Saturday 17 August 2019

श्री बटुक भैरव स्तोत्र


श्री बटुक भैरव स्तोत्र
सभी प्रकार की आपदाओं के निवारण का एक सिद्ध प्रयोग
(हिन्दी पद्यानुवाद)
।। पूर्व-पीठिका ।।
मेरु-पृष्ठ पर सुखासीन, वरदा देवाधिदेव शंकर से -
पूछा देवी पार्वती ने, अखिल विश्व-गुरु परमेश्वर से ।
जन-जन के कल्याण हेतु, वह सर्व-सिद्धिदा मन्त्र बताएँ -
जिससे सभी आपदाओं से साधक की रक्षा हो, वह सुख पाए ।
शिव बोले, आपद्-उद्धारक मन्त्र, स्तोत्र हूं मैं बतलाता,
देवि ! पाठ जप कर जिसका, है मानव सदा शान्ति-सुख पाता ।
।। ध्यान ।।
सात्विकः-
बाल-स्वरुप वटुक भैरव-स्फटिकोज्जवल-स्वरुप है जिनका,
घुँघराले केशों से सज्जित-गरिमा-युक्त रुप है जिनका,
दिव्य कलात्मक मणि-मय किंकिणि नूपुर से वे जो शोभित हैं,
भव्य-स्वरुप त्रिलोचन-धारी जिनसे पूर्ण-सृष्टि सुरभित है ।
कर-कमलों में शूल-दण्ड-धारी का ध्यान-यजन करता हूँ,
रात्रि-दिवस उन ईश वटुक-भैरव का मैं वन्दन करता हूँ ।
राजसः-
नवल उदीयमान-सविता-सम, भैरव का शरीर शोभित है,
रक्त-अंग-रागी, त्रैलोचन हैं जो, जिनका मुख हर्षित है ।
नील-वर्ण-ग्रीवा में भूषण, रक्त-माल धारण करते हैं,
शूल, कपाल, अभय, वर-मुद्रा ले साधक का भय हरते हैं ।
रक्त-वस्त्र बन्धूक-पुष्प-सा जिनका, जिनसे है जग सुरभित,
ध्यान करुँ उन भैरव का, जिनके केशों पर चन्द्र सुशोभित ।
तामसः-
तन की कान्ति नील-पर्वत-सी, मुक्ता-माल, चन्द्र धारण कर,
पिंगल-वर्ण-नेत्रवाले वे ईश दिगम्बर, रुप भयंकर ।
डमरु, खड्ग, अभय-मुद्रा, नर-मुण्ड, शुल वे धारण करते,
अंकुश, घण्टा, सर्प हस्त में लेकर साधक का भय हरते ।
दिव्य-मणि-जटित किंकिणि, नूपुर आदि भूषणों से जो शोभित,
भीषण सन्त-पंक्ति-धारी भैरव हों मुझसे पूजित, अर्चित ।
।। १०८ नामावली श्रीबटुक-भैरव ।।
भैरव, भूतात्मा, भूतनाथ को है मेरा शत-शत प्रणाम ।
क्षेत्रज्ञ, क्षेत्रदः, क्षेत्रपाल, क्षत्रियः भूत-भावन जो हैं,
जो हैं विराट्, जो मांसाशी, रक्तपः, श्मशान-वासी जो हैं,
स्मरान्तक, पानप, सिद्ध, सिद्धिदः वही खर्पराशी जो हैं,
वह सिद्धि-सेवितः, काल-शमन, कंकाल, काल-काष्ठा-तनु हैं ।
उन कवि-स्वरुपः, पिंगल-लोचन, बहु-नेत्रः भैरव को प्रणाम ।
वह देव त्रि-नेत्रः, शूल-पाणि, कंकाली, खड्ग-पाणि जो हैं,
भूतपः, योगिनी-पति, अभीरु, भैरवी-नाथ भैरव जो हैं,
धनवान, धूम्र-लोचन जो हैं, धनदा, अधन-हारी जो हैं,
जो कपाल-भृत हैं, व्योम-केश, प्रतिभानवान भैरव जो हैं,
उन नाग-केश को, नाग-हार को, है मेरा शत-शत प्रणाम ।
कालः कपाल-माली त्रि-शिखी कमनीय त्रि-लोचन कला-निधि
वे ज्वलक्षेत्र, त्रैनेत्र-तनय, त्रैलोकप, डिम्भ, शान्त जो हैं,
जो शान्त-जन-प्रिय, चटु-वेष, खट्वांग-धारकः वटुकः हैं,
जो भूताध्यक्षः, परिचारक, पशु-पतिः, भिक्षुकः, धूर्तः हैं,
उन शुर, दिगम्बर, हरिणः को है मेरा शत-शत-शत प्रणाम ।
जो पाण्डु-लोचनः, शुद्ध, शान्तिदः, वे जो हैं भैरव प्रशान्त,
शंकर-प्रिय-बान्धव, अष्ट-मूर्ति हैं, ज्ञान-चक्षु-धारक जो हैं,
हैं वहि तपोमय, हैं निधीश, हैं षडाधार, अष्टाधारः,
जो सर्प-युक्त हैं, शिखी-सखः, भू-पतिः, भूधरात्मज जो हैं,
भूधराधीश उन भूधर को है मेरा शत-शत-शत प्रणाम ।
नीलाञ्जन-प्रख्य देह-धारी, सर्वापत्तारण, मारण हैं,
जो नाग-यज्ञोपवीत-धारी, स्तम्भी, मोहन, जृम्भण हैं,
वह शुद्धक, मुण्ड-विभूषित हैं, जो हैं कंकाल धारण करते,
मुण्डी, बलिभुक्, बलिभुङ्-नाथ, वे बालः हैं, वे क्षोभण हैं ।
उन बाल-पराक्रम, दुर्गः को है मेरा शत-शत-शत प्रणाम ।
जो कान्तः, कामी, कला-निधिः, जो दुष्ट-भूत-निषेवित हैं,
जो कामिनि-वश-कृत, सर्व-सिद्धि-प्रद भैरव जगद्-रक्षाकर हैं,
जो वशी, अनन्तः हैं भैरव, वे माया-मन्त्रौषधि-मय हैं,
जो वैद्य, विष्णु, प्रभु सर्व-गुणी, मेरे आपद्-उद्धारक हैं ।
उन सर्व-शक्ति-मय भैरव-चरणों में मेरा शत-शत प्रणाम ।
।। फल-श्रुति ।।
इन अष्टोत्तर-शत नामों को-भैरव के जो पढ़ता है,
शिव बोले – सुख पाता, दुख से दूर सदा वह रहता है ।
उत्पातों, दुःस्वप्नों, चोरों का भय पास न आता है,
शत्रु नष्ट होते, प्रेतों-रोगों से रक्षित रहता है ।
रहता बन्धन-मुक्त, राज-भय उसको नहीं सताता है,
कुपित ग्रहों से रक्षा होती, पाप नष्ट हो जाता है ।
अधिकाधिक पुनुरुक्ति पाठ की, जो श्रद्धा-पूर्वक करते हैं,
उनके हित कुछ नहीं असम्भव, वे निधि-सिद्धि प्राप्त करते हैं ।
ओं रां रामाय नम:
आप अपनी जन्म कुंडली के दोष निवारण हेतू सटीक उपाय और
एवं मंत्र साधनाएं संबंधित जानकारी के लिए सम्पर्क करे।
श्री राम ज्योतिष सदन
भारतीय वैदिक ज्योतिष एवं मंत्र यंत्र तंत्र परामर्शदाता
दैवज्ञ पंडित आशु बहुगुणा मोबाइल नंबर 97 6092 4411 यही हमारा WhatsApp नंबर भी है।
मुजफ्फरनगर उत्तर प्रदेश

सिद्ध शाबर मंत्र


इस मन्त्र को अनेको कार्यो के लिए इस्तेमाल किया जाता है यह मंत्र पयोग आ

प अपने सब रूकै काज बनाने के लिए करै तो अचछा है।

मंत्र :- आओ आओ आओ मात काली तजुर्बा मे आओ
सरभंगी की वाणी मे शिव का वचन निभाओ
चहु खुट मे शक्ति का डंका बजाऔर
लप-लप छम-छम करती मरधट-भवन की शक्ति देखुगा तेरी चोट का नजारा मेरी चलायी ना चलयो
मेरे गुरू मुख से शिव-सति की अान मे चलयो
देवी मंडली के पाँच वचन मे चलयो
मात काली जो मेरा वाचा को कुवाचा करै
तो देवी मंडली छोड काली भूतनी कहलावै
भूत मंडली मे बैठक पावै
ले भोग मे दिया मिठाई पान
अब बढा शक्ति मंडली का मान
दुहाई नौ नाथ चौरासी सिदॄो की दुहाई शक्ति मात की

इस मंत्र को सिदॄ करने का समय ग्रहण काल का समय उचित है कोई भी ग्रहण काल मे काली माॅ के मूरती या फोटो के सामने तेल का दीपक जला के 5 सफेद बरफी, एक मीठा पान, एक रूपये का सिक्का रखकर 5 माला जाप कर ले

माला रूदाक्ष की ले अासन मे काला कम्बल यह मंत्र सिदॄ हो जायेगा प्रति दिन नियम बना के जप से भी यह शुभ फल देने लगता है जाप मात्रा एक समान रखै चाहे पाँच बार ही बोल सकते है

हर शनिवार को भोग मे 5 सफेद बरफी एक मीठा पान 5 कपूर पर रखकर घर मे भी भोग दिया जा सकता है या काली माॅ के मन्दिर मे रखकर भी अा सकते है

सुबह और रात साघना काल मे अाप जो भी खाये उसका पृथम भोग काली माॅ को दे फिर कुछ खाये  जमीन पर सोये....... काम वासना के किसी काम का परहेज करे मतलब कुछ भी हो देखना -सोचना -करना..........
श्री राम ज्योतिष सदन
भारतीय वैदिक ज्योतिष एवं मंत्र यंत्र तंत्र परामर्शदाता
दैवज्ञ पंडित आशु बहुगुणा मोबाइल नंबर 97 6092 4411 यही हमारा WhatsApp नंबर भी है।
मुजफ्फरनगर उत्तर प्रदेश

श्री बटुक भैरव अपराध क्षमा पन स्तोत्र


श्री बटुक भैरव अपराध क्षमा पन स्तोत्र
ॐ गुरोः सेवा व्याकत्वा गुरुबचन शकतोपि न भवे
भवत्पुजा – ध्यानाज्ज्प हवन –यागा दिरहित : !
त्व्दर्चा- निर्माणे क्वचिदपि न यत्नं च कृतवान ,
जग ज्जाल-ग्रस्तों झटितिकुरु हादर मायि विभो !! 1 !!
प्रभु दुर्गा सुनो ! तव शरणतां सोयधिगतवान ,
कृपालों ! दुखार्त: कमपि भवदन्नयं प्रकथये !
सुहृत ! सम्पतेयहं सरल –विरल साधक जन ,
स्तवदन्य: क्स्त्राता भव-दहन –दाहं शमयति !!2!!
वदान्यों मन्यसत्वं विविध जनपालों वभसि वै ,
दयालुर्दी नर्तान भवजलधिपारम गमयसि !
अतस्त्वतो याचे नति- नियमतोयकिञ्च्नधन ,
सदा भूयात भावः पदनलिनयोस्ते तिमिरहा !!3!!
अजापूर्वो विप्रो मिलपदपरो योयतिपतितो ,
महामूर्खों दुष्टो वृजननिरत: पामरनृप: !
असत्पाना सक्त्तो यवन युवती व्रातरमण,
प्रभा वातत्वन्नान्म: परमपदवी सोप्याधिगत !!4!!
द्यां दीर्घाम दीने बटुक ! कुरु विश्वम्भर मयी,
न चन्यस्संत्राता परम शिव मां पलाया विभो !
महाशचर्याम प्राप्तस्त्व सरलदृष्टच्या विरहित: ,
कृपापूर्णेनेत्रे: कजदल निर्भेमा खचयतात !!5!!
सहस्ये किं हंसो नहि तपति दीनं जनचयम,
घनान्ते किं चंर्दोंयसमकर- निपातो भुवितले!
कृपादृष्टे स्तेहं भयहर भिवों किं विरहितों,
जले वा हमर्ये वा घनरस- निपातो न विषम!!6!!
त्रिमूर्तित्वं गीतों हरिहर- विधात्मकगुणो !
निराकारा: शुद्ध: परतरपर: सोयप्यविषय: ,
द्या रूपं शान्तम मुनिगननुतं भक्तदायितं !!7!!
तपोयोगं संख्यम यम-नियम –चेत: प्रयजनं,
न कौलाचर्चा-चक्रम हरिहरविधिनां प्रियतरम!
न जाने ते भक्तिम परममुनिमार्गाम मधु विधि,
तथाप्येषा वाणी परिरटति नित्यं तव यश :!!8!!
न मे कांक्षा धर्मे न वसुनिच्ये राज्य निवहे: ,
न मे स्त्रीणा भोगे सखि-सुत-कटुम्बेषु न च मे!
यदा यद्द्द भाव्यं भवतु भगवन पूर्वसकृतान ,
ममैत्तू प्रथर्यम तव विमल- भक्ति: प्रभवतात!!9!!
कियांस्तेस्मदभार: पतित पतिता स्तारयासि भो,
मद्न्य: क: पापी ययन बिमुख पाठ रहित :!
दृढ़ो मे विश्वासस्तव नियति रुद्धार विषय:,
सदा स्याद विश्र्म्भ: कवचिदपि मृषा माँ च भवतात!!10!!
भवदभावादभिन्नो व्यसन- निरत: को मदपरो ,
मदान्ध: पाप आत्मा बटुक !शिव ! ते नाम रहित !
उदरात्मन बन्धो नहि तवकतुल्य: कालुपहा ,
पुनः संचिन्त्यैवं कुरु हृदि यथेच्छसि तथा !!11!!
जपान्ते स्नानांते हमुषसि च निशिथे जपति यो ,
महा सौख्यं देवी वितरति नु तस्मै प्रमुदित:!
अहोरात्रम पाशर्वे परिवसति भकतानु गमनों ,
वयोन्ते संहृष्ट: परिनियति भकतानस्व भुवनम !!12!!
ओं रां रामाय नम:
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श्री राम ज्योतिष सदन
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मां बगलामुखी देवी तंत्र साधना


बगलामुखी देवी अपने साधक को कभी-कभी भयभीत भी करती हैं। अतः दृढ़ इच्छा और संकल्प शक्ति वाले साधक ही साधना करें। साधना आरंभ करने से पूर्व गुरु का ध्यान और पूजा अनिवार्य है। बगलामुखी के भैरव मृत्युंजय हैं। अतः साधना से पूर्व महामृत्यंजय का कम से कम एक माला जप अवश्य करें। वस्त्र, आसन आदि पीले होने चाहिए। साधना उत्तर की ओर मुंह कर के ही करें। मंत्र जप हल्दी की माला से करें। जप के बाद माला गले में धारण करें। ध्यान रखें, साधना कक्ष में कोई अन्य व्यक्ति प्रवेश न करे, न ही कोई माला का स्पर्श करे। साधना रात्रि के 8.00 से भोर 3.00 बजे के बीच ही करें। मंत्र जप की संख्या अपनी क्षमतानुसार निश्चित करें, फिर उससे न तो कम न ही अधिक जप करें। मंत्र जप 16 दिन में पूरा हो जाना चाहिए। मंत्र जप के लिए शुक्ल पक्ष या नवरात्रि सर्वश्रेष्ठ समय है। मंत्र जप से पहले संकल्प हेतु जल हाथ में लेकर अपनी इच्छा स्पष्ट रूप से बोल कर व्यक्त करें। साधना काल में इसकी चर्चा किसी से न करें। साधना काल में अपने बायीं ओर तेल का तथा अपने दायीं ओर घी का अखंड दीपक जलाएं।

उपासना विधि :- किसी भी शुभ मुहूर्त में सोने, चांदी, या तांबे के पत्र पर मां बगलामुखी के यंत्र की रचना करें। यंत्र यथासंभव उभरे हुए रेखांकन में हो। इस यंत्र की प्राण प्रतिष्ठा कर नियमित रूप से पूजा करें। इस यंत्र को रविपुष्य या गुरुपुष्य योग में मां बगलामुखी के चित्र के साथ स्थापित करें। फिर सब से पहले बगला माता का ध्यान कर विनियोग करें गणेशजी का पूजन, संकल्प , गुरुजी का पूजन , पंचदेवता पूजन, भैरव पूजन , भूतशुद्धि , कलशस्थापन प्राणप्रतिस्ठा , पीठमातृका न्यास , पीठपूजन करें | निम्न मंत्र पढ़कर विनियोग करें :-

विनियोग मंत्र :- ॐ अस्य श्री बगलामुखी मंत्रस्य नारद ऋषिः त्रिष्टुपछंदः श्री बगलामुखी देवता ह्लीं बीजं स्वाहा शक्तिः ममाभीष्ट सिद्ध्यर्थे जपे विनियोगः।( दाएं हाथ में जल में जल लेकर मंत्र का उच्चारण करते हुए चित्र के आगे छोड़ दें )–

करन्यास :-
————
ॐ ह्ल्रीम अगुष्ठाभ्यां नमः |
बगलामुखी तर्जनीभ्यां नमः सर्वदुष्टानां मध्यमाभ्यां नमः |
वाचं मुखं पदं स्तंभय अनामिकाभ्यां नमः |
जिह्वां कीलय कनिष्ठिकाभ्यां नमः |
बुद्धिं विनाशय ह्ल्रीम ॐ स्वाहा करतल कर पृष्ठाभ्यां नमः |

षडअंगन्यास :-
ॐ ह्ल्रीम हृदयाम नमः |
बगलामुखी शिरसे स्वाहा |
सर्वदुष्टानां शिखायै वषट् |
वाचं मुखं पदं स्तम्भयं कवचाय हुंम |
जिह्वां कीलय नेत्रत्रयाय वौषट् |
बुद्धि विनाशय ह्ल्रीम ॐ स्वाहा अस्त्राय फट्।

ध्यान :-
——-
मध्ये सुधाब्धि मणि मंडप रत्नवेद्यां |
सिंहासनो परिगतां परिपीतवर्णाम् ||
पीताम्बरा भरणमाल्य विभूषितांगी |
देवी नजामि घृतमुद्गर वैरिजिहवाम्।।
जिह्वाग्रमादाय करेण देवीं। वामेन शत्रून् परिपीडयंतीम् ||
गदाभिघातेन व दक्षिणेन। पीतांबराढ्यां द्विभुजां नमामि।।

अब षोडशोपचार पूजन करने के बाद आवरण पूजा , स्तोत्र , सहस्त्रनाम , बगलहृदय पाठ करें पश्चात उपरोक्त उद्धृत बगला उपासनायां उपयोगी कुल्कुलादि साधना एवं प्राणायाम करके 36 अक्षर का मूल मंत्र जप करे ( प्रतिदिन कम से कम 5000 मंत्र जप आवश्यक है )

36 अक्षर का मंत्र -
———————
“ॐ ह्ल्रीं बगलामुखी सर्वदुष्टानां वाचं मुखं पदं स्तंभय जिह्वां कीलय बुद्धिं विनाश ह्ल्रीं ॐ स्वाहा ।”

प्रणाम :-
———
प्रपद्ये शर्णां देवी श्री कामाख्या स्वरूपिणीम् ।
शिवश्य दुहितां शुद्धां नमामि बगलामुखीम् ॥

अंतिम दिन दशांश हवन , ततदशांश तर्पण ततदशांश मार्जन ततदशांश ब्राह्मण भोजन भी करना आवश्यक है

विशेष :- 1)माँ बगलामुखी का बीज ‘’ ह्लीं ‘’ है , परंतु इसमे अग्नि बीज का संयुक्त कर ‘’ ह्ल्रीम ‘’ का जप करने पर मंत्र और भी शक्ति प्रदान करता है |
ओं रां रामाय नम:
आप अपनी जन्म कुंडली के दोष निवारण हेतू सटीक उपाय और
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श्री राम ज्योतिष सदन
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मुजफ्फरनगर उत्तर प्रदेश

दिव्य मातंगी कवच प्रयोग


दिव्य मातंगी कवच
।। श्रीदेव्युवाच ।।
साधु-साधु महादेव ! कथयस्व सुरेश्वर ! मातंगी-कवचं दिव्यं, सर्व-सिद्धि-करं नृणाम् ।।
श्री-देवी ने कहा – हे महादेव ! हे सुरेश्वर ! मनुष्यों को सर्व-सिद्धि-प्रद दिव्य मातंगी-कवच अति उत्तम है, उस कवच को मुझसे कहिए ।
।। श्री ईश्वर उवाच ।।
श्रृणु देवि ! प्रवक्ष्यामि, मातंगी-कवचं शुभं । गोपनीयं महा-देवि ! मौनी जापं समाचरेत् ।।
ईश्वर ने कहा – हे देवि ! उत्तम मातंगी-कवच कहता हूँ, सुनो । हे महा-देवि ! इस कवच को गुप्त रखना, मौनी होकर जप करना ।

विनियोगः- ॐ अस्य श्रीमातंगी-कवचस्य श्री दक्षिणा-मूर्तिः ऋषिः । विराट् छन्दः । श्रीमातंगी देवता । चतुर्वर्ग-सिद्धये जपे विनियोगः ।
ऋष्यादि-न्यासः- श्री दक्षिणा-मूर्तिः ऋषये नमः शिरसि । विराट् छन्दसे नमः मुखे । श्रीमातंगी देवतायै नमः हृदि । चतुर्वर्ग-सिद्धये जपे विनियोगाय नमः सर्वांगे ।
।। मूल कवच-स्तोत्र ।।
ॐ शिरो मातंगिनी पातु, भुवनेशी तु चक्षुषी । तोडला कर्ण-युगलं, त्रिपुरा वदनं मम ।।
पातु कण्ठे महा-माया, हृदि माहेश्वरी तथा । त्रि-पुष्पा पार्श्वयोः पातु, गुदे कामेश्वरी मम ।।
ऊरु-द्वये तथा चण्डी, जंघयोश्च हर-प्रिया । महा-माया माद-युग्मे, सर्वांगेषु कुलेश्वरी ।।
अंग प्रत्यंगकं चैव, सदा रक्षतु वैष्णवी । ब्रह्म-रन्घ्रे सदा रक्षेन्, मातंगी नाम-संस्थिता ।।
रक्षेन्नित्यं ललाटे सा, महा-पिशाचिनीति च । नेत्रयोः सुमुखी रक्षेत्, देवी रक्षतु नासिकाम् ।।
महा-पिशाचिनी पायान्मुखे रक्षतु सर्वदा । लज्जा रक्षतु मां दन्तान्, चोष्ठौ सम्मार्जनी-करा ।।
चिबुके कण्ठ-देशे च, ठ-कार-त्रितयं पुनः । स-विसर्ग महा-देवि ! हृदयं पातु सर्वदा ।।
नाभि रक्षतु मां लोला, कालिकाऽवत् लोचने । उदरे पातु चामुण्डा, लिंगे कात्यायनी तथा ।।
उग्र-तारा गुदे पातु, पादौ रक्षतु चाम्बिका । भुजौ रक्षतु शर्वाणी, हृदयं चण्ड-भूषणा ।।
जिह्वायां मातृका रक्षेत्, पूर्वे रक्षतु पुष्टिका । विजया दक्षिणे पातु, मेधा रक्षतु वारुणे ।।
नैर्ऋत्यां सु-दया रक्षेत्, वायव्यां पातु लक्ष्मणा । ऐशान्यां रक्षेन्मां देवी, मातंगी शुभकारिणी ।।
रक्षेत् सुरेशी चाग्नेये, बगला पातु चोत्तरे । ऊर्घ्वं पातु महा-देवि ! देवानां हित-कारिणी ।।
पाताले पातु मां नित्यं, वशिनी विश्व-रुपिणी । प्रणवं च ततो माया, काम-वीजं च कूर्चकं ।।
मातंगिनी ङे-युताऽस्त्रं, वह्नि-जायाऽवधिर्पुनः । सार्द्धेकादश-वर्णा सा, सर्वत्र पातु मां सदा ।।
मातंगिनी देवी मेरे मस्तक की रक्षा करे, भुवनेश्वरी दो नेत्रों की, तोतला देवी दो कर्णों की, त्रिपुरा देवी मेरे बदन-मण्डल की, महा-माया मेरे कण्ठ की, माहेश्वरी मेरे हृदय की, त्रिपुरा दोनों पार्श्वों की और कामेश्वरी मेरे गुह्य-देश की रक्षा करे । चण्डी दोनों ऊरु की, रति-प्रिया जंघा की, महा-माया दोनों चरणों की और कुलेश्वरी मेरे सर्वांग की रक्षा करे । वैष्णवी सतत मेरे अंग-प्रत्यंग की रक्षा करे, मातंगी ब्रह्म-रन्घ्र में अवस्थान करके मेरी रक्षा करे । महा-पिशाचिनी बराबर मेरे ललाट की रक्षा करे, सुमुखी चक्षु की रक्षा करे, देवी नासिका की रक्षा करे । महा-पिशाचिनी वदन के पश्चाद्-भाग की रक्षा करे, लज्जा मेरे दन्त की और सम्मार्जनी-हस्ता मेरे दो ओष्ठों की रक्षा करे ।
हे महा-देवि ! तीन ‘ठं’ मेरे चिबुक और कण्ठ की और तीन ‘ठं’ सदा मेरे हृदय-देश की रक्षा करे । लीला माँ मेरे नाभि-देश की रक्षा करे, कालिका चक्षु की रक्षा करे, चामुण्डा जठर की रक्षा करे और कात्यायनी लिंग की रक्षा करे । उग्र-तारा मेरे गुह्य की, अम्बिका मेरे पद-द्वय की, शर्वाणी मेरे दोनों बाहुओं की और चण्ड-भूषण मेरे हृदय-देश की रक्षा करे । मातृका रसना की रक्षा करे, पुष्टिका पूर्व-दिशा की तरफ, विजया दक्षिण-दिशा कीतरफ और मेधा पश्चिम दिशा की तरफ मेरी रक्षा करे । श्रद्धा नैऋत्य-कोण की तरफ, लक्ष्मणा वायु-कोण की तरफ, शुभ-कारिणी मातंगी देवी ईशान-कोण की तरफ, सुवेशा अग्नि-कोण की तरफ, बाला उत्तर दिक् की तरफ और देव-वृन्द की हित-कारिणी महा-देवी ऊर्ध्व-दिक् की तरफ रक्षा करे । विश्व-रुपिणि वशिनी सर्वदा पाताल में मेरी रक्षा करे । ‘ॐ ह्रीं क्लीं हूं मातंगिन्यै फट् स्वाहा” – यह सार्द्धेकादश-वर्ण-मन्त्रमयी मातंगी सतत सकल स्थानों में मेरी रक्षा करे ।
।। फल-श्रुति ।।
इति ते कथितं देवि ! गुह्यात् गुह्य-तरं परमं । त्रैलोक्य-मंगलं नाम, कवचं देव-दुर्लभम् ।।
यः इदं प्रपठेत् नित्यं, जायते सम्पदालयं । परमैश्वर्यमतुलं, प्राप्नुयान्नात्र संशयः ।।
गुरुमभ्यर्च्य विधि-वत्, कवचं प्रपठेद् यदि । ऐश्वर्यं सु-कवित्वं च, वाक्-सिद्धिं लभते ध्रुवम् ।।
नित्यं तस्य तु मातंगी, महिला मंगलं चरेत् । ब्रह्मा विष्णुश्च रुद्रश्च, ये देवा सुर-सत्तमाः ।।
ब्रह्म-राक्षस-वेतालाः, ग्रहाद्या भूत-जातयः । तं दृष्ट्वा साधकं देवि ! लज्जा-युक्ता भवन्ति ते ।।
कवचं धारयेद् यस्तु, सर्वां सिद्धि लभेद् ध्रुवं । राजानोऽपि च दासत्वं, षट्-कर्माणि च साधयेत् ।।
सिद्धो भवति सर्वत्र, किमन्यैर्बहु-भाषितैः । इदं कवचमज्ञात्वा, मातंगीं यो भजेन्नरः ।।
झल्पायुर्निधनो मूर्खो, भवत्येव न संशयः । गुरौ भक्तिः सदा कार्या, कवचे च दृढा मतिः ।।
तस्मै मातंगिनी देवी, सर्व-सिद्धिं प्रयच्छति ।।
हे देवि ! तुमसे मैंने यह “त्रैलोक्य-मोहन” नाम का अति गुह्य देव दुर्लभ कवच कहा है । जो नित्य इसका पाठ करता है, वह सम्पत्ति का आधार होता है और अतुल परमैश्वर्य प्राप्त करता है, इसमें संशय नहीं है । यथा-विधि गुरु-पूजा करके उक्त कवच का पाठ करने से ऐश्वर्य, सु-कवित्व और वाक्-सिद्धि निश्चय ही प्राप्त की जा सकती है । मातंगी उसे नित्य नारी-संग दिलाती है । हे देवि ! ब्रह्मा, विष्णु, महेश्वर, दूसरे प्रधान देव-वृन्द, ब्रह्म-राक्षस, वैताल, ग्रह आदि भूत-गण उस साधक को देखकर लज्जित होते हैं ।
जो व्यक्ति इस कवच को धारण करता है, वह सर्व-सिद्धियाँ लाभ करता है । नृपति-गण उसका दासत्व करते हैं । वह षट्-कर्म साधन कर सकता है । अधिक क्या, वह सर्वत्र सिद्ध होता है । इस कवच को न जानकर, जो मातंगी की पूजा करता है, वह अल्पायु, धन-हीन और मूर्ख होता है । गुरु-भक्ति सर्वदा परमावश्यक है । इस कवच पर भी दृढ़ मति अर्थात् पूर्ण विश्वास रखना परम कर्तव्य है । फिर मातंगी देवी सर्व-सिद्धियाँ प्रदान करती है
विगत 28- वर्षों से आपकी सेवा में निरंतर ।
श्री राम ज्योतिष सदन
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मुजफ्फरनगर उत्तर प्रदेश

खडग-माला -मंत्र प्रयोग


खड्ग-माला-मन्त्रः-
ॐ ह्लीं सर्वनिन्दकानां सर्वदुष्टानां वाचं मुखं स्तम्भय-स्तम्भय बुद्धिं विनाशय-विनाशय अपरबुद्धिं कुरु-कुरु अपस्मारं कुरु-कुरु आत्मविरोधिनां शिरो ललाट मुख नेत्र कर्ण नासिका दन्तोष्ठ जिह्वा तालु-कण्ठ बाहूदर कुक्षि नाभि पार्श्वद्वय गुह्य गुदाण्ड त्रिक जानुपाद सर्वांगेषु पादादिकेश-पर्यन्तं केशादिपाद-पर्यन्तं स्तम्भय-स्तम्भय मारय-मारय परमन्त्र-परयन्त्र-परतन्त्राणि छेदय-छेदय आत्म-मन्त्र-यन्त्र-तन्त्राणि रक्ष-रक्ष, सर्व-ग्रहान् निवारय-निवारय सर्वम् अविधिं विनाशय-विनाशय दुःखं हन-हन दारिद्रयं निवारय निवारय, सर्व-मन्त्र-स्वरुपिणि सर्व-शल्य-योग-स्वरुपिणि दुष्ट-ग्रह-चण्ड-ग्रह भूतग्रहाऽऽकाशग्रह चौर-ग्रह पाषाण-ग्रह चाण्डाल-ग्रह यक्ष-गन्धर्व-किंनर-ग्रह ब्रह्म-राक्षस-ग्रह भूत-प्रेतपिशाचादीनां शाकिनी डाकिनी ग्रहाणां पूर्वदिशं बन्धय-बन्धय, वाराहि बगलामुखी मां रक्ष-रक्ष दक्षिणदिशं बन्धय-बन्धय, किरातवाराहि मां रक्ष-रक्ष पश्चिमदिशं बन्धय-बन्धय, स्वप्नवाराहि मां रक्ष-रक्ष उत्तरदिशं बन्धय-बन्धय, धूम्रवाराहि मां रक्ष-रक्ष सर्वदिशो बन्धय-बन्धय, कुक्कुटवाराहि मां रक्ष-रक्ष अधरदिशं बन्धय-बन्धय, परमेश्वरि मां रक्ष-रक्ष सर्वरोगान् विनाशय-विनाशय, सर्व-शत्रु-पलायनाय सर्व-शत्रु-कुलं मूलतो नाशय-नाशय, शत्रूणां राज्यवश्यं स्त्रीवश्यं जनवश्यं दह-दह पच-पच सकल-लोक-स्तम्भिनि शत्रून् स्तम्भय-स्तम्भय स्तम्भनमोहनाऽऽकर्षणाय सर्व-रिपूणाम् उच्चाटनं कुरु-कुरु ॐ ह्लीं क्लीं ऐं वाक्-प्रदानाय क्लीं जगत्त्रयवशीकरणाय सौः सर्वमनः क्षोभणाय श्रीं महा-सम्पत्-प्रदानाय ग्लौं सकल-भूमण्डलाधिपत्य-प्रदानाय दां चिरंजीवने । ह्रां ह्रीं ह्रूं क्लां क्लीं क्लूं सौः ॐ ह्लीं बगलामुखि सर्वदुष्टानां वाचं मुखं पदं स्तम्भय जिह्वां कीलय बुद्धिं विनाशय राजस्तम्भिनि क्रों क्रों छ्रीं छ्रीं सर्वजन संमोहिनि सभास्तंभिनि स्त्रां स्त्रीं सर्व-मुख-रञ्जिनि मुखं बन्धय-बन्धय ज्वल-ज्वल हंस-हंस राजहंस प्रतिलोम इहलोक परलोक परद्वार राजद्वार क्लीं क्लूं घ्रीं रुं क्रों क्लीं खाणि खाणि , जिह्वां बन्धयामि सकलजन सर्वेन्द्रियाणि बन्धयामि नागाश्व मृग सर्प विहंगम वृश्चिकादि विषं निर्विषं कुरु-कुरु शैलकानन महीं मर्दय मर्दय शत्रूनोत्पाटयोत्पाटय पात्रं पूरय-पूरय महोग्रभूतजातं बन्धयामि बन्धयामि अतीतानागतं सत्यं कथय-कथय लक्ष्मीं प्रददामि-प्रददामि त्वम् इह आगच्छ आगच्छ अत्रैव निवासं कुरु-कुरु ॐ ह्लीं बगले परमेश्वरि हुं फट् स्वाहा ।

विशेषः- मूलमन्त्रवता कुर्याद् विद्यां न दर्शयेत् क्वचित् ।
विपत्तौ स्वप्नकाले च विद्यां स्तम्भिनीं दर्शयेत् ।
गोपनीयं गोपनीयं गोपनीयं प्रयत्नतः ।
प्रकाशनात् सिद्धहानिः स्याद् वश्यं मरणं भवेत् ।
दद्यात् शानताय सत्याय कौलाचारपरायणः ।
दुर्गाभक्ताय शैवाय मृत्युञ्जयरताय च ।
तस्मै दद्याद् इमं खड्गं स शिवो नात्र संशयः ।
अशाक्ताय च नो दद्याद् दीक्षाहीनाय वै तथा ।
न दर्शयेद् इमं खड्गम् इत्याज्ञा शंकरस्य च ।।
।। श्रीविष्णुयामले बगलाखड्गमालामन्त्रः ।।
ओं रां रामाय नम:
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कार्य सिद्धि हेतु श्री गणेश शाबर मंत्र प्रयोग


कार्य-सिद्धि हेतु गणेश शाबर मन्त्र
“ॐ गनपत वीर, भूखे मसान, जो फल माँगूँ, सो फल आन। गनपत देखे, गनपत के छत्र से बादशाह डरे। राजा के मुख से प्रजा डरे, हाथा चढ़े सिन्दूर। औलिया गौरी का पूत गनेश, गुग्गुल की धरुँ ढेरी, रिद्धि-सिद्धि गनपत धनेरी। जय गिरनार-पति। ॐ नमो स्वाहा।”
विधि-
सामग्रीः- धूप या गुग्गुल, दीपक, घी, सिन्दूर, बेसन का लड्डू। दिनः- बुधवार, गुरुवार या शनिवार। निर्दिष्ट वारों में यदि ग्रहण, पर्व, पुष्य नक्षत्र, सर्वार्थ-सिद्धि योग हो तो उत्तम। समयः- रात्रि १० बजे। जप संख्या-१२५। अवधिः- ४० दिन।
किसी एकान्त स्थान में या देवालय में, जहाँ लोगों का आवागमन कम हो, भगवान् गणेश की षोडशोपचार से पूजा करे। घी का दीपक जलाकर, अपने सामने, एक फुट की ऊँचाई पर रखे। सिन्दूर और लड्डू के प्रसाद का भोग लगाए और प्रतिदिन १२५ बार उक्त मन्त्र का जप करें। प्रतिदिन के प्रसाद को बच्चों में बाँट दे। चालीसवें दिन सवा सेर लड्डू के प्रसाद का भोग लगाए और मन्त्र का जप समाप्त होने पर तीन बालकों को भोजन कराकर उन्हें कुछ द्रव्य-दक्षिणा में दे। सिन्दूर को एक डिब्बी में सुरक्षित रखे। एक सप्ताह तक इस सिन्दूर को न छूए। उसके बाद जब कभी कोई कार्य या समस्या आ पड़े, तो सिन्दूर को सात बार उक्त मन्त्र से अभिमन्त्रित कर अपने माथे पर टीका लगाए। कार्य सफल होगा।..
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श्री तारा महाविद्या तंत्र प्रयोग


श्री तारा महाविद्या प्रयोग
बड़े से बड़े दुखों का होगा नाश
सृष्टि के सर्वोच्च ज्ञान की होगी प्राप्ति
भोग और मोक्ष होंगे मुट्ठी में
जीवन के हर क्षत्र में मिलेगी अपार सफलता
दैहिक दैविक भौतिक तापों से तारेगी
"सिद्धविद्या महातारा"

सृष्टि की उत्तपत्ति से पहले घोर अन्धकार था, तब न तो कोई तत्व था न ही कोई शक्ति थी, केवल एक अन्धकार का साम्राज्य था, इस परलायाकाल के अन्धकार की देवी थी काली, उसी महाअधकार से एक प्रकाश का बिन्दु प्रकट हुआ जिसे तारा कहा गया, यही तारा अक्षोभ्य नाम के ऋषि पुरुष की शक्ति है, ब्रहमांड में जितने धधकते पिंड हैं सभी की स्वामिनी उत्तपत्तिकर्त्री तारा ही हैं, जो सूर्य में प्रखर प्रकाश है उसे नीलग्रीव कहा जाता है, यही नील ग्रीवा माँ तारा हैं, सृष्टि उत्तपत्ति के समय प्रकाश के रूप में प्राकट्य हुआ इस लिए तारा नाम से विख्यात हुई किन्तु देवी तारा को महानीला या नील तारा कहा जाता है क्योंकि उनका रंग नीला है, जिसके सम्बन्ध में कथा आती है कि जब सागर मंथन हुआ तो सागर से हलाहल विष निकला, जो तीनों लोकों को नष्ट करने लगा, तब समस्त राक्षसों देवताओं ऋषि मुनिओं नें भगवान शिव से रक्षा की गुहार लगाई, भूत बावन शिव भोले नें सागर म,अन्थान से निकले कालकूट नामक विष को पी लिया, विष पीते ही विष के प्रभाव से महादेव मूर्छित होने लगे, उनहोंने विष को कंठ में रोक लिया किन्तु विष के प्रभाव से उनका कंठ भी नीला हो गया, जब देवी नें भगवान् को मूर्छित होते देख तो देवी नासिका से भगवान शिव के भीतर चली गयी और विष को अपने दूध से प्रभावहीन कर दिया, किन्तु हलाहल विष से देवी का शरीर नीला पड़ गया, तब भगवान शिव नें देवी को महानीला कह कर संबोधित किया, इस प्रकार सृष्टि उत्तपत्ति के बाद पहली बार देवी साकार रूप में प्रकट हुई, दस्माहविद्याओं में देवी तारा की साधना पूजा ही सबसे जटिल है, देवी के तीन प्रमुख रूप हैं १)उग्रतारा २)एकाजटा और ३)नील सरस्वती..........देवी सकल ब्रह्म अर्थात परमेश्वर की शक्ति है, देवी की प्रमुख सात कलाएं हैं जिनसे देवी ब्रहमांड सहित जीवों तथा देवताओं की रक्षा भी करती है ये सात शक्तियां हैं १)परा २)परात्परा ३)अतीता ४)चित्परा ५)तत्परा ६)तदतीता ७)सर्वातीता, इन कलाओं सहित देवी का धन करने या स्मरण करने से उपासक को अनेकों विद्याओं का ज्ञान सहज ही प्राप्त होने लगता है, देवी तारा के भक्त के बुद्धिबल का मुकाबला तीनों लोकों मन कोई नहीं कर सकता, भोग और मोक्ष एक साथ देने में समर्थ होने के कारण इनको सिद्धविद्या कहा गया है

देवी तारा ही अनेकों सरस्वतियों की जननी है इस लिए उनको नील सरस्वती कहा जाता है
देवी का भक्त प्रखरतम बुद्धिमान हो जाता है जिस कारण वो संसार और सृष्टि को समझ जाता है
अक्षर के भीतर का ज्ञान ही तारा विद्या है
भवसागर से तारने वाली होने के कारण भी देवी को तारा कहा जाता है
देवी बाघम्बर के वस्त्र धारण करती है और नागों का हार एवं कंकन धरे हुये है
देवी का स्वयं का रंग नीला है और नीले रंग को प्रधान रख कर ही देवी की पूजा होती है
देवी तारा के तीन रूपों में से किसी भी रूप की साधना बना सकती है समृद्ध, महाबलशाली और ज्ञानवान
सृष्टि की उतपाती एवं प्रकाशित शक्ति के रूप में देवी को त्रिलोकी पूजती है
ये सारी सृष्टि देवी की कृपा से ही अनेक सूर्यों का प्रकाश प्राप्त कर रही है
शास्त्रों में देवी को ही सवित्राग्नी कहा गया है
देवी की स्तुति से देवी की कृपा प्राप्त होती है

स्तुति
प्रत्यालीढ़ पदार्पिताग्ध्रीशवहृद घोराटटहासा परा
खड़गेन्दीवरकर्त्री खर्परभुजा हुंकार बीजोद्भवा,
खर्वा नीलविशालपिंगलजटाजूटैकनागैर्युता
जाड्यन्न्यस्य कपालिके त्रिजगताम हन्त्युग्रतारा स्वयं,

देवी की कृपा से साधक प्राण ज्ञान प्राप्त करने के साथ-साथ भोग और मोक्ष दोनों प्राप्त करता है
गृहस्थ साधक को सदा ही देवी की सौम्य रूप में साधना पूजा करनी चाहिए
देवी अज्ञान रुपी शव पर विराजती हैं और ज्ञान की खडग से अज्ञान रुपी शत्रुओं का नाश करती हैं
लाल व नीले फूल और नारियल चौमुखा दीपक चढाने से देवी होतीं हैं प्रसन्न
देवी के भक्त को ज्ञान व बुद्धि विवेक में तीनो लोकों में कोई नहीं हरा पता
देवी की मूर्ती पर रुद्राक्ष चढाने से बड़ी से बड़ी बाधा भी नष्ट होती है
महाविद्या तारा के मन्त्रों से होता है बड़े से बड़े दुखों का नाश

देवी माँ का स्वत: सिद्ध महामंत्र है-
श्री सिद्ध तारा महाविद्या महामंत्र
ॐ ह्रीं स्त्रीं हुं फट

इस मंत्र से काम्य प्रयोग भी संपन्न किये

जाते हैं जैसे
1. बिल्व पत्र, भोज पत्र और घी से हवन करने पर लक्ष्मी की प्राप्ति होती है
2.मधु. शर्करा और खीर से होम करने पर वशीकरण होता है 3.घृत तथा शर्करा युक्त हवन सामग्री से होम करने पर आकर्षण होता है।
4. काले तिल व खीर से हवन करने पर शत्रुओं का स्तम्भन होता है।
देवी के तीन प्रमुख रूपों के तीन महा मंत्र
महाअंक-देवी द्वारा उतपन्न गणित का अंक जिसे स्वयं तारा ही कहा जाता है वो देवी का महाअंक है -"1"
विशेष पूजा सामग्रियां-पूजा में जिन सामग्रियों के प्रयोग से देवी की विशेष कृपा मिलाती है
सफेद या नीला कमल का फूल चढ़ाना
रुद्राक्ष से बने कानों के कुंडल चढ़ाना
अनार के दाने प्रसाद रूप में चढ़ाना
सूर्य शंख को देवी पूजा में रखना
भोजपत्र पर ह्रीं लिख करा चढ़ाना
दूर्वा,अक्षत,रक्तचंदन,पंचगव्य,पञ्चमेवा व पंचामृत चढ़ाएं
पूजा में उर्द की ड़ाल व लौंग काली मिर्च का चढ़ावे के रूप प्रयोग करें
सभी चढ़ावे चढाते हुये देवी का ये मंत्र पढ़ें-ॐ क्रोद्धरात्री स्वरूपिन्ये नम:

१)देवी तारा मंत्र-ॐ ह्रीं स्त्रीं हुं फट
२)देवी एक्जता मंत्र-ह्रीं त्री हुं फट
३)नील सरस्वती मंत्र-ह्रीं त्री हुं
सभी मन्त्रों के जाप से पहले अक्षोभ्य ऋषि का नाम लेना चाहिए तथा उनका ध्यान करना चाहिए
सबसे महत्पूरण होता है देवी का महायंत्र जिसके बिना साधना कभी पूरण नहीं होती इसलिए देवी के यन्त्र को जरूर स्थापित करे व पूजन करें
यन्त्र के पूजन की रीति है-
पंचोपचार पूजन करें-धूप,दीप,फल,पुष्प,जल आदि चढ़ाएं
ॐ अक्षोभ्य ऋषये नम: मम यंत्रोद्दारय-द्दारय
कहते हुये पानी के 21 बार छीटे दें व पुष्प धूप अर्पित करें
देवी को प्रसन्न करने के लिए सह्त्रनाम त्रिलोक्य कवच आदि का पाठ शुभ माना गया है
यदि आप बिधिवत पूजा पात नहीं कर सकते तो मूल मंत्र के साथ साथ नामावली का गायन करें
तारा शतनाम का गायन करने से भी देवी की कृपा आप प्राप्त कर सकते हैं
तारा शतनाम को इस रीति से गाना चाहिए-

तारणी तरला तन्वी तारातरुण बल्लरी,
तीररूपातरी श्यामा तनुक्षीन पयोधरा,
तुरीया तरला तीब्रगमना नीलवाहिनी,
उग्रतारा जया चंडी श्रीमदेकजटाशिरा,
देवी को अति शीघ्र प्रसन्न करने के लिए अंग न्यास व आवरण हवन तर्पण व मार्जन सहित पूजा करें
अब देवी के कुछ इच्छा पूरक मंत्र
1) देवी तारा का भय नाशक मंत्र
ॐ त्रीम ह्रीं हुं
नीले रंग के वस्त्र और पुष्प देवी को अर्पित करें
पुष्पमाला,अक्षत,धूप दीप से पूजन करें
रुद्राक्ष की माला से 6 माला का मंत्र जप करें
मंदिर में बैठ कर मंत्र जाप से शीघ्र फल मिलता है
नीले रग का वस्त्र आसन के रूप में रखें या उनी कम्बल का आसन रखें
पूर्व दिशा की ओर मुख रखें
आम का फल प्रसाद रूप में चढ़ाएं
2) शत्रु नाशक मंत्र
ऐं ह्रीं श्रीं क्लीं सौ: हुं उग्रतारे फट
नारियल वस्त्र में लपेट कर देवी को अर्पित करें
गुड से हवन करें
रुद्राक्ष की माला से 5 माला का मंत्र जप करें
एकांत कक्ष में बैठ कर मंत्र जाप से शीघ्र फल मिलता है
काले रग का वस्त्र आसन के रूप में रखें या उनी कम्बल का आसन रखें
उत्तर दिशा की ओर मुख रखें
पपीता का फल प्रसाद रूप में चढ़ाएं
3) जादू टोना नाशक मंत्र
ॐ हुं ह्रीं क्लीं सौ: हुं फट
देसी घी ड़ाल कर चौमुखा दीया जलाएं
कपूर से देवी की आरती करें
रुद्राक्ष की माला से 7 माला का मंत्र जप करें
4) लम्बी आयु का मंत्र
ॐ हुं ह्रीं क्लीं हसौ: हुं फट
रोज सुबह पौधों को पानी दें
रुद्राक्ष की माला से 5 माला का मंत्र जप करें
शिवलिंग के निकट बैठ कर मंत्र जाप से शीघ्र फल मिलता है
भूरे रग का वस्त्र आसन के रूप में रखें या उनी कम्बल का आसन रखें
पूर्व दिशा की ओर मुख रखें
सेब का फल प्रसाद रूप में चढ़ाएं
5) सुरक्षा कवच का मंत्र
ॐ हुं ह्रीं हुं ह्रीं फट
देवी को पान व पञ्च मेवा अर्पित करें
रुद्राक्ष की माला से 3 माला का मंत्र जप करें
मंत्र जाप के समय उत्तर की ओर मुख रखें
किसी खुले स्थान में बैठ कर मंत्र जाप से शीघ्र फल मिलता है
काले रग का वस्त्र आसन के रूप में रखें या उनी कम्बल का आसन रखें
उत्तर दिशा की ओर मुख रखें
केले व अमरुद का फल प्रसाद रूप में चढ़ाएं
देवी की पूजा में सावधानियां व निषेध-
बिना "अक्षोभ ऋषि" की पूजा के तारा महाविद्या की साधना न करें
किसी स्त्री की निंदा किसी सूरत में न करें
साधना के दौरान अपने भोजन आदि में लौंग व इलाइची का प्रयोग नकारें
देवी भक्त किसी भी कीमत पर भांग के पौधे को स्वयं न उखाड़ें
टूटा हुआ आइना पूजा के दौरान आसपास न रखें
श्री राम ज्योतिष सदन
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श्री गणेश जी के शाबर मंत्र पंच बाण प्रयोग


श्री गणेश जी के दुर्लभ पंचबाण मन्त्र....
१  समरुं ,गुणपति साधूं ,लाण डाकण मांरु ,चार सिकोत्तरे पाए लगाडूँ,गुणपति राजा घोडे चडीयां भूत पलित में विघन हमेशा होंकारा पिछा फरे तो माई पार्वती जी का दुध हराम करे
२ गुणेश बोले भोले,सवा सैर लाडू खावे ,होंकारा सो कोस जावे हमेशा होंकारा ,पिछा फरे तो माई पार्वती जी कादुध हराम करे .
३ बोडोया वीर!तुं बोलीया वीर ,जब जग तारी सेवा करुं लीला थई शिर धरुं ,माथे मांडु पलाण गसाणमांथी मुठी करुं , कहोने संतो राम राम ४)ॐ गुरुजी तम गणेश गोरी का पुत ,ज्यां समरुं त्या आयो जीत ,तमारा पिता ईश्वर महादेव ,साची तमारी सेवा करुं हमेश कामे पधारो लाडु ,सिन्दुरनी पडी लविंग सुपारी पान बिडूं ,श्री गणपती उर मां धरुं
५),सोधबाई से चला आय , राजा प्रजा लागे पाई ,वाटे घाटे न मारी ओजवाई ,ज्यां समरुं त्या आगेवान . विधी.... गणेश चतुर्थि को लाल लंगोट पहन कर गणपति जी की मुर्ती को अक्षत और दुर्वाके उपर रखे फिर दुध दही जल से क्रमवार स्नान कराये स्नान करवाते समय ॐ गुरुजी गं गणपतये नम: ह्रीं गं गणपतये नम: यह मन्त्र पढते रहें स्नान के पश्चात सिन्दुर लगाऐ गुडहल का पुष्प चढाऐं चुरमे के लड्डु का नैवेद्य और पान का बीडा, लोंग ,सुपारी ,दक्षिणा (रुपये /पैसे )सम्मुख रखें,गुग्गुल की धुप देकर आरती करे उसके पश्चात पांचो बाण मन्त्र का जाप करे पांच माला जाप के पश्चात चुरमे के लड्डु का भोग स्वयंलगाए शैष सारी सामग्री भुमी मे गाड देवे आसन के उपर के अक्षत सम्भाल कर रखे इच्छित कार्य में लाते समय गुग्गुल की धुप देकर पांचो बाणो का पांच बार जाप कर अक्षत में चिन्तन करे कार्य अवश्य पुर्ण होगा ।
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तंत्र साधना मे माला चयन


माला चयन
तन्त्र सिद्धि के लिए शमशान में लागे हुए धतूरे की माला सर्वश्रेष्ठ होती है I
सभी सिद्धियों के लिए, सभी मंत्रों के लिए रुद्राक्ष की माला प्रयोग कर सकते हैं I
महालक्ष्मी की प्राप्ति के लिए कमलगट्टे की माला प्रयोग करनी चाहिए I
पाप नाश के लिए कुशमूल की माला से जाप करना चाहिए I
भक्ति की प्राप्ति के लिए या मोक्ष प्राप्ति के लिए तुलसी की माला प्रयोग करनी चाहिए I
वशीकरण से संबंधित कार्यों में मूंगे की माला से जाप करना चाहिए I
पुत्र प्राप्ति के लिए पुत्रजीवा की माला से जाप करें I
नौकरी की प्राप्ति के लिए लाल हकीक की माला से जाप करें I
विद्या प्राप्ति के लिए स्फटिक माला से मन्त्र जपें I
माला जाप करते वक्त सावधानियां

माला के मनके एक जैसे होँ, छोटे- बड़े नहीं I
माला में साधारणतया 108 मनके एक सुमेरु मिलाकर कुल 109 दानें होने चाहियें I
माला का धागा शुरू से अंत तक एक ही होना चाहिए बीच में गांठ नहीं आनी चाहिए I
सुमेरु को बाँधनें के लिए ढाई फेरों वाली ब्रह्म ग्रंथि का प्रयोग करना चाहिए न की साधारण गांठ का I
रुद्राक्ष की माला को बनाते समय मुख से मुख और पुच्छ से पुच्छ मिलाने चाहियें तभी सिद्धि होती है I
वशीकरण के कार्यों में लाल, शांति कार्यों में सफ़ेद, धन प्राप्ति के लिए पीले रेशमी सूत का प्रयोग करना चाहिए I
अच्छी सिद्धि के लिए कुंवारी ब्राह्मण कन्या के हाथ से कता हुआ सूत प्रयोग करना चाहिए I
भली प्रकार से बनी हुई माला को संस्कारित करना चाहिए तभी मन्त्र चैतन्य होकर मनोकामना को पूर्ण करते हैं I
जाप करते हुए न तो माला को हिलाएं न स्वयं हिलें I
मन्त्र जाप करते हुए आवाज न आएँ I
माला फेरते समय इसे गौमुखी या वस्त्र के अन्दर रखें ताकि माला किसी को दिखे नहीं I
माला को हमेशा शुद्ध जगह रखें और माला एवं आसन किसी से शेयर न करें I
जाप करते वक्त इसे तर्जनी उंगली का (अंगूठे के साथ वाली) स्पर्श न होने देन I
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मां बगलामुखी देवी साधना


बगलामुखी देवी अपने साधक को कभी-कभी भयभीत भी करती हैं। अतः दृढ़ इच्छा और संकल्प शक्ति वाले साधक ही साधना करें। साधना आरंभ करने से पूर्व गुरु का ध्यान और पूजा अनिवार्य है। बगलामुखी के भैरव मृत्युंजय हैं। अतः साधना से पूर्व महामृत्यंजय का कम से कम एक माला जप अवश्य करें। वस्त्र, आसन आदि पीले होने चाहिए। साधना उत्तर की ओर मुंह कर के ही करें। मंत्र जप हल्दी की माला से करें। जप के बाद माला गले में धारण करें। ध्यान रखें, साधना कक्ष में कोई अन्य व्यक्ति प्रवेश न करे, न ही कोई माला का स्पर्श करे। साधना रात्रि के 8.00 से भोर 3.00 बजे के बीच ही करें। मंत्र जप की संख्या अपनी क्षमतानुसार निश्चित करें, फिर उससे न तो कम न ही अधिक जप करें। मंत्र जप 16 दिन में पूरा हो जाना चाहिए। मंत्र जप के लिए शुक्ल पक्ष या नवरात्रि सर्वश्रेष्ठ समय है। मंत्र जप से पहले संकल्प हेतु जल हाथ में लेकर अपनी इच्छा स्पष्ट रूप से बोल कर व्यक्त करें। साधना काल में इसकी चर्चा किसी से न करें। साधना काल में अपने बायीं ओर तेल का तथा अपने दायीं ओर घी का अखंड दीपक जलाएं।

उपासना विधि :- किसी भी शुभ मुहूर्त में सोने, चांदी, या तांबे के पत्र पर मां बगलामुखी के यंत्र की रचना करें। यंत्र यथासंभव उभरे हुए रेखांकन में हो। इस यंत्र की प्राण प्रतिष्ठा कर नियमित रूप से पूजा करें। इस यंत्र को रविपुष्य या गुरुपुष्य योग में मां बगलामुखी के चित्र के साथ स्थापित करें। फिर सब से पहले बगला माता का ध्यान कर विनियोग करें गणेशजी का पूजन, संकल्प , गुरुजी का पूजन , पंचदेवता पूजन, भैरव पूजन , भूतशुद्धि , कलशस्थापन प्राणप्रतिस्ठा , पीठमातृका न्यास , पीठपूजन करें | निम्न मंत्र पढ़कर विनियोग करें :-

विनियोग मंत्र :- ॐ अस्य श्री बगलामुखी मंत्रस्य नारद ऋषिः त्रिष्टुपछंदः श्री बगलामुखी देवता ह्लीं बीजं स्वाहा शक्तिः ममाभीष्ट सिद्ध्यर्थे जपे विनियोगः।( दाएं हाथ में जल में जल लेकर मंत्र का उच्चारण करते हुए चित्र के आगे छोड़ दें )–

करन्यास :-
————
ॐ ह्ल्रीम अगुष्ठाभ्यां नमः |
बगलामुखी तर्जनीभ्यां नमः सर्वदुष्टानां मध्यमाभ्यां नमः |
वाचं मुखं पदं स्तंभय अनामिकाभ्यां नमः |
जिह्वां कीलय कनिष्ठिकाभ्यां नमः |
बुद्धिं विनाशय ह्ल्रीम ॐ स्वाहा करतल कर पृष्ठाभ्यां नमः |

षडअंगन्यास :-
ॐ ह्ल्रीम हृदयाम नमः |
बगलामुखी शिरसे स्वाहा |
सर्वदुष्टानां शिखायै वषट् |
वाचं मुखं पदं स्तम्भयं कवचाय हुंम |
जिह्वां कीलय नेत्रत्रयाय वौषट् |
बुद्धि विनाशय ह्ल्रीम ॐ स्वाहा अस्त्राय फट्।

ध्यान :-
——-
मध्ये सुधाब्धि मणि मंडप रत्नवेद्यां |
सिंहासनो परिगतां परिपीतवर्णाम् ||
पीताम्बरा भरणमाल्य विभूषितांगी |
देवी नजामि घृतमुद्गर वैरिजिहवाम्।।
जिह्वाग्रमादाय करेण देवीं। वामेन शत्रून् परिपीडयंतीम् ||
गदाभिघातेन व दक्षिणेन। पीतांबराढ्यां द्विभुजां नमामि।।

अब षोडशोपचार पूजन करने के बाद आवरण पूजा , स्तोत्र , सहस्त्रनाम , बगलहृदय पाठ करें पश्चात उपरोक्त उद्धृत बगला उपासनायां उपयोगी कुल्कुलादि साधना एवं प्राणायाम करके 36 अक्षर का मूल मंत्र जप करे ( प्रतिदिन कम से कम 5000 मंत्र जप आवश्यक है )

36 अक्षर का मंत्र -
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“ॐ ह्ल्रीं बगलामुखी सर्वदुष्टानां वाचं मुखं पदं स्तंभय जिह्वां कीलय बुद्धिं विनाश ह्ल्रीं ॐ स्वाहा ।”

प्रणाम :-
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प्रपद्ये शर्णां देवी श्री कामाख्या स्वरूपिणीम् ।
शिवश्य दुहितां शुद्धां नमामि बगलामुखीम् ॥

अंतिम दिन दशांश हवन , ततदशांश तर्पण ततदशांश मार्जन ततदशांश ब्राह्मण भोजन भी करना आवश्यक है

विशेष :- 1)माँ बगलामुखी का बीज ‘’ ह्लीं ‘’ है , परंतु इसमे अग्नि बीज का संयुक्त कर ‘’ ह्ल्रीम ‘’ का जप करने पर मंत्र और भी शक्ति प्रदान करता है |
ओं रां रामाय नम:
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श्री राम ज्योतिष सदन
भारतीय वैदिक ज्योतिष एवं मंत्र यंत्र तंत्र परामर्शदाता
दैवज्ञ पंडित आशु बहुगुणा मोबाइल नंबर 97 6092 4411 यही हमारा WhatsApp नंबर भी है।
मुजफ्फरनगर उत्तर प्रदेश

भैरव यंत्र प्रयोग करके लाभ उठाएं


आपदा उद्धारक बटुक भैरव यंत्र
किसी भी शुभ कार्य में, चाहे वह यज्ञ हो, विव्वः हो, शाक्त साधना हो, तंत्र साधना हो, गृह प्रवेश अथवा कोई मांगलिक कार्य हो, भैरव की स्थापना एवं पूजा अवश्य ही की जाती है, क्योंकि भैरव ऐसे समर्थ रक्षक देव है, जो कि सब प्रकार के विघ्नों को, बाधाओं को रोक सकते हैं, और कार्य सफलतापूर्वक पूर्ण हो जाता है| आपदा उद्वारक बटुक भैरव यंत्र स्थापित करने के निम्न लाभ हैं -
- व्यक्ति को मुकदमें में विजय प्राप्त होती है|
- समाज में उसके मां-सम्मान और पौरुष में वृद्धि होती है|
- किसी भी प्रकार की राज्य बाधा, जैसे प्रमोशन अथवा ट्रांसफर में आ रही बाधाओं से निवृत्ति प्राप्त होती है|
- आपके शत्रु द्वारा कराया गया तंत्र प्रयोग समाप्त हो जाता है|
यदि आपके जीवन में उपरोक्त प्रकार की बाधाएं लगातार आ रही हों, और आप कई प्रकार के उपाय कर चुके है, इसके बावजूद भी आपकी आपदा समाप्त नहीं हो रही है, तो आपको आपदा उद्वारक बटुक भैरव यंत्र अवश्य ही स्थापित करना चाहिए| इस यंत्र को स्थापित कर बताई गई लघु विधि द्वारा पुजन करने मात्र से ही आपकी आपदाएं स्वतः ही समाप्त हो जाती हैं| इस यंत्र के लिए किसी विशेष पूजन क्रम की आवश्यकता नहीं है क्योंकि इसे अमृत योग, शुभ मुहूर्त में सदगुरुदेव द्वारा बताई गई विशेष विधि द्वारा प्राण-प्रतिष्ठित किया गया है|
स्थापन विधि - बटुक भैरव यंत्र को किसी भी षष्ठी अथवा बुधवार को रात्रि में काले तिल की ढेरी पर स्थापित कर कुंकुम, अक्षत, धुप से संक्षिप्त पूजन कर लें| इसके पश्चात पूर्ण चैतन्य भाव से निम्न मंत्र का १ घंटे तक जप करें|
|| ॐ ह्रीं बटुकाय आपद उद्वारणाय कुरु कुरु बटुकाय ह्रीं ॐ स्वाहा ||
उपरोक्त मंत्र का यंत्र के समक्ष ७ दिन तक लगातार जप करने के पश्चात यंत्र को किसी जल-सरोवर में विसर्जीत कर दें| कुछ ही दिनों में आपकी समस्त आपदाएं स्वतः ही समाप्त हो जायेगी|
श्रीराम ज्योतिष सदन. भारतीय वैदिक ज्योतिष.और मन्त्र  यन्त्र तन्त्र एवं रत्न परामँश दाता ।आपका दैवज्ञ पंडित आशु बहुगुणा ।  अपनी जन्मकुण्डली के अनुकूल विशिष्ट मन्त्र यन्त्र तन्त्र के माध्यम से कायॅ सिद्ध करने के लिये सम्पकॅ करे । --- संपर्क सूत्र---9760924411

प्रेत बाधा दूर करने का प्रयोग

घर मे प्रेत उपद्रव या कोई सँकट है तो शुक्ल पक्ष मे किसी भी दिन थोङा गुग्गल ,गाय के गोबर के कँडे पर रखे और उपर से एक चम्मच देशी गाय का घी उपर से गिरा देवे हवन मे आहुती देते है उसी तरह गिराना है फिर अपका जो भी इष्ट तथा कुलदेवता का नाम लेके या श्रीहनुमान जी का मंत्र -- इस मँत्र का जाप करते हुए पुरे घर मे उसकी ज्योत दिखा देवे ये काम 11 दिन करना है शाम के समय तथा उसकी भभूत को घर मे रखना है और 12 वेँ दिन उस भभूत को गँगाजल,11तुलसी के पत्ते जो की सुबह के समय तोङना है रविवार तथा एकादशी को नही तोङना है ये तुलसी पत्ते ,गँगाजल और उस भभूत को मिलाके घर मे उस जल को छिङक देवे फिर चाहे कैसा भी प्रेत उपद्रव हो घर मे नही रहेगा ओर कोई भाई के घर मे उसी घर की आत्मा है तो वो घर तो नही छोङेगी लेकिन किसि को परेशान नहि करेगी और एक बात घी देशी(कपिलागाय) गाय का ही होना चाहिए तथा गाय के गोबर का कँडा क्योकी पुराणो व शास्रो मे उसी गाय का वर्णन है ये प्रयोग मैने कई भाईयो को बताया है और सभी को फायदा हुआ है आप लोग भी उठाये।

श्री आदि भैरव शाबर मंत्र प्रयोग

श्री आदि भैरव जी को शाबर मंत्र

|| आद भैरव, जुगाद भैरव, भैरों है सब थाईं, भैरूं ब्रह्मा, भैरूं विष्णु, भैरूं ही है भोला साईं, भैरूं देवी, भैरूं सब देवता, भैरूं सिद्ध, भैरूं नाथ, भैरूं बिन होए न रक्षा, भैरूं बिन बजे न नाद, काल भैरूं, विकराल भैरूं, घौर भैरूं , अघोर भैरूं, भैरूं की कोई न जाने सार, भैरूं की महिमा अपरम्पार, श्वेत वस्त्र , श्वेत जटा धारी, हत्थ में मुद्गर, स्वान की सवारी, सार की जंजीर, लोहे का कड़ा, जहाँ सिमरूं, भैरूं बाबा खडा, चले मंत्र, फुरे वाचा, देखाँ आद भैरों, तेरे इल्म चोट का तमाशा ||

विधि

इस शाबर मंत्र का ४१ दिनों तक श्री शिव या भैरव बाबा के मंदिर में रोज़ एक माला मंत्र का जप करना है और रोज़ उर्द के बड़े और मद्द्य का भोग देना है. वैष्णव जन मीठे पेय का भोग दे सकते हैं. सभी मनोकामना पूरी होती हैं।

भोजपत्र क्यो महत्वपूर्ण है। तंत्र मे

भोजपत्र का ख्याल आते ही उन प्राचीन पांडुलिपियों का विचार आता है, जिन्हे भोजपत्रों पर लिखा गया है। दरअसल, कागज की खोज के पूर्व हमारे देश में लिखने का काम भोजपत्र पर किया जाता था। भोजपत्र पर लिखा हुआ सैकड़ों वर्षो तक वैसा ही रहता है, लेकिन अफसोस कि वर्तमान में इस भोज वृक्ष गिनती के ही बचे हैं। हमारे देश के कई पुरातत्व संग्रहालयों में भोजपत्र पर लिखी गई सैकड़ों पांडुलिपियां सुरक्षित रखी है। जैसे हरिद्वार में गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय का संग्रहालय। कालीदास ने भी अपनी कृतियों में भोज-पत्र का उल्लेख कई स्थानों पर किया है। उनकी कृति कुमारसंभवम् में तो भोजपत्र को वस्त्र के रूप में उपयोग करने का जिक्र भी है। भोजपत्र का उपयोग प्राचीन रूस में कागज की मुद्रा 'बेरेस्ता' के रूप में भी किया जाता था। इसका उपयोग सजावटी वस्तुओं और चरण पादुकाओं-जिन्हे 'लाप्ती' कहते थे, के निर्माण में भी किया जाता था। सुश्रुत एवं वराद मिहिर ने भी भोजपत्र का जिक्र किया है। भोजपत्र का उपयोग काश्मीर में पार्सल लपेटने में और हुक्कों के लचीले पाइप बनाने में भी किया जाता था। वर्तमान में भोजपत्रों पर कई यंत्र लिखे जाते है।
दरअसल, भोजपत्र भोज नाम के वृक्ष की छाल का नाम है, पत्ते का नहीं। इस वृक्ष की छाल ही सर्दियों में पतली-पतली परतों के रूप में निकलती हैं, जिन्हे मुख्य रूप से कागज की तरह इस्तेमाल किया जाता था। भोज वृक्ष हिमालय में 4,500 मीटर तक की ऊंचाई पर पाया जाता है। यह एक ठंडे वातावरण में उगने वाला पतझड़ी वृक्ष है, जो लगभग 20 मीटर तक ऊंचा हो सकता है। भोज को संस्कृत में भूर्ज या बहुवल्कल कहा गया है। दूसरा नाम बहुवल्कल ज्यादा सार्थक है। बहुवल्कल यानी बहुत सारे वस्त्रों/छाल वाला वृक्ष। भोज को अंग्रेजी में हिमालयन सिल्वर बर्च और विज्ञान की भाषा में बेटूला यूटिलिस कहा जाता है। यह वृक्ष बहुउपयोगी है। इसके पत्ते छोटे और किनारे दांतेदार होते है। वृक्ष पर शहतूत जैसी नर और मादा रचनाएं लगती है, जिन्हे मंजरी कहा जाता है। छाल पतली, कागजनुमा होती है, जिस पर आड़ी धारियों के रूप में तने पर मिलने वाले वायुरंध्र बहुत ही साफ गहरे रंग में नजर आते है। यह लगभग खराब न होने वाली होती है, क्योंकि इसमें रेजिनयुक्त तेल पाया जाता है। छाल के रंग से ही इसके विभिन्न नाम [लाल, सफेद, सिल्वर और पीला] बर्च पड़े है।
भोज पत्र की बाहरी छाल चिकनी होती है, जबकि आम, नीम, इमली, पीपल, बरगद आदि अधिकतर वृक्षों की छाल काली भूरी, मोटी, खुरदरी और दरार युक्त होती है। यूकेलिप्टस और जाम की छाल मोटी परतों के रूप में अनियमित आकार के टुकड़ों में निकलती है। भोजपत्र की छाल कागजी परत की तरह पतले-पतले छिलकों के रूप में निकलती है।
भोज के पेड़ हल्की, अच्छी पानी की निकासी वाली अम्लीय मिट्टी में अच्छी तरह पनपते है। इकालाजी के लिहाज से इन्हे शुरुआती माना जाता है। आग या अन्य दखलंदाजी से ये बड़ी तेजी से फैलते है। भोज से कागज के अलावा इसके अच्छे दाने वाली, हल्के पीले रंग की साटिन चमक वाली लकड़ी भी मिलती है। इससे वेनीर और प्लायवुड भी बनाई जाती है।
बेटूला वेरुकोसा (मैसूर बर्च) से उम्दा किस्म की लकड़ी प्राप्त होती है। छोटे रेशों के कारण उसकी लुगदी से टिकाऊ कागज भी बनता है। बर्च की लकड़ी का उपयोग ड्रम, सितार, गिटार आदि बनाने में भी किया जाता है। बेलारूस, रूस, फिनलैंड, स्वीडन और डेनमार्क तथा उत्तरी चीन के कुछ हिस्सों में बर्च के रस का उपयोग उम्दा बीयर के रूप में होता है। इससे जाइलिटाल नामक मीठा एल्कोहल भी मिलता है जिसका उपयोग मिठास के लिए होता है। बर्च के पराग कण एलर्जिक होते है। पित्त ज्वर से प्रभावित कुछ लोग इसके परागकणों के प्रति संवेदी पाए गए है।
सफेद बर्च पर उगने वाला मशरूम कैंसर के उपचार में उपयोग में लाया जाता है। बर्च की छाल में बेटूलिन और बेटुलिनिक एसिड और अन्य रसायन मिले है, जो दवा उद्योग में उपयोगी पाए गए है। आचार्य भाव मिश्र [1500-1600] रचित भाव प्रकाश निघंटु के अनुसार इसकी छाल का उपयोग वातानुलोमक एवं प्रतिदूषक होता है। इसे कामला, पित्त ज्वर में दिया जाता है। कर्ण स्त्राव एवं विषाक्त व्रण प्रक्षालना में भी इसका उपयोग होता है। इसके पत्ते उत्तेजक एवं स्तंभक माने जाते है।

दुर्गा सप्तशती पाठ विधि

  दुर्गा सप्तशती दुर्गा सप्तशती पाठ विधि पूजनकर्ता स्नान करके, आसन शुद्धि की क्रिया सम्पन्न करके, शुद्ध आसन पर बैठ जाएँ। माथे पर अपनी पसंद क...