महाभय-निवारक, सर्वरक्षक श्रीमहाविद्या-कवच
ॐ प्राच्यां रक्षतु मे तारा, कामरुप-निवासिनी,
आग्नेयां षोडशी पातु, याम्यां धूमावती स्वंय ।।१।।
नैर्ऋत्यां भैरवी पातु, वारुण्यां भुवनेश्वरी,
वायव्यां सततं पातु, छिन्नमस्ता महेश्वरी ।।२।।
कौबेर्यां पातु मे देवी, श्रीविद्या बगलामुखी,
ऐशान्यां पातु मे नित्यं, महा-त्रिपुर-सुन्दरी ।।३।।
उर्ध्वं रक्षतु मे विद्या, मातंगी पीठ-वासिनी,
सर्वत: पातु मे नित्यं, कामाख्या कालिका स्वयं।।४।।
ब्रह्म-रुपा महा-विद्या, सर्व-विद्या-मयी स्वयं,
शीर्षे रक्षतु मे दुर्गा, भालं श्रीभव-गेहिनी ।।५।।
त्रिपुरा भ्रू-युगे पातु, शर्वाणी पातु नासिकाम्,
चक्षुषी चण्डिका पातु, श्रोत्रे नील-सरस्वती।।६।।
मुखं सौम्यमुखी पातु, ग्रीवां रक्षतु पार्वती,
जिह्वां रक्षतु मे देवी, जिह्वा-ललन-भीषणा।।७।।
वाग्देवी वदनं पातु, वक्ष: पातु महेश्वरी,
बाहू महा-भुजा पातु, करांगुली: सुरेश्वरी ।।८।।
पृष्ठत: पातु भीमास्या, कट्यां देवी दिगम्बरी,
उदरं पातु मे नित्यं, महाविद्या महोदरी ।।९।।
उग्र-तारा महा-देवी, जंघोरू परि-रक्षतु,
गुदं मुष्कं च मेढ्रं च, नाभि च सुर-सुन्दरी।।१०।।
पदांगुली: सदा पातु भवानी त्रिदशेश्वरी,
रक्तं-मांसास्थि-मज्जादीन, वातु देवी शवासना।।११।।
महा-भयेषु घोरेषु, महाभय- निवारिणी,
पातु देवी महामाया, कामाख्या पीठवासिनी।।१२।।
भस्माचल-गता दिव्य-सिंहासन-कृताश्रया,
पातु श्रीकालिका-देवी, सर्वोत्पातेषु सर्वदा।।१३।।
रक्षा-हीनं तु यत् स्थानं, कवचेनापि वर्जितम्,
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