Tuesday, 16 April 2019

सकल ज्वर शूल ग्रहबाधा नाशक आरोग्यदायक = धूमावती मालामंत्र ये मालामंत्र का अतिशीघ्र परिणाम दिखता है .ये मालामंत्र नाड़ीपर भूलकर भी नहीं बोलना चाहिए | बाधिक के घरपे कुछ अन्न खाया हो तो उसके दोष का तत्काल निवारण , बाहर की अशुभ शक्ति से होनेवाले बाधा से निवारण , जन्म कुंडली की अशुभ गोचर योग से होनेवाली पीड़ा का निवारण , अकारण अस्वस्थ मन:स्थिति निवारण , डोक्टर की गलती की वजह से शरीर को होनेवाली विषमय अगर क्लेशदायक पीड़ा का निवारण , सर्व प्रकार के ताप का निवारण , डोक्टर के समझ के बाहर के रोगों का निवारण , शत्रुभय से अस्वस्थ मानसिकता का निवारण , अगर व्याधि बड़ी हो तो दिन में 3 बार भी आप (सुबह-शाम-रात के समय) ये अभिमंत्रित जल दे सकते है . इस मालामंत्र के अभिमंत्रित जल से इतने सारे लाभ होते है है | कितने दिन ये अभिमंत्रितजल प्राशन करने का ? => वैसे तो इसकी को मर्यादा नहीं है , किसी किसी को 2 -3 दिन में फायदा होता है | अगर समस्या बड़ी हो तो 1 -2 महीने लग सकते है | लेकिन एक बात का ध्यान दे , की इस मालामंत्र के अभिमंत्रित जल से समस्या का निवारण होता ही है 100 % | शरीर में अगर कोई जगह पर कोई व्याधि हो रोग हो, तो उस जगह पर अपना राईट साइड का हाथ रखके माला मंत्र का 4 से 5 बार जाप करनेपर तत्क्षण आराम मिलता ही है | विशेष सूचना : अभिमंत्रित जल उस व्यक्ति को तत्क्षण दे | और इसका पाठ करने से "निखिलेश्वरानंद कवच" का पाठ जरुर करले | विधि : पूर्वाभिमुख बैठके ,आगे का संकल्प एक बार बोलके "देवदत्तस्य " के जगह पर जिसके लिए आप प्रयोग कर रहे है, उसका नाम षष्ठी प्रत्यय लगाकर उच्चारण करे .. Example के लिए अगर किसीका नाम सचिन है तो "सचिनस्य " उच्चारण करे | अगर स्वत: के जाप लिए करना हो तो "देवदत्तस्य " के जगह पर "मम" उच्चारण करे | आगे किसी लकड़ी के बजोट पर अपने सामने ताम्बे का फुलपात्र रखकर राईट साइड के हाथ की तर्जनी ,मध्यमा ,अनामिका (अंगुष्ट और करांगुली को छोड़कर ) को ताम्बे के फुलपात्र में निचे तक डुबाकर मालामंत्र का 11 बार जोरसे और स्पष्ट उच्चारण करे | संकल्प : ॐ नमो भगवती शत्रु संहारिणी सर्वरोगप्रशमिनी सकलरिपु धन-धान्यक्षयं कुरु कुरु धूमावतीश्वरी शरभशालुव पक्षिराजप्रिये अमृत कलश वरदाभय कमल कराम्बुजे जगत्क्षोभिनी "देवदत्तस्य " शरीरे वर्त्तमान वर्तीष्यमान सकलरोगं मोचय-मोचय समस्त भूतं नाशय नाशय सर्व उन्माद शमनं कुरु कुरु स्वाहा | | मूल पाठ |

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