मंगलवार, 16 अप्रैल 2019

सात्विक रू प से करें तंत्र साधना तंत्र की अधिष्ठात्री देवी मां दुर्गा तीनों रूपों में- महाकाली, महालक्ष्मी व महासरस्वती रू प में वांछित परिणाम देती हैं। तंत्र की उत्पत्ति हमारे वेदों से हुई है- ऋग्वेद से शक्ति तंत्र, सामवेद से वैष्णव तंत्र व यजुर्वेद से शैव तंत्र। इन तीनों अंगों का कालांतर में [तीन अंग- सात्विक, राजसी व तामसिक] अलग-अलग रू पों में प्रादुर्भाव हुआ। कुल 64 प्रकार के तंत्र प्रचलन में आए हैं। इनकी अधिष्ठात्री देवियों को योगिनी के नाम से जाना गया है। शक्तिपीठ का आशय है- वह स्थल जहां पर शक्ति का निवास हो। इसलिए तंत्र साधना के लिए शक्तिपीठों से अच्छी जगह कोई हो ही नहीं सकती है। तंत्र शक्ति की साधना भी मूलत: तीन प्रकार से की जा सकती है- यंत्र साधना, प्रतिमा साधना व बीजाक्षरों के माघ्यम से मंत्र साधना, परंतु इन तीनों ही प्रकार के मूल अक्षर हैं- "ऎं ह्रीं क्लीं" ये तीन अक्षर तंत्र साधना की मेरू के समान हैं। तंत्र साधना एवं तांत्रिकों के बारे में छवि अच्छी नहीं मानी जाती है। इसका प्रमुख कारण है- तंत्र का मूलधर्म। इसके अनुसार तांत्रिकों को पांच "मकारों" का पालन करना होता है, जो हैं- मदिरा, मांस, मीन, मुद्रा और मैथुन का प्रयोग। ये तांत्रिक के लिए आवश्यक है अन्यथा साधना में वह सफल नहीं हो पाता है। वास्तव में ये भ्रांतियां इनके शाब्दिक अर्थों को लेकर हैं, जबकि पांच मकार के उपयोग-निर्देश शास्त्रों द्वारा दिए गए हैं। शास्त्र कभी भी अमर्यादित आचरण की शिक्षा या निर्देश नहीं देते हैं। सात्विक तंत्र साधना के लिए इसके गूढ़ार्थ को समझना होगा जो निम्नानुसार हैं- मद्य से आशय सहस्त्रार को जाग्रत कर उससे स्त्रावित होने वाले रसायन का शरीर में संचार जिसे आम भाषा में सोमरस कहते हैं। मस्तिष्क में स्थित सहस्त्रार को सर्वप्रथम साधक को जाग्रत करना होगा। शरीर में मांस जिह्वा या जीभ को कहते हैं। वाणी पर नियंत्रण व वाणी साधना ही मांस का भक्षण है।

कोई टिप्पणी नहीं:

astroashupandit

Consultations by Astrologer - Pandit Ashu Bahuguna Skills : Vedic Astrology , Horoscope Analysis , Astrology Remedies , Prashna kundli Indi...