1.
सुनो पार्वती हम मत्स्येन्द्र पूता, आदिनाथ नाती, हम शिव स्वरुप उलटी थापना थापी योगी का योग, दस विद्या शक्ति जानो, जिसका भेद शिव शंकर ही पायो । सिद्ध योग मर्म जो जाने विरला तिसको प्रसन्न भयी महाकालिका । योगी योग नित्य करे प्रातः उसे वरद भुवनेश्वरी माता । सिद्धासन सिद्ध, भया श्मशानी तिसके संग बैठी बगलामुखी । जोगी खड दर्शन को कर जानी, खुल गया ताला ब्रह्माण्ड भैरवी । नाभी स्थाने उडीय्यान बांधी मनीपुर चक्र में बैठी, छिन्नमस्ता रानी । ॐ-कार ध्यान लाग्या त्रिकुटी, प्रगटी तारा बाला सुन्दरी । पाताल जोगन (कुण्डलिनी) गगन को चढ़ी, जहां पर बैठी त्रिपुर सुन्दरी । आलस मोड़े, निद्रा तोड़े तिसकी रक्षा देवी धूमावन्ती करें । हंसा जाये दसवें द्वारे देवी मातंगी का आवागमन खोजे । जो कमला देवी की धूनी चेताये तिसकी ऋद्धि सिद्धि से भण्डार भरे । जो दसविद्या का सुमिरण करे । पाप पुण्य से न्यारा रहे । योग अभ्यास से भये सिद्धा आवागमन निवरते । मन्त्र पढ़े सो नर अमर लोक में जाये । इतना दस महाविद्या मन्त्र जाप सम्पूर्ण भया । अनन्त कोट सिद्धों में, गोदावरी त्र्यम्बक क्षेत्र अनुपान शिला, अचलगढ़ पर्वत पर बैठ श्रीशम्भुजती गुरु गोरखनाथजी ने पढ़ कथ कर सुनाया श्रीनाथजी गुरुजी को आदेश । आदेश ।।.
दश
महाविद्या शाबर मन्त्र
सत
नमो आदेश ।
गुरुजी को आदेश
। ॐ गुरुजी ।
ॐ सोऽहं सिद्ध
की काया, तीसरा
नेत्र त्रिकुटी ठहराया
। गगण मण्डल
में अनहद बाजा
। वहाँ देखा
शिवजी बैठा, गुरु
हुकम से भितरी
बैठा, शुन्य में
ध्यान गोरख दिठा
। यही ध्यान
तपे महेशा, यही
ध्यान ब्रह्माजी लाग्या
। यही ध्यान
विष्णु की माया
! ॐ कैलाश गिरी
से,
आयी पार्वती देवी,
जाकै सन्मुख बैठ
गोरक्ष योगी, देवी
ने जब किया
आदेश । नहीं
लिया आदेश, नहीं
दिया उपदेश ।
सती मन में
क्रोध समाई, देखु
गोरख अपने माही,
नौ दरवाजे खुले
कपाट, दशवे द्वारे
अग्नि प्रजाले, जलने
लगी तो पार
पछताई । राखी
राखी गोरख राखी,
मैं हूँ तेरी
चेली, संसार सृष्टि
की हूँ मैं
माई । कहो
शिवशंकर स्वामीजी, गोरख
योगी कौन है
दिठा । यह
तो योगी सबमें
विरला, तिसका कौन
विचार । हम
नहीं जानत, अपनी
करणी आप ही
जानी । गोरख
देखे सत्य की
दृष्टि । दृष्टि
देख कर मन
भया उनमन, तब
गोरख कली बिच
कहाया । हम
तो योगी गुरुमुख
बोली, सिद्धों का
मर्म न जाने
कोई । कहो
पार्वती देवीजी अपनी
शक्ति कौन-कौन
समाई । तब
सती ने शक्ति
की खेल दिखायी,
दस महाविद्या की
प्रगटली ज्योति ।
प्रथम
ज्योति महाकाली प्रगटली
।
।।
महाकाली ।।
ॐ
निरंजन निराकार अवगत
पुरुष तत सार,
तत सार मध्ये
ज्योत, ज्योत मध्ये
परम ज्योत, परम
ज्योत मध्ये उत्पन्न
भई माता शम्भु
शिवानी काली ओ
काली काली महाकाली,
कृष्ण वर्णी, शव
वहानी, रुद्र की
पोषणी, हाथ खप्पर
खडग धारी, गले
मुण्डमाला हंस मुखी
। जिह्वा ज्वाला
दन्त काली ।
मद्यमांस कारी श्मशान
की राणी ।
मांस खाये रक्त-पी-पीवे
। भस्मन्ति माई
जहाँ पर पाई
तहाँ लगाई ।
सत की नाती
धर्म की बेटी
इन्द्र की साली
काल की काली
जोग की जोगीन,
नागों की नागीन
मन माने तो
संग रमाई नहीं
तो श्मशान फिरे
अकेली चार वीर
अष्ट भैरों, घोर
काली अघोर काली
अजर बजर अमर
काली भख जून
निर्भय काली बला
भख,
दुष्ट को भख, काल
भख पापी पाखण्डी
को भख जती
सती को रख, ॐ
काली तुम बाला
ना वृद्धा, देव
ना दानव, नर
ना नारी देवीजी
तुम तो हो
परब्रह्मा काली ।
क्रीं
क्रीं क्रीं हूं
हूं ह्रीं ह्रीं
दक्षिणे कालिके क्रीं
क्रीं हूं हूं
ह्रीं ह्रीं स्वाहा
।
द्वितीय
ज्योति तारा त्रिकुटा
तोतला प्रगटी ।
।।
तारा ।।
ॐ
आदि योग अनादि
माया जहाँ पर
ब्रह्माण्ड उत्पन्न भया
। ब्रह्माण्ड समाया
आकाश मण्डल तारा
त्रिकुटा तोतला माता
तीनों बसै ब्रह्म
कापलि, जहाँ पर
ब्रह्मा विष्णु महेश
उत्पत्ति, सूरज मुख
तपे चंद मुख
अमिरस पीवे, अग्नि
मुख जले, आद
कुंवारी हाथ खण्डाग
गल मुण्ड माल,
मुर्दा मार ऊपर
खड़ी देवी तारा
। नीली काया
पीली जटा, काली
दन्त में जिह्वा
दबाया । घोर
तारा अघोर तारा,
दूध पूत का
भण्डार भरा ।
पंच मुख करे
हां हां ऽऽकारा,
डाकिनी शाकिनी भूत
पलिता सौ सौ
कोस दूर भगाया
। चण्डी तारा
फिरे ब्रह्माण्डी तुम
तो हों तीन
लोक की जननी
।
ॐ
ह्रीं स्त्रीं फट्,
ॐ ऐं ह्रीं स्त्रीं
हूँ फट्
तृतीय
ज्योति त्रिपुर सुन्दरी
प्रगटी ।
।।
षोडशी-त्रिपुर सुन्दरी
।।
ॐ
निरञ्जन निराकार अवधू
मूल द्वार में
बन्ध लगाई पवन
पलटे गगन समाई,
ज्योति मध्ये ज्योत
ले स्थिर हो
भई ॐ मध्याः
उत्पन्न भई उग्र
त्रिपुरा सुन्दरी शक्ति
आवो शिवधर बैठो,
मन उनमन, बुध
सिद्ध चित्त में
भया नाद ।
तीनों एक त्रिपुर
सुन्दरी भया प्रकाश
। हाथ चाप
शर धर एक
हाथ अंकुश ।
त्रिनेत्रा अभय मुद्रा
योग भोग की
मोक्षदायिनी । इडा
पिंगला सुषम्ना देवी
नागन जोगन त्रिपुर
सुन्दरी । उग्र
बाला, रुद्र बाला
तीनों ब्रह्मपुरी में
भया उजियाला ।
योगी के घर
जोगन बाला, ब्रह्मा
विष्णु शिव की
माता ।
श्रीं
ह्रीं क्लीं ऐं
सौः ॐ ह्रीं
श्रीं कएईलह्रीं
हसकहल
ह्रीं सकल ह्रीं
सोः
ऐं
क्लीं ह्रीं श्रीं
।
चतुर्थ
ज्योति भुवनेश्वरी प्रगटी
।
।।
भुवनेश्वरी ।।
ॐ
आदि ज्योति अनादि
ज्योत ज्योत मध्ये
परम ज्योत परम
ज्योति मध्ये शिव
गायत्री भई उत्पन्न,
ॐ प्रातः समय
उत्पन्न भई देवी
भुवनेश्वरी । बाला
सुन्दरी कर धर
वर पाशांकुश अन्नपूर्णी
दूध पूत बल
दे बालका ऋद्धि
सिद्धि भण्डार भरे,
बालकाना बल दे
जोगी को अमर
काया । चौदह
भुवन का राजपाट
संभाला कटे रोग
योगी का, दुष्ट
को मुष्ट, काल
कन्टक मार ।
योगी बनखण्ड वासा,
सदा संग रहे
भुवनेश्वरी माता ।
ह्रीं
पञ्चम
ज्योति छिन्नमस्ता प्रगटी
।
।।
छिन्नमस्ता ।।
सत
का धर्म सत
की काया, ब्रह्म
अग्नि में योग
जमाया । काया
तपाये जोगी (शिव
गोरख) बैठा, नाभ
कमल पर छिन्नमस्ता,
चन्द सूर में
उपजी सुष्मनी देवी,
त्रिकुटी महल में
फिरे बाला सुन्दरी,
तन का मुन्डा
हाथ में लिन्हा,
दाहिने हाथ में
खप्पर धार्या ।
पी पी पीवे
रक्त, बरसे त्रिकुट
मस्तक पर अग्नि
प्रजाली, श्वेत वर्णी
मुक्त केशा कैची
धारी । देवी
उमा की शक्ति
छाया, प्रलयी खाये
सृष्टि सारी ।
चण्डी, चण्डी फिरे
ब्रह्माण्डी भख भख
बाला भख दुष्ट
को मुष्ट जती,
सती को रख, योगी
घर जोगन बैठी,
श्री शम्भुजती गुरु
गोरखनाथजी ने भाखी
। छिन्नमस्ता जपो
जाप,
पाप कन्टन्ते आपो
आप,
जो जोगी करे
सुमिरण पाप पुण्य
से न्यारा रहे
। काल ना
खाये ।
श्रीं
क्लीं ह्रीं ऐं
वज्र-वैरोचनीये हूं
हूं फट् स्वाहा
।
षष्टम
ज्योति भैरवी प्रगटी
।
।।
भैरवी ।।
ॐ
सती भैरवी भैरो
काल यम जाने
यम भूपाल तीन
नेत्र तारा त्रिकुटा,
गले में माला
मुण्डन की ।
अभय मुद्रा पीये
रुधिर नाशवन्ती ! काला
खप्पर हाथ खंजर,
कालापीर धर्म धूप
खेवन्ते वासना गई
सातवें पाताल, सातवें
पाताल मध्ये परम-तत्त्व
परम-तत्त्व
में जोत, जोत
में परम जोत,
परम जोत में
भई उत्पन्न काल-भैरवी,
त्रिपुर-भैरवी, सम्पत्त-प्रदा-भैरवी,
कौलेश-भैरवी, सिद्धा-भैरवी,
विध्वंसिनि-भैरवी, चैतन्य-भैरवी,
कामेश्वरी-भैरवी, षटकुटा-भैरवी,
नित्या-भैरवी ।
जपा अजपा गोरक्ष
जपन्ती यही मन्त्र
मत्स्येन्द्रनाथजी को सदा
शिव ने कहायी
। ऋद्ध फूरो
सिद्ध फूरो सत
श्रीशम्भुजती गुरु गोरखनाथजी
अनन्त कोट सिद्धा
ले उतरेगी काल
के पार, भैरवी
भैरवी खड़ी जिन
शीश पर, दूर
हटे काल जंजाल
भैरवी मन्त्र बैकुण्ठ
वासा । अमर
लोक में हुवा
निवासा ।
ॐ
ह्सैं ह्स्क्ल्रीं ह्स्त्रौः
सप्तम
ज्योति धूमावती प्रगटी
।।
धूमावती ।।
ॐ
पाताल निरंजन निराकार,
आकाश मण्डल धुन्धुकार,
आकाश दिशा से
कौन आये, कौन
रथ कौन असवार,
आकाश दिशा से
धूमावन्ती आई, काक
ध्वजा का रथ
अस्वार आई थरै
आकाश, विधवा रुप
लम्बे हाथ, लम्बी
नाक कुटिल नेत्र
दुष्टा स्वभाव, डमरु
बाजे भद्रकाली, क्लेश
कलह कालरात्रि ।
डंका डंकनी काल
किट किटा हास्य
करी । जीव
रक्षन्ते जीव भक्षन्ते
जाजा जीया आकाश
तेरा होये ।
धूमावन्तीपुरी में वास,
न होती देवी
न देव तहा
न होती पूजा
न पाती तहा
न होती जात
न जाती तब
आये श्रीशम्भुजती गुरु
गोरखनाथ आप भयी
अतीत ।
ॐ
धूं धूं धूमावती
स्वाहा ।
अष्टम
ज्योति बगलामुखी प्रगटी
।
।।
बगलामुखी ।।
ॐ
सौ सौ दुता
समुन्दर टापू, टापू
में थापा सिंहासन
पिला । संहासन
पीले ऊपर कौन
बसे । सिंहासन
पीला ऊपर बगलामुखी
बसे,
बगलामुखी के कौन
संगी कौन साथी
। कच्ची बच्ची
काक-कूतिया-स्वान-चिड़िया,
ॐ बगला बाला
हाथ मुद्-गर
मार,
शत्रु हृदय पर
सवार तिसकी जिह्वा
खिच्चै बाला ।
बगलामुखी मरणी करणी
उच्चाटण धरणी, अनन्त
कोट सिद्धों ने
मानी ॐ बगलामुखी
रमे ब्रह्माण्डी मण्डे
चन्दसुर फिरे खण्डे
खण्डे । बाला
बगलामुखी नमो नमस्कार
।
ॐ
ह्लीं ब्रह्मास्त्राय विद्महे
स्तम्भन-बाणाय धीमहि
तन्नो बगला प्रचोदयात्
।
नवम
ज्योति मातंगी प्रगटी
।
।।
मातंगी ।।
ॐ
शून्य शून्य महाशून्य,
महाशून्य में ॐ-कार,
ॐ-कार
में शक्ति, शक्ति
अपन्ते उहज आपो
आपना, सुभय में
धाम कमल में
विश्राम, आसन बैठी,
सिंहासन बैठी पूजा
पूजो मातंगी बाला,
शीश पर अस्वारी
उग्र उन्मत्त मुद्राधारी,
उद गुग्गल पाण
सुपारी, खीरे खाण्डे
मद्य-मांसे घृत-कुण्डे
सर्वांगधारी । बुन्द
मात्रेन कडवा प्याला,
मातंगी माता तृप्यन्ते
। ॐ मातंगी-सुन्दरी,
रुपवन्ती, कामदेवी, धनवन्ती,
धनदाती, अन्नपूर्णी अन्नदाती,
मातंगी जाप मन्त्र
जपे काल का
तुम काल को
खाये । तिसकी
रक्षा शम्भुजती गुरु
गोरखनाथजी करे ।
ॐ
ह्रीं क्लीं हूं
मातंग्यै फट् स्वाहा
।
दसवीं
ज्योति कमला प्रगटी
।
।।
कमला ।।
ॐ
अ-योनी
शंकर ॐ-कार
रुप,
कमला देवी सती
पार्वती का स्वरुप
। हाथ में
सोने का कलश,
मुख से अभय
मुद्रा । श्वेत
वर्ण सेवा पूजा
करे,
नारद इन्द्रा ।
देवी देवत्या ने
किया जय ॐ-कार
। कमला देवी
पूजो केशर पान
सुपारी, चकमक चीनी
फतरी तिल गुग्गल
सहस्र कमलों का
किया हवन ।
कहे गोरख, मन्त्र
जपो जाप जपो
ऋद्धि सिद्धि की
पहचान गंगा गौरजा
पार्वती जान ।
जिसकी तीन लोक
में भया मान
। कमला देवी
के चरण कमल
को आदेश ।
ॐ
श्रीं ह्रीं क्लीं
श्रीं सिद्ध-लक्ष्म्यै
नमः ।
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