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मंगलवार, 16 अप्रैल 2019
महाविद्या छिन्नमस्ता प्रयोग शोक ताप संताप होंगे छिन्न-भिन्न जीवन के परम सत्य की होगी प्राप्ति संसार का हर्रेक सुख आपकी मुट्ठी में होगा अपार सफलताओं के शिखर पर जा पहुंचेंगे आप जीवन मरण दोनों से हो जायेंगे पार "महाविद्या छिन्नमस्ता" एक बार देवी पार्वती हिमालय भ्रमण कर रही थी उनके साथ उनकी दो सहचरियां जया और विजया भी थीं, हिमालय पर भ्रमण करते हुये वे हिमालय से दूर आ निकली, मार्ग में सुनदर मन्दाकिनी नदी कल कल करती हुई बह रही थी, जिसका साफ स्वच्छ जल दिखने पर देवी पार्वती के मन में स्नान की इच्छा हुई, उनहोंने जया विजया को अपनी मनशा बताती व उनको भी सनान करने को कहा, किन्तु वे दोनों भूखी थी, बोली देवी हमें भूख लगी है, हम सनान नहीं कर सकती, तो देवी नें कहा ठीक है मैं सनान करती हूँ तुम विश्राम कर लो, किन्तु सनान में देवी को अधिक समय लग गया, जया विजया नें पुनह देवी से कहा कि उनको कुछ खाने को चाहिए, देवी सनान करती हुयी बोली कुच्छ देर में बाहर आ कर तुम्हें कुछ खाने को दूंगी, लेकिन थोड़ी ही देर में जया विजया नें फिर से खाने को कुछ माँगा, इस पर देवी नदी से बाहर आ गयी और अपने हाथों में उनहोंने एक दिव्य खडग प्रकट किया व उस खडग से उनहोंने अपना सर काट लिया, देवी के कटे गले से रुधिर की धारा बहने लगी तीन प्रमुख धाराएँ ऊपर उठती हुयी भूमि की और आई तो देवी नें कहा जया विजया तुम दोनों मेरे रक्त से अपनी भूख मिटा लो, ऐसा कहते ही दोनों देवियाँ पार्वती जी का रुधिर पान करने लगी व एक रक्त की धारा देवी नें स्वयं अपने ही मुख में ड़ाल दी और रुधिर पान करने लगी, देवी के ऐसे रूप को देख कर देवताओं में त्राहि त्राहि मच गयी, देवताओं नें देवी को प्रचंड चंड चंडिका कह कर संबोधित किया, ऋषियों नें कटे हुये सर के कारण देवी को नाम दिया छिन्नमस्ता, तब शिव नें कबंध शिव का रूप बना कर देवी को शांत किया, शिव के आग्रह पर पुनह: देवी ने सौम्य रूप बनाया, नाथ पंथ सहित बौद्ध मताब्लाम्बी भी देवी की उपासना क्जरते हैं, भक्त को इनकी उपासना से भौतिक सुख संपदा बैभव की प्राप्ति, बाद विवाद में विजय, शत्रुओं पर जय, सम्मोहन शक्ति के साथ-साथ अलौकिक सम्पदाएँ प्राप्त होती है, इनकी सिद्धि हो जाने ओपर कुछ पाना शेष नहीं रह जाता, दस महाविद्यायों में प्रचंड चंड नायिका के नाम से व बीररात्रि कह कर देवी को पूजा जाता है देवी के शिव को कबंध शिव के नाम से पूजा जाता है छिन्नमस्ता देवी शत्रु नाश की सबसे बड़ी देवी हैं,भगवान् परशुराम नें इसी विद्या के प्रभाव से अपार बल अर्जित किया था गुरु गोरक्षनाथ की सभी सिद्धियों का मूल भी देवी छिन्नमस्ता ही है देवी नें एक हाथ में अपना ही मस्तक पकड़ रखा हैं और दूसरे हाथ में खडग धारण किया है देवी के गले में मुंडों की माला है व दोनों और सहचरियां हैं देवी आयु, आकर्षण,धन,बुद्धि,रोगमुक्ति व शत्रुनाश करती है देवी छिन्नमस्ता मूलतया योग की अधिष्ठात्री देवी हैं जिन्हें ब्ज्रावैरोचिनी के नाम से भी जाना जाता है सृष्टि में रह कर मोह माया के बीच भी कैसे भोग करते हुये जीवन का पूरण आनन्द लेते हुये योगी हो मुक्त हो सकता है यही सामर्थ्य देवी के आशीर्वाद से मिलती है सम्पूरण सृष्टि में जो आकर्षण व प्रेम है उसकी मूल विद्या ही छिन्नमस्ता है शास्त्रों में देवी को ही प्राणतोषिनी कहा गया है देवी की स्तुति से देवी की अमोघ कृपा प्राप्त होती है स्तुति छिन्न्मस्ता करे वामे धार्यन्तीं स्व्मास्ताकम, प्रसारितमुखिम भीमां लेलिहानाग्रजिव्हिकाम, पिवंतीं रौधिरीं धारां निजकंठविनिर्गाताम, विकीर्णकेशपाशान्श्च नाना पुष्प समन्विताम, दक्षिणे च करे कर्त्री मुण्डमालाविभूषिताम, दिगम्बरीं महाघोरां प्रत्यालीढ़पदे स्थिताम, अस्थिमालाधरां देवीं नागयज्ञो पवीतिनिम, डाकिनीवर्णिनीयुक्तां वामदक्षिणयोगत:, देवी की कृपा से साधक मानवीय सीमाओं को पार कर देवत्व प्राप्त कर लेता है गृहस्थ साधक को सदा ही देवी की सौम्य रूप में साधना पूजा करनी चाहिए देवी योगमयी हैं ध्यान समाधी द्वारा भी इनको प्रसन्न किया जा सकता है इडा पिंगला सहित स्वयं देवी सुषुम्ना नाड़ी हैं जो कुण्डलिनी का स्थान हैं देवी के भक्त को मृत्यु भय नहीं रहता वो इच्छानुसार जन्म ले सकता है देवी की मूर्ती पर रुद्राक्षनाग केसर व रक्त चन्दन चढाने से बड़ी से बड़ी बाधा भी नष्ट होती है महाविद्या छिन्मस्ता के मन्त्रों से होता है आधी व्यादी सहित बड़े से बड़े दुखों का नाश देवी माँ का स्वत: सिद्ध महामंत्र है- श्री महाविद्या छिन्नमस्ता महामंत्र ॐ श्रीं ह्रीं ह्रीं क्लीं ऐं वज्र वैरोचिनिये ह्रीं ह्रीं फट स्वाहा इस मंत्र से काम्य प्रयोग भी संपन्न किये जाते हैं व देवी को पुष्प अत्यंत प्रिय हैं इसलिए केवल पुष्पों के होम से ही देवी कृपा कर देती है,आप भी मनोकामना के लिए यज्ञ कर सकते हैं,जैसे- 1. मालती के फूलों से होम करने पर बाक सिद्धि होती है व चंपा के फूलों से होम करने पर सुखों में बढ़ोतरी होती है 2.बेलपत्र के फूलों से होम करने पर लक्ष्मी प्राप्त होती है व बेल के फलों से हवन करने पर अभीष्ट सिद्धि होती है 3.सफेद कनेर के फूलों से होम करने पर रोगमुक्ति मिलती है तथा अल्पायु दोष नष्ट हो 100 साल आयु होती है 4. लाल कनेर के पुष्पों से होम करने पर बहुत से लोगों का आकर्षण होता है व बंधूक पुष्पों से होम करने पर भाग्य बृद्धि होती है 5.कमल के पुष्पों का गी के साथ होम करने से बड़ी से बड़ी बाधा भी रुक जाती है 6 .मल्लिका नाम के फूलों के होम से भीड़ को भी बश में किया जा सकता है व अशोक के पुष्पों से होम करने पर पुत्र प्राप्ति होती है 7 .महुए के पुष्पों से होम करने पर सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं व देवी प्रसन्न होती है महाअंक-देवी द्वारा उतपन्न गणित का अंक जिसे स्वयं छिन्नमस्ता ही कहा जाता है वो देवी का महाअंक है -"4" विशेष पूजा सामग्रियां-पूजा में जिन सामग्रियों के प्रयोग से देवी की विशेष कृपा मिलाती है मालती के फूल, सफेद कनेर के फूल, पीले पुष्प व पुष्पमालाएं चढ़ाएं केसर, पीले रंग से रंगे हुए अक्षत, देसी घी, सफेद तिल, धतूरा, जौ, सुपारी व पान चढ़ाएं बादाम व सूखे फल प्रसाद रूप में अर्पित करें सीपियाँ पूजन स्थान पर रखें भोजपत्र पर ॐ ह्रीं ॐ लिख करा चदएं दूर्वा,गंगाजल, शहद, कपूर, रक्त चन्दन चढ़ाएं, संभव हो तो चंडी या ताम्बे के पात्रों का ही पूजन में प्रयोग करें पूजा के बाद खेचरी मुद्रा लगा कर ध्यान का अभ्यास करना चाहिए सभी चढ़ावे चढाते हुये देवी का ये मंत्र पढ़ें-ॐ वीररात्रि स्वरूपिन्ये नम: देवी के दो प्रमुख रूपों के दो महामंत्र १)देवी प्रचंड चंडिका मंत्र-ऐं श्रीं क्लीं ह्रीं ऐं वज्र वैरोचिनिये ह्रीं ह्रीं फट स्वाहा २)देवी रेणुका शबरी मंत्र-ॐ श्रीं ह्रीं क्रौं ऐं सभी मन्त्रों के जाप से पहले कबंध शिव का नाम लेना चाहिए तथा उनका ध्यान करना चाहिए सबसे महत्पूरण होता है देवी का महायंत्र जिसके बिना साधना कभी पूरण नहीं होती इसलिए देवी के यन्त्र को जरूर स्थापित करे व पूजन करें यन्त्र के पूजन की रीति है- पंचोपचार पूजन करें-धूप,दीप,फल,पुष्प,जल आदि चढ़ाएं ॐ कबंध शिवाय नम: मम यंत्रोद्दारय-द्दारय कहते हुये पानी के 21 बार छीटे दें व पुष्प धूप अर्पित करें देवी को प्रसन्न करने के लिए सह्त्रनाम त्रिलोक्य कवच आदि का पाठ शुभ माना गया है यदि आप बिधिवत पूजा पात नहीं कर सकते तो मूल मंत्र के साथ साथ नामावली का गायन करें छिन्नमस्ता शतनाम का गायन करने से भी देवी की कृपा आप प्राप्त कर सकते हैं छिन्नमस्ता शतनाम को इस रीति से गाना चाहिए- प्रचंडचंडिका चड़ा चंडदैत्यविनाशिनी, चामुंडा च सुचंडा च चपला चारुदेहिनी, ल्लजिह्वा चलदरक्ता चारुचन्द्रनिभानना, चकोराक्षी चंडनादा चंचला च मनोन्मदा, देदेवी को अति शीघ्र प्रसन्न करने के लिए अंग न्यास व आवरण हवन तर्पण व मार्जन सहित पूजा करें अब देवी के कुछ इच्छा पूरक मंत्र 1) देवी छिन्नमस्ता का शत्रु नाशक मंत्र ॐ श्रीं ह्रीं ह्रीं वज्र वैरोचिनिये फट लाल रंग के वस्त्र और पुष्प देवी को अर्पित करें नवैद्य प्रसाद,पुष्प,धूप दीप आरती आदि से पूजन करें रुद्राक्ष की माला से 6 माला का मंत्र जप करें देवी मंदिर में बैठ कर मंत्र जाप से शीघ्र फल मिलता है काले रग का वस्त्र आसन के रूप में रखें या उनी कम्बल का आसन रखें दक्षिण दिशा की ओर मुख रखें अखरो व अन्य फलों का फल प्रसाद रूप में चढ़ाएं 2) देवी छिन्नमस्ता का धन प्रदाता मंत्र ऐं श्रीं क्लीं ह्रीं वज्रवैरोचिनिये फट गुड, नारियल, केसर, कपूर व पान देवी को अर्पित करें शहद से हवन करें रुद्राक्ष की माला से 7 माला का मंत्र जप करें 3) देवी छिन्नमस्ता का प्रेम प्रदाता मंत्र ॐ आं ह्रीं श्रीं वज्रवैरोचिनिये हुम देवी पूजा का कलश स्थापित करें देवी को सिन्दूर व लोंग इलायची समर्पित करें रुद्राक्ष की माला से 6 माला का मंत्र जप करें किसी नदी के किनारे बैठ कर मंत्र जाप से शीघ्र फल मिलता है भगवे रग का वस्त्र आसन के रूप में रखें या उनी कम्बल का आसन रखें उत्तर दिशा की ओर मुख रखें खीर प्रसाद रूप में चढ़ाएं 4) देवी छिन्नमस्ता का सौभाग्य बर्धक मंत्र ॐ श्रीं श्रीं ऐं वज्रवैरोचिनिये स्वाहा देवी को मीठा पान व फलों का प्रसाद अर्पित करना चाहिए रुद्राक्ष की माला से 5 माला का मंत्र जप करें किसी ब्रिक्ष के नीचे बैठ कर मंत्र जाप से शीघ्र फल मिलता है संतरी रग का वस्त्र आसन के रूप में रखें या उनी कम्बल का आसन रखें पूर्व दिशा की ओर मुख रखें पेठा प्रसाद रूप में चढ़ाएं 5) देवी छिन्नमस्ता का ग्रहदोष नाशक मंत्र ॐ श्रीं ह्रीं ऐं क्लीं वं वज्रवैरोचिनिये हुम देवी को पंचामृत व पुष्प अर्पित करें रुद्राक्ष की माला से 4 माला का मंत्र जप करें मंदिर के गुम्बद के नीचे या प्राण प्रतिष्ठित मूर्ती के निकट बैठ कर मंत्र जाप से शीघ्र फल मिलता है पीले रग का वस्त्र आसन के रूप में रखें या उनी कम्बल का आसन रखें उत्तर दिशा की ओर मुख रखें नारियल व तरबूज प्रसाद रूप में चढ़ाएं देवी की पूजा में सावधानियां व निषेध- बिना "कबंध शिव" की पूजा के महाविद्या छिन्नमस्ता की साधना न करें सन्यासियों व साधू संतों की निंदा बिलकुल न करें साधना के दौरान अपने भोजन आदि में हींग व काली मिर्च का प्रयोग न करें देवी भक्त ध्यान व योग के समय भूमि पर बिना आसन कदापि न बैठें सरसों के तेल का दीया न जलाएं
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