सर्व
विघ्नों के हर्ता और ऋद्धि-सिद्धि बुद्धि के प्रदाता गणपति का चाहे कोई
अनुष्ठान हो या किसी देवता की आराधना का प्रारम्भ या किसी भी उत्कृष्ट या
साधारण लौकिक कार्य सभी में सर्वप्रथम इन्हीं का स्मरण, विधिवत् अर्चन और
वंदन किया जाता हैं। गणेश जी की इस गरिमा के लिए रामचरित मानस में संत
तुलसीदास जी ने लिखा है।
‘महिमा जासु जान गनराऊ प्रथम पूजिअत नाम प्रभाऊ’। कार्य के आरम्भ के समय कहा भी जाता है कि श्री गणेश करें। हठ योग में मूलाधार चक्र को गणेश जी का प्रतीक माना जाता हैं और स्वस्तिक की चार भुजाओं के कोण इनके ही प्रतीक हैं। गणेश में ‘गण’ का अर्थ है, ‘वर्ग समूह’ और ‘ईश’ का अर्थ है स्वामी अर्थात् जो समस्त जीव जगत के ‘ईश’ हैं वही गणेश है ।
‘गणानां जीवजातानां य: ईश-स्वामी स: गणेश:। स्कंदपुराण के अनुसार मां पार्वती ने अपने शरीर की उबटन की बत्तियों से एक शिशु बनाकर उसमें प्राणों का संचार कर गण के रुप में उन्हें द्वार पर बैठा दिया। भगवान शिव को द्वार में प्रवेश नहीं करने देने पर गण और शिव में युद्ध हुआ। शिवजी ने गण का सिर काट कर द्वार के अंदर प्रवेश किया। पार्वती जी ने गण को पुन: जीवित करने के लिए शिवजी से कहा। शिव जी ने एक हाथी के शिशु के सिर को गणेश जी के मस्तक पर जोड़कर पुन: जीवित कर पुत्र रुप में स्वीकार किया। इससे ये गजानन कहलाए। ब्रह्मवैवर्तपुराण के अनुसार शनि की गणेश जी पर दृष्टि पडऩे के कारण उनका सिर धड़ से अलग होने पर भगवान विष्णु ने पुष्पभद्रानदी के अरण्य से एक गजशिश का मस्तक काटकर गणेश जी के मस्तक पर जमा दिया। कहा जाता है कि चन्द्रवार, स्वाति नक्षत्र, सिंह लग्न में पांच शुभ ग्रहों के एकत्रित होने पर भाद्र शुक्ल चतुर्थी को मध्याह्नï काल में पार्वती जी के शोडषोपचार से इनकी पूजा करने से त्रिनयन भगवान गणेश प्रकट हुए। तंत्रशास्त्र के मंत्रों से गणपति को रिझाएं तंत्र शास्त्र में निम्न गणेश मंत्रों का जप अभीष्ट फल प्राप्ति में सहायक होता है- उच्छिष्ट गणपति मंत्र
मंत्र महोदधि अनुसार मंत्र इस प्रकार है:- ‘हस्तिपिशाचिलिखे स्वाहा।’
विनियोग, ऋषियादिन्यास, करन्यास, ध्यान पश्चात् सोने-चांदी आदि से निर्मित गणपति यंत्र या सफेद आक या लाल चंदन से निर्मित अंगूठे के बराबर गणपति की आकृति बनाकर रात्रि को भोजन के बाद लाल वस्त्र धारण कर निवेदित मोदक, गुड़, खीर या पान आदि खाते हुए कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी से शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तक उपर्युक्त मंत्र के सोलह हजार जप करने से सम्पत्ति, यश, रोजगार की प्राप्ति होती है। इस मंत्र का पांच हजार हवन करने से श्रेष्ठ पत्नी की प्राप्ति, दस हजार हवन करने से उत्तम रोजगार एवं रूद्रयामल तंत्र के अनुसार प्रतिदिन एक हजार जप करने से कार्यों में विघ्न दूर हो कर कठिनतम कार्य भी पूर्ण होते हैं। शक्ति विनायक मंत्र मंत्र महोदधि अनुसार मंत्र इस प्रकार है : ऊँ ह्मीं ग्रीं ह्मीं उपयुक्त मंत्र का पुरश्चरण चार लाख जप है। चतुर्थी से आरम्भ कर इसका दशांश हवन, तर्पण, मार्जन और ब्राह्मण भोजन पश्चात् घी सहित अन्न की आहुति से हवन करने पर रोजगार प्राप्ति, गन्ने के हवन से लक्ष्मी प्राप्ति, केला और नारियल के हवन से घर में सुख शांति प्राप्त होती है। हरिद्रा गणेश मंत्र ऊँ हुं गं ग्लौं हरिद्रागणपतये वर वरद सर्वजनहृदयं स्तम्भय स्तम्भय स्वाहा’ यह 32 अक्षरों का मंत्र है। इसका पुरश्चरण चार लाख जप है। पिसी हल्दी का शरीर में लेप कर हल्दी मिले हुए घी और चावल से दशांश हवन, तर्पण, मार्जन ब्राह्मण भोजन के पश्चात् लाजा के हवन से मनोवांछित विवाह एवं संतान प्राप्त होती है। शत्रु, चोर, जल, अग्नि आदि से रक्षा होती है। वाणी स्तम्भन एवं शत्रु से रक्षा होती है। ऋणहर्ता गणेश मंत्र कृष्णयामल तंत्र के अनुसार मंत्र इस प्रकार है:- ऊँ गणेश ऋणं छिन्धि वरेण्यं हुं नम: फट् ।’ उपर्युक्त मंत्र का दस हजार पुरश्चरण या 1 लाख जप से ऋण से मुक्ति एवं धन प्राप्ति होती है, घर में खुशहाली व शांति आती है। वक्रतुण्डाय गणेश मंत्र मंत्र महोदधि अनुसार मंत्र इस प्रकार है:- वक्रतुंडाय हुं । छह अक्षरों के इस मंत्र का पुरश्चरण छ: लाख जप है। अष्टद्रव्यों से दशांश हवन-तर्पण आदि के बाद घी मिला कर अन्न की आहुति देने से दरिद्रता दूर होकर धन की प्राप्ति होती है। वीरभद्रो तंत्र के अनुसार ऊँ गं गणपतये नम:’ मंत्र का जाप एवं गणेश अर्थवशीर्ष का नित्य पाठ विद्या प्रदान करने वाला, विध्न का नाश एवं समस्त मनोकामनाओं की पूर्ति करने वाला है। इन मंत्रों के जाप से गणेश जी होंगे प्रसन्न लक्ष्मी प्राप्ति के लिए सिद्धि विनायक गणपति की पूजा के बाद ऊँ श्रीं गं सौभाग्य गणपतये वरवरद सर्वाजनं मे वशमानयस्वाहा’ मंत्र के नित्य एक माला के जप करने से लक्ष्मी की प्राप्ति होती है। संतान प्राप्ति के लिए श्री गणपति की मूर्ति पर संतान प्राप्ति की इच्छुक महिला प्रतिदिन स्नानादि से निवृत्त होकर एक माह तक बिल्व फल चढ़ाकर ऊँ पार्वती प्रियनंदनाय नम:’ मंत्र की 11 माला प्रतिदिन जपने से संतान प्राप्ति होती है। स्वास्थ्य लाभ के लिए एकदंताय की मूर्ति के आगे घी का दीपक जला कर ऊँ ह्रीं ग्रीं हीं’ मंत्र की प्रतिदिन 11 मालाओं के जप करने से व्यक्ति रोग मुक्त होकर शीघ्र ही आरोग्यता प्राप्त करता है। दांपत्य सुखद बनाने के लिए विनायकाय की प्रतिमा के आगे शुद्ध घृत का दीपक जलाकर नित्य ऊँ गणप्रीति विवर्धनाय नम:’ मंत्र की एक माला प्रतिदिन जप करने से पति-पत्नी का आपसी मतभेद शीघ्र दूर होकर मधुर संबंध स्थापित होते हैं। क्लेश दूर करने के लिए गजाननाय की मूर्ति पर जल व पुष्प चढ़ाकर ऊँ विघ्न विनाशिन्यै नम:’ मंत्र की प्रतिदिन 11 मालाओं के जप करने से शीघ्र क्लेश दूर होते हैं। समृद्धि-वैभव प्राप्ति के लिए भालचंद्राय को प्रतिदिन जल चढ़ाकर ऊँ ऐश्वर्यदाय नम:’ मंत्र की प्रतिदिन 11 मालाओं के जप करने से शीघ्र समृद्धि एवं वैभव की प्राप्ति होती है। साक्षात्कार में सफलता के लिए गणाध्यक्षाय की प्रतिमा पर दूब चढ़ाकर प्रतिदिन ऊँ गुणप्राज्ञाये नम:’ मंत्र की माला का जप करने से साक्षात्कार में प्राय: निश्चित ही सफलता मिलती है। व्यापार वृद्धि के लिए अपने प्रतिष्ठान पर विनायक प्रतिमा की स्थापना कर प्रतिदिन धूप-दीप के साथ हरे मूंग चढ़ाकर ऊँ विष्णुप्रियाय नम:’ मंत्र की एक माला जाप किया करें। व्यापार में आश्चर्यजनक प्रगति होती जाएगी। सौभाग्य वृद्धि के लिए गज कर्णकाय की प्रतिमा पर प्रतिदिन पुष्प माला चढ़ा कर ऊँ गजाननाय नम:’ मंत्र की एक माला जपने से सुख-सौभाग्य की वृद्धि होती है। कार्य सिद्धि हेतु गजानन की नियमित विधि-विधान से पूजा करके लड्डुओं के साथ ऊँ मोदक प्रियाय नम:’ मंत्र के जप करने से मनोवांछित कार्यों में सिद्धि प्राप्त होती है। गणेश चतुर्थी को चंद्रमा का दर्शन से बचाव गणेश चतुर्थी को चंद्रमा का दर्शन करने से झूठा कलंक लगता है। यदि अनजाने में चंद्रमा दिख जाए तो निम्न मंत्र का जाप करना चाहिए। यह दोष का शमनार्थ है : सिंह प्रसेनम् अवधी, सिंहो जाम्बवता हत:। सुकुमारक मा रोदिस्तव ह्येश स्वमन्ते:।। पूजन विधि गणेश जी का पूजन सर्वदा पूर्वमुखी या उत्तरमुखी होकर करें। सफेद आक, लाल चंदन, चांदी या मूंगे की स्वयं के अंगूठे के आकार जितनी निर्मित प्राण प्रतिष्ठित मूर्ति शुभ होती है। साधारण पूजा के लिए पूजन सामग्री में गंध, कुंकुम, जल, दीपक, पुष्प, माला, दूर्वा, अक्षत, सिंदूर, मोदक, पान लें। ब्रह्यवैवर्तपुराण के अनुसार गणेशजी को तुलसी पत्र निषिद्व है। सिंदूर का चोला चढ़ा कर चांदी का वर्क लगाएं और गणेश जी का आह्वान करें। गजाननं भूतगणांदिसेवितं कपित्थजम्बूफल चारुभक्षणम्। उमासूतं शोकविनाशकारकं नमामि विघ्नेश्वर पादपंकजम्। गणेश संकट स्तोत्र का पाठ कर मोदक का भोग लगाएं एवं आरती करें। घर के बाहरी द्वार के ऊध्र्वभाग में स्थित गणेश प्रतिमा की पूजा करने पर घर मंगलयुक्त हो जाता हैं। -
‘महिमा जासु जान गनराऊ प्रथम पूजिअत नाम प्रभाऊ’। कार्य के आरम्भ के समय कहा भी जाता है कि श्री गणेश करें। हठ योग में मूलाधार चक्र को गणेश जी का प्रतीक माना जाता हैं और स्वस्तिक की चार भुजाओं के कोण इनके ही प्रतीक हैं। गणेश में ‘गण’ का अर्थ है, ‘वर्ग समूह’ और ‘ईश’ का अर्थ है स्वामी अर्थात् जो समस्त जीव जगत के ‘ईश’ हैं वही गणेश है ।
‘गणानां जीवजातानां य: ईश-स्वामी स: गणेश:। स्कंदपुराण के अनुसार मां पार्वती ने अपने शरीर की उबटन की बत्तियों से एक शिशु बनाकर उसमें प्राणों का संचार कर गण के रुप में उन्हें द्वार पर बैठा दिया। भगवान शिव को द्वार में प्रवेश नहीं करने देने पर गण और शिव में युद्ध हुआ। शिवजी ने गण का सिर काट कर द्वार के अंदर प्रवेश किया। पार्वती जी ने गण को पुन: जीवित करने के लिए शिवजी से कहा। शिव जी ने एक हाथी के शिशु के सिर को गणेश जी के मस्तक पर जोड़कर पुन: जीवित कर पुत्र रुप में स्वीकार किया। इससे ये गजानन कहलाए। ब्रह्मवैवर्तपुराण के अनुसार शनि की गणेश जी पर दृष्टि पडऩे के कारण उनका सिर धड़ से अलग होने पर भगवान विष्णु ने पुष्पभद्रानदी के अरण्य से एक गजशिश का मस्तक काटकर गणेश जी के मस्तक पर जमा दिया। कहा जाता है कि चन्द्रवार, स्वाति नक्षत्र, सिंह लग्न में पांच शुभ ग्रहों के एकत्रित होने पर भाद्र शुक्ल चतुर्थी को मध्याह्नï काल में पार्वती जी के शोडषोपचार से इनकी पूजा करने से त्रिनयन भगवान गणेश प्रकट हुए। तंत्रशास्त्र के मंत्रों से गणपति को रिझाएं तंत्र शास्त्र में निम्न गणेश मंत्रों का जप अभीष्ट फल प्राप्ति में सहायक होता है- उच्छिष्ट गणपति मंत्र
मंत्र महोदधि अनुसार मंत्र इस प्रकार है:- ‘हस्तिपिशाचिलिखे स्वाहा।’
विनियोग, ऋषियादिन्यास, करन्यास, ध्यान पश्चात् सोने-चांदी आदि से निर्मित गणपति यंत्र या सफेद आक या लाल चंदन से निर्मित अंगूठे के बराबर गणपति की आकृति बनाकर रात्रि को भोजन के बाद लाल वस्त्र धारण कर निवेदित मोदक, गुड़, खीर या पान आदि खाते हुए कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी से शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तक उपर्युक्त मंत्र के सोलह हजार जप करने से सम्पत्ति, यश, रोजगार की प्राप्ति होती है। इस मंत्र का पांच हजार हवन करने से श्रेष्ठ पत्नी की प्राप्ति, दस हजार हवन करने से उत्तम रोजगार एवं रूद्रयामल तंत्र के अनुसार प्रतिदिन एक हजार जप करने से कार्यों में विघ्न दूर हो कर कठिनतम कार्य भी पूर्ण होते हैं। शक्ति विनायक मंत्र मंत्र महोदधि अनुसार मंत्र इस प्रकार है : ऊँ ह्मीं ग्रीं ह्मीं उपयुक्त मंत्र का पुरश्चरण चार लाख जप है। चतुर्थी से आरम्भ कर इसका दशांश हवन, तर्पण, मार्जन और ब्राह्मण भोजन पश्चात् घी सहित अन्न की आहुति से हवन करने पर रोजगार प्राप्ति, गन्ने के हवन से लक्ष्मी प्राप्ति, केला और नारियल के हवन से घर में सुख शांति प्राप्त होती है। हरिद्रा गणेश मंत्र ऊँ हुं गं ग्लौं हरिद्रागणपतये वर वरद सर्वजनहृदयं स्तम्भय स्तम्भय स्वाहा’ यह 32 अक्षरों का मंत्र है। इसका पुरश्चरण चार लाख जप है। पिसी हल्दी का शरीर में लेप कर हल्दी मिले हुए घी और चावल से दशांश हवन, तर्पण, मार्जन ब्राह्मण भोजन के पश्चात् लाजा के हवन से मनोवांछित विवाह एवं संतान प्राप्त होती है। शत्रु, चोर, जल, अग्नि आदि से रक्षा होती है। वाणी स्तम्भन एवं शत्रु से रक्षा होती है। ऋणहर्ता गणेश मंत्र कृष्णयामल तंत्र के अनुसार मंत्र इस प्रकार है:- ऊँ गणेश ऋणं छिन्धि वरेण्यं हुं नम: फट् ।’ उपर्युक्त मंत्र का दस हजार पुरश्चरण या 1 लाख जप से ऋण से मुक्ति एवं धन प्राप्ति होती है, घर में खुशहाली व शांति आती है। वक्रतुण्डाय गणेश मंत्र मंत्र महोदधि अनुसार मंत्र इस प्रकार है:- वक्रतुंडाय हुं । छह अक्षरों के इस मंत्र का पुरश्चरण छ: लाख जप है। अष्टद्रव्यों से दशांश हवन-तर्पण आदि के बाद घी मिला कर अन्न की आहुति देने से दरिद्रता दूर होकर धन की प्राप्ति होती है। वीरभद्रो तंत्र के अनुसार ऊँ गं गणपतये नम:’ मंत्र का जाप एवं गणेश अर्थवशीर्ष का नित्य पाठ विद्या प्रदान करने वाला, विध्न का नाश एवं समस्त मनोकामनाओं की पूर्ति करने वाला है। इन मंत्रों के जाप से गणेश जी होंगे प्रसन्न लक्ष्मी प्राप्ति के लिए सिद्धि विनायक गणपति की पूजा के बाद ऊँ श्रीं गं सौभाग्य गणपतये वरवरद सर्वाजनं मे वशमानयस्वाहा’ मंत्र के नित्य एक माला के जप करने से लक्ष्मी की प्राप्ति होती है। संतान प्राप्ति के लिए श्री गणपति की मूर्ति पर संतान प्राप्ति की इच्छुक महिला प्रतिदिन स्नानादि से निवृत्त होकर एक माह तक बिल्व फल चढ़ाकर ऊँ पार्वती प्रियनंदनाय नम:’ मंत्र की 11 माला प्रतिदिन जपने से संतान प्राप्ति होती है। स्वास्थ्य लाभ के लिए एकदंताय की मूर्ति के आगे घी का दीपक जला कर ऊँ ह्रीं ग्रीं हीं’ मंत्र की प्रतिदिन 11 मालाओं के जप करने से व्यक्ति रोग मुक्त होकर शीघ्र ही आरोग्यता प्राप्त करता है। दांपत्य सुखद बनाने के लिए विनायकाय की प्रतिमा के आगे शुद्ध घृत का दीपक जलाकर नित्य ऊँ गणप्रीति विवर्धनाय नम:’ मंत्र की एक माला प्रतिदिन जप करने से पति-पत्नी का आपसी मतभेद शीघ्र दूर होकर मधुर संबंध स्थापित होते हैं। क्लेश दूर करने के लिए गजाननाय की मूर्ति पर जल व पुष्प चढ़ाकर ऊँ विघ्न विनाशिन्यै नम:’ मंत्र की प्रतिदिन 11 मालाओं के जप करने से शीघ्र क्लेश दूर होते हैं। समृद्धि-वैभव प्राप्ति के लिए भालचंद्राय को प्रतिदिन जल चढ़ाकर ऊँ ऐश्वर्यदाय नम:’ मंत्र की प्रतिदिन 11 मालाओं के जप करने से शीघ्र समृद्धि एवं वैभव की प्राप्ति होती है। साक्षात्कार में सफलता के लिए गणाध्यक्षाय की प्रतिमा पर दूब चढ़ाकर प्रतिदिन ऊँ गुणप्राज्ञाये नम:’ मंत्र की माला का जप करने से साक्षात्कार में प्राय: निश्चित ही सफलता मिलती है। व्यापार वृद्धि के लिए अपने प्रतिष्ठान पर विनायक प्रतिमा की स्थापना कर प्रतिदिन धूप-दीप के साथ हरे मूंग चढ़ाकर ऊँ विष्णुप्रियाय नम:’ मंत्र की एक माला जाप किया करें। व्यापार में आश्चर्यजनक प्रगति होती जाएगी। सौभाग्य वृद्धि के लिए गज कर्णकाय की प्रतिमा पर प्रतिदिन पुष्प माला चढ़ा कर ऊँ गजाननाय नम:’ मंत्र की एक माला जपने से सुख-सौभाग्य की वृद्धि होती है। कार्य सिद्धि हेतु गजानन की नियमित विधि-विधान से पूजा करके लड्डुओं के साथ ऊँ मोदक प्रियाय नम:’ मंत्र के जप करने से मनोवांछित कार्यों में सिद्धि प्राप्त होती है। गणेश चतुर्थी को चंद्रमा का दर्शन से बचाव गणेश चतुर्थी को चंद्रमा का दर्शन करने से झूठा कलंक लगता है। यदि अनजाने में चंद्रमा दिख जाए तो निम्न मंत्र का जाप करना चाहिए। यह दोष का शमनार्थ है : सिंह प्रसेनम् अवधी, सिंहो जाम्बवता हत:। सुकुमारक मा रोदिस्तव ह्येश स्वमन्ते:।। पूजन विधि गणेश जी का पूजन सर्वदा पूर्वमुखी या उत्तरमुखी होकर करें। सफेद आक, लाल चंदन, चांदी या मूंगे की स्वयं के अंगूठे के आकार जितनी निर्मित प्राण प्रतिष्ठित मूर्ति शुभ होती है। साधारण पूजा के लिए पूजन सामग्री में गंध, कुंकुम, जल, दीपक, पुष्प, माला, दूर्वा, अक्षत, सिंदूर, मोदक, पान लें। ब्रह्यवैवर्तपुराण के अनुसार गणेशजी को तुलसी पत्र निषिद्व है। सिंदूर का चोला चढ़ा कर चांदी का वर्क लगाएं और गणेश जी का आह्वान करें। गजाननं भूतगणांदिसेवितं कपित्थजम्बूफल चारुभक्षणम्। उमासूतं शोकविनाशकारकं नमामि विघ्नेश्वर पादपंकजम्। गणेश संकट स्तोत्र का पाठ कर मोदक का भोग लगाएं एवं आरती करें। घर के बाहरी द्वार के ऊध्र्वभाग में स्थित गणेश प्रतिमा की पूजा करने पर घर मंगलयुक्त हो जाता हैं। -
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