Saturday, 12 February 2022

अमावस्या और पूर्णिमा का रहस्य

अमावस्या और पूर्णिमा का रहस्य"
हिन्दू धर्म में पूर्णिमा, अमावस्या और ग्रहण के रहस्य को उजागर किया गया है। इसके अलावा वर्ष में ऐसे कई महत्वपूर्ण दिन और रात हैं,जिनका धरती और मानव मन पर गहरा प्रभाव पड़ता है। उनमें से ही माह में पड़ने वाले 2 दिन सबसे महत्वपूर्ण हैं ~ पूर्णिमा और अमावस्या। पूर्णिमा और अमावस्या के प्रति बहुत से लोगों में डर है। खासकर अमावस्या के प्रति ज्यादा डर है। वर्ष में 12 पूर्णिमा और 12 अमावस्या होती हैं। सभी का अलग-अलग महत्व है।
माह के 30 दिन को चन्द्र कला के आधार पर 15-15 दिन के 2 पक्षों में बांटा गया है ~ *'शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष'*। शुक्ल पक्ष के अंतिम दिन को पूर्णिमा कहते हैं और कृष्ण पक्ष के अंतिम दिन को अमावस्या।
यदि शुरुआत से गिनें तो 30 तिथियों के नाम निम्न हैं~पूर्णिमा(पुरणमासी), प्रतिपदा (पड़वा), द्वितीया (दूज), तृतीया (तीज), चतुर्थी (चौथ), पंचमी (पंचमी), षष्ठी (छठ), सप्तमी (सातम), अष्टमी (आठम), नवमी (नौमी), दशमी (दसम), एकादशी (ग्यारस), द्वादशी (बारस), त्रयोदशी (तेरस), चतुर्दशी (चौदस) और अमावस्या (अमावस)।
अमावस्या पंचांग के अनुसार माह की 30वीं और कृष्ण पक्ष की अंतिम तिथि है, जिस दिन कि चंद्रमा आकाश में दिखाई नहीं देता। हर माह की पूर्णिमा और अमावस्या को कोई न कोई पर्व अवश्य मनाया जाता, ताकि इन दिनों व्यक्ति का ध्यान धर्म की ओर लगा रहे..!!
*'लेकिन इसके पीछे आखिर रहस्य क्या है'..??*
नकारात्मक और सकारात्मक शक्तियां :धरती के मान से 2 तरह की शक्तियां होती हैं- 'सकारात्मक और नकारात्मक', दिन और रात, अच्छा और बुरा आदि। हिन्दू धर्म के अनुसार धरती पर उक्त दोनों तरह की शक्तियों का वर्चस्व सदा से रहता आया है। हालांकि कुछ मिश्रित शक्तियां भी होती हैं, जैसे संध्या होती है तथा जो दिन और रात के बीच होती है। उसमें दिन के गुण भी होते हैं और रात के गुण भी।
इन प्राकृतिक और दैवीय शक्तियों के कारण ही धरती पर भांति-भांति के जीव-जंतु, पशु-पक्षी और पेड़-पौधों, निशाचरों आदि का जन्म और विकास हुआ है। इन शक्तियों के कारण ही मनुष्यों में देवगुण और दैत्य गुण होते हैं।
हिन्दुओं ने सूर्य और चन्द्र की गति और कला को जानकर वर्ष का निर्धारण किया गया। 1 वर्ष में सूर्य पर आधारित 2 अयन होते हैं- पहला उत्तरायण और दूसरा दक्षिणायन। इसी तरह चंद्र पर आधारित 1 माह के 2 पक्ष होते हैं ~ शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष।
इनमें से वर्ष के मान से उत्तरायण में और माह के मान से शुक्ल पक्ष में देव आत्माएं सक्रिय रहती हैं, तो दक्षिणायन और कृष्ण पक्ष में दैत्य और पितर आत्माएं ज्यादा सक्रिय रहती हैं। अच्छे लोग किसी भी प्रकार का धार्मिक और मांगलिक कार्य रात में नहीं करते जबकि दूसरे लोग अपने सभी धार्मिक और मांगलिक कार्य सहित सभी सांसारिक कार्य रात में ही करते हैं।
पूर्णिमा का विज्ञान :पूर्णिमा की रात मन ज्यादा बेचैन रहता है और नींद कम ही आती है। कमजोर दिमाग वाले लोगों के मन में आत्महत्या या हत्या करने के विचार बढ़ जाते हैं। चांद का धरती के जल से संबंध है। जब पूर्णिमा आती है तो समुद्र में ज्वार-भाटा उत्पन्न होता है, क्योंकि चंद्रमा समुद्र के जल को ऊपर की ओर खींचता है। मानव के शरीर में भी लगभग 85 प्रतिशत जल रहता है। पूर्णिमा के दिन इस जल की गति और गुण बदल जाते हैं।
वैज्ञानिकों के अनुसार इस दिन चन्द्रमा का प्रभाव काफी तेज होता है इन कारणों से शरीर के अंदर रक्त में न्यूरॉन सेल्स क्रियाशील हो जाते हैं और ऐसी स्थिति में इंसान ज्यादा उत्तेजित या भावुक रहता है। एक बार नहीं, प्रत्येक पूर्णिमा को ऐसा होता रहता है तो व्यक्ति का भविष्य भी उसी अनुसार बनता और बिगड़ता रहता है।
जिन्हें मंदाग्नि रोग होता है या जिनके पेट में चय-उपचय की क्रिया शिथिल होती है, तब अक्सर सुनने में आता है कि ऐसे व्यक्ति भोजन करने के बाद नशा जैसा महसूस करते हैं और नशे में न्यूरॉन सेल्स शिथिल हो जाते हैं जिससे दिमाग का नियंत्रण शरीर पर कम, भावनाओं पर ज्यादा केंद्रित हो जाता है। ऐसे व्यक्तियों पर चन्द्रमा का प्रभाव गलत दिशा लेने लगता है। इस कारण पूर्णिमा व्रत का पालन रखने की सलाह दी जाती है।
कुछ मुख्य पूर्णिमा :कार्तिक पूर्णिमा, माघ पूर्णिमा, शरद पूर्णिमा, गुरु पूर्णिमा, बुद्ध पूर्णिमा आदि।
चेतावनी :~ इस दिन किसी भी प्रकार की तामसिक वस्तुओं का सेवन नहीं करना चाहिए। इस दिन शराब आदि नशे से भी दूर रहना चाहिए। इसके शरीर पर ही नहीं, आपके भविष्य पर भी दुष्परिणाम हो सकते हैं। जानकार लोग तो यह कहते हैं कि चौदस, पूर्णिमा और प्रतिपदा उक्त 3 दिन पवित्र बने रहने में ही भलाई है।
अमावस्या' :~ वर्ष के मान से उत्तरायण में और माह के मान से शुक्ल पक्ष में देव आत्माएं सक्रिय रहती हैं तो दक्षिणायन और कृष्ण पक्ष में दैत्य आत्माएं ज्यादा सक्रिय रहती हैं। जब दानवी आत्माएं ज्यादा सक्रिय रहती हैं, तब मनुष्यों में भी दानवी प्रवृत्ति का असर बढ़ जाता है इसीलिए उक्त दिनों के महत्वपूर्ण दिन में व्यक्ति के मन-मस्तिष्क को धर्म की ओर मोड़ दिया जाता है।
अमावस्या के दिन भूत-प्रेत, पितृ, पिशाच, निशाचर जीव-जंतु और दैत्य ज्यादा सक्रिय और उन्मुक्त रहते हैं। ऐसे दिन की प्रकृति को जानकर विशेष सावधानी रखनी चाहिए। प्रेत के शरीर की रचना में 25 प्रतिशत फिजिकल एटम और 75 प्रतिशत ईथरिक एटम होता है। इसी प्रकार पितृ शरीर के निर्माण में 25 प्रतिशत ईथरिक एटम और 75 प्रतिशत एस्ट्रल एटम होता है। अगर ईथरिक एटम सघन हो जाए तो प्रेतों का छायाचित्र लिया जा सकता है और इसी प्रकार यदि एस्ट्रल एटम सघन हो जाए तो पितरों का भी छायाचित्र लिया जा सकता है।
ज्योतिष में चन्द्र को मन का देवता माना गया है। अमावस्या के दिन चन्द्रमा दिखाई नहीं देता। ऐसे में जो लोग अति भावुक होते हैं, उन पर इस बात का सर्वाधिक प्रभाव पड़ता है। लड़कियां मन से बहुत ही भावुक होती हैं। इस दिन चन्द्रमा नहीं दिखाई देता तो ऐसे में हमारे शरीर में हलचल अधिक बढ़ जाती है। जो व्यक्ति नकारात्मक सोच वाला होता है उसे नकारात्मक शक्ति अपने प्रभाव में ले लेती है।
धर्मग्रंथों में चन्द्रमा की 16वीं कला को 'अमा' कहा गया है। चन्द्रमंडल की 'अमा' नाम की महाकला है जिसमें चन्द्रमा की 16 कलाओं की शक्ति शामिल है। शास्त्रों में अमा के अनेक नाम आए हैं, जैसे अमावस्या, सूर्य-चन्द्र संगम, पंचदशी, अमावसी, अमावासी या अमामासी। अमावस्या के दिन चन्द्र नहीं दिखाई देता अर्थात जिसका क्षय और उदय नहीं होता है उसे अमावस्या कहा गया है, तब इसे 'कुहू अमावस्या' भी कहा जाता है। अमावस्या माह में एक बार ही आती है। शास्त्रों में अमावस्या तिथि का स्वामी पितृदेव को माना जाता है। अमावस्या सूर्य और चन्द्र के मिलन का काल है। इस दिन दोनों ही एक ही राशि में रहते हैं।
कुछ मुख्य अमावस्या :भौमवती अमावस्या, मौनी अमावस्या, शनि अमावस्या, हरियाली अमावस्या, दिवाली अमावस्या, सोमवती अमावस्या, सर्वपितृ अमावस्या।
चेतावनी :- इस दिन किसी भी प्रकार की तामसिक वस्तुओं का सेवन नहीं करना चाहिए। इस दिन शराब आदि नशे से भी दूर रहना चाहिए। इसके शरीर पर ही नहीं, आपके भविष्य पर भी दुष्परिणाम हो सकते हैं। जानकार लोग तो यह कहते हैं। कि चौदस, अमावस्या और प्रतिपदा उक्त 3 दिन पवित्र बने रहने में ही भलाई है।

अम्बिका माँ का स्वयं सिद्ध मन्त्र है।

अम्बिका माँ का स्वयं सिद्ध मन्त्र है।  
 मंत्र : ॐ आठ-भुजी अम्बिका,एक नाम ओंकार , खट्-दर्शन त्रिभुवन में, पाँच पण्डवा सात दीप , चार खूँट नौ खण्ड में, चन्दा सूरज दो प्रमाण , हाथ जोड़ विनती करूँ , मम करो कल्याण !!! 
जब आप यह स्वयं सिद्ध अम्बीका देवी के शाबर मंत्र की १ माला फेर ले तो इसे भी देवी माँ के बाएँ हाथ में समर्पित कर दें! बस आपकी पूजा समाप्त हुई! ऐसा कम से कम ४१ दिन करें! साधना लाभ: इस साधना के अनेकों लाभ हे जो आपको साधना करके पता चलेंगे! तब भी इस पूजा से आपको दुर्गा माँ की विशेष कृपा प्राप्त होती है! आपकी हर मनोकामना पूरी होती है! सुराक्षातमक शक्तियां प्राप्त होती है! समस्त परिस्थितियाँ अनुकूल हो जाती है!       नौकरी मिलती है। पदोन्नति होती है। धन का आवागमनहोता है। व्यापार ठीक चलता है। रोगी ठीक हो जाता है। विवाह भी शीघ्र ही होता है। अगर कोई स्त्री करे तो उसके सुहाग की रक्षा भी होती है! सभी कायॅ सिद्ध होते है। 

एक विशेष उपाय आप सभी के लिये

एक विशेष उपाय आप सभी के लिये ।
घर से नकारात्मक शक्ति हटाने का शक्तिशाली उपाय-
बहुत लोगो परेशानी होती है घर में आते मन नही लगना या छोटी सी बात पर लड़ाई हो जाना ,घर में मन नही लगना एक बैचेनी सी होना जैसे घर में कोई है ,पूजा पाठ से मन हट जाना ये सभी नकारात्मक शक्ति के कारण होता है । इन सबसे से बचने का एक बहुत ही प्रभावशाली उपाय आपको दे रहा हु ।
विधि-
सबसे पहले गंगाजल ,इत्र,गौ मूत्र ,हल्दी और कुंकुम ले। गंगाजल इत्र और गौ मूत्र मिलाये फिर उसमे हल्दी घोले फिर इस घोल से घर के किसी भी कमरे के बीच में एक स्वस्तिक का निर्माण करे । अब स्वस्तिक के मध्य में कुंकुम से एक टि्की लगाये अब इस स्वस्तिक की अक्षत और फूल से पूजा करे साथ में धुप में लगा देना  । अब आँखे बंद करके ये महसूस करे की सभी नेगेटिविटी इस स्वस्तिक में आ रही है 5 मिंट ऐसा सोचे ।इसके बाद उसे लाल कपड़े से ढक दे जिससे उस पर किसी का पैर ना पड़े । बस इतना सा करना है अगले दिन इसको नदी में प्रवाहित करदे ।

क्षेत्रपाल बलीदान मंत्र

क्षेत्रपाल बलीदान मंत्र, ऊँ यं यं यं यंक्ष रूपं दशदिशि वदनं भूमि कंपायमानं । सं सं सं संहार मूर्ति शिर मुकुट जटा शेखरं चंद्र बिम्बं । दं दं दं दीर्घकायं विकृत नखमुखं च उर्ध्व रेखा कपालं । पं पं पं पाप नाशं प्रणमत सततं पशुपतिं भैरवं क्षेत्रपालम। ऊँ आध्यो भैरवो भीषणो नीगदीतः श्री कालराजः क्रमात श्री संहारक भैरवो अप्यथ रूरूश्च उन्मन्तको भैरवः क्रोधश्च चंड कपाल भैरव मूर्तयः प्रतिदिनं दध्यु सदा मंगलम् दुन्दुभितीकृताऽवाहनम् समस्त रिपु भैरवं भैरवं शवारूढा दिगंबरमुपाश्रये । ऊँ ह्रीं बटुकाय आपद्उद्धारणाय कुरू कुरू बटुकाय ह्रीं ऊँ।
इस मंत्र का जाप करते हुए चौमुखा दिपक जला कर भैरव बाबा के लिए चौराहे पर छोड दें। दुर्भाग्य का नाश होता है।रविवार के दिन भी करना है सरसों के तेल से।किसी भी समय कर सकते हैं जब मन प्रसन्न हो। समय का बंधन नहीं है। दिपक को चौराहे पर रखने के बाद पिछे पलट कर ना देखें। दिपक जलाने के बाद 1 नीम्बू के 4 टुकडे काट कर चारों दिशाओ में दूर फेक सकते है क्या?? मन्त्र जाप घर में करने के बाद ही चोमुहं का दीपक चोराए पे छोड़ना हैं या चौराहे पे मन्त्र पढके छोड़ना हैं घर और चौराहे दोनों जगह करना है।सिंदूर का तिलक लगाएं।दिपक में और अपने मस्तक पर तिलक लगाएं।

शिवजी तंत्र विद्या के पुरोधा है।

शिवजी तंत्र विद्या के पुरोधा है। तंत्र में उड्डीश तंत्र विद्या महयोंगों के अनुष्ठानों  के माध्यम से क्षणभर में जातक की मनोकामना पूर्ण होती है।  इस विवद्या के माध्यम से ही अदिकाल में देवताओं एवं ऋषियों ने सिद्धियां प्राप्त किये है औरअनेकों शास्त्रों का शक्ति वरण करवाये है जैसे इंद्र का वज्र,वरुण का पाश,यमराज का दंड,अग्नि को दाहक शक्ति आदि तंत्र गन का उदाहरण है। छह प्रकार है  (१) शान्तिकर्म - जिस तंत्र कर्मप्रयोग करने से रोग,ग्रहपिड़ा बधा,कृत्या की से पैदा दोष शांत होते है उसे शान्ति कर्म कहा जाता है।  
(२) वशीकरण कर्म - जिस तंत्रकर्म का प्रयोग करने से समस्त जीव वशीभूत हो जाते है उसे वशीकरण कहा जाता है।  
 (३) स्तंभन - जिसमे तंत्रकर्म प्रयोग करके गति और मति पृवत्ति को रोक जाता है इसे स्तंभन कहा जाता है।  
(४) विद्वेषण  - इस तंत्र प्रयोग से दो प्रेमियों को, या फिर दो मित्रों को,अथवा दो व्यवहारियों को आपस में लादकर दूर हॉट दिया जाट है उसे विद्वेषण कहते है।  
(५) उच्चाटन - यहाँ तंत्र प्रयोग करके जब किसी व्यक्ति को किसी दूसरे व्यक्ति के व्यवहार से दूर हटाया जाता है या फिर एक साथ से दूसरे स्थान हटाया उसे  उच्चाटन कहते है।   
(६) मारण - जिस तंत्र विद्या के प्रयोग से  किसी भी जीव के प्राण हरण किये जाते है और मारडाला जाता है के मारण कहते है  आदि जो तंत्र प्रयोग मंगलकारी और अमंगलकारी  दोनों तरह से प्रयोग में आते है। जाकी जैसी रहे भावना वैसा ही फल देनेवाली विद्या है।
श्रीराम ज्योतिष सदन
पंडित आशु बहुगुणा । 9760924411

दुर्गा सप्तशती पाठ विधि

  दुर्गा सप्तशती दुर्गा सप्तशती पाठ विधि पूजनकर्ता स्नान करके, आसन शुद्धि की क्रिया सम्पन्न करके, शुद्ध आसन पर बैठ जाएँ। माथे पर अपनी पसंद क...