शनिवार, 28 अगस्त 2021

मंत्र किसे कहतें है।?

मंत्र किसे कहतें है।?
मंत्र एक ध्वनि उर्जा है जो अक्षर(शब्द) एवं अक्षर के समूह से बनता है। ब्रह्मांड में रूप रस, गंध इत्यादि गुण व्याप्त न होकर मात्र शब्द और प्रकाश ही विद्यमान होता है | ध्यान की अवस्था में ब्रह्माण्ड में व्याप्त अलोकिक प्रकाश की अनुभूति की जा सकती है | मंत्र जाप एवं ध्यान के समन्वय से मनुष्य का ब्रह्मांड में दोनों प्रकार की उपस्थित उर्जाओं से साक्षात्कार संभव हो सकता है | प्राचीनो ने इसी को शब्द-ब्रह्म के नाम से पुकारा था जिसमें शब्द उर्जा एवं प्रकाश उर्जा ,दोनों का सुनियोजित प्रकार से समन्वय करके इष्ट, इष्टफल एवं ज्ञान की प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त किया जा सके |
जाप किसे कहतें है ?
जाप, दो अक्षरों से मिलकर बना है -ज और प - जिसका अर्थ है - जन्मो-जन्मो के पापों का नाश | मन्त्रों के जाप से मनुष्य का सीधा सम्बन्ध ब्रहमांड जगत से होने लगता है एवं अन्दर पलने वाले समस्त पाप, ताप एवं विकारों का शमन होने लगता है और धीरे - धीरे वह समस्त इच्छित प्रयोजनों को साधने योग्य हो जाता है |
तुलसीदास ने भी राम चरित में जप की के बारे में वर्णन किया है -
| मंत्रजाप मम दृढ बिस्वासा
पंचम भजन सो वेद प्रकासा ||
भगवान बुद्ध के प्रवचन के अनुसार भी -मंत्रजाप असीम मानवता के साथ हृदय को एकाकार कर देता है |
क्योंकि मंत्रो के समीकरण के प्रकार अनुसार मन्त्रों को तीन श्रेणियों में बाटां गया है -
ऋचः - छन्द बद्ध और पद्यात्मक एवं उच्च स्वर में उच्चारित |
सामाः - पद्यात्मक एवं गायन द्वारा उच्चारित |
यजुः - गद्यात्मक एवं मंद स्वर में उच्चारित |
इसलिए जप का सामान्य अर्थ किसी मंत्र का चक्रीय स्थिति एवं गति से सतत या निरंतर, चिंतन (यजुः), मनन (यजुः) या गायन (ऋचः एवं सामाः ) करना होता है | मंत्र के निरंतर, लयबद्ध जप से उत्पन्न धवनि तरंगो से शक्तियों का प्रस्फुटन होता है मनुष्य की अंतर चेतना विकसित होने लगती है | मंत्र में निहित ईश्वरीय शक्ति जाग्रत होने लगती है | साधक को नाक्षत्र जगत से एकीकार होने की अनुभूति होती है एवं वह अपने इच्छित वरदान प्राप्ति की और मार्ग प्रशस्त करता है |
श्रीमद भगवद गीता, रामायण एवं महाभारत जैसे प्राचीन ग्रंथों में मंत्र साधना एवं सिद्धि का उल्लेख मिलता है और यह विदित होता है की उस काल में ऋषि मुनि ही नहीं, वरन सामान्य मनुष्य भी मंत्र सिद्धि से सभी प्रकार के तापों एवं रोगों का नाश करके समस्त भौतिक एवं अध्यात्मिक सुखों के आलोकिक आनंद को प्राप्त कर लेता था | आज के भोतिक वादी युग में हर व्यक्ति को सुख साधनों एवं सुरक्षा की कामना रहती है | कुछ व्यक्तियों को अध्यात्मिक ज्ञान एवं शांति की खोज रहती है | इन सभी की प्राप्ति के लिए जो मनुष्य के प्रारब्ध या कर्मों के चक्र के कारण अति अवरुद्ध या असंभव प्रतीत होते हैं , मन्त्र जाप की सहायता से प्राप्त हो सकतें है | परन्तु यह तभी संभव हो सकता है जब साधक को मंत्र सिद्धि प्राप्त हो और इसके लिए आवयशक है की "जप" पूर्ण विधान के किया जाये |
आएये हम जप के -विधि विधान पर विमर्श करते है-
शास्त्रों में जप के तीन प्रकार बतलाएं गए हैं
मानसिक जप - बिना जिह्वा या होंठ हिलाए मन में किया जाता है
वाचिक जप - उच्च स्वर में उच्चारित किया जाता है
उपांशु जप - अत्यंत मंद स्वर जिह्वा या होंठ की सहायता से उच्चारित किया जाता है
मानसिक जप को सबसे श्रेष्ठ माना गया है फिर भी साधक अपनी क्षमता एवं गुरु से प्राप्त ज्ञान के अनुसार जप विधि का अनुसरण कर सकता है |
जप के लिए कुछ प्रारंभिक सावधानियां पर ध्यान देना आवयशक है-
१ ) इष्ट की पूजा से प्रारम्भ २ ) निश्चित भूमि एवं वस्त्रों का चयन ३ ) ब्रहमचर्य एवं देहिक व् मानसिक शुद्धता का पालन ४ ) नेमित्तिक पूजा एवं दान ५) मंत्र एवं गुरु में पूर्ण विश्वास ६ ) मन्त्र के दोषों का उन्मूलन ( शास्त्रों में मंत्र के ८ दोष बताये गएँ है - अभक्ति , अक्षर भ्रान्ति , दीर्घ ,ह्रस्व , छिन्न , लुप्त , कथन एवं स्वप्ना कथन ) हेतु संस्कार ७ ) जप संख्या में निरंतर वृद्धि |
किसी भी दोष निवारण के लिए हर मन्त्र का उच्चारण करते समय आनंद का अनुभव करना चाहिए क्योंकि इसी से उस मंत्र से सम्बंधित शक्ति प्रसन्न होती है एवं मन्त्र शीघ्र सिद्ध हो जाता | कोई भी मन में संशय होने पर अपने गुरु से पुनः मंत्र प्राप्त करें |
जप में माला का महत्त्व
जप करने के लिए माला का होना आवश्यक है | कुछ लोग अपने हाथ पर गिनकर भी जप कर लेते है परन्तु लम्बे चलने वाले जप या अधिक संख्या के मन्त्रों के जप के लिए हाथ पर जप करना अभीष्ट नहीं होता है | जप के लिए तीन प्रकार की माला का प्रयोग बताया गया है |
१ ) कर माला - उँगलियों के पोरों पर गिनकर जप किया जाता है पर गिनते समय पोरों के क्रम का ध्यान रखना पड़ता है | इसमें मध्यमा ऊँगली के नीचे या जड़ के दो पोरों को छोड़ना चाहिए , क्योंकि वह ऊँगली के मेरु कहलाते हैं |
२ ) वर्ण माला - इसमें शब्दों के अक्षरों द्वारा संख्या गिनने की प्रक्रिया होती है |
३ ) मणि माला- मणियों अर्थात मानकों में पिरोई हुई माला को कहते हैं | यहाँ पर हम इसीकी की चर्चा करेगे क्योकि यही बहुतायत में प्रयोग की जाती है एवं इसीका का विधान सर्वथा उचित माना गया है |
मनको की माला के प्रयोग हेतु विभिन्न बातोंका ध्यान रखना आवयशक है -
१ ) माला में सुमेरु के अलावा १ ० ८ मनके होने चाहिए एवं पिरोते समय मनकों के अग्र एवं पुच्छ भाग की दिशा का ध्यान रखना चाहिए
२) भिन्न - भिन्न देवता या ग्रह अथवा भिन्न प्रयोजन या कामनापूर्ति के लिए उनसे संभंधित पदार्थों की माला प्रयोग में लानी चाहिए जैसे बृहस्पति की शान्ति हेतु हल्दी की माला , हनुमान और शिव की प्रसनता हेतु रुद्राक्ष की माला और लक्ष्मी प्राप्ति के लिए स्फटिक की माला
३ ) प्रातः काल में माला को नाभि के पास रखकर, मध्यान काल में माला को हृदय के पास रखकर और सायंकाल में माला को मस्तक के पास रखकर जप करने चाहिए |
४ ) जप करते समय माला के सुमेरु को नहीं लांघना चाहिए | एक से अधिक बार माला फेरने की स्थिति में सुमेरु तक पहुँचाने के उपरांत माला उलटी फेरनी चाहिए |
५) प्रयोग में लेने से पूर्व , माला का विधिवत 'माला -संस्कार ' होना चाहिए |
मंत्र का जाप करते समय साधक को पूर्ण एकाग्रता एवं आस्था रखनी चाहिए | जाप की सही प्रक्रिया के अनुसरण से, गुरु भक्ति के साथ - साथ गुरु कथन पर विश्वास एवं गुरु कृपा के होने से साधक अति दुर्गम कार्यों व कामनाओं की सिद्धि प्राप्त कर सकता है |

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