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Wednesday, 17 April 2019
श्रीबगलाष्टोत्तर शतनाम स्तोत्रम् ।। श्रीनारद उवाच ।। भगवन्, देव-देवेश ! सृष्टि-स्थिति-लयात्मकम् । शतमष्टोत्तरं नाम्नां, बगलाया वदाधुना ।। ।। श्रीभगवानुवाच ।। श्रृणु वत्स ! प्रवक्ष्यामि, नाम्नामष्टोत्तरं शतम् । पीताम्बर्या महा-देव्याः, स्तोत्रं पाप-प्रणाशनम् ।। यस्य प्रपठनात् सद्यो, वादी मूको भवेत् क्षणात् । रिपूणां स्तम्भनं गाति, सत्यं सत्यं चदाम्यहम् ।। विनियोगः- ॐ अस्य श्रीपीताम्बरायाः शतमष्टोत्तरं नाम्नां स्तोत्रस्य, श्रीसदा-शिव ऋषिः, अनुष्टुप छन्दः, श्रीपीताम्बरा देवता, श्रीपीताम्बरा प्रीतये जपे विनियोगः । ऋष्यादिन्यासः- श्रीसदा-शिव ऋषये नमः शिरसि, अनुष्टुप छन्दसे नमः मुखे, श्रीपीताम्बरा देवतायै नमः हृदि, श्रीपीताम्बरा प्रीतये जपे विनियोगाय नमः सर्वांगे । ।।अष्टोत्तर-शत-नाम-स्तोत्र ।। ॐ बगला विष्णु-वनिता, विष्णु-शंकर-भामिनी । बहुला वेद-माता च, महा-विष्णु-प्रसूरपि ।।1।। महा-मत्स्या महा-कूर्मा, महा-वाराह-रूपिणी । नरसिंह-प्रिया रम्या, वामना वटु-रूपिणी ।।2।। जामदग्न्य-स्वरूपा च, रामा राम-प्रपूजिता । कृष्णा कपर्दिनी कृत्या, कलहा कल-कारिणी ।।3।। बुद्धि-रूपा बुद्ध-भार्या, बौद्ध-पाखण्ड-खण्डिनी । कल्कि-रूपा कलि-हरा, कलि-दुर्गति-नाशिनी ।।4।। कोटि-सूर्य-प्रतिकाशा, कोटि-कन्दर्प-मोहिनी । केवला कठिना काली, कला कैवल्य-दायिनी ।।5।। केशवी केशवाराध्या, किशोरी केशव-स्तुता । रूद्र-रूपा रूद्र-मूर्ति, रूद्राणी रूद्र-देवता ।।6।। नक्षत्र-रूपा नक्षत्रा, नक्षत्रेश-प्रपूजिता । नक्षत्रेश-प्रिया नित्या, नक्षत्र-पति-वन्दिता ।।7।। नागिनी नाग-जननि, नाग-राज-प्रवन्दिता । नागेश्वरी नाग-कन्या, नागरी च नगात्मजा ।।8।। नगाधिराज-तनया, नग-राज-प्रपूजिता । नवीन नीरदा पीता, श्यामा सौन्दर्य-कारिणी ।।9।। रक्ता नीला घना शुभ्रा, श्वेता सौभाग्य-दायिनी । सुन्दरी सौभगा सौम्या, स्वर्णभा स्वर्गति-प्रदा ।।10।। रिपु-त्रास-करी रेखा, शत्रु-संहार-कारिणी । भामिनी च तथा माया, स्तम्भिनी मोहिनी शुभा।।12।। राग-द्वेष-करी रात्रि, रौरव-ध्वसं-कारिणी । यक्षिणी सिद्ध-निवहा सिद्धेशा सिद्धि-रूपिणी ।।13।। लंका-पति-ध्वसं-करी, लंकेश-रिपु-वन्दिता । लंका-नाथ – कुल-हरा, महा-रावण-हारिणी ।।14।। देव-दानव-सिद्धौघ-पूजिता परमेश्वरी । पराणु-रूपा परमा, पर-तन्त्र-विनाशिनी ।।15।। वरदा वरदाऽऽराध्या, वर-दान-परायणा । वर-देश-प्रिया वीरा, वीर-भूषण-भूषिता ।।16।। वसुदा बहुदा वाणी, ब्रह्म-रूपा वरानना । बलदा पीत-वसना, पीत-भूषण-भूषिता ।।17।। पीत-पुष्प-प्रिया पीत-हारा पीत-स्वरूपिणी । शुभं ते कथितं विप्र ! नाम्नामष्टोत्तरं शतम् ।।18।। ।।फल-श्रुति।। यः पठेद् पाठयेद् वापि, श्रृणुयाद् ना समाहितः । तस्य शत्रुः क्षयं सद्यो, याति वै नात्र संशयः ।। प्रभात-काले प्रयतो मनुष्यः, पठेत् सु-भक्त्या परिचिन्त्य पीताम् । द्रुतं भवेत् तस्य समस्त-वृद्धिर्विनाशमायाति च तस्य शत्रुः ।। ।। श्रीविष्णु-यामले श्रीनारद-विष्णु-सम्वादे। श्रीबगलाऽष्टोत्तर-शत-नाम-स्तोत्रं ।।
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