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Tuesday 16 April 2019
श्रीसुदर्शन-चक्र-विद्या १॰ रोग, बाधा-निवारक प्रयोग अपने सामने भगवान् विष्णु या भगवान् कृष्ण या भगवान् दत्तात्रेय की मूर्ति रखे। यथा-शक्ति मूर्ति का पूजन करे। पहले से तैयार व सिद्ध ‘श्रीसुदर्शन-चक्र’ का पूजन करे। पूजन में गो-घृत का दीपक, सुन्धित धूप, श्वेत पदार्थों का नैवेद्य (दूध-शक्कर, दूध-भात, दही-भात, खीर आदि) तथा पुष्प चढ़ाए। पूजन के बाद प्रार्थना करे। बाधा, रोग-निवारण हेतु विधिवत् संकल्प कर जल छोड़े। फिर पहले से तैयार सिद्ध किए हुए ‘श्रीसुदर्शन-चक्र’ को किसी विद्युत-पंखे के ब्लेड्स निकालकर रॉड में चक्र को स्क्रू द्वारा पक्का किया जा सकता है। अब इस ‘चक्र’ लगे पंखे को चालू करके उसके सामने ताँबे या चाँदी के पात्र में गंगा-जल रखे। पात्र में रखे गंगा-जल के ऊपर हाथ रखकर ‘श्रीसुदर्शन-चक्र-माला-मन्त्र‘ को १ या ३ या ११ या १८ बार पढ़े। पढ़ने के बाद पंखे को बन्द करे और सुदर्शन-चक्र द्वारा अभिमन्त्रित जल को काँच की बोतल में भर-कर पवित्र स्थान में सुरक्षित रखे। इस जल को अभिचार-बाधा, पिशाच-बाधा या असाध्य बाधा से ग्रस्त व्यक्ति को तीन दिन आचमन-स्वरुप देने से बाधाएँ नष्ट होंगी। अधिक दिन प्रयोग करने पर पक्षाघात, धनुर्वात (टिटेनस) के रोग भी दूर हो सकते हैं। अभीमन्त्रित जल के मण्डल (वृत्त) में रोगी को रखने से भी बाधाएँ नष्ट होती है। उक्त प्रकार से ‘सुदर्शन-चक्र-माला-मन्त्र’ द्वारा औषधियों को भी अभिमन्त्रित किया जा सकता है। इससे रोगी को शीघ्र लाभ होता है। विभूति को अभिमन्त्रित कर बाधा-ग्रस्त व्यक्ति को अपने पास रखने हेतु दिया जा सकता है। इससे अभिचार-प्रयोगों का प्रभाव पूर्णतया नष्ट हो जाता है। अभिमन्त्रित जल का प्रोक्षण (मार्जन) अन्न, वस्त्र, खाद्य-पदार्थ आदि पर करने से उनके दोष भी दूर होते हैं। अभिचार-पीडित व्यक्ति को उक्त प्रकार से अभिमन्त्रित जल से क्रोध-पूर्वक प्रताडित करने से अभिचार तुरन्त दूर होता है।रक्षा-प्रयोग यदि कोई व्यक्ति अत्यधिक बीमार हो या बाह्य-बाधा, अभिचार-प्रयोग आदि द्वारा विशेषतया पीड़ित हो, तो उसके लिए निम्न प्रकार से ‘रक्षा-प्रयोग’ करना चाहिए। ‘प्रयोग’ हेतु शुभ दिन, शुभ मुहूर्त आदि देखने की आवश्यकता नहीं है। प्रयोग ब्राह्म-मुहूर्त में प्रारम्भ करे। स्नान आदि से पवित्र होकर पहले ‘विनियोग’ आदि सहित ‘श्रीसुदर्शन-चक्र’ का पूजन करे। ‘विनियोग’ में, जिस व्यक्ति के लिए प्रयोग करना है, उसके नाम सहित रक्षा या संकट मुक्ति हेतु कहे। पूजन के बाद ‘श्रीसुदर्शन चक्र’ को दाहिने हाथ में लेकर अथवा उस पर दाहिना हाथ रखकर ‘श्रीसुदर्शन-चक्र-माला-मन्त्र’ का १८ बार जप करे। प्रत्येक जप के बाद – श्रीसुदर्शन-चक्र-मन्त्रः ‘अमुक’ व्यक्ति-रक्षार्थे सम्पूर्णम्’ कहे। जप के बाद चक्र को पूजा-स्थान में ही भगवान् विष्णु, भगवान् कृष्ण या भगवान् दत्तात्रेय की मूर्ति या चित्र के नीचे रखे। चक्र तीन दिन तक वहीं रखे। यदि कुछ अनुभव-परिणाम पहले दिन से दिखने लगे, तो भी प्रयोग तीन दिन तक करे। संकट-मुक्ति के बाद व्यक्ति की शक्ति के अनुसार ‘चक्र’ का पूजन करे। पूजन का प्रसाद सभी व्यक्ति ग्रहण कर सकते हैं।
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