Sunday, 27 January 2019

कार्य सिद्धि प्रयोग

रूके हुए कार्यों की सिद्धि के लिए:व्यापार, विवाह या किसी

- सफेद पलाश के फूल, चांदी की गणेश प्रतिमा,

- बिल्ली की आंवल, सियार सिंगी, हथ्था जोड़ी और कामाख्या का वस्त्र इन तीनों को एक साथ सिंदूर में रखें। उपरोक्त सामग्री में से किसी को भी तिजोरी में

किसी के प्रत्येक शुभ का

- रूके हुए कार्यों की सिद्धि के लिए यह प्रयोग बहुत ही लाभदायक है। गणेश चतुर्थी को गणेश जी का ऐसा चित्र घर या दुकान पर लगाएं,

- सरकारी या निजी रोजगार क्षेत्र में परिश्रम के उपरांत भी सफलता नहीं मिल रही हो, तो नियमपूर्वक किये गये विष्णु यज्ञ की विभूति ले कर, अपने पितरों की क्वकुशां की मूर्ति बना कर, गंगाजल से स्नान करायें तथा यज्ञ विभूति लगा कर, कुछ भोग लगा दें और उनसे कार्य की सफलता हेतु कृपा करने की प्रार्थना करें। किसी धार्मिक ग्रंथ का एक अध्याय पढ़ कर, उस कुशा की मूर्ति को पवित्र नदी या सरोवर में प्रवाहित कर दें। सफलता अवश्य मिलेगी। सफलता के बाद किसी शुभ कार्य में दान दें।जिसमें उनकी सूंड दायीं ओर मुड़ी हुई हो। इसकी आराधना करें। इसके आगे लौंग तथा सुपारी रखें। जब भी कहीं काम पर जाना हो, तो एक लौंग तथा सुपारी को साथ ले कर जाएं, तो काम सिद्ध होगा। लौंग को चूसें तथा सुपारी को वापस ला कर गणेश जी के आगे रख दें तथा जाते हुए कहें श्री गणेश काटो कलेशं।र्य में बाधा आती हो या विलम्ब होता हो तो रविवार को भैरों जी के मंदिर में सिंदूर का चोला चढ़ा कर बटुक भैरव स्तोत्रं का एक पाठ कर के गाय, कौओं और काले कुत्तों को उनकी रूचि का पदार्थ खिलाना चाहिए। ऐसा वर्ष में 4-5 बार करने से कार्य बाधाएं नष्ट हो जाएंगी।रखने से पहले

इन टोटकों से बनने लगेंगे आपके सारे काम अगर आपका कोई भी काम आसानी से नहीं होता है हर काम चाहे वह नौकरी से जुड़ा हो, शादी से या अन्य किसी क्षेत्र से रूकावटें और असफलताएं आपका रास्ता रोक लेती हैं तो इसके लिए ये टोटके आपके लिए लाभदायक सिद्ध हो सकते हैं। किसी विशेष मुर्हूत में ।।ऊं ऐं ह्रीं क्लीं चामुंण्डाये विच्चे।। इस मंत्र के जप के साथ अभिमंत्रित करें। व चांदी में

- घर के मुख्य दरवाजे

- सुबह शुभ मुहूर्त में एकाक्षी नारियल का कामिया सिन्दूर कुमकुम व चावल से पूजन करें धन लाभ होने लगेगा। पर कुमकुम से स्वास्तिक बनाएं और बासमती चावल की ढेरी पर एक सुपारी में कलावा बांध कर रख दें। धन का आगमन होने लगेगा। मड़ा हुए एकाक्षी नारियल को अभिमंत्रिमत कर तिजोरी में रखें।भी कार्य के करने में बार-बार असफलता:शनिदोष मिटाएगें

- एकाक्षी नारियल को लाल कपड़े में बांधकर तिजोरी में रखें।

श्री हनुमान चालीसा के चमत्कार

हनुमान चालीसा की चौपाई से चमत्कार

वैसे तो हनुमान चालीसा की हर चौपाइ और दोहे चमत्कारी हैं लेकिन कुछ ऐसी चौपाइयां हैं जो बहुत जल्द असर दिखाती हैं। ये चौपाइयां सर्वाधिक प्रचलित भी हैं समय-समय में काफी लोग इनका जप करते हैं।

1) रामदूत अतुलित बलधामा।
अंजनिपुत्र पवनसुत नामा।

यदि कोई व्यक्ति इस चौपाई का जप करता है तो उसे शारीरिक कमजोरियों से मुक्ति मिलती है। इस पंक्ति का अर्थ यह है कि हनुमानजी श्रीराम के दूत हैं और अतुलित बल के धाम हैं। यानि हनुमानजी परम शक्तिशाली हैं। इनकी माता का नाम अंजनी है इसी वजह से इन्हें अंजनी पुत्र कहा जाता है। शास्त्रों के अनुसार हनुमानजी को पवन देव का पुत्र माना जाता है इसी वजह से इन्हें पवनसुत भी कहते हैं।

2) महाबीर बिक्रम बजरंगी।
कुमति निवार सुमति के संगी।।

यदि कोई व्यक्ति हनुमान चालीसा की केवल इस पंक्ति का जप करता है तो उसे सुबुद्धि की प्राप्ति होती है। इस पंक्ति का जप करने वाले लोगों के कुविचार नष्ट होते हैं और सुविचार बनने लगते हैं। बुराई से ध्यान हटता है और अच्छाई की ओर मन लगता है।

इस पंक्ति का अर्थ यही है कि बजरंगबली महावीर हैं और हनुमानजी कुमति को निवारते हैं यानि कुमति को दूर करते हैं और सुमति यानि अच्छे विचारों को बढ़ाते हैं।

3) बिद्यबान गुनी अति चातुर।
रामकाज करीबे को आतुर।।

यदि किसी व्यक्ति को विद्या धन चाहिए तो उसे इस पंक्ति का जप करना चाहिए। इस पंक्ति के जप से हमें विद्या और चतुराई प्राप्त होती है। इसके साथ ही हमारे हृदय में श्रीराम की भक्ति भी बढ़ती है।

इस चौपाई का अर्थ है कि हनुमानजी विद्यावान हैं और गुणवान हैं। हनुमानजी चतुर भी हैं। वे सदैव ही श्रीराम के काम को करने के लिए तत्पर रहते हैं। जो भी व्यक्ति इस चौपाई का जप करता है उसे हनुमानजी की ही तरह विद्या, गुण, चतुराई के साथ ही श्रीराम की भक्ति प्राप्त होती है।

4) भीम रूप धरि असुर संहारे।
रामचंद्रजी के काज संवारे।।

जब आप शत्रुओं से परेशान हो जाएं और कोई रास्ता दिखाई न दे तो हनुमान चालीसा का जप करें। यदि एकाग्रता और भक्ति के साथ हनुमान चालीसा की सिर्फ इस पंक्ति का भी जप किया जाए तो शत्रुओं पर विजय प्राप्ति होती है। श्रीराम की कृपा प्राप्त होती है।

इस पंक्ति का अर्थ यह है कि श्रीराम और रावण के बीच हुए युद्ध में हनुमानजी ने भीम रूप यानि विशाल रूप धारण करके असुरों-राक्षसों का संहार किया। श्रीराम के काम पूर्ण करने में हनुमानजी ने अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया। जिससे श्रीराम के सभी काम संवर गए।

5) लाय संजीवन लखन जियाये।
श्रीरघुबीर हरषि उर लाये।।

इस पंक्ति का जप करने से भयंकर बीमारियों से भी मुक्ति मिल सकती है। यदि कोई व्यक्ति किसी गंभीर बीमारी से पीडि़त है और दवाओं का भी असर नहीं हो रहा है तो उसे भक्ति के साथ हनुमान चालीसा या इस पंक्ति का जप करना चाहिए। दवाओं का असर होना शुरू हो जाएगा, बीमारी धीरे-धीरे ठीक होने लगेगी।

इस चौपाई का अर्थ यह है कि रावण के पुत्र मेघनाद ने लक्ष्मण को मुर्छित कर दिया था। तब सभी औषधियों के प्रभाव से भी लक्ष्मण की चेतना लौट नहीं रही थी। तब हनुमानजी संजीवनी औषधि लेकर आए और लक्ष्मण के प्राण बचाए। हनुमानजी के इस चमत्कार से श्रीराम अतिप्रसन्न हुए।

श्रीराम के परम भक्त हनुमानजी सबसे जल्दी प्रसन्न होने वाले देवताओं में से एक हैं। शास्त्रों के अनुसार माता सीता के वरदान के प्रभाव से बजरंग बली को अमर बताया गया है। ऐसा माना जाता है आज भी जहां रामचरित मानस या रामायण या सुंदरकांड का पाठ पूरी श्रद्धा एवं भक्ति से किया जाता है वहां हनुमानजी अवश्य प्रकट होते हैं। इन्हें प्रसन्न करने के लिए बड़ी संख्या श्रद्धालु हनुमान चालीसा का पाठ भी करते हैं।

यदि कोई व्यक्ति पूरी हनुमान चालीसा का पाठ करने में असमर्थ रहता है तो वह अपनी मनोकामना के अनुसार केवल कुछ पंक्तियों का भी जप कर सकता है।

शिव पंचाक्षर स्तोत्र

शिव को प्रसन्न करने की चाह तथा उनकी शरणागत पाने के लिए भगवान शिव का पंचाक्षरी मंत्र बहुत महत्व रखता है. इस व्रत के साथ ही शिव भगवान का व्रत तथा पूजन अवश्य करना चाहिए. शिव व्रत करने वाले व्यक्ति सांसारिक भोगों को भोगने के पश्चात अंत में शिवलोक में जाते है. चतुर्दशी तिथि को इस पंचाक्षरी मंत्र का जाप अवश्य ही किया जाना चाहिए ऎसा करने से मनुष्य सभी तीर्थों के स्नान का फल प्राप्त करता है. जो व्यक्ति शिव की भक्ति से अछूते रहते हैं वह हमेशा जन्म-मरण के चक्र में घूमते रहते हैं.

भगवान शिव का पूजन कर भक्तगण उनका आशीर्वाद प्राप्त कर अपनी समस्त मनोकामनाओं को पूर्ण करने का वर माँगते हैं. शिवलिंग पर बेल वृक्ष के पत्ते चढा़ने चाहिए. धतूरे के पुष्पों से शिवलिंग पर पूजन करना चाहिए. भगवान शिव को बिल्वपत्र तथा धतूरे के फूल बहुत प्रिय हैं. इसलिए शिव पूजन में इनका प्रयोग करना चाहिए. इस दिन "ऊँ नम: शिवाय" का जाप 108 बार करना चाहिए. महामृत्युंजय मंत्र का जाप शिव भगवान को प्रसन्न करने का तथा सभी प्रकार की बाधाओं को दूर करने का महामंत्र है.

भगवान शिव पर जिस पर कृपा करते हैं उनका उद्धार हो जाता है. भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए कई स्तुतियों की रचना प्राप्त होती है इन सभी के मध्य में शिव पंचाक्षर स्त्रोत एक महत्वपूर्ण मंत्र साधना है. इसका प्रतिदिन जाप करने से भगवान शंकर शीघ्र ही प्रसन्न हो जाते हैं तथ औनका आशिर्वाद एवं सानिध्य प्राप्त होता है.
शिव पंचाक्षर स्त्रोत |

नागेंद्रहाराय त्रिलोचनाय भस्मांग रागाय महेश्वराय

नित्याय शुद्धाय दिगंबराय तस्मे न काराय नम: शिवाय:॥

मंदाकिनी सलिल चंदन चर्चिताय नंदीश्वर प्रमथनाथ महेश्वराय

मंदारपुष्प बहुपुष्प सुपूजिताय तस्मे म काराय नम: शिवाय:॥

शिवाय गौरी वदनाब्जवृंद सूर्याय दक्षाध्वरनाशकाय

श्री नीलकंठाय वृषभद्धजाय तस्मै शि काराय नम: शिवाय:॥

वषिष्ठ कुभोदव गौतमाय मुनींद्र देवार्चित शेखराय

चंद्रार्क वैश्वानर लोचनाय तस्मै व काराय नम: शिवाय:॥

यज्ञस्वरूपाय जटाधराय पिनाकस्ताय सनातनाय

दिव्याय देवाय दिगंबराय तस्मै य काराय नम: शिवाय:॥

पंचाक्षरमिदं पुण्यं य: पठेत शिव सन्निधौ

शिवलोकं वाप्नोति शिवेन सह मोदते॥

नागेंद्रहाराय त्रिलोचनाय भस्मांग रागाय महेश्वराय|
नित्याय शुद्धाय दिगंबराय तस्मे "न" काराय नमः शिवायः॥

इस मंत्र के अर्थ में हम इस बात को समक्ष सकते हैं जो इस प्रकार है कि हे प्रभु महेश्वर आप नागराज को गले हार रूप में धारण करते हैं आप तीन नेत्रों वाले भस्म को अलंकार के रुप में धारण करके अनादि एवं अनंत शुद्ध हैं. आप आकाश को वस्त्र सामान धारण करने वाले हैं. मै आपके ‘न’स्वरूप को नमस्कार करता हूँ आप चन्दन से लिप्त गंगा को अपने सर पर धारण करके नन्दी एवं अन्य गणों के स्वामी महेश्वर हैं आप सदा मन्दार एवं अन्य पुष्पों द्वारा पुजित हैं. हे भगवन मैं आपके ‘म्’ स्वरूप को नमस्कार करता हूं.

धर्म ध्वज को धारण करने वाले नीलकण्ठ प्रभु तथा ‘शि’ अक्षर वाले महाप्रभु, आपने ही दक्ष के अंहकार स्वरुप यज्ञ का नाश किया था. माता गौरी को सूर्य सामान तेज प्रदान करने वाले प्रभु शिव को मै नमन करता हूँ.

देवगणो एवं वषिष्ठ, अगस्त्य, गौतम आदि मुनियों द्वारा पूज्य महादेव जिनके लिए सूर्य, चन्द्रमा एवं अग्नि त्रिनेत्र सामन हैं. हे प्रभु मेरा आपके ‘व्’ अक्षर वाले स्वरूप को नमस्कार है. हे यज्ञस्वरूप, जटाधारी शिव आप आदि, मध्य एवं अंत से रहित हैं आप सनातन हैं, हे प्रभु आप दिव्य अम्बर धारी शिव हैं मैं आपके ‘शि’ स्वरुप को मैं नमस्कार करता हूं

इस प्रकार जो कोई भी शिव के इस पंचाक्षर मंत्र का नित्य चिंतन-मनन ध्यान करता है वह शिव लोक को प्राप्त करता है|

श्री नरसिंह विजय रक्षा कवच

त्रैलोक्य-विजय श्रीनृसिंह कवच
।। पूर्व-पीठिका : श्री नारद उवाच ।।
इन्द्रादि-देव-वृन्देश ! ईश्वर, जगत्-पते ! महा-विष्णोर्नृसिंहस्य, कवचं ब्रूहि मे प्रभो !
यस्य प्रपठनाद् विद्वांस्त्रैलोक्य-विजयी भवेत् ।।१
।। श्री प्रजापतिरुवाच ।।
श्रृणु नारद ! वक्ष्यामि, पुत्र-श्रेष्ठ, तपोधन ! कवचं नृसिंहस्य तु, त्रैलोक्य-विजयाभिधम् ।।
यस्य पठनाद् वाग्मी, त्रैलोक्य-विजयी भवेत् । स्रष्टाऽहं जगतां वत्स ! पठनाद् धारणाद् यतः ।।
लक्ष्मीर्जगत्-त्रयं पाति, संहर्ता च महेश्वरः । पठनाद् धारणाद् देवाः बभूवुश्च दिगीश्वराः ।।
ब्रह्म-मन्त्र-मयं वक्ष्ये, भ्रान्त्यादि-विनिवारकं । यस्य प्रसादाद् दुर्वासास्त्रैलोक्य-विजयी भवेत् ।।
पठनाद् धारणाद् यस्य, शास्ता च क्रोध-भैरवः ।।
त्रैलोक्य-विजयस्यास्य, कवचस्य प्रजापतिः । ऋषिश्छन्दश्च गायत्री, नृसिंहो देवता विभुः ।
क्ष्रौं वीजं, हुं शक्तिः, फट् कीलकं, ममाभीष्ट-सिद्धयर्थे जपे विनियोगः ।।
।। मूल-पाठ ।।
विनियोगः- ॐ अस्य त्रैलोक्य-विजय-नाम श्रीनृसिंह-कवचस्य श्रीप्रजापतिः ऋषिः, गायत्री छन्दः, श्रीनृसिंहः देवता, क्ष्रौं वीजं, हुं शक्तिः, फट् कीलकं ममाभीष्ट सिद्धयर्थे जपे विनियोगः ।
ऋष्यादि-न्यासः- श्रीप्रजापति-ऋषये नमः शिरसि, गायत्री-छन्दसे नमः मुखे, श्रीनृसिंह-देवतायै नमः हृदि, क्ष्रौं वीजाय नमः गुह्ये, हुं शक्तये नमः नाभौ, फट् कीलकाय नमः पादयोः ममाभीष्ट सिद्धयर्थे जपे विनियोगाय नमः सर्वाङ्गे ।
ॐ उग्र-वीरं महा-विष्णुं, ज्वलन्तं सर्वतोमुखम् । नृसिंहं भीषणं भद्रं, मृत्यु-मृत्युं नमाम्यहम् ।।१
क्ष्रौं वीजं मे शिरः पातु, चन्द्र-वर्णो महा-मनुः । कण्ठं पातु ध्रुवं क्ष्रौं हृद्, भगवते चक्षुषी मे ।
नरसिंहाय च ज्वाला-मालिने पातु कर्णकम् ।।२
दीप्त-दंष्ट्राय च तथाऽग्नि-नेत्राय च नासिकां । सर्व-रक्षोघ्नाय तथा, सर्व-भूत-हिताय च ।।३
सर्व-ज्वर-विनाशाय, दह-दह पद-द्वयम् । रक्ष-रक्ष वर्म-मन्त्रः, स्वाहा पातु मुखं मम ।।४
ॐ रामचन्द्राय नमः, पातु च हृदयं मम । क्लीं पायात् पार्श्व-युग्मं च, तारो नमः पदं ततः ।।५
नारायणाय नाभिं च, आं ह्रीं क्रों क्ष्रौं चैव हुं फट् । षडक्षरः कटिं पातु, ॐ नमो भगवतेऽयम् ।।६
वासुदेवाय च पृष्ठं, क्लीं कृष्णाय ऊरु-द्वयं । क्लीं कृष्णाय सदा पातु, जानुनी च मनूत्तमः ।।७
क्लीं ग्लौं क्लीं श्यामलाङ्गाय नमः पायात् पद-द्वयं । क्ष्रौं नृसिंहाय क्ष्रौं चैव, सर्वाङ्गे मे सदाऽवतु ।।८
।। फल-श्रुति ।।
इति ते कथितं वत्स ! सर्व-मन्त्रौघ-विग्रहं । तव स्नेहान्मया ख्यातं, प्रवक्तव्यं न कस्यचित् ।।
गुरु-पूजां विधायाथ, गृह्णीयात् कवचं ततः । सर्व-पुण्य-युतो भूत्वा, सर्व-सिद्धि-युतो भवेत् ।।
शतमष्टोत्तरं चास्य, पुरश्चर्या-विधिः स्मृता । हवनादीन् दशांशेन, कृत्वा साधक-सत्तमः ।।
ततस्तु सिद्ध-कवचः, पुण्यात्मा मदनोपमः । स्पर्द्धामूद्धूय भवने, लक्ष्मीर्वाणि वसेत ततः ।।
पुष्पाञ्जल्यष्टकं दत्त्वा, मूलेनैव पठेत् सकृत् । अपि वर्ष-सहस्राणां, पूजायां फलमाप्नुयात् ।।
भूर्जे विलिख्य गुटिकां, स्वर्णस्थां धारयेद् यदि । कण्ठे वा दक्षिणे बाहौ, नरसिंहो भवेत् स्वयम् ।।
योषिद्-वाम-भुजे चैव, पुरुषो दक्षिणे-करे । बिभृयात् कवचं पुण्यं, सर्व-सिद्धि-युतो भवेत् ।।
काक-वन्ध्या च या नारी, मृत-वत्सा च या भवेत् । जन्म-वन्ध्या नष्ट-पुत्रा, बहु-पुत्र-वती भवेत् ।।
कवचस्य प्रसादेन, जीवन्मुक्तो भवेन्नरः । त्रैलोक्यं क्षोभयेत् सदा, त्रैलोक्य-विजयी भवेत् ।।
भूत-प्रेत-पिशाचाश्च, राक्षसा दानवाश्च ये । तं दृष्ट्वा प्रपलायन्ते, देशाद् देशान्तरे ध्रुवम् ।।
यस्मिन् गृहे च कवचं, ग्रामे वा यदि तिष्ठति । तद्-देशं तु परित्यज्य, प्रयान्ति ह्यति-दूरतः ।।
।। इति ब्रह्म-संहितायां त्रैलोक्य-विजयं नाम नृसिंह-कवचम् ।।
‘पूर्व-पीठिका’ और ‘फल-श्रुति’ के अनुसार उक्त ‘श्रीनृसिंह कवच’ का १०८ पाठ करने से इसका ‘पुरश्चरण’ होता है । दशांश अर्थात् ११ पाठ द्वारा ‘हवन’ और एक-एक पाठ द्वारा ‘तर्पण’, ‘मार्जन’ कर एक ब्राह्मण को भोजन कराने से यह ‘कवच-स्तोत्र’ सिद्ध हो जाता है । तब इसका प्रयोग कर विविध प्रकार की कामनाओं की पूर्ति की जा सकती है । कामनाओं का उल्लेख ‘पूर्व-पीठिका’ और ‘फल-श्रुति’ में किया गया है । यहाँ दिये गये ‘यन्त्र’ को भोज-पत्र पर लिखकर ‘ताबीज’ के रुप में कण्ठ़ या भुजा में धारण करने से अनेक कामनाओं की पूर्ति होती है ।

श्री नरसिंह महा मंत्र प्रयोग

अष्टमुखगण्डभेरुण्ड नृसिंहमूलमहामन्त्रः
श्रीगणेशाय नमः । ॐ अस्य श्रीअष्टमुखगण्डभेरुण्ड नृसिंहमूलमहामन्त्रय । भगवान् ऋषिः ।
अनुष्टुभ् छन्दः । अष्टमुखगन्डभेरुण्डनृसिंह ब्रह्मविद्यादेवता क्ष्रां बीजाम् । क्ष्रौं शक्तिः फट् कीलकम् ।
मम इष्टाकांम्यार्थे जपे विनियोगः । क्ष्रां र्हां् अंगुष्ठाभ्या नमः । क्ष्रीं र्हींा तर्जनीभ्यां नमः ।
क्ष्रुं र्हुं् मध्यमाभ्यां नमः । क्ष्रैं र्हैःा करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः । एवं ह्रदयादिभ्यां ध्यानम् ।
अष्टास्यो वह्रिहविभिः दुरवरणरवो विद्युदुज्वालजिव्हो मारीर्भीमाचपक्षौ ह्रदयजठरगाअष्टकालाग्नि उग्रः ॥
ऊरोद्वौ रुद्रकीलौ खगमृगनृहरिर्गंडभैरेण्डरुपो विध्वस्तात्युग्र दुहुछरभसरभसः स्फुरद्युग्मौरवाङगम् ॥
ध्यात्वा । मानसोपचारै सम्यूज्य ॥ अथ मन्यः । ॐ घ्रां क्ष्रां घौं अ सौः रें वं लं क्ष्रौं र्हींा अं फट् स्वाहा ॥१३॥
मंत्रः । अस्य श्री अष्टमुखगण्डभैरुडनृसिंहाय महाबलप्रराक्रमाय कोटिसूर्यप्रकाशाय वडवानलमुखाय अनंतबाहवे अनंतकोटिदिव्यायुधधराय कनकगिरिसमान – मणिकुण्डलधराय प्रलयकालसत्प्रमारुअतप्रचण्डवेगऊर्ध्वकेशाय ऊर्ध्वरेतसे गुणातीताय परात्पराय अनेककोटिशत्रुजन शिरोमालाधृताय प्रमथगणसेविताय सरभसालवेश्वरीप्राणापहाराय अष्टभैरवपरिसेविताय सर्वदैत्य प्रभंजनाय गजाननदिगण सेविताय वीरभद्रश्वरुप विध्वंसनाय महानन्दिकेश्वर समागमनाय सकलसुरासुरभयंकरगण्डभेरुण्डनृसिंहाय एहि एहि आगच्छ आगच्छ अवरफुर्ज अवरफुर्ज गर्ज गर्ज भीषय भीषय किलि किलि लिलि लिलि लल लल लुलु लुलु हल हल घट घट चट चट प्रचट प्रचट लुडु लुडु रिरि रिरि रुरु रुरु डुरु डुरु आक्रान्तय आक्रान्तय परिवेषय परिवेषय पूर्वपश्चिमदक्षिनोत्तर निऋतीशान्यअग्निवायव्यपातालोर्ध्वांन्तरिक्षसर्वदिग्बंधी सर्वदिशोज्वाला -सुदर्शनचक्रेण बन्धय बन्धय अस्मिन्भूतण्डलं प्रें प्रें प्रवेशय प्रवेशय क्रों क्रों अंकुशेनाकर्षयाकर्षय र्हांू र्हांं भूतानि अस्मिन् आवशेय आवेशय भुं भुं भूतानि आकम्पय आकम्पय ऑ ऑ यमपाशेन बन्धय बन्धय र्हींा र्हींा मोहय मोहय टं टं पादादि केशान् स्तम्भय स्तम्भय दं धं टं ष्टां कीलय कीलय जं भुं जिव्हांश्चालय चालय भूतग्रहान् आकर्षय प्रेतग्रहपिशाचगर्हयक्षग्रहब्रह्मराक्षसग्रहडाकिनी ग्रहशाकिनी ग्रहवेताल ग्रहगांधर्व ग्रहदानव ग्रहापस्मार ग्रहक्षुद्रग्रह ज्वरग्रह रोगग्रह रतिग्रह छायाग्रह अममृत्युग्रह यमदूतग्रह सर्वग्रह महामायाग्रह असाध्यग्रहाणां खँ खँ भेदय भेदय बां बां बाधय बाधय शोषय शोषय रं रं दाहय दाहय क्षां क्षां क्षोभय क्षोभय ख्रें ख्रें खादय खादय स्त्रां स्त्रां तापय तापय र्हौंम र्हौंग त्रोट त्रोय व्रां व्रां भ्रामय भ्रामय लृं लृं लोटय लोटय द्रां द्रां मोटय मोटय गं गं गुलुं गुलुं छ्रीं छ्रीं दिलु दिलु र्हुंो र्हुंं तुरु तुरु म्रीं म्रीं मुरु मुरु त्रां त्रां हेलि हेलि श्रौं श्रौं मिलि मिलि वं वं वज्रपक्षद्यातय घातय चूर्णय चूर्णय फ्रें फ्रें वज्रनखेन कृंतय कृंतय खं खं खड्‌गेन खण्डय खण्डय खें खें मारय मारय अष्टमुख गण्डभेरुण्डमहनृसिंह महाधीर महावीर महाशूर महामाय सं सं सर्वदुष्टग्रहाणा पीडां हन हन फट् फट् भूतानि फट् फट् पिशासान् फट् फट् सर्व ग्रहान फट् फट् महाद्योतं अघोरं दुरितापहम् ।
आयुष्करं मृत्युहरं अंगरोगादिनाशनम् ॥ एकवर्तमात्रेण आवेशं तस्य सिद्धयेत् ॥
भस्मस्पर्शमात्रेण सर्गग्रहभयं हरेत् ॥ इति श्री गण्डभेरुण्डनृसिंहस्तोत्रं समाप्तम् ॥ ……………

श्री नरसिंह मंत्र प्रयोग


जय गोरख़।
ॐ नृसिंह बाला  ॐ नृसिंह बाला ॐ नृसिंह बाला। घट पिंड का तुम रखवाला । तुमरे सुमेरि होवे उजियाला,खुले जब घट के कुंची ताला । द्रष्टि काल महा विकराल , चार खुंट के बोधान-हार। रुद्धि सिद्धि का श्री लक्ष्मीजी ! भरो भंडार । ॐ सत्य नृसिंह कमल , नृसिंह भक्त वत्सल । नृसिंह भक्त वत्सल , नृसिंह योग, ध्यानी ध्याय के । ढ़ोय के , चार खुंट की रुद्धि सिद्धि आसन पर आनी । उलट लाल ललाट सोहे ,चार खुंट पुथ्वी को नृसिंह मोहे । ॐ साहेब मेरा शब्द का सांचा ॐ साहेब मेरा वचन का गांटा । ॐ साहेब मेरा गहन  गंभीरा । ॐ राजा राणी को  किल । दैत्य- दानव को किल । नारी स्यारी को किल । डाकिनी दंक्क को किल । टोना  टामरा को किल । छल छिद्र को किल । भोदरा भोटी को किल । नौ नाड़ी बहोतेर कोठे को किल । चंडी चुडेल को किल । ताव तिजारी को किल । एक तारा बह तारा  किल । बारह जाती बाग़ किल । नो कोटि नाग किल । चोर चर्पट किल । आकाश के दैत्यों को किल । पाताल के दैत्यों को किल । नाके घाटे किल । मरे मसान किल । गुनी गुनियो को किल । नदी नाले को किल । कुआ बावड़ी को किल । दुष्ट मुष्ट को किल । ॐ किल,ॐ किल,ॐ किल । मेरा किला करे घात  छाती  फाट मरे ।  जो पिंड पर करे घात उलटी घात उसे परे । ॐ खं खं खं  फट स्वाहा इति । श्री पिंड प्राण की रक्षा नृसिंह करे । संकट में सुमिरु नृसिंह  हकार में हनुमान । धक्के धूम में खांसी खुरी में मिरगी या मसान में रक्तिया मसान में दुहाई नृसिंह की।
इस मंत्र को 21 दिन रोज एक माला जप करे। शनिवार से जप शरू करे। सिद्ध हो जायेगा।

अगर किसी को नजर लगी हो, प्रसूता स्त्री को उपरी हवा, छोटा बालक रात में रोता हो, बेचेनी, आदि में इस मन्त्र को लाल धागा पे 7 गांठ लगा के बंधने से आराम होगा। प्रत्येक गांठ पे एक बार मंत्र जप करे।

तांत्रिक प्रयोग निवारण

तांत्रिक प्रयोग निवारण प्रयोग
यदि किसी भी प्रकार के तांत्रिक प्रयोग किये जाने के कारन कोई ब्यक्ति बार बार बीमार पर जाता हो और लगातार परेशान रहता हो तो उसके निवारण हेतु प्रयोग  प्रस्तुत कर रहा हु जिसका प्रयोग कोई भी श्रधा के साथ कर सकता है :-
सामग्री :- 01 कैथा का फल ।
आसन- कोई भी
वस्त्र - कोई भी
समय - दोपहर या अर्द्ध रात्रि में
मन्त्र- न्री  नरसिंघा ये प्रचंड रुपाये सर्व बाधा नाशय नाशय !!
विधि :- कैथा के फल को सामने रखकर उपरोक्त मन्त्र का एक माला जप कर कैथा के फल पर एक बार फुक मारे । इस प्रकार कुल 08 माला उपरोक्त मन्त्र का जप कर 08 बार कैथा के फल पर फुक मरने के बाद उस फल से उसी समय पीड़ित व्यक्ति का 7 बार उतारा  करे और उस कैथा के फल को किसी चौराहे पर जाकर पटककर फोर दे तथा वापस घर चले आये । रास्ते में पीछे मुरकर नहीं देखे ।
यदि कैथा का फल उपलब्ध नहीं हो तो बेल का फल उपयोग में लाया जा सकता है।।

शक्तिशाली काली का मंत्र

शक्तिशाली सर्व कार्य साधक मंत्र

मां भगवती काली का मनोकामना पूर्ति मंत्र ! काली के भगतों की मनोकामना इस मंत्र के प्रभाव से आवश्य ही पूर्ण होती है बस कुछ ही दिन धर्य के साथ हर रोज शाम को 30 मिनट इस मंत्र का जाप करने से चमत्कारिक लाभ होगा और जीवन मे कोई भी अभाव नहीं रहेगा ये पक्की बात है। विश्वास ना हो तो आजमा के देखलो . इसके साथ यदि प्राण प्रतिष्ठित कलियंत्र भी धारण् कर लिया जाये तो बस फिर कहना ही क्या .

मंत्र

  ओम क्रीं काली काली कलकत्ते वाली !
 हरिद्वार मे आके डंका बजाओ ! धन के भंडार भरो मेरे सब काज करो       ना करो तो दुहाई !दुहाई राजा राम चन्द्र हनुमान वीर की !

आबिचार कर्म नाशक प्रयोग

अभिचार-कर्म नाशक :साबर साधना
साधना तो बेहद आसान है,साधना काल मे ब्रम्हचैर्यत्व आवश्यक है,माला रुद्राक्ष का हो,धोती और आसन भगवे एवं लाल रंग का हो,दीपक मे सिर्फ देशी घी होना चाहिये,लोबान का धूप जलाओ,साधना से पूर्व गणेश जी ,गुरुजी और दत्त-महाप्रभुजी का पूजन आवश्यक है॰
निम्न मंत्र का जाप किसि भी शनिवार से करे,यह साधना 11 दिन का है,साधना शाम के समय करना अनुकूल है,साधना मे नित्य 108 बार मंत्र जाप आवश्यक है,मंत्र का जब भी स्वयं के लिए प्रयोग करना हो तो 7 बार मंत्र बोलकर जल पे 3 बार फुक मारे और जल को ग्रहण करले दूसरे व्यक्ति के लिये भि यही विधान है,अगर प्रयोग आपके सामने किया जा रहा हो तो तुरंत ही ७ बार मंत्र बोलकर अपने सिने पे ३ फुक मारले...
तो तंत्र-मंत्र का असर नष्ट होता है और किया गया तंत्र-मंत्र करनेवाले पे वापस लौट जाता है......
मंत्र-
जल बाँधो,जलाजल बाँधो । जल के बाँधो कीरा,नौ नगर के राजा बाँधो,टोना के बाँधो जंजीरा । धरमदास कबीर, चकमक धुरी धर के काटे जाम के जूरी । काकर फूँके, मोर फूँके । मोर गुरु धरमदास के फूँके, जिहा से आय हस, वही चले जा, सत गुरु,सत कबीर ।

श्रीराम दुर्गम कवच

श्री राम दुर्गम

सभी प्रकार की किसी भी लौकिक अलौकिक बाधा को दूर करने में श्री राम दुर्गम का अचूक प्रभाव है सभी प्रकार की कामनाओ की भी पूर्ति करता है शत्रुओ से रक्षा होती है नित्य कम  से कम २१ पाठ करे ।

विनियोगः ॐ अस्य श्री राम दुर्गस्य् विश्वामित्र ऋषिः अनुष्टुप छन्दः श्री रामो देवता श्री राम प्रीत्यर्थे जपे विनियोगः ।

श्री रामो रक्षतु प्राच्यां रक्षेदयाम्यां च लक्ष्मणः । प्रतीच्यां भरतो रक्षेद उदीच्यां शत्रु मर्दनः ॥१ ॥
ईशान्यां जानकी रक्षेद आग्नेयाम रविनन्दनः । विभीषणस्तु नैऋत्यां वायव्यां वायुनन्दनः ॥२ ॥
ऊर्ध्वं रक्षेन्महाविष्णुर्मध्यं रक्षेन्नृकेशरी । अधस्तु वामनः पातु सर्वतः पातु केशवः ॥ ३ ॥
सर्वतः कपिसेनाद्यैः सदा मर्कटनायकः । चतुर्द्वारं सदा रक्षेदच्चतुर्भिः कपिपुंगवैः ॥ ४॥
श्री रामाख्यं महादुर्गं विश्वामित्रकृतं शुभम । यः स्मरेद भय काले तु सर्व शत्रु विनाशनम ॥ ५ ॥
रामदुर्गं पठेद भक्त्या सर्वोपद्रवनाशनं । सर्वसम्पदप्रदम् नृणां च गच्छेद वैष्णव पदं ॥ ६ ॥

इति  श्री रामदुर्गं सम्पूर्णम ॥

नवग्रह शाबर मंत्र

श्री नवग्रह शाबर मंत्र
ॐ गुरु जी कहे, चेला सुने, सुन के मन में गुने, नव ग्रहों का मंत्र, जपते पाप काटेंते, जीव मोक्ष पावंते, रिद्धि सिद्धि भंडार भरन्ते, ॐ आं चं मं बुं गुं शुं शं रां कें चैतन्य नव्ग्रहेभ्यो नमः, इतना नव ग्रह शाबर मंत्र सम्पूरण हुआ, मेरी भगत गुरु की शकत, नव ग्रहों को गुरु जी का आदेश आदेश आदेश !
 मंत्र का १०० माला जप कर सिद्धि प्राप्त की जाती है. अगर नवरात्रों में दशमी तक १० माला रोज़ जप जाये तो भी सिद्धि होती है. दीपक घी का, आसन रंग बिरंगा कम्बल का, किसी भी समय, दिशा प्रात काल पूर्व, मध्यं में उत्तर, सायं काल में पश्चिम की होनी चाहिए. हवन किया जाये तो ठीक नहीं तो जप भी पर्याप्त है. रोज़ १०८ बार जपते रहने से किसी भी ग्रह की बाधा नहीं सताती है.

मायाजाल वापस करने का मंत्र

तांत्रिक मायाजाल वापिस करने का मंत्र
मंत्र  ------ एक ठो सरसों ,सौला राई | मोरो पटवल को रोजाई | खाय खाय पड़े भार | जे करै ते मरै उलट विद्या ताहि पर परे | शब्द साँचा ,पिंड काँचा | हनुमान का मंत्र साँचा | फुरो मंत्र ईश्वरो वाचा | -- यदि किसी के ऊपर किसी ने तांत्रिक अभिचार कर दिया हो और बार बार करता हो तो थोड़ी सी राई ,सरसों और नमक मिलाकर रख ले |इसके बाद इस मंत्र का जप करते हुए सात बार रोगी को उतारा करे और फिर जलती हुई भट्ठी में यह सामग्री झटके से झोक दे तो सारा मायाजाल वापस चला जायेगा |.

सूर्यमणि साधना


सूर्य मणि साधना -


सूर्य को आत्म भी कहते है ! क्यू के यह आत्मा के प्रकाश का प्रतीक है और सूर्य साधना जीवन को प्रकाशमान करती हुई साधक को साधना क्षेत्र में विशेष उच्ता प्रदान करती है ! बहुत सोभाग्यशालि साधक होते है जो सूर्य साधना को अपना कर अपना जीवन प्रकाश म्ये करते है ! सूर्य साधना के लिए विशेष कर मकर संक्राति का समय सभ से उचित है ! जिस दिन सूर्य भगवान जल राशि में परवेश करते है और हर साधक को विशेष प्र्सनता पार्डन करते हुए उसके जीवन को प्रकाश म्यी बनाते है !इस दिन आप सूर्य उद्ये से पूर्व उठे ईशनान करे फिर मन को पर्सन रखते हुए ये साधना करे इस से आप अपने में एक ञ तेज महसूस करेगे और जीवन में आने वाली वाधाओ पे विजय पाएगे सूर्य साधना जीवन में आपको एक नई दिशा प्रदान करेगी और इस के लिए आप को जो स्मगरी चाहिए सूर्य यंत्र एक माणिक का स्टोन ले ले और लाल हकीक की माला मूँगे की भी ले सकते है न मिले तो रुद्राश की माला से जप कर ले !
विधि --- सुबह उठ के ईशनान करे और लाल धोती पहन कर उद्ये होते सूर्य को प्रणाम करते हुये निम्न मंत्र का 21 वार जप करे !
मंत्र – सूर्य दर्शन मंत्र -
ॐ कनक वर्णग महा तेज्ग रत्न माले भूष्णग !
सर्व पाप पर्मुच्यते भरवासरे रवि दर्शनग !!
एक पुजा की थाली पहले तयार कर ले जिस में कुंकुम दीप लाल फूल नवेद के लिए गुड और यगोपावित आदि हो एक नारियल पनि वाला और दक्षणा के लिए कुश चेंज और अब सूर्य के सहमने लाल आसन पे बैठे आप का मुख सूर्य की तरफ होना चाहिए ! अब भूमि पर त्रिकोण वृत और चतुरसर मण्डल चन्दन से बनाए और उसका गंध अक्षत से पूजन कर उस पे अर्ग पात्र स्थाप्त करे और उस में निम्न मंत्र से जल डाले –
मंत्र – ॐ शन्नो देवी रभिष्ट्य आपो भावन्तु पीतये ! शन्ययो रविसर्वन्तु नः !!
उस जल में तीर्थों का आवाहन करे –
ॐ गंगे च जमुने चैव गोदावरि सरस्वती !
नर्मन्दे सिन्धु कावेरि जले गंग स्मिन सन्निधि करू !!
इस के बाद उस जल में गंध अक्षत कुक्म थोड़ा गुड डाल कर पूजन करे और निम्न मंत्र से सूर्य ध्यान करे
मंत्र –
अरुणो अरुण पंकजे निष्ण्ण: कमले अभीतिवरौ करैर्दधान: !
स्वरुचार्हितमण्डल सित्र्नेत्रोंरवि शताकुलं बतान्न !!
अब अर्ग दान करे –
ॐ एहि सूर्य सहस्रान्शों तेजो राशे जगत पते ,
अनुक्म्प्या मां भ्क्त्या ग्रेहाणार्घ्य दिवाकर !!
ॐ अदित्या नमः ॐ प्रभाकराये नमः ॐ दिवाकराये नमः !!
अर्घ दान के बाद आसन पे सूर्य की और विमुख हो कर बैठ जाए अपने सहमने एक ताँबे की पलेट में एक लाल फूल के उपर सूर्य यंत्र स्थापित करे उसके उपर माणक का स्टोन (रूबी )स्थापित करे यन्त्र का पूजन पंचौपचार से करे और संकल्प ले के मैं अपना नाम बोले ---- अपना गोत्र बोले गुरु स्वामी निखिलेश्वरा नन्द जी का शिष्य अपने जीवन की सभी नेयुंताओ को दूर करने और जीवन के हर क्षेत्र में सफलता के लिए यह सूर्य मणि प्रयोग कर रहा हु हे गुरुदेव मुझे सफलता प्रदान करे जल भूमि पे शोड दे और फिर मूँगे जा हकीक जा रुद्राश माला से निम्न मंत्र की 21 माला जाप करे और जप पूर्ण होने पर नमस्कार कर उठ जाए जदी पहले और बाद में एक एक माला गुरु मंत्र की कर ले तो भी बहुत अशा है ! साधना के बाद उसी दिन यन्त्र और माला को जल परवाहित कर दे और माणक को अंगूठी में जड़ा कर पहिन ले इस तरह की अंगूठी पहले भी बना सकते है और अंगूठी को यन्त्र पे अर्पित कर साधना कर सकते है !आप स्व महसूस करेगे की ज़िंदगी में एक उतशाह और सफलता का मार्ग मिल गया है!



सूर्य नवग्रह शांति दायक टोटके


सूर्य नवग्रह शांतिदायक टोटके––

सूर्यः-
१॰ सूर्यदेव के दोष के लिए खीर का भोजन बनाओ और रोजाना चींटी के बिलों पर रखकर आवो और केले को छील कर रखो ।
२॰ जब वापस आवो तभी गाय को खीर और केला खिलाओ ।
३॰ जल और गाय का दूध मिलाकर सूर्यदेव को चढ़ावो। जब जल चढ़ाओ, तो इस तरह से कि सूर्य की किरणें उस गिरते हुए जल में से निकल कर आपके मस्तिष्क पर प्रवाहित हो ।
४॰ जल से अर्घ्य देने के बाद जहाँ पर जल चढ़ाया है, वहाँ पर सवा मुट्ठी साबुत चावल चढ़ा देवें ।
चन्द्रमाः-
१॰ पूर्णिमा के दिन गोला, बूरा तथा घी मिलाकर गाय को खिलायें । ५ पूर्णमासी तक गाय को खिलाना है ।
२॰ ५ पूर्णमासी तक केवल शुक्ल पक्ष में प्रत्येक १५ दिन गंगाजल तथा गाय का दूध चन्द्रमा उदय होने के बाद चन्द्रमा को अर्घ्य दें । अर्घ्य देते समय ऊपर दी गई विधि का इस्तेमाल करें ।
३॰ जब चाँदनी रात हो, तब जल के किनारे जल में चन्द्रमा के प्रतिबिम्ब को हाथ जोड़कर दस मिनट तक खड़ा रहे और फिर पानी में मीठा प्रसाद चढ़ा देवें, घी का दीपक प्रज्जवलित करें । उक्त प्रयोग घर में भी कर सकते हैं, पीतल के बर्तन में पानी भरकर छत पर रखकर या जहाँ भी चन्द्रमा का प्रतिबिम्ब पानी में दिख सके वहीं पर यह कार्य कर सकते हैं ।
मंगलः-
१॰ चावलों को उबालने के बाद बचे हुए माँड-पानी में उतना ही पानी तथा १०० ग्राम गुड़ मिलाकर गाय को खिलाओ ।
२॰ सवा महीने में जितने दिन होते हैं, उतने साबुत चावल पीले कपड़े में बाँध कर यह पोटली अपने साथ रखो । यह प्रयोग सवा महीने तक करना है ।
३॰ मंगलवार के दिन हनुमान् जी के व्रत रखे । कम-से-कम पाँच मंगलवार तक ।
४॰ किसी जंगल जहाँ बन्दर रहते हो, में सवा मीटर लाल कपड़ा बाँध कर आये, फिर रोजाना अथवा मंगलवार के दिन उस जंगल में बन्दरों को चने और गुड़ खिलाये ।
बुधः-
१॰ सवा मीटर सफेद कपड़े में हल्दी से २१ स्थान पर “ॐ” लिखें तथा उसे पीपल पर लटका दें ।
२॰ बुधवार के दिन थोड़े गेहूँ तथा चने दूध में डालकर पीपल पर चढ़ावें ।
३॰ सोमवार से बुधवार तक हर सप्ताह कनैर के पेड़ पर दूध चढ़ावें । जिस दिन से शुरुआत करें उस दिन कनैर के पौधे की जड़ों में कलावा बाँधें । यह प्रयोग कम-से-कम पाँच सप्ताह करें ।
बृहस्पतिः-
१॰ साँड को रोजाना सवा किलो ७ अनाज, सवा सौ ग्राम गुड़ सवा महीने तक खिलायें ।
२॰ हल्दी पाँच गाँठ पीले कपड़े में बाँधकर पीपल के पेड़ पर बाँध दें तथा ३ गाँठ पीले कपड़े में बाँधकर अपने साथ रखें ।
३॰ बृहस्पतिवार के दिन भुने हुए चने बिना नमक के ग्यारह मन्दिरों के सामने बांटे । सुबह उठने के बाद घर से निकलते ही जो भी जीव सामने आये उसे ही खिलावें चाहे कोई जानवे हो या मनुष्य ।
शुक्रः-
१॰ उड़द का पौधा घर में लगाकर उस पर सुबह के समय दूध चढ़ावें । प्रथम दिन संकल्प कर पौधे की जड़ में कलावा बाँधें । यह प्रयोग सवा दो महीने तक करना है ।
२॰ सवा दो महीने में जितने दिन होते है, उतने उड़द के दाने सफेद कपड़े में बाँधकर अपने पास रखें ।
३॰ शुक्रवार के दिन पाँच गेंदा के फूल तथा सवा सौ उड़द पीपल की खोखर में रखें, कम-से-कम पाँच शुक्रवार तक ।
शनिः-
१॰ सवा महिने तक प्रतिदिन तेली के घर बैल को गुड़ तथा तेल लगी रोटी खिलावें ।
राहूः-
१॰ चन्दन की लकड़ी साथ में रखें । रोजाना सुबह उस चन्दन की लकड़ी को पत्थर पर घिसकर पानी में मिलाकर उस पानी को पियें ।
२॰ साबुत मूंग का खाने में अधिक सेवन करें ।
३॰ साबुत गेहूं उबालकर मीठा डालकर कोड़ी मनुष्यों को खिलावें तथा सत्कार करके घर वापस आवें ।
केतुः-
१॰ मिट्टी के घड़े का बराबर आधा-आधा करो । ध्यान रहे नीचे का हिस्सा काम में लेना है, वह समतल हो अर्थात् किनारे उपर-नीचे न हो । इसमें अब एक छोटा सा छेद करें तथा इस हिस्से को ऐसे स्थान पर जहाँ मनुष्य-पशु आदि का आवागमन न हो अर्थात् एकान्त में, जमीन में गड्ढा कर के गाड़ दें । ऊपर का हिस्सा खुला रखें । अब रोजाना सुबह अपने ऊपर से उबार कर सवा सौ ग्राम दूध उस घड़े के हिस्से में चढ़ावें । दूध चढ़ाने के बाद उससे अलग हो जावें तथा जाते समय पीछे मुड़कर नहीं देखें साधना –(पंडित आशु बहुगुणा)---


सूर्य को आत्म भी कहते है ! क्यू के यह आत्मा के प्रकाश का प्रतीक है और सूर्य साधना जीवन को प्रकाशमान करती हुई साधक को साधना क्षेत्र में विशेष उच्ता प्रदान करती है ! बहुत सोभाग्यशालि साधक होते है जो सूर्य साधना को अपना कर अपना जीवन प्रकाश म्ये करते है ! सूर्य साधना के लिए विशेष कर मकर संक्राति का समय सभ से उचित है ! जिस दिन सूर्य भगवान जल राशि में परवेश करते है और हर साधक को विशेष प्र्सनता पार्डन करते हुए उसके जीवन को प्रकाश म्यी बनाते है !इस दिन आप सूर्य उद्ये से पूर्व उठे ईशनान करे फिर मन को पर्सन रखते हुए ये साधना करे इस से आप अपने में एक ञ तेज महसूस करेगे और जीवन में आने वाली वाधाओ पे विजय पाएगे सूर्य साधना जीवन में आपको एक नई दिशा प्रदान करेगी और इस के लिए आप को जो स्मगरी चाहिए सूर्य यंत्र एक माणिक का स्टोन ले ले और लाल हकीक की माला मूँगे की भी ले सकते है न मिले तो रुद्राश की माला से जप कर ले !
विधि --- सुबह उठ के ईशनान करे और लाल धोती पहन कर उद्ये होते सूर्य को प्रणाम करते हुये निम्न मंत्र का 21 वार जप करे !
मंत्र – सूर्य दर्शन मंत्र -
ॐ कनक वर्णग महा तेज्ग रत्न माले भूष्णग !
सर्व पाप पर्मुच्यते भरवासरे रवि दर्शनग !!
एक पुजा की थाली पहले तयार कर ले जिस में कुंकुम दीप लाल फूल नवेद के लिए गुड और यगोपावित आदि हो एक नारियल पनि वाला और दक्षणा के लिए कुश चेंज और अब सूर्य के सहमने लाल आसन पे बैठे आप का मुख सूर्य की तरफ होना चाहिए ! अब भूमि पर त्रिकोण वृत और चतुरसर मण्डल चन्दन से बनाए और उसका गंध अक्षत से पूजन कर उस पे अर्ग पात्र स्थाप्त करे और उस में निम्न मंत्र से जल डाले –
मंत्र – ॐ शन्नो देवी रभिष्ट्य आपो भावन्तु पीतये ! शन्ययो रविसर्वन्तु नः !!
उस जल में तीर्थों का आवाहन करे –
ॐ गंगे च जमुने चैव गोदावरि सरस्वती !
नर्मन्दे सिन्धु कावेरि जले गंग स्मिन सन्निधि करू !!
इस के बाद उस जल में गंध अक्षत कुक्म थोड़ा गुड डाल कर पूजन करे और निम्न मंत्र से सूर्य ध्यान करे
मंत्र –
अरुणो अरुण पंकजे निष्ण्ण: कमले अभीतिवरौ करैर्दधान: !
स्वरुचार्हितमण्डल सित्र्नेत्रोंरवि शताकुलं बतान्न !!
अब अर्ग दान करे –
ॐ एहि सूर्य सहस्रान्शों तेजो राशे जगत पते ,
अनुक्म्प्या मां भ्क्त्या ग्रेहाणार्घ्य दिवाकर !!
ॐ अदित्या नमः ॐ प्रभाकराये नमः ॐ दिवाकराये नमः !!
अर्घ दान के बाद आसन पे सूर्य की और विमुख हो कर बैठ जाए अपने सहमने एक ताँबे की पलेट में एक लाल फूल के उपर सूर्य यंत्र स्थापित करे उसके उपर माणक का स्टोन (रूबी )स्थापित करे यन्त्र का पूजन पंचौपचार से करे और संकल्प ले के मैं अपना नाम बोले ---- अपना गोत्र बोले गुरु स्वामी निखिलेश्वरा नन्द जी का शिष्य अपने जीवन की सभी नेयुंताओ को दूर करने और जीवन के हर क्षेत्र में सफलता के लिए यह सूर्य मणि प्रयोग कर रहा हु हे गुरुदेव मुझे सफलता प्रदान करे जल भूमि पे शोड दे और फिर मूँगे जा हकीक जा रुद्राश माला से निम्न मंत्र की 21 माला जाप करे और जप पूर्ण होने पर नमस्कार कर उठ जाए जदी पहले और बाद में एक एक माला गुरु मंत्र की कर ले तो भी बहुत अशा है ! साधना के बाद उसी दिन यन्त्र और माला को जल परवाहित कर दे और माणक को अंगूठी में जड़ा कर पहिन ले इस तरह की अंगूठी पहले भी बना सकते है और अंगूठी को यन्त्र पे अर्पित कर साधना कर सकते है !आप स्व महसूस करेगे की ज़िंदगी में एक उतशाह और सफलता का  मार्ग मिल गया है!



Sunday, 4 January 2015

हनुमत्सहस्त्र नामावली

हनुमत्सहस्त्र नामावली
विनियोगः-
ॐ अस्य श्रीहनुमत्सहस्त्रनामस्तोत्रमन्त्रस्य ब्रह्मा ऋषिः हनुमान देवता, अनुष्टुप छन्द, ह्रां बीजं श्रीं शक्ति, श्रीहनुमत्प्रीत्यर्थं-तद्सहस्त्रनामभिरमुकसंख्यार्थ पुष्पादिद्रव्य समर्पणे विनियोगः।

ध्यानः-
ध्यायेद् बालदिवाकर-द्युतिनिभ देवारिदर्पापहं
देवेन्द्रमुख-प्रशा्तयकसं देदीप्यमान रुचा।
सुग्रीवादिसमतवानरयुतं सुव्यक्ततत्त्वप्रियं
संरक्तारुणलोचनं पवनजं पीताम्बरालंकृतम्।।
उद्यदादित्यसंकाशमुदारभुजविक्रमम्।
कन्दर्पकोटिलावण्य सर्वविद्याविशारदम्।।
श्रीरामहृदयानन्दं भक्तकल्पमहीरुहम्।
अभयं वरदं दोर्म्मा चिन्तयेन्मारुतात्मजम्।।


ॐ हनुमते नमः
ॐ श्री प्रदाय नमः
ॐ वायु पुत्राय नमः
ॐ रुद्राय नमः
ॐ अनघाय नमः
ॐ अजराय नमः
ॐ अमृत्यवे नमः
ॐ वीरवीराय नमः
ॐ ग्रामावासाय नमः
ॐ जनाश्रयाय नमः
ॐ धनदाय नमः
ॐ निर्गुणाय नमः
ॐ अकायाय नमः
ॐ वीराय नमः
ॐ निधिपतये नमः
ॐ मुनये नमः
ॐ पिंगाक्षाय नमः
ॐ वरदाय नमः
ॐ वाग्मीने नमः ।
ॐ सीता-शोक-विनाशाय नमः
ॐ शिवाय नमः
ॐ शर्वाय नमः
ॐ पराय नमः
ॐ अव्यक्ताय नमः
ॐ व्यक्ताव्यक्ताय नमः
ॐ रसा-धराय नमः
ॐ पिंग-केशाय नमः
ॐ पिंग-रोमम्णे नमः ।
ॐ श्रुति-गम्याय नमः
ॐ सनातनाय नमः
ॐ अनादये नमः
ॐ भगवते नमः
ॐ देवाय नमः
ॐ विश्व-हेतवे नमः
ॐ निरामयाय नमः
ॐ आरोग्यकर्त्रे नमः ।
ॐ विश्वेशाय नमः
ॐ विश्वनाथाय नमः
ॐ हरीश्वराय नमः
ॐ भर्गाय नमः
ॐ रामाय नमः
ॐ राम-भक्ताय नमः
ॐ कल्याणाय नमः
ॐ प्रकृति-स्थिराय नमः
ॐ विश्वम्भराय नमः
ॐ विश्वमूर्तये नमः
ॐ विश्वाकाराय नमः
ॐ विश्वदाय नमः
ॐ विश्वात्मने नमः
ॐ विश्वसेव्याय नमः
ॐ विश्वाय नमः
ॐ विश्वराय नमः
ॐ रवये नमः
ॐ विश्व-चेष्टाय नमः
ॐ विश्व-गम्याय नमः
ॐ विश्व-ध्येयाय नमः
ॐ कला-धराय नमः
ॐ प्लवंगमाय नमः
ॐ कपि-श्रेष्टाय नमः
ॐ ज्येष्ठाय नमः ।
ॐ विद्यावते नमः
ॐ वनेचराय नमः
ॐ बालाय नमः
ॐ वृद्धाय नमः
ॐ यूने नमः ।
ॐ तत्त्वाय नमः
ॐ तत्त्व-गम्याय नमः
ॐ सख्ये नमः
ॐ अजाय नमः
ॐ अन्जना-सूनवे नमः
ॐ अव्यग्राय नमः
ॐ ग्राम-ख्याताय नमः
ॐ धरा-धराय नमः
ॐ भूर्लोकाय नमः
ॐ भुवर्लोकाय नमः ।
ॐ स्वर्लोकाय नमः
ॐ महर्लोकाय नमः
ॐ जनलोकय नमः
ॐ तपसे नमः
ॐ अव्ययाय नमः
ॐ सत्ययाय नमः
ॐ ओंकार-गम्याय नमः
ॐ प्रणवाय नमः
ॐ व्यापकाय नमः
ॐ अमलाय नमः
ॐ शिवाय नमः
ॐ धर्म-प्रतिष्ठात्रे नमः ।
ॐ रामेष्टाय नमः
ॐ फाल्गुण-प्रियाय नमः
ॐ गोष्पदिने नमः
ॐ कृत-वारीशाय नमः
ॐ पूर्ण-कामाय नमः
ॐ धराधिपाय नमः
ॐ रक्षोघ्नाय नमः
ॐ पुण्डरीकाक्षाय नमः
ॐ शरणागत-वत्सलाय नमः
ॐ जानकी-प्राण-दात्रे नमः
ॐ रक्षः-प्राणहारकाय नमः
ॐ पूर्णाय नमः ।
ॐ सत्याय नमः १००
ॐ पीतवाससे नमः ।
ॐ दिवाकर-समप्रभाय नमः
ॐ देवोद्यान-विहारीणे नमः ।
ॐ देवता-भय-भञ्जनाय नमः ।
ॐ भक्तोदयाय नमः ।
ॐ भक्त-लब्धाय नमः ।
ॐ भक्त-पालन-तत्पराय नमः ।
ॐ द्रोणहर्षाय नमः ।
ॐ शक्तिनेत्राय नमः ।
ॐ शक्तये नमः
ॐ राक्षस-मारकाय नमः
ॐ अक्षघ्नाय नमः
ॐ राम-दूताय नमः
ॐ शाकिनी-जीव-हारकाय नमः
ॐ बुबुकार-हतारातये नमः
ॐ गर्वाय नमः
ॐ पर्वत-मर्दनाय नमः
ॐ हेतवे नमः
ॐ अहेतवे नमः
ॐ प्रांशवे नमः
ॐ विश्वभर्ताय नमः ।
ॐ जगद्गुरवे नमः
ॐ जगन्नेत्रे नमः ।
ॐ जगन्नथाय नमः
ॐ जगदीशाय नमः
ॐ जनेश्वराय नमः
ॐ जगद्धिताय नमः ।
ॐ हरये नमः
ॐ श्रीशाय नमः
ॐ गरुडस्मयभंजनाय नमः
ॐ पार्थ-ध्वजाय नमः
ॐ वायु-पुत्राय नमः
ॐ अमित-पुच्छाय नमः
ॐ अमित-विक्रमाय नमः
ॐ ब्रह्म-पुच्छाय नमः
ॐ परब्रह्म-पुच्छाय नमः
ॐ रामेष्ट-कारकाय नमः
ॐ सुग्रीवादि-युताय नमः
ॐ ज्ञानिने नमः ।
ॐ वानराय नमः
ॐ वानरेश्वराय नमः
ॐ कल्पस्थायिने नमः ।
ॐ चिरंजीविने नमः ।
ॐ तपनाय नमः
ॐ सदा-शिवाय नमः
ॐ सन्नताय नमः
ॐ सद्गते नमः
ॐ भुक्ति-मुक्तिदाय नमः
ॐ कीर्ति-दायकाय नमः
ॐ कीर्तये नमः
ॐ कीर्ति-प्रदाय नमः
ॐ समुद्राय नमः
ॐ श्रीप्रदाय नमः
ॐ शिवाय नमः
ॐ भक्तोदयाय नमः ।
ॐ भक्तगम्याय नमः ।
ॐ भक्त-भाग्य-प्रदायकाय नमः ।
ॐ उदधिक्रमणाय नमः
ॐ देवाय नमः
ॐ संसार-भय-नाशनाय नमः
ॐ वार्धि-बंधनकृदाय नमः ।
ॐ विश्व-जेताय नमः ।
ॐ विश्व-प्रतिष्ठिताय नमः
ॐ लंकारये नमः
ॐ कालपुरुषाय नमः
ॐ लंकेश-गृह- भंजनाय नमः
ॐ भूतावासाय नमः
ॐ वासुदेवाय नमः
ॐ वसवे नमः
ॐ त्रिभुवनेश्वराय नमः
ॐ श्रीराम-रुपाय नमः
ॐ कृष्णस्तवे नमः
ॐ लंका-प्रासाद-भंजकाय नमः
ॐ कृष्णाय नमः
ॐ कृष्ण-स्तुताय नमः
ॐ शान्ताय नमः
ॐ शान्तिदाय नमः
ॐ विश्वपावनाय नमः
ॐ विश्व-भोक्त्रे नमः ।
ॐ मारिघ्नाय नमः
ॐ ब्रह्मचारिणे नमः ।
ॐ जितेन्द्रियाय नमः
ॐ ऊर्ध्वगाय नमः
ॐ लान्गुलिने नमः ।
ॐ मालिने नमः।
ॐ लान्गूला-हत-राक्षसाय नमः
ॐ समीर-तनुजाय नमः
ॐ वीराय नमः
ॐ वीर-ताराय नमः
ॐ जय-प्रदाय नमः
ॐ जगन्मन्गलदाय नमः
ॐ पुण्याय नमः
ॐ पुण्य-श्रवण-कीर्तनाय नमः
ॐ पुण्यकीर्तये नमः
ॐ पुण्य-गीतये नमः
ॐ जगत्पावन-पावनाय नमः
ॐ देवेशाय नमः
ॐ जितमाराय नमः
ॐ राम-भक्ति-विधायकाय नमः
ॐ ध्यात्रे नमः।
ॐ ध्येयाय नमः
ॐ लयाय नमः
ॐ साक्षिणे नमः ।
ॐ चेत्रे नमः।
ॐ चैतन्य-विग्रहाय नमः
ॐ ज्ञानदाय नमः
ॐ प्राणदाय नमः
ॐ प्राणाय नमः
ॐ जगत्प्राणाय नमः
ॐ समीरणाय नमः
ॐ विभीषण-प्रियाय नमः
ॐ शूराय नमः
ॐ पिप्पलाश्रयाय नमः
ॐ सिद्धिदाय नमः
ॐ सिद्धाय नमः
ॐ सिद्धाश्रयाय नमः
ॐ कालाय नमः
ॐ महोक्षाय नमः ।
ॐ काल-जान्तकाय नमः
ॐ लंकेश-निधन-स्थायिने नमः
ॐ लंका-दाहकाय नमः ।
ॐ ईश्वराय नमः
ॐ चन्द्र-सूर्य-अग्नि-नेत्राय नमः
ॐ कालाग्ने नमः
ॐ प्रलयान्तकाय नमः
ॐ कपिलाय नमः
ॐ कपीशाय नमः
ॐ पुण्यराशये नमः
ॐ द्वादश राशिगाय नमः
ॐ सर्वाश्रयाय नमः
ॐ अप्रमेयत्माय नमः ।
ॐ रेवत्यादि-निवारकाय नमः
ॐ लक्ष्मण-प्राणदात्रे नमः ।
ॐ सीता-जीवन-हेतुकाय नमः
ॐ राम-ध्येयाय नमः
ॐ हृषीकेशाय नमः
ॐ विष्णु-भक्ताय नमः
ॐ जटिने नमः
ॐ बलिने नमः
ॐ देवारिदर्पघ्ने नमः
ॐ होत्रे नमः
ॐ कर्त्रे नमः
ॐ धार्त्रे नमः
ॐ जगत्प्रभवे नमः
ॐ नगर-ग्राम-पालाय नमः
ॐ शुद्धाय नमः
ॐ बुद्धाय नमः
ॐ निरन्तराय नमः
ॐ निरंजनाय नमः
ॐ निर्विकल्पाय नमः
ॐ गुणातीताय नमः
ॐ भयंकराय नमः
ॐ हनुमते नमः ।
ॐ दुराराध्याय नमः
ॐ तपस्साध्याय नमः
ॐ महेश्वराय नमः
ॐ जानकी-घन-शोकोत्थतापहर्त्रे नमः ।
ॐ परात्पराय नमः
ॐ वाङ्मयाय नमः
ॐ सद-सद्रूपाय नमः
ॐ कारणाय नमः
ॐ प्रकृतेः-पराय नमः
ॐ भाग्यदाय नमः
ॐ निर्मलाय नमः
ॐ नेत्रे नमः
ॐ पुच्छ-लंका-विदाहकाय नमः
ॐ पुच्छ-बद्धाय नमः
ॐ यातुधानाय नमः
ॐ यातुधान-रिपुप्रियाय नमः
ॐ छायापहारिणे नमः
ॐ भूतेशाय नमः
ॐ लोकेशाय नमः
ॐ सद्गति-प्रदाय नमः
ॐ प्लवंगमेश्वराय नमः
ॐ क्रोधाय नमः
ॐ क्रोध-संरक्तलोचनाय नमः
ॐ क्रोध-हर्त्रे नमः
ॐ ताप-हर्त्रे नमः
ॐ भक्ताऽभय-वरप्रदाय नमः
ॐ वर-प्रदाय नमः
ॐ भक्तानुकंपिने नमः
ॐ विश्वेशाय नमः
ॐ पुरु-हूताय नमः
ॐ पुरंदराय नमः
ॐ अग्निने नमः
ॐ विभावसवे नमः
ॐ भास्वते नमः
ॐ यमाय नमः
ॐ निष्कृतिरेवचाय नमः
ॐ वरुणाय नमः
ॐ वायु-गति-मानाय नमः
ॐ वायवे नमः
ॐ कौबेराय नमः
ॐ ईश्वराय नमः
ॐ रवये नमः
ॐ चन्द्राय नमः
ॐ कुजाय नमः
ॐ सौम्याय नमः
ॐ गुरवे नमः
ॐ काव्याय नमः
ॐ शनैश्वराय नमः
ॐ राहवे नमः
ॐ केतवे नमः

ॐ मरुते नमः
ॐ धात्रे नमः
ॐ धर्त्रे नमः
ॐ हर्त्रे नमः
ॐ समीरजाय नमः
ॐ मशकीकृत-देवारये नमः
ॐ दैत्यारये नमः
ॐ मधुसूदनाय नमः
ॐ कामाय नमः
ॐ कपये नमः
ॐ कामपालाय नमः
ॐ कपिलाय नमः
ॐ विश्व जीवनाय नमः
ॐ भागीरथी-पदांभोजाय नमः
ॐ सेतुबंध-विशारदाय नमः
ॐ स्वाहा-काराय नमः
ॐ स्वधा-काराय नमः
ॐ हविषे नमः
ॐ कव्याय नमः
ॐ हव्यवाहकाय नमः
ॐ प्रकाशाय नमः
ॐ स्वप्रकाशाय नमः
ॐ महावीराय नमः
ॐ लघवे नमः
ॐ अमित-विक्रमाय नमः
ॐ प्रडीनोड्डीनगतिमानाय नमः
ॐ सद्गतये नमः
ॐ पुरुषोत्तमाय नमः
ॐ जगदात्मने नमः
ॐ जगद्योनये नमः
ॐ जगदंताय नमः
ॐ अनंतकाय नमः
ॐ विपात्मने नमः
ॐ निष्कलंकाय नमः
ॐ महते नमः
ॐ महदहंकृतये नमः
ॐ खाय नमः
ॐ वायवे नमः
ॐ पृथिव्यै नमः
ॐ आपोभ्य नमः
ॐ वह्नये नमः
ॐ दिक्पालाय नमः
ॐ एकस्थाय नमः
ॐ क्षेत्रज्ञाय नमः
ॐ क्षेत्र-पालाय नमः
ॐ पल्वली-कृत-सागराय नमः
ॐ हिरण्मयाय नमः
ॐ पुराणाय नमः
ॐ खेचराय नमः
ॐ भुचराय नमः
ॐ मनसे नमः
ॐ हिरण्यगर्भाय नमः
ॐ सूत्राम्णे नमः
ॐ राज-राजाय नमः
ॐ विशांपतये नमः
ॐ वेदांत-वेद्याय नमः
ॐ उद्गीथाय नमः
ॐ वेदवेदांग- पारगाय नमः
ॐ प्रति-ग्राम-स्थिताय नमः
ॐ साध्याय नमः
ॐ स्फूर्ति दात्रे नमः
ॐ गुणाकराय नमः
ॐ नक्षत्र-मालिने नमः
ॐ भूतात्मने नमः
ॐ सुरभये नमः
ॐ कल्प-पादपाय नमः
ॐ चिन्ता-मणये नमः
ॐ गुणनिधये नमः
ॐ प्रजापतये नमः
ॐ अनुत्तमाय नमः
ॐ पुण्यश्लोकाय नमः
ॐ पुरारातये नमः
ॐ ज्योतिष्मते नमः
ॐ शर्वरीपतये नमः
ॐ किलिकिल्यारवत्रस्त-प्रेत-भूत-पिशाचकाय नमः
ॐ ऋणत्रय-हराय नमः
ॐ सूक्ष्माय नमः
ॐ स्थूलाय नमः
ॐ सर्वगतये नमः
ॐ पुंसे नमः
ॐ अपस्मार-हराय नमः
ॐ स्मर्त्रे नमः
ॐ श्रुतये नमः
ॐ गाथायै नमः
ॐ स्मृतये नमः
ॐ मनवे नमः
ॐ स्वर्ग-द्वाराय नमः
ॐ प्रजा-द्वाराय नमः
ॐ मोक्ष-द्वाराय नमः
ॐ यतीश्वराय नमः
ॐ नाद-रूपाय नमः
ॐ पर-ब्रह्मणे नमः
ॐ ब्रह्मणे नमः
ॐ ब्रह्म-पुरातनाय नमः
ॐ एकाय नमः
ॐ अनेकाय नमः
ॐ जनाय नमः
ॐ शुक्लाय नमः
ॐ स्वयज्योतिषे नमः
ॐ अनाकुलाय नमः
ॐ ज्योति-ज्योतिषे नमः
ॐ अनादये नमः
ॐ सात्त्विकाय नमः
ॐ राजसत्तमाय नमः
ॐ तमसे नमः
ॐ तमो-हर्त्रे नमः
ॐ निरालंबाय नमः
ॐ निराकाराय नमः
ॐ गुणाकराय नमः
ॐ गुणाश्रयाय नमः
ॐ गुणमयाय नमः
ॐ बृहत्कायाय नमः
ॐ बृहद्यशसे नमः
ॐ बृहद्धनुषे नमः
ॐ बृहत्पादाय नमः
ॐ बृहन्नमूर्ध्ने नमः
ॐ बृहत्स्वनाय नमः
ॐ बृहत्कर्णाय नमः
ॐ बृहन्नासाय नमः
ॐ बृहन्नेत्राय नमः
ॐ बृहत्गलाय नमः
ॐ बृहध्यन्त्राय नमः
ॐ बृहत्चेष्टाय नमः
ॐ बृहत्पुच्छाय नमः
ॐ बृहत्कराय नमः
ॐ बृहत्गतये नमः
ॐ बृहत्सेव्याय नमः
ॐ बृहल्लोक-फलप्रदाय नमः
ॐ बृहच्छक्तये नमः
ॐ बृहद्वांछा-फलदाय नमः
ॐ बृहदीश्वराय नमः
ॐ बृहल्लोकनुताय नमः
ॐ द्रंष्टे नमः
ॐ विद्या-दात्रे नमः
ॐ जगद्गुरवे नमः
ॐ देवाचार्याय नमः
ॐ सत्य-वादिने नमः
ॐ ब्रह्म-वादिने नमः
ॐ कलाधराय नमः
ॐ सप्त-पातालगामिने नमः
ॐ मलयाचल-संश्रयाय नमः
ॐ उत्तराशास्थिताय नमः
ॐ श्रीदाय नमः
ॐ दिव्य-औषधि-वशाय नमः
ॐ खगाय नमः
ॐ शाखामृगाय नमः
ॐ कपीन्द्राय नमः
ॐ पुराणाय नमः
ॐ श्रुति-संचराय नमः
ॐ चतुराय नमः
ॐ ब्राह्मणाय नमः
ॐ योगिने नमः
ॐ योगगम्याय नमः
ॐ परात्पराय नमः
ॐ अनादये नमः
ॐ निधनाय नमः
ॐ व्यासाय नमः
ॐ वैकुण्ठाय नमः
ॐ पृथ्वी-पतये नमः
ॐ अपराजितये नमः
ॐ जितारातये नमः
ॐ सदानन्दाय नमः
ॐ ईशित्रे नमः
ॐ गोपालाय नमः
ॐ गोपतये नमः
ॐ गोप्त्रे नमः
ॐ कलये नमः
ॐ कालाय नमः
ॐ परात्पराय नमः
ॐ मनोवेगिने नमः
ॐ सदा-योगिने नमः
ॐ संसार-भय-नाशनाय नमः
ॐ तत्त्व-दात्रे नमः
ॐ तत्त्वज्ञाय नमः
ॐ तत्त्वाय नमः
ॐ तत्त्व-प्रकाशाय नमः
ॐ शुद्धाय नमः
ॐ बुद्धाय नमः
ॐ नित्यमुक्ताय नमः
ॐ भक्त-राजाय नमः
ॐ जयप्रदाय नमः
ॐ प्रलयाय नमः
ॐ अमित-मायाय नमः
ॐ मायातीताय नमः
ॐ विमत्सराय नमः
ॐ माया-निर्जित-रक्षसे नमः
ॐ माया-निर्मित-विष्टपाय नमः
ॐ मायाश्रयाय नमः
ॐ निर्लेपाय नमः
ॐ माया-निर्वंचकाय नमः
ॐ सुखाय नमः
ॐ सुखिने नमः
ॐ सुखप्रदाय नमः
ॐ नागाय नमः
ॐ महेशकृत-संस्तवाय नमः
ॐ महेश्वराय नमः
ॐ सत्यसंधाय नमः
ॐ शरभाय नमः
ॐ कलि-पावनाय नमः
ॐ रसाय नमः
ॐ रसज्ञाय नमः
ॐ सम्मानाय नमः
ॐ तपस्चक्षवे नमः
ॐ भैरवाय नमः
ॐ घ्राणाय नमः
ॐ गन्धाय नमः
ॐ स्पर्शनाय नमः
ॐ स्पर्शाय नमः
ॐ अहंकारमानदाय नमः
ॐ नेति-नेति-गम्याय नमः
ॐ वैकुण्ठ-भजन-प्रियाय नमः
ॐ गिरीशाय नमः
ॐ गिरिजा-कान्ताय नमः
ॐ दूर्वाससे नमः
ॐ कवये नमः
ॐ अंगिरसे नमः
ॐ भृगुवे नमः
ॐ वसिष्ठाय नमः
ॐ च्यवनाय नमः
ॐ तुम्बुरुवे नमः
ॐ नारदाय नमः
ॐ अमलाय नमः
ॐ विश्व-क्षेत्राय नमः
ॐ विश्व-बीजाय नमः
ॐ विश्व-नेत्राय नमः
ॐ विश्वगाय नमः
ॐ याजकाय नमः
ॐ यजमानाय नमः
ॐ पावकाय नमः
ॐ पित्रे नमः
ॐ श्रद्धायै नमः
ॐ बुद्धये नमः
ॐ क्षमायै नमः
ॐ तन्त्राय नमः
ॐ मन्त्राय नमः
ॐ मन्त्रयुताय नमः
ॐ स्वराय नमः
ॐ राजेन्द्राय नमः
ॐ भूपतये नमः
ॐ रुण्ड-मालिने नमः
ॐ संसार-सारथये नमः
ॐ नित्याय नमः
ॐ संपूर्ण-कामाय नमः
ॐ भक्त कामदुधे नमः
ॐ उत्तमाय नमः
ॐ गणपाय नमः
ॐ केशवाय नमः
ॐ भ्रात्रे नमः
ॐ पित्रे नमः
ॐ मात्रे नमः
ॐ मारुतये नमः
ॐ सहस्र-शीर्षा-पुरुषाय नमः
ॐ सहस्राक्षाय नमः
ॐ सहस्रपाताय नमः
ॐ कामजिते नमः
ॐ काम-दहनाय नमः
ॐ कामाय नमः
ॐ काम्य-फल-प्रदाय नमः
ॐ मुद्रापहारिणे नमः
ॐ रक्षोघ्नाय नमः
ॐ क्षिति-भार-हराय नमः
ॐ बलाय नमः
ॐ नख-दंष्ट्रा-युधाय नमः
ॐ विष्णु-भक्ताय नमः
ॐ अभय-वर-प्रदाय नमः
ॐ दर्पघ्ने नमः
ॐ दर्पदाय नमः
ॐ इष्टाय नमः
ॐ शत-मूर्त्तये नमः
ॐ अमूर्त्तिमते नमः
ॐ महा-निधये नमः
ॐ महा-भागाय नमः
ॐ महा-भर्गाय नमः
ॐ महार्थदाय नमः
ॐ महाकाराय नमः
ॐ महा-योगिने नमः
ॐ महा-तेजसे नमः
ॐ महा-द्युतये नमः
ॐ महा-कर्मणे नमः
ॐ महा-नादाय नमः
ॐ महा-मन्त्राय नमः
ॐ महा-मतये नमः
ॐ महाशयाय नमः
ॐ महोदराय नमः
ॐ महादेवात्मकाय नमः
ॐ विभवे नमः
ॐ रुद्र-कर्मणे नमः
ॐ अकृत-कर्मणे नमः
ॐ रत्न-नाभाय नमः
ॐ कृतागमाय नमः
ॐ अम्भोधि-लंघनाय नमः
ॐ सिंहाय नमः
ॐ नित्याय नमः
ॐ धर्माय नमः
ॐ प्रमोदनाय नमः
ॐ जितामित्राय नमः
ॐ जयाय नमः
ॐ सम-विजयाय नमः
ॐ वायु-वाहनाय नमः
ॐ जीव-दात्रे नमः
ॐ सहस्रांशवे नमः
ॐ मुकुन्दाय नमः
ॐ भूरि-दक्षिणाय नमः
ॐ सिद्धर्थाय नमः
ॐ सिद्धिदाय नमः
ॐ सिद्ध-संकल्पाय नमः
ॐ सिद्धि-हेतुकाय नमः
ॐ सप्त-पातालचरणाय नमः
ॐ सप्तर्षि-गण-वन्दिताय नमः
ॐ सप्ताब्धि-लंघनाय नमः
ॐ वीराय नमः
ॐ सप्त-द्वीपोरुमण्डलाय नमः
ॐ सप्तांग-राज्य-सुखदाय नमः
ॐ सप्त-मातृ-निशेविताय नमः
ॐ सप्त-लोकैक-मुकुटाय नमः
ॐ सप्त-होता-स्वराश्रयाय नमः
ॐ सप्तच्छन्द-निधये नमः
ॐ सप्तच्छन्दसे नमः
ॐ सप्त-जनाश्रयाय नमः
ॐ सप्त-सामोपगीताय नमः
ॐ सप्त-पातल-संश्रयाय नमः
ॐ मेधावी-कीर्तिदाय नमः
ॐ शोक-हारिणे नमः
ॐ दौर्भाग्य-नाशनाय नमः
ॐ सर्व-वश्यकराय नमः
ॐ गर्भ-दोषघ्नाय नमः
ॐ पुत्र-पौत्र-दाय नमः
ॐ प्रतिवादि-मुखस्तंभिने नमः
ॐ तुष्टचित्ताय नमः
ॐ प्रसादनाय नमः
ॐ पराभिचारशमनाय नमः
ॐ दवे नमः
ॐ खघ्नाय नमः
ॐ बंध-मोक्षदाय नमः
ॐ नव-द्वार-पुराधाराय नमः
ॐ नव-द्वार-निकेतनाय नमः
ॐ नर-नारायण-स्तुत्याय नमः
ॐ नरनाथाय नमः
ॐ महेश्वराय नमः
ॐ मेखलिने नमः
ॐ कवचिने नमः
ॐ खद्गिने नमः
ॐ भ्राजिष्णवे नमः
ॐ जिष्णुसारथये नमः
ॐ बहु-योजन-विस्तीर्ण-पुच्छाय नमः
ॐ पुच्छ-हतासुराय नमः
ॐ दुष्टग्रह-निहंत्रे नमः
ॐ पिशाच-ग्रह-घातकाय नमः
ॐ बाल-ग्रह-विनाशिने नमः
ॐ धर्माय नमः
ॐ नेता-कृपाकराय नमः
ॐ उग्रकृत्याय नमः
ॐ उग्रवेगिने नमः
ॐ उग्र-नेत्राय नमः
ॐ शत-क्रतवे नमः
ॐ शत-मन्युस्तुताय नमः
ॐ स्तुत्याय नमः
ॐ स्तुतये नमः
ॐ स्तोत्रे नमः
ॐ महा-बलाय नमः
ॐ समग्र-गुणशालिने नमः
ॐ अव्यग्राय नमः
ॐ रक्षाय नमः
ॐ विनाशकाय नमः
ॐ रक्षोघ्न-हस्ताय नमः
ॐ ब्रह्मेशाय नमः
ॐ श्रीधराय नमः
ॐ भक्त-वत्सलाय नमः
ॐ मेघ-नादाय नमः
ॐ मेघ-रूपाय नमः
ॐ मेघ-वृष्टि-निवारकाय नमः
ॐ मेघ-जीवन-हेतवे नमः
ॐ मेघ-श्यामाय नमः
ॐ परात्मकाय नमः
ॐ समीर-तनयाय नमः
ॐ बोध्-तत्त्व-विद्या-विशारदाय नमः
ॐ अमोघाय नमः
ॐ अमोघहृष्टये नमः
ॐ इष्टदाय नमः
ॐ अनिष्ट-नाशनाय नमः
ॐ अर्थाय नमः
ॐ अनर्थापहारिणे नमः
ॐ समर्थाय नमः
ॐ राम-सेवकाय नमः
ॐ अर्थिने नमः
ॐ धन्याय नमः
ॐ असुरारातये नमः
ॐ पुण्डरीकाक्षाय नमः
ॐ आत्मभूवे नमः
ॐ संकर्षणाय नमः
ॐ विशुद्धात्मने नमः
ॐ विद्या-राशये नमः
ॐ सुरेश्वराय नमः
ॐ अचलोद्धारकाय नमः
ॐ नित्याय नमः
ॐ सेतुकृते नमः
ॐ राम-सारथये नमः
ॐ आनन्दाय नमः
ॐ परमानन्दाय नमः
ॐ मत्स्याय नमः
ॐ कूर्माय नमः
ॐ निधये नमः
ॐ शूराय नमः
ॐ वाराहाय नमः
ॐ नारसिंहाय नमः
ॐ वामनाय नमः
ॐ जमदग्निजाय नमः
ॐ रामाय नमः
ॐ कृष्णाय नमः
ॐ शिवाय नमः
ॐ बुद्धाय नमः
ॐ कल्किने नमः
ॐ रामाश्रयाय नमः
ॐ हराय नमः
ॐ नन्दिने नमः
ॐ भृन्गिने नमः
ॐ चण्डिने नमः
ॐ गणेशाय नमः
ॐ गण-सेविताय नमः
ॐ कर्माध्यक्ष्याय नमः
ॐ सुराध्यक्षाय नमः
ॐ विश्रामाय नमः
ॐ जगतांपतये नमः
ॐ जगन्नथाय नमः
ॐ कपि-श्रेष्टाय नमः
ॐ सर्ववासाय नमः
ॐ सदाश्रयाय नमः
ॐ सुग्रीवादिस्तुताय नमः
ॐ शान्ताय नमः
ॐ सर्व-कर्मणे नमः
ॐ प्लवंगमाय नमः
ॐ नखदारितरक्षसे नमः
ॐ नख-युद्ध-विशारदाय नमः
ॐ कुशलाय नमः
ॐ सुघनाय नमः
ॐ शेषाय नमः
ॐ वासुकये नमः
ॐ तक्षकाय नमः
ॐ स्वराय नमः
ॐ स्वर्ण-वर्णाय नमः
ॐ बलाढ्याय नमः
ॐ राम-पूज्याय नमः
ॐ अघनाशनाय नमः
ॐ कैवल्य-दीपाय नमः
ॐ कैवल्याय नमः
ॐ गरुडाय नमः
ॐ पन्नगाय नमः
ॐ गुरवे नमः
ॐ क्लिक्लिरावणहतारातये नमः
ॐ गर्वाय नमः
ॐ पर्वत-भेदनाय नमः
ॐ वज्रांगाय नमः
ॐ वज्र-वेगाय नमः
ॐ भक्ताय नमः
ॐ वज्र-निवारकाय नमः
ॐ नखायुधाय नमः
ॐ मणिग्रीवाय नमः
ॐ ज्वालामालिने नमः
ॐ भास्कराय नमः
ॐ प्रौढ-प्रतापाय नमः
ॐ तपनाय नमः
ॐ भक्त-ताप-निवारकाय नमः
ॐ शरणाय नमः
ॐ जीवनाय नमः
ॐ भोक्त्रे नमः
ॐ नानाचेष्टा नमः
ॐ चंचलाय नमः
ॐ सुस्वस्थाय नमः
ॐ अस्वास्थ्यघ्ने नमः
ॐ दवे नमः
ॐ खशमनाय नमः
ॐ पवनात्मजाय नमः
ॐ पावनाय नमः
ॐ पवनाय नमः
ॐ कान्ताय नमः
ॐ भक्तागाय नमः
ॐ सहनाय नमः
ॐ बलाय नमः
ॐ मेघनाद-रिपवे नमः
ॐ मेघनाद-संहृतराक्षसाय नमः
ॐ क्षराय नमः
ॐ अक्षराय नमः
ॐ विनीतात्मा वानरेशाय नमः
ॐ सतांगतये नमः
ॐ शिति-कण्ठाय नमः
ॐ श्री-कण्ठाय नमः
ॐ सहायाय नमः
ॐ सहनायकाय नमः
ॐ अस्थलाय नमः
ॐ अनणवे नमः
ॐ भर्गाय नमः
ॐ देवाय नमः
ॐ संसृतिनाशनाय नमः
ॐ अध्यात्म-विद्याय नमः
ॐ साराय नमः
ॐ अध्यात्म-कुशलाय नमः
ॐ सुधिये नमः
ॐ अकल्मषाय नमः
ॐ सत्य-हेतवे नमः
ॐ सत्यगाय नमः
ॐ सत्य-गोचराय नमः
ॐ सत्य-गर्भाय नमः
ॐ सत्य-रूपाय नमः
ॐ सत्याय नमः
ॐ सत्य-पराक्रमाय नमः
ॐ अन्जना-प्राणलिंगाय नमः
ॐ वायु-वंशोद्भवाय नमः
ॐ शुभाय नमः
ॐ भद्र-रूपाय नमः
ॐ रुद्र-रूपाय नमः
ॐ सुरूपस्चित्र-रूपधृताय नमः
ॐ मैनाक-वंदिताय नमः
ॐ सूक्ष्म-दर्शनाय नमः
ॐ विजयाय नमः
ॐ जयाय नमः
ॐ क्रान्त-दिग्मण्डलाय नमः
ॐ रुद्राय नमः
ॐ प्रकटीकृत-विक्रमाय नमः
ॐ कम्बु-कण्ठाय नमः
ॐ प्रसन्नात्मने नमः
ॐ ह्रस्व-नासाय नमः
ॐ वृकोदराय नमः
ॐ लंबोष्टाय नमः
ॐ कुण्डलिने नमः
ॐ चित्र-मालिने नमः
ॐ योग-विदावराय नमः
ॐ वराय नमः
ॐ विपश्चिताय नमः
ॐ कविरानन्द-विग्रहाय नमः
ॐ अनन्य-शासनाय नमः
ॐ फल्गुणीसूनुरव्यग्राय नमः
ॐ योगात्मने नमः
ॐ योगतत्पराय नमः
ॐ योग-वेद्याय नमः
ॐ योग-कर्त्रे नमः
ॐ योग-योनये नमः
ॐ दिगंबराय नमः
ॐ अकारादि-क्षकारान्ताय नमः
ॐ वर्ण-निर्मिताय नमः
ॐ विग्रहाय नमः
ॐ उलूखल-मुखाय नमः
ॐ सिंहाय नमः
ॐ संस्तुताय नमः
ॐ परमेश्वराय नमः
ॐ श्लिष्ट-जंघाय नमः
ॐ श्लिष्ट-जानवे नमः
ॐ श्लिष्ट-पाणये नमः
ॐ शिखा-धराय नमः
ॐ सुशर्मणे नमः
ॐ अमित-शर्मणे नमः
ॐ नारायण-परायणाय नमः
ॐ जिष्णवे नमः
ॐ भविष्णवे नमः
ॐ रोचिष्णवे नमः
ॐ ग्रसिष्णवे नमः
ॐ स्थाणुरेवाय नमः
ॐ हरये नमः
ॐ रुद्रानुकृते नमः
ॐ वृक्ष-कंपनाय नमः
ॐ भूमि-कंपनाय नमः
ॐ गुण-प्रवाहाय नमः
ॐ सूत्रात्मने नमः
ॐ वीत-रागाय नमः
ॐ स्तुति-प्रियाय नमः
ॐ नाग-कन्या-भय-ध्वंसिने नमः
ॐ ऋतु-पर्णाय नमः
ॐ कपाल-भृताय नमः
ॐ अनाकुलाय नमः
ॐ भवोपायाय नमः
ॐ अनपायाय नमः
ॐ वेद-पारगाय नमः
ॐ अक्षराय नमः
ॐ पुरुषाय नमः
ॐ लोक-नाथाय नमः
ॐ रक्ष-प्रभवे नमः
ॐ दृडाय नमः
ॐ अष्टांग-योगाय नमः
ॐ फलभुवे नमः
ॐ सत्य-संधाय नमः
ॐ पुरुष्टुताय नमः
ॐ श्मशान-स्थान-निलयाय नमः
ॐ प्रेत-विद्रावणाय नमः
ॐ क्षमाय नमः
ॐ पंचाक्षर-पराय नमः
ॐ पञ्च-मातृकाय नमः
ॐ रंजनाय नमः
ॐ ध्वजाय नमः
ॐ योगिने नमः
ॐ वृन्द-वंद्याय नमः
ॐ शत्रुघ्नाय नमः
ॐ अनन्त-विक्रमाय नमः
ॐ ब्रह्मचारिणे नमः
ॐ इन्द्रिय-रिपवे नमः
ॐ धृतदण्डाय नमः
ॐ दशात्मकाय नमः
ॐ अप्रपंचाय नमः
ॐ सदाचाराय नमः
ॐ शूर-सेना-विदारकाय नमः
ॐ वृद्धाय नमः
ॐ प्रमोदाय नमः
ॐ आनंदाय नमः
ॐ सप्त-जिह्व-पतिर्धराय नमः
ॐ नव-द्वार-पुराधाराय नमः
ॐ प्रत्यग्राय नमः
ॐ सामगायकाय नमः
ॐ षट्चक्रधाम्ने नमः
ॐ स्वर्लोकाय नमः
ॐ भयहृते नमः
ॐ मानदाय नमः
ॐ अमदाय नमः
ॐ सर्व-वश्यकराय नमः
ॐ शक्तिरनन्ताय नमः
ॐ अनन्त-मंगलाय नमः
ॐ अष्ट-मूर्तिर्धराय नमः
ॐ नेत्रे नमः
ॐ विरूपाय नमः
ॐ स्वर-सुन्दराय नमः
ॐ धूम-केतवे नमः
ॐ महा-केतवे नमः
ॐ सत्य-केतवे नमः
ॐ महारथाय नमः
ॐ नन्दि-प्रियाय नमः
ॐ स्वतन्त्राय नमः
ॐ मेखलिने नमः
ॐ समर-प्रियाय नमः
ॐ लोहांगाय नमः
ॐ सर्वविदे नमः
ॐ धन्विने नमः
ॐ षट्कलाय नमः
ॐ शर्वाय नमः
ॐ ईश्वराय नमः
ॐ फल-भुजे नमः
ॐ फल-हस्ताय नमः
ॐ सर्व-कर्म-फलप्रदाय नमः
ॐ धर्माध्यक्षाय नमः
ॐ धर्म-फलाय नमः
ॐ धर्माय नमः
ॐ धर्म-प्रदाय नमः
ॐ अर्थदाय नमः
ॐ पं-विंशति-तत्त्वज्ञाय नमः
ॐ तारक-ब्रह्म-तत्पराय नमः
ॐ त्रि-मार्गवसतये नमः
ॐ भीमाये नमः
ॐ सर्व-दुष्ट-निबर्हणाय नमः
ॐ ऊर्जस्वानाय नमः
ॐ निष्कलाय नमः
ॐ मौलिने नमः
ॐ गर्जाय नमः
ॐ निशाचराय नमः
ॐ रक्तांबर-धराय नमः
ॐ रक्ताय नमः
ॐ रक्त-माला-विभूषणाय नमः
ॐ वन-मालिने नमः
ॐ शुभांगांय नमः
ॐ श्वेताय नमः
ॐ श्वेतांबराय नमः
ॐ जयाय नमः
ॐ जय-परीवाराय नमः
ॐ सहस्र-वदनाय नमः
ॐ कपये नमः
ॐ शाकिनी-डाकिनी-यक्ष-रक्षाय नमः
ॐ भूतौघ-भंजनाय नमः
ॐ सद्योजाताय नमः
ॐ कामगतये नमः
ॐ ज्ञान-मूर्तये नमः
ॐ यशस्कराय नमः
ॐ शंभु-तेजसे नमः
ॐ सार्वभौमाय नमः
ॐ विष्णु-भक्ताय नमः
ॐ चतुर्नवति-मन्त्रज्ञाय नमः
ॐ पौलस्त्य-बल-दर्पहाय नमः
ॐ सर्व-लक्ष्मी-प्रदाय नमः
ॐ श्रीमानाय नमः
ॐ अन्गदप्रियाय नमः
ॐ स्मृतये नमः
ॐ सुरेशानाय नमः
ॐ संसार-भय-नाशनाय नमः
ॐ उत्तमाय नमः
ॐ श्रीपरिवाराय नमः
ॐ सदागतिर्मातरये नमः
ॐ राम-पादाब्ज-षट्पदाय नमः
ॐ नील-प्रियाय नमः
ॐ नील-वर्णाय नमः
ॐ नील-वर्ण-प्रियाय नमः
ॐ सुहृताय नमः
ॐ राम दूताय नमः
ॐ लोक-बन्धवे नमः
ॐ अन्तरात्मा-मनोरमाय नमः
ॐ श्री राम ध्यानकृद् वीराय नमः
ॐ सदा किंपुरुषस्स्तुताय नमः
ॐ राम कार्यांतरंगाय नमः
ॐ शुद्धिर्गतिरानमयाय नमः
ॐ पुण्य श्लोकाय नमः
ॐ परानन्दाय नमः
ॐ परेशाय नमः
ॐ प्रिय सारथये नमः
ॐ लोक-स्वामिने नमः
ॐ मुक्ति-दात्रे नमः
ॐ सर्व-कारण-कारणाय नमः
ॐ महा-बलाय नमः
ॐ महा-वीराय नमः
ॐ पारावारगतये नमः
ॐ समस्त-लोक-साक्षिणे नमः
ॐ समस्त-सुर-वंदिताय नमः
ॐ सीता-समेत-श्रीराम-पाद-सेवा-धुरंधराय नमः

अनेन सहस्त्रनाम्नाऽमुकद्रव्यसमर्पणेन श्री हनुमद्देवता प्रीयताम् न मम।।

दुर्गा सप्तशती पाठ विधि

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