शिवजी तंत्र विद्या के पुरोधा है। तंत्र में उड्डीश तंत्र विद्या महयोंगों के अनुष्ठानों के माध्यम से क्षणभर में जातक की मनोकामना पूर्ण होती है। इस विवद्या के माध्यम से ही अदिकाल में देवताओं एवं ऋषियों ने सिद्धियां प्राप्त किये है औरअनेकों शास्त्रों का शक्ति वरण करवाये है जैसे इंद्र का वज्र,वरुण का पाश,यमराज का दंड,अग्नि को दाहक शक्ति आदि तंत्र गन का उदाहरण है। छह प्रकार है (१) शान्तिकर्म - जिस तंत्र कर्मप्रयोग करने से रोग,ग्रहपिड़ा बधा,कृत्या की से पैदा दोष शांत होते है उसे शान्ति कर्म कहा जाता है।
(२) वशीकरण कर्म - जिस तंत्रकर्म का प्रयोग करने से समस्त जीव वशीभूत हो जाते है उसे वशीकरण कहा जाता है।
(३) स्तंभन - जिसमे तंत्रकर्म प्रयोग करके गति और मति पृवत्ति को रोक जाता है इसे स्तंभन कहा जाता है।
(४) विद्वेषण - इस तंत्र प्रयोग से दो प्रेमियों को, या फिर दो मित्रों को,अथवा दो व्यवहारियों को आपस में लादकर दूर हॉट दिया जाट है उसे विद्वेषण कहते है।
(५) उच्चाटन - यहाँ तंत्र प्रयोग करके जब किसी व्यक्ति को किसी दूसरे व्यक्ति के व्यवहार से दूर हटाया जाता है या फिर एक साथ से दूसरे स्थान हटाया उसे उच्चाटन कहते है।
(६) मारण - जिस तंत्र विद्या के प्रयोग से किसी भी जीव के प्राण हरण किये जाते है और मारडाला जाता है के मारण कहते है आदि जो तंत्र प्रयोग मंगलकारी और अमंगलकारी दोनों तरह से प्रयोग में आते है। जाकी जैसी रहे भावना वैसा ही फल देनेवाली विद्या है।
श्रीराम ज्योतिष सदन
पंडित आशु बहुगुणा । 9760924411
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