Friday 16 November 2012

श्रीराम ज्योतिष सदन..

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2 श्रीराम ज्योतिष सदन..
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.श्रीसूक्त के प्रयोग १

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ASHU..............श्रीसूक्त के प्रयोग १॰ “श्रीं ह्रीं क्लीं।।हिरण्य-वर्णा हरिणीं, सुवर्ण-रजत-स्रजाम्। चन्द्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं, जातवेदो म आवह।। श्रीं ह्रीं क्लीं” सुवर्ण से लक्ष्मी की मूर्ति बनाकर उस मूर्ति का पूजन हल्दी और सुवर्ण-चाँदी के कमल-पुष्पों से करें। फिर सुवासिनी-सौभाग्यवती स्त्री और गाय का पूजन कर, पूर्णिमा के चन्द्र में अथवा पानी से भरे हुए कुम्भ में श्रीपरा-नारायणी का ध्यान कर, सोने की माला से कमल-प...त्र के आसन पर बैठकर, ‘श्रीसूक्त’ की उक्त ‘हिरण्य-वर्णा॰॰’ ऋचा में ‘श्रीं ह्रीं क्लीं’ बीज जोड़कर प्रातः, दोपहर और सांय एक-एक हजार (१० माला) जप करे। इस प्रकार सवा लाख जप होने पर मधु और कमल-पुष्प से दशांश हवन करे और तर्पण, मार्जन तथा ब्राह्मण-भोजन नियम से करे। इस प्रयोग का पुरश्चरण ३२ लाख जप का है। सवा लाख का जप, होम आदि हो जाने पर दूसरे सवा लाख का जप प्रारम्भ करे। ऐसे कुल २६ प्रयोग करने पर ३२ लाख का प्रयोग सम्पूर्ण होता है। इस प्रयोग का फल राज-वैभव, सुवर्ण, रत्न, वैभव, वाहन, स्त्री, सन्तान और सब प्रकार का सांसारिक सुख की प्राप्ति है। २॰ “ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं महा-लक्ष्म्यै नमः।। दुर्गे! स्मृता हरसि भीतिमशेष-जन्तोः, स्वस्थैः स्मृता मतिमतीव-शुभां ददासि। ॐ ऐं हिरण्य-वर्णां हरिणीं, सुवर्ण-रजत-स्रजाम्। चन्द्रां हिरण्यमयीं लक्ष्मीं, जातवेदो म आवह।। दारिद्रय-दुःख-भय-हारिणि का त्वदन्या, सर्वोपकार-करणाय सदाऽर्द्र-चित्ता।। ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं महा-लक्ष्म्यै नमः।।” यह ‘श्रीसूक्त का एक मन्त्र सम्पुटित हुआ। इस प्रकार ‘तां म आवह′ से लेकर ‘यः शुचिः’ तक के १६ मन्त्रों को सम्पुटित कर पाठ करने से १ पाठ हुआ। ऐसे १२ हजार पाठ करे। चम्पा के फूल, शहद, घृत, गुड़ का दशांश हवन तद्दशांश तर्पण, मार्जन तथा ब्रह्म-भोजन करे। इस प्रयोग से धन-धान्य, ऐश्वर्य, समृद्धि, वचन-सिद्धि प्राप्त होती है। ३॰ “ॐ ऐं ॐ ह्रीं।। तां म आवह जात-वेदो लक्ष्मीमनप-गामिनीम्। यस्यां हिरण्यं विन्देयं, गामश्वं पुरुषानहम्।। ॐ ऐं ॐ ह्रीं” सुवर्ण से लक्ष्मी की मूर्ति बनाकर उस मूर्ति का पूजन हल्दी और सुवर्ण-चाँदी के कमल-पुष्पों से करें। फिर सुवासिनी-सौभाग्यवती स्त्री और गाय का पूजन कर, पूर्णिमा के चन्द्र में अथवा पानी से भरे हुए कुम्भ में श्रीपरा-नारायणी का ध्यान कर, सोने की माला से कमल-पत्र के आसन पर बैठकर, नित्य सांय-काल एक हजार (१० माला) जप करे। कुल ३२ दिन का प्रयोग है। दशांश हवन, तर्पण, मार्जन तथा ब्रह्म-भोजन करे। माँ लक्ष्मी स्वप्न में आकर धन के स्थान या धन-प्राप्ति के जो साधन अपने चित्त में होंगे, उनकी सफलता का मार्ग बताएँगी। धन-समृद्धि स्थिर रहेगी। प्रत्येक तीन वर्ष के अन्तराल में यह प्रयोग करे। ४॰ “ॐ ह्रीं ॐ श्रीं।। अश्व-पूर्वां रथ-मध्यां, हस्ति-नाद-प्रबोधिनीम्। श्रियं देवीमुपह्वये, श्रीर्मा देवी जुषताम्।। ॐ ह्रीं ॐ श्रीं” उक्त मन्त्र का प्रातः, मध्याह्न और सांय प्रत्येक काल १०-१० माला जप करे। संकल्प, न्यास, ध्यान कर जप प्रारम्भ करे। इस प्रकार ४ वर्ष करने से मन्त्र सिद्ध होता है। प्रयोग का पुरश्चरण ३६ लाख मन्त्र-जप का है। स्वयं न कर सके, तो विद्वान ब्राह्मणों द्वारा कराया जा सकता है। खोया हुआ या शत्रुओं द्वारा छिना हुआ धन प्राप्त होता है। ५॰ “करोतु सा नः शुभ हेतुरीश्वरी, शुभानि भद्राण्यभिहन्तु चापदः। अश्व-पूर्वां रथ-मध्यां, हस्ति-नाद-प्रबोधिनीम्। श्रियं देवीमुपह्वये, श्रीर्मा देवी जुषताम्।। करोतु सा नः शुभ हेतुरीश्वरी, शुभानि भद्राण्यभिहन्तु चापदः।।” उक्त आधे मन्त्र का सम्पुट कर १२ हजार जप करे। दशांश हवन, तर्पण, मार्जन तथा ब्रह्म-भोजन करे। इससे धन, ऐश्वर्य, यश बढ़ता है। शत्रु वश में होते हैं। खोई हुई लक्ष्मी, सम्पत्ति पुनः प्राप्त होती है। ६॰ “ॐ श्रीं ॐ क्लीं।। कांसोऽस्मि तां हिरण्य-प्राकारामार्द्रा ज्वलन्तीं तृप्तां तर्पयन्तीम्। पद्मे स्थितां पद्म-वर्णां तामिहोपह्वये श्रियम्।। ॐ श्रीं ॐ क्लीं” उक्त मन्त्र का पुरश्चरण आठ लाख जप का है। जप पूर्ण होने पर पलाश, ढाक की समिधा, दूध और गाय के घी से हवन तद्दशांश तर्पण, मार्जन, ब्रह्म-भोज करे। इस प्रयोग से सभी प्रकार की समृद्धि और श्रेय मिलता है। शत्रुओं का क्षय होता है। ७॰ “सर्वा-बाधा-प्रशमनं, त्रैलोक्याखिलेश्वरि! एवमेव त्वया कार्यमस्मद्-वैरि-विनाशनम्।। कांसोऽस्मि तां हिरण्य-प्राकारामार्द्रा ज्वलन्तीं तृप्तां तर्पयन्तीम्। पद्मे स्थितां पद्म-वर्णां तामिहोपह्वये श्रियम्।। सर्वा-बाधा-प्रशमनं, त्रैलोक्याखिलेश्वरि! एवमेव त्वया कार्यमस्मद्-वैरि-विनाशनम्।।” उक्त सम्पुट मन्त्र का १२ लाख जप करे। ब्राह्मण द्वारा भी कराया जा सकता है। इससे गत वैभव पुनः प्राप्त होता है और धन-धान्य-समृद्धि और श्रेय मिलता है। शत्रुओं का क्षय होता है। ८॰ “ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं।।कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद महा-लक्ष्म्यै नमः।। दुर्गे! स्मृता हरसि भीतिमशेष-जन्तोः, स्वस्थैः स्मृता मतिमतीव-शुभां ददासि। कांसोऽस्मि तां हिरण्य-प्राकारामार्द्रा ज्वलन्तीं तृप्तां तर्पयन्तीम्। पद्मे स्थितां पद्म-वर्णां तामिहोपह्वये श्रियम्।। दारिद्रय-दुःख-भय-हारिणि का त्वदन्या, सर्वोपकार-करणाय सदाऽर्द्र-चित्ता।। ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं।।कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद महा-लक्ष्म्यै नमः।।” उक्त प्रकार से सम्पुटित मन्त्र का १२ हजार जप करे। इस प्रयोग से वैभव, लक्ष्मी, सम्पत्ति, वाहन, घर, स्त्री, सन्तान का लाभ मिलता है। ९॰ “ॐ क्लीं ॐ वद-वद।। चन्द्रां प्रभासां यशसा ज्वलन्तीं श्रियं लोके देव-जुष्टामुदाराम्। तां पद्म-नेमिं शरणमहं प्रपद्ये अलक्ष्मीर्मे नश्यतां त्वां वृणे।। ॐ क्लीं ॐ वद-वद।।” उक्त मन्त्र का संकल्प, न्यास, ध्यान कर एक लाख पैंतीस हजार जप करना चाहिए। गाय के गोबर से लिपे हुए स्थान पर बैठकर नित्य १००० जप करना चाहिए। यदि शीघ्र सिद्धि प्राप्त करना हो, तो तीनों काल एक-एक हजार जप करे या ब्राह्मणों से करावे। ४५ हजार पूर्ण होने पर दशांश हवन तद्दशांश तर्पण, मार्जन तथा ब्रह्म-भोजन करे। ध्यान इस प्रकार है- “अक्षीण-भासां चन्द्राखयां, ज्वलन्तीं यशसा श्रियम्। देव-जुष्टामुदारां च, पद्मिनीमीं भजाम्यहम्।।” इस प्रयोग से मनुष्य धनवान होता है। १०॰ “ॐ वद वद वाग्वादिनि।। आदित्य-वर्णे! तपसोऽधिजातो वनस्पतिस्तव वृक्षोऽथ बिल्वः। तस्य फलानि तपसा नुदन्तु मायान्तरायाश्च बाह्या अलक्ष्मीः।। ॐ वद वद वाग्वादिनि” देवी की स्वर्ण की प्रतिमा बनवाए। चन्दन, पुष्प, बिल्व-पत्र, हल्दी, कुमकुम से उसका पूजन कर एक से तीन हजार तक उक्त मन्त्र का जप करे। कुल ग्यारह लाख का प्रयोग है। जप पूर्ण होने पर बिल्व-पत्र, घी, खीर से दशांश होम, तर्पण, मार्जन, ब्रह्म-भोजन करे। यह प्रयोग ब्राह्मणों द्वारा भी कराया जा सकता है। ‘ऐं क्लीं सौः ऐं श्रीं’- इन बीजों से कर-न्यास और हृदयादि-न्यास करे। ध्यान इस प्रकार करे- “उदयादित्य-संकाशां, बिल्व-कानन-मध्यगाम्। तनु-मध्यां श्रियं ध्यायेदलक्ष्मी-परिहारिणीम्।।” प्रयोग-काल में फल और दूध का आहार करे। पकाया हुआ पदार्थ न खाए। पके हुए बिल्व-फल फलाहार में काए जा सकते हैं। यदि सम्भव हो तो बिल्व-वृक्ष के नीचे बैठकर जप करे। इस प्रयोग से वाक्-सिद्धि मिलती है और लक्ष्मी स्थिर रहती है। ११॰ “ज्ञानिनामपि चेतांसि, देवी भगवती हि सा। बलादाकृष्य मोहाय, महा-माया प्रयच्छति।। आदित्य-वर्णे तपसोऽधिजाते, वनस्पतिस्तव वृक्षोऽथ बिल्वः। तस्य फलानि तपसा नुदन्तु, मायान्तरा ताश्च बाह्या अलक्ष्मीः।। ज्ञानिनामपि चेतांसि, देवी भगवती हि सा। बलादाकृष्य मोहाय, महा-माया प्रयच्छति।।” उक्त मन्त्र का १२००० जप कर दशांश होम, तर्पण करे। इस प्रयोग से जिस वस्तु की या जिस मनुष्य की इच्छा हो, उसका आकर्षण होता है और वह अपने वश में रहता है। राजा या राज्य-कर्ताओं को वश करने के लिए ४८००० जप करना चाहिए। १२॰ “ॐ वाग्वादिनी ॐ ऐं। उपैतु मां देवसखः, कीर्तिश्च मणिना सह। प्रादुर्भूतोऽस्मि राष्ट्रेऽस्मिन्, कीर्ति वृद्धिं ददातु मे। ॐ वाग्वादिनी ॐ ऐं।।” उक्त मन्त्र का बत्तीस लाख बीस हजार जप करे। “ॐ अस्य श्रीसूक्तस्य ‘उपैतु मां॰’ मन्त्रस्य कुबेर ऋषिः, मणि-मालिनी लक्ष्मीः देवता, अनुष्टुप् छन्दः, श्रीं ब्लूं क्लीं बीजानि ममाभीष्ट-कामना-सिद्धयर्थे जपे विनियोगः।’ इस प्रकार ‘विनियोग’, ऋष्यादि-न्यास’ कर ‘आं ह्रीं क्रों ऐं श्रीं आं ह्रं क्रौं ऐं’ इन ९ बीजों से कर-न्यास एवं ‘हृदयादि-न्यास’ करे। ध्यान- “राज-राजेश्वरीं लक्ष्मीं, वरदां मणि-मालिनीं। देवीं देव-प्रियां कीर्ति, वन्दे काम्यार्थ-सिद्धये।।” मणि-मालिनी लक्ष्मी देवी की स्वर्ण की मूर्ति बनाकर, बिल्व-पत्र, दूर्वा, हल्दी, अक्षत, मोती, केवड़ा, चन्दन, पुष्प आदि से पूजन करे। ‘श्री-ललिता-सहस्त्रनाम-स्तोत्र’ के प्रत्येक नाम के साथ ‘श्रीं’ बीज लगाकर पूजन करे। सन्ध्यादि नित्य कर्म कर प्रयोग का प्रारम्भ करे। घी का दीप और गूगल का धूप करे। द्राक्षा, खजूर, केले, ईख, शहद, घी, दाड़िम, केरी, नारियल आदि जो प्राप्त हो, नैवेद्य में दे। प्रातः और मध्याह्न में १००० और रात्रि में २००० नित्य जप करे। ढाई साल में एक व्यक्ति बत्तीस लाख बीस हजार का जप पूर्ण कर सकता है। जप करने के लिए प्रवाल की माला ले। जप पूर्ण होने पर अपामार्ग की समिधा, धृत, खीर से दशांश होम कर मार्जन और ब्रह्म-भोज करे। इस प्रयोग से कुबेर आदि देव साक्षात् या स्वप्न में दर्शन देते हैं और धन, सुवर्ण, रत्न, रसायन, औषधि, दिव्याञ्जन आदि देते हैं। १३॰ “ॐ ऐं ॐ सौः। क्षुत्-पिपासामला ज्येष्ठा, अलक्ष्मीर्नाशयाम्यहम्। अभूतिमसमृद्धिं च, सर्वान् निर्णुद मे गृहात्। ॐ ऐं ॐ सौः” उक्त मन्त्र का ३२,००० जप करे। प्रतिदिन रात्रि में वीरासन में बैठकर ३००० जप करे। ‘अग्नि-होत्र-कुण्ड’ के सम्मुख बैठकर ‘जप’ करने से विशेष फल मिलता है। रुद्राक्ष की माला से जप करे। तिल, गुड़ और घी से दशांश होम तथा तर्पण, मार्जन, ब्रह्म-भोजन करावे। ध्यान- “खड्गं स-वात-चक्रं च, कमलं वरमेव च। करैश्चतुर्भिर्विभ्राणां, ध्याये चंद्राननां श्रियम्।।” एक अनुष्ठान दस दिन में पूर्ण होगा। इस प्रकार चार अनुष्ठान पूरे करें। इस प्रयोग से शत्रु का या बिना कारण हानि पहुँचानेवाले का नाश होगा और दरिद्रता, निर्धनता, रोग, भय आदि नष्ट होकर प्रयोग करने वाला अपने कुटुम्ब के साथ दीर्घायुषी और ऐश्वर्यवान् होता है। ग्रह-दोषों का अनिष्ट फल, कारण और क्षुद्र तत्वों की पीड़ा आदि नष्ट होकर भाग्योदय होता है। १४॰ “रोगानशेषानपहंसि तुष्टा, रुष्टा तु कामान् सकलानभीष्टान्। त्वामाश्रितानां न विपन्नराणाम्, त्वामाश्रिता ह्याश्रयतां प्रयान्ति।। क्षुत्-पिपासामला ज्येष्ठा, अलक्ष्मीर्नाशयाम्यहं। अभूतिमसमृद्धिं च, सर्वान् निर्णुद मे गृहात्। रोगानशेषानपहंसि तुष्टा, रुष्टा तु कामान् सकलानभीष्टान्। त्वामाश्रितानां न विपन्नराणाम्, त्वामाश्रिता ह्याश्रयतां प्रयान्ति।।” उक्त मन्त्र का १००० जप रात्रि में करे। २०००० जप होने पर दशांश होम-काले तिल, सुपाड़ी, राई से करे। दशांश तर्पण, मार्जन आदि करे। शत्रु के विनाश के लिए, रोगों की शान्ति के लिए और विपत्तियों के निवारण के लिए यह उत्तम प्रयोग है। शत्रु-नाश के लिए रीठे के बीज की माला से काले ऊन के आसन पर वीरासन-मुद्रा से बैठकर क्रोध-मुद्रा में जप करे। १५॰ “ॐ सौः ॐ हंसः। गन्ध-द्वारां दुराधर्षां, नित्य-पुष्टां करीषिणीम्। ईश्वरीं सर्व-भूतानां, तामिहोपह्वये श्रियम्। ॐ सौः ॐ हंसः।।” उक्त मन्त्र का एक लाख साठ हजार जप करे। कमल-गट्टे की माला से कमल के आसन पर या कौशेय वस्त्र के आसन पर बैठकर जप करे। ‘स्थण्डिल′ पर केसर, कस्तुरी, चन्दन, कपूर आदि सुगन्धित द्रव्य रखकर श्रीलक्ष्मी देवी की मूर्ति की पूजा करे। जप पूर्ण होने पर खीर, कमल-पुष्प और तील से दशांश होम कर तर्पण, मार्जन आदि करे। इस प्रयोग से धन-धान्य, समृद्धि, सोना-चाँदी, रत्न आदि मिलते हैं और सम्पन्न महानुभावों से बड़ा मान मिलता है। १६॰ “ॐ हंसः ॐ आं। मनसः काममाकूतिं, वाचः सत्यमशीमहि। पशूनां रुपममन्नस्य, मयि श्रीः श्रयतां यशः। ॐ हंसः ॐ आं।।” उक्त मन्त्र ८ लाख जपे। ‘ऐं-लं-वं-श्रीं’- को मन्त्र के साथ जोड़कर न्यास करे। यथा- कर-न्यासः- ऐं-लं-वं-श्रीं मनसः अंगुष्ठाभ्यां नमः। ऐं-लं-वं-श्रीं काममाकूतिं तर्जनीभ्यां स्वाहा। ऐं-लं-वं-श्रीं वाचः सत्यमशीमहि मध्यमाभ्यां वषट्। ऐं-लं-वं-श्रीं पशूनां अनामिकाभ्यां हुं। ऐं-लं-वं-श्रीं रुपममन्नस्य मयि कनिष्ठिकाभ्यां वौषट्। ऐं-लं-वं-श्रीं श्रीः श्रयतां यशः करतल-कर-पृष्ठाभ्यां फट्। अंग-न्यासः- ऐं-लं-वं-श्रीं मनसः हृदयाय नमः। ऐं-लं-वं-श्रीं काममाकूतिं शिरसे स्वाहा। ऐं-लं-वं-श्रीं वाचः सत्यमशीमहि शिखायै वषट्। ऐं-लं-वं-श्रीं पशूनां कवचाय हुं। ऐं-लं-वं-श्रीं रुपममन्नस्य मयि नेत्र-त्रयाय वौषट्। ऐं-लं-वं-श्रीं श्रीः श्रयतां यशः अस्त्राय फट्। ध्यानः- तां ध्यायेत् सत्य-संकल्पां, लक्ष्मीं क्षीरोदन-प्रियाम्। ख्यातां सर्वेषु भूतेषु, तत्तद् ज्ञान-बल-प्रदाम्।। उक्त धऽयतान करे। बिल्व फल, बिल्व-काष्ठ, पलाश की समिधा, घृत, तिल, शक्कर आदि से दशांश हवन कर तर्पण, मार्जन आदि करे। इस प्रयोग से इच्छित वस्तु प्राप्त होती है और धन-धान्य, समृद्धि, वैभव-विलास बढ़ते हैं। १७॰ “ॐ आं ॐ ह्रीं। कर्दमेन प्रजा-भूता, मयि सम्भ्रम-कर्दम। श्रियं वासय मे कुले, मातरं पद्म-मालिनीम्।। ॐ आं ॐ ह्रीं।” उक्त मन्त्र का ३२ लाख जप करे। मन्त्र के साथ ‘वं श्रीं’ बीज जोड़कर न्यास करे। “स-वत्सा गौरिव प्रीता, कर्दमेन यथेन्दिरा। कल्याणी मद्-गृहे नित्यं, निवसेत् पद्म-मालिनी।।” उक्त ध्यान करे। जीवित बछड़ेवाली गाय का और पुत्रवती, सौभाग्यवती स्त्रियों का पूजन करे। गो-शाला में बैठकर कमल-गट्टे की माला से जप करे। प्रतिदिन छोटे बच्चों को दूध पिलाए। जप पूर्ण होने पर दशांश होम, मार्जन, ब्रह्म-भोजन आदि करे। इस प्रयोग से वन्ध्या स्त्री को भाग्य-शाली पुत्र होता है। वंश-वृद्धि होती है। होम शिव-लिंगी के बीज, खीर, श्वेत तिल, दूर्वा, घी से करे। तर्पण व मार्जन दूध से करे। १८॰ “ॐ क्रौं ॐ क्लीं। आर्द्रां पुष्करिणीं पुष्टिं पिंगलाङ पद्म-मालिनीम्। चन्द्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं, जातवेदो म आवहम्।। ॐ क्रौं ॐ क्लीं” उक्त मन्त्र प्रतिदिन ३००० जप करे। शुक्ल-पक्ष की पञ्चमी से प्रारम्भ कर पूर्णिमा तक जप करे। फिर दूसरे मास मं शुक्ल पञ्चमी से पूर्णिमा तक जप करे। सम्भव हो, तो चन्द्र-मण्डल के सामने दृष्टि स्थिर रखकर जप करे। अथवा चन्द्रमा का प्रकाश अपने शरीर पर पड़ सके इस प्रकार बैठकर जप करे। रुद्राक्ष, कमल-गट्टे की माला से कौशेय वस्त्र या कमल-पुष्प-गर्भित आसन पर बैठकर जप करे। प्रयोग सोलह मास का है। ध्यान इस प्रकार करे- “तां स्मरेदभिषेकार्द्रां, पुष्टिदां पुष्टि-रुपिणिम्। मैत्यादि-वृत्तिभिश्चार्द्रां, विराजत्-करुणा श्रियम्।। दयार्द्रां वेत्र-हस्तां च, व्रत-दण्ड-स्वरुपिणिम्। पिंगलाभां प्रसन्नास्यां पद्म-माला-धरां तथा।। चन्द्रास्यां चन्द्र-रुपां च, चन्द्रां चन्द्रधरां तथा। हिरन्मयीं महा-लक्ष्मीमृचभेतां जपेन्निशि।। मन्त्र के अक्षर से विनियोग, ऋष्यादि-न्यास कर चन्द्र-मण्डल में भगवती का उक्त ध्यान कर सोलह मास का प्रयोग करना हो, तो शुक्ल पञ्चमी से प्रारम्भ करे। होम खीर, समिधा, कमल पुष्प, सफेद तिल, घृत, शहद आदि से करे। दशांश तर्पण, मार्जन आदि करे। इस प्रयोग से वचन-सिद्धि, प्रतिष्ठा, वैभव की प्राप्ति होती है। १९॰ “ॐ क्लीं ॐ। श्रीं आर्द्रां यः करिणीं यष्टि-सुवर्णां हेम-मालिनीम्। सूर्यां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो न आवह।। ॐ क्लीं ॐ” उक्त मन्त्र के अनुष्ठान में तीन लाख साठ हजार जप करना होता है। तालाब के किनारे अथवा कमल पुष्पों के आसन पर बैठकर, कमल-गट्टे या स्वर्ण की माला में प्रति-दिन तीन हजार जप है। १२० दिन में प्रयोग पूर्ण होगा। खीर, कमल-पुष्प या घी आदि से दशांश होम करे। १०० सुवासिनी स्त्रियों को भोजन कराए और वस्त्र-भूषण, दक्षिणा दे। ध्यान निम्न प्रकार करे- तां स्मरेदभिषेकार्द्रां, पुष्टिदां पुष्टि-रुपिणीं। रुक्माभां स्वप्न-धी-गम्यां, सुवर्णां स्वर्ण-मालिनी।। सूर्यामैश्वर्य-रुपां च, सावित्रीं सूर्य-रुपिणीम्। आत्म-संज्ञां च चिद्रुपां, ज्ञान-दृष्टि-स्वरुपिणीं। चक्षुः-प्राशदां चैव, हिरण्य-प्रचुरां तथा। स्वर्णात्मनाऽऽविर्भूतां च, जातवेदो म आवह।। इस प्रयोग से ग्रहों की पीड़ा, ग्रह-बाधा-निवृत्ति होकर भाग्य का उदय होता है। अपना और अपने कुटुम्बियों के शरीर नीरोगी, दीर्घायुषी और प्रभावशाली होते हैं। जिससे मिलने की इच्छा हो, वह मनुष्य आ मिलता है। २०॰ “ॐ श्रीं ॐ हूं। तां म आवह जातवेदो, लक्ष्मीमनपगामिनीम्। यस्यां हिरण्यं प्रभूतं गावो, दास्योऽश्वान् विन्देयं पुरुषानहं।। ॐ श्रीं ॐ हूं” ‘ॐ अस्य श्री-पञ्च-दश-मन्त्र ऋचः कुबेरो ऋषिः, भूत-धात्री लक्ष्मी देवता, प्रस्तार-पंक्तिश्छन्दः, ह्रीं श्रीं ह्रीं इति बीजानि, ममाभीष्ट-फल-प्राप्त्यर्थे जपे विनियोगः।’ इस प्रकार विनियोग कर ऋष्यादि-न्यास करे। ‘ह्रीं श्रीं ह्रीं’ यर बीज लगाकर अंग-न्यास तथा हृदयादि-न्यास करे। ध्यान इस प्रकार करें- ध्याये लक्ष्मीं प्रहसित-मुखीं राज-सिंहासनस्थां। मुद्रा-शक्ति-सकल-विनुतां सर्व-संसेव्यनाम्। अग्नौ पूज्यामखिल-जननीं हेम-वर्णां हिरण्यां। भाग्योपेतां भुवन-सुखदां भार्गवीं भुत-धात्रीम्।। ज्वारी अथवा गेहूँ की राशि के ऊपर रतेशमी आसन बिछाकर, कमल-बीज की माला से नित्य तीन हजार जप करे। कुल सवा लाख जप करे। जप पूर्ण होने पर दूर्वा, खीर, मधु, घृत आदि से दशांश होम, तर्पण, मार्जन आदि करे। इस प्रयोग से लक्ष्मी स्थिर रहती है। 2… !! भजन !! इतना तो करना स्वामी, जब प्राण तन से निकले (२) गोविन्द नाम लेके, तब प्राण तन से निकले, श्री गंगाजी का तट हो, जमुना का वंशीवट हो, मेरा सावला निकट हो, जब प्राण तन से निकले पीताम्बरी कसी हो, छबी मान में यह बसी हो, होठो पे कुछ हसी हो, जब प्राण तन से निकले जब कंठ प्राण आये, कोई रोग ना सताये (२) यम् दरश ना दिखाए, जब प्राण तन से निकले उस वक्त जल्दी आना, नहीं श्याम भूल जाना,(२) राधे को साथ लाना, जब प्राण तन से निकले, एक भक्त की है अर्जी, खुद गरज की है गरजी आगे तुम्हारी मर्जी जब प्राण तन से निकले 3… काले तिल के प्रयोग चमका सकते हैं आपकी किस्मत, 1. प्रतिदिन शिवजी का विधि-विधान से पूजन करें। यदि विधिवत पूजन करने में असमर्थ हैं तो प्रतिदिन एक लौटे में शुद्ध जल भरें और उसमें थोड़े काले तिल डाल दें। अब इस जल को शिवलिंग पर ऊँ नम: शिवाय मंत्र जप के साथ चढ़ाएं। ध्यान रहे जल पतली धार से चढ़ाएं और मंत्र का जप करते रहें। इसके साथ ही महामृत्युंजय मंत्र का जप बेहद फायदेमंद रहता है। ऐसा प्रतिदिन करें। ब्रह्ममुहूर्त में उठकर नित्यकर्म से निवृत्त होकर पवित्र हो जाएं फिर किसी भी सिद्ध शिव मंदिर में जाएं। जल चढ़ाने के साथ पुष्प और बिल्व पत्र भी अवश्य चढ़ाएं। इस उपाय को अपनाने से कुछ ही दिनों में चमत्कारिक फल की प्राप्ति होने लगेगी। 2. यदि शनि की साढ़ेसाती या ढय्या का समय चल रहा हो तो किसी पवित्र नदी में प्रति शनिवार काले तिल प्रवाहित करना चाहिए। इससे शनि के दोषों की शांति होती है। 3. शिवलिंग पर काले तिल चढ़ाने चाहिए। इससे शनि के दोष शांत होते हैं। 4. काले तिल का दान करने से भी राहु-केतु और शनि संबंधी कई अशुभ योगों के बुरे प्रभाव समाप्त हो जाते हैं। 5. हर शनिवार को काले तिल, काली उड़द को काले कपड़े में बांधकर किसी गरीब व्यक्ति को दान करने से पैसों से जुड़ी समस्याएं समाप्त होने लगती हैं। 6. पीपल के पेड़ पर दूध में काले तिल मिलाकर चढ़ाने से भाग्यहीन व्यक्ति भी भाग्यशाली बन सकता है। ऐसा प्रतिदिन करना चाहिए। 4.. ॐ ऐंहींश्रीं प्रसीद परदेवते मम हृदि प्रभूतं भयं विदारये दर्रिद्रताम दलय देहि सर्वग्यताम् निधेहि करुणानिधे चरण पद्म युग्मं स्वकं निवाराये जरामृति त्रिपुरसुंदरी श्रीशिवे श्रींहींऐं ॐ भगवत्यै श्रीमद राजराजेश्वरयै त्रिपुरसुन्दरयै नमः श्रीविद्यायै नमः

बंधी दूकान कैसे खोलें

1..
बंधी दूकान कैसे खोलें ?
कभी-कभी देखने में आता है कि खूब चलती हुई दूकान भी एकदम से ठप्प हो जाती है । जहाँ पर ग्राहकों की भीड़ उमड़ती थी, वहाँ सन्नाटा पसरने लगता है । यदि किसी चलती हुई दुकान को कोई तांत्रिक बाँध दे, तो ऐसी स्थिति उत्पन्न होती है, अतः इससे बचने के लिए निम्नलिखित प्रयोग करने चाहिए -
१॰ दुकान में लोबान की धूप लगानी चाहिए ।
२॰ शनिवार के दिन दुकान के मुख्य द्वार पर बेदाग नींबू एवं सात हरी मिर्चें लटकानी चाहिए ।
३॰ नागदमन के पौधे की जड़ लाकर इसे दुकान के बाहर लगा देना चाहिए । इससे बँधी हुई दुकान खुल जाती है ।
४॰ दुकान के गल्ले में शुभ-मुहूर्त में श्री-फल लाल वस्त्र में लपेटकर रख देना चाहिए ।
५॰ प्रतिदिन संध्या के समय दुकान में माता लक्ष्मी के सामने शुद्ध घी का दीपक प्रज्वलित करना चाहिए ।
६॰ दुकान अथवा व्यावसायिक प्रतिष्ठान की दीवार पर शूकर-दंत इस प्रकार लगाना चाहिए कि वह दिखाई देता रहे ।
७॰ व्यापारिक प्रतिष्ठान तथा दुकान को नजर से बचाने के लिए काले-घोड़े की नाल को मुख्य द्वार की चौखट के ऊपर ठोकना चाहिए ।
८॰ दुकान में मोरपंख की झाडू लेकर निम्नलिखित मंत्र के द्वारा सभी दिशाओं में झाड़ू को घुमाकर वस्तुओं को साफ करना चाहिए । मंत्रः- ॐ ह्रीं ह्रीं क्रीं
९॰ शुक्रवार के दिन माता लक्ष्मी के सम्मुख मोगरे अथवा चमेली के पुष्प अर्पित करने चाहिए ।
१०॰ यदि आपके व्यावसायिक प्रतिष्ठान में चूहे आदि जानवरों के बिल हों, तो उन्हें बंद करवाकर बुधवार के दिन गणपति को प्रसाद चढ़ाना चाहिए ।
११॰ सोमवार के दिन अशोक वृक्ष के अखंडित पत्ते लाकर स्वच्छ जल से धोकर दुकान अथवा व्यापारिक प्रतिष्ठान के मुख्य द्वार पर टांगना चाहिए । सूती धागे को पीसी हल्दी में रंगकर उसमें अशोक के पत्तों को बाँधकर लटकाना चाहिए ।
१२॰ यदि आपको यह शंका हो कि किसी व्यक्ति ने आपके व्यवसाय को बाँध दिया है या उसकी नजर आपकी दुकान को लग गई है, तो उस व्यक्ति का नाम काली स्याही से भोज-पत्र पर लिखकर पीपल वृक्ष के पास भूमि खोदकर दबा देना चाहिए तथा इस प्रयोग को करते समय किसी अन्य व्यक्ति को नहीं बताना चाहिए । यदि पीपल वृक्ष निर्जन स्थान में हो, तो अधिक अनुकूलता रहेगी ।
१३॰ कच्चा सूत लेकर उसे शुद्ध केसर में रंगकर अपनी दुकान पर बाँध देना चाहिए ।
१४॰ हुदहुद पक्षी की कलंगी रविवार के दिन प्रातःकाल दुकान पर लाकर रखने से व्यवसाय को लगी नजर समाप्त होती है और व्यवसाय में उत्तरोत्तर वृद्धि होती है ।
१५॰ कभी अचानक ही व्यवसाय में स्थिरता आ गई हो, तो निम्नलिखित मंत्र का प्रतिदिन ग्यारह माला जप करने से व्यवसाय में अपेक्षा के अनुरुप वृद्धि होती है । मंत्रः- ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं नमो भगवती माहेश्वरी अन्नपूर्णा स्वाहा ।
१६॰ यदि कोई शत्रु आपसी जलन या द्वेष, व्यापारिक प्रतिस्पर्धा के कारण आप पर तंत्र-मंत्र का कोई प्रयोग करके आपके व्यवसाय में बाधा डाल रहा हो, तो ईसे में नीचे लिखे सरल शाबर मंत्र का प्रयोग करके आप अपनी तथा अपने व्यवसाय की रक्षा कर सकते हैं । सर्वप्रथम इस मंत्र की दस माला जपकर हवन करें । मंत्र सिद्ध हो जाने पर रविवार या मंगलवार की रात इसका प्रयोग करें ।
मंत्रः- उलटत वेद पलटत काया, जाओ बच्चा तुम्हें गुरु ने बुलाया, सत नाम आदेश गुरु का ।
रविवार या मंगलवार की रात को 11 बजे के बाद घर से निकलकर चौराहे की ओर जाएँ, अपने साथ थोड़ी-सी शराब लेते जाएँ । मार्ग में सात कंकड़ उठाते जाएँ । चौराहे पर पहुँचकर एक कंकड़ पूर्व दिशा की ओर फेंकते हुए उपर्युक्त मंत्र पढ़ें, फिर एक दक्षिण, फिर क्रमशः पश्चिम, उत्तर, ऊपर, नीचे तथा सातवीं कंकड़ चौराहे के बीच रखकर उस शराब चढ़ा दें । यह सब करते समय निरन्तर उक्त मन्त्र का उच्चारण करते रहें । फिर पीछे पलट कर सीधे बिना किसी से बोले और बिना पीछे मुड़कर देखे अपने घर वापस आ जाएँ ।
घर पर पहले से द्वार के बाहर पानी रखे रहें । उसी पानी से हाथ-पैर धोकर कुछ जल अपने ऊपर छिड़क कर, तब अन्दर जाएँ । एक बात का अवश्य ध्यान रखें कि आते-जाते समय आपके घर का कोई सदस्य आपके सामने न पड़े और चौराहे से लौटते समय यदि आपको कोई बुलाए या कोई आवाज सुनाई दे, तब भी मुड़कर न देखें ।
१७॰ यदि आपके लाख प्रयत्नों के उपरान्त भी आपके सामान की बिक्री निरन्तर घटती जा रही हो, तो बिक्री में वृद्धि हेतु किसी भी मास के शुक्ल पक्ष के गुरुवार के दिन से निम्नलिखित क्रिया प्रारम्भ करनी चाहिए -
व्यापार स्थल अथवा दुकान के मुख्य द्वार के एक कोने को गंगाजल से धोकर स्वच्छ कर लें । इसके उपरान्त हल्दी से स्वस्तिक बनाकर उस पर चने की दाल और गुड़ थोड़ी मात्रा में रख दें । इसके बाद आप उस स्वस्तिक को बार-बार नहीं देखें । इस प्रकार प्रत्येक गुरुवार को यह क्रिया सम्पन्न करने से बिक्री में अवश्य ही वृद्धि होती है । इस प्रक्रिया को कम-से-कम 11 गुरुवार तक अवश्य करें ।

mantra.2.

1.
दश महाविद्या शाबर मन्त्र
सत नमो आदेश गुरुजी को आदेश गुरुजी सोऽहं सिद्ध की काया, तीसरा नेत्र त्रिकुटी ठहराया गगण मण्डल में अनहद बाजा वहाँ देखा शिवजी बैठा, गुरु हुकम से भितरी बैठा, शुन्य में ध्यान गोरख दिठा यही ध्यान तपे महेशा, यही ध्यान ब्रह्माजी लाग्या यही ध्यान विष्णु की माया ! कैलाश गिरी से, आयी पार्वती देवी, जाकै सन्मुख बैठ गोरक्ष योगी, देवी ने जब किया आदेश नहीं लिया आदेश, नहीं दिया उपदेश सती मन में क्रोध समाई, देखु गोरख अपने माही, नौ दरवाजे खुले कपाट, दशवे द्वारे अग्नि प्रजाले, जलने लगी तो पार पछताई राखी राखी गोरख राखी, मैं हूँ तेरी चेली, संसार सृष्टि की हूँ मैं माई कहो शिवशंकर स्वामीजी, गोरख योगी कौन है दिठा यह तो योगी सबमें विरला, तिसका कौन विचार हम नहीं जानत, अपनी करणी आप ही जानी गोरख देखे सत्य की दृष्टि दृष्टि देख कर मन भया उनमन, तब गोरख कली बिच कहाया हम तो योगी गुरुमुख बोली, सिद्धों का मर्म जाने कोई कहो पार्वती देवीजी अपनी शक्ति कौन-कौन समाई तब सती ने शक्ति की खेल दिखायी, दस महाविद्या की प्रगटली ज्योति
प्रथम ज्योति महाकाली प्रगटली
।। महाकाली ।।
निरंजन निराकार अवगत पुरुष तत सार, तत सार मध्ये ज्योत, ज्योत मध्ये परम ज्योत, परम ज्योत मध्ये उत्पन्न भई माता शम्भु शिवानी काली काली काली महाकाली, कृष्ण वर्णी, शव वहानी, रुद्र की पोषणी, हाथ खप्पर खडग धारी, गले मुण्डमाला हंस मुखी जिह्वा ज्वाला दन्त काली मद्यमांस कारी श्मशान की राणी मांस खाये रक्त-पी-पीवे भस्मन्ति माई जहाँ पर पाई तहाँ लगाई सत की नाती धर्म की बेटी इन्द्र की साली काल की काली जोग की जोगीन, नागों की नागीन मन माने तो संग रमाई नहीं तो श्मशान फिरे अकेली चार वीर अष्ट भैरों, घोर काली अघोर काली अजर बजर अमर काली भख जून निर्भय काली बला भख, दुष्ट को भख, काल भख पापी पाखण्डी को भख जती सती को रख, काली तुम बाला ना वृद्धा, देव ना दानव, नर ना नारी देवीजी तुम तो हो परब्रह्मा काली
क्रीं क्रीं क्रीं हूं हूं ह्रीं ह्रीं दक्षिणे कालिके क्रीं क्रीं हूं हूं ह्रीं ह्रीं स्वाहा
द्वितीय ज्योति तारा त्रिकुटा तोतला प्रगटी
।। तारा ।।
आदि योग अनादि माया जहाँ पर ब्रह्माण्ड उत्पन्न भया ब्रह्माण्ड समाया आकाश मण्डल तारा त्रिकुटा तोतला माता तीनों बसै ब्रह्म कापलि, जहाँ पर ब्रह्मा विष्णु महेश उत्पत्ति, सूरज मुख तपे चंद मुख अमिरस पीवे, अग्नि मुख जले, आद कुंवारी हाथ खण्डाग गल मुण्ड माल, मुर्दा मार ऊपर खड़ी देवी तारा नीली काया पीली जटा, काली दन्त में जिह्वा दबाया घोर तारा अघोर तारा, दूध पूत का भण्डार भरा पंच मुख करे हां हां ऽऽकारा, डाकिनी शाकिनी भूत पलिता सौ सौ कोस दूर भगाया चण्डी तारा फिरे ब्रह्माण्डी तुम तो हों तीन लोक की जननी
ह्रीं स्त्रीं फट्, ऐं ह्रीं स्त्रीं हूँ फट्
तृतीय ज्योति त्रिपुर सुन्दरी प्रगटी
।। षोडशी-त्रिपुर सुन्दरी ।।
निरञ्जन निराकार अवधू मूल द्वार में बन्ध लगाई पवन पलटे गगन समाई, ज्योति मध्ये ज्योत ले स्थिर हो भई मध्याः उत्पन्न भई उग्र त्रिपुरा सुन्दरी शक्ति आवो शिवधर बैठो, मन उनमन, बुध सिद्ध चित्त में भया नाद तीनों एक त्रिपुर सुन्दरी भया प्रकाश हाथ चाप शर धर एक हाथ अंकुश त्रिनेत्रा अभय मुद्रा योग भोग की मोक्षदायिनी इडा पिंगला सुषम्ना देवी नागन जोगन त्रिपुर सुन्दरी उग्र बाला, रुद्र बाला तीनों ब्रह्मपुरी में भया उजियाला योगी के घर जोगन बाला, ब्रह्मा विष्णु शिव की माता
श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं सौः ह्रीं श्रीं कएईलह्रीं
हसकहल ह्रीं सकल ह्रीं सोः
ऐं क्लीं ह्रीं श्रीं
चतुर्थ ज्योति भुवनेश्वरी प्रगटी ‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍
।। भुवनेश्वरी ।।
आदि ज्योति अनादि ज्योत ज्योत मध्ये परम ज्योत परम ज्योति मध्ये शिव गायत्री भई उत्पन्न, प्रातः समय उत्पन्न भई देवी भुवनेश्वरी बाला सुन्दरी कर धर वर पाशांकुश अन्नपूर्णी दूध पूत बल दे बालका ऋद्धि सिद्धि भण्डार भरे, बालकाना बल दे जोगी को अमर काया चौदह भुवन का राजपाट संभाला कटे रोग योगी का, दुष्ट को मुष्ट, काल कन्टक मार योगी बनखण्ड वासा, सदा संग रहे भुवनेश्वरी माता
ह्रीं
पञ्चम ज्योति छिन्नमस्ता प्रगटी
।। छिन्नमस्ता ।।
सत का धर्म सत की काया, ब्रह्म अग्नि में योग जमाया काया तपाये जोगी (शिव गोरख) बैठा, नाभ कमल पर छिन्नमस्ता, चन्द सूर में उपजी सुष्मनी देवी, त्रिकुटी महल में फिरे बाला सुन्दरी, तन का मुन्डा हाथ में लिन्हा, दाहिने हाथ में खप्पर धार्या पी पी पीवे रक्त, बरसे त्रिकुट मस्तक पर अग्नि प्रजाली, श्वेत वर्णी मुक्त केशा कैची धारी देवी उमा की शक्ति छाया, प्रलयी खाये सृष्टि सारी चण्डी, चण्डी फिरे ब्रह्माण्डी भख भख बाला भख दुष्ट को मुष्ट जती, सती को रख, योगी घर जोगन बैठी, श्री शम्भुजती गुरु गोरखनाथजी ने भाखी छिन्नमस्ता जपो जाप, पाप कन्टन्ते आपो आप, जो जोगी करे सुमिरण पाप पुण्य से न्यारा रहे काल ना खाये
श्रीं क्लीं ह्रीं ऐं वज्र-वैरोचनीये हूं हूं फट् स्वाहा
षष्टम ज्योति भैरवी प्रगटी
।। भैरवी ।।
सती भैरवी भैरो काल यम जाने यम भूपाल तीन नेत्र तारा त्रिकुटा, गले में माला मुण्डन की अभय मुद्रा पीये रुधिर नाशवन्ती ! काला खप्पर हाथ खंजर, कालापीर धर्म धूप खेवन्ते वासना गई सातवें पाताल, सातवें पाताल मध्ये परम-तत्त्व परम-तत्त्व में जोत, जोत में परम जोत, परम जोत में भई उत्पन्न काल-भैरवी, त्रिपुर-भैरवी, सम्पत्त-प्रदा-भैरवी, कौलेश-भैरवी, सिद्धा-भैरवी, विध्वंसिनि-भैरवी, चैतन्य-भैरवी, कामेश्वरी-भैरवी, षटकुटा-भैरवी, नित्या-भैरवी जपा अजपा गोरक्ष जपन्ती यही मन्त्र मत्स्येन्द्रनाथजी को सदा शिव ने कहायी ऋद्ध फूरो सिद्ध फूरो सत श्रीशम्भुजती गुरु गोरखनाथजी अनन्त कोट सिद्धा ले उतरेगी काल के पार, भैरवी भैरवी खड़ी जिन शीश पर, दूर हटे काल जंजाल भैरवी मन्त्र बैकुण्ठ वासा अमर लोक में हुवा निवासा
ह्सैं ह्स्क्ल्रीं ह्स्त्रौः
सप्तम ज्योति धूमावती प्रगटी
।। धूमावती ।।
पाताल निरंजन निराकार, आकाश मण्डल धुन्धुकार, आकाश दिशा से कौन आये, कौन रथ कौन असवार, आकाश दिशा से धूमावन्ती आई, काक ध्वजा का रथ अस्वार आई थरै आकाश, विधवा रुप लम्बे हाथ, लम्बी नाक कुटिल नेत्र दुष्टा स्वभाव, डमरु बाजे भद्रकाली, क्लेश कलह कालरात्रि डंका डंकनी काल किट किटा हास्य करी जीव रक्षन्ते जीव भक्षन्ते जाजा जीया आकाश तेरा होये धूमावन्तीपुरी में वास, होती देवी देव तहा होती पूजा पाती तहा होती जात जाती तब आये श्रीशम्भुजती गुरु गोरखनाथ आप भयी अतीत
धूं धूं धूमावती स्वाहा
अष्टम ज्योति बगलामुखी प्रगटी
।। बगलामुखी ।।
सौ सौ दुता समुन्दर टापू, टापू में थापा सिंहासन पिला संहासन पीले ऊपर कौन बसे सिंहासन पीला ऊपर बगलामुखी बसे, बगलामुखी के कौन संगी कौन साथी कच्ची बच्ची काक-कूतिया-स्वान-चिड़िया, बगला बाला हाथ मुद्-गर मार, शत्रु हृदय पर सवार तिसकी जिह्वा खिच्चै बाला बगलामुखी मरणी करणी उच्चाटण धरणी, अनन्त कोट सिद्धों ने मानी बगलामुखी रमे ब्रह्माण्डी मण्डे चन्दसुर फिरे खण्डे खण्डे बाला बगलामुखी नमो नमस्कार
ह्लीं ब्रह्मास्त्राय विद्महे स्तम्भन-बाणाय धीमहि तन्नो बगला प्रचोदयात्
नवम ज्योति मातंगी प्रगटी
।। मातंगी ।।
शून्य शून्य महाशून्य, महाशून्य में -कार, -कार में शक्ति, शक्ति अपन्ते उहज आपो आपना, सुभय में धाम कमल में विश्राम, आसन बैठी, सिंहासन बैठी पूजा पूजो मातंगी बाला, शीश पर अस्वारी उग्र उन्मत्त मुद्राधारी, उद गुग्गल पाण सुपारी, खीरे खाण्डे मद्य-मांसे घृत-कुण्डे सर्वांगधारी बुन्द मात्रेन कडवा प्याला, मातंगी माता तृप्यन्ते मातंगी-सुन्दरी, रुपवन्ती, कामदेवी, धनवन्ती, धनदाती, अन्नपूर्णी अन्नदाती, मातंगी जाप मन्त्र जपे काल का तुम काल को खाये तिसकी रक्षा शम्भुजती गुरु गोरखनाथजी करे
ह्रीं क्लीं हूं मातंग्यै फट् स्वाहा
दसवीं ज्योति कमला प्रगटी
।। कमला ।।
-योनी शंकर -कार रुप, कमला देवी सती पार्वती का स्वरुप हाथ में सोने का कलश, मुख से अभय मुद्रा श्वेत वर्ण सेवा पूजा करे, नारद इन्द्रा देवी देवत्या ने किया जय -कार कमला देवी पूजो केशर पान सुपारी, चकमक चीनी फतरी तिल गुग्गल सहस्र कमलों का किया हवन कहे गोरख, मन्त्र जपो जाप जपो ऋद्धि सिद्धि की पहचान गंगा गौरजा पार्वती जान जिसकी तीन लोक में भया मान कमला देवी के चरण कमल को आदेश
श्रीं ह्रीं क्लीं श्रीं सिद्ध-लक्ष्म्यै नमः

सुनो पार्वती हम मत्स्येन्द्र पूता, आदिनाथ नाती, हम शिव स्वरुप उलटी थापना थापी योगी का योग, दस विद्या शक्ति जानो, जिसका भेद शिव शंकर ही पायो सिद्ध योग मर्म जो जाने विरला तिसको प्रसन्न भयी महाकालिका योगी योग नित्य करे प्रातः उसे वरद भुवनेश्वरी माता सिद्धासन सिद्ध, भया श्मशानी तिसके संग बैठी बगलामुखी जोगी खड दर्शन को कर जानी, खुल गया ताला ब्रह्माण्ड भैरवी नाभी स्थाने उडीय्यान बांधी मनीपुर चक्र में बैठी, छिन्नमस्ता रानी -कार ध्यान लाग्या त्रिकुटी, प्रगटी तारा बाला सुन्दरी पाताल जोगन (कुण्डलिनी) गगन को चढ़ी, जहां पर बैठी त्रिपुर सुन्दरी आलस मोड़े, निद्रा तोड़े तिसकी रक्षा देवी धूमावन्ती करें हंसा जाये दसवें द्वारे देवी मातंगी का आवागमन खोजे जो कमला देवी की धूनी चेताये तिसकी ऋद्धि सिद्धि से भण्डार भरे जो दसविद्या का सुमिरण करे पाप पुण्य से न्यारा रहे योग अभ्यास से भये सिद्धा आवागमन निवरते मन्त्र पढ़े सो नर अमर लोक में जाये इतना दस महाविद्या मन्त्र जाप सम्पूर्ण भया अनन्त कोट सिद्धों में, गोदावरी त्र्यम्बक क्षेत्र अनुपान शिला, अचलगढ़ पर्वत पर बैठ श्रीशम्भुजती गुरु गोरखनाथजी ने पढ़ कथ कर सुनाया श्रीनाथजी गुरुजी को आदेश आदेश ।।.

दुर्गा सप्तशती पाठ विधि

  दुर्गा सप्तशती दुर्गा सप्तशती पाठ विधि पूजनकर्ता स्नान करके, आसन शुद्धि की क्रिया सम्पन्न करके, शुद्ध आसन पर बैठ जाएँ। माथे पर अपनी पसंद क...