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Tuesday, 16 April 2019
प्रथम महाविद्या काली (दस महाविद्या) दस महाविद्या में काली का स्थान पहला है। उनके बारे में सबसे ज्यादा ग्रंथ लिखे गए हैं। उनमें से अधिकतर लुप्त हो चुके हैं। उनकी महिमा निराली है। क्रोध में भरी एवं दुष्टों के संहार में करने के लिए हमेशा तत्पर रहने वाली माता भक्तों पर हमेशा कृपा बरसाती रहती हैं। वह अपने साधक भक्तों को समय-समय पर अपनी उपस्थिति का आभास भी कराती रहती हैं। विभिन्न ग्रंथों में इनके कई नाम और भेद हैं जो विशिष्ट ज्ञान के लिए ही जरूरी है। सामान्य तौर पर इनके दो रूप ही अधिक प्रचलित हैं। वे श्यामा काली (दक्षिण काली) और सिद्धिकाली (गुह्य काली) जिन्हें काली नाम से भी पुकारा जाता है। ब्रह्मा, विष्णु, इंद्र, वरुण, कुबेर, यम,, महाकाल, चंद्र, राम, रावण, यम, राजा बलि, बालि, वासव, विवस्वान सरीखों ने इनकी उपासना कर शक्तियां अर्जित की हैं। इनके रूपों की तरह मंत्र भी अनेक हैं लेकिन सामान्य साधकों को उलझन से बचाने के लिए उनका जिक्र न कर सीधे मूल मंत्रों पर आता हूं। एकाक्षरी मंत्र-- क्रीं इसके ऋषि भैरव ऋषि, गायत्री छंद, दक्षिण काली देवी, कं बीज, ईं शक्ति: एवं रं कीलकं है। यह अत्यंत प्रभावी व कल्याणकारी मंत्र है। इसकी साधना से ही राजा विश्वामित्र को ब्राह्मणत्व की प्राप्ति हुई थी। शवरूढ़ां महाभीमां घोरद्रंष्ट्रां वरप्रदम् से ध्यान कर एक लाख जप कर दशांश हवन करें। करन्यास व हृदयादि न्यास-- ऊं क्रां, ऊं क्रीं, ऊं क्रूं, ऊं क्रैं, ऊं क्रौं, ऊं क्रं, ऊं क्र: से करन्यास व हृदयादि न्यास करें। द्वयक्षर मंत्र-- क्रीं क्रीं ऋषि भैरव, छंद गायत्री, बीज क्रीं, शक्ति स्वाहा, कीलकं हूं है। बाकी पूर्वोक्त तरीके से करें। काली पूजा प्रयोग काली पूजा के सभी मंत्रों में 22 अक्षर वाले मंत्र को सबसे प्रभावी माना गया है। अन्य मंत्रों के प्रयोग में इसी मंत्र के अनुरूप पूजाविधान और यंत्रार्चन किया जाता है। इसका प्रयोग बेहद उग्र और आज की स्थिति में थोड़ी कठिन है। अत: मैं सामान्य जानकारी तो दूंगा पर साथ ही सलाह भी है कि सामान्य साधक इसके कठिन प्रयोग से बचें। यदि तीव्र इच्छा हो और उसी क्षेत्र में आगे बढऩा चाहते हों तो योग्य गुरु के निर्देशन में इसे करें। बाइस अक्षर मंत्र-- क्रीं क्रीं क्रीं हूं हूं ह्रीं ह्रीं दक्षिणे कालिके क्रीं क्रीं क्रीं हूं हूं ह्रीं ह्रीं स्वाहा। विनियोग-- अस्य मंत्रस्य भैरव ऋषि:, उष्णिक् छंद:, दक्षिण कालिका देवता, ह्रीं बीजं, हूं शक्ति:, क्रीं कीलकं सर्वाभिष्ट सिद्धेयर्थे जपे विनियोग:। अंगन्यास-- ऊं कुरुकुल्लायै नम: मुखे, ऊं विरोधिन्यै नम: दक्षिण नासिकायां, ऊं विप्रचित्तायै नम: वाम नासिकायां, ऊं उग्रायै नम: दक्षिण नेत्रे, ऊं उग्रप्रभायै नम: वाम नेत्रे, ऊं दीप्तायै नम: दक्षिण कर्णे, ऊं नीलायै नम: वाम कर्णे, ऊं घनायै नम: नाभौ, ऊं बालाकायै नम: हृदये, ऊं मात्रायै नम: ललाटे, ऊं मुद्रायै नम: दक्षिण स्कंधे, ऊं मीतायै नम: वाम स्कंधे। इसके बाद बूतशुदिध आदि कर्म करें। ह्रीं बीज से प्राणायाम करें। ऋष्यादि न्यास-- भैरव ऋषिये नम: शिरसि, उष्णिक छंदसे नम: हृदि, दक्षिणकालिकायै नम: हृदये, ह्रीं बीजाय नम: गुह्ये, हूं शक्तये नम: पादयो:, क्रीं कीलकाय नम: नाभौ। विनियोगाय नम: सर्वांगे। षडंगन्यास-- ऊं क्रां हृदयाय नम:, ऊं क्रीं शिरसे स्वाहा, ऊं क्रूं शिखायै वषट्, ऊं क्रैं कवचाय हुं, ऊं क्रौं नेत्रत्रयाय वौषट्, ऊं क्र: अस्त्राय फट्। ध्यान चतुर्भुजां कृष्णवर्णां मुंडमाला विभूषिताम्, खडग च दक्षिणो पाणौ विभ्रतीन्दीवर-द्वयम्। द्यां लिखंती जटायैकां विभतीशिरसाद्वयीम्, मुंडमाला धरां शीर्षे ग्रीवायामय चापराम्।। वक्षसा नागहारं च विभ्रतीं रक्तलोचनां, कृष्ण वस्त्रधरां कट्यां व्याघ्राजिन समन्विताम्। वामपदं शव हृदि संस्थाप्य दक्षिण पदम्, विलसद् सिंह पृष्ठे तु लेलिहानासव पिबम्।। सट्टहासा महाघोरा रावै मुक्ता सुभीषणा।। विधि एवं फल-- सूने घर, निर्जन स्थान, वन, मंदिर (काली को हो तो श्रेष्ठ), नदी के किनारे एवं श्मशान में इस मंत्र के जप से विशेष और शीघ्र फल की प्राप्ति होती है। 22 अक्षर मंत्र का दो लाख जप कर कनेर के फूलों से दशांश हवन करना चाहिए। काली की नियमित उपासना करने का मतलब यही होत है कि साधक उच्चकोटि का है और उसने पहले ब्रह्मा, विष्णु, शिव, गौरी, गणेश, सूर्य और कुछ महाविद्या की उपासना कर ली है और अब वह साधना के चरम की ओर अग्रसर हो रहा है। कुछ कठिन प्रयोग-- जो साधक स्त्री की योनि को देखते हुए दस हजार जप करता है, वह ब़हस्पति के समान होकर लंबी आयु और काफी धन पाता है। बिखरे बालों के साथ नग्न होकर श्मशान में दस हजार जप करने से सभी कामनाएं सिद्ध होती हैं। हविष्यान्न का सेवन करता हुआ जप करे तो विद्या, लक्ष्मी एवं यंश को प्राप्त करेगा। गुह्यकाली के कुछ मंत्र 1-नवाक्षर-- क्रीं गुह्ये कालिका क्रीं स्वाहा। 2-चतुर्दशाक्षर मंत्र-- क्रौं हूं ह्रीं गुह्ये कालिके हूं हूं ह्रीं ह्रीं स्वाहा। 3-पंचदशाक्षर मंत्र-- हूं ह्रीं गुह्ये कालिके क्रीं क्रीं हूं हूं ह्रीं ह्रीं स्वाहा। ध्यान द्यायेन्नीलोत्पल श्यामामिन्द्र नील समुद्युतिम्। धनाधनतनु द्योतां स्निग्ध दूर्वादलद्युतिम्।। ज्ञानरश्मिच्छटा- टोप ज्योति मंडल मध्यगाम्। दशवक्त्रां गुह्य कालीं सप्त विंशति लोचनाम्।।
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