Sunday 29 August 2021

रूद्र काल भैरव की उग्र साधना -

रूद्र  काल भैरव की उग्र साधना -

 आपने भैरवजी  के बारे में सुना होगा।  
मगर भैरवजी किन किन भागों में विभाजित हैं। ..
आज आपको  इस पोस्ट के माध्यम से बताते हैं। .. भैरवजी के   साथ भैरवी पूजन का भी विधान है...  |

हर शक्तिपीठ में  माँ के हर रूप के साथ कोई ना कोई भैरव विद्यमान जरूर होता  है |

आप जितने भी शक्तिपीठो में जायेंगे आपको हर शक्ति भैरवी  के साथ भैरव भी उस पीठ में दिखाई देंगे |

ये दोनों एक दुसरे के बिना अपूर्ण माने जाते  है |

महाकाल के बिना महाकाली अपूर्ण है इसी तरह शिव का अर्धनारीश्वर रूप भी यही बोध कराता है की स्त्री और पुरुष शक्ति दोनों का ही महत्त्व है |

भैरव की पूजा पूर्ण तभी होती है जब साथ में भैरवी की भी  पूजा  की जाये |

भैरवी भैरव भक्तो की साधना में मदद करके उनकी पूजा अर्चना को सफल बनाने में सहायक होती  है |
भैरव हिन्दुओं के प्रसिद्द देवता हैं जो शिव के रूप हैं। इनकी पूजा भारत और नेपाल में होती है। हिन्दू और जैन दोनों भैरव की पूजा करते हैं। भैरवों की संख्या ६४ है। ये ६४ भैरव भी ८ भागों में विभाजित  हैं।

शिवपुराण’ के अनुसार मार्गशीर्ष मास के कृष्णपक्ष की अष्टमी को मध्यान्ह में भगवान शंकर के अंश से भैरव की उत्पत्ति हुई थी, अतः इस तिथि को काल-भैरवाष्टमी के नाम से भी जाना जाता है।

पौराणिक आख्यानों के अनुसार अंधकासुर नामक दैत्य अपने कृत्यों से अनीति व अत्याचार की सीमाएं पार कर रहा था, यहाँ तक कि एक बार घमंड में चूर होकर वह भगवान शिव तक के ऊपर आक्रमण करने का दुस्साहस कर बैठा. तब उसके संहार के लिए शिव के रुधिर से भैरव की उत्पत्ति हुई।

कुछ पुराणों के अनुसार शिव के अपमान-स्वरूप भैरव की उत्पत्ति हुई थी। यह सृष्टि के प्रारंभकाल की बात है। सृष्टिकर्ता ब्रह्मा ने भगवान शंकर की वेशभूषा और उनके गणों की रूपसज्जा देख कर शिव को तिरस्कार युक्त वचन कहे। अपने इस अपमान पर स्वयं शिव ने तो कोई ध्यान नहीं दिया, किन्तु उनके शरीर से उसी समय क्रोध से कम्पायमान और विशाल दण्डधारी एक प्रचण्डकाय काया प्रकट हुई और वह ब्रह्मा का संहार करने के लिये आगे बढ़ आयी। स्रष्टा तो यह देख कर भय से चीख पड़े। शंकर द्वारा मध्यस्थता करने पर ही वह काया शांत हो सकी। रूद्र के शरीर से उत्पन्न उसी काया को महाभैरव का नाम मिला। बाद में शिव ने उसे अपनी पुरी, काशी का नगरपाल नियुक्त कर दिया। ऐसा कहा गया है कि भगवान शंकर ने इसी अष्टमी को ब्रह्मा के अहंकार को नष्ट किया था, इसलिए यह दिन भैरव अष्टमी व्रत के रूप में मनाया जाने लगा।

कालान्तर में भैरव-उपासना की दो शाखाएं- बटुक भैरव तथा काल भैरव के रूप में प्रसिद्ध हुईं। जहां बटुक भैरव अपने भक्तों को अभय देने वाले सौम्य स्वरूप में विख्यात हैं वहीं काल भैरव आपराधिक प्रवृत्तियों पर नियंत्रण करने वाले प्रचण्ड दंडनायक के रूप में प्रसिद्ध हुए।

पुराणों में भैरव का उल्लेख

तंत्रशास्त्र में अष्ट-भैरव का उल्लेख है –
असितांग-भैरव,
रुद्र-भैरव,
चंद्र-भैरव,
क्रोध-भैरव,
उन्मत्त-भैरव,
कपाली-भैरव,
भीषण-भैरव
तथा संहार-भैरव।

कालिका पुराण में भैरव को नंदी, भृंगी, महाकाल, वेताल की तरह भैरव को शिवजी का एक गण बताया गया है जिसका वाहन श्वान  है। 

ब्रह्मवैवर्तपुराण में भी १ . महाभैरव, २ . संहार भैरव, ३ . असितांग भैरव, ४ . रुद्र भैरव, ५ . कालभैरव, ६ . क्रोध भैरव, ७ . ताम्रचूड़ भैरव तथा ८ . चंद्रचूड़ भैरव नामक आठ पूज्य भैरवों का निर्देश है। इनकी पूजा करके मध्य में नवशक्तियों की पूजा करने का विधान बताया गया है। शिवमहापुराण में भैरव को परमात्मा शंकर का ही पूर्णरूप बताया गया है -

भैरव के   आठ भैरवीयो के नाम - 

श्री भैरवी , महा भैरवी , सिंह भैरवी , धूम्र भैरवी, भीम भैरवी,  उन्मत्त भैरवी , वशीकरण भैरवी और   मोहन भैरवी

नमस्कार मंत्र-

ॐ श्री भैरव्यै , ॐ मं महाभैरव्यै , ॐ सिं सिंह भैरव्यै , ॐ धूं धूम्र भैरव्यै,  ॐ भीं भीम भैरव्यै , ॐ उं उन्मत्त भैरव्यै , ॐ वं वशीकरण भैरव्यै , ॐ मों मोहन भैरव्यै |

ॐ श्री भैरव्यै नमः श्री भैरव्यै पदुकाम पूजयामि तर्पयामि नमः
ॐ श्री भैरव्यै नमः महाभैरवी पदुकाम पूजयामि तर्पयामि नमः
ॐ सिं सिंह भैरव्यै नमः श्री सिंह भैरवी पदुकाम पूजयामि तर्पयामि नमः
ॐ धूं धूम्र भैरव्यै धूम्र भैरवी पदुकाम पूजयामि तर्पयामि नमः
ॐ भीं भीम भैरव्यै भीम भैरवी पदुकाम पूजयामि तर्पयामि नमः
ॐ उं उन्मत्त भैरव्यै उन्मत्त भैरवी पदुकाम पूजयामि तर्पयामि नमः
ॐ वं वशीकरण भैरव्यै वशीकरण भैरवी पदुकाम पूजयामि तर्पयामि नमः
ॐ मों मोहन भैरव्यै मोहन भैरवी पदुकाम पूजयामि तर्पयामि नमः

भैरव रूद्र पाठ- 

भं भं भं भं भं विकट गंभीर नाद कर प्रकट भये भैरव
कल कल कल कल कल विकराल अग्नि नेत्र धरे विशाल भैरव
घम घम घम घम घम घुंघरू घमकावत नाचे भैरव
हूँ हूँ हूँ हूँ हूँ हुँकारे भूतनाथ भैरव
डम डम डम डम डम डमरू डमकावत प्रचंड भैरव
हर हर हर हर हर नाद उद्घोषित करते महाकाल भैरव
झम झम झम झम झमक झम झम मेघ बरसत प्रकट भैरव
तड़ तड़ तड़ तड़ तड़क तड़ तड़ तड़तड़ावत घनघोर बिजली
धम धम धम धम धम दंड धमकावत काल भैरव
जय हो भव भय हारक क्रोधेश महाकाल भैरव ।।।

ॐ भैरवाय नमः।

No comments:

दुर्गा सप्तशती पाठ विधि

  दुर्गा सप्तशती दुर्गा सप्तशती पाठ विधि पूजनकर्ता स्नान करके, आसन शुद्धि की क्रिया सम्पन्न करके, शुद्ध आसन पर बैठ जाएँ। माथे पर अपनी पसंद क...