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Tuesday, 16 April 2019
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॥ नवग्रह मन्त्र ॥ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ब्रह्मा मुरारिः त्रिपुरान्तकारी भानुः शशी भूमि-सुतो बुधश्च। गुरूश्च शुक्रः शनि राहु केतवेः सर्वे ग्रहाः शान्तिः करा भवन्तु॥ ॐ सुर्यः शौर्यमथेन्दुर उच्च पदवीं सं मंगलः सद् बुद्धिं च बुधो गुरूश्च गुरूतां शुक्रः सुखं शं शनिः राहुः बाहुबलं करोतु सततं केतुः कुलस्यः उन्नतिं नित्यं प्रीतिकरा भवन्तु मम ते सर्वे अनुकूला ग्रहाः॥ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॥ नवग्रहस्तोत्रम् ॥ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ जपा कुसुम संकाशं काश्यपेयं महद्युतिम्। तमोऽरिं सर्वपापघ्नं प्रणतोऽस्मि दिवाकरम् ॥१॥ दधि शंख तुषाराभं क्षीरोदार्णव संभवम्। नमामि शशिनं सोमं शम्भोः मुकुट भूषणम्॥२॥ धरणी गर्भ संभूतं विद्युत्कान्ति समप्रभम्। कुमारं शक्ति हस्तं च मंगलं प्रणमाम्यहम्॥३॥ प्रियंगु कलि काश्यामं रूपेणा प्रतिमं बुधम्। सौम्यं सौम्य गुणोपेतं तं बुधं प्रणमाम्यहम्॥४॥ देवानां च ऋषीणां च गुरुं काञ्चन संनिभम्। बुद्धिभूतं त्रिलोकेशं तं नमामि बृहस्पतिम्॥५॥ हिम कुन्द मृणालाभं दैत्यानां परमं गुरुम्। सर्व शास्त्र प्रवक्तारं भार्गवं प्रणमाम्यहम्॥६॥ नीलांजन समाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम्। छाया मार्तण्ड संभूतं तं नमामि शनैश्चरम्॥७॥ अर्ध कायं महावीर्यं चन्द्र आदित्य विमर्दनम्। सिंहिका गर्भ संभूतं तं राहुं प्रणमाम्यहम्॥८॥ पलाश पुष्प संकाशं तारका ग्रह मस्तकम्। रौद्रं रौद्रात्मकं घोरं तं केतुं प्रणमाम्यहम्॥९॥ इति व्यास मुखोद् गीतं यः पठेत् सुसमाहितः। दिवा वा यदि वा रात्रौ विघ्न शान्तिर भविष्यति॥१०॥ नर नारी नृपाणां च भवेद् दुःस्वप्न नाशनम्। ऐश्वर्यं अतुलं तेषाम् आरोग्यं पुष्टि वर्धनम्॥११॥ गृह नक्षत्रजाः पीडाः तस्कराग्नि समुद् भवाः। ताः सर्वाः प्रशमं यान्ति व्यासो ब्रू तेन संशयः॥१२॥ ॐ ॐ ॐ ॥ इति श्रीव्यास विरचितं नवग्रहस्तोत्रं संपूर्णम् ॥ ॐ ॐ ॐ
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