Friday 11 February 2022

भगवान शिव को तंत्र शास्त्र का देवता माना जाता है।

भगवान शिव को तंत्र शास्त्र का देवता माना जाता है। तंत्र और अघोरवाद के जन्मदाता भगवान शिव ही हैं। नासिक मे स्थित श्मशान भी तंत्र क्रिया के लिए प्रसिद्ध है। वही के अघोरी बाबा से प्राप्त गंगाराम अघोरी के विषय मे आज यहा लिखा जा रहा है।

आधी रात के बाद का समय। घोर अंधकार का समय। जिस समय हम सभी गहरी नींद के आगोश में खोए रहते हैं, उस समय घोरी-अघोरी-तांत्रिक श्मशान में जाकर तंत्र-क्रियाएँ करते हैं। घोर साधनाएँ करते हैं। अघोरियों का नाम सुनते ही अमूमन लोगों के मन में डर बैठ जाता है। अघोरी की कल्पना की जाए तो शमशान में तंत्र क्रिया करने वाले किसी ऐसे साधू की तस्वीर जहन में उभरती है जिसकी वेशभूषा डरावनी होती है।

अघोर विद्या वास्तव में डरावनी नहीं है। उसका स्वरूप डरावना होता है। अघोर का अर्थ है अ+घोर यानी जो घोर नहीं हो, डरावना नहीं हो, जो सरल हो, जिसमें कोई भेदभाव नहीं हो। और सरल बनना बड़ा ही कठिन है। सरल बनने के लिए ही अघोरी को कठिन साधना करनी पड़ती है। आप तभी सरल बन सकते हैं जब आप अपने से घृणा को निकाल दें। इसलिए अघोर बनने की पहली शर्त यह है कि इसे अपने मन से घृणा को निकला देना होगा।

अघोर क्रिया व्यक्त को सहज बनाती है। मूलत: अघोरी उसे कहते हैं जिसके भीतर से अच्छे-बुरे, सुगंध-दुर्गंध, प्रेम-नफरत, ईष्र्या-मोह जैसे सारे भाव मिट जाए। जो किसी में फ़र्क़ न करे। जो शमशान जैसी डरावनी और घृणित जगह पर भी उसी सहजता से रह ले जैसे लोग घरों में रहते हैं। अघोरी लाशों से सहवास करता है और मानव के मांस का सेवन भी करता है। ऐसा करने के पीछे यही तर्क है कि व्यक्ति के मन से घृणा निकल जाए। जिनसे समाज घृणा करता है अघोरी उन्हें अपनाता है। लोग श्मशान, लाश, मुर्दे के मांस व कफ़न से घृणा करते हैं लेकिन अघोर इन्हें अपनाता है।

अघोर विद्या भी व्यक्ति को ऐसी शक्ति देती है जो उसे हर चीज़ के प्रति समान भाव रखने की शक्ति देती है। अघोरी तंत्र को बुरा समझने वाले शायद यह नहीं जानते हैं कि इस विद्या में लोक कल्याण की भावना है। अघोर विद्या व्यक्ति को ऐसा बनाती है जिसमें वह अपने-पराए का भाव भूलकर हर व्यक्ति को समान रूप से चाहता है, उसके भले के लिए अपनी विद्या का प्रयोग करता है। अघोर विद्या या अघोरी डरने के पात्र नहीं होते हैं, उन्हें समझने की दृष्टि चाहिए। अघोर विद्या के जानकारों का मानना है कि जो असली अघोरी होते हैं वे कभी आम दुनिया में सक्रिय भूमिका नहीं रखते, वे केवल अपनी साधना में ही व्यस्त रहते हैं। हां, कई बार ऐसा होता है कि अघोरियों के वेश में कोई ढोंगी, आपको ठग सकता है। अघोरियों की पहचान ही यही है कि वे किसी से कुछ मांगते नहीं है।

साधना की एक रहस्यमयी शाखा है अघोरपंथ। उनका अपना विधान है, अपनी अलग विधि है, अपना अलग अंदाज है जीवन को जीने का। अघोरपंथी साधक अघोरी कहलाते हैं। खाने-पीने में किसी तरह का कोई परहेज नहीं, रोटी मिले रोटी खा लें, खीर मिले खीर खा लें, बकरा मिले तो बकरा, और मानव शव यहां तक कि सड़ते पशु का शव भी बिना किसी वितृष्णा के खा लें।

अघोरी लोग गाय का मांस छोड़ कर बाकी सभी चीजों का भक्षण करते हैं। मानव मल से लेकर मुर्दे का मांस तक। अघोरपंथ में शायद श्मशान साधना का विशेष महत्व है, इसीलिए अघोरी शमशान वास करना ही पंसद करते हैं। श्मशान में साधना करना शीघ्र ही फलदायक होता है। श्मशान में साधारण मानव जाता ही नहीं, इसीलिए साधना में विध्न पड़ने का कोई प्रश्न नहीं। अघोरियों के बारे में मान्यता है कि बड़े ही जिद्दी होते हैं, अगर किसी से कुछ मागेंगे, तो लेकर ही जायेगे। क्रोधित हो जायेंगे तो अपना तांडव दिखाये बिना जायेंगे नहीं। एक अघोरी बाबा की आंखे लाल सुर्ख होती हैं मानों आंखों में प्रचंड क्रोध समाया हुआ हो। आंखों में जितना क्रोध दिखाई देता हैं बातों में उतनी शीतलता होती हैं जैसे आग और पानी का दुर्लभ मेल हो। गंजे सिर और कफ़न के काले वस्त्रों में लिपटे अघोरी बाबा के गले में धातु की बनी नरमुंड की माला लटकी होती हैं।

अघोरी श्मशान घाट में तीन तरह से साधना करते हैं - श्मशान साधना, शिव साधना, शव साधना। शव साधना के चरम पर मुर्दा बोल उठता है और आपकी इच्छाएँ पूरी करता है। इस साधना में आम लोगों का प्रवेश वर्जित रहता है। ऐसी साधनाएँ अक्सर तारापीठ के श्मशान, कामाख्या पीठ के श्मशान, त्र्यम्बकेश्वर और उज्जैन के चक्रतीर्थ के श्मशान में होती है।

शिव साधना में शव के ऊपर पैर रखकर खड़े रहकर साधना की जाती है। बाकी तरीके शव साधना की ही तरह होते हैं। इस साधना का मूल शिव की छाती पर पार्वती द्वारा रखा हुआ पाँव है। ऐसी साधनाओं में मुर्दे को प्रसाद के रूप में मांस और मदिरा चढ़ाया जाता है।

शव और शिव साधना के अतिरिक्त तीसरी साधना होती है श्मशान साधना, जिसमें आम परिवारजनों को भी शामिल किया जा सकता है। इस साधना में मुर्दे की जगह शवपीठ की पूजा की जाती है। उस पर गंगा जल चढ़ाया जाता है। यहाँ प्रसाद के रूप में भी मांस-मंदिरा की जगह मावा चढ़ाया जाता है।

अघोरियों के बारे में कई बातें प्रसिद्ध हैं जैसे कि वे बहुत ही हठी होते हैं, अगर किसी बात पर अड़ जाएं तो उसे पूरा किए बगैर नहीं छोड़ते। गुस्सा हो जाएं तो किसी भी हद तक जा सकते हैं। अधिकतर अघोरियों की आंखें लाल होती हैं, जैसे वो बहुत गुस्सा हो, लेकिन उनका मन उतना ही शांत भी होता है। काले वस्त्रों में लिपटे अघोरी गले में धातु की बनी नरमुंड की माला पहनते हैं।

अघोरी अक्सर श्मशानों में ही अपनी कुटिया बनाते हैं। जहां एक छोटी सी धूनी जलती रहती है। जानवरों में वो सिर्फ कुत्ते पालना पसंद करते हैं। उनके साथ उनके शिष्य रहते हैं, जो उनकी सेवा करते हैं। अघोरी अपनी बात के बहुत पक्के होते हैं, वे अगर किसी से कोई बात कह दें तो उसे पूरा करते हैं।

अघोरी दिन में सोने और रात को श्मशान में साधना करने वाले होते हैं। वे आम लोगों से कोई संपर्क नहीं रखते। ना ही ज्यादा बातें करते हैं। वे अधिकांश समय अपना सिद्ध मंत्र ही जाप करते रहते हैं।

आज भी ऐसे अघोरी और तंत्र साधक हैं जो पराशक्तियों को अपने वश में कर सकते हैं। ये साधनाएं श्मशान में होती हैं और दुनिया में सिर्फ चार श्मशान घाट ही ऐसे हैं जहां तंत्र क्रियाओं का परिणाम बहुत जल्दी मिलता है। ये हैं तारापीठ का श्मशान (पश्चिम बंगाल), कामाख्या पीठ (असम) काश्मशान, त्र्र्यम्बकेश्वर (नासिक) और उज्जैन (मध्य प्रदेश) का श्मशान।

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