यह सिद्ध प्रयोग है।
विधि:-
दूसरे से माँगे हुए मकान में, रक्षा-विधान, कलश-स्थापन, गणपत्यादि लोकपालों का पूजन कर हनुमान जी की प्रतिमा-प्रतिष्ठा करे। नित्य ११ या १२१ पाठ, ११ दिन तक करे। ‘प्रयोग’ भौमवार से प्रारम्भ करे। ‘प्रयोग’-कर्त्ता रक्त-वस्त्र धारण करे और किसी के साथ अन्न-जल न ग्रगण करे।
अञ्जनी-तनय बल-वीर रन-बाँकुरे, करत हुँ अर्ज दोऊ हाथ जोरी, शत्रु-दल सजि के चढ़े चहूँ ओर ते, तका इन पातकी न इज्जत मेरी, करत जो चुगलई मोर दरबार में, लेहु तेहि झपट मत करहु देरी, मातु की आनि तोहि, सुनौ प्रभु कान दे, अञ्जनी-सुवन मैं सरन तोरी।।१ पवन के पूत अवधूत रघु-नाथ प्रिय, सुनौ यह अर्ज महाराज मेरी, अहै जो मुद्दई मोर संसार में, करहु अङ्ग-हीन तेहि डारौ पेरी, करत जो चुगलई मोर दरबार में, करहु तेहि चूर लंगूर फेरी, पिता की आनि तोहि, सुनौ प्रभु कान दे, पवन के सुवन मैं सरन तोरी।।२ राम के दूत अकूत बल की शपथ, कहत हूँ टेरि नहि करत चोरी, और कोई सुभट नहीं प्रगट तिहूँ लोक में, सकै जो नाथ सौं बैन जोरी, करत जो चुगलई मोर दरबार में, लेहु तेहि पकरि धरि शीश तोरी, इष्ट की आनि तोहि, सुनौ प्रभु कान दे, राम का दूत मैं सरन तोरी।।३ केसरी-नन्द सब अङ्ग वज्र सों, जेहि लाल मुख रंग तन तेज-कारी, कपीस वर केस हैं विकट अति भेष हैं, दण्ड दौ चण्ड-मन ब्रह्मचारी, करत जो चुगलई मोर दरबार में, करहू तेहि गर्द दल मर्द डारी, केसरी की आनि तोहि, सुनौ प्रभु कान दे, वीर हनुमान मैं सरन तोरी।।४ लीयो है आनि जब जन्म लियो यहि जग में, हर्यो है त्रास सुर-संत केरी, मारि कै दनुज-कुल दहन कियो हेरि कै, दल्यो ज्यों सह गज-मस्त घेरी, करत जो चुगलई मोर दरबार में, हनौ तेहि हुमकि मति करहु देरी, तेरी ही आनि तोहि, सुनौ प्रभु कान दे, वीर हनुमान मैं सरन तोरी।।५ नाम हनुमान जेहि जानैं जहान सब, कूदि कै सिन्धु गढ़ लङ्क घेरी,
गहन उजारी सब रिपुन-मद मथन करी, जार्यो है नगर नहिं कियो देरी, करत जो चुगलई मोर दरबार में, लेहु तेही खाय फल सरिस हेरी, तेरे ही जोर की आनि तोहि, सुनौ प्रभु कान दे, वीर हनुमान मैं सरन तोरी।।६ गयो है पैठ पाताल महि, फारि कै मारि कै असुर-दल कियो ढेरी, पकरि अहि-रावनहि अङ्ग सब तोरि कै, राम अरु लखन की काटि बेरी, करत जो चगुलई मोर दरबार में, करहु तेहि निरधन धन लेहु फेरी, इष्ट की आनि तोहि, सुनहु प्रभु कान से, वीर हनुमान मैं सरन तेरी।।७ लगी है शक्ति अन्त उर घोर अति, परेऊ महि मुर्छित भई पीर ढेरी, चल्यो है गरजि कै धर्यो है द्रोण-गिरि, लीयो उखारि नहीं लगी देरी, करत जो चुगलई मोर दरबार में, पटकौं तेहि अवनि लांगुर फेरी, लखन की आनि तोहि, सुनौ प्रभु कान दे, वीर हनुमान मैं सरन तोरी।।८ हन्यो है हुमकि हनुमान काल-नेमि को, हर्यो है अप्सरा आप तेरी, लियो है अविधि छिनही में पवन-सुत, कर्यो कपि रीछ जै जैत टैरी, करत जो चुगलई मोर दरबार में, हनो तेहि गदा हठी बज्र फेरी, सहस्त्र फन की आनि तोहि, सुनौ प्रभु कान दे, वीर हनुमान मैं सरन तोरी।।९ केसरी-किशोर स-रोर बरजोर अति, सौहै कर गदा अति प्रबल तेरी, जाके सुने हाँक डर खात सब लोक-पति, छूटी समाधि त्रिपुरारी केरी, करत जो चुगलई मोर दरबार में, देहु तेहि कचरि धरि के दरेरी, केसरी की आनि तोहि, सुनौ प्रभु कान दे, वीर हनुमान मैं सरन तोरी।।१० लीयो हर सिया-दुख दियो है प्रभुहिं सुख, आई करवास मम हृदै बसेहितु, ज्ञान की वृद्धि करु, वाक्य यह सिद्ध करु, पैज करु पूरा कपीन्द्र मोरी, करत जो चुगलई मोर देरबार में, हनहु तेहि दौरि मत करौ देरी, सिया-राम की आनि तोहि, सुनौ प्रभु कान दे, वीर हनुमान मैं सरन तोरी।।११ ई ग्यारहो कवित्त के पुर के होत ही प्रकट भए, आए कल्याणकारी दियो है राम की भक्ति-वरदान मोहीं। भयो मन मोद-आनन्द भारी और जो चाहै तेहि सो माँग ले, देऊँ अब तुरन्त नहि करौं देरी, जवन तू चहेगा, तवन ही होएगा, यह बात सत्य तुम मान मेरी।।१२ ई ग्यारहाँ जो कहेगा तुरत फल लहैगा, होगा ज्ञान-विज्ञान जारी, जगत जस कहेगा सकल सुख को लहैगा, बढ़ैगी वंश की वृद्धि भारी, शत्रु जो बढ़ैगा आपु ही लड़ि मरैगा, होयगी अंग से पीर न्यारी, पाप नहिं रहैगा, रोग सब ढहैगा, दास भगवान अस कहत टेरी।।१३ यह मन्त्र उच्चारैगा, तेज तब बढ़ैगा, धरै जो ध्यान कपि-रुप आनि, एकादश रोज नर पढ़ै मन पोढ़ करि, करै नहिं पर-हस्त अन्न-पानी। भौम के वार को लाल-पट धारि कै, करै भुईं सेज मन व्रत ठानी, शत्रु का नाश तब हो, तत्कालहि, दास भगवान की यह सत्य-बानी।।१४ "
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