Tuesday 17 August 2021

चौर गणपति सटीक साधना करे।

चौर गणपति साधना प्रकरण
जय मां बगलामुखी,मां भगवती पीतांबरा की कृपा आप सब भक्तजनों के ऊपर बनी रहे..!
अधिकतर साधकों का मुझसे प्रश्न रहता है, कि विशाल जी हमने अमुक नाम के देवता के अनेक मंत्र पुरश्चरण किए परंतु हर बार निराशा ही हाथ लगी !
इस प्रश्न का उत्तर मैंने उन साधकों को निजी तौर पर दीया परंतु आज मेरे एक शुभचिंतक बड़े भाई ने मुझसे कहा कि विशाल जी जो जानकारी आपने मुझे प्रदान की है यह मेरी साधना के मध्य में बहुत लाभकारी सिद्ध हुई है कृपया कर इस गुढ ज्ञान को अधिकतर से अधिकतर 
साधकों तक पहुंचाएं
तो साधकों आपको विदीत होगा की सोशल नेटवर्किंग साइट पर मेरे जितने भी आर्टिकल्स है अधिकतर शाबर विद्या को छोड़कर प्रमाणिकता की दृष्टि से वह किसी ना किसी प्रमाणित ग्रंथ से संबंध रखते ही है!
और जो आज का प्रश्न साधकों का हुआ था इसका उत्तर हमें तंत्र के महानतम प्रमाणित ग्रंथ "वर्णबिल" मे स्पष्ट "चौर गणपति साधना प्रकरण" मे अध्ययन करने को मिलता है इसमे स्पष्ट लिखा है कि साधक के शरीर में कुंडलिनी कमल के प्रत्येक द्वार के प्रत्येक पथ पर पचास गण देवता के रूप में मुनि गण खड़े रहते हैं और जप का दिव्य तेज कुंडलिनी के जिस कमल दल में स्थित होगा यह ऋषि उस जप के तेज  का हरण कर लेते हैं परिणाम स्वरुप अधिकतर मेरे साधक जीवन में भी मुझे देखने को  मिला है कि जप के तेज के हरण होने के पर्यंत कुछ साधकों को संबंधित कुंडलिनी कमल दल के अंग क्षेत्र में विकार उत्पन्न होना प्रारंभ हो गया जिसके परिणाम स्वरुप हृदय गति का वढ जाना, पाचन में समस्या आना, बिना किसी अर्थ के भयभीत होना मस्तिष्क में हर समय दबाब महसूस होना, एंग्जाइटी जैसे परिणाम सामने आए हैं!
इसीलिए तंत्र में बार बार कहा गया है कि बिना गुरु के किसी भी मंत्र का जप ना करें फिर भी अगर किसी साधक भाई के साथ इस प्रकार की घटनाएं घटित हो रही है तो वह इस चौर गणपति के छोटे से प्रयोग को करके पुनः स्वस्थ हो सकता है!
कुंडलिनी कमल दल के गणों के अधिष्ठात्री देव चौर गणपति माने जाते हैं मंत्र जप करने से पहले इन गणपति कि इस छोटी सी विधि को करके आप अपने प्रत्येक कुंडलिनी द्वार माने जाने वाले अंग को बंधित कर सकते हैं विधि इस प्रकार से है परंतु मैं पुनः कहता हूं कि अगर इस प्रकार से किसी भी साधक के साथ घटनाएं घटित हो तो योग्य गुरु से परामर्श अवश्य लें मेरे इस आर्टिकल का हेतु आप सबको इस गूढ़ विद्या से अवगत करवाना है.!
तो आइए जानते हैं की कुंडलिनी कमलदल से प्रवाहित होने वाली यत्र तत्र ऊर्जा को कैसे एक जगह स्थापित किया जा सकता है._!
 जप आसन पर बैठ कर सर्वप्रथम इस विधि को करने के पश्चात ही अपने मंत्र जप को प्रारंभ करें.....!
● हृदय पर दाएं हाथ को स्पर्श कर - दस बार "क्रों " बीज मंत्र जपे!
■ दक्षिण नेत्र को स्पर्श कर - दस बार "ह्रीं ह्रीं" का जप करें!
● बाम नेत्र - दस बार "ह्रीं ह्रीं" जपे !
■ दक्षिण कान - दस बार "ह्रीं ह्रीं" जपे !
● बाम कान  - दस बार "ह्रीं ह्रीं" जपे !
■ दक्षिण नासिका - दस बार"ह्रुं ह्रुं जपे !
● बाम नासिका - दस बार"ह्रुं ह्रुं जपे !
■ मुख पर  -  दस बार "ह्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रीं" जपे !
● नाभि पर - दस बार "ऐं क्लीं"जपे !
■ लिंग पर - दस बार हसौ: जपे !
●  भ्रुमध्य पर - दस बार हुं जपे !

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