यह प्रयोग किसी भी दिन सम्पन्न किया जा सकता है । दुर्गा पूजा के लिए किसी भी प्रकार के मुहूर्त की आवश्यकता नहीँ रहती ।
देवी रहस्य तन्त्र के अनुसार-दुर्गा पूजा मेँ न तो कोई विशेष विधान है । न विध्न है और न कठिन आचार । प्रातः र्सूयोदय से र्पुव उठ कर साधक स्नान कर शुद्ध पीले वस्त्र धारण कर अपने पूजा स्थान को स्वच्छ करेँ । जल से धोकर स्थान शुद्धि और भूमि शुद्धि कर अपना आसन बिछाएं । आसन पर बैठ कर ध्यान करेँ और अपने चित को एकाग्र करेँ । कार्य सिद्धि साधना के संबंध मेँ पूरे विश्वाश के आधार पर कार्य करते हुए संकल्प लेँ । ..
अपने सामने सिँह पर स्थित देवी का एक चित्र स्थापित करेँ और "श्री गणेशाय नमः" बोले फिर एक ओर घी का दीपक तथा दूसरी ओर धूप अगरबत्ती इत्यादि जयाएं ।
अब बाएं हाथ मे जल लेकर दाएं हाथ से अपने मुख, शरीर इत्यादि पर छिडकते हुए निम्न मंत्रों के उच्चारण के साथ तत्व-न्यास सम्पन्न करते हुए, थोडा जल दोनो आखो मे लगा कर भूमि पर छोड देँ
ॐ आत्म तत्वाय नमः । ॐ ह्रीँ विद्या तत्वाय नमः । ॐ दुं शिव तत्वाय नमः । ॐ गुं गुरु तत्वाय नमः । ॐ ह्रीं शक्ति तत्वाय नमः । ॐ श्रीँ शक्ति तत्वाय नमः ।
सामने चौकी पर पीला वस्त्र बिछा कर उस पर पुष्प की पंखुडियोँ का आसन बनाएं तथा दुर्गा यंत्र को दुग्ध धारा से फिर जल धारा से धोकर साफ कपडे से पोछ कर ॥
ॐ ह्रीँ वज्रनख दंष्ट्रायुधाय महासिँहाय फट् ॥
इस मंत्र का उच्चारण करते हुए दुर्गा यंत्र को पुष्प के आसन पर स्थापित कर अबीर, गुलाल, कुंकुंम, केशर, मौली, सिंन्दूर अर्पित करेँ ।
इसके पश्चात् एक पुष्प माला देवी के चित्र पर चढाए तथा दूसरी माला इस देवी यंत्र के सामने रख देँ
अब दुर्गा की शक्तियो का पूजन कार्य सम्पन्न करेँ, सामने दुर्गा यंत्र के आगे 9 गोमती चक्र स्थापित करेँ । (गोमती चक्र के आभाव मे यंत्र पे ही) प्रत्येक चक्र के नीचे पुष्प की एक एक पंखुडी रखे तथा चावल को कुंकुंम से रंग कर मंत्र जप करते हुए इन 9 शक्तियो का जप करेँ ।
ॐ प्रभायै नमः । ॐ जयायै नमः । ॐ विशुद्धाय नमः । ॐ सुप्रभायै नमः ॐ मायायै नमः । ॐ सूक्ष्मायै नमः । ॐ नन्दिन्यै नमः । ॐ विजयायै नमः । ॐ र्सव सिद्धिदायै नमः ।
अब गणेश पूजन कर देवी का पूजन सम्पन्न करेँ ।
अपने हाथ मे धूप लेकर 21 बार धूप करेँ ।
फिर दुर्गा अष्टाक्षर मंत्र का जप प्रारम्भ करेँ ।
॥ ॐ ह्रीँ दुं दुर्गायै नमः ॥
शारदा तिलक तंत्र शास्त्र
मे लिखा है कि शान्त ह्रदय से चित्त मे शान्ति तथा एकाग्रता रखते हुए साधक इस मंत्र की रोज 51 माला का जप 121 दिन उसी स्थान पर बैठ कर करेँ तो उसे साक्षात स्वरुप मेँ प्रगट होकर माँ अष्ट सिद्धि वरदान देती है । साधक को जो वर प्राप्त होता है, उस से साधक भैरव के समान हो जाता है । उसे अभय का वह स्वरुप प्राप्त हो जाता है कि उसके मन से भय पूण रुप से समाप्त हो जाता है । शरीर की व्याधियो का निवारण तथा दीर्धायु प्राप्ति के लिए भी यही र्सवश्रेष्ठ विधान है । प्रतिदिन पूजा के पश्चात साधक देवी की आरती तथा ताम्रपात्र मे जल को आचमनी मे लेकर ग्रहण करेँ तो उसके भीतर शक्ति का प्रादुर्भाव होता है ।
ॐ रां रामाय नमः
श्री राम ज्योतिष सदन
पंडित आशु बहुगुणा
अपनी समस्याओं के समाधान हेतु संपर्क करें।
मोबाइल नं-9760924411
मुजफ्फरनगर UP
No comments:
Post a Comment