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Tuesday, 16 April 2019
चौंसठ योगिनी नाम-स्तोत्रम् गजास्या सिंह-वक्त्रा च, गृध्रास्या काक-तुण्डिका । उष्ट्रा-स्याऽश्व-खर-ग्रीवा, वाराहास्या शिवानना ।। उलूकाक्षी घोर-रवा, मायूरी शरभानना । कोटराक्षी चाष्ट-वक्त्रा, कुब्जा च विकटानना ।। शुष्कोदरी ललज्जिह्वा, श्व-दंष्ट्रा वानरानना । ऋक्षाक्षी केकराक्षी च, बृहत्-तुण्डा सुराप्रिया ।। कपालहस्ता रक्ताक्षी च, शुकी श्येनी कपोतिका । पाशहस्ता दंडहस्ता, प्रचण्डा चण्डविक्रमा ।। शिशुघ्नी पाशहन्त्री च, काली रुधिर-पायिनी । वसापाना गर्भरक्षा, शवहस्ताऽऽन्त्रमालिका ।। ऋक्ष-केशी महा-कुक्षिर्नागास्या प्रेतपृष्ठका । दन्द-शूक-धरा क्रौञ्ची, मृग-श्रृंगा वृषानना ।। फाटितास्या धूम्रश्वासा, व्योमपादोर्ध्वदृष्टिका । तापिनी शोषिणी स्थूलघोणोष्ठा कोटरी तथा ।। विद्युल्लोला वलाकास्या, मार्जारी कटपूतना । अट्टहास्या च कामाक्षी, मृगाक्षी चेति ता मताः ।। ।। फल-श्रुति ।। चतुष्षष्टिस्तु योगिन्यः पूजिता नवरात्रके । दुष्ट-बाधां नाशयन्ति, गर्भ-बालादि-रक्षिकाः ।। न डाकिन्यो न शाकिन्यो, न कूष्माण्डा न राक्षसाः । तस्य पीड़ां प्रकुर्वन्ति, नामान्येतानि यः पठेत् ।। बलि-पूजोपहारैश्च, धूप-दीप-समर्पणैः । क्षिप्रं प्रसन्ना योगिन्यो, प्रयच्छेयुर्मनोरथान् ।। कृष्णा-चतुर्दशी-रात्रावुपवासी नरोत्तमः । प्रणवादि-चतुर्थ्यन्त-नामभिर्हवनं चरेत् ।। प्रत्येकं हवनं चासां, शतमष्टोत्तरं मतम् । स-सर्पिषा गुग्गुलुना, लघु-बदर-मानतः ।। साधक कृष्ण-पक्ष की चतुर्दशी को उपवास करे । रात्रि में गुग्गुल और घृत से विभक्ति युक्त प्रत्येक नाम के आगे प्रणव ॐ लगाकर, प्रत्येक नाम से १०८ आहुतियाँ अर्पित करे । पूरी तरह शुद्ध होकर, एकाग्र-मन से जो इन नामों का पाठ करता है, उसे डाकिनी, शाकिनी, कूष्माण्ड और राक्षस आदि किसी प्रकार की पीड़ा नहीं होती । धूप-दीपादि उपचारों सहित पूजन और बलि प्रदान करने से योगनियाँ शीघ्र प्रसन्न होकर सभी कामनाओं को पूरा करती है । हवन के लिये चौंसठ योगिनी नाम इस प्रकार है, प्रत्येक नाम के आदि में ‘ॐ’ तथा अन्त में स्वाहा लगाकर हवन करें - १॰ ॐ गजास्यै स्वाहा, २॰ सिंह-वक्त्रायै, ३॰ गृध्रास्यायै, ४॰ काक-तुण्डिकायै , ५॰ उष्ट्रास्यायै, ६॰ अश्व-खर-ग्रीवायै, ७॰ वाराहस्यायै, ८॰ शिवाननायै, ९॰ उलूकाक्ष्यै, १०॰ घोर-रवायै, ११॰ मायूर्यै, १२॰ शरभाननायै, १३॰ कोटराक्ष्यै, १४॰ अष्ट-वक्त्रायै, १५॰ कुब्जायै, १६॰ विकटाननायै, १७॰ शुष्कोदर्यै, १८॰ ललज्जिह्वायै, १९॰ श्व-दंष्ट्रायै, २०॰ वानराननायै, २१॰ ऋक्षाक्ष्यै, २२॰ केकराक्ष्यै, २३॰ बृहत्-तुण्डायै, २४॰ सुरा-प्रियायै, २५॰ कपाल-हस्तायै, २६॰ रक्ताक्ष्यै, २७॰ शुक्यै, २८॰ श्येन्यै, २९॰ कपोतिकायै, ३०॰ पाश-हस्तायै, ३१॰ दण्ड-हस्तायै, ३२॰ प्रचण्डायै, ३३॰ चण्ड-विक्रमायै, ३४॰ शिशुघ्न्यै, ३५॰ पाश-हन्त्र्यै, ३६॰ काल्यै, ३७॰ रुधिर-पायिन्यै, ३८॰ वसा-पानायै, ३९॰ गर्भ-भक्षायै, ४०॰ शव-हस्तायै, ४१॰ आन्त्र-मालिकायै, ४२॰ ऋक्ष-केश्यै, ४३॰ महा-कुक्ष्यै, ४४॰ नागास्यायै, ४५॰ प्रेत-पृष्ठकायै, ४६॰ दन्द-शूक-धरायै, ४७॰ क्रौञ्च्यै, ४८॰ मृग-श्रृंगायै, ४९॰ वृषाननायै, ५०॰ फाटितास्यायै, ५१॰ धूम्र-श्वासायै, ५२॰ व्योम-पादायै, ५३॰ ऊर्ध्व-दृष्टिकायै, ५४॰ तापिन्यै, ५५॰ शोषिण्यै, ५६॰ स्थूल-घोणोष्ठायै, ५७॰ कोटर्यै, ५८॰ विद्युल्लोलायै, ५९॰ बलाकास्यायै, ६०॰ मार्जार्यै, ६१॰ कट-पूतनायै, ६२॰ अट्टहास्यायै, ६३॰ कामाक्ष्यै, ६४॰ मृगाक्ष्यै ।
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