About The Best Astrologer In Muzaffarnagar, India -Consultations by Astrologer Consultations by Astrologer - Pandit Ashu Bahuguna Skills : Vedic Astrology , Horoscope Analysis , Astrology Remedies , Prashna kundli IndiaMarriage Language: Hindi Experience : Exp: 35 Years Expertise: Astrology , Business AstrologyCareer Astrology ,Court/Legal Issues , Property Astrology, Health Astrology, Finance Astrology, Settlement , Education http://shriramjyotishsadan.in Mob +919760924411
मंगलवार, 16 अप्रैल 2019
जय श्री राम सभी समस्याओ के समाधान मन्त्र-यन्त्र-तन्त्र- द्वारा उपलब्ध है हमारे यहाँ सभी प्रकार की समस्याओं के निवारण हेतु अनुष्ठान किये जाते है तथा मन्त्र सिद्ध कवच और व्यापार व्रद्धि यन्त्र - कुबेरदेवता- यन्त्र- शत्रुनाशक यन्त्र- बालरक्षा यन्त्र- शत्रु द्वारा अभिचार नाशक यन्त्र- कायॅसिदधि दायक यन्त्र- बंधीदुकान खोलने का यन्त्र- विवाह बाधा यन्त्र-और वशीकरणयन्त्र- धन व्रद्धि यन्त्र - तैयार किये जाते है। आपकी समस्या का समाधान किया-कराया, प्रेम-विवाह, व्यापार, गृहक्लेश, दुश्मन से छुटकारा, वशीकरण, खुशहाल एवं प्रसन्नचित रहें, गृहक्लेश, व्यापारिक समस्या,विवाह में रुकावट, ऋण होना, ऊपरी समस्या, कुण्डली दोष, पति-पत्नी अनबन, दुश्मनों से छुटकारा, आपके जीवन की हर मुस्किल समस्याओ का समाधान किया जायेगा – पुत्र श्री ज्योतिर्विद पण्डित टीकाराम बहुगुणा । मै केवल जन्मकुण्डली देखकर ही आप की सम्सयाओ का समाधान कर सकता हुँ । अपनी जन्मकुण्डली के अनुकूल विशिष्ट मन्त्र यन्त्र तन्त्र -के माध्यम से कायॅ सिद्ध करने के लिये सम्पकॅ करे ।.-- क्या आप निशुल्क परामर्श चाहते हैं ? तो आप मुझसे सम्पकॅ ना करे । ---- संपर्क सूत्र---9760924411
श्रीबगला कीलक-स्तोत्रम्. श्रीबगला कीलक-स्तोत्रम्. ह्लीं ह्लीं ह्लींकार-वाणे, रिपुदल-दलने, घोर-गम्भीर-नादे ! ज्रीं ह्रीं ह्रींकार-रुपे, मुनि-गण-नमिते, सिद्धिदे, शुभ्र-देहे ! भ्रों भ्रों भ्रोंकार-नादे, निखिल-रिपु-घटा-त्रोटने, लग्न-चित्ते ! मातर्मातर्नमस्ते सकल-भय-हरे ! नौमि पीताम्बरे ! त्वाम् ।। १ क्रौं क्रौं क्रौमीश-रुपे, अरि-कुल-हनने, देह-कीले, कपाले ! हस्रौं हस्रौं-सवरुपे, सम-रस-निरते, दिव्य-रुपे, स्वरुपे ! ज्रौं ज्रौं ज्रौं जात-रुपे, जहि जहि दुरितं जम्भ-रुपे, प्रभावे ! कालि, कंकाल-रुपे, अरि-जन-दलने देहि सिद्धिं परां मे ।। २ हस्रां हस्रीं च हस्रैं, त्रिभुवन-विदिते, चण्ड-मार्तण्ड-चण्डे ! ऐं क्लीं सौं कौल-विधे, सतत-शम-परे ! नौमि पीत-स्वरुपे ! द्रौं द्रौं द्रौं दुष्ट-चित्ताऽऽदलन-परिणते, बाहु-युग्म-त्वदीये ! ब्रह्मास्त्रे, ब्रह्म-रुपे, रिपु-दल-हनने, ख्यात-दिव्य-प्रभावे ।। ३ ठं ठं ठंकार-वेशे, ज्वलन-प्रतिकृति-ज्वाला-माला-स्वरुपे ! धां धां धां धारयन्तीं रिपु-कुल-रसनां मुद्गरं वज्र-पाशम् । डां डां डां डाकिन्याद्यैर्डिमक-डिम-डिमं डमरुं वादयन्तीम् ।। ४ मातर्मातर्नमस्ते प्रबल-खल-जनं पीडयन्तीं भजामि । वाणीं सिद्धि-करे ! सभा-विशद-मध्ये वेद-शास्त्रार्थदे ! मातः श्रीबगले, परात्पर-तरे ! वादे विवादे जयम् । देहि त्वं शरणागतोऽस्मि विमले, देवि प्रचण्डोद्धृते ! मांगल्यं वसुधासु देहि सततं सर्व-स्वरुपे, शिवे ! ।। ५ निखिल-मुनि-निषेव्यं, स्तम्भनं सर्व-शत्रोः । शम-परमिहं नित्यं, ज्ञानिनां हार्द-रुपम् । अहरहर-निशायां, यः पठेद् देवि ! कीलम् । स भवति परमेशि ! वादिनामग्र-गण्यः ।। "वक्रतुण्ड महाकाय , सूर्यकोटि समप्रभ ! निर्विघ्नं कुरु मे देव , सर्व कार्येषु सर्वदा" !! श्रीराम ज्योतिष सदन. भारतीय वैदिक ज्योतिष.और मंत्र विशेषज्ञ एवं रत्न परामँश दाता । आप जन्मकुंडली बनवाना ॰ जन्मकुंडली दिखवाना ॰ जन्मकुंडली मिलान करवाना॰ जन्मकुंडली के अनुसार नवग्रहो का उपाय जानना ॰ मंत्रो के माध्यम से उपाय जानना ॰ रत्नो के माध्यम से उपाय जानना और आपकी शादी नही हो रही है। व्यवसाय मे सफलता नही मिल रही है! नोकरी मे सफलता नही मिल रही है। और आप शत्रु से परेशान है। ओर आपके कामो मे अडचन आ रही है । और आपको धन सम्बंधी परेशानी है । और अन्य सभी प्रकार की समस्याओ के लिये संपर्क करें । आपका दैवज्ञश्री पंडित आशु बहुगुणा । पुत्र श्री ज्योतिर्विद पण्डित टीकाराम बहुगुणा । मै केवल जन्मकुण्डली देखकर ही आप की सम्सयाओ का समाधान कर सकता हुँ । अपनी जन्मकुण्डली के अनुकूल विशिष्ट मन्त्र यन्त्र के माध्यम से कायॅ सिद्ध करने के लिये सम्पकॅ करे ।.-- क्या आप निशुल्क परामर्श चाहते हैं ? तो आप मुझसे सम्पकॅ ना करे । ---- संपर्क सूत्र---9760924411
मध्यप्रदेश के उज्जैन में भी कालभैरव के ऐतिहासिक मंदिर है, जो बहुत महत्व का है। पुरानी धार्मिक मान्यता के अनुसार भगवान कालभैरव को यह वरदान है कि भगवान शिव की पूजा से पहले उनकी पूजा होगी। इसलिए उज्जैन दर्शन के समय कालभैरव के मंदिर जाना अनिवार्य है। तभी महाकाल की पूजा का लाभ आपको मिल पाता है। कैसे करें कालभैरव का पूजन : - काल भैरवाष्टमी के दिन मंदिर जाकर भैरवजी के दर्शन करने से पूर्ण फल की प्राप्ति होती है। उनकी प्रिय वस्तुओं में काले तिल, उड़द, नींबू, नारियल, अकौआ के पुष्प, कड़वा तेल, सुगंधित धूप, पुए, मदिरा, कड़वे तेल से बने पकवान दान किए जा सकते हैं। शुक्रवार को भैरवाष्टमी पड़ने के कारण इस दिन उन्हें जलेबी एवं तले पापड़ या उड़द के पकौड़े का भोग लगाने से जीवन के हर संकट दूर होकर मनुष्य का सुखमय जीवन व्यतीत होता है। कालभैरव के पूजन-अर्चन से सभी प्रकार के अनिष्टों का निवारण होता है तथा रोग, शोक, दुखः, दरिद्रता से मुक्ति मिलती है। कालभैरव के पूजन में उनकी प्रिय वस्तुएं अर्पित कर आशीर्वाद प्राप्त किया जा सकता है। भैरवजी के दर्शन-पूजन से सकंट व शत्रु बाधा का निवारण होता है। दसों दिशाओं के नकारात्मक प्रभावों से मुक्ति मिलती है तथा पुत्र की प्राप्ति होती है। इस दिन भैरवजी के वाहन श्वान को गुड़ खिलाने का विशेष महत्व है। "वक्रतुण्ड महाकाय , सूर्यकोटि समप्रभ ! निर्विघ्नं कुरु मे देव , सर्व कार्येषु सर्वदा" !! श्रीराम ज्योतिष सदन. भारतीय वैदिक ज्योतिष.और मंत्र विशेषज्ञ एवं रत्न परामँश दाता । आप जन्मकुंडली बनवाना ॰ जन्मकुंडली दिखवाना ॰ जन्मकुंडली मिलान करवाना॰ जन्मकुंडली के अनुसार नवग्रहो का उपाय जानना ॰ मंत्रो के माध्यम से उपाय जानना ॰ रत्नो के माध्यम से उपाय जानना और आपकी शादी नही हो रही है। व्यवसाय मे सफलता नही मिल रही है! नोकरी मे सफलता नही मिल रही है। और आप शत्रु से परेशान है। ओर आपके कामो मे अडचन आ रही है । और आपको धन सम्बंधी परेशानी है । और अन्य सभी प्रकार की समस्याओ के लिये संपर्क करें । आपका दैवज्ञश्री पंडित आशु बहुगुणा । पुत्र श्री ज्योतिर्विद पण्डित टीकाराम बहुगुणा । मै केवल जन्मकुण्डली देखकर ही आप की सम्सयाओ का समाधान कर सकता हुँ । अपनी जन्मकुण्डली के अनुकूल विशिष्ट मन्त्र यन्त्र के माध्यम से कायॅ सिद्ध करने के लिये सम्पकॅ करे ।.-- क्या आप निशुल्क परामर्श चाहते हैं ? तो आप मुझसे सम्पकॅ ना करे । ---- संपर्क सूत्र---9760924411
रोजगार प्राप्ति उपाय मंगलवार को अथवा रात्रिकाल में निम्नलिखित मन्त्र का अकीक की माला से 108 बार जप करें । इसके बाद नित्य इसी मन्त्र का स्नान करने के बाद 11 बार जप करें । इसके प्रभाव से अतिशीघ्र ही आपको मनोनुकूल रोजगार की प्राप्ति होगी । यह मन्त्र माँ भवानी को प्रसन्न करता है, अतः जप के दौरान अपने सम्मुख उनका चित्र भी रखें । ” ॐ हर त्रिपुरहर भवानी बाला राजा मोहिनी सर्व शत्रु । विंध्यवासिनी मम चिन्तित फलं देहि देहि भुवनेश्वरी स्वाहl जय श्री राम ------ आपका दैवज्ञश्री पंडित आशु बहुगुणा । पुत्र श्री ज्योतिर्विद पंडित टीकाराम बहुगुणा । मोबाईल न0॰है (9760924411) इसी नंबर पर और दोपहर-12.00 –बजे से शाम -07.00 -के मध्य ही संपर्क करें। मुजफ्फरनगर ॰उ0॰प्र0.•..
महाकाली सबंधित पूर्ण काल ज्ञान के लिए निकटत्तम भविष्य को जानने के लिए एक सामान्य विधान इस रूप से है जो की व्यक्ति को भविष्य के ज़रोखे मे जांक कर देखने के लिए शक्ति प्रदान करता है किसीभी शुभदिन से यह साधना शुरू की जा सकती है । इसमें महाकाली का विग्रह या चित्र अपने सामने स्थापित करे और रात्री काल मे उसका सामान्य पूजन कर के निम्न मंत्र की २१ माला २१ दिन तक करे । यानि रोज 21 माला प्रतिदिन जाप करना हे । मंत्र :- काली कंकाली प्रत्यक्ष क्रीं क्रीं क्रीं हूं साधना काल मे लोहबान का धुप व् घी का दीपक जलते रहना चाहिए । यह जाप रुद्राक्ष या काली हकीक माला से किया जा सकता है । साधना के कुछ दिनों मे साधको को कई मधुर अनुभव हो सकते है. जय श्री राम ------ आपका दैवज्ञश्री पंडित आशु बहुगुणा । पुत्र श्री ज्योतिर्विद पंडित टीकाराम बहुगुणा । मोबाईल न0॰है (9760924411) इसी नंबर पर और दोपहर-12.00 –बजे से शाम -07.00 -के मध्य ही संपर्क करें। मुजफ्फरनगर ॰उ0॰प्र0.•..
देह रक्षा की मंत्र निम्न मन्त्रो को किसी भी शनिवार या मंगलवार को हनुमान जी विषयक नियमो का पालन करके तथा व्रत रख कर 1000 जप करके इनको सिद्ध कर ले फिर 3 या 7 बार पढकर अपने शरीर पर फूंक मारे व दोनों हाथो को पुरे शरीर पर फेरें | इससे आपकी रक्षा होगी कोई भी शक्ति आप को नुकसान नही पहुंचाएगी | 1 .||ॐ नमः वज्र का कोठा जिसमे पिण्ड हमारा पैठा ईश्वर कुंजी, ब्रह्मा का ताला मेरे आठो याम का यती हनुमन्त रखवाला || 2. || उत्तर बांधो, दक्खिन बांधो, बांधो मरी मसानी डायन भूत के गुण बांधो, बांधो कुल परिवार नाटक बांधो, चाटक बांधो, बांधो भुइयां बैताल नजर गुजर देह बांधो, राम दुहाई फेरों || 3. || जल बांधो, थल बांधो, बांधो अपनी काया सात सौ योगिनी बांधो, बांधो जगत की माया दुहाई कामरू कामाक्षा नैना योगिनी की || जय श्री राम ------ आपका दैवज्ञश्री पंडित आशु बहुगुणा । पुत्र श्री ज्योतिर्विद पंडित टीकाराम बहुगुणा । मोबाईल न0॰है (9760924411) इसी नंबर पर और दोपहर-12.00 –बजे से शाम -07.00 -के मध्य ही संपर्क करें। मुजफ्फरनगर ॰उ0॰प्र0.•..
देवी मंत्र द्वारा वशीकरण वशीकरण का सामान्य और सरल अर्थ है- किसी को प्रभावित करना, आकर्षित करना या वश में करना। जीवन में ऐसे कई मोके आते हैं जब इंसान को ऐसे ही किसी उपाय की जरूरत पड़ती है। किसी रूठें हुए को मनाना हो या किसी अपने के अनियंत्रित होने पर उसे फिर से अपने नियंत्रण में लाना हो,तब ऐसे ही किसी उपाय की सहायता ली जा सकती है। वशीकरण के लिये यंत्र, तंत्र, और मंत्र तीनों ही प्रकार के प्रयोग किये जा सकते हैं। यहां हम ऐसे ही एक अचूक मंत्र का प्रयोग बता रहे हैं। यह मंत्र दुर्गा सप्तशती का अनुभव सिद्ध मंत्र है। यह मंत्र तथा कुछ निर्देश इस प्रकार हैं- ज्ञानिनामपि चेतांसि, देवी भगवती ही सा। बलादाकृष्य मोहाय, महामाया प्रयच्छति ।। यह एक अनुभवसिद्ध अचूक मंत्र है। इसका प्रयोग करने से पूर्व भगवती त्रिपुर सुन्दरी मां महामाया का एकाग्रता पूर्वक ध्यान करें। ध्यान के पश्चात पूर्ण श्रृद्धा-भक्ति से पंचोपचार से पूजा कर संतान भाव से मां के समक्ष अपना मनोरथ व्यक्त कर दें। वशीकरण सम्बंधी प्रयोगों में लाल रंग का विशेष महत्व होता है अत: प्रयोग के दोरान यथा सम्भव लाल रंग का ही प्रयोग करें। मंत्र का प्रयोग अधार्मिक तथा अनैतिक उद्देश्य के लिये करना सर्वथा वर्जित है। जय श्री राम ------ आपका दैवज्ञश्री पंडित आशु बहुगुणा । पुत्र श्री ज्योतिर्विद पंडित टीकाराम बहुगुणा । मोबाईल न0॰है (9760924411) इसी नंबर पर और दोपहर-12.00 –बजे से शाम -07.00 -के मध्य ही संपर्क करें। मुजफ्फरनगर ॰उ0॰प्र0.•..
सर्व सिद्दी कारक भैरव मंत्र ॐ गुरु जी काल भैरव काली लट हाथ फारसी साथ नगरी करूँ प्रवेश नगरी को करो बकरी राजा को करो बिलाई जो कोई मेरा जोग भंग करे बाबा क्रिशन नाथ की दुहाई | मंत्र विधान के लिये हमसे सम्पकॅ करे । श्रीराम ज्योतिष सदन। दैवज्ञ पंडित आशु बहुगुणा । पुत्र दैवज्ञ श्री पंडित टीकाराम बहुगुणा भारतीय वैदिक ज्योतिष और मंत्र विशेषज्ञ एवं रत्न परामशॅ दाता- और मंत्र अनुष्ठान के द्ववारा सभी सम्सयाओ का समाधान किया जाता है। मोबाईल न0॰है। (9760924411) इसी नंबर पर और दोपहर-12.00 –बजे से शाम -07.00 -के मध्य ही संपर्क करें। मुजफ्फरनगर ॰उ0॰प्र0.
शरीर बांधने का मंत्र || ॐ वज्र का सीकड़ ! वज्र का किवाड़ ! वज्र बंधे दसो द्वार ! वज्र का सीकड़ से पी बोल ! गहे दोष हाथ न लगे ! आगे वज्र किवाड़ भैरो बाबा ! पसारी चौसठ योगिनी रक्षा कारी ! सब दिशा रक्षक भूतनाथ !दुहाई इश्वर , महादेव, गौरा पारवती की ! दुहाई माता काली की || पूजन में बैठ रहे हों तो अपने चरों ओर घेरा बना लें . इससे सुरक्षा रहेगी । मंत्र विधान के लिये हमसे सम्पकॅ करे । श्रीराम ज्योतिष सदन। दैवज्ञ पंडित आशु बहुगुणा । पुत्र दैवज्ञ श्री पंडित टीकाराम बहुगुणा भारतीय वैदिक ज्योतिष और मंत्र विशेषज्ञ एवं रत्न परामशॅ दाता- और मंत्र अनुष्ठान के द्ववारा सभी सम्सयाओ का समाधान किया जाता है। मोबाईल न0॰है। (9760924411) इसी नंबर पर और दोपहर-12.00 –बजे से शाम -07.00 -के मध्य ही संपर्क करें। मुजफ्फरनगर ॰उ0॰प्र0.
प्रत्येक महाविद्या अपने साधक को किसी शक्ति विशेष का वरदान प्रदान करती हैं जिस प्रकार माँ तारा “शब्दशक्ति रहस्य” प्रदान करती हैं उसी प्रकार छिन्नमस्ता “प्राणशक्ति रहस्य” से साधक का जीवन सराबोर करती हैं | इस प्राणशक्ति के रहस्य को समझने के बाद माँ छिन्नमस्ता के आशीर्वाद से साधक ना सिर्फ सुषुम्ना पथ पर पूर्ण नियंत्रण प्राप्त कर लेता है अपितु उस सुप्त पथ को जाग्रत कर पूर्ण रूपेण चैतन्यता भी प्रदान कर देता है | वस्तुतः प्राणशक्ति को सिद्धजन तीन रूपों में जानते हैं,किन्तु हम उसमे से मात्र महाप्राण की ही बात करेंगे |महाप्राण-परा सृष्टि, अपरा सृष्टि और सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड जिस प्राणशक्ति की चैतन्यता से व्याप्त है,प्राण की अतिउच्चावस्था जो की विशुद्धतम अवस्था कहलाती है और जिस रूप में प्राण की सम्पूर्ण शक्तियां निहित होती हैं,ऐसे प्राण महाप्राण कहलाते हैं,जब इसका समावेश सुषुम्ना से हो जाता है तो चारित्रिक शुद्धता के साथ साथ आत्मतत्व की भी प्राप्ति हो जाती है और साधक के पवन नेत्र जाग्रत हो जाते हैं ,जिससे साधक को लिंग नहीं अपितु आत्मतत्व के दर्शन ही होते हैं और ऐसे में वो “श्यामा साधना” जैसी दुरूह साधना को भी सहज ही बिना किसी चित्त विकार के पार कर लेता है | अर्थात इन प्राण रहस्यों को पूरी तरह से समझ लेने पर साधक छिन्नमस्ता रहस्य को सहज ही आत्मसात कर लेता है |छिन्नमस्ता देवी के कटे हुए मस्तक से निकल रही तीन रक्त धाराएँ प्रतीक हैं रुद्रग्रंथी,विष्णुग्रंथी और ब्रह्म्ग्रंथी के छिन्न होने की | अर्थात छिन्नमस्ता साधना का पूर्ण आलंबन लेने पर साधक सृजन,पालन और संहार के चक्र से बहुत ऊपर उठ जाता है,मैंने पहले ही आपको इंगित किया है की जैसे ही सुषुम्ना अपने पथ पर पूर्ण चैतन्यता के साथ इन तीनों ग्रंथियों का भेदन करती है तो मात्र पूर्ण विशुद्ध सोम तत्व ही प्राणशक्तियों के सहयोग से ७२,००० नाड़ियों में प्रसारित होने लगता है,तब निर्जरा देह, प्राणों का खेचरत्व और अदृश्य तत्व की प्राप्ति सहज ही हो जाती है |याद रखिये ना तो आपको चंद्र नाड़ी इड़ा पूर्णत्व दे सकती है और ना ही सूर्य नाड़ी पिंगला पूर्णत्व दे सकती है, क्यूंकि लाख प्रयास पर भी ये आपस में संयोग नहीं कर पति है,क्यूंकि इनकी दिशा और गुण धर्म में ही अंतर होता है किन्तु,मेरु दंड से होते हुए मात्र सुषुम्ना ही मूलाधार से होते हुए समस्त चक्रों का भेदन करते हुए सहस्त्रार को भेदित करती है | और छिन्नमस्ता साधना से ही ये पथ ना सिर्फ दृढ़ होता है अपितु एक आवरण से सुषुम्ना सूत्र रक्षित भी हो जाता है |याद रखिये हमारे मेरु दंड के जितने मोती हैं वे सभी विभिन्न योनियों की वासना से युक्त होते हैं,और साधना काल या सामान्य जीवन में सुषुम्ना में संचारित उर्जा जब इन मोतियों से टकराती है तो वो उर्जा विकृत होकर उस मोती में दमित योनी की वासना को आपकी मानसिकता पर हावी कर देती है फलस्वरूप व्यक्ति कामविह्वल हो जाता है और मात्र अतृप्त काम कुंठा ही मनो मष्तिष्क पर अपना डेरा जमा लेती है और जो धीरे धीरे व्यक्ति का व्यक्तिव बन जाती है |किन्तु छिन्नमस्ता साधना से जब सुषुम्ना सूत्र कवचित हो जाता है तो मूलाधार में व्याप्त उर्जा या शक्ति उस सूत्र का आश्रय लेकर बिना किसी भटकाव के सहस्त्रार से योग कर लेती है और इस प्रकार बिना कमोद्वेग के दिव्य मैथुन की क्रिया पूर्ण हो जाती है,जहाँ मात्र निर्मलत्व ही रह जाता है और खुल जाते हैं सभी महाविद्याओं के मंडल में प्रवेश का मार्ग भी जिसके द्वारा सभी महाविद्याओं को सहज ही पूरी तरह सिद्ध किया जा सकता है |“ जय श्री राम ------ आपका दैवज्ञश्री पंडित आशु बहुगुणा । पुत्र श्री ज्योतिर्विद पंडित टीकाराम बहुगुणा । मोबाईल न0॰है (9760924411) इसी नंबर पर और दोपहर-12.00 –बजे से शाम -07.00 -के मध्य ही संपर्क करें। मुजफ्फरनगर ॰उ0॰प्र0.•..
कामिया सिन्दूर-मोहन मन्त्र “हथेली में हनुमन्त बसै, भैरु बसे कपार। नरसिंह की मोहिनी, मोहे सब संसार। मोहन रे मोहन्ता वीर, सब वीरन में तेरा सीर। सबकी नजर बाँध दे, तेल सिन्दूर चढ़ाऊँ तुझे। तेल सिन्दूर कहाँ से आया ? कैलास-पर्वत से आया। कौन लाया, अञ्जनी का हनुमन्त, गौरी का गनेश लाया। काला, गोरा, तोतला-तीनों बसे कपार। बिन्दा तेल सिन्दूर का, दुश्मन गया पाताल। दुहाई कमिया सिन्दूर की, हमें देख शीतल हो जाए। सत्य नाम, आदेश गुरु की। सत् गुरु, सत् कबीर। विधि- आसाम के ‘काम-रुप कामाख्या, क्षेत्र में ‘कामीया-सिन्दूर’ पाया जाता है। इसे प्राप्त कर लगातार सात रविवार तक उक्त मन्त्र का १०८ बार जप करें। इससे मन्त्र सिद्ध हो जाएगा। प्रयोग के समय ‘कामिया सिन्दूर’ पर ७ बार उक्त मन्त्र पढ़कर अपने माथे पर टीका लगाए। ‘टीका’ लगाकर जहाँ जाएँगे, सभी वशीभूत होंगे जय श्री राम ------ आपका दैवज्ञश्री पंडित आशु बहुगुणा । पुत्र श्री ज्योतिर्विद पंडित टीकाराम बहुगुणा । मोबाईल न0॰है (9760924411) इसी नंबर पर और दोपहर-12.00 –बजे से शाम -07.00 -के मध्य ही संपर्क करें। मुजफ्फरनगर ॰उ0॰प्र0.•..
ब्रह्मचार्य सिद्धि . जिसने अपने काे साध लिया उसने सब साध लिया. शास्त्र कहता है- ‘मरणं विन्दुपातेन जीवनं विन्दुधारणात्” अर्थात् वीर्य का पात करना ही मृत्यु और वीर्य धारण करना ही जीवन है।भगवान शंकर कहते हैं-न तपस्तप इत्याहुर्ब्रह्मर्च्यं तपोत्तमम्।ऊर्ध्वरेता भवेद् यस्तु से देवो न तु मानुषः॥ अर्थात्- ब्रह्मचर्य से बढ़कर और कोई तप नहीं है। ऊर्ध्वरेता (जिसका वीर्य मस्तिष्क आदि द्वारा उच्च कार्यों में व्यय होता है।) पुरुष मनुष्य नहीं प्रत्यक्ष देवता है।समुद्र तरणे यद्वत् उपायो नौः प्रकीर्तिता।संसार तरणे तद्वत् ब्रह्मचर्य प्रकीर्तितम्॥अर्थात् जिस प्रकार समुद्र को पार करने का नौका उत्तम उपाय है, उसी प्रकार इस संसार से पार होने का उत्कृष्ट साधन ब्रह्मचर्य ही है।ये तपश्चतपस्यन्त कौमाराः ब्रह्मचारिणः। विद्यावेद ब्रत स्नाता दुर्गाण्यपि तरन्ति ते॥अर्थात्- जो ब्रह्मचारी, ब्रह्मचर्य रूपी तपस्या करते हैं और उत्तम विद्या एवं ज्ञान से अपने को पवित्र बना लेते हैं, वे संसार की समस्त दुर्गम कठिनाइयों को पार कर जाते हैं।सिद्धे बिन्दौ महायत्ने किन सिद्धयति भूतले। यस्य प्रसादान्महिमाममाप्ये तादृशो भवेत्॥अर्थात्- महान परिश्रम पूर्वक वीर्य का साधना करने वाले ब्रह्मचारी के लिए इस पृथ्वी पर भला किस कार्य में सफलता नहीं मिलती? ब्रह्मचर्य के प्रताप से मनुष्य मेरे (ईश्वर के) तुल्य हो जाता है।‘ब्रह्मचर्य परं तपः।’ब्रह्मचर्य ही सबसे श्रेष्ठ तपश्चर्या है। “एकतश्चतुरो वेदाः ब्रह्मचर्य तथैकतः।”अर्थात्- एक तरफ चारों वेदों का फल और दूसरी ओर ब्रह्मचर्य का फल, दोनों में ब्रह्मचर्य का फल ही विशेष है।
सिद्ध शूलिनी दुर्गा-स्तुति दुःख दुशासन पत चीर हाथ ले, मो सँग करत अँधेर । कपटी कुटिल मैं दास तिहारो, तुझे सुनाऊँ टेर ।। मैय्या॰ ।।१ बुद्धि चकित थकित भए गाता, तुम ही भवानी मम दुःख-त्राता । चरण शरण तव छाँड़ि कित जाऊँ, सब जीवन दुःख निवेड़ ।।मैय्या॰ ।।२ भक्ति-हीन शक्ति के नैना, तुझ बिन तड़पत हैं दिन-रैना । लाज तिहारे हाथ सौंप दइ, दे दर्शन चढ़ शेर ।।मैय्या॰ ।।३ विधिः- उपर्युक्त रचना “शूलिनी-दुर्गा” की स्तुति है । विशेष सङ्कट-काल में भक्ति-पूर्वक सतत गायन करते रहने से तीन रात्रि में ‘संकट’ नष्ट होते है । भगवती षोडशी (श्री श्रीविद्या) का ध्यान कर, इस स्तुति की तीन आवृत्ति करते हुए स्तवन करने पर सद्यः ‘अर्थ-प्राप्ति’ ३ घण्टे में होती है । एक वर्ष तक नियमित रुप से इस स्तुति का गायन करने पर, माँ स्वयं स्वप्न में ‘मन्त्र-दीक्षा’ प्रदान करती है । ‘नव-रात्र’ में नित्य मध्य-रात्रि में श्रद्धा-पूर्वक इस स्तुति की १६ आवृत्ति गायन करने से ५ रात्रि के अन्दर स्वप्न में ‘माँ’ का साक्षात्कार होता है । प्रातः एवं सायं-काल नित्य नियमित रुप से भक्ति-पूर्वक ‘भैरवी-रागिनी’ में इस स्तुति का गायन करने से ‘आत्म-साक्षात्कार’ होता है ।...
॥ कालीकवचम् ॥ भैरव् उवाच - कालिका या महाविद्या कथिता भुवि दुर्लभा । तथापि हृदये शल्यमस्ति देवि कृपां कुरु ॥ १ ॥ कवचन्तु महादेवि कथयस्वानुकम्पया । यदि नो कथ्यते मातर्व्विमुञ्चामि तदा तनुं ॥ २ ॥ श्रीदेव्युवाच - शङ्कापि जायते वत्स तव स्नेहात् प्रकाशितं । न वक्तव्यं न द्रष्टव्यमतिगुह्यतरं महत् ॥ ३ ॥ कालिका जगतां माता शोकदुःखविनाशिनी । विशेषतः कलियुगे महापातकहारिणी ॥ ४ ॥ काली मे पुरतः पातु पृष्ठतश्च कपालिनी । कुल्ला मे दक्षिणे पातु कुरुकुल्ला तथोत्तरे ॥ ५ ॥ विरोधिनी शिरः पातु विप्रचित्ता तु चक्षुषी । उग्रा मे नासिकां पातु कर्णौ चोग्रप्रभा मता ॥ ६ ॥ वदनं पातु मे दीप्ता नीला च चिबुकं सदा । घना ग्रीवां सदा पातु बलाका बाहुयुग्मकं ॥ ७ ॥ मात्रा पातु करद्वन्द्वं वक्षोमुद्रा सदावतु । मिता पातु स्तनद्वन्द्वं योनिमण्डलदेवता ॥ ८ ॥ ब्राह्मी मे जठरं पातु नाभिं नारायणी तथा । ऊरु माहेश्वरी नित्यं चामुण्डा पातु लिञ्गकं ॥ ९ ॥ कौमारी च कटीं पातु तथैव जानुयुग्मकं । अपराजिता च पादौ मे वाराही पातु चाञ्गुलीन् ॥ १० ॥ सन्धिस्थानं नारसिंही पत्रस्था देवतावतु । रक्षाहीनन्तु यत्स्थानं वर्ज्जितं कवचेन तु ॥ ११ ॥ तत्सर्व्वं रक्ष मे देवि कालिके घोरदक्षिणे । ऊर्द्धमधस्तथा दिक्षु पातु देवी स्वयं वपुः ॥ १२ ॥ हिंस्रेभ्यः सर्व्वदा पातु साधकञ्च जलाधिकात् । दक्षिणाकालिका देवी व्यपकत्वे सदावतु ॥ १३ ॥ इदं कवचमज्ञात्वा यो जपेद्देवदक्षिणां । न पूजाफलमाप्नोति विघ्नस्तस्य पदे पदे ॥ १४ ॥ कवचेनावृतो नित्यं यत्र तत्रैव गच्छति । तत्र तत्राभयं तस्य न क्षोभं विद्यते क्वचित् ॥ १५ ॥ इति कालीकुलसर्व्वस्वे कालीकवचं समाप्तम् ॥
…|| पंचमुखी हनुमान कवच || श्री गणेशाय नम: | ओम अस्य श्रीपंचमुख हनुम्त्कवचमंत्रस्य ब्रह्मा रूषि:| गायत्री छंद्:| पंचमुख विराट हनुमान देवता| र्हींह बीजम्| श्रीं शक्ति:| क्रौ कीलकम्| क्रूं कवचम्| क्रै अस्त्राय फ़ट्| इति दिग्बंध्:| श्री गरूड उवाच्|| अथ ध्यानं प्रवक्ष्यामि| श्रुणु सर्वांगसुंदर| यत्कृतं देवदेवेन ध्यानं हनुमत्: प्रियम्||१|| पंचकक्त्रं महाभीमं त्रिपंचनयनैर्युतम्| बाहुभिर्दशभिर्युक्तं सर्वकामार्थसिध्दिदम्||२|| पूर्वतु वानरं वक्त्रं कोटिसूर्यसमप्रभम्| दंष्ट्राकरालवदनं भ्रुकुटीकुटिलेक्षणम्||३|| अस्यैव दक्षिणं वक्त्रं नारसिंहं महाद्भुतम्| अत्युग्रतेजोवपुष्पंभीषणम भयनाशनम्||४|| पश्चिमं गारुडं वक्त्रं वक्रतुण्डं महाबलम्| सर्वनागप्रशमनं विषभूतादिकृन्तनम्||५|| उत्तरं सौकरं वक्त्रं कृष्णं दिप्तं नभोपमम्| पातालसिंहवेतालज्वररोगादिकृन्तनम्| ऊर्ध्वं हयाननं घोरं दानवान्तकरं परम्| येन वक्त्रेण विप्रेन्द्र तारकाख्यमं महासुरम्||७|| जघानशरणं तस्यात्सर्वशत्रुहरं परम्| ध्यात्वा पंचमुखं रुद्रं हनुमन्तं दयानिधिम्||८|| खड्गं त्रिशुलं खट्वांगं पाशमंकुशपर्वतम्| मुष्टिं कौमोदकीं वृक्षं धारयन्तं कमण्डलुं||९|| भिन्दिपालं ज्ञानमुद्रा दशभिर्मुनिपुंगवम्| एतान्यायुधजालानि धारयन्तं भजाम्यहम्||१०|| प्रेतासनोपविष्टं तं सर्वाभरण्भुषितम्| दिव्यमाल्याम्बरधरं दिव्यगन्धानु लेपनम सर्वाश्चर्यमयं देवं हनुमद्विश्वतोमुखम्||११|| पंचास्यमच्युतमनेकविचित्रवर्णवक्त्रं शशांकशिखरं कपिराजवर्यम्| पीताम्बरादिमुकुटै रूप शोभितांगं पिंगाक्षमाद्यमनिशं मनसा स्मरामि||१२|| मर्कतेशं महोत्राहं सर्वशत्रुहरं परम्| शत्रुं संहर मां रक्ष श्री मन्नपदमुध्दर||१३|| ओम हरिमर्कट मर्केत मंत्रमिदं परिलिख्यति लिख्यति वामतले| यदि नश्यति नश्यति शत्रुकुलं यदि मुंच्यति मुंच्यति वामलता||१४|| ओम हरिमर्कटाय स्वाहा ओम नमो भगवते पंचवदनाय पूर्वकपिमुखाय सकलशत्रुसंहारकाय स्वाहा| ओम नमो भगवते पंचवदनाय दक्षिणमुखाय करालवदनाय नरसिंहाय सकलभूतप्रमथनाय स्वाया| ओम नमो भगवते पंचवदनाय पश्चिममुखाय गरूडाननाय सकलविषहराय स्वाहा| ओम नमो भगवते पंचवदनाय उत्तरमुखाय आदिवराहाय सकलसंपत्कराय स्वाहा| ओम नमो भगवते पंचवदनाय उर्ध्वमुखाय हयग्रीवाय सकलजनवशकराय स्वाहा| ||ओम श्रीपंचमुखहनुमंताय आंजनेयाय नमो नम:||
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