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मंगलवार, 16 अप्रैल 2019
देवी धूमावती दस महाविद्याओं में सातवें स्थान में अवस्थित, भगवान शिव के विधवा स्वरूप में, कुरूप तथा अपवित्र देवी धूमावती। देवी धूमावती अकेली तथा स्व: नियंत्रक हें, देवी के स्वामी रूप में कोई अवस्थित नहीं हें तथा देवी विधवा हैं। दस महाविद्याओं में सातवे स्थान पर देवी अवस्थित है तथा उग्र स्वाभाव वाली अन्य देविओ के सामान ही उग्र तथा भयंकर हैं। देवी का सम्बन्ध ब्रह्माण्ड के महाप्रलय के पश्चात् उस स्थिति से हैं, जहा वो अकेली होती हैं अर्थात समस्त स्थूल जगत के विनाश के कारण शून्य स्थिति रूप में अकेली विराजमान रहती हैं। देवी दरिद्रो, गरीबो के घरों में दरिद्रता के रूप में विद्यमान रहती हैं तथा अलक्ष्मी नाम से जानी जाती हैं। अलक्ष्मी, देवी लक्ष्मी कि ही बहन है, परन्तु इन के गुण तथा स्वाभाव पूर्णतः विपरीत हैं। देवी धूमावती की उपस्थिति, सूर्य अस्त के प्रदोष काल से रात्रि में रहती है तथा देवी अंधकारमय स्थानों पर आश्रय लेती हैं या निवास करती हैं, अंधरे स्थानों में निवास करती हैं। देवी का सम्बन्ध स्थाई अस्वस्थता से भी हैं फिर वो शारीरिक हो या मानसिक। देवी के अन्य नामो में निऋति भी है, जिन का सम्बन्ध मृत्यु, क्रोध, दुर्भाग्य, सडन, अपूर्ण अभिलाषाओं जैसे नकारात्मक विचारों तथा तथ्यों से है जो जीवन में नकारात्मक भावनाओ को जन्म देता हैं। देवी कुपित होने पर समस्त अभिलषित मनोकामनाओ, सुख तथा समृद्धि का नाश कर देती है। देवी धूमावती धुऐ के स्वरूप में विद्यमान है तथा सती के भयंकर तथा उग्र स्वाभाव का प्रतिनिधित्व करती हैं। देवी धूमावती को आज तक कोई योद्धा युद्ध में नहीं परास्त कर पाया, तभी देवी का कोई संगी नहीं हैं। दुर्गा सप्तशती के अनुसार, देवी आदि शक्ति ने एक बार प्रण किया, कि जो मुझे युद्ध में परास्त करेगा वही मेरा पति होगा, मैं उसी से विवाह करुँगी। परन्तु ऐसा आज तक नहीं हो पाया, उन्हें युद्ध में कोई परास्त नहीं कर पाया, परिणामस्वरूप देवी अकेली हैं इन का कोई पति या स्वामी नहीं हैं। नारद पंचरात्र के अनुसार, देवी धूमावती ने ही उग्र चण्डिका तथा उग्र तारा जैसे उग्र तथा भयंकर प्रवृति वाली देविओ को अपने शरीर से प्रकट किया या उग्रता तथा भयंकरता देवी धूमावती ने ही प्रदान की। देवी की ध्वनि, हजारो गीदड़ो के एक साथ चिल्लाने जैसे हैं, जो महान भय दायक हैं। देवी ने स्वयं भगवान शिव को खा लिया था, देवी का सम्बन्ध भूख से भी हैं, देवी सर्वदा अतृप्त तथा भूखी है परिणामस्वरूप देवी दुष्ट दैत्यों के मांस का भक्षण तक करती हैं, परन्तु सर्वदा भूखी या श्रुधा-ग्रस्त ही रहती हैं। देवी धूमावती, भगवान शिव के विधवा के रूप में विद्यमान हैं, अपने पति शिव को निगल जाने के कारन देवी विधवा हैं। देवी का भौतिक स्वरूप क्रोध से उत्पन्न दुष्परिणाम तथा पश्चाताप को भी इंगित करती हैं। इन्हें लक्ष्मी जी की ज्येष्ठ, ज्येष्ठा नाम से भी जाना जाता हैं जो स्वयं कई समस्याओं को उत्पन्न करती हैं। देवी धूमावती का भौतिक स्वरुप। देवी धूमावती का वास्तविक रूप धुऐ जैसा हैं तथा इसी स्वरूप में देवी विद्यमान हैं। शारीरिक स्वरूप से देवी; कुरूप, उबार खाबर या बेढ़ंग शरीर वाली, विचलित स्वाभाव वाली, लंबे कद वाली, तीन नेत्रों से युक्त तथा मैले वस्त्र धारण करने वाली हैं। देवी के दांत तथा नाक लम्बी कुरूप हैं, कान डरावने, लड़खड़ाते हुए हाथ-पैर, स्तन झूलते हुए प्रतीत होती हैं। देवी खुले बालो से युक्त, एक वृद्ध विधवा का रूप धारण की हुई हैं। अपने बायें हाथ में देवी ने सूप तथा दायें हाथ में मानव खोपड़ी से निर्मित खप्पर धारण कर रखा हैं कही कही वो आशीर्वाद भी दे रही हैं। देवी का स्वाभाव अत्यंत अशिष्ट हैं तथा देवी सर्वदा अतृप्त तथा भूखी-प्यासी हैं। देवी काले वर्ण की है तथा इन्होंने सर्पो, रुद्राक्षों को अपने आभूषण स्वरूप धारण कर रखा हैं। देवी श्मशान घाटो में मृत शरीर से निकले हुए स्वेत वस्त्रो को धारण करती हैं तथा श्मशान भूमि में ही निवास करती हैं, समाज से बहिष्कृत हैं। देवी कौवो द्वारा खीचते हुए रथ पर आरूढ़ हैं। देवी का सम्बन्ध पूर्णतः स्वेत वस्तुओं से ही हैं तथा लाल वर्ण से सम्बंधित वस्तुओं का पूर्णतः त्याग करती हैं। देवी धूमावती के उत्पत्ति से सम्बंधित कथा। देवी धूमावती के प्रादुर्भाव से सम्बंधित दो कथायें प्राप्त होती हैं। पहली प्रजापति दक्ष के यज्ञ से सम्बंधित हैं। भगवान शिव की पहली पत्नी सती के पिता, प्रजापति दक्ष ( जो ब्रह्मा जी के पुत्र थे ), ने एक बृहस्पति श्रवा नाम के यज्ञ का आयोजन किया, जिसमें उन्होंने तीनो लोको से समस्त प्राणिओ को निमंत्रित किया। परन्तु दक्ष, भगवान शिव से घृणा करते थे तथा दक्ष ने भगवान शिव सहित उन से सम्बंधित किसी को भी, अपने यज्ञ आयोजन में आमंत्रित नहीं किया। देवी सती ने जब देखा की तीनो लोको से समस्त प्राणी उन के पिता जी के यज्ञ आयोजन में जा रहे है, उन्होंने अपने पति भगवान शिव ने अपने पिता के घर जाने कि अनुमति मांगी। भगवान शिव दक्ष के व्यवहार से परिचित थे, उन्होंने सती को अपने पिता के घर जाने की अनुमति नहीं दी तथा नाना प्रकार से उन्हें समझने की चेष्टा की। परन्तु देवी सती नहीं मानी, अंततः भगवान शिव ने उन्हें अपने गणो के साथ जाने की अनुमति दे दी। सती अपने पिता दक्ष से उन के यज्ञानुष्ठान स्थल में घोर अपमानित हुई। दक्ष ने अपनी पुत्री सती को स्वामी सहित, खूब उलटा सीधा कहा। परिणामस्वरूप, देवी अपने तथा स्वामी के अपमान से तिरस्कृत हो, सम्पूर्ण यजमानो के सामने देखते ही देखते अपनी आहुति यज्ञ कुण्ड में दे दी तथा देवी की मृत्यु हो गई, तदनंतर यज्ञ स्थल में हाहाकार मच गया, सभी अत्यंत भयभीत हो गए। तब देवी सती, धुऐ के स्वरूप में यज्ञ कुण्ड से बहार निकली। स्वतंत्र तंत्र के अनुसार, देवी पार्वती भगवान शिव के साथ, अपने निवास स्थान कैलाश में बैठी हुई थी। देवी, तीव्र क्षुधा से ग्रस्त थी (भूखी थी) तथा उन्होंने शिव जी से अपनी क्षुधा निवारण हेतु कुछ देने का निवेदन किया। भगवान शिव ने उन्हें प्रतीक्षा करने के लिया कहा, कुछ समय पश्चात् उन्होंने पुनः निवेदन किया। परन्तु शिव जी ने उन्हें कुछ प्रतीक्षा करने का पुनः आस्वासन दिया। बार बार भगवान शिव के इस तरह आस्वासन देने पर, देवी धैर्य खो क्रोधित हो गई तथा शिव जी को ही उठाकर निगल लिया। तदनंतर देवी के शरीर से एक धूम्र राशि निकली तथा उन्हें धुऐ ने ढक लिया। भगवान शिव, देवी के शरीर से बहार आये तथा कहा, आपकी ये सुन्दर आकृति धुऐ से ढक जाने के कारन धूमावती नाम से प्रसिद्ध होगी। अपने पति भगवान शिव को खा लेने के परिणामस्वरूप देवी विधवा हुई, देवी स्वामी हिना हैं। देवी धूमावती से सम्बंधित अन्य तथ्य। चुकी देवी ने क्रोध वश अपने ही पति को खा लिया, देवी का सम्बन्ध दुर्भाग्य, अपवित्र, बेडौल, कुरूप जैसे नकारात्मक तथ्यों से हैं। देवी श्मशान तथा अंधेरे स्थानों में निवास करने वाली है, समाज से बहिष्कृत है, (देवी से सम्बंधित चित्र घर में नहीं रखना चाहिए) अपवित्र स्थानों पर रहने वाली हैं। भगवान शिव ही धुऐ के रूप में देवी धूमावती में विद्यमान है तथा भगवान शिव से कलह करने के कारण देवी कलह प्रिया भी हैं। प्रत्येक कलहो में देवी के शक्ति ही उत्पात मचाती हैं। देवी, चराचर जगत के अपवित्र प्रणाली के प्रतिक स्वरूप है, चंचला, गलिताम्बरा, विरल दंता, मुक्त केशी, शूर्प हस्ता, काक ध्वजिनी, रक्षा नेत्रा, कलह प्रिया इत्यादि देवी के अन्य प्रमुख नाम हैं। देवी का सम्बन्ध पूर्णतः अशुभता तथा नकारात्मक तत्वों से हैं, देवी के आराधना अशुभता तथा नकारात्मक विचारो के निवारण हेतु की जाती हैं। देवी धूमावती की उपासना विपत्ति नाश, रोग निवारण, युद्ध विजय, मारण, उच्चाटन इत्यादि कर्मों में की जाती हैं। देवी के कोप से शोक, कलह, क्षुधा, तृष्णा होते है। देवी प्रसन्न होने पर रोग तथा शोक दोनों विनाश कर देती है और कुपित होने पर समस्त भोग कर रहे कामनाओ का नाश कर देती हैं। आगम ग्रंथो के अनुसार, अभाव, संकट, कलह, रोग इत्यादि को दूर रखने हेतु देवी के आराधना की जाती हैं। संक्षेप में देवी धूमावती से सम्बंधित मुख्य तथ्य। मुख्य नाम : धूमावती। अन्य नाम : चंचला, गलिताम्बरा, विरल दंता, मुक्त केशी, शूर्प हस्ता, काक ध्वजिनी, रक्षा नेत्रा, कलह प्रिया। भैरव : विधवा, कोई भैरव नहीं। भगवान विष्णु के २४ अवतारों से सम्बद्ध : भगवान मत्स्य अवतार। कुल : श्री कुल। दिशा : दक्षिण। स्वभाव : तामसी गुण सम्पन्न। कार्य : अपवित्र स्थानों में निवास कर, रोग, समस्त प्रकार से सुख को हरने, दरिद्रता, शत्रुओ का विनाश करने वाली। शारीरिक वर्ण : काला।
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