Showing posts with label भगवती श्री काली. Show all posts
Showing posts with label भगवती श्री काली. Show all posts

Saturday, 2 April 2022

भगवती श्री काली

भगवती श्री काली
परमात्मा की पराशक्ति भगवती निराकार होकर भी देवताओं का दु:ख दूर करने के लिये युग-युग में साकार रूप धारण करके अवतार लेती हैं। उनका शरीर ग्रहण उनकी इच्छा का वैभव कहा गया है। सनातन शक्ति जगदम्बा ही महामाया कही गयी हैं। वे ही सबके मन को खींच कर मोह में डाल देती हैं। उनकी माया से मोहित होने के कारण ब्रह्मादि समस्त देवता भी परम तत्त्व को नहीं जान पाते, फिर मनुष्यों की तो बात ही क्या है? वे परमेश्वरी ही सत्त्व, रज और तस- इन तीनों गुणों का आश्रय लेकर समयानुसार सम्पूर्ण विश्व का सृजन, पालन औ संहार किया करती हैं। शिव पुराण के अनुसार उनके काली रूप में अवतार की कथा इस प्रकार है- प्रलयकाल में सम्पूर्ण जगत के जलमग्न होने पर भगवान विष्णु योगनिद्रा में शेषशय्या पर शयन कर रहे थे। उन्हीं दिनों भगवान विष्णु के कानों के मल से दो असुर प्रलयकाल के सूर्य की भाँति तेजस्वी थे। उनके जबड़े बहुत बड़े थे। उनके मुख दाढ़ों के कारण ऐसे विकराल दिखायी देते थे, मानो वे सम्पूर्ण विश्व को खा डालने के लिये उद्यम हों। उन दोनों ने भगवान विष्णु की नाभि से उत्पन्न हुए कमल के ऊपर विराजमान ब्रह्मा जी को मारने के लिये तैयार हो गये। 
ब्रह्माजी ने देखा कि ये दोनों मेरे ऊपर आक्रमण करना चाहते हैं और भगवान विष्णु समुद्र के जल में शेषशय्या पर सो रहे हैं, तब उन्होंने अपनी रक्षा के लिये महामाया परमेश्वरी की स्तुति की और उनसे प्रार्थना किया- 'अम्बिके! तुम इन दोनों असुरों को मोहित करके मेरी रक्षा करो और अजन्मा भगवान नारायण को जगा दो।'
मधु और कैटभ के नाश के लिये ब्रह्मा जी के प्रार्थना करने पर सम्पूर्ण विद्याओं की अधिदेवी जगज्जननी महाविद्या काली फाल्गुन शुक्ला द्वादशी को त्रैलोक्य-मोहिनी शक्ति के रूप में पहले आकाश में प्रकट हुईं। तदनन्तर आकाशवाणी हुई 'कमलासन ब्रह्मा डरो मत। युद्ध में मधु-कैटभ का विनाश करके मैं तुम्हारे संकट दूर करूँगी।' फिर वे महामाया भगवान श्रीहरि के नेत्र, मुख, नासिका और बाहु आदि से निकल कर ब्रह्मा जी के सामने आ खड़ी हुईं। उसी समय भगवान विष्णु भी योगनिद्रा से जग गये। फिर देवाधिदेव भगवान् विष्णु ने अपने सामने मधु और कैटभ दोनों दैत्यों को देखा। उन दोनों महादैत्यों के साथ अतुल तेजस्वी भगवान विष्णु का पाँच हज़ार वर्षों तक घोर युद्ध हुआ। अन्त में महामाया के प्रभाव से मोहित होकर उन असुरों ने भगवान विष्णु से कहा कि 'हम तुम्हारे युद्ध से अत्यन्त प्रभावित हुए। तुम हमसे अपनी इच्छानुसार वर माँग लो।'
भगवान विष्णु ने कहा- 'यदि तुम लोग मुझ पर प्रसन्न हो तो मुझे यह वर दो कि तुम्हारी मृत्यु मेरे हाथों से हो।' उन असुरों ने देखा कि सारी पृथ्वी एकार्णव जल में डूबी है। यदि हम सूखी धरती पर अपने मृत्यु का वरदान इन्हें देते हैं, तब यह चाह कर भी हम को नहीं मार पायेंगे और हमें वरदान देने का श्रेय भी प्राप्त हो जायगा। अत: उन दोनों ने भगवान विष्णु से कहा कि 'तुम हमको ऐसी जगह मार सकते हो, जहाँ जल से भीगी हुई धरती न हो।' 'बहुत अच्छा' कहकर भगवान् विष्णु ने अपना परम तेजस्वी चक्र उठाया और अपनी जाँघ पर उनके मस्तकों को रखकर काट डाला। इस प्रकार भगवती महाकाली की कृपा से उन दैत्यों की बुद्धि भ्रमित हो जाने से उनका अन्त हुआ।
9760924411

दुर्गा सप्तशती पाठ विधि

  दुर्गा सप्तशती दुर्गा सप्तशती पाठ विधि पूजनकर्ता स्नान करके, आसन शुद्धि की क्रिया सम्पन्न करके, शुद्ध आसन पर बैठ जाएँ। माथे पर अपनी पसंद क...