गढवाली कुमाउनी मन्त्रों में अमावस्य का
महत्व
यह देखा गया है कि गढवाल व कुमाऊं
क्षेत्र में तांत्रिक अनुष्ठान अधिकतर कृष्ण पक्ष या अमावस्य की रातों को किया जाता है .. आज आधुनिकता के नाम पर इस विधा या अनुष्ठान को दकियानूस अथवा अंधविश्वास का नाम दिया जाता है किन्तु वास्तव में ऐसा नही है . यह ठीक है कि चिकित्सा अथवा मानसिक दुःख दूर
करने के के नाम पर मान्त्रिक तांत्रिक ठगी करने लगे हैं . कहीं कहीं समाज चिकित्सा कि उपेक्षा कर केवल मन्त्रों या तंत्रों के भरोसे रह जाते
हैं और नुकसान पा जाते हैं . किन्तु इसका यह
अर्थ कदापि नही लगाना चाहिए कि शुद्ध तांत्रिक विधा में विज्ञान या मनोविज्ञान का अभाव है .
उत्तर भारत में तांत्रिक विधा या तो वाम
पंथी शैव्यों या बुद्ध पंथियों की
देन है .
नाथपंथी शैव्य हुए हैं और उनके अनुष्ठान
हठ योग आधारित हैं . इसे वाम योग या विपासना योग भी कह लेते हैं, नाथपंथियों के
प्रसिद्ध गुरु गोरखनाथ व उनके
हजारों शिष्यों ने तंत्र विद्या में अभिनव अन्वेषण किये व तन्त्र विद्या को आम आदमी कि पंहुच तक पंहुचाया .
गढवाल कुमाऊं में भी मंत्र तन्त्र विधा
को आम जन तक पंहुचाने में नाथपंथियों का सर्वाधिक हाथ रहा है , जैसा कि कहा गया है कि नाथपंथी शैव्य पन्थ के अनुचर रहे हैं अत : उनके तंत्रों में शैव्य तन्त्र का खजाना
" विज्ञान भैरव" का अर्वाधिक हाथ रहा है . विज्ञान भैरव भारत की एक ऐसी बौधिक सम्पदा है जिस पर अन्वेषण होने ही चाहिए . विज्ञान भैरव के १२३
सूत्र शरीर से आत्मदर्शन कराता है . जी हाँ
विज्ञान भैरव वही वातावरण व शरीर को महत्व देता है . असीम आनन्द हेतु विज्ञान भैरव में मन व तन दोनों में
से तन को अधिक महत्व दिया गया है . विज्ञान
भैरव को शिव उपनिषद भी कहते हैं जो भारतीय तंत्र विज्ञान का जनक भी है .
गढवाल व कुमाऊं में अधिकतर तांत्रिक
अनुष्ठान अमावश्य या कृष्ण पक्ष की रातों को किया जाता है और उसके पीछे " विज्ञान भैरव" ड़ो सूत्र जनक हैं
एवमेव दुर्निशाया कृष्णपक्षागमे चिरम .
तिमिरम भव्यं रूपम भैरव रूपमध्यति
इसी तरह अमावस्य की रात या कृष्ण पक्ष
की रात में अन्धकार पर सूक्ष्म ध्यान दो तो भैरव प्राप्ति हो जायेगी
एवमेव निमील्यादौ नेत्रेकृष्णा भमग्रत::
प्रसार्य भैरवम रूपम भाव्यं स्त्न्मयो
भवेत
उसी प्रकार आँख बंद कर अँधेरे पर
सूक्ष्म ध्यान दो फिर आँख खोलकर अँधेरे पर सूक्ष्म ध्यान दो , भैरव प्राप्ति हो जायेगी
जो लोग गढवाल या कुमाऊँ के गाँव में रहे हैं उन्हें अकेले में कृष्ण पक्ष की रात में डर , डर को दूर करने व अंत में सर्वाधिक आनन्द (जब भूत , वर्तमान, भविष्यकी चिंता
सर्वथा समाप्त हो जाय ) का अनुभव अवस्य होगा , भैरव तन्त्र इसी अनुभव प्राप्ति की बात कर रहा है .
प्राचीन समय में जिन्होंने भैरव तंत्र को जिया हो परखा हो वे चाहते रहे होंगे किस तरह, इस तरह के आनन्द को आम जनता तक पंहुचाया जाय ! उन्होंने तांत्रिक विद्या का अनुष्ठान कृष्ण पक्ष या आमवस्य की रातों
को करना शुरू किया जिससे की पश्वा (भक्त )
भी भैरव योनी (सर्वाधिक आनन्दित योनी) में पंहुच सके .
यही कारण है की अधिकतर तांत्रिक
अनुष्ठान अमावस्य या कृष्ण पक्ष की रातों को किये जाते हैं
1 comment:
आप अद्भुत ज्ञान के भण्डार है
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