Friday 11 February 2022

भगवान शिव को तंत्र शास्त्र का देवता माना जाता है।

भगवान शिव को तंत्र शास्त्र का देवता माना जाता है। तंत्र और अघोरवाद के जन्मदाता भगवान शिव ही हैं। नासिक मे स्थित श्मशान भी तंत्र क्रिया के लिए प्रसिद्ध है। वही के अघोरी बाबा से प्राप्त गंगाराम अघोरी के विषय मे आज यहा लिखा जा रहा है।

आधी रात के बाद का समय। घोर अंधकार का समय। जिस समय हम सभी गहरी नींद के आगोश में खोए रहते हैं, उस समय घोरी-अघोरी-तांत्रिक श्मशान में जाकर तंत्र-क्रियाएँ करते हैं। घोर साधनाएँ करते हैं। अघोरियों का नाम सुनते ही अमूमन लोगों के मन में डर बैठ जाता है। अघोरी की कल्पना की जाए तो शमशान में तंत्र क्रिया करने वाले किसी ऐसे साधू की तस्वीर जहन में उभरती है जिसकी वेशभूषा डरावनी होती है।

अघोर विद्या वास्तव में डरावनी नहीं है। उसका स्वरूप डरावना होता है। अघोर का अर्थ है अ+घोर यानी जो घोर नहीं हो, डरावना नहीं हो, जो सरल हो, जिसमें कोई भेदभाव नहीं हो। और सरल बनना बड़ा ही कठिन है। सरल बनने के लिए ही अघोरी को कठिन साधना करनी पड़ती है। आप तभी सरल बन सकते हैं जब आप अपने से घृणा को निकाल दें। इसलिए अघोर बनने की पहली शर्त यह है कि इसे अपने मन से घृणा को निकला देना होगा।

अघोर क्रिया व्यक्त को सहज बनाती है। मूलत: अघोरी उसे कहते हैं जिसके भीतर से अच्छे-बुरे, सुगंध-दुर्गंध, प्रेम-नफरत, ईष्र्या-मोह जैसे सारे भाव मिट जाए। जो किसी में फ़र्क़ न करे। जो शमशान जैसी डरावनी और घृणित जगह पर भी उसी सहजता से रह ले जैसे लोग घरों में रहते हैं। अघोरी लाशों से सहवास करता है और मानव के मांस का सेवन भी करता है। ऐसा करने के पीछे यही तर्क है कि व्यक्ति के मन से घृणा निकल जाए। जिनसे समाज घृणा करता है अघोरी उन्हें अपनाता है। लोग श्मशान, लाश, मुर्दे के मांस व कफ़न से घृणा करते हैं लेकिन अघोर इन्हें अपनाता है।

अघोर विद्या भी व्यक्ति को ऐसी शक्ति देती है जो उसे हर चीज़ के प्रति समान भाव रखने की शक्ति देती है। अघोरी तंत्र को बुरा समझने वाले शायद यह नहीं जानते हैं कि इस विद्या में लोक कल्याण की भावना है। अघोर विद्या व्यक्ति को ऐसा बनाती है जिसमें वह अपने-पराए का भाव भूलकर हर व्यक्ति को समान रूप से चाहता है, उसके भले के लिए अपनी विद्या का प्रयोग करता है। अघोर विद्या या अघोरी डरने के पात्र नहीं होते हैं, उन्हें समझने की दृष्टि चाहिए। अघोर विद्या के जानकारों का मानना है कि जो असली अघोरी होते हैं वे कभी आम दुनिया में सक्रिय भूमिका नहीं रखते, वे केवल अपनी साधना में ही व्यस्त रहते हैं। हां, कई बार ऐसा होता है कि अघोरियों के वेश में कोई ढोंगी, आपको ठग सकता है। अघोरियों की पहचान ही यही है कि वे किसी से कुछ मांगते नहीं है।

साधना की एक रहस्यमयी शाखा है अघोरपंथ। उनका अपना विधान है, अपनी अलग विधि है, अपना अलग अंदाज है जीवन को जीने का। अघोरपंथी साधक अघोरी कहलाते हैं। खाने-पीने में किसी तरह का कोई परहेज नहीं, रोटी मिले रोटी खा लें, खीर मिले खीर खा लें, बकरा मिले तो बकरा, और मानव शव यहां तक कि सड़ते पशु का शव भी बिना किसी वितृष्णा के खा लें।

अघोरी लोग गाय का मांस छोड़ कर बाकी सभी चीजों का भक्षण करते हैं। मानव मल से लेकर मुर्दे का मांस तक। अघोरपंथ में शायद श्मशान साधना का विशेष महत्व है, इसीलिए अघोरी शमशान वास करना ही पंसद करते हैं। श्मशान में साधना करना शीघ्र ही फलदायक होता है। श्मशान में साधारण मानव जाता ही नहीं, इसीलिए साधना में विध्न पड़ने का कोई प्रश्न नहीं। अघोरियों के बारे में मान्यता है कि बड़े ही जिद्दी होते हैं, अगर किसी से कुछ मागेंगे, तो लेकर ही जायेगे। क्रोधित हो जायेंगे तो अपना तांडव दिखाये बिना जायेंगे नहीं। एक अघोरी बाबा की आंखे लाल सुर्ख होती हैं मानों आंखों में प्रचंड क्रोध समाया हुआ हो। आंखों में जितना क्रोध दिखाई देता हैं बातों में उतनी शीतलता होती हैं जैसे आग और पानी का दुर्लभ मेल हो। गंजे सिर और कफ़न के काले वस्त्रों में लिपटे अघोरी बाबा के गले में धातु की बनी नरमुंड की माला लटकी होती हैं।

अघोरी श्मशान घाट में तीन तरह से साधना करते हैं - श्मशान साधना, शिव साधना, शव साधना। शव साधना के चरम पर मुर्दा बोल उठता है और आपकी इच्छाएँ पूरी करता है। इस साधना में आम लोगों का प्रवेश वर्जित रहता है। ऐसी साधनाएँ अक्सर तारापीठ के श्मशान, कामाख्या पीठ के श्मशान, त्र्यम्बकेश्वर और उज्जैन के चक्रतीर्थ के श्मशान में होती है।

शिव साधना में शव के ऊपर पैर रखकर खड़े रहकर साधना की जाती है। बाकी तरीके शव साधना की ही तरह होते हैं। इस साधना का मूल शिव की छाती पर पार्वती द्वारा रखा हुआ पाँव है। ऐसी साधनाओं में मुर्दे को प्रसाद के रूप में मांस और मदिरा चढ़ाया जाता है।

शव और शिव साधना के अतिरिक्त तीसरी साधना होती है श्मशान साधना, जिसमें आम परिवारजनों को भी शामिल किया जा सकता है। इस साधना में मुर्दे की जगह शवपीठ की पूजा की जाती है। उस पर गंगा जल चढ़ाया जाता है। यहाँ प्रसाद के रूप में भी मांस-मंदिरा की जगह मावा चढ़ाया जाता है।

अघोरियों के बारे में कई बातें प्रसिद्ध हैं जैसे कि वे बहुत ही हठी होते हैं, अगर किसी बात पर अड़ जाएं तो उसे पूरा किए बगैर नहीं छोड़ते। गुस्सा हो जाएं तो किसी भी हद तक जा सकते हैं। अधिकतर अघोरियों की आंखें लाल होती हैं, जैसे वो बहुत गुस्सा हो, लेकिन उनका मन उतना ही शांत भी होता है। काले वस्त्रों में लिपटे अघोरी गले में धातु की बनी नरमुंड की माला पहनते हैं।

अघोरी अक्सर श्मशानों में ही अपनी कुटिया बनाते हैं। जहां एक छोटी सी धूनी जलती रहती है। जानवरों में वो सिर्फ कुत्ते पालना पसंद करते हैं। उनके साथ उनके शिष्य रहते हैं, जो उनकी सेवा करते हैं। अघोरी अपनी बात के बहुत पक्के होते हैं, वे अगर किसी से कोई बात कह दें तो उसे पूरा करते हैं।

अघोरी दिन में सोने और रात को श्मशान में साधना करने वाले होते हैं। वे आम लोगों से कोई संपर्क नहीं रखते। ना ही ज्यादा बातें करते हैं। वे अधिकांश समय अपना सिद्ध मंत्र ही जाप करते रहते हैं।

आज भी ऐसे अघोरी और तंत्र साधक हैं जो पराशक्तियों को अपने वश में कर सकते हैं। ये साधनाएं श्मशान में होती हैं और दुनिया में सिर्फ चार श्मशान घाट ही ऐसे हैं जहां तंत्र क्रियाओं का परिणाम बहुत जल्दी मिलता है। ये हैं तारापीठ का श्मशान (पश्चिम बंगाल), कामाख्या पीठ (असम) काश्मशान, त्र्र्यम्बकेश्वर (नासिक) और उज्जैन (मध्य प्रदेश) का श्मशान।

बजरंग बाण का अमोघ विलक्षण प्रयोग

बजरंग बाण का अमोघ विलक्षण प्रयोग
बजरंग बाण
भौतिक मनोकामनाओं की पुर्ति के लिये बजरंग बाण का अमोघ विलक्षण प्रयोग 
अपने इष्ट कार्य की सिद्धि के लिए मंगल अथवा शनिवार का दिन चुन लें। हनुमानजी का एक चित्र या मूर्ति जप करते समय सामने रख लें। ऊनी अथवा कुशासन बैठने के लिए प्रयोग करें। अनुष्ठान के लिये शुद्ध स्थान तथा शान्त वातावरण आवश्यक है। घर में यदि यह सुलभ न हो तो कहीं एकान्त स्थान अथवा एकान्त में स्थित हनुमानजी के मन्दिर में प्रयोग करें।
हनुमान जी के अनुष्ठान मे अथवा पूजा आदि में दीपदान का विशेष महत्त्व होता है। पाँच अनाजों (गेहूँ, चावल, मूँग, उड़द और काले तिल) को अनुष्ठान से पूर्व एक-एक मुट्ठी प्रमाण में लेकर शुद्ध गंगाजल में भिगो दें। अनुष्ठान वाले दिन इन अनाजों को पीसकर उनका दीया बनाएँ। बत्ती के लिए अपनी लम्बाई के बराबर कलावे का एक तार लें अथवा एक कच्चे सूत को लम्बाई के बराबर काटकर लाल रंग में रंग लें। इस धागे को पाँच बार मोड़ लें। इस प्रकार के धागे की बत्ती को सुगन्धित तिल के तेल में डालकर प्रयोग करें। समस्त पूजा काल में यह दिया जलता रहना चाहिए। हनुमानजी के लिये गूगुल की धूनी की भी व्यवस्था रखें।

जप के प्रारम्भ में यह संकल्प अवश्य लें कि आपका कार्य जब भी होगा, हनुमानजी के निमित्त नियमित कुछ भी करते रहेंगे। अब शुद्ध उच्चारण से हनुमान जी की छवि पर ध्यान केन्द्रित करके बजरंग बाण का जाप प्रारम्भ करें। श्रीराम— से लेकर —सिद्ध करैं हनुमान तक एक बैठक में ही इसकी एक माला जप करनी है।

गूगुल की सुगन्धि देकर जिस घर में बगरंग बाण का नियमित पाठ होता है, वहाँ दुर्भाग्य, दारिद्रय, भूत-प्रेत का प्रकोप और असाध्य शारीरिक कष्ट आ ही नहीं पाते। समयाभाव में जो व्यक्ति नित्य पाठ करने में असमर्थ हो, उन्हें कम से कम प्रत्येक मंगलवार को यह जप अवश्य करना चाहिए।बजरंग बाण ध्यान

श्रीराम
अतुलित बलधामं हेमशैलाभदेहं।
दनुज वन कृशानुं, ज्ञानिनामग्रगण्यम्।।
सकलगुणनिधानं वानराणामधीशं।
रघुपति प्रियभक्तं वातजातं नमामि।।

दोहा
निश्चय प्रेम प्रतीति ते, विनय करैं सनमान।
तेहि के कारज सकल शुभ, सिद्ध करैं हनुमान।।

चौपाई
जय हनुमन्त सन्त हितकारी। सुनि लीजै प्रभु अरज हमारी।।
जन के काज विलम्ब न कीजै। आतुर दौरि महा सुख दीजै।।
जैसे कूदि सिन्धु वहि पारा। सुरसा बदन पैठि विस्तारा।।
आगे जाय लंकिनी रोका। मारेहु लात गई सुर लोका।।
जाय विभीषण को सुख दीन्हा। सीता निरखि परम पद लीन्हा।।
बाग उजारि सिन्धु मंह बोरा। अति आतुर यम कातर तोरा।।
अक्षय कुमार को मारि संहारा। लूम लपेटि लंक को जारा।।
लाह समान लंक जरि गई। जै जै धुनि सुर पुर में भई।।
अब विलंब केहि कारण स्वामी। कृपा करहु प्रभु अन्तर्यामी।।
जय जय लक्ष्मण प्राण के दाता। आतुर होई दुख करहु निपाता।।
जै गिरधर जै जै सुख सागर। सुर समूह समरथ भट नागर।।
ॐ हनु-हनु-हनु हनुमंत हठीले। वैरहिं मारू बज्र सम कीलै।।
गदा बज्र तै बैरिहीं मारौ। महाराज निज दास उबारों।।
सुनि हंकार हुंकार दै धावो। बज्र गदा हनि विलम्ब न लावो।।
ॐ ह्रीं ह्रीं ह्रीं हनुमंत कपीसा। ॐ हुँ हुँ हुँ हनु अरि उर शीसा।।
सत्य होहु हरि सत्य पाय कै। राम दुत धरू मारू धाई कै।।
जै हनुमन्त अनन्त अगाधा। दुःख पावत जन केहि अपराधा।।
पूजा जप तप नेम अचारा। नहिं जानत है दास तुम्हारा।।
वन उपवन जल-थल गृह माहीं। तुम्हरे बल हम डरपत नाहीं।।
पाँय परौं कर जोरि मनावौं। अपने काज लागि गुण गावौं।।
जै अंजनी कुमार बलवन्ता। शंकर स्वयं वीर हनुमंता।।
बदन कराल दनुज कुल घालक। भूत पिशाच प्रेत उर शालक।।
भूत प्रेत पिशाच निशाचर। अग्नि बैताल वीर मारी मर।।
इन्हहिं मारू, तोंहि शमथ रामकी। राखु नाथ मर्याद नाम की।।
जनक सुता पति दास कहाओ। ताकी शपथ विलम्ब न लाओ।।
जय जय जय ध्वनि होत अकाशा। सुमिरत होत सुसह दुःख नाशा।।
उठु-उठु चल तोहि राम दुहाई। पाँय परौं कर जोरि मनाई।।
ॐ चं चं चं चं चपल चलन्ता। ॐ हनु हनु हनु हनु हनु हनुमंता।।
ॐ हं हं हांक देत कपि चंचल। ॐ सं सं सहमि पराने खल दल।।
अपने जन को कस न उबारौ। सुमिरत होत आनन्द हमारौ।।
ताते विनती करौं पुकारी। हरहु सकल दुःख विपति हमारी।।
ऐसौ बल प्रभाव प्रभु तोरा। कस न हरहु दुःख संकट मोरा।।
हे बजरंग, बाण सम धावौ। मेटि सकल दुःख दरस दिखावौ।।
हे कपिराज काज कब ऐहौ। अवसर चूकि अन्त पछतैहौ।।
जन की लाज जात ऐहि बारा। धावहु हे कपि पवन कुमारा।।
जयति जयति जै जै हनुमाना। जयति जयति गुण ज्ञान निधाना।।
जयति जयति जै जै कपिराई। जयति जयति जै जै सुखदाई।।
जयति जयति जै राम पियारे। जयति जयति जै सिया दुलारे।।
जयति जयति मुद मंगलदाता। जयति जयति त्रिभुवन विख्याता।।
ऐहि प्रकार गावत गुण शेषा। पावत पार नहीं लवलेषा।।
राम रूप सर्वत्र समाना। देखत रहत सदा हर्षाना।।
विधि शारदा सहित दिनराती। गावत कपि के गुन बहु भाँति।।
तुम सम नहीं जगत बलवाना। करि विचार देखउं विधि नाना।।
यह जिय जानि शरण तब आई। ताते विनय करौं चित लाई।।
सुनि कपि आरत वचन हमारे। मेटहु सकल दुःख भ्रम भारे।।
एहि प्रकार विनती कपि केरी। जो जन करै लहै सुख ढेरी।।
याके पढ़त वीर हनुमाना। धावत बाण तुल्य बनवाना।।
मेटत आए दुःख क्षण माहिं। दै दर्शन रघुपति ढिग जाहीं।।
पाठ करै बजरंग बाण की। हनुमत रक्षा करै प्राण की।।
डीठ, मूठ, टोनादिक नासै। परकृत यंत्र मंत्र नहीं त्रासे।।
भैरवादि सुर करै मिताई। आयुस मानि करै सेवकाई।।
प्रण कर पाठ करें मन लाई। अल्प-मृत्यु ग्रह दोष नसाई।।
आवृत ग्यारह प्रतिदिन जापै। ताकी छाँह काल नहिं चापै।।
दै गूगुल की धूप हमेशा। करै पाठ तन मिटै कलेषा।।
यह बजरंग बाण जेहि मारे। ताहि कहौ फिर कौन उबारे।।शत्रु समूह मिटै सब आपै। देखत ताहि सुरासुर काँपै।।
तेज प्रताप बुद्धि अधिकाई। रहै सदा कपिराज सहाई।।
दोहा
प्रेम प्रतीतिहिं कपि भजै। सदा धरैं उर ध्यान।।
तेहि के कारज तुरत ही, सिद्ध करैं हनुमान।।
जय श्रीराम

ॐ श्री हनुमते नमः

सीताराम
ॐ श्री हनुमते नमः
इसका नित्य प्रातः और रात्री में सोते समय पांच पांच बार पाठ करने मात्र से ही समस्त शत्रुओं का नाशहोता है और शत्रुअपनी शत्रुता छोड़ कर मित्रता का व्यवहार करने लगते है.....................
"ॐ नमो भगवते महा - प्रतापाय
महा-विभूति - पतये , वज्र -देह
वज्र - काम वज्र - तुण्ड वज्र -नख
वज्र - मुख वज्र - बाहु वज्र - नेत्र वज्र -
दन्त वज्र - कर- कमठ भूमात्म -कराय ,
श्रीमकर - पिंगलाक्ष उग्र - प्रलय
कालाग्नि-रौद्र -वीर-
भद्रावतार पूर्ण - ब्रह्म परमात्मने ,
ऋषि - मुनि -वन्द्य -शिवास्त्र-
ब्रह्मास्त्र -वैष्णवास्त्र-
नारायणास्त्र -काल -शक्ति-
दण्ड - कालपाश- अघोरास्त्र-
निवारणाय , पाशुपातास्त्र -
मृडास्त्र- सर्वशक्ति-प रास्त-
कराय, पर -विद्या -निवारण
अग्नि -दीप्ताय , अथर्व - वेद-
ऋग्वेद- साम- वेद - यजुर्वेद-सिद्धि
-कराय , निराहाराय , वायु -वेग
मनोवेग श्रीबाल -
कृष्णः प्रतिषठानन्द -
करः स्थल -जलाग्नि - गमे मतोद् -
भेदि, सर्व - शत्रु छेदि - छेदि , मम
बैरीन् खादयोत्खादय ,
सञ्जीवन -पर्वतोच्चाटय ,
डाकिनी - शाक िनी - विध्वंस -
कराय महा - प्रतापाय निज -
लीला - प्रदर्शकाय निष्कलंकृत -
नन्द -कुमार - बटुक - ब्रह्मचारी-
निकुञ्जस्थ- भक्त - स्नेह-कराय
दुष्ट -जन - स्तम्भनाय सर्व - पाप-
ग्रह- कुमार्ग- ग्रहान् छेदय छेदय ,
भिन्दि - भिन्दि , खादय,
कण्टकान् ताडय ताडय मारय
मारय, शोषय शोषय, ज्वालय-
ज्वालय, संहारय -संहारय ,
( देवदत्तं ) नाशय नाशय , अति -
शोषय शोषय, मम सर्वत्र रक्ष
रक्ष, महा - पुरुषाय सर्व - दुःख -
विनाशनाय ग्रह - मण्डल- भूत-
मण्डल -प्रेत -मण्डल- पिशाच-मण्डल
उच्चाटन उच्चाटनाय अन्तर -
भवादिक -ज्वर - माहेश्वर -ज्वर-
वैष्णव- ज्वर- ब्रह्म -ज्वर- विषम -
ज्वर - शीत -ज्वर -वात- ज्वर- कफ-
ज्वर -एकाहिक- द्वाहिक-
त्र्याहिक -चातुर्थिक - अर्द्ध-
मासिक मासिक षाण्मासिक
सम्वत्सरादि - कर भ्रमि - भ्रमि ,
छेदय छेदय , भिन्दि भिन्दि ,
महाबल - पराक्रमाय महा -
विपत्ति - निवारणाय भक्र - जन-
कल्पना- कल्प- द्रुमाय- दुष्ट- जन-
मनोरथ - स्तम्भनाय क्लीं कृष्णाय
गोविन्दाय गोपी - जन-
वल्लभाय नमः।।
श्रीराम ज्योतिष सदन
 पंडित आशु बहुगुणा । Muzaffarnagar.(up) –PinCod-251001

सुख-शांति देने वाले होते है।आशीर्वाद

सुख-शांति देने वाले होते है।आशीर्वाद
विद्वानों, तपस्वियों और प्रशस्त आप्तजनों से ईष्टसिद्धि के लिए शक्ति और कल्याण के लिए आशीर्वाद प्राप्त करना, भारत की एक पुरानी परंपरा है।
आशीर्वाद एक प्रकार की शुभ कल्पना है। जैसे बुरे विचार का एक वातावरण दूर-दूर तक फैलता है। वैसे ही शुभ भावना की गुप्त विचार तरंगेें दूर-दूर तक फैलती हैं। और मनुष्य को तीव्रता से प्रभावित करती हैं। भलाई चाहने वाला यदि पुष्ट मस्तिष्क का व्यक्ति होता है। तो उसका गुप्त प्रभाव और भी तेज रहता है।
विद्वानों, तपस्वियों तथा प्रशस्त आप्तजनों का जीवन नि:स्वार्थ होता है। वे समाज का हित चिंतन ही किया करते हैं। मन और वचन से सबकी भलाई ही चाहते हैं। उन्हें किसी से व्यक्तिगत लाभ नहीं उठाना होता। इसलिए उनका शक्तिशाली मस्तिष्क प्रबल विचार तरंगें फेंका करता है। वे सबके विषय में शुभ कल्पनाएं ही किया करते हैं। फलस्वरूप उनके आशीर्वाद में अद्भुत फलदायिनी शक्ति होती है।
आशीर्वाद में मन की उज्जवलता, शुभचिंतन, शुभकल्पना ही फलदायक होती है। जिसका मन उज्जवल विचारों से परिपूर्ण है। वह सर्वत्र प्रकाश ही प्रकाश फैलाएगा। उससे आशा और उत्साह ही बढ़ेंगे। आशीर्वाद पाकर हमारा चेहरा आंतरिक खुशी से भर जाता है। मस्तक तेजोमय हो उठता है। हमारा सोया हुआ आत्मविश्वास जागृत हो उठता है।
प्रत्येक आशीर्वाद एक प्रकार का शुभ आत्मसंकेत अथवा सजेशन है। एक उत्पादक दिशा में वृद्धि का प्रयत्न है। जिस प्रकार लोहे का बना हुआ कवच मनुष्य के शरीर की रक्षा करता है। और युद्ध में बाहर से होने वाले आक्रमणों को रोकता रहता है। कवच पहनकर लड़ने वाला योद्धा बचा रहता है। उसी प्रकार आशीर्वाद एक गुप्त मानसिक कवच है। विद्वानों और तपस्वियों के दिए हुए इस गुप्त मानसिक कवच को धारण करने वाला योद्धा नए उत्साह और साहस से कर्तव्यपथ पर अग्रसर होता है।
आशीर्वाद हमें शक्ति का सही दिशा में उपयोग करना सिखाता है। हम तभी आशीर्वाद के लिए जाते हैं। जब हम अपने उद्देश्य और कर्म की पवित्रता में पूर्ण विश्वास करते हैं। विद्वान और तपस्वी, सुपात्रों को उच्च उद्देश्य की प्राप्ति में ही आशीर्वाद देते हैं। वे हमारी शक्ति के सद्व्यय में सहायक होते हैं।
सारी शक्तियां अदृश्य होती हैं। वायु अदृश्य है, विद्युत अदृश्य है। आत्मा अदृश्य है। इसी प्रकार विद्वानों के आशीर्वाद की शक्ति भी अदृश्य है। विवाहों, यज्ञों, युद्धों तथा महत्वपूर्ण अवसरों पर हमें विद्वानों, तपस्वियों तथा प्रशस्त आप्तजनों के आशीर्वाद अवश्य ग्रहण करने चाहिए।
आशीर्वाद एक गुप्त मानसिक कवच की तरह सदा हमारे साथ रहता है। हमें गुप्त रूप से उससे बड़ी प्रेरणा मिलती रहती है। वह हमारी शक्ति का छिपा हुआ एक शक्ति केंद्र है। अत: हमें महान कार्य करने से पूर्व आशीर्वाद ग्रहण करना चाहिए।

श्री महाकाल कवच स्तोत्र

श्री महाकाल कवच स्तोत्र 

ॐ ह्रं शिर: पातु मे काल: ललाटे ह्रीं सदा मम 
ह्रं कारकं प्रतीच्यां मे बीजद्वयस्वरुपिणी !! 

ह्रीं पातु लोचनद्वंदं मुखं ह्रींबीजरुपिणी ! 
ह्रींकारकं कण्ठदेशे ह्रीं पातु स्कंधयोर्मम !! 

महाकाल: सदा पातु भुजौ सव्ये नसौ मम ! 
ह्रीकारं ह्रदयं पातु ह्रं मेs व्यादुदरं सदा !! 

ह्रीं नाभिं पातु सततं देवी ह्रींकाररुपिणी ! 
अव्यान्मे लिंगदेशं च ह्रीं रक्षेद गुह्यदेशके !! 

कूर्चयुग्मं पातु पादौ स्वाहा पादतलं मम ! 
श्रीषोडशाक्षर: पातु सर्वांगे मम सर्वदा !! 

अंतर्वन्हिश्च मां पातु देवदत्तश्च भैरव: ! 
नगलिंगामृतप्रीत: सर्वसंधिषु रक्षतु !! 

महोग्रे मां सदा पातु ममेंद्रियसमूहकम ! 
शिवो ममेंद्रियार्थेषु रक्षयेद दक्षिणेष्वपि !! 

महाकाल: पश्चिमेsव्याद दक्षिणे देवदत्तक: 
भगलिंगामृतं प्रीतो भगलिंगस्वरुपक: !! 

उदीच्यामूर्ध्वग: पातु पूर्वे संहारभैरव: ! 
दिगंबर: श्मशानस्थ: पातु दिक्षु विदिक्षु च !! 

!! इति श्रीरुद्रयामले तंत्रे विश्वमंगलं नाम महाकाल कवचं संपूर्णम !!

माँ कामाख्या कवच स्तोत्र हिंदी अर्थ सहित ।

माँ कामाख्या कवच स्तोत्र हिंदी अर्थ सहित ।

आज हर व्यक्ति उन्नति, यश, वैभव, कीर्ति, धन-संपदा चाहता है वह भी बिना बाधाओं के। मां कामाख्या देवी का कवच पाठ करने से सभी बाधाओं से मुक्ति मिल जाती है। आप भी कवच का नित्य पाठ कर अपनी मनोवांछित अभिलाषा पूरी कर सकते हैं।नारद उवाचकवच कीदृशं देव्या महाभयनिवर्तकम।कामाख्यायास्तु तद्ब्रूहि साम्प्रतं मे महेश्वर।।नारद जी बोले-महेश्वर!महाभय को दूर करने वाला भगवती कामाख्या कवच कैसा है, वह अब हमें बताएं।

महादेव उवाच

शृणुष्व परमं गुहयं महाभयनिवर्तकम्।कामाख्याया: सुरश्रेष्ठ कवचं सर्व मंगलम्।।
यस्य स्मरणमात्रेण योगिनी डाकिनीगणा:।
राक्षस्यो विघ्नकारिण्यो याश्चान्या विघ्नकारिका:।।क्षुत्पिपासा तथा निद्रा तथान्ये ये च विघ्नदा:।दूरादपि पलायन्ते कवचस्य प्रसादत:।।
निर्भयो जायते मत्र्यस्तेजस्वी भैरवोयम:।समासक्तमनाश्चापि जपहोमादिकर्मसु।
भवेच्च मन्त्रतन्त्राणां निर्वघ्नेन सुसिद्घये।। 

महादेव जी बोले-सुरश्रेष्ठ! भगवती कामाख्या का परम गोपनीय महाभय को दूर करने वाला तथा सर्वमंगलदायक वह कवच सुनिये, जिसकी कृपा तथा स्मरण मात्र से सभी योगिनी, डाकिनीगण, विघ्नकारी राक्षसियां तथा बाधा उत्पन्न करने वाले अन्य उपद्रव, भूख, प्यास, निद्रा तथा उत्पन्न विघ्नदायक दूर से ही पलायन कर जाते हैं। इस कवच के प्रभाव से मनुष्य भय रहित, तेजस्वी तथा भैरवतुल्य हो जाता है। जप, होम आदि कर्मों में समासक्त मन वाले भक्त की मंत्र-तंत्रों में सिद्घि निर्विघ्न हो जाती है।।

मां कामाख्या देवी कवच

ओं प्राच्यां रक्षतु मे तारा कामरूपनिवासिनी।आग्नेय्यां षोडशी पातु याम्यां धूमावती स्वयम्।।नैर्ऋत्यां भैरवी पातु वारुण्यां भुवनेश्वरी।
वायव्यां सततं पातु छिन्नमस्ता महेश्वरी।। 
कौबेर्यां पातु मे देवी श्रीविद्या बगलामुखी।
ऐशान्यां पातु मे नित्यं महात्रिपुरसुन्दरी।। 
ऊध्र्वरक्षतु मे विद्या मातंगी पीठवासिनी।सर्वत: पातु मे नित्यं कामाख्या कलिकास्वयम्।।
ब्रह्मरूपा महाविद्या सर्वविद्यामयी स्वयम्।
शीर्षे रक्षतु मे दुर्गा भालं श्री भवगेहिनी।। 
त्रिपुरा भ्रूयुगे पातु शर्वाणी पातु नासिकाम।
चक्षुषी चण्डिका पातु श्रोत्रे नीलसरस्वती।। 
मुखं सौम्यमुखी पातु ग्रीवां रक्षतु पार्वती।
जिव्हां रक्षतु मे देवी जिव्हाललनभीषणा।। 
वाग्देवी वदनं पातु वक्ष: पातु महेश्वरी।
बाहू महाभुजा पातु कराङ्गुली: सुरेश्वरी।। 
पृष्ठत: पातु भीमास्या कट्यां देवी दिगम्बरी।
उदरं पातु मे नित्यं महाविद्या महोदरी।। 
उग्रतारा महादेवी जङ्घोरू परिरक्षतु।
गुदं मुष्कं च मेदं च नाभिं च सुरसुंदरी।। 
पादाङ्गुली: सदा पातु भवानी त्रिदशेश्वरी।रक्तमासास्थिमज्जादीनपातु देवी शवासना।। 
महाभयेषु घोरेषु महाभयनिवारिणी।
पातु देवी महामाया कामाख्यापीठवासिनी।। 
भस्माचलगता दिव्यसिंहासनकृताश्रया।
पातु श्री कालिकादेवी सर्वोत्पातेषु सर्वदा।। 
रक्षाहीनं तु यत्स्थानं कवचेनापि वर्जितम्।
तत्सर्वं सर्वदा पातु सर्वरक्षण कारिणी।। 
इदं तु परमं गुह्यं कवचं मुनिसत्तम।
कामाख्या भयोक्तं ते सर्वरक्षाकरं परम्।। 
अनेन कृत्वा रक्षां तु निर्भय: साधको भवेत।
न तं स्पृशेदभयं घोरं मन्त्रसिद्घि विरोधकम्।।
जायते च मन: सिद्घिर्निर्विघ्नेन महामते।
इदं यो धारयेत्कण्ठे बाहौ वा कवचं महत्।। 
अव्याहताज्ञ: स भवेत्सर्वविद्याविशारद:।
सर्वत्र लभते सौख्यं मंगलं तु दिनेदिने।। 
य: पठेत्प्रयतो भूत्वा कवचं चेदमद्भुतम्।
स देव्या: पदवीं याति सत्यं सत्यं न संशय:।। 

हिन्दी में अर्थ

कामरूप में निवास करने वाली भगवती तारा पूर्व दिशा में, पोडशी देवी अग्निकोण में तथा स्वयं धूमावती दक्षिण दिशा में रक्षा करें।। 1।। 

नैऋत्यकोण में भैरवी, पश्चिम दिशा में भुवनेश्वरी और वायव्यकोण में भगवती महेश्वरी छिन्नमस्ता निरंतर मेरी रक्षा करें।। 2।। 

उत्तरदिशा में श्रीविद्यादेवी बगलामुखी तथा ईशानकोण में महात्रिपुर सुंदरी सदा मेरी रक्षा करें।। 3।। 

भगवती कामाख्या के शक्तिपीठ में निवास करने वाली मातंगी विद्या ऊध्र्वभाग में और भगवती कालिका कामाख्या स्वयं सर्वत्र मेरी नित्य रक्षा करें।। 4।।

ब्रह्मरूपा महाविद्या सर्व विद्यामयी स्वयं दुर्गा सिर की रक्षा करें और भगवती श्री भवगेहिनी मेरे ललाट की रक्षा करें।। 5।। 

त्रिपुरा दोनों भौंहों की, शर्वाणी नासिका की, देवी चंडिका आँखों की तथा नीलसरस्वती दोनों कानों की रक्षा करें।। 6।। 

भगवती सौम्यमुखी मुख की, देवी पार्वती ग्रीवा की और जिव्हाललन भीषणा देवी मेरी जिव्हा की रक्षा करें।। 7।।

वाग्देवी वदन की, भगवती महेश्वरी वक्ष: स्थल की, महाभुजा दोनों बाहु की तथा सुरेश्वरी हाथ की, अंगुलियों की रक्षा करें।। 8।। 

भीमास्या पृष्ठ भाग की, भगवती दिगम्बरी कटि प्रदेश की और महाविद्या महोदरी सर्वदा मेरे उदर की रक्षा करें।।9।। 

महादेवी उग्रतारा जंघा और ऊरुओं की एवं सुरसुन्दरी गुदा, अण्डकोश, लिंग तथा नाभि की रक्षा करें।।10।। 

भवानी त्रिदशेश्वरी सदा पैर की, अंगुलियों की रक्षा करें और देवी शवासना रक्त, मांस, अस्थि, मज्जा आदि की रक्षा करें।।11।। 

भगवती कामाख्या शक्तिपीठ में निवास करने वाली, महाभय का निवारण करने वाली देवी महामाया भयंकर महाभय से रक्षा करें। भस्माचल पर स्थित दिव्य सिंहासन विराजमान रहने वाली श्री कालिका देवी सदा सभी प्रकार के विघ्नों से रक्षा करें।।12।। 

जो स्थान कवच में नहीं कहा गया है, अतएव रक्षा से रहित है उन सबकी रक्षा सर्वदा भगवती सर्वरक्षकारिणी करे।। 13।। 

मुनिश्रेष्ठ! मेरे द्वारा आप से महामाया सभी प्रकार की रक्षा करने वाला भगवती कामाख्या का जो यह उत्तम कवच है वह अत्यन्त गोपनीय एवं श्रेष्ठ है।।14।। 

इस कवच से रहित होकर साधक निर्भय हो जाता है। मन्त्र सिद्घि का विरोध करने वाले भयंकर भय उसका कभी स्पर्श तक नहीं करते हैं।। 15।। 

महामते! जो व्यक्ति इस महान कवच को कंठ में अथवा बाहु में धारण करता है उसे निर्विघ्न मनोवांछित फल मिलता है।। 16।। 

वह अमोघ आज्ञावाला होकर सभी विद्याओं में प्रवीण हो जाता है तथा सभी जगह दिनोंदिन मंगल और सुख प्राप्त करता है। जो जितेन्द्रिय व्यक्ति इस अद्भुत कवच का पाठ करता है वह भगवती के दिव्य धाम को जाता है। यह सत्य है, इसमें संशय नहीं है।। 17।।
ॐ रां रामाय नमः
श्री राम ज्योतिष सदन 
भारतीय ज्योतिष, अंक ज्योतिष
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मुजफ्फरनगर UP

Tuesday 16 November 2021

श्रीबटुक_भैरव दुखहरण दशनाम स्तोत्र

श्रीबटुक_भैरव दुखहरण दशनाम स्तोत्र 
ॐ भ्रं कपाली कुंडली भीमो भैरवो भीमविक्रम: l
व्यालोपवीती कवची शूली शूर शिवप्रिय: ll
एतानि दशनामानि प्रातरुत्थाय य: पठेत l
भैरवी यातना न स्याद भयं क्वापि न जायते भ्रं ॐ।।
प्रातःकाल उठकर इन दस नामों के पाठ से सभी भय समाप्त होते हैं। 
तांत्रोक्त_भैरव_कवच 
श्री भैरव जी की कृपा प्राप्ति हेतु संकल्प लेकर पंचोपचार पूजन करें, सात्त्विक भोग अर्पित करें, फिर 12, 21, 27, 41, 54, 108 पाठ करें। कवच पाठ से शत्रु बाधा, तंत्र बाधा, रोग बाधा, इतर आत्मा बाधा, आपदा नाश होता है। यश, मान, प्रतिष्ठा, कार्यसिद्धि प्राप्त होती है। 

श्रीभैरव जी की उपासना में कुत्ते को भरपेट मीठा भोग प्रसाद अवश्य खिलाना चाहिए।
उपासना हेतु कृष्ण अष्टमी, रविवार प्रशस्त हैं। 
अथ: भैरव कवच पाठ 
ॐ सहस्त्रारे महाचक्रे कर्पूरधवले गुरु: 
पातु मां बटुको देवो भैरव: सर्वकर्मसु !! 
पूर्वस्याम असितांगो मां दिशि रक्षतु सर्वदा 
आग्नेयां च रुरु: पातु दक्षिणे चण्डभैरव: !! 
नैऋत्यां क्रोधन: पातु उन्मत्त: पातु पश्चिमे 
वायव्यां मां कपाली च नित्यं पायात सुरेश्वर:  !! 
भीषणो भैरव: पातु उत्तरस्यां तु सर्वदा 
संहारभैरव: पायात ईशान्यां च महेश्वर: !! 
उर्ध्वं पातु विधाता च पाताले नंदको विभु: 
सद्योजातस्तु मां पायात सर्वतो देवसेवित: !! 
वामदेवो वनांते च वने घोरस्तथावतु ! 
जले तत्पुरुष: पातु स्थले ईशान एव च !! 
डाकिनी पुत्रक: पातु पुत्रान मे सर्वत: प्रभु: 
हाकिनी पुत्रक: पातु दारास्तु लाकिनी सुत: !! 
पातु शाकिनीका पुत्र: सैन्यं वै कालभैरव: 
मालिनी पुत्रक: पातु पशूनश्वान गजांस्तथा !! 
महाकालोsवतु क्षेत्रं श्रियं मे सर्वतो गिरा 
वाद्यं वाद्यप्रिय: पातु भैरवो नित्यसंपदा !!
!! इति तांत्रोक्त भैरव कवच स्तोत्रम !!
शुभप्रभात:-------
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Monday 15 November 2021

भैरव जी के प्रादुर्भाव की कथा -

भैरव जी के प्रादुर्भाव की कथा -
एक बार भगवान शिव के क्रोधित होने पर काल भैरव की उत्पत्ति हुई। इसलिए भैरव भगवान शिव के स्वरूप हैं। मार्गशीर्ष कृष्ण अष्टमी को भगवान भैरव का प्रादुर्भाव हुआ। काल भैरव ने ब्रह्माजी के उस मस्तक को अपने नाखून से काट दिया जिससे उन्होंने महादेव शिव का आपमान व अनादर किया। तब ब्रह्म हत्या के पाप को को लेकर हुई आकाशवाणी के तहत ही भगवान काल भैरव काशी में स्थापित हो गए थे। मध्यप्रदेश के उज्जैन में भी कालभैरव के ऐतिहासिक मंदिर है, जो बहुत महत्व का है। पुरानी धार्मिक मान्यता के अनुसार भगवान कालभैरव को यह वरदान है कि भगवान शिव की पूजा से पहले उनकी पूजा होगी। इसलिए काशी अथवा उज्जैन दर्शन के समय कालभैरव के मंदिर जाना अनिवार्य है। तभी महाकाल की पूजा का लाभ आपको मिल पाता है। भगवान भैरव के तीन प्रमुख रूप हैं- बटुक भैरव, महाकाल भैरव और स्वर्णाकर्षण भैरव। इनमें से भक्तगण बटुक भैरव की ही सर्वाधिक पूजा करते हैं। तंत्रशास्त्र में अष्ट भैरव का उल्लेख भी मिलता है- असितांग भैरव, रूद्र भैरव, चंद्र भैरव, क्रोध भैरव, उन्मत भैरव, कपाल भैरव, भीषण भैरव और संहार भैरव। भगवान भैरव की साधना में ध्यान का अधिक महत्व है। इसी को ध्यान में रखकर सात्विक, राजसिक व तामसिक स्वरूपों का ध्यान किया जाता है।
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Sunday 14 November 2021

श्रीयंत्र दिव्य पूजा-उपासना

 श्रीयंत्र दिव्य पूजा-उपासना 
 रहस्यमय श्रीविद्या के यंत्र स्वरूप को ‘श्रीयंत्र’ या ‘श्रीचक्र’ कहते हैं। यह एक मात्र ऐसा यंत्र है, जो समस्त ब्रह्मांड का प्रतीक है। 'श्री' शब्द का अर्थ लक्ष्मी, सरस्वती, शोभा, संपदा, विभूति से किया जाता है। यह यंत्र ‘श्री विद्या’ से संबंध रखता है। साधक को लक्ष्मी़, संपदा, विद्या आदि की ‘श्री’ देने वाली विद्या को ही ‘श्रीविद्या’ कहा जाता है। श्रीयंत्र को यंत्रराज भी कहा जाता है, इसे यंत्रों में सर्वोत्तम माना गया है। कलियुग में कामधेनु के समान ही है जो साधक को पूर्ण मान-सम्मान और प्रतिष्ठा प्रदान करता है। श्री यंत्र को कल्पवृक्ष भी कहा गया है, जिसके सान्निध्य में सारी कामनाएं पूर्ण होती हैं। शास्त्रों में कहा गया है कि श्रीयंत्र की अद्भुत शक्ति के कारण इसके दर्शन मात्र से ही लाभ मिलना प्रारम्भ हो जाता है।

     जन्मकुंडली में मौजूद केमद्रुम, दरिद्र, शकट, ऋण, निर्भाग्य, काक आदि विभिन्न कुयोगों को दूर करने में श्रीयंत्र अत्यंत लाभकारी है। यह यंत्र मनुष्य को धर्म, अर्थ, काम व मोक्ष देने वाला है। इसकी कृपा से मनुष्य को अष्ट सिद्धि व नौ निधियों की प्राप्ति हो सकती है। श्री यंत्र के पूजन से सभी रोगों का शमन होता है और शरीर की कांति निर्मल होती है। इसकी पूजा से शक्ति स्तंभन होता है व पंचतत्वों पर विजय प्राप्त होती है।
श्रीयंत्र की कृपा से मनुष्य को धन, समृद्धि, यश, कीर्ति, ऐश्वर्य आदि की प्राप्ति होती है। श्री यंत्र के पूजन से रुके हुए कार्य बनते हैं। श्री यंत्र की श्रद्धापूर्वक नियमित रूप से पूजा करने से दुःख दारिद्र्य का नाश होता है। श्री यंत्र की साधना उपासना से साधक की शारीरिक और मानसिक शक्ति पुष्ट होती है। इस यंत्र की पूजा से दस महाविद्याओं की कृपा भी प्राप्त होती है। श्री यंत्र की साधना से आर्थिक उन्नति होती है और व्यापार में सफलता मिलती है।

      श्रीयंत्र अपने आप में रहस्यपूर्ण है। यह सात त्रिकोणों से निर्मित है। मध्य बिन्दु-त्रिकोण के चतुर्दिक् अष्ट कोण हैं। उसके बाद दस कोण तथा सबसे ऊपर चतुर्दश कोण से यह श्रीयंत्र निर्मित होता है। यंत्र ज्ञान में इसके बारे में स्पष्ट किया गया है। 

चतुर्भिः शिवचक्रे शक्ति चके्र पंचाभिः।
नवचक्रे संसिद्धं श्रीचक्रं शिवयोर्वपुः॥

श्रीयंत्र के चतुर्दिक् तीन परिधियां खींची जाती हैं। ये अपने आप में तीन शक्तियों की प्रतीक हैं। इसके नीचे षोडश पद्मदल होते हैं तथा इन षोडश पद्मदल के भीतर अष्टदल का निर्माण होता है, जो कि अष्ट लक्ष्मी का परिचायक है। अष्टदल के भीतर चतुर्दश त्रिकोण निर्मित होते हैं, जो चतुर्दश शक्तियों के परिचायक हैं तथा इसके भीतर दस त्रिकोण स्पष्ट देखे जा सकते हैं, जो दस सम्पदा के प्रतीक हैं। दस त्रिकोण के भीतर अष्ट त्रिकोण निर्मित होते हैं, जो अष्ट देवियों के सूचक कहे गए हैं। इसके भीतर त्रिकोण होता है, जो लक्ष्मी का त्रिकोण माना जाता है। इस लक्ष्मी के त्रिकोण के भीतर एक बिन्दु निर्मित होता है, जो भगवती का सूचक है। साधक को इस बिन्दु पर स्वर्ण सिंहासनारूढ़ भगवती लक्ष्मी की कल्पना करनी चाहिए।

इस प्रकार से श्रीयंत्र २८८२ शक्तियों अथवा देवियों का सूचक है और श्री यंत्र की पूजा इन सारी शक्तियों की समग्र पूजा है।

श्रीयंत्र का रूप ज्योमितीय होता है। इसकी संरचना में बिंदु, त्रिकोण या त्रिभुज, वृत्त, अष्टकमल का प्रयोग होता है। तंत्र के अनुसार श्री यंत्र का निर्माण दो प्रकार से किया जाता है- एक अंदर के बिंदु से शुरू कर बाहर की ओर जो सृष्टि-क्रिया निर्माण कहलाता है और दूसरा बाहर के वृत्त से शुरू कर अंदर की ओर जो संहार-क्रिया निर्माण कहलाता है।

श्री यंत्र में ९ त्रिकोण या त्रिभुज होते हैं जो निराकार शिव की ९ मूल प्रकृतियों के द्योतक हैं। 
मुख्यतः दो प्रकार के श्रीयंत्र बनाए जाते हैं – 
सृष्टि क्रम और संहार क्रम। 
सृष्टि क्रम के अनुसार बने श्रीयंत्र में ४ ऊध्वर्मुखी त्रिकोण होते हैं जिन्हें शिव त्रिकोण कहते हैं। ये ५ ज्ञानेंद्रियों के प्रतीक हैं। ५ अधोमुखी त्रिकोण होते हैं जिन्हें शक्ति त्रिकोण कहा जाता है। ये प्राण, मज्जा, शुक्र व जीवन के द्योतक हैं। 

संहार क्रम के अनुसार बने श्रीयंत्र में ४ ऊर्ध्वमुखी त्रिकोण शिव त्रिकोण होते हैं और ५ अधोमुखी त्रिकोण शक्ति त्रिकोण होते हैं।

श्री यंत्र में ४ त्रिभुजों का निर्माण इस प्रकार से किया जाता है कि उनसे मिलकर ४३ छोटे त्रिभुज बन जाते हैं जो ४३ देवताओं का प्रतिनिधित्व करते हैं। मध्य के सबसे छोटे त्रिभुज के बीच एक बिंदु होता है जो समाधि का सूचक है अर्थात यह शिव व शक्ति का संयुक्त रूप है। इसके चारों ओर जो ४३ त्रिकोण बनते हैं वे योग मार्ग के अनुसार यम १०, नियम १०, आसन ८, प्रत्याहार ५, धारणा ५, प्राणायाम ३, ध्यान २ के स्वरूप हैं।
हम कुछ और विस्तार से समझाने का प्रयास करते हैं।
इन त्रिभुजों के बाहर की तरफ ८ कमल दल का समूह होता है जिसके चारों ओर १६ दल वाला कमल समूह होता है। इन सबके बाहर भूपुर है। मनुष्य शरीर की भांति ही श्री यंत्र की संरचना में भी ९ चक्र होते हैं जिनका क्रम अंदर से बाहर की ओर इस प्रकार है- केंद्रस्थ बिंदु फिर त्रिकोण जो सर्वसिद्धिप्रद कहलाता है। फिर ८ त्रिकोण सर्वरक्षाकारी हैं। उसके बाहर के १० त्रिकोण सर्व रोगनाशक हैं। फिर १० त्रिकोण सर्वार्थ सिद्धि के प्रतीक हैं। उसके बाहर १४ त्रिकोण सौभाग्यदायक हैं। फिर ८ कमलदल का समूह दुःख, क्षोभ आदि के निवारण का प्रतीक है। उसके बाहर १६ कमलदल का समूह इच्छापूर्ति कारक है। अंत में सबसे बाहर वाला भाग त्रैलोक्य मोहन के नाम से जाना जाता है। इन ९ चक्रों की अधिष्ठात्री ९ देवियों के नाम इस प्रकार हैं – १. त्रिपुरा २. त्रिपुरेशी ३. त्रिपुरसुंदरी ४. त्रिपुरवासिनी, ५. त्रिपुरात्रि, ६. त्रिपुरामालिनी, ७. त्रिपुरसिद्धा, ८. त्रिपुरांबा और ९. महात्रिपुरसुंदरी।

श्रीयंत्र का निर्माण और उसकी प्राण प्रतिष्ठा ही श्रीयंत्र के प्रभावशाली होने का सबसे बड़ा स्रोत है। वैसे तो आजकल सभी जगह श्रीयंत्र उपलब्ध है परन्तु उनकी विश्वसनियता नहीं है। श्रीयंत्र निर्माण अपने आप में जटिल प्रक्रिया है, और जब तक सही रूप में यंत्र उत्कीर्ण नहीं होता, तब तक उससे सफलता भी संभव नहीं। मंत्र सिद्ध प्राण प्रतिष्ठित श्रीयंत्र के स्थापन से साधक शीघ्र लाभ प्राप्ति की स्थिति को प्राप्त करता है। श्रीयंत्र चाहे ताम्र पत्र पर उत्कीर्ण हो, चाहे पारद निर्मित श्रीयंत्र हो उसके प्राण प्रतिष्ठित होने पर ही उसका लाभ प्राप्त किया जा सकता है।

श्रीयंत्र निर्माण की जटिल प्रक्रिया से यह तो स्पष्ट हो ही जाता है कि आप जब भी घर में श्रीयंत्र स्थापित करें तो प्राण प्रतिष्ठित श्रीयंत्र ही पूर्ण विधि-विधान के साथ स्थापित करें।

साधना में सफलता हेतु गुरु पूजन आवश्यक है। अपने सामने स्थापित बाजोट पर गुरु चित्र/विग्रह/यंत्र/पादुका स्थापित कर लें और हाथ जोड़कर 

गुरु का ध्यान करें :-
गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः।
गुरुः साक्षात् पर ब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः॥

इसके पश्चात् चावलों की ढेरी बनाकर उस पर एक सुपारी गणपति स्वरूप स्थापित कर लें। गणपति का पंचोपचार पूजन कुंकुम, अक्षत, चावल, पुष्प, इत्यादि से करें।
बाजोट पर एक ताम्रपात्र में पुष्पों का आसन देकर श्रीयंत्र (ताम्र/पारद या जिस स्वरूप में हो) स्थापित कर लें।इसके बाद एकाग्रता पूर्वक श्री यंत्र का ध्यान करें –

दिव्या परां सुधवलारुण चक्रयातां
मूलादिबिन्दु परिपूर्ण कलात्मकायाम।
स्थित्यात्मिका शरधनुः सुणिपासहस्ता
श्री चक्रतां परिणतां सततां नमामि॥

श्री यंत्र ध्यान के पश्चात् श्रीयंत्र प्रार्थना करनी चाहिए। यदि नित्य इस प्रार्थना का १०८ बार उच्चारण किया जाए, तो अपने आप में अत्यन्त लाभप्रद देखा गया है –

धनं धान्यं धरां हर्म्यं कीर्तिर्मायुर्यशः श्रियम्।
तुरगान् दन्तिनः पुत्रान् महालक्ष्मीं प्रयच्छ मे॥

ध्यान-प्रार्थना के पश्चात् श्रीयंत्र पर पुष्प अर्पित करते हुए निम्नलिखित मंत्रों का उच्चारण करें –

ॐ मण्डूकाय नमः। ॐ कालाग्निरुद्राय नमः। ॐ मूलप्रकृत्यै नमः। ॐ आधारशक्तयै नमः। ॐ कूर्माय नमः। ॐ शेषाय नमः। ॐ वाराहाय नमः। ॐ पृथिव्यै नमः। ॐ सुधाम्बुधये नमः। ॐ रत्नद्वीपाय नमः। ॐ भैरवे नमः। ॐ नन्दनवनाय नमः। ॐ कल्पवृक्षाय नमः। ॐ विचित्रानन्दभूम्यै नमः। ॐ रत्नमन्दिराय नमः। ॐ रत्नवेदिकायै नमः। ॐ धर्मवारणाय नमः। ॐ रत्न सिंहासनाय नमः।

कमलगट्टे की माला से लक्ष्मी बीज मंत्र की एक माला मंत्र जप करें।

 "ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद श्रीं ह्रीं श्रीं ॐ महालक्ष्म्यै नमः॥  "

सबसे प्रभावपूर्ण एवं सर्वाधिक लाभप्रद लक्ष्मी बीज मंत्र है। यह बीज मंत्र सभी साधकों के लिए अनुकूल सिद्ध होता है। माँ लक्ष्मी से सम्बन्धित ग्रंथों के अनुसार यदि मंत्रसिद्ध श्रीयंत्र के सामने ‘ कमलगट्टे की माला ’ से नित्य लक्ष्मी बीज मंत्र का एक माला मंत्र जप किया जाए, तो आश्चर्यजनक प्रभाव देखने को मिलता है।
मंत्र जप के पश्चात् साधक लक्ष्मी आरती सम्पन्न कर, अपनी मनोकामना प्रकट करें।

श्रीविद्या उपासनामे भगवती के चार स्वरूप का यजन होताहै है । श्री बालात्रिपुर सुंदरी = धर्म , श्री महात्रिपुर सुंदरी = अर्थ , श्री राज राजेश्वरी = काम , श्री ललितात्रिपुर सुंदरी = मोक्ष दायिनी है । इस तरह धर्म , अर्थ , काम और मोक्ष ये चतुर्विद कामना सिद्धि केलिए श्रीविद्या उपासना श्रेष्ठ मार्ग है । श्री यंत्र पूरे ब्रह्मांड का चोकक्स स्थान और उनके देवी देवताओंके स्थान का पतिक है । एक ही यंत्रमे २८८२ देवी देवताओं की एक साथ पूजा होती है । इसलिए श्रीयंत्र की पूजा के बाद कोई पूजा बाकी नही रहे जाती । शिव और शिवा का उनके सभी २८८२ आवरण देवताओ सहित विधिवत पूजन मतलब श्री यंत्र पूजन । 
ॐ श्री मात्रेय नमः

भैरव जी के प्रादुर्भाव की कथा -

भैरव जी के प्रादुर्भाव की कथा -
एक बार भगवान शिव के क्रोधित होने पर काल भैरव की उत्पत्ति हुई। इसलिए भैरव भगवान शिव के स्वरूप हैं। मार्गशीर्ष कृष्ण अष्टमी को भगवान भैरव का प्रादुर्भाव हुआ। काल भैरव ने ब्रह्माजी के उस मस्तक को अपने नाखून से काट दिया जिससे उन्होंने महादेव शिव का आपमान व अनादर किया। तब ब्रह्म हत्या के पाप को को लेकर हुई आकाशवाणी के तहत ही भगवान काल भैरव काशी में स्थापित हो गए थे। मध्यप्रदेश के उज्जैन में भी कालभैरव के ऐतिहासिक मंदिर है, जो बहुत महत्व का है। पुरानी धार्मिक मान्यता के अनुसार भगवान कालभैरव को यह वरदान है कि भगवान शिव की पूजा से पहले उनकी पूजा होगी। इसलिए काशी अथवा उज्जैन दर्शन के समय कालभैरव के मंदिर जाना अनिवार्य है। तभी महाकाल की पूजा का लाभ आपको मिल पाता है। भगवान भैरव के तीन प्रमुख रूप हैं- बटुक भैरव, महाकाल भैरव और स्वर्णाकर्षण भैरव। इनमें से भक्तगण बटुक भैरव की ही सर्वाधिक पूजा करते हैं। तंत्रशास्त्र में अष्ट भैरव का उल्लेख भी मिलता है- असितांग भैरव, रूद्र भैरव, चंद्र भैरव, क्रोध भैरव, उन्मत भैरव, कपाल भैरव, भीषण भैरव और संहार भैरव। भगवान भैरव की साधना में ध्यान का अधिक महत्व है। इसी को ध्यान में रखकर सात्विक, राजसिक व तामसिक स्वरूपों का ध्यान किया जाता है। 

भैरव देव

शिवपुराण में वर्णित प्रसंग के अनुसार भैरव देव की उत्पत्ति भगवान शिव के अंश से हुई । भगवान् भैरव की उत्पत्ति कार्तिक मास के कृष्णपक्ष की अष्टमी को मध्यान के समय हुई । जिस दिन भैरव देव की उत्पत्ति हुई  उस तिथि को कालभैरव के रूप में जाना जाता है। हिन्दू धर्म में भैरव-उपासना की दो प्रमुख शाखाएं हैं। जिसके अन्तर्गत बटुकभैरव तथा काल भैरव देव की साधना की जाती है। बटुक भैरव देव अपने सौम्य रूप में रहते हैं। और भक्तों को अभय वर देते हैं। काल भैरव देव अत्यन्त ही उग्र रुप में रहते है। तथा आपराधिक प्रवृत्तियों को नियन्त्रित करते हैं।
ओर साथ ही शिव की सेना में सेनापति के रूप में नियुक्त है। माना यह भी जाता है। तन्त्र साधनाओ में बिना भैरव अनुमति कोई भी उनकी पूजा नही कर सकता ।
वह अपना शिष्य भक्त स्वम् चुनते है।
इनके स्मरण मात्र से सभी नकरात्मक शक्ति अपना मार्ग छोड़ देती है। और साधक के जीवन मे नई ऊर्जा का संचार होता है।

Wednesday 3 November 2021

दिपावली पूजन विधि:

Diwali Shubh Muhurat 2021: 4 नवंबर 2021,
गुरुवार के दिन साल का बड़ा त्योहार दिवाली मनाया जाएगा. पांच दिवसीय दिवाली पर्व की शुरुआत धनतेरस के दिन से होती है और त्योहार का समापन भाई दूज के दिन होता है।
श्रीलक्ष्मी गणेश कुबेर इत्यादि देव पूजन विधि:-
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Friday 8 October 2021

श्री लांगुलास्त्र शत्रुन्जय हनुमान स्तोत्र


1-श्री लांगुलास्त्र शत्रुन्जय हनुमान स्तोत्र

- 2-श्री कपिन्द्रास्त्र हनुमान स्तोत्र

-3-श्री हनुमान वड़वानल स्तोत्र-

4-श्री सर्वकार्य सिद्विप्रद हनुमान स्तोत्र

-5-श्री संकष्टमोचन हनुमान स्तोत्र-

6-श्री  हनुमद घोरास्त्र स्तोत्र- -श्री लांगूलास्त्र शत्रुन्जय हनुमान स्तोत्र-

आवाहन- ॐ हनुमन्तं महावीरं वायुतुल्य-पराक्रमम् । मम कार्यार्थमागच्छ प्रणमामि मुहुर्मुहुः ॥

विनियोग-ॐ अस्य श्रीहनुमच्छत्रुञ्जयस्तोत्रमाला मंत्रस्य श्रीरामचन्द्रऋषिः, नानाच्छन्दांसि, श्रीमन्महावीरो हनुमान् देवता, मारुतात्मज इति हसौं बीजम् अञ्जनीसूनुरिति हृफ्रें शक्तिः, ॐ हाहाहा इति कीलकम्, श्रीरामभक्त इति हां प्राणः, श्रीराम-लक्ष्मणानन्दकर इति ह्रां ह्रीं हूंजीवः, ममाऽराति शत्रुञ्जय-स्तोत्र मालामंत्रजपे  विनियोगः ।

दाहिने हाथ में जल लेकर ॐ अस्य श्री हनुमच्छत्रुञ्जयस्तोत्र-मालामन्त्रस्य से आरम्भ कर, मालामंत्रपजे विनियोगः, तक मंत्र पढ़क जल छोड़ना चाहिए।

करन्यास- ॐ ऐं श्रीं ह्रां ह्रीं हूं स्फें फ्रें इस्त्रौं हस् हसौं नमो हनुमते अगुष्ठाभ्यां नमः ।

ॐ ऐं श्रीं ह्रां ह्रीं ह्रूं स्फ्रें कें इस्त्रौं हसौं रामदूताय तर्जनीभ्यां नमः । ॐ ऐं श्रीं ह्रां ह्रीं ह्रूं स्फ्रें ह्स्त्रौं  खफ्रें हस्ख्फ्रें हृसौं  लक्ष्मणप्राणदात्रे मध्यमाभ्यां नमः ।

ॐ ऐं श्रीं ह्रां ह्रीं ह्रूं स्फ्रें ख्फ्रें हस्त्रौं हस्ख्फ्रें हसौं अञ्जनीसूनवे अनामिकाभ्यां नमः ।

ॐ ऐं श्रीं ह्रां ह्रीं ह्रूं स्फ्रें ख्फ्रें हस्त्रौं हस्ख्फ्रैं हसौं सीताशोकविनाशनाय कनिष्ठिकाभ्यां नमः

ॐ ऐं श्रीं ह्मां ह्मीं हू्ं स्फ्रैं ख्फ्रैं हस्त्रौं हस्ख्फ्रैं हसौं लंकाप्रासाद भंजनाय करतलकरपृषठाभ्यां नमः

हृदयादिन्यास-ॐ ऐं श्रीं ह्रां ह्रीं ह्रूं स्फ्रें ख्फैं  ह्स्त्रौं हस्ख्फ्रैं हसौं नमो हनुमते हृदयाय नमः ।

ॐ ऐं श्रीं ह्रां ह्रीं ह्रूं स्फ्रें ख्फ्रें हस्त्रौं  हस्ख्फ्रैं हसौं  रामदूताय शिरसे स्वाहा।

ॐ ऐं श्रीं ह्रां ह्रीं ह्रूं स्फ्रें खफ्रें ह्स्त्रौं हस्ख्फ्रैं  हसौं लक्ष्मणप्राणदात्रे शिखायै वषट् ।

ॐ ऐं श्रीं ह्रां ह्रीं हूं स्फ्रें ख्फ्रें हस्त्रौं हस्ख्फ्रैं  हसौंं अञ्जनीसूनवे कवचाय हुम् ।

ॐ ऐं श्रीं ह्रां ह्रीं ह्रूं स्फ्रें ख्फ्रैं ह्स्त्रौं हस्ख्फ्रें हसौं सीताशोकविनाशनाय नेत्रत्रयाय वौषट् ।

ॐ ऐं श्रीं ह्रां ह्रीं ह्रूं स्फ्रें ख्फ्रें ह्स्त्रौं हस्ख्फ्रें हसौं लङ्काप्रासादभञ्जनाय अस्त्राय फट् ।

ध्यानम्-ध्यायेद् बालदिवाकरद्युतिनिभं देवारिदर्पापहं । देवेन्द्रप्रमुखैः प्रशस्तयशसं देदीप्यमानं रुचा ॥ सुग्रीवादिसमस्तवानरयुतं सुव्यक्ततत्त्वप्रियं । संरक्ताऽरुण-लोचनं पवनजं पीताम्बरालङ्कृतम्॥ मनोजवं मारुत-तुल्य-वेगं जितेन्द्रियं बुद्धिमतांवरिष्ठम् । वातात्मजं वानरयूथमुख्यं श्रीरामदूतं शरणं प्रपद्ये ॥ वज्राङ्गं पिङ्गकेशाढ्यं स्वर्णकुण्डलमण्डितम् । नियुद्धमुपसङ्कल्पपारावारपराक्र मम् ॥गदायुक्तं वामहस्तं पाशहस्तं कमण्डलुम् । उद्यदक्षिणदोर्दण्डं हनुमन्तं विचिन्तयेत् ॥इति ध्यात्वा, 'अरे मल्ल चटख' त्युच्चारणेऽथवा 'तोडरमल्ल चटख'इत्युच्चारणे कपिमुद्रां प्रदर्शयेत् ।

हनुमान मालामंत्र-ॐ ऐं श्रीं ह्रां ह्रीं ह्रूं स्फ्रें ख्फ्रें हस्त्रौं हस्ख्फ्रैं हसौं  नमो हनुमते त्रैलोक्याक्रमण-पराक्रम  श्रीराम-भक्त! मम परस्य च सर्वशत्रून् * चतुर्वर्णसम्भवान् पुरूष -स्त्री-नपुंसकान् भूत  भविष्यद्-वर्तमानान् नानादूरस्थ-समीपस्थान् नाना-नामधेयान् नानासङ्करजातिकान् कलत्र  पुत्र-मित्र भृत्य - बन्धु-सुहृत् समेतान् प्रभुशक्ति सहितान्  धन-धान्यादिसम्पत्तियुतान् राज्ञो राजपुत्रसेवकान् मन्त्रि । सचिव-सखीन् आत्यन्तिकक्षणेन त्वरया एतद्-दिनावधि नानोपायैर्मारय मारय शस्त्रैश्छेदय छेदय अग्निना ज्वालय ज्वालय दाहय दाहय अक्षयकुमारवत्पादतला क्रमणेनाऽनेन शिलातले आत्रोटय आत्रोटय घातय घातय वध वध भूतसङ्घैः सह भक्षय भक्षय क्रुद्धचेतसा नखैर्विदारय विदारय देशादस्मादुच्चाटय उच्चाटय पिशाचवत् भ्रंशय भ्रंशय भ्रामय भ्रामय भयातुरान् विसंज्ञान् सद्यः कुरु कुरु भस्मीभूतान उद्धूलय उद्धृलय भक्तजनवत्सल ! सीताशोकापहारक! सर्वत्र माम् एनं च रक्ष रक्ष हाहाहा हुँहुँहुँ घेघेघे हुँफट् स्वाहाॐ नमो भगवते हनुमते महाबलपराक्रमाय  महाविपत्ति-निवारकाय  भक्तजनमन: कामना - कल्पद्रुमाय दुष्टजन- मनोरथ स्तम्भनाय प्रभञ्जन-प्राणप्रियाय स्वाहाॐ ह्रां ह्रीं हूं हैं ह्रौं ह्रः मम शत्रून् शूलेन छेदय छेदय अग्निना ज्वालय ज्वालय दाहय दाहय उच्चाटय उच्चाटयहूं फट स्वाहा

शत्रुन्जय हनुमान स्तोत्र- श्रीमन्तं हनुमन्त-मार्तरिपुभिद् भूभृत्तरुभ्राजितं ।चाल्पद् बालधिबन्धवैरिनिचयं चामीकराद्रिप्रभम् ॥अष्टौ रक्त-पिशङ्ग-नेत्र नलिनं भूभङ्गमङ्ग-स्फुरत् । प्रोद्यच्चण्ड-मयूख मण्डल-मुखं दुःखापहं दुःखिनाम्॥ कौपीनं कटिसूत्र-मौञ्ज्यजिनयुगदेहं विदेहात्मजा । प्राणाधीश पदारविन्दनिरतं स्वान्तं कृतान्तं द्विषाम् ॥ ध्यात्वैवं समराङ्गणस्थितमथानीय स्व-हृत्पङ्कजे । सम्पूज्या ऽखिल-पूजनोक्त विधिना सम्प्रार्थयेत् प्रार्थितम् ॥ हनुमन्नञ्जनीसूनो! महाबलपराक्रम ! लोलल्लाङ्गूलपातेत ममाऽरातीन् निपातय॥मर्कटाधिप! मार्तण्ड-मण्डल ग्रास कारक! लोलल्लाङ्गूलपातेन ममाऽरातीन् निपातय ॥अक्षयन्नापि पिङ्गाक्ष ! क्षितिशोकक्षयङ्कर ! लोलल्लाङ्गूलपातेन ममाऽरातीन् निपातय ॥रुद्रावतार ! संसार- -दुःख-भारापहारक! लोलल्लाङ्गूलपातेन ममाऽरातीन् निपातय॥ श्रीराम-चरणाम्भोज-मधुपायत मानस ! लोलल्लाङ्गूलपातेन ममाऽरातीन् निपातय ॥ बालिकोदरद-क्लान्त सुग्रीवोन्मोचनप्रभो।लोलल्लाङ्गूलपातेन ममाऽरातीन् निपातय ॥ सीता-विरह-वारीश मग्न-सीतेशतारक ! लोलल्लाङ्गूलपातेन ममाऽरातीन् निपातय ॥ रक्षोराज-प्रतापाऽग्नि-दह्यमान- जगद्धन ! लोलल्लाङ्गूलपातेन ममाऽरातीन् निपातय ॥ ग्रस्ताऽशेष-जगत्-स्वास्थ्य राक्षसाम्भोधिमन्दर ! लोलल्लाङ्गूलपातेन ममाऽरातीन् निपातय ॥ पुच्छ-गुच्छ-स्फुरद्-भूमि-जगद्-दग्धारिपत्तन । लोलल्लाङ्गूलपातेन ममाऽरातीन् निपातय ॥जगन्मनो दुरुल्लंघ्य - पारावार विलङ्घन !  लोलल्लाङ्गूलपातेन ममाऽरातीन् निपातय ॥ - ॥ स्मृतमात्र समस्तेष्टपूरक ! प्रणतप्रिय !  लोलल्लाङ्गूलपातेन ममाऽरातीन् निपातय ॥ ॥ रात्रिञ्चर-चमूराशि कर्तनैक-विकर्तन ! । लोलल्लाङ्गूलपातेन ममाऽरातीन् निपातय ॥ ॥ जानकी-जानकीज्यानि प्रेमपात्र परन्तप ! लोलल्लाङ्गूलपातेन ममाऽरातीन् निपातय ॥भीमादिक महावीर-वीरा वेशावतारक ! लोलल्लाङ्गूलपातेन ममाऽरातीन् निपातय ॥वैदेही-विरह क्लान्त रामरोषैक-विग्रह ! लोलल्लाङ्गूलपातेन ममाऽरातीन् निपातय ॥ वज्राङ्गनख-दंष्ट्रेश!   बज्रिवज्रावगुण्ठनलोलल्लाङ्गूलपातेन ममाऽरातीन् निपातय ॥अखर्व गर्व गन्धर्व-पर्वतोद्भेदन-स्वर ! लोलल्लाङ्गूलपातेन ममाऽरातीन् निपातय ॥ लक्ष्मणप्राण- सन्त्राण-त्रातातीक्ष्णकरान्वय! लोलल्लाङ्गूलपातेन ममाऽरातीन् निपातय ॥ रामाधिविप्रयोगार्त भरताद्यार्तिनाशन ! लोलल्लाङ्गूलपातेन ममाऽरातीन् निपातय ॥ द्रोणाचल-समुत्क्षेप-समत्क्षिप्तारि-वैभव!लोलल्लाड्ग्गूलपातेन ममाऽरातीन् निपातयसीताशीर्वाद संपन्न समस्ताऽवयवाक्षतलोलल्लाड्गूलपातेन ममाऽरातीन् निपातय | इत्येवमश्वत्थ-तलोपविष्टः शत्रुञ्जयं नाम पठेत् स्तयं यः सशीघ्रमेवास्त समस्त - शत्रुः प्रमोदतेमारुतज-प्रसादात् ।॥ इति लांगूलास्त्र-शत्रुञ्जय-हनुमत्स्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥

2-श्री कपिन्द्रास्त्र  हनुमान स्तोत्र- अस्य श्रीकपिन्द्रामन्त्रस्य श्रीरामचंद्र ऋषिः । अनुष्टुपछन्दः । कपिमुखवीर हनुमान्देवता । हनुमानिति बीजम् । वायुपुत्र इतिशक्तिः। अञ्जनीसुत इति

कीलकम् । श्रीरामदूत हनुमत्प्रसादसिद्धयर्थे जपे- विनियोगः ।करन्यास- ॐ ह्रां अञ्जनीसुताय अंगुष्ठाभ्यां नमः ॐ ह्रीं रुद्रमूर्तये  तर्जनीभ्यां नम: ॐ हूं रामदूताय मध्यमाभ्यां नमः । ॐ हैं वायुपुत्राय अनामिकाभ्यां नमः । ॐ ह्रौं अग्निगर्भाय कनिष्ठिकाभ्यां नमः । ॐ ह्रः ब्रह्मास्त्रनिवारणाय करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः ।इतिकरन्यासः । हृदयादिन्यास-ॐ अञ्जनीसुताय हृदयाय नमःॐ रुद्रमूर्तये शिरसे नमः ॐ रामदूताय शिखायै नमःॐ वायुपुत्राय कवचाय हुम ॐ अग्निगर्भाय  नेत्रत्रयाय वौषट् ॐ ब्रह्मास्त्र निवारण अस्त्राय फट,

ध्यान- वन्दे वानरनारसिंहखगराट्क्रीडाश्ववक्त्रान्वितं दिव्यालङ्करणं त्रिपञ्चनयनं देदीप्यमानं रुचा। हस्ताब्जैरसिखेट पुस्तकसुधाकुम्भांकुशाद्रीन् हलं खट्वाङ्गं फणिभूरुहं दशभुजं सर्वारिवीरापहम्उद्यन्मार्तण्डकोटिप्रकटरुचियुतं चारुवीरासनस्थं मौञ्जोयज्ञोपवीतारुणरुचिरशिखाशोभितं कुण्डलम्॥ भक्तानामिष्टदं तं प्रणतमुनिजनं वेदनादप्रमोदं ध्यायेद्देवं विधेयं पल्वगकुलपतिं गोष्पदीभूतवार्धिम् ॥ ॐ हनुमते नमः ।अञ्जनागर्भसम्भूत कपीन्द्रसचिवोत्तम। रामप्रिय नमस्तुभ्यं हनुमन् रक्ष सर्वदा॥ मर्कटेश महोत्साह सर्वशोकविनाशन। शत्रून संहर मां रक्ष श्रियं दापय में प्रभो ॥ ॐ ह्मौं  हस्फ्रेंं ख्फ्रौं  हस्त्रौं  हस्ख्फ्रैं हसौं हनुमते नमः ।ॐ श्रीं महाञ्जनाय पवनपुत्रावेशयावेशय श्रीहनुमते फट्। सुग्रीवाय नमः अङ्गदाय नमः, सुषेणाय नमः, नलाय नमः, नीलाय नमः, जाम्बवते नमः, प्रहस्ताय नमः, सुवेषाय नमः । अञ्जनापुत्राय नमः, रुद्रमूर्तये नमः, वायुसुताय नमः जानकीजीवनाय नमः, रामदूताय नमः, श्रीरामभक्ताय नमः, महातेजसे नमः, कपिराजाय नमःमहाबलाय नमः, द्रोणाद्रिहारकाय नमः, मेरूपीठार्चनकारकाय नमः दक्षिणाशाभास्कराय नमः,सर्व विघ्नविनाशकाय नमः, हं हनुमते  रूद्रात्मकाय हुं फटमहाशैलं समुत्पाट्य धावन्तं रावणं प्रतिलाक्षारसारुणं रौद्रं कालान्तकयमोपमम् ।ज्वलदग्निसमं जैत्रं सूर्यकोटिसमप्रभम् ॥ अङ्गदाद्यैर्महावीरैर्वेष्टितं रुद्ररूपिणम् ।तिष्ठ तिष्ठ रणे दुष्ट सृजन्तं घोरनि:स्वनम् ॥ शैवरूपिणमभ्यर्च्य ध्यात्वा लक्षंजपेन्मनुम् ।ध्यायेद्रणे हनुमन्तं सूर्यकोटिसमप्रभम्।धावन्तं रावणं जेतुं दृष्टा सत्वरमुत्थितम् ॥लक्ष्मणं च महावीरं पतितं रणभूतले।गुरुं च क्रोधमुत्पाद्य ग्रहीतुं गुरुपर्वतम् ॥हाहाकारैः सदर्पैश्च कम्पयन्तं जगत्त्रयम् ।आब्रह्माण्डं समाव्यप्य कृत्वा भीमं कलेवरम् ॥ॐ यो यो हनूमन्त फलफलित धगधगिति आयुराष: षरूडाह। ॐ नमो भगवते आञ्जनेयाय मम् समस्त गुप्त शत्रुन् श्रृंखलां त्रोटय त्रोटय बन्धमोक्षं कुरु कुरु स्वाहा।ॐ हरि मर्कट मर्कट वामकरे परिमुञ्चति  मुञ्चति श्रृङ्खलिकाम् । ॐ नमो हनुमते मम कपिराजाय नमः, महाबलाय नमः, मदन क्षोभं संहर संहर आत्मतत्त्वं प्रकाशय प्रकाशय हूं फट् स्वाहाॐ दक्षिणमुखाय पञ्चमुखहनुमते करालवदनाय नारसिंहाय ॐ ह्रां ह्रीं ह्रूं ह्रीं हः सकलभूत-प्रेतदमनाय स्वाहा।ॐ  पश्चिममुखाय  गरूडाननाय पञ्चमुखहनुमते मं मं मं मं मं सकलविषहराय स्वाहा।ॐ पूर्वकपिमुखाय पञ्चमुखहनुमते टं टं टं टं टं सकलशत्रुसंहरणाय स्वाहा।ॐ ऐं श्रीं ह्रां ह्रीं ह्रूं ह्रीं ह्रः ॐ नमो भगवते महाबलपराक्रमाय भूतप्रेतपिशाच ब्रहह्मराक्षसशाकिनी-डाकिनीयक्षिणी पूतनामारी महामारी-राक्षसभैरव-वेताल ग्रहराक्षसा-दिकान् क्षणेन हन हन भञ्जन भञ्जन मारय मारय शिक्षय शिक्षय महामाहेश्वररुद्रावतार ॐ हुं फट् स्वाहा। ॐ नमो भगवते हनुमदाख्याय रुद्राय सर्वदुष्टजनमुखस्तम्भनं कुरु कुरु स्वाहा। ॐ ह्रां ह्रीं ह्रूं ठं ठं ठं फट् स्वाहा।किलि किलि सर्वकुयत्राणि दुष्टवाचं ॐॐ नमो हनुमते सर्वग्रहान भूतभविष्यद्वर्तमानान् दूरस्थ समीपस्थान् छिन्धि छिन्धि भिन्धि भिन्धि सर्व कालदुष्ट बुद्धीनुच्चाट-योच्चाटय परबलान क्षोभय क्षोभय मम सर्वकार्याणि साधय साधय ॐ नमो हनुमते ॐ ह्रां ह्रीं हूं फट् देहि ॐ शिव सिद्धिं ॐ ह्रां ॐ ह्रीं ॐ हूं ॐ हैं ॐ ह्रीं ॐ ह्रः स्वाहा ।ॐ नमो हनुमते परकृतयन्त्रमन्त्र- भूतप्रेत पिशाच पर दृष्टि सर्व विघ्न- टार्जनचे कु-विद्या सर्वोग्रभयान् निवारय निवारय वध वध लुण्ठ लुण्ठ पच पच विलुञ्च विलुञ्च किलि किलि किलि सर्वकुयन्त्राणि दुष्टवाचं  ॐ ह्मां ह्मीं हूंफट स्वाहा, ॐ नमो हनुमते पाहि पाहि एहि एहि सर्वग्रहभूतानां शाकिनीडाकिनीनां विषमदुष्टानां सर्वेषामाकर्षयाकर्षय मर्दय मदय छेदय छेदय मृत्युं मारय मारय भयं शोषय शोषय भूतमण्ड लपिशाचमण्डलनिर सनाय भूतज्वर प्रेतज्वर चातुर्थिकज्वर विष्णुवर माहेश्वर-ज्वरान् छिन्धि छिन्धि भिन्धि भिन्धि अक्षिशूलपक्षशूलशिरोऽभ्यन्तर शूलगुल्मशूल पित्तवातशूल- ब्रह्मराक्षस कुलपिशाच कुलप्रबलनाग कुलच्छेदनं विषं निर्विषं कुरु कुरु झटिति झटिति ॐ  सर्वदुष्ट-ग्रहान्निवारणाय स्वाहा।ॐ नमो हनुमते पवनपुत्राय वैश्वानरमुखाय पापदृष्टि चोरदृष्टिपाषण्डदृष्टि हनुमदाज्ञा स्फुर ॐ स्वाहा ॥ॐ नमो हनुमते रुद्रावताराय वायुसुताय अञ्जनी गर्भसम्भूताय अखण्डब्रह्मचर्य व्रतपालनतत्पराय धवलीकृत जगत्त्रियाय ज्वलदग्निसूर्यकोटिसमप्रभाय प्रकट पराक्रमाय आक्रांतदिङ्मण्डलाय यशोवितानाययशोऽलं कृताय शोभिताननाय महासामर्थ्यायमहातेजःपुञ्जविराजमानाय श्रीरामभक्ति तत्परायश्रीरामलक्ष्मणानन्दकारणाय कपिसैन्यप्राकाराय सुग्रीवसख्यकारणाय-सुग्रीवसाहाय्यकारणाय ब्रह्मास्त्रब्रह्मशक्तिग्रसनाय लक्ष्मणशक्तिभेद निवारणायशल्यविशाल्यौषधिसभानाय नायवालो दितभानुमण्डलग्रसनाय अक्षकुमारच्छेदनाय वनरक्षाकरसमूह विभन्जनाय द्रोणपर्वतोत्पाटनायस्वामिवचनसम्पादितार्जुनसंयुग संग्रामायगम्भीरशब्दोदयाय दक्षिणाशामार्तण्डाय मेरुपर्वतपीठि कार्चनायदावानल-कालाग्निरुद्राय सीताऽऽश्वासनाय सीता रक्षकाय  राक्षसीसंघविदारणाय अशोकवन-विदारणाय लङ्कापुरीदहनाय दशग्रीवशिरः कृन्तकाय कुम्भकणा 'दिवधकारणाय वालिनिबर्हण-कारणाय मेघनादहोमविध्वंसनाय इन्द्रजिद्वध कारणाय सर्वशास्त्रपारंगताय सर्वग्रह विनाशकाय सर्वज्वरहराय सर्वभय निवारणाय सर्वकष्ट निवारणाय सर्वापत्ति निवारणाय सर्वदुष्टादिनिबर्हणाय सर्वशत्रुच्छेदनाय भूतप्रेत-पिशाच डाकिनी शाकिनीध्वंसकाय सर्वकार्य साधकाय प्राणिमात्ररक्षकाय रामदूताय स्वाहा ।ॐ नमो हनुमते रुद्रावतारायविश्वरूपायप्रकटपराक्रमायअमितविक्रमाय महाबलायसूर्यकोटिसमप्रभाय रामदूताय स्वाहा ।ॐ नमो हनुमते रुद्रावताराय,रामसेवकाय रामभक्तितत्परायरामहृदयाय लक्ष्मणशक्तिभेदनिवारणायलक्ष्मण-रक्षकाय दुष्टनिबर्हणायरामदूताय स्वाहा ।ॐ नमो हनुमते रुद्रावतारायसर्वशत्रुसंहरणाय सर्वरोगहरायसर्ववशीकरणाय रामदूताय स्वाहा।।ॐ नमो हनुमते रुद्रावताराय आध्यात्मिकाधि-दैविकाधि भौतिकतापत्रय-निवारणाय रामदूताय स्वाहा।ॐ नमो हनुमते रुद्रावतारायदेवदानवर्षिमुनिवरदाय रामदूतायस्वाहा ।ॐ नमो हनुमते रुद्रावताराय भक्तजनमनःकल्पनाकल्पद्रुमाय दुष्टमनोरथस्तम्भनायप्रभञ्जन प्राणप्रियाय महाबलपराक्रमायमहाविपत्तिनिवारणाय पुत्रपौत्रधन धान्यादिविविध सम्पत्प्रदाय रामदूताय स्वाहाॐ नमो हनुमते रुद्रावताराय।    वज्रदेहाय वज्रनखाय वज्रमुखाय   वज्ररोम्णे वज्रनेत्राय वज्रदन्ताय वज्रकराय वज्रभक्ताय रामदूताय स्वाहाॐ नमो हनुमते रुद्रावताराय परयंत्र मंत्रतंत्रत्राटकनाशकाय सर्वज्वरच्छेदकाय सर्वव्याधिनिकृन्तकाय सर्वभयप्रशमनाय सर्वदुष्टमुखस्तम्भनाय सर्वकार्यसिद्धिप्रदाय रामदूताय स्वाहाॐ नमो हनुमते रुद्रावताराय देवदानवयक्षराक्षसभूतप्रेतपिशाचडाकिनी शाकिनीदुष्टग्रहबन्धनाय रामदूताय स्वाहा ।इतिश्री कपिन्द्रास्त्र हनुमान स्तोत्र

3-श्री हनुमद् घोरास्त्र स्तोत्र-

विनियोग- अस्य श्रीअनन्तघोर प्रलयज्वालाग्निरौद्रस्य वीरहनुमत्     साध्यसाधना-घोरमूलमन्त्रस्य ईश्वर ऋषिः अनुष्टुप छन्दः । श्री रामलक्ष्मणौ देवता। सौं बीजम् । अञ्जनासूनुरिति शक्तिः । वायुपुत्र इति कीलकम् । श्री हनुमत्प्रसादसिद्धयर्थे भूर्भुवस्स्वर्लोक समासीनतत्त्व पदशोधनार्थे जपे विनियोग- करन्यास-   भूः नमो भगवते दावानलकालाग्नि हनुमते अंगुष्ठाभ्यां नमः ।ॐ भुवः नमो भगवते चण्डप्रताप हनुमते तर्जनीभ्यां नमःॐ स्वः नमो भगवते चिन्तामणिहनुमते मध्यमाभ्यां नमः ।ॐ महः भगवते पातालगरुडहनुमते अनामिकाभ्यां नमः । ॐ जनः नमो भगवते कालाग्नि  रुद्रहनुमते कनिष्ठिकाभ्यां नमः ।ॐ तप: सत्यं नमो भगवते भद्रजातिविकट रूद्रवीरहनुमतेकरतलकरपृषठाभ्यां नमःपाशुपतेन दिग्बन्-हृदयादिन्यासॐ नमो भगवते दावानलकालाग्नि हनुमते हृदयाय नमः ।ॐ भुवः नमो भगवते चण्डप्रताप हनुमते शिरसे स्वाहा ।स्वः नमो भगवते चिन्तामणिहनुमते  शिखायै वषट् ।ॐ महः नमो भगवते पाताल  गरुडहनुमते कवचाय हुम् ।ॐ जनः नमो भगवते कालाग्नि रूद्रहनुमते नेत्रयाय वौषटॐ तप: सत्यं नमो भगवते भद्रजाति विकटरूद्रवीरहनुमतेअस्त्राय फट्

तान्त्रिक  हनुमद् ध्यानं- वाङ्ग पिङ्गनेत्रं कनकमयलसत्कुण्डलाक्रान्तगण्डं । दम्भोलिस्तम्भसारप्रहरणविवशीभूतरक्षोऽधिनाथम् ॥ उद्यल्लाङ्गूलघर्षप्रचलजलनिधि भीमरूपं कपीन्द्रं । ध्यायन्तं रामचन्द्रं प्लवगपरिवृढं सत्त्वसारं प्रसन्नम् ॥

हनुमंत घोरास्त्र-  ॐ नमो भगवते दावानल कालाग्नि हनुमते ( जयश्रियो जयजीविताय) धवलीकृतजगत्त्रय वज्रदेह वज्रपुच्छ वज्रकाय वज्रतुण्ड वज्रमुख वज्रनख वज्रबाहो वज्ररोम वज्रनेत्र वज्रदन्त वज्रशरीर गवते सकलात्मकाय भीमकर पिङ्गलाक्ष उग्रप्रलयकालरौद्र वीरभद्रावतार शरभसालुव भैरवदोर्दण्ड लङ्कापुरी दाहन उदधि लङ्घन दशग्रीवकृतान्त सीताविश्वास  ईश्वरपुत्र  अंजनागर्भ संभूतं उदयभास्कर  बिम्बाफलग्रासक  देव-दानव ऋषिमुनिबन्ध पाशुपतास्त्र ब्रह्मास्त्र बैलवास्त्र नारायणास्त्र कालशक्तिकास्त्र  दण्डकास्त्र पाशाघोरास्त्र निवारण पाशुपतास्त्र  ब्रह्माबैंलवास्त्रनारायणास्त्र मृड सर्वशक्तिग्रसन ममात्मरक्षाकर।परविद्यानिवारण आत्मविद्यासंरक्षक अग्निदीप्त अथर्वणवेदसिद्धस्थि कालाग्नि निराहारक वायुवेग मनोवेगश्रीरामतारक  परब्रह्मविश्वरूपदर्शन लक्ष्मणप्राणप्रतिष्ठानन्दकर स्थल जलाग्निमर्मभेदिन सर्वशत्रुन छिन्धिछिन्धि मम वैरिणः खादय खादय मम संजीवन पर्वतोत्पाटन   डाकिनीविध्वंसन सुग्रीवसंख्यकरण  निष्कलङ्क कुमारब्रह्मचारिन दिगम्बर सर्वपाप सर्वग्रह कुमारग्रह सर्व छेदय छेदय भेदय भेदय भिन्धि भिन्धि खादय खादय टङ्क टङ्क ताडय ताडय मारय मारय शोषय शोषय ज्वालय ज्वालय हारय हारय देवदत्तं नाशय नाशय अतिशोषय अतिशोषय मम सर्वं च हनुमन रक्ष रक्ष ॐ ह्रां ह्रीं ह्रूं हुं फट् घे घे स्वाहा ।ॐ नमो भगवते चण्डप्रतापहनुमते महावीराय सर्वदुःख - विनाशनाय ग्रहमण्डल, भूत मण्डल, प्रेतपिशाचमण्डल सर्वोच्चाटनाय अतिभयंकरज्वर महेश्वरज्वर, विष्णु ज्वर, ब्रह्मज्वर, वेताल ,ब्रहमराक्षस,ज्वर, पित्तज्वर श्लेष्मसान्निपातिकज्वर  विषमज्वर शीतज्वर एकाहिकज्वर  द्वयाहिकज्वर त्र्यैहिकज्वर चातुर्थिकज्वर अर्धमासिक ज्वर मासिक ज्वर षडमासिक ज्वर सांवत्सरिक ज्वर अस्थ्यन्तर्गतज्वर महापस्मार श्रमिकापस्मारांश्च भेदय भेदय खादय खादय ॐ ह्रां ह्रीं हुं हुं फट् घे घे स्वाहा ।ॐ नमो भगवते चिन्तापणिहनुमते अंगशूल अक्षिशूल शिरश्शूल गुल्मशूल उदरशूल कर्णशूल नेत्रशूल गुदशूल कटिशूल जानुशूल जंघाशूल हस्तशूल पादशूल गुल्फशूल वातशूल स्तनशूल परिणामशूल परिघामशूल परिवाणशूल दन्तशूल कुक्षिशूल सुमनश्शूल सर्वशूलानि निर्मूलय निर्मूलय दैत्यदानव कामिनी वेताल ब्रह्मराक्षस कोलाहल नागपाशानन्त वासुकि तक्षक कार्कोटक लिंगपद्म कालपाशविषं निर्विषं कुरु कुरु ॐ कुरु कुरु ॐ ह्रां ह्रीं हुं हुं फट् घे घे स्वाहा ।ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ग्लां ग्लीं ग्लूं ॐ नमो भगवते पाताल गरुडहनुमते भैरववन गतगजसिंहेन्द्राक्षीपाशबन्धंछेदय छेदय प्रलयमारुत  कालाग्निहनुमन् श्रृंखलाबन्धं विमोक्षय विमोक्षय सर्वग्रहं छेदय छेदय मम सर्वकार्याणि साधय साधय मम प्रसादं कुरु कुरु मम प्रसन्न श्रीराम सेवक सिंह भैरवस्वरूप मां रक्ष रक्ष ॐ ह्रां ह्रीं ह्रूं ह्रां ह्रीं क्ष्मौं भैं श्रां श्रीं क्लां क्लीं क्रां क्रीं ह्रां ह्रीं ह्रूं हैं ह्रौं ह्रः ह्रां ह्रीं हुं ख ख जय जय मारण मोहन पूर्ण घूर्ण दम दम मारय मारय वारय रय खे खे ह्रां ह्रीं ह्रूं हुं फट् घे घे स्वाहा।ॐ नमो भगवते कालाग्निरौद्रहनुमते भ्रामय भ्रामय लव लव कुरु कुरु जय जय हस हस मादय मादय प्रज्वलय प्रज्वलय मृडय मृडय त्रासय त्रासय साहय साहय वशय वशय शामय शामय अस्त्रत्रिशूल डमरु खड्ग काल मृत्यु कपाल खट्वांगधर अभय शाश्वत हुं हुं अवतारय अवतारय हुं हुं अनन्तभूषण परमंत्र परयंत्र परतंत्र शतसहस्त्र कोटितेजः पुजं भेदय भेदय अग्निं बन्धय बन्धय वायुं बन्धय बन्धय सर्व ग्रहं बन्धय बन्धय अनन्तादि दुष्टनागानां द्वादशकुल वृश्चिका नामेकादशलूतानां विषं हन हन सर्वविषं बन्धय बन्धय वज्रतुण्ड उच्चाटय उच्चाटय मारण मोहन वशीकरण स्तम्भन जृम्भाणाकर्षणोच्चाटन मिलन विद्वेषण युद्ध तर्कमर्मणि बन्धय बन्धयॐ कुमारी पद त्रिहार बाणोग्रमूर्तये ग्राम वासिने अतिपूर्वशक्ताय सर्वायुधधराय स्वाहा अक्षयाय घे घे घे घे ॐ लं लं लं घ्रां घ्रौं स्वाहा ॐ ह्रां ह्रीं हूं हुं फट् घे घे स्वाहा ।ॐ श्रां श्रीं श्रृं श्रौं श्रः ॐ नमो भगवते भद्रजानिकट रुद्रवीरहनुमते टं टं टं लं लं लं लं देवदत्त दिगम्बराष्टमहाशक्त्यष्टाङ्गधर अष्टमहाभैरव  नवब्रह्मस्वरूप दशविष्णु रूप एकादशरुद्रावतार द्वादशार्क तेजः त्रयोदशसोममुख वीरहनुमन् स्तंभिनी मोहिनी वशीकरिणीतन्त्रैकसावयव नगरराजमुखवधंन बलमुखमकर मुखसिंहमुखजिह्वामुखानि बन्धन बन्धन स्तम्भय स्तम्भय व्याघ्रमुख सर्ववृश्चिकाग्निज्वालाविषं निर्गमय निर्गमय सर्वजनवैरिमुखं बन्धय बन्धय पापहर वीर हनुमान ईश्वरावतार वायु नन्दन अञ्जनीसुत बन्धय बन्धय श्रीरामचन्द्रसेवक ॐ ह्रां ह्रां ह्रां आसय आसय ह्रीं ह्रां घ्रीं क्रीं यं भै ग्रं म्रः हट् हट् खट् खट् सर्वजन विश्वजन शत्रुजन वश्यजन सर्वजनस्य दृशं लं लां श्रीं ह्रीं मनः स्तम्भय स्तम्भय भञ्जय भञ्जय अद्रि ह्रीं वं हीं हीं मे सर्व हीं हीं सागर हीं हीं वं वं सर्वमन्त्रार्थाथर्वणवेदसिद्धिं कुरु कुरु स्वाहा।श्री रामचन्द्र उवाच। श्री महादेव उवाच श्री वीरभद्रस्तौ उवाच ।जय सियाराम जय जय हनुमानइति श्री हनुमद घोरास्त्र स्तोत्र-

4-श्री हनुमान वडवानल स्तोत्र- इस  स्तोत्र के रचयिता ,रावण के छोटे भाई राम भक्त विभीषण जी है-इसके पाठ से जातक नाना प्रकार की समस्याओं से मुक्ति पा लेता है अस्य मन्त्रस्य अस्य श्रीहनुमवडवानलस्तोत्र श्रीरामचन्द्र ऋषिः, श्रीवडवानलहनुमान् देवता, मम समस्त रोग प्रशमनार्थम् आयुरारोग्यैश्वर्याऽभिवृद्ध्यर्थं मा समस्त पापक्षयार्थं सीतारामचन्द्रप्रीत्यर्थं च हनुमवडवानलस्तोत्रजपमहं करिष्ये । ध्यानम्- मनोजवं मारुत-तुल्य-वेगं, जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठम्। वातात्मजं वानरयूथमुख्यं, श्रीरामदूतं शरणं प्रपद्ये ॥ॐ ह्रां ह्रीं ॐ नमो भगवते श्रीमहाहनुमतैप्रकटपराक्रम सकलदिंड्रमण्डल यशोवितान धवलीकृत - जगत्रितय-वज्रदेह रुद्रावतार लङ्कापुरीदहन उमा- अर्गलमन्त्र उदधिबन्धन दशशिरः कृतान्तक सीताश्वसन वायुपुत्र अञ्जनीगर्भसम्भूत श्रीरामलक्ष्मणा नन्दकर कपिसैन्यप्राकार सुग्रीवसाह्यरण-पर्वतोत्पाटन कुमार ब्रह्मचारिन् गभीरनादसर्व पापग्रहवारण सर्वज्वरोच्चाटन डाकिनी-विध्वंसन ॐ ह्रां ह्रीं ॐ नमो भगवते महावीरवीराय सर्व दुःखनिवारणाय ग्रहमण्डल सर्वभूत मण्डल सर्वपिशाचमण्ड- लोच्चाटन भूतज्वरएकाहिक वरद्वयाहिक चातुर्थिकज्वर सन्तापज्वर विषमज्वर तापज्वर-माहेश्वर वैष्णव ज्वरान् छिन्धि छिन्दि यक्ष ब्रहाराक्षस भूत-प्रेत पिशाचान् उच्चाटय उच्चाटय ।ॐ ह्रां श्रीं ॐ नमो भगवते श्रीमहाहनुमतेॐ ह्रां ह्रीं ह्र हैं ह्रीं ह्रः आं हां हां हां हां ॐ सौं एहि एहि एहि ॐ हं ॐ हं ॐ हं ॐ नमो भगवते श्रीमहाहनुमते श्रवणचक्षुर्भूतानां शाकिनी डाकिनीनां विषमदुष्टानां सर्वविषं हर हर आकाशभुवनं भेदय भेदय छेदय छेदय मारय रय शोषय शोषय मोहय मोहय ज्वालय ब्वालय प्रहारय प्रहारय सकलमायां भेदय भेदय ।ॐ ह्रां ह्रीं ॐ नमो भगवते महाहनुमतेसर्वग्रहोच्चाटन परबलं क्षोभय क्षोभय कलबन्धनमोक्षणं कुरु कुरु शिरः शूल ल्मशूल सर्वशूलान्निर्मूलय निर्मूलय गपाशानन्त वासुकि तक्षक कर्कोटकालियान् यक्षकुलजगत् रात्रिञ्चर दिवाचर सर्पान्निर्विषं कुरु कुरु स्वाहा।राजभय चोरभय परमंत्र परयंत्र परतंत्र परविद्याश्छेदय छेदय स्वमन्त्र स्वयंत्र स्वतंत्रकाविद्याः प्रकटय प्रकटय सर्वारिष्टान्नाशय नाशय सर्वशत्रून्नाशय नाशय असाध्यं साधय साधय हुँ फट् स्वाहा । ॥इति विभीषणकृतं हनुमद् वडवानलस्तोत्रं सम्पूर्णम् ।

5-श्री सर्वकार्यसिद्बिप्रद हनुमान स्तोत्र- यह स्तोत्र भी विभीषण कृत है इसके पाठ से हनुमानजी प्रसन्न होकर साधक को अभीष्ट प्रदान करते है।ॐ नमो हनुमते तुभ्यं नमो मारूतसूनवेनमः श्रीरामभक्ताय श्यामलांगाय ते नमःनमो वानरवीराय सुग्रीवसख्यकारिणे सीता-शोक-विनाशाय राममुद्राथराय च ॥रावणान्त- कुलच्छेदकारिणे ते नमो नमः । मेघनाद-मखध्वंस कारिणे ते नमो नमः ॥सर्व वायुपुत्राय वीराय आकाशीदरगामिने।वनपाल-शिरच्छेद-लङ्काप्रासादभन्जिने ॥ज्वलत्कनकवर्णाय दीर्घलाङ्गलधारिणेसौमित्रिजयदात्रे च रामदूताय ते नमः ॥अक्षय्यवधकर्ते च ब्रह्मपाशनिवारिणे ।लक्ष्मणांघ्रि महाशक्ति घातक्षत-विनाशिने ॥रक्षोघ्नाय रिपुघ्नाय भृतघ्नाय च ते नमः । ऋक्ष-वानर-वीरैकप्राणदाय नमो नमः ॥परसैन्यबलघ्नाय शस्त्रास्त्रघ्नाय ते नमः ।विषघ्नाय द्विषघ्नाय ज्वरघ्नाय च ते नमः ॥महाभयरिपुघ्नाय भक्तत्राणैककारिणे ।परप्रेरित मन्त्राणां यन्त्राणां स्तम्भकारिणे ॥पयःपाषाण-तरणकरणाय नमो नमः ।बालार्क मण्डलत्रास-कारिणे भवतारणे ॥नखायुधाय भीमाय दन्तायुधधराय च ।रिपुमाया विनाशाय रामाज्ञालोकरक्षिणे ॥प्रतिग्रामस्थितायाऽथ रक्षोभूतवधार्थिने ॥करान्त-शैलशस्त्राय द्रुमशस्त्राय ते नमः ।बालैकब्रह्मचर्याय रुद्रमूर्तिधराय चदक्षिणाशाभास्कराय शतचन्द्रोदयात्मने।कृत क्षत-व्यथाघ्नाय सर्वक्लेशहराय चस्वाम्याज्ञाप्रार्थसंग्रामसंख्ये सञ्जयकारिणेभक्तानां दिव्यवादेषु जयदायिने ।किं कृत्वा बुबुकोच्चार  घोर शब्द कराय च रावोग्र-व्याधि-संस्तम्भ-कारिणे वनधारिणेसदा वनफलाहार-निरताय विशेषतःमहार्णव-शिलाबन्धे सेतुबन्धाय ते नमः ॥वादे विवादे संग्रामे घोरे च संस्तवेत्सिंह- तस्कर व्याघ्रेषु पठस्तत्र भयं हि ॥दिव्यभूतमये व्याघ्रे विषे जङ्गमे ।राजशस्त्रभये चोग्रे तथा ग्रहभयेषु च ॥जले सर्पे महावृष्टौ दुर्भिक्षे प्राणसम्प्लवेपठन् स्तोत्रं प्रमुच्येत भयेभ्यः सर्वतो नरः ॥तस्य क्वापि नास्ति हनुमत्स्तव पाठनात्।सर्वदा वै त्रिकालं च पठनीयस्तवो ह्यसौ ॥सर्वान कामानवाप्नोति नाऽत्रकार्या विचारणाविभीषण कृत स्तोत्र ताक्ष्र्येण समुदीरितमये पठन्ति भक्त्या च सिद्धयस्तत्करे स्थित,:इति श्री विभीषण कृत हनुमान स्तोत्र-

6-श्रीसंकष्टमोचन हनुमान स्तोत्र- प्रस्तुत प्रसिद्ध स्तोत्र काशीपीठाधीश्वर शंकराचार्य स्वामी श्रीयुत महेश्वरानन्द सरस्वत विरचित है। इसका प्रयोग विधि में सरल है, किन्तु श्रद्धा विश्वास की सम्पूर्णता अनिवार्य है। परिस्थिति जटिल होने पर विधिवत् पूजन अर्चन कर शुद्ध-बुद्ध मनोदशा के साथ स्तोत्र का अधिकाधिक पाठ व्यक्ति के संकटों को समूल नष्ट करता है। पाठ आरम्भ करने से पूर्व तथा पाठान्त में श्रीसीताराम स्तुति अनिवार्य है। सात्विक आचरण एवं समग्र समर्पण से संकटमोचन श्रीहनुमान रावणसदृश शत्रुओं  को भी पराभूत करते हैं।

सिन्दूरपूररुचिरो बलवीर्यसिन्धु बुद्धिप्रभाव-निधिरदद्भुतवैभवश्रीः ।दीनार्तिदावदहनो वरदो वरेण्यःसङ्कष्टमोचनविभुस्तनुतां शुभं नः ॥सोत्साहलङ्घितमहार्णवपौरुष श्रीर्लङ्कापुरीप्रदहनप्रथितप्रभावः ।घोराहवप्रमथितारिचमूप्रवीरः प्राभञ्जनिर्जयति मर्कटसार्वभौमः ॥द्रोणाचलानयनवर्णितभव्यभूतिःश्रीराम लक्ष्मण सहायक चक्रवर्ती।काशीस्थ-दक्षिण-विराजित-सौधमल्लःश्रीमारुतिर्विजयते भगवान् महेशः ॥नूनं स्मृतोऽपि दयते भजतां कपीन्द्रःसम्पूजितो दिशति वाञ्छित-सिद्धि-वृद्धिम्।सम्मोदकप्रिय उपैति परं प्रहर्षंरामायण श्रवणतः पठतां शरण्यः ॥श्रीभारत-प्रवर युद्धरथोद्धत - श्रीःपार्थैक-केतन-कराल - विशालमूर्तिः ।उच्चैर्घनाघन-घटा विकटा-ऽट्टहासःश्रीकृष्णपक्ष- भरणः रस्थिति शरणं ममाऽस्तु ॥

जड्घाजलड्घ उपमातिविदूरवेगोमुष्टि-प्रहार परिमूच्छित-राक्षसेन्द्रः ।श्रीरामकीर्तित-पराक्रमणोद्भव श्रीः प्राकम्पनिर्विभुरुदञ्चतु भूतये नः ॥सीतार्ति-दारणपटुः प्रबलः प्रतापीश्रीराघवेन्द्र परिरम्भवर-प्रसादः ।

वर्णीश्वरः सविधि-शिक्षित कालनेमिः पञ्चाननोऽपनयतां विपदोऽधिदेशम् ॥॥ उद्यद्-भानुसहस्त्र-सन्निभतनुःपीताम्बरालङ्कृतः । प्रोज्ज्वालानल-दीप्यमान-नयनो निष्पिष्ट रक्षोगणः । संवर्तोद्यत-वारिदोद्धतरवः प्रोच्चैर्गदाविभ्रमः ॥ ।श्रीमान् मारुतनन्दनः प्रतिदिनं ध्येयो विपद्-भञ्जनः ॥रक्षः पिशाचभय-नाशनमामयाधिप्रोच्चैर्ज्वरापहरणं दमनं रिपूणाम्।सम्पत्ति-पुत्रकरणं विजयप्रदानसङ्कष्टमोचनविभोः स्तवनं नराणाम् ॥दारिद्र्य-दुःख-दहनं विजयं विवादेकल्याण-साधनममङ्गल वारणं च । दाम्पत्य-दीर्घसुख-सर्वमनोरथाप्तिंश्रीमारुतेः स्तव-शतावृतिरातनोति ॥स्तोत्रं य एतदनुवासरमस्तकामःश्रीमारुतिं समनुचिन्त्य पठेत् सुधीरः ।तस्मै प्रसादसुमुखो वरवानरेन्द्रःसाक्षात्कृतो भवति शाश्वतिकः सहायः ॥ सङ्कटमोचनस्तोत्रं शङ्कराचार्यभिक्षुणामहेश्वरेण रचितं मारुतेश्चरणेऽर्पितम् ॥शत्रुशमनार्थ उद्धृत-विवेचित ऊपरलिखित अनुष्ठानों का निष्ठा-विधि-संकल्प के साथ आयोजन करने से अभूतपूर्व परिणाम प्राप्त होते हैं। श्रीहनुमदुपासना के सन्दर्भ में कुर्छ तथ्य स्मरणीय हैं, जिनका परिपालन अनुष्ठान के प्रभाव को संवर्द्धित करता हैपवित्रता एवं संयम का साग्रह पालन करें। श्री सीताराम से सम्बद्ध स्तवनों का संकीर्तन हनुमद् शक्ति को संजीवित करता है। नैवेद्य में मोदक तथा पूआ को विशेषतः सम्मिलित करें।अनुष्ठान के मध्य तिल के तेल में सिन्दूर मिश्रित कर मुद्रित श्रीहनुमद् विग्रह पर लेपन करने से विशेष कृपा प्राप्त होती है। इति श्री संकष्टमोचन हनुमान स्तोत्र-

जय श्री राम ॐ रां रामाय नम:  श्रीराम ज्योतिष सदन, पंडित आशु बहुगुणा, संपर्क सूत्र- 9760924411

 

दुर्गा सप्तशती पाठ विधि

  दुर्गा सप्तशती दुर्गा सप्तशती पाठ विधि पूजनकर्ता स्नान करके, आसन शुद्धि की क्रिया सम्पन्न करके, शुद्ध आसन पर बैठ जाएँ। माथे पर अपनी पसंद क...