अपराजिता' श्री दुर्गादेवीका मारक रूप है । पूजन करनेसे देवीका यह रूप पृथ्वीतत्त्वके आधारसे भूगर्भसे प्रकट होकर, पृथ्वीके जीवोंके लिए कार्य करता है
दशहरा शब्द की उत्पत्ति संस्कृत भाषा के शब्द संयोजन " दश" व "हरा" से हुयी है, जिसका अर्थ भगवान राम द्वारा रावण के दस सिरों को काटने व तत्पश्चात रावण की मृत्यु रूप में राक्षस राज के आंतक की समाप्ति से है। यही कारण है कि इस दिन को विजयदशमी अर्थात अन्याय पर न्याय की विजय के रूप में भी मनाया जाता है। दशहरे से पूर्व हर वर्ष शारदीय नवरात्र के समय मातृरूपिणी देवी नवधान्य सहित पृथ्वी पर अवतरित होती हैं-
शारदीय नवरात्र को ब्रह्मेत्सवम् के रूप में मनाया जाता है। ऐसी मान्यता है कि इन नौ दिनों के दौरान सात पर्वतों के राजा पृथक-पृथक बारह वाहनों की सवारी करते हैं तथा हर दिन एक नया अवतार लेते हैं।
अपराजितादेवीका पूजन
पूजास्थलपर अष्टदलकी आकृति बनाते हैं ।
इस अष्टदलका मध्यबिंदु `भूगर्भबिंदु' अर्थात देवीके `अपराजिता' रूपकी उत्पत्तिबिंदु का प्रतीक है, तथा अष्टदलके आठबिंदु, अष्टपाल देवताओंका प्रतीक है ।
इस अष्टदलके मध्यबिंदुपर `अपराजिता' देवीकी मूर्तिकी स्थापना कर उसका पूजन करते हैं ।
'अपराजिता' श्री दुर्गादेवीका मारक रूप है । पूजन करनेसे देवीका यह रूप पृथ्वीतत्त्वके आधारसे भूगर्भसे प्रकट होकर, पृथ्वीके जीवोंके लिए कार्य करता है । अष्टदलपर आरूढ हुआ यह त्रिशूलधारी रूप शिवके संयोगसे, दिक्पाल एवं ग्रामदेवताकी सहायतासे आसुरी शक्तियोंका नाश करता है ।
पूजनके उपरांत इस मंत्रका उच्चारण कर शत्रुनाश एवं सबके कल्याणके लिए प्रार्थना करते हैं ।
हारेण तु विचित्रेण भास्वत्कनकमेखला ।
अपराजिता भद्ररता करोतु विजयं मम ।।
इसका अर्थ है, गलेमें विचित्र हार एवं कमरपर जगमगाती स्वर्ण करधनी अर्थात मेखला धारण करनेवाली, भक्तोंके कल्याणके लिए सदैव तत्पर रहनेवाली, हे अपराजितादेवी ! मुझे विजयी कीजिए । कुछ स्थानोंपर अपराजितादेवीका पूजन सीमोल्लंघनके लिए जानेसे पूर्व भी करते हैं । शमीपत्र तेजका उत्तम संवर्धक है । इसलिए शमी वृक्षके निकट अपराजितादेवीका पूजन करनेसे शमीपत्रमें पूजनद्वारा प्रकट हुई शक्ति संजोई रहती है । शक्तितत्त्वसे शमीपत्रको घरमें रखनेसे इन तरंगोंका लाभ वर्षभर प्राप्त करना जीवोंके लिए संभव होता है । कुछ स्थानोंपर नवरात्रीकालमें रामलिलाका आयोजन किया जाता है । जिसमें प्रभु रामजीके जीवनपर आधारीत लोकनाट्य प्रस्तुत किया जाता है । दशहरेकी दिन तथा लोकनाट्यके अंतमें रावण एवं कंुभकर्णकी पटाखोंसे बनी बडी बडी प्रतिमाओंका दहन किया जाता है ।
दशहरेके दिन एकदूसरेको अश्मंतकके पत्ते सोनेके रूपमें क्यो देते है तथा शस्त्रपूजन के परिणाम
अपराजिता' शक्तितत्त्वकी उत्पत्ति पृथ्वीके भूगर्भबिंदु से होती है ।
अपराजिता देवीसे प्रार्थना कर देवीका आवाहन करनेपर भक्तकी प्रार्थनानुसार अष्टदलके मध्यमें स्थित भूगर्भबिंदुमें देवीतत्त्व कार्यरत होता है ।
उस समय उनके स्वागतके लिए अष्टपाल देवताओंका भी उस स्थानपर आगमन होता है । अपराजिताकी उत्पत्तिसे मारक तरंगें प्रक्षेपित होती हैं ।
अष्टपालों द्वारा अष्टदलकी आठबिंदुओंसे लालिमायुक्त प्रकाश-तरंगोंके माध्यमसे ये मारक तरंगें अष्टदिशाओंमें प्रक्षेपित होती हैं ।
सर्व आठों बिंदुओंसे शक्तिकी मारक तरंगोंका प्रक्षेपण होता है । ये तरंगें विशिष्ट कोनोंमें एकत्रित होकर, रज-तमात्मक शक्तिका नाश करती हैं । पृथ्वीपर सर्व जीव निर्विघ्न रूपसे जीवन जी सकें, इस हेतु वायुमंडलकी शुद्धि भी करती हैं । पूजनके उपरांत शमी अथवा अश्मंतक वृक्षोंके मूलके समीप की कुछ मिट्टी एवं उन वृक्षोंके पत्ते घर लाते हैं ।
दशहरेके दिन एक दूसरे को अश्मंतक के पत्ते सोनेके रूपमें देनेका कारण
विजयादशमीके दिन अश्मंतकके पत्ते सोनेके रूपमें देवताको अर्पित करते हैं । आपसी प्रेमभाव निर्माण करनेके लिए अश्मंतकके पत्ते शुभचिंतकोंको सोनेके रूपमें देकर उनके कल्याणकी प्रार्थना करते हैं । तदुपरांत ज्येष्ठोंको नमस्कार कर उनके आशीर्वाद प्राप्त करते हैं । अश्मंतकके पत्तोंमें ईश्वरीय तत्त्व आकृष्ट करनेकी क्षमता अधिक होती है । इन पत्तोंमें १० प्रतिशत रामतत्त्व एवं शिवतत्त्व भी विद्यमान होता है । ये पत्ते देनेसे पत्तोंद्वारा व्यक्तिको शिवकी शक्ति भी प्राप्त होती है । ये पत्ते व्यक्तिमें तेजतत्त्वकी सहायतासे क्षात्रवृत्तिका भी संवर्धन करते हैं।
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