Monday 30 August 2021

नाथ सम्प्रदाय

नाथ सम्प्रदाय प्राचीन काल से चले आ रहे नाथ संप्रदाय को गुरु मच्छेंद्र नाथ और उनके शिष्य गोरखनाथ ने पहली दफे व्यवस्था दी। गोरखनाथ ने इस सम्प्रदाय के बिखराव और इस सम्प्रदाय
की योग विद्याओं का एकत्रीकरण किया। गुरु और शिष्य
को तिब्बती बौद्ध धर्म में महासिद्धों के रुप में जाना जाता है। परिव्रराजक का अर्थ होता है घुमक्कड़। नाथ साधु-संत
दुनिया भर में भ्रमण करने के बाद उम्र के अंतिम चरण में
किसी एक स्थान पर रुककर अखंड धूनी रमाते हैं या फिर
हिमालय में खो जाते हैं। हाथ में चिमटा, कमंडल, कान में कुंडल,
कमर में कमरबंध, जटाधारी धूनी रमाकर ध्यान करने वाले नाथ
योगियों को ही अवधूत या सिद्ध कहा जाता है। ये योगी अपने गले में काली ऊन का एक जनेऊ रखते हैं जिसे 'सिले' कहते हैं।
गले में एक सींग की नादी रखते हैं। इन दोनों को 'सींगी सेली'
कहते हैं। इस पंथ के साधक लोग सात्विक भाव से शिव की भक्ति में
लीन रहते हैं। नाथ लोग अलख (अलक्ष) शब्द से शिव का ध्यान
करते हैं। परस्पर 'आदेश' या आदीश शब्द से अभिवादन करते हैं।
अलख और आदेश शब्द का अर्थ प्रणव या परम पुरुष होता है।
जो नागा (दिगम्बर) है वे भभूतीधारी भी उक्त सम्प्रदाय से
ही है, इन्हें हिंदी प्रांत में बाबाजी या गोसाई समाज का माना जाता है। इन्हें बैरागी,
उदासी या वनवासी आदि सम्प्रदाय का भी माना जाता है। नाथ
साधु-संत हठयोग पर विशेष बल देते हैं। इन्हीं से आगे चलकर चौरासी और नवनाथ माने गए जो निम्न
हैं:- प्रारम्भिक दस नाथ आदिनाथ, आनंदिनाथ, करालानाथ, विकरालानाथ, महाकाल
नाथ, काल भैरव नाथ, बटुक नाथ, भूतनाथ, वीरनाथ और
श्रीकांथनाथ। इनके बारह शिष्य थे जो इस क्रम में है- नागार्जुन,
जड़ भारत, हरिशचंद्र, सत्यनाथ, चर्पटनाथ, अवधनाथ,
वैराग्यनाथ, कांताधारीनाथ, जालंधरनाथ और मालयार्जुन नाथ। चौरासी और नौ नाथ परम्परा आठवी सदी में 84 सिद्धों के साथ बौद्ध धर्म के महायान के
वज्रयान की परम्परा का प्रचलन हुआ। ये सभी भी नाथ ही थे।
सिद्ध धर्म की वज्रयान शाखा के अनुयायी सिद्ध कहलाते थे।
उनमें से प्रमुख जो हुए उनकी संख्या चौरासी मानी गई है। नौ नाथ गुरु : 1.मच्छेंद्रनाथ 2.गोरखनाथ 3.जालंधरनाथ 4.नागेश
नाथ 5.भारती नाथ 6.चर्पटी नाथ 7.कनीफ नाथ 8.गेहनी नाथ
9.रेवन नाथ। इसके अलावा ये भी हैं: 1. आदिनाथ 2. मीनानाथ 3.
गोरखनाथ 4.खपरनाथ 5.सतनाथ 6.बालकनाथ 7.गोलक नाथ
8.बिरुपक्षनाथ 9.भर्तृहरि नाथ 10.अईनाथ 11.खेरची नाथ
12.रामचंद्रनाथ। ओंकार नाथ, उदय नाथ, सन्तोष नाथ, अचल नाथ, गजबेली नाथ,
ज्ञान नाथ, चौरंगी नाथ, मत्स्येन्द्र नाथ और गुरु गोरक्षनाथ।
सम्भव है यह उपयुक्त नाथों के ही दूसरे नाम है। बाबा शिलनाथ,
दादाधूनी वाले, गजानन महाराज, गोगा नाथ, पंढरीनाथ और साईं
बाब को भी नाथ परंपरा का माना जाता है। उल्लेखनीय है
कि भगवान दत्तात्रेय को वैष्णव और शैव दोनों ही संप्रदाय का माना जाता है, क्योंकि उनकी भी नाथों में
गणना की जाती है। भगवान भैरवनाथ भी नाथ संप्रदाय के अग्रज
माने जाते हैं। 

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