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Sunday, 5 September 2021

षोड्श मातृकाएं

षोड्श मातृकाएं

सूर्य में जो तेज है वह इन्हीं का रूप है। ये शंकर भगवान को सदा शक्ति  संपन्न बनाए रखती हैं। सिद्धेश्वरी सिद्धिरूपा सिद्धिदा ईश्वरी आदि इनके सार्थक नाम हैं। ये दुख शोक भय उद्वेग को नष्ट कर देती हैं…

मंगल कार्यों में भगवान गणपति के साथ षोड्श मातृकाओं का स्मरण एवं पूजन करना चाहिए। इससे कार्य सिद्धि एवं अभ्युदय की प्राप्ति होती है। ये षोडश मातृकाएं इस प्रकार हैं-

गौर पदमा शयी मेघा सावित्री विजया जया।
 देवसेना स्वधा स्वाहामातरो लोक मातरः।।

धृति पुष्टिस्तथा तुष्टिरात्मनः कुलदेवता।
 गणेशेनाधिका ह्योता वृद्धौ पूज्याश्रचः षोडश।।

गौरी, पद्मा, शची, मेधा, सावित्री, विजया, जया, देवसेना, स्वधा, स्वाहा, वैधृति, धृति, पुष्टि , तुष्टी , आद्या तथा कुल देवता - लोकमाताएं हैं। इकना संक्षिप्त परिचय नीचे दिया गया है।

1. माता गौरी

अप्रतिम गौर- वर्ण होने के कारण पार्वती गौरी कही जाती है। ये नारायण, विष्णुमाया और पूर्ण ब्रह्मस्वरूप जी नाम से प्रसिद्ध हैं। ब्रह्मा आगि गेनका सनक आदि मुनिगण तथा मनु प्रभृति सभी इनकी ुपूजा करते हैं। माता गौरी सबकी देखभाल और व्यवस्था करती है। यश मंगल सुख सुविधा आदि व्यावहारिक पदार्थ तथा मोक्ष करना इनका स्वाभाविक गुण है। यह शरणागत वत्सला एवं तेज की अधिष्ठात्री देवी हैं। सूर्य में जो तेज है वह इन्हीं का रूप है। ये शंकर भगवान को सदा शक्ति  संपन्न बनाए रखती हैं। सिद्धेश्वरी सिद्धिरूपा सिद्धिदा ईश्वरी आदि इनके सार्थक नाम हैं। ये दुख शोक भय उद्वेग को नष्ट कर देती हैं। देवी के 108 नामों में गौरी नाम भी परिगणित है। यह नामावली स्वयं भगवती ने अपने पिता दक्ष को बताई थी। उनके कल्याण के लिए (मत्सय पुराण अ. 13)। यह नामावली बहुत ही प्रभावशाली है। जिस स्थान पर यह नामावली लिखकर रख दी जाती है अथवा (किसी देवता के समीप रखकर पूजित होती है। वहां शोक) और दुर्गति प्रवेश नहं हो पाता है। माता गौरी की पूर्ति कान्य कुब्ज के सिद्ध पीठ पर विराजमान है। देवी के 108 पीठों में यह अन्यतम पीठ है। (देवी भा. 7/30/58) विश्व पर जब-जब संकट आया है, तब-तब पराम्बाने उसे दरकर विश्व को बचाया है। (मार्क 68, 79)। माता गौरी ने विश्व को यह वरदान दे रखा है कि जब-जब दानवों से बाधा उपस्थित होगी, तब मैं प्रकट होकर उसका विनाश कर दिया करूंगी।गौरी गणेश की पूजा के बिना कोई कार्य सफल नहीं हो पाता। स्त्रियों के लिए प्रतिदिन पूजा करने का विधान है। आवाहन के मंत्र में माता गौरी इस तरह परिचय दिया गया है। ये हिमालय पुत्री, शंकर की प्रिया और गणेश की जननी हैं-

हमाद्रिनयां देवी वरदां शंकरप्रियाम।
लंबोदरस्य जननींगौरीमावाहयाम्यहम्।।

2. माता पद्मा

लक्ष्मी का एक नाम पद्मा भी है। (खचृक परि. श्री सूक्त श्रीमदभा. 10/46/13) श्री सूक्त में माता लक्ष्मी के लिए पद्मस्थिता, पद्मवर्णा पद्मिनी, पद्ममालिनी, पुष्करीणी, पद्मानना, मद्मोरू, पद्माक्षि, पद्मसंभवा, सरसिजनिलया, सरोजहस्ता, पद्मविद्मपत्रा, पद्मप्रिया, पद्मवलायतीक्ष्थाज्ञी आइद पदों का प्रयोग हुआ है। (त्रचृक, परि, श्री सूकत 4/26) इससे पता चलता है कि लक्ष्मी देवी का कमल से बहुत घनिष्ठ संबंध है। ये सुगंधित कमल की माला पहनती हैं।

3.  माता शची

एक बार इनके सतीत्व पर संकट की घड़ी आ गई। इंद्र की अनुपस्थिति में राजा नहुष को इंद्र के पद पर प्रतिष्ठित किया गया था। राजा नहुष धर्म पथ पर चलने वाले योग्य शासक थे। किंतु इंद्र जैसे महत्त्वपूण्र पद के लिए वह अपने को योग्य नहीं समझते थे…

वेद की अन्य ऋचाओं में माता शची का वर्णन आया है। एक ऋचा में स्वयं देवराज इंद्र ने शची की प्रशंसा में कहा है कि विश्व में जितनी सौभाग्यवती नारियां हैं, उनमें मैंने इंद्राणी को सबसे अधिक सौभाग्यवती सुना है। माता शची अंतर्यामिणी हैं। जैसे सभी अवयवों में सिर प्रधान होता है, वैसे ही माता शची सब में प्रधान हैं।  ये षोड्श शक्तियों में एक शक्ति मानी गई हैं इनकी रूप संपत्ति पर मुग्ध होकर देवताओं के राजा इंद्र ने इनसे विवाह किया था। इंद्र को ये बहुत प्रिय हैं। शची इंद्र सभा में उनके साथ सिंहावन पर विराजती हैं। शची लक्ष्मी के समान प्रतीत होती हैं। ये पतिव्रताओं में श्रेष्ठ और स्त्री जाति की आदर्श हैं ।  एक बार इनके सतीत्व पर संकट की घड़ी आ गई। इंद्र की अनुपस्थिति में राजा नहुष को इंद्र के पद पर प्रतिष्ठित किया गया था। राजा नहुष धर्म पथ पर चलने वाले योग्य शासक थे। किंतु इंद्र जैसे महत्त्वपूर्ण पद के लिए वे अपने को योग्य नहीं समझते थे। परंतु सभी देवताओं ने इन्हें अपना-अपना तेज प्रदान कर समर्थ बनाया और एक वरदान भी दिया कि जिसको तुम देख लोगे उसकी शक्ति तुम में आ जाएगी। यह वरदान बहुत ही महत्त्वपूर्ण था। अब देवों, दानवों, दैत्यों में से कोई नहुष का सामना नहीं कर सकता था। समर्थ नहुष से देवताओं का कार्य अच्छी तरह संपन्न हो रहा था। देवता प्रसन्न थे। राजा नहुष भी प्रसन्न थे, क्योंकि वे भी मनुष्य देह से दुलर्भ स्वर्ग सुख और ऐश्वर्य का भोग कर रहे थे। धीरे-धीरे भोग विलास ने इनको अपने में लिप्त कर लिया। इनकी विवेक शक्ति क्षीण होने लगी। एक बार शची देवी पर इनकी दृष्टि पड़ी। इनकी दृष्टि कलुषित होने लगी। माता शची ने इनको सावधान किया, किंतु नहुष की आंखें नहीं खुलीं। फलतः स्वर्ग से च्युत होकर नहुष को सर्प बनना पड़ा। माता शची का आवाहन मंत्र इस प्रकार है-

दिव्य रूपां विशालाक्षीं शुचिकुंडलधारिणीम्।
रत्नमुक्ताद्यलाष्टङ्। रांशचीभावाहयाम्यहम्।।

विश्व कल्याण के लिए आदि शक्ति ने अपने को उंचास रूपों में अभिव्यक्त किया था। इन्हीं में माता मेधा की भी गणना है। आदि शक्ति जैसे वाराणसी में विशालाक्षी रूप से, विंध्य पर्वत पर विन्ध्यवासिनी रूप से कान्यकुब्ज में गौरी रूप से और देवलोक में शची रूप में विराजती हैं।  यद्यपि माता मेधा सभी स्थलों में और सभी प्राणियों में अनुस्यूत हैं, इसलिए सभी स्थलों में और सभी प्राणियों में इनका प्राकट्य होता रहता है, फिर भी पीठ विशेष में इनका दर्शन प्राप्त शीघ्र फलप्रद होता है। यही आदि शक्ति प्राणी मात्र में शक्ति रूप में विद्यमान हैं। हममें जो निर्णयात्मिका बुद्धिशक्ति है या धाराणात्मिका मेधा शक्ति है, वह आदिशक्ति रूप हैं। माता मेधा के आह्वान के लिए जो मंत्र पढ़ा जाता है, उसमें बतलाया गया है कि माता मेधा बुद्धि में स्वच्छता लाती रहती हैं, इनकी आभा सूर्योदय कालीन सद्यः विकसित कमल की तरह है और ये कमल पर रहती हैं। इनका स्वरूप बहुत ही सौम्य है-

वैवस्वतकृतफुल्लाब्जतुल्याभां पद्मवासिनीम्।
बुद्धिप्रसादिनीं सौभ्यां मेधाभावाहयाम्यहम्।।

 4. मेधा: 

मत्स्य पुराण के अनुसार यह आदि शक्ति प्राणिमात्र में शक्ति रूप में विद्यमान है। हममें जो निर्णयत्मिका बुद्धि शक्ति है वह आदिशक्ति स्वरूप ही है। माता मेधा बुद्धि में स्वच्छता लाती है। इसलिए बुद्धि को प्रखर और तेजस्वी बनाने एवं उसकी प्राप्ति के लिए मेधा का आह्वाहन करना चाहिए। 

आराधना स्त्रोत- 
वैवस्तवतकृत फुल्लाब्जतुल्याभां पद्मवसिनीम्।
 बुद्धि प्रसादिनी सौम्यां मेधाभावाहयाम्यहम्।।

  5. सावित्री-: 

सविता सूर्य के अधिष्ठातृ देवता होने से ही इन्हें सावित्री कहा जाता है। इनका आविर्भाव भगवान श्रीकृष्ण की जिह्वा के अग्रभाग से हुआ है। सावित्री वेदों की अधिष्ठात्री देवी है। संपूर्ण वैदिक वांडम्य इन्हीं का स्वरूप है। ऋग्वेद में कहा गया है कि माता सावित्री के स्मरण मात्र से ही प्राणी के समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं और उसमें अभूतपूर्व नई ऊर्जा के संचार होने लगता है।

 आराधना स्त्रोत- ऊॅ हृीं क्लीं श्री सावित्र्यै स्वाहा।

  6. विजया-: 
विजया, विष्णु, रूद्र और सूर्य के श्रीविग्रहों में हमेशा निवास करती है। इसलिए जो भी प्राणी माता विजया का निरंतर स्मरण व आराधना करता है वह सदा विजयी होता है। 

आराधना स्त्रोत- 
विष्णु रूद्रार्कदेवानां शरीरेष्पु व्यवस्थिताम्।
 त्रैलोक्यवासिनी देवी विजयाभावाहयाभ्यहम।

  7. जया-: 

प्राणी को चहुं ओर से रक्षा प्रदान करने वाली माता जया का प्रादुर्भाव आदि शक्ति के रूप में हुआ है। दुर्गा सप्तशती के कवच में आदि शक्ति से प्रार्थना की गई है कि-' जया में चाग्रत: पातु विजया पातु पृष्ठत:Ó। अर्थात हे मां आप जया के रूप में आगे से और विजया के रूप में पीछे से मेरी रक्षा करें। 

आवाहन स्त्रोत: 
सुरारिमथिनीं देवी देवानामभयप्रदाम्। 
त्रैलोक्यवदिन्तां देवी जयामावाहयाम्यहम्।।

  8. षष्ठी-: 
लोक कल्याण के लिये माता भगवती ने अपना आविर्भाव ब्रह्मा के मन से किया है। अत: ये ब्रह्मा की मानस कन्या कही जाती हंै। ये जगत पर शासन करती है। इनकी सेना के प्रधान सेनापति कुमार स्कन्द है। ब्रह्मा की आज्ञा से इनका विवाह कुमार स्कन्द से हुआ। माता पष्ठी जिसे देवसेना भी कहा जाता है मूल प्रकृति के छठे अंश से प्रकट हुई है। इसलिए इनका नाम षष्ठी देवी है। माता पुत्रहीन को पुत्र, प्रियाहीन को प्रिया-पत्नी और निर्धन को धन प्रदान करती हैं। विश्व के तमाम शिशुओं पर इनकी कृपा बरसती है। प्रसव गृह में छठे दिन, 21वें दिन और अन्नप्राशन के अवसर पर षष्ठी देवी की पूजा की जाती है। 

आवाहन स्त्रोत :

 मयूरवाहनां देवी खड्गशक्तिधनुर्धराम्। 
आवाहये देवसेनां तारकासुरमर्दिनीम्।।

  9. स्वधा-: 
पुराणों के अनुसार जबतक माता स्वधा का आविर्भाव नहीं हुआ था तब तक पितरों को भूख और प्यास से पीडि़त रहना पड़ता था। ब्रह्मवैवत्र्त पुराण के अनुसार स्वधा देवी का नाम लेने मात्र से ही समस्त तीर्थ स्नान का फल प्राप्त हो जाता है, और संपूर्ण पापों से मुक्ति मिल जाती है। ब्राह्मण वायपेय यज्ञ के फल का अधिकारी हो जाता है। यदि स्वधा, स्वधा, स्वधा, तीन बार उच्चारण किया जाए तो श्राद्ध, बलिवैश्वदेव और तर्पण का फल प्राप्त हो जाता है। माता याचक को मनोवंछित वर प्रदान करती है। 

आराधना स्त्रोत:
 ब्रह्मणो मानसी कन्यां शश्र्वत्सुस्थिरयौवनाम्। 
पूज्यां पितृणां देवानां श्राद्धानां फलदां भजे।।

  10. स्वाहा: 
मनुष्य द्वारा यज्ञ या हवण के दौरान जो आहुति दी जाती है उसे संबंधित देवता तक पहुंचाने में स्वाहा देवी ही मदद करती है। इन्हीं के माध्यम से देवताओं का अंश उनके पास पहुंचता है। इनका विवाह अग्नि से हुआ है। अर्थात मनुष्य और देवताओं को जोडऩे की कड़ी का काम माता अपने पति अग्नि देव के साथ मिलकर करती हैं। इनकी पूजा से मनुष्य की समस्त अभिलाषाएं पूर्ण होती है। 

आराधना स्त्रोत:
 स्वाहां मन्त्राड़्गयुक्तां च मन्त्रसिद्धिस्वरूपिणीम।
 सिद्धां च सिद्धिदां नृणां कर्मणां फलदां भजे।।

  11. मातर:(मातृगण:) 
शुम्भ- निशुम्भ के अत्याचारों से जब समस्त जगत त्राहिमाम कर रहा था तब देवताओं की स्तुति से प्रसन्न होकर माता जगदंबा हिमालय पर प्रकट हुई। इनके रूप- लावन्य को देखकर राक्षसी सेना मोहित हो गई और एक-एक कर घूम्रलोचन, चंड-मुंड, रक्त-वीज समेत निशुम्भ और शुम्भ माता जगदंबा के विभिन्न रूपों का ग्रास बन गये और समस्त लोको में फिर दैवीय शक्ति की स्थापना हुई। अत: माता अपने अनुयायियों की रक्षा हेतु जब भी आवश्यकता होती है तब- तब प्रकट होकर तमाम राक्षसी प्रकृति से उनकी रक्षा करती हैं। 

आवाहन स्त्रोत: 
आवाहयाम्यहं मातृ: सकला लोकपूजिता:।
 सर्वकल्याणरूपिण्यो वरदा दिव्य भूषिता: ।।

  12. लोक माताएं-:
 राक्षसराज अंधकासुर के वध के उपरांत उसके रक्त से उन्पन्न होने वालेे अनगिनत अंधक का भक्षण करने करने के लिए भगवान विष्णु ने अपने अंगों से बत्तीस मातृकाओं की उत्पति की। ये सभी महान भाग्यशालिनी बलवती तथा त्रैलोक्य के सर्जन और संहार में समर्थ हंै। समस्त लोगों में विष्णु और शिव भक्तों की ये लोकमाताएं रक्षा कर उसका मनोरथ पूर्ण करती हैं। 

आवाहन स्त्रोत: 
आवाहये लोकमातृर्जयन्तीप्रमुखा: शुभा:।
 नानाभीष्टप्रदा शान्ता: सर्वलोकहितावहा:।।

 आवाहये लोक मातृर्जगत्पालन संस्थिता:।
 शक्राद्यैरर्चिता देवी स्तोत्रैराराधनैरतथा।

  13. घृति-: 
माता सती ने अपने पिता दक्ष प्रजापति के प्रजापति पद से पदच्युत होने के पश्चात् उनके हित के लिए साठ कन्याओं के रूप में खुद को प्रकट किया। जिसकी पूजा कर राजा दक्ष पुन: प्रजापति हो गए। मत्स्य पुराण के अनुसार पिण्डारक धाम में आज भी देवी घृति रूप में विराजमान हंै। माता घृति की कृपा से ही मनुष्य धैर्य को प्राप्त करता हुआ धर्म मार्ग में प्रवेश करता है।

  14. पुष्टि-: 
माता पुष्टि की कृपा से ही संसार के समस्त प्राणियों का पोषण होता है। इसके बिना सभी प्राणी क्षीण हो जाते हंै।

 आवाहन स्त्रोत : 
पोषयन्ती जगत्सर्व शिवां सर्वासाधिकाम ।
 बहुपुष्टिकरीं देवी पुष्टिमावाहयाम्यहम।।

  15. तुष्टि-: 
माता तुष्टि के कारण ही प्राणियों में संतोष की भावना बनी रहती है। माता समस्त प्राणियों का प्रयोजन सद्धि करती रहती हैं।

 आवाहन स्त्रोत:
 आवाहयामि संतुष्टि सूक्ष्मवस्त्रान्वितां शुभाम्।
 संतोष भावयित्रीं च रक्षन्तीमध्वरंं शुभम्।

  16. कुलदेवता-: 
मातृकाओं के पूजन क्रम में प्रथम भगवान गणेश तथा अंत में कुलदेवता की पूजा करनी चाहिए। इससे वंश, कुल, कुलाचार तथा मर्यादा की रक्षा होती है। इससे वंश नष्ट नहीं होता है और सुख, शांति तथा ऐश्वर्य की प्रप्ति होती है। 

आवाहन स्त्रोत: 
चूंकि अलग-अलग कुल के अलग-अलग देवता व देवियां होते हंै।
 इसलिए सबका मंत्र अलग-अलग है।

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