Monday, 23 August 2021

शिव-सिद्ध कवच-स्तोत्र

शिव-कवच-स्तोत्र
जो इस ‘शिव-कवच’ को धारण करता है, वह देवताओं के भी द्वारा पूजित होता है । वह महान् पापों और क्षुद्र पापों के समूहों से छुटकारा पा जाता है तथा देहान्त होने पर ‘शिव-कवच’ के प्रभाव से मोक्ष को प्राप्त करता है ।

विनियोगः- 
ॐ अस्य श्रीशिव-कवच-स्तोत्र-मंत्रस्य श्री ब्रह्मा ऋषिः अनुष्टप् छन्दः। श्रीसदा-शिव-रुद्रो देवता। ह्रीं शक्तिः।
 रं कीलकम्। श्रीं ह्री क्लीं बीजम्। श्रीसदा-शिव-प्रीत्यर्थे शिव-कवच-स्तोत्र-पाठे विनियोगः।

ऋष्यादि-न्यासः- 
श्री ब्रह्मा ऋषये नमः शिरसि । अनुष्टप् छन्दभ्यो नमः मुखे । श्रीसदा-शिव-रुद्रो देवतायै नमः हृदि । ह्रीं शक्तये नमः नाभौ । रं कीलकाय नमः पादयो । श्रीं ह्री क्लीं बीजाय नमः गुह्ये । श्रीसदा-शिव-प्रीत्यर्थे शिव-कवच-स्तोत्र-पाठे विनियोगाय नमः सर्वाङ्गे ।

कर-न्यासः – 
ॐ नमो भगवते ज्वलज्ज्वाला-मालिने ॐ ह्लां सर्व-शक्ति-धाम्ने ईशानात्मने अंगुष्ठाभ्यां नमः । ॐ नमो भगवते ज्वलज्ज्वाला-मालिने ॐ नं रिं नित्य-तृप्ति-धाम्ने तत्पुरुषात्मने तर्जनीभ्यां नमः ।
ॐ नमो भगवते ज्वलज्ज्वाला-मालिने 
ॐ मं रुं अनादि-शक्‍ति-धाम्ने अघोरात्मने मध्यामाभ्यां नमः ।
ॐ नमो भगवते ज्वलज्ज्वाला-मालिने 
ॐ शिं रैं स्वतंत्र-शक्ति-धाम्ने वाम-देवात्मने अनामिकाभ्यां नमः ।
ॐ नमो भगवते ज्वलज्ज्वाला-मालिने 
ॐ वां रौं अलुप्त-शक्ति-धाम्ने सद्यो जातात्मने कनिष्ठिकाभ्यां नमः । 
ॐ नमो भगवते ज्वलज्ज्वाला-मालिने 
ॐ यं रः अनादि-शक्ति-धाम्ने सर्वात्मने करतल-कर-पृष्ठाभ्यां नमः।

अङ्ग-न्यासः – 
ॐ नमो भगवते ज्वलज्ज्वाला-मालिने 
ॐ ह्लां सर्व-शक्ति-धाम्ने ईशानात्मने हृदयाय नमः । 
ॐ नमो भगवते ज्वलज्ज्वाला-मालिने 
ॐ नं रिं नित्य-तृप्ति-धाम्ने तत्पुरुषात्मने शिरसे स्वाहा ।
ॐ नमो भगवते ज्वलज्ज्वाला-मालिने 
ॐ मं रुं अनादि-शक्‍ति-धाम्ने अघोरात्मने शिखायै वषट् ।
ॐ नमो भगवते ज्वलज्ज्वाला-मालिने 
ॐ शिं रैं स्वतंत्र-शक्ति-धाम्ने वाम-देवात्मने कवचाय हुं ।
ॐ नमो भगवते ज्वलज्ज्वाला-मालिने 
ॐ वां रौं अलुप्त-शक्ति-धाम्ने सद्यो जातात्मने नेत्र-त्रयाय वौषट् ।
ॐ नमो भगवते ज्वलज्ज्वाला-मालिने 
ॐ यं रः अनादि-शक्ति-धाम्ने सर्वात्मने अस्त्राय फट् ।
                                          
॥ अथ ध्यानम् ॥
वज्र-दंष्ट्रं त्रि-नयनं काल-कण्ठमरिन्दमम् ।
 सहस्र-करमत्युग्रं वंदे शंभुमुमा-पतिम् ॥
                                                
।। मूल-पाठ ।। 
मां पातु देवोऽखिल-देवतात्मा, 
संसार-कूपे पतितं गंभीरे ।
तन्नाम-दिव्यं वर-मंत्र-मूलं, 
धुनोतु मे सर्वमघं ह्रदिस्थम् ॥ १ ॥

सर्वत्र मां रक्षतु 
विश्‍व-मूर्तिर्ज्योतिर्मयानन्द-घनश्‍चिदात्मा ।
अणोरणीयानुरु-शक्‍तिरेकः, 
स ईश्‍वरः पातु भयादशेषात् ॥ २ ॥

यो भू-स्वरूपेण बिभात विश्‍वं, 
पायात् स भूमेर्गिरिशोऽष्ट-मूर्तिः ।
योऽपां स्वरूपेण नृणां करोति, 
सञ्जीवनं सोऽवतु मां जलेभ्यः ॥ ३ ॥

कल्पावसाने भुवनानि दग्ध्वा, 
सर्वाणि यो नृत्यति भूरि-लीलः ।
स काल-रुद्रोऽवतु मां 
दवाग्नेर्वात्यादि-भीतेरखिलाच्च तापात् ॥ ४ ॥

प्रदीप्त-विद्युत् कनकावभासो, 
विद्या-वराभीति-कुठार-पाणिः ।
चतुर्मुखस्तत्पुरुषस्त्रिनेत्रः, 
प्राच्यां स्थितं रक्षतु मामजस्रम् ॥ ५ ॥

कुठार-खेटांकुश-पाश-शूल-
कपाल-ढक्काक्ष-गुणान् दधानः ।
चतुर्मुखो नील-रुचिस्त्रिनेत्रः, 
पायादघोरो दिशि दक्षिणस्याम् ॥ ६ ॥

कुन्देन्दु-शङ्ख-स्फटिकावभासो, 
वेदाक्ष-माला वरदाभयांङ्कः ।
त्र्यक्षश्‍चतुर्वक्त्र उरु-प्रभावः, 
सद्योऽधिजातोऽवस्तु मां प्रतीच्याम् ॥ ७ ॥

वराक्ष-माला-भय-टङ्क-हस्तः, 
सरोज-किञ्जल्क-समान-वर्णः ।
त्रिलोचनश्‍चारु-चतुर्मुखो मां, 
पायादुदीच्या दिशि वाम-देवः ॥ ८ ॥

वेदाभ्येष्टांकुश-पाश-टङ्क-
कपाल-ढक्काक्षक-शूल-पाणिः ।
सित-द्युतिः पञ्चमुखोऽवताम् 
मामीशान-ऊर्ध्वं परम-प्रकाशः ॥ ९ ॥

मूर्धानमव्यान् मम चंद्र-मौलिर्भालं 
ममाव्यादथ भाल-नेत्रः ।
नेत्रे ममाव्याद् भग-नेत्र-हारी, 
नासां सदा रक्षतु विश्‍व-नाथः ॥ १० ॥

पायाच्छ्रुती मे श्रुति-गीत-कीर्तिः, 
कपोलमव्यात् सततं कपाली ।
वक्त्रं सदा रक्षतु पञ्चवक्त्रो, 
जिह्वां सदा रक्षतु वेद-जिह्वः ॥ ११ ॥

कण्ठं गिरीशोऽवतु नील-कण्ठः, 
पाणि-द्वयं पातु पिनाक-पाणिः ।
दोर्मूलमव्यान्मम धर्म-बाहुर्वक्ष-स्थलं 
दक्ष-मखान्तकोऽव्यात् ॥ १२ ॥

ममोदरं पातु गिरीन्द्र-धन्वा, 
मध्यं ममाव्यान्मदनान्त-कारी ।
हेरम्ब-तातो मम पातु नाभिं, 
पायात् कटिं धूर्जटिरीश्‍वरो मे ॥ १३ ॥

ऊरु-द्वयं पातु कुबेर-मित्रो, 
जानु-द्वयं मे जगदीश्‍वरोऽव्यात् ।
जङ्घा-युगं पुङ्गव-केतुरव्यात्, 
पादौ ममाव्यात् सुर-वन्द्य-पादः ॥ १४ ॥

महेश्‍वरः पातु दिनादि-यामे, 
मां मध्य-यामेऽवतु वाम-देवः ।
त्र्यम्बकः पातु तृतीय-यामे, 
वृष-ध्वजः पातु दिनांत्य-यामे ॥ १५ ॥

पायान्निशादौ शशि-शेखरो मां, 
गङ्गा-धरो रक्षतु मां निशीथे ।
गौरी-पतिः पातु निशावसाने, 
मृत्युञ्जयो रक्षतु सर्व-कालम् ॥ १६ ॥

अन्तः-स्थितं रक्षतु शङ्करो मां, 
स्थाणुः सदा पातु बहिः-स्थित माम् ।
तदन्तरे पातु पतिः पशूनां, 
सदा-शिवो रक्षतु मां समन्तात् ॥ १७ ॥

तिष्ठन्तमव्याद् ‍भुवनैकनाथः, 
पायाद्‍ व्रजन्तं प्रथमाधि-नाथः ।
वेदान्त-वेद्योऽवतु मां निषण्णं, 
मामव्ययः पातु शिवः शयानम् ॥ १८ ॥

मार्गेषु मां रक्षतु नील-कंठः, 
शैलादि-दुर्गेषु पुर-त्रयारिः ।
अरण्य-वासादि-महा-प्रवासे, 
पायान्मृग-व्याध उदार-शक्तिः ॥ १९ ॥

कल्पान्तकाटोप-पटु-प्रकोप-
स्फुटाट्ट-हासोच्चलिताण्ड-कोशः ।
घोरारि-सेनार्णव-दुर्निवार-महा-
भयाद् रक्षतु वीर-भद्रः ॥ २० ॥

पत्त्यश्‍व-मातङ्ग-रथावरूथ-सहस्र-
लक्षायुत-कोटि-भीषणम् ।
अक्षौहिणीनां शतमाततायिनाश्छिन्द्यान्मृडो 
घोर-कुठार-धारया ॥ २१ ॥

निहन्तु दस्यून् प्रलयानिलार्च्चिर्ज्ज्वलन् 
त्रिशूलं त्रिपुरांतकस्य ।
शार्दूल-सिंहर्क्ष-वृकादि-हिंस्रान् 
सन्त्रासयत्वीश-धनुः पिनाकः ॥ २२ ॥

दुःस्वप्न-दुःशकुन-दुर्गति-दौर्मनस्य-
दुर्भिक्ष-दुर्व्यसन-दुःसह-दुर्यशांसि ।
उत्पात-ताप-विष-भीतिमसद्‍-
गुहार्ति-व्याधींश्‍च नाशयतु मे जगतामधीशः ॥ २३ ॥

ॐ नमो भगवते सदा-शिवाय सकल-तत्त्वात्मकाय 
सर्व-मन्त्र-स्वरूपाय सर्व-यंत्राधिष्ठिताय सर्व-तंत्र-स्वरूपाय सर्व-तत्त्व-विदूराय ब्रह्म-रुद्रावतारिणे नील-कण्ठाय 
पार्वती-मनोहर-प्रियाय सोम-सूर्याग्नि-लोचनाय 
भस्मोद्‍-धूलित-विग्रहाय महा-मणि-मुकुट-धारणाय माणिक्य-भूषणाय सृष्टि-स्थिति-प्रलय-काल-रौद्रावताराय दक्षाध्वर-ध्वंसकाय महा-काल-भेदनाय मूलाधारैक-निलयाय तत्त्वातीताय गंगा-धराय सर्व-देवाधि-देवाय षडाश्रयाय वेदान्त-साराय ।

त्रि-वर्ग-साधनायानन्त-कोटि-ब्रह्माण्ड-नायकायानन्त-वासुकि-तक्षक-कर्कोट-शङ्‍ख-कुलिक-पद्म-महा-पद्मेत्यष्ट-महा-नाग-कुल-भूषणाय प्रणव-स्वरूपाय चिदाकाशाय आकाश-दिक्स्वरूपाय ग्रह-नक्षत्र-मालिने सकलाय कलङ्क-रहिताय सकल-लोकैक-कर्त्रे सकल-लोकैक-भर्त्रे सकल-लोकैक-संहर्त्रे सकल-लोकैक-गुरवे सकल-लोकैक-साक्षिणे सकल-लोकैक-वर-प्रदाय सकल-लोकैक-शङ्कराय शशाङ्क-शेखराय शाश्‍वत-निजावासाय निराभासाय निरामयाय निर्मलाय निर्लोभाय निर्मदाय निश्‍चिन्ताय निरहङ्काराय निरंकुशाय निष्कलंकाय निर्गुणाय निष्कामाय निरुपप्लवाय निरवद्याय निरन्तराय निष्कारणाय निरातङ्काय निष्प्रपंचाय निःसङ्गाय निर्द्वन्द्वाय निराधाराय नीरागाय निष्क्रोधाय निर्मलाय निष्पापाय निर्भयाय निर्विकल्पाय निर्भेदाय निष्क्रियाय निस्तुलाय निःसंशाय निरञ्जनाय निरुपम-विभवाय नित्य-शुद्ध-बुद्धि-परिपूर्ण-सच्चिदानन्दाद्वयाय परम-शान्त-स्वरूपाय तेजोरूपाय तेजोमयाय ।

जय जय रुद्र महा-रौद्र महावतार महा-भैरव काल-भैरव कपाल-माला-धर खट्वाङ्ग-खङ्ग-चर्म-पाशाङ्कुश-डमरु-शूल-चाप-बाण-गदा-शक्ति-भिन्दिपाल-तोमर-मुसल-मुद्-गर-पाश-परिघ-भुशुण्डी-शतघ्नी-चक्राद्यायुध भीषण-कर-सहस्र-मुख-दंष्ट्रा-कराल-वदन-विकटाट्ट-हास-विस्फारित ब्रह्माण्ड-मंडल नागेन्द्र-कुण्डल नागेन्द्र-वलय नागेन्द्र-चर्म-धर मृत्युञ्जय त्र्यम्बक त्रिपुरान्तक विश्‍व-रूप विरूपाक्ष विश्‍वेश्वर वृषभ-वाहन विश्वतोमुख !
सर्वतो रक्ष, रक्ष । मा ज्वल ज्वल । महा-मृत्युमप-मृत्यु-भयं नाशय-नाशय- ! चोर-भय-मुत्सादयोत्सादय । विष-सर्प-भयं शमय शमय । चोरान् मारय मारय । 
मम शत्रुनुच्चाट्योच्चाटय । त्रिशूलेन विदारय विदारय । कुठारेण भिन्धि भिन्धि । खड्‌गेन छिन्धि छिन्धि । खट्‍वांगेन विपोथय विपोथय । मुसलेन निष्पेषय निष्पेषय । वाणैः सन्ताडय सन्ताडय । रक्षांसि भीषय भीषय । अशेष-भूतानि विद्रावय विद्रावय । कूष्माण्ड-वेताल-मारी-गण-ब्रह्म-राक्षस-गणान्‌ संत्रासय संत्रासय । ममाभयं कुरु कुरु वित्रस्तं मामाश्‍वासयाश्‍वासय । नरक-महा-भयान्मामुद्धरोद्धर सञ्जीवय सञ्जीवय क्षुत्तृड्‌भ्यां मामाप्याययाप्याय दुःखातुरं मामानन्दयानन्दय शिवकवचेन मामाच्छादयाच्छादय मृत्युञ्जय त्र्यंबक सदाशिव ! नमस्ते नमस्ते नमस्ते ।
 
 ।।इति श्रीस्कंदपुराणे एकाशीतिसाहस्रयां तृतीये ब्रह्मोत्तर-खण्डे अमोघ-शिव-कवचं समाप्तम् ।। 

ऋषभ ऋषि कहतें हैं  – मैंने यह वर-दायक शिव का जो कवच कहा है, समस्त प्राणियों की सब बाधाओं को शान्त करने वाला है और रहस्यों से भरा है । जो मनुष्य इस उत्तम ‘शिव-कवच’ को सदा धारण करता है, उसे भगवान् शम्भु के अनुग्रह से कोई भी भय नहीं होता । चाहे कम आयुवाला हो, चाहे मृत्यु सन्निकट हो अथवा चाहे महान् रोग से पीड़ित हो, इस कवच के प्रताप से वह तुरन्त सुख को प्राप्त करता है और दीर्घ आयु वाला होता है । सभी प्रकार की दरिद्रताओं को यह शान्त करता है और सब प्रकार से कल्याण करता है । "जो इस ‘शिव-कवच’ को धारण करता है, वह देवताओं के भी द्वारा पूजित होता है । वह महान् पापों और क्षुद्र पापों के समूहों से छुटकारा पा जाता है तथा देहान्त होने पर ‘शिव-कवच’ के प्रभाव से मोक्ष को प्राप्त करता है ।" हे वत्स ! तुम भी श्रद्धा के साथ मेरे द्वारा दिए गए इस उत्तम ‘शिव-कवच’ को धारण करो । इससे शीघ्र ही निश्चय-पूर्वक तुम्हारा कल्याण होगा ।।संकलित।।
ॐ रां रामाय नमः
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