Thursday 2 September 2021

श्री गणेशास्त्र महास्त्रोत्र

  श्री गणेशास्त्र महास्त्रोत्र  
इस स्त्रोत में भगवान गणपति के 32 रूपों की शक्ति समाहित है
इसके नित्य एक पाठ से गणेश जी के विभिन्न रूप जागृत होकर साधक को मनोवांछित लाभ देते हैं 
सर्व कार्य सिद्धि हेतु इसका पाठ किया जाता है

 गणेश मंत्र-- ओम श्रीं ह्लीं क्लीं ग्लौं गं गणपतये वर वरद सर्वजनम्मे वशमानय ठ: ठ:

1., ओम नमो बाल गणपतये सूर्य वर्णाय  चतुर्भुजाय बाल मुखाय शीघ्र प्रसन्नाय मम सर्वान  विघ्नान नाशय नाशय  गां गीं  गूं  गैं गौं ग: हूं फट स्वाहा
2.: ओम नमो तरुण गणपतये रक्त वर्णाय मध्यकालीन सूर्य स्वरूपाय षडहस्ताय प्रचंड सम्मोहनाय सदा माम रक्ष रक्ष मम ह्रदये सुस्थिरो भव ,वरप्रदो भव ,साक्षात्कार सिद्धि प्रदो भव ,,चर्म चक्षुष्क दर्शन प्रदो भव, चतु: षष्टि विद्याप्रवीणां   कुरु कुरु गां गीं गूं गैं गौं ग: हूं फट स्वाहा
3.ओम नमो भक्ति गणपतये पूर्ण चंद्र स्वरूपाय चंद्र वर्णाय  चतुर्हस्ताय   दुग्ध प्रियाय मम शरीरे अमृत वर्षा कुरु कुरु गां गीं गूं गैं गौं ग:  हूं फट स्वाहा
4. ओम नमो ़वीर गणपतये रक्त बर्णाय कवच, टंक ,पाश,खड़ग, परशु ,शक्ति ,धनुष ,भालसर्प, बेताल ,बाण गदा, खेटक,उत्पल, चक्र ,ध्वजा धारणाय षोडश  हस्ताय मम्  समस्त शत्रून  मारय मारय काटय काटय छेदय  छेदय  पाशय पाशय  भंजय भंजय उन्मूलय उन्मूलय घातय  घातय कम्पय कम्पय भक्षय भक्षय  गां  गीं गूं गें  गौं ग:  हूं फट स्वाहा
:5. ओम नमो शक्ति गणपतये ,हरित वर्ण शक्ति सहिताय, अस्त सूर्य वर्णाय, अभय मुद्रा धारणाय, मम जन्मांगे स्थित समस्त क्रूर ग्रह बाधा उच्चाटय उच्चाटय  शांतय शांतय, गां, गीं  गूं गैं गौं ग: हूं फट स्वाहा
6.ओम नमो द्धिज गणपतये ब्रहम स्वरूपाय चतुर्मुखाय कमंडलु पुस्तक अक्षमाला दंड धारणाय,  चतुर्हस्ताय  स्वतंत्र स्वमंत्र स्वयंत्र स्वज्ञान प्रकाशय प्रकाशय  गुप्त ज्ञान उदघाटय उदघाटय  पर तंत्र, पर मंत्र ,पर यंत्र , नाशय नाशय गां  गीं  गूं गैं गौं ग:  हूं  फट स्वाहा
7.ओम नमो सिद्धि गणपतये स्वर्ण वर्णाय  चतुर्हस्ताय, शुण्डाग्रे दाडिम फल धारणाय, सर्व सिद्धिम कुरु कुरु गां गीं गूं गैं गौं ग: हूं फट स्वाहा
8.ओम नमो उच्छिष्ट गणपतये शक्ति सहिताय षट हस्ताय नीलवर्णाय , दक्षिण शुण्ड युक्ताय,तंत्र क्षेत्राधिपतये मारण मोहन उच्चाटन आकर्षण वश्यं सम्मोहन विद्या सहित सर्व तंत्र सिद्धिम  कुरु कुरु गां गीं गूं गैं गौं ग: हूं फट स्वाहा

:9. ओम नमो विघ्न गणपतये पिंगल  वर्णाय अष्टभुजाय विष्णु स्वरूपाय शंख चक्र पुष्प इच्छुपात्र, पुष्पवाण परशु पाश माला युक्ताय  रत्न आभूषण सुसज्जिताय मम शरीरे सर्वान रोगान  नाशय नाशय  गां गीं गूं गैं गौं ग: हूं फट स्वाहा

10.ओम नमो क्षिप्र  गणपतये रक्त वर्णाय  चतुर्भुजाय भग्नदंत पाश, परशु  कल्पवृक्ष धारणाय शुण्डाग्रे  रत्न कलश सहिताय  सर्व शांति कुरु कुरु स्वस्तिम  कुरु कुरु पुष्टिम  कुरु कुरु श्रियम देहि देहि यशो देही देही आयुष्य देहि देहि आरोग्यं देहि देहि पुत्र पौत्रान  देहि देहि सर्व कामांश्च देही देही  गां  गीं गूं गैं गौं ग: हूं फट् स्वाहा
 11.ओम नमो हेरम्ब गणपतये सिंहवाहिने पंचमुखाय गौरवर्णाय दशभुजाय परराष्ट् गजाश्वम, रथसैन्य शस्त्रास्त्र बलम्   स्तम्भय स्तम्भय उच्चाटय उच्चाटय मारय मारय खादय खादय विदारय विदारय  भीषय भीषय कम्पय कम्पय भक्षय भक्षय त्वरित त्वरित बन्धय बन्धय  प्रमुख प्रमुख स्फुट स्फुट ठं ठं ठं ठं गां गीं गूं गैं गौं ग: हूं फट् स्वाहा

12.ओम नमो लक्ष्मी गणपतये अष्टभुजाय सिद्धि बुद्धि सहिताय श्वैत वर्णाय मम सर्व दुखं हर हर दारिद्रम निवारय निवारय यशम देही यौवनम देही धनं देही राज्यम देही गां गीं गूं गैं गौं ग हूं फट् स्वाहा
13..ओम नमो महागणपतये पीत वर्णाय दक्षिण शुण्डयुक्ताय बामांगे  शक्ति सहिताय
अर्धचंद्र मुकुट धारणाय दशभुजाय मम जन्मांगे  स्थित देवग्रह  योनि ग्रह  योगिनी ग्रह,  दैत्यग्रह , दानव ग्रह, राक्षसग्रह,  ब्रह्मराक्षस ग्रह,सिद्धग्रह, यक्ष ग्रह,
विद्याधर ग्रह ,किन्नर ग्रह , गंधर्व ग्रह, अप्सरा ग्रह, भूत ग्रह पिशाच ग्रह, ,कुष्मांडग्रह, गजादि ग्रह,  पूतनाग्रह, बालग्रह  सूर्यादि  नवग्रह मुद्गगल ग्रह,  पितृग्रह बेताल ग्रह,  शत्रुग्रह राजग्रह चोरवैरी ग्रह,  नेतृगृह देवता ग्रह, आधिग्रह व्याधिग्रह  अपस्मरादि ग्रह,  गृह ग्रह , पुर ग्रह, उरग ग्रह  सरज ग्रह   उक्तग्रह ,डामर ग्रह , उदकग्रह ,अग्नि ग्रह ,आकाश ग्रह, भू : ग्रह,  वायु ग्रह , शालि ग्रह,  धान्यादि ग्रह बिषय ग्रह, ग्रहानाति ग्रह, घोर ग्रह, छायाग्रह, सर्प ग्रह, विषजीव ग्रह,   वृश्चिक ग्रह, काल ग्रह, शाल्य ग्रहादि सर्वान ग्रहान नाशय नाशय  कालाग्निरूद्र स्वरूपेण   दह दह अनुनय अनुनय   शोषय शोषय मूकय मूकय कम्पय कम्पय भक्षय भक्षय निमीलय निमीलय  मर्दय मर्दय विद्रावय विद्रावय निधन निधन स्तम्भय स्तम्भय उच्चाटय उच्चाटय उष्टन्धय उष्टन्धय मारय मारय चण्ड चण्ड प्रचण्ड प्रचण्ड क्रोध क्रोध ज्वल ज्वल  प्रज्वल प्रज्वल ज्वालादित्य वदने उग्र ग्रस उग्र ग्रस  विजृम्भय विजृम्भय घोषय घोषय मारय मारय हन हन गां गीं गूं गैं गौं ग: हूं फट् स्वाहा

14..ओम नमो विजय गणपतये रक्तवर्णाय मूषकवाहिने  चतुर्भुजाय सर्व क्षेत्रे विजयं देही देही गां गीं गूं गैं गौं ग: हूं फट् स्वाहा
15..ओम नमो नृत्य गणपतये दक्षिण शुण्ड युक्ताय कल्पवृक्ष समीपे नृत्यमयाय  सर्वदिशो बंधनामि महेश्वर बंधनामि,  पितामह बंधनामि  महाविष्णु बंंधनामि,  कार्तिकेय बंधनामि, दशदिकपाल बंधनामि ,सर्वान असुरान बंधनामि, ब्रहमास्त्रान बंधनामि अघोरं बंधनामि , सर्वान सुरान बंधनामि सर्वान द्बिजान बंधनामि  केशरीम बंधनामि सत्वान बंधनामि व्याघा्न बंधनामि गजान बंधनामि  चौरान बंधनामि शत्रुन बंधनामि महामारीं बंधनामि,
सर्वा यक्षिणी बंधनामि, आब्रहं स्तम्भ पर्यंतं  सर्वान चराचार जीवान बंधनामि  माया ज्वालिनी स्तम्भय स्तम्भय सर्व वाणीम मूकय मूकय , कीलय कीलय गतिं स्तम्भय स्तम्भय, चौरादि सर्वान दुष्ट पुरूषान बंधय बंधय दिशा विदिशा रात्र्याकर्षण पाताल घा्ण  भ्रूचक्ष: शिर: श्रोत्रे हस्तौ पादौं गतिं मतिं मुखं जिव्हां वाचां शब्द पंचाशत कोटि योजन विस्तीर्णान, भू-ब्रहमांड देवान बंधनामि, मंडलं बंधनामि व्याधान  क्रमय क्रमय रक्ष रक्ष हुं फट स्वाहा
16..ओम नमो ऊर्ध्व गणपतये वामांगे हरित शक्ति सहिताय अष्टभुजाय कनकवर्णाय मम शरीरे कुंडलिनी शक्तिम प्रकाशय  प्रकाशय  गां गीं गूं गैं गौं ग: हूं फट् स्वाहा
17..: ओम नमो एकाक्षर गणपतये रक्तपुष्प माला धारिण्ये त्रिनेत्राय अर्ध चंद्र मुकुट धारणाय मूषकवाहिने पदमासन स्थिताय योग सिद्धिम  देही देही गां गीं गूं गैं गौं ग: हूं फट् स्वाहा

18.. ओम नमो वर गणपतये वामांगे शक्ति सहिताय त्रिनेत्राय अर्ध चंद्र मुकुट धारणाय वरं देही देही अभयं देही देही गां गीं गूं गैं गौं ग: हूं फट् स्वाहा
19.ओम नमो त्रयक्षर गणपतये  ॐकार स्वरूपाय स्वर्णप्रकाश युक्ताय शूप कर्णाय मोक्षं कुरू कुरू  गां गीं गूं गैं गौं ग:  हूं फट् स्वाहा
20..ओम नमो क्षिप्र प्रसाद गणपतये रक्तचंदन अंकिताय षट्भुजाय कुशासन स्थिताय कल्पवृक्ष सहिताय त्वरित कार्य सिद्धि प्रदानाय गां गीं गूं गैं गौं ग: हूं फट् स्वाहा

21..ओम नमो हरिद्रा गणपतये पीत वर्णाय चतुर्भुजाय शत्रु वाक् स्तम्भनाय आत्म विरोधिणाम शिरो ललाट मुख नेत्र कर्ण नासिकोरू पाद रेणु दंतोष्ठ  जिव्हाम तालु गुह्म गुदा कटि सर्वागेषुं केशादि पाद पर्यंतं स्तम्भय स्तम्भय मारय मारय गां गीं गूं गैं गौं ग: हूं फट् स्वाहा

22.ओम नमो एकदंत गणपतये नीलवर्णाय चतुर्भुजाय भग्नदंत सहिताय गारूण वारूण  सर्प पर्वत वह्मि दैवत अघोर नारायण विष्णु ब्रह्मा रूद्र वजा्स्त्राणि भंजय भंजय निवारय निवारय तेषां मंत्र यंत्र तंत्राणि विध्वंसय विध्वंसय  गां गीं गूं गैं गौं ग: हूं फट् स्वाहा

23.ओम नमो सृष्टि गणपतये रक्तवर्णाय मूषकवाहिने चतुर्भुजाय आम्रफल पाश अंकुश भग्नदंत युक्ताय आयुष्मन्तं कुरू कुरू सततं मम ह्रदय चिंतित मनोरथ सिद्धिम कुरू कुरू चिदानंदकांत कुरू वाक् सिद्धिम देही देही अकाल मृत्यु विनाशनम  कुरू कुरू,अपमृत्यु निर्दलनं कुरू कुरू अकालमृत्यु भय निवारय निवारय ममैव कर स्पर्शान नाना रोगान नाशय नाशय गां गीं गूं गैं गौं ग;  हूं फट्  स्वाहा

24. ओम नमो उद्दण्ड गणपतये वामांगे हरित वर्ण शक्ति युक्ताय दसभुजाय मम सर्व  दुष्टान मर्दय मर्दय मारय मारय शोषय शोषय चण्डय चण्डय प्रचण्डय प्रचण्डय  गां गीं गूं गैं गौं ग: हूं फट् स्वाहा

25.ओम नमो ऋणमोचन गणपतये शुक्लवर्णाय चतुर्हस्तायै मम कर्म क्षेत्रे  स्थित पितृ ऋण , मातृऋण, स्त्रीऋण, पुत्र ऋण,मित्र ऋण,राज्य ऋण, देव ऋण, ग्रह ऋण, पंचभूत इत्यादि  समस्त ऋणान उन्मूलन उन्मूलन गां गीं गूं गैं गौं ग:हूं फट् स्वाहा

: 26.ओम नमो ढुण्डी गणपतये सिंदूरवर्णाय चतुर्भुजाय रत्नकुम्भ धारणाय मम सर्व दोष हारिणे सर्व विघ्न छेदिने सर्व पाप  निकृन्तिने सर्व श्रृंखला त्रोटिने, सर्व यंत्र स्फोटिने गां गीं गूं गैं गौं ग: हूं फट् स्वाहा

27.ओम नमो द्बिमुख गणपतये चतुर्हस्ताय ,नील हरित वर्णाय, रत्न मुकुट सुशोभिताय सपरिवारम मां रक्ष रक्ष क्षमस्वापराधं क्षमस्वापराधं नमस्ते नमस्ते गां गीं गूं गैं गौं ग: हूं फट् स्वाहा

 28.ओम नमो त्रिमुख गणपतये स्वर्ण कमलासन स्थिताय रक्तवर्णाय  अभयं कुरू कुरू कृपां कुरू कुरू सिद्धिम कुरू कुरू गां गीं गूं गैं गौं ग: हूं फट् स्वाहा

29.ओम नमो सिंह गणपतये श्वेत वर्णाय सिंहवाहिने अष्टभुजाय मम शरीरे सर्वान बिषान्   शोकान् हर हर गां गीं गूं गैं गौं ग: हूं फट् स्वाहा

30.ओम नमो योग गणपतये योगासन स्थिताय इन्द्र स्वरूपाय रस सिद्धिम देही देही गां गीं गूं गैं गौं ग: हूं फट् स्वाहा

31.ओम नमो दुर्गा गणपतये स्वर्ण आभा युक्ताय, रक्तवर्ण वस्त्र  सुशोभिताय , मम समस्त प्रकट अप्रकट भयान् नाशय नाशय गां गीं गूं गैं गौं ग: हूं फट् स्वाहा

32..ओम नमो संकष्ट हरण गणपतये उदित सूर्य स्वरूपाय वामांगे हरित वर्ण शक्ति सहिताय नीलवस्त्र सुशोभिताय शक्तिम देही देही गां गीं गूं गैं गौं ग: हूं फट् स्वाहा

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