Tuesday, 16 April 2019

बगलामुखी एकाक्षरी मंत्र – || ह्लीं || इसे स्थिर माया कहते हैं । यह मंत्र दक्षिण आम्नाय का है । दक्षिणाम्नाय में बगलामुखी के दो भुजायें हैं । अन्य बीज “ह्रीं” का उल्लेख भी बगलामुखी के मंत्रों में आता है, इसे “भुवन-माया” भी कहते हैं । चतुर्भुज रुप में यह विद्या विपरीत गायत्री (ब्रह्मास्त्र विद्या) बन जाती है । ह्रीं बीज-युक्त अथवा चतुर्भुज ध्यान में बगलामुखी उत्तराम्नाय या उर्ध्वाम्नायात्मिका होती है । ह्ल्रीं बीज का उल्लेख ३६ अक्षर मंत्र में होता है । (सांख्यायन तन्त्र) विनियोगः- ॐ अस्य एकाक्षरी बगला मंत्रस्य ब्रह्मा ऋषिः, गायत्री छन्दः, बगलामुखी देवता, लं बीजं, ह्रीं शक्तिः ईं कीलकं, सर्वार्थ सिद्धयर्थे जपे विनियोगः । ऋष्यादि-न्यासः- ब्रह्मा ऋषये नमः शिरसि, गायत्री छन्दसे नमः मुखे, बगलामुखी देवतायै नमः हृदि, लं बीजाय नमः गुह्ये, ह्रीं शक्तये नमः पादयो, ईं कीलकाय नमः नाभौ, सर्वार्थ सिद्धयर्थे जपे विनियोगाय नमः सर्वांगे । षडङ्ग-न्यास कर-न्यास अंग-न्यास ह्लां अंगुष्ठाभ्यां नमः हृदयाय नमः ह्लीं तर्जनीभ्यां नमः शिरसे स्वाहा ह्लूं मध्यमाभ्यां नमः शिखायै वषट् ह्लैं अनामिकाभ्यां नमः कवचाय हुं ह्लौं कनिष्ठिकाभ्यां नमः नेत्र-त्रयाय वौषट् ह्लः करतल-कर-पृष्ठाभ्यां नमः अस्त्राय फट् ध्यानः- हाथ में पीले फूल, पीले अक्षत और जल लेकर ‘ध्यान’ करे - वादीभूकति रंकति क्षिति-पतिः वैश्वानरः शीतति, क्रोधी शान्तति दुर्जनः सुजनति क्षिप्रानुगः खञ्जति । गर्वी खर्वति सर्व-विच्च जड़ति त्वद्यन्त्रणा यन्त्रितः, श्रीनित्ये ! बगलामुखि ! प्रतिदिनं कल्याणि ! तुभ्यं नमः ।। एक लाख जप कर, पीत-पुष्पों से हवन करे, गुड़ोदक से दशांश तर्पण करे । विशेषः- “श्रीबगलामुखी-रहस्यं” में शक्ति ‘हूं’ बतलाई गई है तथा ध्यान में पाठन्तर है – ‘शान्तति’ के स्थान पर ‘शाम्यति’ । बगलामुखी त्र्यक्षर मंत्र - || ॐ ह्लीं ॐ || बगलामुखी चतुरक्षर मन्त्र - || ॐ आं ह्लीं क्रों || (सांख्यायन तन्त्र) विनियोगः- ॐ अस्य चतुरक्षर बगला मंत्रस्य ब्रह्मा ऋषिः, गायत्री छन्दः, बगलामुखी देवता, ह्लीं बीजं, आं शक्तिः क्रों कीलकं, सर्वार्थ सिद्धयर्थे जपे विनियोगः । ऋष्यादि-न्यासः- ब्रह्मा ऋषये नमः शिरसि, गायत्री छन्दसे नमः मुखे, बगलामुखी देवतायै नमः हृदि, ह्लीं बीजाय नमः गुह्ये, आं शक्तये नमः पादयो, क्रों कीलकाय नमः नाभौ, सर्वार्थ सिद्धयर्थे जपे विनियोगाय नमः सर्वांगे । षडङ्ग-न्यास कर-न्यास अंग-न्यास ॐ ह्लां अंगुष्ठाभ्यां नमः हृदयाय नमः ॐ ह्लीं तर्जनीभ्यां नमः शिरसे स्वाहा ॐ ह्लूं मध्यमाभ्यां नमः शिखायै वषट् ॐ ह्लैं अनामिकाभ्यां नमः कवचाय हुं ॐ ह्लौं कनिष्ठिकाभ्यां नमः नेत्र-त्रयाय वौषट् ॐ ह्लः करतल-कर-पृष्ठाभ्यां नमः अस्त्राय फट् ध्यानः- हाथ में पीले फूल, पीले अक्षत और जल लेकर ‘ध्यान’ करे - कुटिलालक-संयुक्तां मदाघूर्णित-लोचनां, मदिरामोद-वदनां प्रवाल-सदृशाधराम् । सुवर्ण-कलश-प्रख्य-कठिन-स्तन-मण्डलां, आवर्त्त-विलसन्नाभिं सूक्ष्म-मध्यम-संयुताम् । रम्भोरु-पाद-पद्मां तां पीत-वस्त्र-समावृताम् ।। पुरश्चरण में चार लाख जप कर, मधूक-पुष्प-मिश्रित जल से दशांश तर्पण कर घृत-शर्करा-युक्त पायस से दशांश हवन ।

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