्दोवरोदर सहोदरमिन्दिराय:।।3।।

आमीलिताक्षमधिगम्य मुदा मुकुन्दमानन्दकन्दम निमेषमनंगतन्त्रम्।
आकेकर स्थित कनी निकपक्ष्म नेत्रं भूत्यै भवेन्मम भुजंगरायांगनाया:।।4।।

बाह्यन्तरे मधुजित: श्रितकौस्तुभै या हारावलीव हरि‍नीलमयी विभाति।
कामप्रदा भगवतो पि कटाक्षमाला कल्याण भावहतु मे कमलालयाया:।।5।।

कालाम्बुदालिललितोरसि कैटभारेर्धाराधरे स्फुरति या तडिदंगनेव्।
मातु: समस्त जगतां महनीय मूर्तिभद्राणि मे दिशतु भार्गवनन्दनाया:।।6।।

प्राप्तं पदं प्रथमत: किल यत्प्रभावान्मांगल्य भाजि: मधुमायनि मन्मथेन।
मध्यापतेत दिह मन्थर मीक्षणार्द्ध मन्दालसं च मकरालयकन्यकाया:।।7।।

दद्याद दयानुपवनो द्रविणाम्बुधाराम स्मिभकिंचन विहंग शिशौ विषण्ण।
दुष्कर्मधर्ममपनीय चिराय दूरं नारायण प्रणयिनी नयनाम्बुवाह:।।8।।

इष्टा विशिष्टमतयो पि यथा ययार्द्रदृष्टया त्रिविष्टपपदं सुलभं लभंते।
दृष्टि: प्रहूष्टकमलोदर दीप्ति रिष्टां पुष्टि कृषीष्ट मम पुष्कर विष्टराया:।।9।।

गीर्देवतैति गरुड़ध्वज भामिनीति शाकम्भरीति शशिशेखर वल्लभेति।
सृष्टि स्थिति प्रलय केलिषु संस्थितायै तस्यै ‍नमस्त्रि भुवनैक गुरोस्तरूण्यै ।।10।।

श्रुत्यै नमोस्तु शुभकर्मफल प्रसूत्यै रत्यै नमोस्तु रमणीय गुणार्णवायै।
शक्तयै नमोस्तु शतपात्र निकेतानायै पुष्टयै नमोस्तु पुरूषोत्तम वल्लभायै।।11।।

नमोस्तु नालीक निभाननायै नमोस्तु दुग्धौदधि जन्म भूत्यै ।
नमोस्तु सोमामृत सोदरायै नमोस्तु नारायण वल्लभायै।।12।।

सम्पतकराणि सकलेन्द्रिय नन्दानि साम्राज्यदान विभवानि सरोरूहाक्षि।
त्व द्वंदनानि दुरिता हरणाद्यतानि मामेव मातर निशं कलयन्तु नान्यम्।।13।।

यत्कटाक्षसमुपासना विधि: सेवकस्य कलार्थ सम्पद:।
संतनोति वचनांगमानसंसत्वां मुरारिहृदयेश्वरीं भजे।।14।।

सरसिजनिलये सरोज हस्ते धवलमांशुकगन्धमाल्यशोभे।
भगवति हरिवल्लभे मनोज्ञे त्रिभुवनभूतिकरि प्रसीद मह्यम्।।15।।

दग्धिस्तिमि: कनकुंभमुखा व सृष्टिस्वर्वाहिनी विमलचारू जल प्लुतांगीम।
प्रातर्नमामि जगतां जननीमशेष लोकाधिनाथ गृहिणी ममृताब्धिपुत्रीम्।।16।।

कमले कमलाक्षवल्लभे त्वं करुणापूरतरां गतैरपाड़ंगै:।
अवलोकय माम किंचनानां प्रथमं पात्रमकृत्रिमं दयाया : ।।17।।

स्तुवन्ति ये स्तुतिभिर भूमिरन्वहं त्रयीमयीं त्रिभुवनमातरं रमाम्।
गुणाधिका गुरुतरभाग्यभागिनो भवन्ति ते बुधभाविताया:।।18।।

इति श्री कनकधारा स्तोत्रं सम्पूर्णम

कनकधारा स्तोत्रम् (हिन्दी पाठ)

* जैसे भ्रमरी अधखिले कुसुमों से अलंकृत तमाल-तरु का आश्रय लेती है, उसी प्रकार जो प्रकाश श्रीहरि के रोमांच से सुशोभित श्रीअंगों पर निरंतर पड़ता रहता है तथा जिसमें संपूर्ण ऐश्वर्य का निवास है, संपूर्ण मंगलों की अधिष्ठात्री देवी भगवती महालक्ष्मी का वह कटाक्ष मेरे लिए मंगलदायी हो।।1।।

* जैसे भ्रमरी महान कमल दल पर मँडराती रहती है, उसी प्रकार जो श्रीहरि के मुखारविंद की ओर बराबर प्रेमपूर्वक जाती है और लज्जा के कारण लौट आती है। समुद्र कन्या लक्ष्मी की वह मनोहर मुग्ध दृष्टिमाला मुझे धन संपत्ति प्रदान करे ।।2।।

* जो संपूर्ण देवताओं के अधिपति इंद्र के पद का वैभव-विलास देने में समर्थ है, मधुहन्ता श्रीहरि को भी अधिकाधिक आनंद प्रदान करने वाली है तथा जो नीलकमल के भीतरी भाग के समान मनोहर जान पड़ती है, उन लक्ष्मीजी के अधखुले नेत्रों की दृष्टि क्षण भर के लिए मुझ पर थोड़ी सी अवश्य पड़े।।3।।

* शेषशायी भगवान विष्णु की धर्मपत्नी श्री लक्ष्मीजी के नेत्र हमें ऐश्वर्य प्रदान करने वाले हों, जिनकी पु‍तली तथा बरौनियाँ अनंग के वशीभूत हो अधखुले, किंतु साथ ही निर्निमेष (अपलक) नयनों से देखने वाले आनंदकंद श्री मुकुन्द को अपने निकट पाकर कुछ तिरछी हो जाती हैं।।4।।

* जो भगवान मधुसूदन के कौस्तुभमणि-मंडित वक्षस्थल में इंद्रनीलमयी हारावली-सी सुशोभित होती है तथा उनके भी मन में प्रेम का संचार करने वाली है, वह कमल-कुंजवासिनी कमला की कटाक्षमाला मेरा कल्याण करे।।5।।

* जैसे मेघों की घटा में बिजली चमकती है, उसी प्रकार जो कैटभशत्रु श्रीविष्णु के काली मेघमाला के श्यामसुंदर वक्षस्थल पर प्रकाशित होती है, जिन्होंने अपने आविर्भाव से भृगुवंश को आनंदित किया है तथा जो समस्त लोकों की जननी है, उन भगवती लक्ष्मी की पूजनीय मूर्ति मुझे कल्याण प्रदान करे।।6।

* समुद्र कन्या कमला की वह मंद, अलस, मंथर और अर्धोन्मीलित दृष्टि, जिसके प्रभाव से कामदेव ने मंगलमय भगवान मधुसूदन के हृदय में प्रथम बार स्थान प्राप्त किया था, यहाँ मुझ पर पड़े।।7।।

* भगवान नारायण की प्रेयसी लक्ष्मी का नेत्र रूपी मेघ दयारूपी अनुकूल पवन से प्रेरित हो दुष्कर्म (धनागम विरोधी अशुभ प्रारब्ध) रूपी धाम को चिरकाल के लिए दूर हटाकर विषाद रूपी धर्मजन्य ताप से पीड़ित मुझ दीन रूपी चातक पर धनरूपी जलधारा की वृष्टि करे।।8।।

* विशिष्ट बुद्धि वाले मनुष्य जिनके प्रीति पात्र होकर जिस दया दृष्टि के प्रभाव से स्वर्ग पद को सहज ही प्राप्त कर लेते हैं, पद्मालसना पद्मार की वह विकसित कमल-गर्भ के समान कांतिमयी दृष्टि मुझे मनोवांछित पुष्टि प्रदान करे।।9।।

जो सृष्टि लीला के समय वाग्देवता (ब्रह्मशक्ति) के रूप में विराजमान होती है तथा प्रलय लीला के काल में शाकम्भरी (भगवती दुर्गा) अथवा चन्द्रशेखर वल्लभा पार्वती (रुद्रशक्ति) के रूप में अवस्थित होती है, त्रिभुवन के एकमात्र पिता भगवान नारायण की उन नित्य यौवना प्रेयसी श्रीलक्ष्मीजी को नमस्कार है।।10।।

* मात:। शुभ कर्मों का फल देने वाली श्रुति के रूप में आपको प्रणाम है। रमणीय गुणों की सिंधु रूपा रति के रूप में आपको नमस्कार है। कमल वन में निवास करने वाली शक्ति स्वरूपा लक्ष्मी को नमस्कार है तथा पुष्टि रूपा पुरुषोत्तम प्रिया को नमस्कार है।।11।।

* कमल वदना कमला को नमस्कार है। क्षीरसिंधु सभ्यता श्रीदेवी को नमस्कार है। चंद्रमा और सुधा की सगी बहन को नमस्कार है। भगवान नारायण की वल्लभा को नमस्कार है। (12)

* कमल सदृश नेत्रों वाली माननीय माँ! आपके चरणों में किए गए प्रणाम संपत्ति प्रदान करने वाले, संपूर्ण इंद्रियों को आनंद देने वाले, साम्राज्य देने में समर्थ और सारे पापों को हर लेने के लिए सर्वथा उद्यत हैं, वे सदा मुझे ही अवलम्बन दें। (मुझे ही आपकी चरण वंदना का शुभ अवसर सदा प्राप्त होता रहे)।।13।।

* जिनके कृपा कटाक्ष के लिए की गई उपासना उपासक के लिए संपूर्ण मनोरथों और संपत्तियों का विस्तार करती है, श्रीहरि की हृदयेश्वरी उन्हीं आप लक्ष्मी देवी का मैं मन, वाणी और शरीर से भजन करता हूँ।।14।।

* भगवती हरिप्रिया! तुम कमल वन में निवास करने वाली हो, तुम्हारे हाथों में नीला कमल सुशोभित है। तुम अत्यंत उज्ज्वल वस्त्र, गंध और माला आदि से सुशोभित हो। तुम्हारी झाँकी बड़ी मनोरम है। त्रिभुवन का ऐश्वर्य प्रदान करने वाली देवी, मुझ पर प्रसन्न हो जाओ।।15।।

* दिग्गजों द्वारा सुवर्ण-कलश के मुख से गिराए गए आकाश गंगा के निर्मल एवं मनोहर जल से जिनके श्री अंगों का अभिषेक (स्नान) संपादित होता है, संपूर्ण लोकों के अधीश्वर भगवान विष्णु की गृहिणी और क्षीरसागर की पुत्री उन जगज्जननी लक्ष्मी को मैं प्रात:काल प्रणाम करता हूँ।।16।।

* कमल नयन केशव की कमनीय कामिनी कमले!
मैं अकिंचन (दीन-हीन) मनुष्यों में अग्रगण्य हूँ, अतएव तुम्हारी कृपा का स्वाभाविक पात्र हूँ। तुम उमड़ती हुई करुणा की बाढ़ की तरह तरंगों के समान कटाक्षों द्वारा मेरी ओर देखो।।17।।

* जो मनुष्य इन स्तु‍तियों द्वारा प्रतिदिन वेदत्रयी स्वरूपा त्रिभुवन-जननी भगवती लक्ष्मी की स्तुति करते हैं, वे इस भूतल पर महान गुणवान और अत्यंत सौभाग्यशाली होते हैं तथा विद्वान पुरुष भी उनके मनोभावों को जानने के लिए उत्सुक रहते हैं।।18।।


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