गुरु की आवश्यकता क्यों होती है। ?
अध्यात्म और साधना के क्षेत्र में गुरु का महत्त्व इसलिए नहीं है। कि वह मंत्र बताता है। अथवा शुद्ध उच्चारण बताता है। या देवी देवता का चुनाव करता है। या शक्तिपात करता है। या पूजा पद्धति बताता है। वह अपनी अर्जित शक्ति शक्तिपात आदि से अथवा अपना अर्जित ज्ञान तो देता ही है। गुरु का महत्त्व इसलिए होता है। की वह सफलता को निश्चित करने के सूत्र देता है। वह हजारों साल के अनुभव और तकनिकी से अवगत कराता है। जिससे सफलता शीघ्र और निश्चित रूप से मिलती है।
कहा जा सकता है। की क्या गुरु की आयु आज के समय में हजार साल हो सकती है। जो वह हजार साल के अनुभव और तकनिकी देता है। नहीं ,वह हजार साल की आयु का भले नहीं हो किन्तु उसमे कई हजार साल के अनुभव होते हैं। और वह देता है। गुरु को उनके गुरु से ,उन्हें उनके गुरु से ,उन्हें उनके गुरु से ,इस क्रम में हजारों सालों के अनुभव ,सफलता ,असफलता के कारण ,उनकी खोजें ,वह तकनीक जिससे इन क्रमों में सफलता निश्चित और शीघ्र मिली ,यह सब प्राप्त हुआ होता है। इसके अलावा विभिन्न गुरु स्तरों पर साधना और सूक्ष्म विचरण के अनुभव | प्राप्त ज्ञान केवल अपने योग्य शिष्यों को ही गुरु द्वारा बताया गया होता है| इस प्रकार के अनुभव क्रमिक रूप से आते हुए गुरु में एकत्र होते हैं। और यह अनुभव कोई गुरु कभी न तो लिखता है। न लिखने की अनुमति देता है। वह सभी शिष्यों को सबकुछ बताता भी नहीं | इसलिए यह तकनीक और अनुभव न किताबों में लिखी जाती है। न संभव है |
इन सब तकनीकियों और ज्ञान के लिए ही गुरु का महत्त्व सर्वाधिक होता है |मंत्र और पद्धतियाँ तो किताबों में भी मिल जाती हैं। किन्तु तकनीक और अनुभव नहीं होते |गुरु द्वारा प्राप्त मंत्र भी जाग्रत और स्वयं सिद्ध होते हैं| यही कारण है। की किताबों से सफलता नहीं मिलती अगर थोड़ी बहुत मिल भी जाए तो कुछ थोडा सा पाने और खुद को श्रेष्ठ समझने में ही जीवन आयु समाप्त हो जाती है। और व्यक्ति अंत में सोचता है काश समय रहते किसी को गुरु बना लिया होता अथवा गुरु खोज लिया होता या कोई योग्य गुरु मिल गया होता तो अधिक सफल हो जाता है।
जय श्रीराम
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