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Tuesday, 16 April 2019
अथ मूर्तिरहस्यम् ऋषिरुवाच ॐ नन्दा भगवती नाम या भविष्यति नन्दजा। स्तुता सा पूजिता भक्त्या वशीकुर्याज्जगत्त्रयम्॥1॥ कनकोत्तमकान्ति: सा सुकान्तिकनकाम्बरा। देवी कनकवर्णाभा कनकोत्तमभूषणा॥2॥ कमलाङ्कुशपाशाब्जैरलंकृतचतुर्भुजा। इन्दिरा कमला लक्ष्मी: सा श्री रुक्माम्बुजासना॥3॥ या रक्त दन्तिका नाम देवी प्रोक्ता मयानघ। तस्या: स्वरूपं वक्ष्यामि शृणु सर्वभयापहम्॥4॥ रक्ताम्बरा रक्त वर्णा रक्तसर्वाङ्गभूषणा। रक्तायुधा रक्त नेत्रा रक्त केशातिभीषणा॥5॥ रक्त तीक्ष्णनखा रक्त दशना रक्त दन्तिका। पतिं नारीवानुरक्ता देवी भक्तं भजेज्जनम्॥6॥ वसुधेव विशाला सा सुमेरुयुगलस्तनी। दीर्घौ लम्बावतिस्थूलौ तावतीव मनोहरौ॥7॥ कर्कशावतिकान्तौ तौ सर्वानन्दपयोनिधी। भक्तान् सम्पाययेद्देवी सर्वकामदुघौ स्तनौ॥8॥ खड्गं पात्रं च मुसलं लाङ्गलं च बिभर्ति सा। आख्याता रक्त चामुण्डा देवी योगेश्वरीति च॥9॥ अनया व्याप्तमखिलं जगत्स्थावरजङ्गमम्। इमां य: पूजयेद्भक्त्या स व्यापनेति चराचरम्॥10॥ (भुक्त्वा भोगान् यथाकामं देवीसायुज्यमापनुयात्।) अधीते य इमं नित्यं रक्त दन्त्या वपु:स्तवम्। तं सा परिचरेद्देवी पतिं प्रियमिवाङ्गना॥11॥ शाकम्भरी नीलवर्णा नीलोत्पलविलोचना। गम्भीरनाभिस्त्रिवलीविभूषिततनूदरी॥12॥ सुकर्कशसमोत्तुङ्गवृत्तपीनघनस्तनी। मुष्टिं शिलीमुखापूर्णं कमलं कमलालया॥13॥ पुष्पपल्लवमूलादिफलाढयं शाकसञ्चयम्। काम्यानन्तरसैर्युक्तं क्षुत्तृण्मृत्युभयापहम्॥14॥ कार्मुकं च स्फुरत्कान्ति बिभ्रती परमेश्वरी। शाकम्भरी शताक्षी सा सैव दुर्गा प्रकीर्तिता॥15॥ विशोका दुष्टदमनी शमनी दुरितापदाम्। उमा गौरी सती चण्डी कालिका सा च पार्वती॥16॥ शाकम्भरीं स्तुवन् ध्यायञ्जपन् सम्पूजयन्नमन्। अक्षय्यमश्रुते शीघ्रमन्नपानामृतं फलम्॥17॥ भीमापि नीलवर्णा सा दंष्ट्रादशनभासुरा। विशाललोचना नारी वृत्तपीनपयोधरा॥18॥ चन्द्रहासं च डमरुं शिर: पात्रं च बिभ्रती। एकावीरा कालरात्रि: सैवोक्ता कामदा स्तुता॥19॥ तजोमण्डलुदुर्धर्षा भ्रामरी चित्रकान्तिभृत्। चित्रानुलेपना देवी चित्राभरणभूषिता॥20॥ चित्रभ्रमरपाणि: सा महामारीति गीयते। इत्येता मूर्तयो देव्या या: ख्याता वसुधाधिप॥21॥ जगन्मातुश्चण्डिकाया: कीर्तिता: कामधेनव:। इदं रहस्यं परमं न वाच्यं कस्यचित्त्वया॥22॥ व्याख्यानं दिव्यमूर्तीनामभीष्टफलदायकम्। तस्मात् सर्वप्रयत्नेन देवीं जप निरन्तरम्॥23॥ सप्तजन्मार्जितैर्घोरैर्ब्रह्महत्यासमैरपि। पाठमात्रेण मन्त्राणां मुच्यते सर्वकिल्बिषै:॥24॥ देव्या ध्यानं मया ख्यातं गुह्याद् गुह्यतरं महत्। तस्मात् सर्वप्रयत्नेन सर्वकामफलप्रदम्॥25॥ (एतस्यास्त्वं प्रसादेन सर्वमान्यो भविष्यसि। सर्वरूपमयी देवी सर्व देवीमयं जगत्। अतोऽहं विश्वरूपां तां नमामि परमेश्वरीम्।)
अथ वैकृतिकं रहस्यम् ॐ त्रिगुणा तामसी देवी सात्त्विकी या त्रिधोदिता। सा शर्वा चण्डिका दुर्गा भद्रा भगवतीर्यते॥1॥ योगनिद्रा हरेरुक्ता महाकाली तमोगुणा। मधुकैटभनाशार्थ यां तुष्टावाम्बुजासन:॥2॥ दशवक्त्रा दशभुजा दशपादाञ्जनप्रभा। विशालया राजमाना त्रिंशल्लोचनमालया॥3॥ स्फुरद्दशनदंष्ट्रा सा भीमरूपापि भूमिप। रूपसौभाग्यकान्तीनां सा प्रतिष्ठा महाश्रिय:॥4॥ खड्गबाणगदाशूलचक्रशङ्खभुशुण्डिभृत्। परिघं कार्मुकं शीर्ष निश्च्योतद्रुधिरं दधौ॥5॥ एषा सा वैष्णवी माया महाकाली दुरत्यया। आराधिता वशीकुर्यात् पूजाकर्तुश्चराचरम्॥6॥ सर्वदेवशरीरेभ्यो याऽऽविर्भूतामितप्रभा। त्रिगुणा सा महालक्ष्मी: साक्षान्महिषमर्दिनी॥7॥ श्वेतानना नीलभुजा सुश्वेतस्तनमण्डला। रक्त मध्या रक्त पादा नीलजङ्घोरुरुन्मदा॥8॥ सुचित्रजघना चित्रमाल्याम्बरविभूषणा। चित्रानुलेपना कान्तिरूपसौभाग्यशालिनी॥9॥ अष्टादशभुजा पूज्या सा सहस्त्रभुजा सती। आयुधान्यत्र वक्ष्यन्ते दक्षिणाध:करक्रमात्॥10॥ अक्षमाला च कमलं बाणोऽसि: कुलिशं गदा। चक्रं त्रिशूलं परशु: शङ्खो घण्टा च पाशक:॥11॥ शक्तिर्दण्डश्चर्म चापं पानपात्रं कमण्डलु:। अलंकृतभुजामेभिरायुधै: कमलासनाम्॥12॥ सर्वदेवमयीमीशां महालक्ष्मीमियां नृप। पूजयेत्सर्वलोकानां स देवानां प्रभुर्भवेत्॥13॥ गौरीदेहात्समुद्भूता या सत्त्वैकगुणाश्रया। साक्षात्सरस्वती प्रोक्ता शुम्भासुरनिबर्हिणी॥14॥ दधौ चाष्टभुजा बाणमुसले शूलचक्रभृत्। शङ्खं घण्टां लाङ्गलं च कार्मुकं वसुधाधिप॥15॥ एषा सम्पूजिता भक्त्या सर्वज्ञत्वं प्रयच्छति। निशुम्भमथिनी देवी शुम्भासुरनिबर्हिणी॥16॥ इत्युक्तानि स्वरूपाणि मूर्तीनां तव पार्थिव। उपासनं जगन्मातु: पृथगासां निशामय॥17॥ महालक्ष्मीर्यदा पूज्या महाकाली सरस्वती। दक्षिणोत्तरयो: पूज्ये पृष्ठतो मिथुनत्रयम्॥18॥ विरञ्चि: स्वरया मध्ये रुद्रो गौर्या च दक्षिणे। वामे लक्ष्म्या हृषीकेश: पुरतो देवतात्रयम्॥19॥ अष्टादशभुजा मध्ये वामे चास्या दशानना। दक्षिणेऽष्टभुजा लक्ष्मीर्महतीति समर्चयेत्॥20॥ अष्टादशभुजा चैषा यदा पूज्या नराधिप। दशानना चाष्टभुजा दक्षिणोत्तरयोस्तदा॥21॥ कालमृत्यू च सम्पूज्यौ सर्वारिष्टप्रशान्तये। यदा चाष्टभुजा पूज्या शुम्भासुरनिबर्हिणी॥22॥ नवास्या: शक्त य: पूज्यास्तदा रुद्रविनायकौ। नमो देव्या इति स्तोत्रैर्महालक्ष्मीं समर्चयेत्॥23॥ अवतारत्रयार्चायां स्तोत्रमन्त्रास्तदाश्रया:। अष्टादशभुजा सैव पूज्या महिषमर्दिनी॥24॥ महालक्ष्मीर्महाकाली सैव प्रोक्ता सरस्वती। ईश्वरी पुण्यपापानां सर्वलोकमहेश्वरी॥25॥ महिषान्तकरी येन पूजिता स जगत्प्रभु:। पूजयेज्जगतां धात्रीं चण्डिकां भक्त वत्सलाम्॥26॥ अघ्र्यादिभिरलंकारैर्गन्धपुष्पैस्तथाक्षतै:। धू पैर्दीपैश्च नैवेद्यैर्नानाभक्ष्यसमन्वितै:॥27॥ रुधिराक्ते न बलिना मांसेन सुरया नृप। (बलिमांसादिपूजेयं विप्रवज्र्या मयेरिता॥ तेषां किल सुरामांसैर्नोक्ता पूजा नृप क्वचित्।) प्रणामाचमनीयेन चन्दनेन सुगन्धिना॥28॥ सकर्पूरैश्च ताम्बूलैर्भक्ति भावसमन्वितै:। वामभागेऽग्रतो देव्याश्छिन्नशीर्ष महासुरम्॥29॥ पूजयेन्महिषं येन प्राप्तं सायुज्यमीशया। दक्षिणे पुरत: सिंहं समग्रं धर्ममीश्वरम्॥30॥ वाहनं पूजयेद्देव्या धृतं येन चराचरम्। कुर्याच्च स्तवनं धीमांस्तस्या एकाग्रमानस:॥31॥ तत: कृताञ्जलिर्भूत्वा स्तुवीत चरितैरिमै:। एकेन वा मध्यमेन नैकेनेतरयोरिह॥32॥ चरितार्ध तु न जपेज्जपञिछद्रमवापनुयात्। प्रदक्षिणानमस्कारान् कृत्वा मूर्ध्नि कृताञ्जलि:॥33॥ क्षमापयेज्जगद्धात्रीं मुहुर्मुहुरतन्द्रित:। प्रतिश्लोकं च जुहुयात्पायसं तिलसर्पिषा॥34॥ जुहुयात्स्तोत्रमन्त्रैर्वा चण्डिकायै शुभं हवि:। भूयो नामपदैर्देवीं पूजयेत्सुसमाहित:॥35॥ प्रयत: प्राञ्जलि: प्रह्व: प्रणम्यारोप्य चात्मनि। सुचिरं भावयेदीशां चण्डिकां तन्मयो भवेत्॥36॥ एवं य: पूजयेद्भक्त्या प्रत्यहं परमेश्वरीम्। भुक्त्वा भोगान् यथाकामं देवीसायुज्यमापनुयात्॥37॥ यो न पूजयते नित्यं चण्डिकां भक्त वत्सलाम्। भस्मीकृत्यास्य पुण्यानि निर्दहेत्परमेश्वरी॥38॥ तस्मात्पूजय भूपाल सर्वलोकमहेश्वरीम्। यथोक्ते न विधानेन चण्डिकां सुखमाप्स्यसि॥38॥
सरल तंत्र साधना .. आपकेलिए ही .. मंत्रो का एक अपना ही संसार हैं ऐसे ऐसे मंत्र आपको प्राप्त हो सकते हैं .. की आप को विश्वास भी नहीं होगा की यह भी संभव है या इन कार्यों के लिए भी मन्त्र दिए हुए हैं . मंत्र पर विश्वास अविश्वास की बात नहीं .. बल्कि उन्हें परखने का भाव होना चहिये और फिर अगर कुछ कमी पाई जाती हैं उनके परिणाम की ...... तो उन कारणों पर विचार किसी योग्य से करे ...... न की पूरे मंत्र या साधना क्षेत्र को ही एक आप अपना प्रमाण पत्र जारी कर दे .. सूर्य की तेजस्विता से कोन नहीं वाकिफ होगा . प्रत्यक्ष देव जो हमारे सामने हैं उनकी प्रखरता को किसी के प्रमाण की जरुरत नहीं हैं .अगर वह प्रखरता आपके व्यक्तिव्य में आ जाये तो ... फिर क्या बात हैं.. जब भी किसी से बात चित करने जाना हो तो इस मंत्र का १०८ बार उच्चारण करके जाए . अप पाएंगे सामने वाला आपकी बातों के प्रति अब और ज्यादा सहयोगी रुख अपनाएगा .. और आप कहीं ज्यादा सफलता का अनुभव करेंगे ..बस कोई और विधान नहीं हैं. मंत्र जप ही पर्याप्त हैं .. मंत्र : ॐ धं काली काली स्वाहा
श्री बटुक भैरव अपराध क्षमा पन स्तोत्र ॐ गुरोः सेवा व्याकत्वा गुरुबचन शकतोपि न भवे भवत्पुजा – ध्यानाज्ज्प हवन –यागा दिरहित : ! त्व्दर्चा- निर्माणे क्वचिदपि न यत्नं च कृतवान , जग ज्जाल-ग्रस्तों झटितिकुरु हादर मायि विभो !! 1 !! प्रभु दुर्गा सुनो ! तव शरणतां सोयधिगतवान , कृपालों ! दुखार्त: कमपि भवदन्नयं प्रकथये ! सुहृत ! सम्पतेयहं सरल –विरल साधक जन , स्तवदन्य: क्स्त्राता भव-दहन –दाहं शमयति !!2!! वदान्यों मन्यसत्वं विविध जनपालों वभसि वै , दयालुर्दी नर्तान भवजलधिपारम गमयसि ! अतस्त्वतो याचे नति- नियमतोयकिञ्च्नधन , सदा भूयात भावः पदनलिनयोस्ते तिमिरहा !!3!! अजापूर्वो विप्रो मिलपदपरो योयतिपतितो , महामूर्खों दुष्टो वृजननिरत: पामरनृप: ! असत्पाना सक्त्तो यवन युवती व्रातरमण, प्रभा वातत्वन्नान्म: परमपदवी सोप्याधिगत !!4!! द्यां दीर्घाम दीने बटुक ! कुरु विश्वम्भर मयी, न चन्यस्संत्राता परम शिव मां पलाया विभो ! महाशचर्याम प्राप्तस्त्व सरलदृष्टच्या विरहित: , कृपापूर्णेनेत्रे: कजदल निर्भेमा खचयतात !!5!! सहस्ये किं हंसो नहि तपति दीनं जनचयम, घनान्ते किं चंर्दोंयसमकर- निपातो भुवितले! कृपादृष्टे स्तेहं भयहर भिवों किं विरहितों, जले वा हमर्ये वा घनरस- निपातो न विषम!!6!! त्रिमूर्तित्वं गीतों हरिहर- विधात्मकगुणो ! निराकारा: शुद्ध: परतरपर: सोयप्यविषय: , द्या रूपं शान्तम मुनिगननुतं भक्तदायितं !!7!! तपोयोगं संख्यम यम-नियम –चेत: प्रयजनं, न कौलाचर्चा-चक्रम हरिहरविधिनां प्रियतरम! न जाने ते भक्तिम परममुनिमार्गाम मधु विधि, तथाप्येषा वाणी परिरटति नित्यं तव यश :!!8!! न मे कांक्षा धर्मे न वसुनिच्ये राज्य निवहे: , न मे स्त्रीणा भोगे सखि-सुत-कटुम्बेषु न च मे! यदा यद्द्द भाव्यं भवतु भगवन पूर्वसकृतान , ममैत्तू प्रथर्यम तव विमल- भक्ति: प्रभवतात!!9!! कियांस्तेस्मदभार: पतित पतिता स्तारयासि भो, मद्न्य: क: पापी ययन बिमुख पाठ रहित :! दृढ़ो मे विश्वासस्तव नियति रुद्धार विषय:, सदा स्याद विश्र्म्भ: कवचिदपि मृषा माँ च भवतात!!10!! भवदभावादभिन्नो व्यसन- निरत: को मदपरो , मदान्ध: पाप आत्मा बटुक !शिव ! ते नाम रहित ! उदरात्मन बन्धो नहि तवकतुल्य: कालुपहा , पुनः संचिन्त्यैवं कुरु हृदि यथेच्छसि तथा !!11!! जपान्ते स्नानांते हमुषसि च निशिथे जपति यो , महा सौख्यं देवी वितरति नु तस्मै प्रमुदित:! अहोरात्रम पाशर्वे परिवसति भकतानु गमनों , वयोन्ते संहृष्ट: परिनियति भकतानस्व भुवनम !!12!!
सप्तसती रहस्य के सन्दर्भ में कुछ बाते .......... आज भी भारतीयमानस में कुछ ग्रन्थ ऐसे हैं जो घर घर में उपस्थित हैं और वे धार्मिक तो हैं पर अपने आप में एक पूरी परंपरा को भी हमारे सामने रखते हैं की कैसे थे हमारे पूर्वज .. या हमारा समाज किन किन उच्च आदर्शो से भरा रहा हैं. और इन ग्रंथो में राम चरितमानस और महाभारत और बाल्मीकि कृत रामायण का स्थान अपने आप में बहुत उच्च हैं. और यह तो उस काल की गाथा हमारे सामने रखते हैं , पर इनके साथ एक साधनात्मक ग्रन्थ भी ऐसा हैं जो घर घर में प्रशंशित हैं यह अलग बात हैं की वह घर घर में न हो . पर उसकी उच्चता को लेकर शायद ही कोई संदेह हो उस ग्रन्थ का नाम हैं “दुर्गा सप्तसती” या जिसे चंडी पाठ के नाम से भी संबोधित किया जाता हैं. आज भी यह ग्रन्थ अपने लगभग मूल स्वरुप में ही उपलब्ध हैं , और लाखो लोग रोजाना इसका पाठ करते हैं , पर क्या यह सिर्फ पाठ करने का ग्रन्थ हैं .. इसका उत्तर हाँ भी हैं और नहीं भी . इसमें कोई दो तर्क नहीं हं की इस ग्रन्थ का निर्माण हजारो तान्त्रिको उच्च मनस्वियो और प्रकांड तंत्र ज्ञाताओ का परिणाम हैं क्योंकि जितनी उच्च रहस्यमयता . उच्च ज्ञान इसमें समाहित हैं वह भला इतना आसान तो नहीं . और इस ग्रन्थ के सभी ७०० श्लोक अपने आप में अद्भुत हैं , एक और जहाँ भगवद गीता में ७०० श्लोक हैं वहीँ इस ग्रन्थ में ७०० श्लोको का होना कुछ एक अद्भुत साम्य का प्रतीक हैं . महाकाली , कुछ तंत्र ग्रंथो के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण की बहिन मानी जाती हैं . और क्या इस तरह से इसे नहीं देखा जा सकता की एक भाई के उच्च ज्ञान का प्रतीक हैं तो दूसरा बहिन की उच्च ज्ञान से सम्बंधित ग्रन्थ हैं . अब चूँकि इसके सभी श्लोक अपनेआप में मंत्रमय हैं तो कोई भी श्लोक जो आप अपनी क्षमतानुसार चुनते हैं वह आपको लाभ देगा ही??? . इस प्रशन पर भी थोडा सा विचार कर ले . ऐसा सही तो लगता हैं पर हैं नहीं ... मंत्रो का मनमाना उपयोग कभी कभी भयंकर समस्याए ला सकता हैं और अनेको ऐसे उदहारण भी हैं . तंत्र साहित्य इस बात के लिए बारम्बार सचेत करता हैं की आपने आप कोई भी मंत्र का चुनाव न करे . क्योंकि साधक जब तंत्र ग्रंथो का अध्ययन करता हैं तो पाता हैं की वहां तो मंत्रो का वर्गीकरण भी आया हैं जैसे की सिद्ध मंत्र , अरि मंत्र (शत्रु मंत्र ) असिद्ध मन्त्र , इस तरह के अनेको वर्गीकरण पर
श्री बटुक-बलि-मन्त्रः- घर के बाहर दरवाजे के बायीं ओर दो लौंग तथा गुड़ की डली रखें । निम्न तीनों में से किसी एक मन्त्र का उच्चारण करें - १॰ “ॐ ॐ ॐ एह्येहि देवी-पुत्र, श्री मदापद्धुद्धारण-बटुक-भैरव-नाथ, सर्व-विघ्नान् नाशय नाशय, इमं स्तोत्र-पाठ-पूजनं सफलं कुरु कुरु सर्वोपचार-सहितं बलि मिमं गृह्ण गृह्ण स्वाहा, एष बलिर्वं बटुक-भैरवाय नमः।” २॰ “ॐ ह्रीं वं एह्येहि देवी-पुत्र, श्री मदापद्धुद्धारक-बटुक-भैरव-नाथ कपिल-जटा-भारभासुर ज्वलत्पिंगल-नेत्र सर्व-कार्य-साधक मद्-दत्तमिमं यथोपनीतं बलिं गृह्ण् मम् कर्माणि साधय साधय सर्वमनोरथान् पूरय पूरय सर्वशत्रून् संहारय ते नमः वं ह्रीं ॐ ।।” ३॰ “ॐ बलि-दानेन सन्तुष्टो, बटुकः सर्व-सिद्धिदः। रक्षां करोतु मे नित्यं, भूत-वेताल-सेवितः।।
रोग बाधा निवारण साधना.(पाताल क्रिया) यह साधना पाताल क्रिया से सम्बंधित है,इस साधना कि कई अनुभूतिया है,और साधना भि एक दिन कि है.कई येसे रोग या बीमारिया है जिनका निवारण नहीं हो पाता ,और दवाईया भि काम नहीं करती ,येसे समय मे यह प्रयोग अति आवश्यक है.यह प्रयोग आज तक अपनी कसौटी पर हमेशा से ही खरा उतरा है . प्रयोग सामग्री :- एक मट्टी कि कुल्हड़ (मटका) छोटासा,सरसों का तेल ,काले तिल,सिंदूर,काला कपडा . प्रयोग विधि :- शनिवार के दिन श्याम को ४ या ४:३० बजे स्नान करके साधना मे प्रयुक्त हो जाये,सामने गुरुचित्र हो ,गुरुपूजन संपन्न कीजिये और गुरुमंत्र कि कम से कम ५ माला अनिवार्य है.गुरूजी के समक्ष अपनी रोग बाधा कि मुक्ति कि लिए प्रार्थना कीजिये.मट्टी कि कुल्हड़ मे सरसों कि तेल को भर दीजिये,उसी तेल मे ८ काले तिल डाल दीजिये.और काले कपडे से कुल्हड़ कि मुह को बंद कर दीजिये.अब ३६ अक्षर वाली बगलामुखी मंत्र कि १ माला जाप कीजिये.और कुल्हड़ के उप्पर थोडा सा सिंदूर डाल दीजिये.और माँ बगलामुखी से भि रोग बाधा मुक्ति कि प्रार्थना कीजिये.और एक माला बगलामुखी रोग बाधा मुक्ति मंत्र कीजिये. मंत्र :- || ओम ह्लीम् श्रीं ह्लीम् रोग बाधा नाशय नाशय फट || मंत्र जाप समाप्ति के बाद कुल्हड़ को जमींन गाड दीजिये,गड्डा प्रयोग से पहिले ही खोद के रख दीजिये.और ये प्रयोग किसी और के लिए कर रहे है तो उस बीमार व्यक्ति से कुल्हड़ को स्पर्श करवाते हुये कुल्हड़ को जमींन मे गाड दीजिये.और प्रार्थना भि बीमार व्यक्ति के लिए ही करनी है.चाहे व्यक्ति कोमा मे भि क्यों न हो ७ घंटे के अंदर ही उसे राहत मिलनी शुरू हो जाती है.कुछ परिस्थितियों मे एक शनिवार मे अनुभूतिया कम हो तो यह प्रयोग आगे भि किसी शनिवार कर सकते है
नाथ सम्प्रदाय के बारह पंथ :- नाथ सम्प्रदाय के अनुयायी मुख्यतः बारह शाखाओं में विभक्त हैं, जिसे बारह पंथ कहते हैं । इन बारह पंथों के कारण नाथ सम्प्रदाय को ‘बारह-पंथी’ योगी भी कहा जाता है । प्रत्येक पंथ का एक-एक विशेष स्थान है, जिसे नाथ लोग अपना पुण्य क्षेत्र मानते हैं । प्रत्येक पंथ एक पौराणिक देवता अथवा सिद्ध योगी को अपना आदि प्रवर्तक मानता है । नाथ सम्प्रदाय के बारह पंथों का संक्षिप्त परिचय इस प्रकार है - १॰ सत्यनाथ पंथ - इनकी संख्या 31 बतलायी गयी है । इसके मूल प्रवर्तक सत्यनाथ (भगवान् ब्रह्माजी) थे । इसीलिये सत्यनाथी पंथ के अनुयाययियों को “ब्रह्मा के योगी” भी कहते हैं । इस पंथ का प्रधान पीठ उड़ीसा प्रदेश का पाताल भुवनेश्वर स्थान है । २॰ धर्मनाथ पंथ – इनकी संख्या २५ है । इस पंथ के मूल प्रवर्तक धर्मराज युधिष्ठिर माने जाते हैं । धर्मनाथ पंथ का मुख्य पीठ नेपाल राष्ट्र का दुल्लुदेलक स्थान है । भारत में इसका पीठ कच्छ प्रदेश धिनोधर स्थान पर हैं । ३॰ राम पंथ - इनकी संख्या ६१ है । इस पंथ के मूल प्रवर्तक भगवान् श्रीरामचन्द्र माने गये हैं । इनका प्रधान पीठ उत्तर-प्रदेश का गोरखपुर स्थान है । ४॰ नाटेश्वरी पंथ अथवा लक्ष्मणनाथ पंथ – इनकी संख्या ४३ है । इस पंथ के मूल प्रवर्तक लक्ष्मणजी माने जाते हैं । इस पंथ का मुख्य पीठ पंजाब प्रांत का गोरखटिल्ला (झेलम) स्थान है । इस पंथ का सम्बन्ध दरियानाथ व तुलनाथ पंथ से भी बताया जाता है । ५॰ कंथड़ पंथ - इनकी संख्या १० है । कंथड़ पंथ के मूल प्रवर्तक गणेशजी कहे गये हैं । इसका प्रधान पीठ कच्छ प्रदेश का मानफरा स्थान है । ६॰ कपिलानी पंथ - इनकी संख्या २६ है । इस पंथ को गढ़वाल के राजा अजयपाल ने चलाया । इस पंथ के प्रधान प्रवर्तक कपिल मुनिजी बताये गये हैं । कपिलानी पंथ का प्रधान पीठ बंगाल प्रदेश का गंगासागर स्थान है । कलकत्ते (कोलकाता) के पास दमदम गोरखवंशी भी इनका एक मुख्य पीठ है । ७॰ वैराग्य पंथ - इनकी संख्या १२४ है । इस पंथ के मूल प्रवर्तक भर्तृहरिजी हैं । वैराग्य पंथ का प्रधान पीठ राजस्थान प्रदेश के नागौर में राताढुंढा स्थान है ।इस पंथ का सम्बन्ध भोतंगनाथी पंथ से बताया जाता है । ८॰ माननाथ पंथ - इनकी संख्या १० है । इस पंथ के मूल प्रवर्तक राजा गोपीचन्द्रजी माने गये हैं । इस समय माननाथ पंथ का पीठ राजस्थान प्रदेश का जोधपुर महा- मन्दिर नामक स्थान बताया गया है । ९॰ आई पंथ - इनकी संख्या १० है । इस पंथ की मूल प्रवर्तिका गुरु गोरखनाथ की शिष्या भगवती विमला देवी हैं । आई पंथ का मुख्य पीठ बंगाल प्रदेश के दिनाजपुर जिले में जोगी गुफा या गोरखकुई नामक स्थान हैं । इनका एक पीठ हरिद्वार में भी बताया जाता है । इस पंथ का सम्बन्ध घोड़ा चौली से भी समझा जाता है । १०॰ पागल पंथ – इनकी संख्या ४ है । इस पंथ के मूल प्रवर्तक श्री चौरंगीनाथ थे । जो पूरन भगत के नाम से भी प्रसिद्ध हैं । इसका मुख्य पीठ पंजाब- हरियाणा का अबोहर स्थान है । ११॰ ध्वजनाथ पंथ - इनकी संख्या ३ है । इस पंथ के मूल प्रवर्तक हनुमानजी माने जाते हैं । वर्तमान में इसका मुख्य पीठ सम्भवतः अम्बाला में है । १२॰ गंगानाथ पंथ - इनकी संख्या ६ है । इस पंथ के मूल प्रवर्तक श्री भीष्म पितामह माने जाते हैं । इसका मुख्य पीठ पंजाब में गुरुदासपुर जिले का जखबार स्थान है । कालान्तर में नाथ सम्प्रदाय के इन बारह पंथों में छह पंथ और जुड़े - १॰ रावल (संख्या-७१), २॰ पंक (पंख), ३॰ वन, ४॰ कंठर पंथी, ५॰ गोपाल पंथ तथा ६॰ हेठ नाथी । इस प्रकार कुल बारह-अठारह पंथ कहलाते हैं । बाद में अनेक पंथ जुड़ते गये, ये सभी बारह-अठारह पंथों की उपशाखायें अथवा उप-पंथ है । कुछ के नाम इस प्रकार हैं - अर्द्धनारी, अमरनाथ, अमापंथी। उदयनाथी, कायिकनाथी, काममज, काषाय, गैनीनाथ, चर्पटनाथी, तारकनाथी, निरंजन नाथी, नायरी, पायलनाथी, पाव पंथ, फिल नाथी, भृंगनाथ आदि
🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺सीताराम जय वीर हनुमान 1.सुंदर कांड पाठ : सुंदर कांड पाठ तुलसीदास द्वारा रचित रामचरित मानस से लिया गया है इस पाठ से हनुमान जी को प्रसन्न किया जाता है विशेषतः शनी के प्रकोप को शांत करणे के लिये सुंदरकांड का पाठ लाभदायक होता है , वैसे कम से कम १०८ पाठ ब्राह्मण के द्वारा करवाया जाता है | 2: हनुमान चालीसा : हनुमान चालीसा कलियुग मे मनुष्य के जीवन का आधार है इसका पाठ प्रायः प्रतिदिन किया जाता है | परंतु विशेष रूप से ४१ दिन मे प्रतिदिन १०० पाठ कराने से कोई भी महत्वपूर्ण कार्य के लिए किये गया सभी अनुष्ठान पूर्ण होता है | 3 : बजरंग बाण : बजरंग बाण के पाठ से मनुष्य स्वयं सुरक्षित रहता है | बजरंग बाण के पाठ से मनुष्य सुरक्षित राहता है इसका कम से कम ५२ पाठ करके हवन करने पर विशेष लाभ प्राप्त होता है | श्रीराम ज्योतिष सदन पंडित आशु बहुगुणा मोबाइल नं -9760924411 शुभप्रभात:---- 🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺
“ॐ ऐं ह्रीं श्रीं नमो भगवते हनुमते मम कार्येषु ज्वल ज्वल प्रज्वल प्रज्वल असाध्यं साधय साधय मां रक्ष रक्ष सर्वदुष्टेभ्यो हुं फट् स्वाहा।” विधिः-मंगलवार से प्रारम्भ करके इस मन्त्र का प्रतिदिन १०८ बार जप करता रहे और कम-से-कम सात मंगलवार तक तो अवश्य करे। इससे इसके फलस्वरुप घर का पारस्परिक विग्रह मिटता है, दुष्टों का निवारण होता है और बड़ा कठिन कार्य भी आसानी से सफल हो जाता है। ४॰ “हनुमन् सर्वधर्मज्ञ सर्वकार्यविधायक। अकस्मादागतोत्पातं नाशयाशु नमोऽस्तु ते।।” या “हनूमन्नञ्जनीसूनो वायुपुत्र महाबल। अकस्मादागतोत्पातं नाशयाशु नमोऽस्तु ते।।” विधिः- प्रतिदिन तीन हजार के हिसाब से ११ दिनों में ३३ हजार जप जो, फिर ३३०० दशांश हवन या जप करके ३३ ब्राह्मणों को भोजन करवाया जाये। इससे अकस्मात् आयी हुई विपत्ति सहज ही टल जाती है..............................
श्री हनुमान सिद्धि के लिए मन्त्रः- “ॐ नमो देव लोक कामाख्या देवी, जहाँ बसे इस्माईल योगी । छप्पन भैरों, हनुमन्त वीर, भूत-प्रेत दैत्य को मार, भगावें । पराई माया ल्यावें । लाडू पेड़ा बरफी सेव सिंघाड़ा पाक बताशा मिश्री घेवर बालूसाई लोंग डोडा इलायची दाना तेल देवी काली के ऊपर । हनुमन्त गाजै ।। एती वस्तु मैं चाहि लाव, न लावे तो तैंतीस कोट देवता लावें । मिरची जावित्री जायफल हरड़े जंगी-हरड़े बादाम छुहारा मुखरें । रामवीर तो बतावैं बस्ती । लक्ष्मण वीर पकड़ावे हाथ । भूत-प्रेत के चलावें हाथ । हनुमन्त वीर को सब कोउ गावै । सौ कोसां का बस्ता लावे, न लावें तो एक लाख अस्सी हजार पीर-पैगम्बर लावें । शब्द सांचा, फुरे मन्त्र ईश्वरो वाचा ।” विधिः- इस मन्त्र का जप किसी निर्जन स्थान में, कोई अन्धा कुंआ के ऊपर बैठकर करें, सर्व-प्रथम वहां से शुद्ध मिट्टी लेकर उसमें लाल रंग या सिंदूर मिला कर हनुमान जी की प्रतिमा बनावें, फिर उस पर सिन्दूर का चोला चढ़ा कर मन्त्र में कही सामग्री उस प्रतिमा के समक्ष रख कर इस मन्त्र का २१ दिन तक प्रतिदिन रात्रि में २ माला जप करें, तो हनुमान जी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष किसी भी रुप में दर्शन देकर उसकी समस्त अभिलाषाएं पूर्ण करते हैं ।..
Sunday, 27 January 2019
कार्य सिद्धि प्रयोग
रूके हुए कार्यों की सिद्धि के लिए:व्यापार, विवाह या किसी
- सफेद पलाश के फूल, चांदी की गणेश प्रतिमा,
- बिल्ली की आंवल, सियार सिंगी, हथ्था जोड़ी और कामाख्या का वस्त्र इन तीनों को एक साथ सिंदूर में रखें। उपरोक्त सामग्री में से किसी को भी तिजोरी में
किसी के प्रत्येक शुभ का
- रूके हुए कार्यों की सिद्धि के लिए यह प्रयोग बहुत ही लाभदायक है। गणेश चतुर्थी को गणेश जी का ऐसा चित्र घर या दुकान पर लगाएं,
- सरकारी या निजी रोजगार क्षेत्र में परिश्रम के उपरांत भी सफलता नहीं मिल रही हो, तो नियमपूर्वक किये गये विष्णु यज्ञ की विभूति ले कर, अपने पितरों की क्वकुशां की मूर्ति बना कर, गंगाजल से स्नान करायें तथा यज्ञ विभूति लगा कर, कुछ भोग लगा दें और उनसे कार्य की सफलता हेतु कृपा करने की प्रार्थना करें। किसी धार्मिक ग्रंथ का एक अध्याय पढ़ कर, उस कुशा की मूर्ति को पवित्र नदी या सरोवर में प्रवाहित कर दें। सफलता अवश्य मिलेगी। सफलता के बाद किसी शुभ कार्य में दान दें।जिसमें उनकी सूंड दायीं ओर मुड़ी हुई हो। इसकी आराधना करें। इसके आगे लौंग तथा सुपारी रखें। जब भी कहीं काम पर जाना हो, तो एक लौंग तथा सुपारी को साथ ले कर जाएं, तो काम सिद्ध होगा। लौंग को चूसें तथा सुपारी को वापस ला कर गणेश जी के आगे रख दें तथा जाते हुए कहें श्री गणेश काटो कलेशं।र्य में बाधा आती हो या विलम्ब होता हो तो रविवार को भैरों जी के मंदिर में सिंदूर का चोला चढ़ा कर बटुक भैरव स्तोत्रं का एक पाठ कर के गाय, कौओं और काले कुत्तों को उनकी रूचि का पदार्थ खिलाना चाहिए। ऐसा वर्ष में 4-5 बार करने से कार्य बाधाएं नष्ट हो जाएंगी।रखने से पहले
इन टोटकों से बनने लगेंगे आपके सारे काम अगर आपका कोई भी काम आसानी से नहीं होता है हर काम चाहे वह नौकरी से जुड़ा हो, शादी से या अन्य किसी क्षेत्र से रूकावटें और असफलताएं आपका रास्ता रोक लेती हैं तो इसके लिए ये टोटके आपके लिए लाभदायक सिद्ध हो सकते हैं। किसी विशेष मुर्हूत में ।।ऊं ऐं ह्रीं क्लीं चामुंण्डाये विच्चे।। इस मंत्र के जप के साथ अभिमंत्रित करें। व चांदी में
- घर के मुख्य दरवाजे
- सुबह शुभ मुहूर्त में एकाक्षी नारियल का कामिया सिन्दूर कुमकुम व चावल से पूजन करें धन लाभ होने लगेगा। पर कुमकुम से स्वास्तिक बनाएं और बासमती चावल की ढेरी पर एक सुपारी में कलावा बांध कर रख दें। धन का आगमन होने लगेगा। मड़ा हुए एकाक्षी नारियल को अभिमंत्रिमत कर तिजोरी में रखें।भी कार्य के करने में बार-बार असफलता:शनिदोष मिटाएगें
- एकाक्षी नारियल को लाल कपड़े में बांधकर तिजोरी में रखें।
- सफेद पलाश के फूल, चांदी की गणेश प्रतिमा,
- बिल्ली की आंवल, सियार सिंगी, हथ्था जोड़ी और कामाख्या का वस्त्र इन तीनों को एक साथ सिंदूर में रखें। उपरोक्त सामग्री में से किसी को भी तिजोरी में
किसी के प्रत्येक शुभ का
- रूके हुए कार्यों की सिद्धि के लिए यह प्रयोग बहुत ही लाभदायक है। गणेश चतुर्थी को गणेश जी का ऐसा चित्र घर या दुकान पर लगाएं,
- सरकारी या निजी रोजगार क्षेत्र में परिश्रम के उपरांत भी सफलता नहीं मिल रही हो, तो नियमपूर्वक किये गये विष्णु यज्ञ की विभूति ले कर, अपने पितरों की क्वकुशां की मूर्ति बना कर, गंगाजल से स्नान करायें तथा यज्ञ विभूति लगा कर, कुछ भोग लगा दें और उनसे कार्य की सफलता हेतु कृपा करने की प्रार्थना करें। किसी धार्मिक ग्रंथ का एक अध्याय पढ़ कर, उस कुशा की मूर्ति को पवित्र नदी या सरोवर में प्रवाहित कर दें। सफलता अवश्य मिलेगी। सफलता के बाद किसी शुभ कार्य में दान दें।जिसमें उनकी सूंड दायीं ओर मुड़ी हुई हो। इसकी आराधना करें। इसके आगे लौंग तथा सुपारी रखें। जब भी कहीं काम पर जाना हो, तो एक लौंग तथा सुपारी को साथ ले कर जाएं, तो काम सिद्ध होगा। लौंग को चूसें तथा सुपारी को वापस ला कर गणेश जी के आगे रख दें तथा जाते हुए कहें श्री गणेश काटो कलेशं।र्य में बाधा आती हो या विलम्ब होता हो तो रविवार को भैरों जी के मंदिर में सिंदूर का चोला चढ़ा कर बटुक भैरव स्तोत्रं का एक पाठ कर के गाय, कौओं और काले कुत्तों को उनकी रूचि का पदार्थ खिलाना चाहिए। ऐसा वर्ष में 4-5 बार करने से कार्य बाधाएं नष्ट हो जाएंगी।रखने से पहले
इन टोटकों से बनने लगेंगे आपके सारे काम अगर आपका कोई भी काम आसानी से नहीं होता है हर काम चाहे वह नौकरी से जुड़ा हो, शादी से या अन्य किसी क्षेत्र से रूकावटें और असफलताएं आपका रास्ता रोक लेती हैं तो इसके लिए ये टोटके आपके लिए लाभदायक सिद्ध हो सकते हैं। किसी विशेष मुर्हूत में ।।ऊं ऐं ह्रीं क्लीं चामुंण्डाये विच्चे।। इस मंत्र के जप के साथ अभिमंत्रित करें। व चांदी में
- घर के मुख्य दरवाजे
- सुबह शुभ मुहूर्त में एकाक्षी नारियल का कामिया सिन्दूर कुमकुम व चावल से पूजन करें धन लाभ होने लगेगा। पर कुमकुम से स्वास्तिक बनाएं और बासमती चावल की ढेरी पर एक सुपारी में कलावा बांध कर रख दें। धन का आगमन होने लगेगा। मड़ा हुए एकाक्षी नारियल को अभिमंत्रिमत कर तिजोरी में रखें।भी कार्य के करने में बार-बार असफलता:शनिदोष मिटाएगें
- एकाक्षी नारियल को लाल कपड़े में बांधकर तिजोरी में रखें।
श्री हनुमान चालीसा के चमत्कार
हनुमान चालीसा की चौपाई से चमत्कार
वैसे तो हनुमान चालीसा की हर चौपाइ और दोहे चमत्कारी हैं लेकिन कुछ ऐसी चौपाइयां हैं जो बहुत जल्द असर दिखाती हैं। ये चौपाइयां सर्वाधिक प्रचलित भी हैं समय-समय में काफी लोग इनका जप करते हैं।
1) रामदूत अतुलित बलधामा।
अंजनिपुत्र पवनसुत नामा।
यदि कोई व्यक्ति इस चौपाई का जप करता है तो उसे शारीरिक कमजोरियों से मुक्ति मिलती है। इस पंक्ति का अर्थ यह है कि हनुमानजी श्रीराम के दूत हैं और अतुलित बल के धाम हैं। यानि हनुमानजी परम शक्तिशाली हैं। इनकी माता का नाम अंजनी है इसी वजह से इन्हें अंजनी पुत्र कहा जाता है। शास्त्रों के अनुसार हनुमानजी को पवन देव का पुत्र माना जाता है इसी वजह से इन्हें पवनसुत भी कहते हैं।
2) महाबीर बिक्रम बजरंगी।
कुमति निवार सुमति के संगी।।
यदि कोई व्यक्ति हनुमान चालीसा की केवल इस पंक्ति का जप करता है तो उसे सुबुद्धि की प्राप्ति होती है। इस पंक्ति का जप करने वाले लोगों के कुविचार नष्ट होते हैं और सुविचार बनने लगते हैं। बुराई से ध्यान हटता है और अच्छाई की ओर मन लगता है।
इस पंक्ति का अर्थ यही है कि बजरंगबली महावीर हैं और हनुमानजी कुमति को निवारते हैं यानि कुमति को दूर करते हैं और सुमति यानि अच्छे विचारों को बढ़ाते हैं।
3) बिद्यबान गुनी अति चातुर।
रामकाज करीबे को आतुर।।
यदि किसी व्यक्ति को विद्या धन चाहिए तो उसे इस पंक्ति का जप करना चाहिए। इस पंक्ति के जप से हमें विद्या और चतुराई प्राप्त होती है। इसके साथ ही हमारे हृदय में श्रीराम की भक्ति भी बढ़ती है।
इस चौपाई का अर्थ है कि हनुमानजी विद्यावान हैं और गुणवान हैं। हनुमानजी चतुर भी हैं। वे सदैव ही श्रीराम के काम को करने के लिए तत्पर रहते हैं। जो भी व्यक्ति इस चौपाई का जप करता है उसे हनुमानजी की ही तरह विद्या, गुण, चतुराई के साथ ही श्रीराम की भक्ति प्राप्त होती है।
4) भीम रूप धरि असुर संहारे।
रामचंद्रजी के काज संवारे।।
जब आप शत्रुओं से परेशान हो जाएं और कोई रास्ता दिखाई न दे तो हनुमान चालीसा का जप करें। यदि एकाग्रता और भक्ति के साथ हनुमान चालीसा की सिर्फ इस पंक्ति का भी जप किया जाए तो शत्रुओं पर विजय प्राप्ति होती है। श्रीराम की कृपा प्राप्त होती है।
इस पंक्ति का अर्थ यह है कि श्रीराम और रावण के बीच हुए युद्ध में हनुमानजी ने भीम रूप यानि विशाल रूप धारण करके असुरों-राक्षसों का संहार किया। श्रीराम के काम पूर्ण करने में हनुमानजी ने अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया। जिससे श्रीराम के सभी काम संवर गए।
5) लाय संजीवन लखन जियाये।
श्रीरघुबीर हरषि उर लाये।।
इस पंक्ति का जप करने से भयंकर बीमारियों से भी मुक्ति मिल सकती है। यदि कोई व्यक्ति किसी गंभीर बीमारी से पीडि़त है और दवाओं का भी असर नहीं हो रहा है तो उसे भक्ति के साथ हनुमान चालीसा या इस पंक्ति का जप करना चाहिए। दवाओं का असर होना शुरू हो जाएगा, बीमारी धीरे-धीरे ठीक होने लगेगी।
इस चौपाई का अर्थ यह है कि रावण के पुत्र मेघनाद ने लक्ष्मण को मुर्छित कर दिया था। तब सभी औषधियों के प्रभाव से भी लक्ष्मण की चेतना लौट नहीं रही थी। तब हनुमानजी संजीवनी औषधि लेकर आए और लक्ष्मण के प्राण बचाए। हनुमानजी के इस चमत्कार से श्रीराम अतिप्रसन्न हुए।
श्रीराम के परम भक्त हनुमानजी सबसे जल्दी प्रसन्न होने वाले देवताओं में से एक हैं। शास्त्रों के अनुसार माता सीता के वरदान के प्रभाव से बजरंग बली को अमर बताया गया है। ऐसा माना जाता है आज भी जहां रामचरित मानस या रामायण या सुंदरकांड का पाठ पूरी श्रद्धा एवं भक्ति से किया जाता है वहां हनुमानजी अवश्य प्रकट होते हैं। इन्हें प्रसन्न करने के लिए बड़ी संख्या श्रद्धालु हनुमान चालीसा का पाठ भी करते हैं।
यदि कोई व्यक्ति पूरी हनुमान चालीसा का पाठ करने में असमर्थ रहता है तो वह अपनी मनोकामना के अनुसार केवल कुछ पंक्तियों का भी जप कर सकता है।
वैसे तो हनुमान चालीसा की हर चौपाइ और दोहे चमत्कारी हैं लेकिन कुछ ऐसी चौपाइयां हैं जो बहुत जल्द असर दिखाती हैं। ये चौपाइयां सर्वाधिक प्रचलित भी हैं समय-समय में काफी लोग इनका जप करते हैं।
1) रामदूत अतुलित बलधामा।
अंजनिपुत्र पवनसुत नामा।
यदि कोई व्यक्ति इस चौपाई का जप करता है तो उसे शारीरिक कमजोरियों से मुक्ति मिलती है। इस पंक्ति का अर्थ यह है कि हनुमानजी श्रीराम के दूत हैं और अतुलित बल के धाम हैं। यानि हनुमानजी परम शक्तिशाली हैं। इनकी माता का नाम अंजनी है इसी वजह से इन्हें अंजनी पुत्र कहा जाता है। शास्त्रों के अनुसार हनुमानजी को पवन देव का पुत्र माना जाता है इसी वजह से इन्हें पवनसुत भी कहते हैं।
2) महाबीर बिक्रम बजरंगी।
कुमति निवार सुमति के संगी।।
यदि कोई व्यक्ति हनुमान चालीसा की केवल इस पंक्ति का जप करता है तो उसे सुबुद्धि की प्राप्ति होती है। इस पंक्ति का जप करने वाले लोगों के कुविचार नष्ट होते हैं और सुविचार बनने लगते हैं। बुराई से ध्यान हटता है और अच्छाई की ओर मन लगता है।
इस पंक्ति का अर्थ यही है कि बजरंगबली महावीर हैं और हनुमानजी कुमति को निवारते हैं यानि कुमति को दूर करते हैं और सुमति यानि अच्छे विचारों को बढ़ाते हैं।
3) बिद्यबान गुनी अति चातुर।
रामकाज करीबे को आतुर।।
यदि किसी व्यक्ति को विद्या धन चाहिए तो उसे इस पंक्ति का जप करना चाहिए। इस पंक्ति के जप से हमें विद्या और चतुराई प्राप्त होती है। इसके साथ ही हमारे हृदय में श्रीराम की भक्ति भी बढ़ती है।
इस चौपाई का अर्थ है कि हनुमानजी विद्यावान हैं और गुणवान हैं। हनुमानजी चतुर भी हैं। वे सदैव ही श्रीराम के काम को करने के लिए तत्पर रहते हैं। जो भी व्यक्ति इस चौपाई का जप करता है उसे हनुमानजी की ही तरह विद्या, गुण, चतुराई के साथ ही श्रीराम की भक्ति प्राप्त होती है।
4) भीम रूप धरि असुर संहारे।
रामचंद्रजी के काज संवारे।।
जब आप शत्रुओं से परेशान हो जाएं और कोई रास्ता दिखाई न दे तो हनुमान चालीसा का जप करें। यदि एकाग्रता और भक्ति के साथ हनुमान चालीसा की सिर्फ इस पंक्ति का भी जप किया जाए तो शत्रुओं पर विजय प्राप्ति होती है। श्रीराम की कृपा प्राप्त होती है।
इस पंक्ति का अर्थ यह है कि श्रीराम और रावण के बीच हुए युद्ध में हनुमानजी ने भीम रूप यानि विशाल रूप धारण करके असुरों-राक्षसों का संहार किया। श्रीराम के काम पूर्ण करने में हनुमानजी ने अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया। जिससे श्रीराम के सभी काम संवर गए।
5) लाय संजीवन लखन जियाये।
श्रीरघुबीर हरषि उर लाये।।
इस पंक्ति का जप करने से भयंकर बीमारियों से भी मुक्ति मिल सकती है। यदि कोई व्यक्ति किसी गंभीर बीमारी से पीडि़त है और दवाओं का भी असर नहीं हो रहा है तो उसे भक्ति के साथ हनुमान चालीसा या इस पंक्ति का जप करना चाहिए। दवाओं का असर होना शुरू हो जाएगा, बीमारी धीरे-धीरे ठीक होने लगेगी।
इस चौपाई का अर्थ यह है कि रावण के पुत्र मेघनाद ने लक्ष्मण को मुर्छित कर दिया था। तब सभी औषधियों के प्रभाव से भी लक्ष्मण की चेतना लौट नहीं रही थी। तब हनुमानजी संजीवनी औषधि लेकर आए और लक्ष्मण के प्राण बचाए। हनुमानजी के इस चमत्कार से श्रीराम अतिप्रसन्न हुए।
श्रीराम के परम भक्त हनुमानजी सबसे जल्दी प्रसन्न होने वाले देवताओं में से एक हैं। शास्त्रों के अनुसार माता सीता के वरदान के प्रभाव से बजरंग बली को अमर बताया गया है। ऐसा माना जाता है आज भी जहां रामचरित मानस या रामायण या सुंदरकांड का पाठ पूरी श्रद्धा एवं भक्ति से किया जाता है वहां हनुमानजी अवश्य प्रकट होते हैं। इन्हें प्रसन्न करने के लिए बड़ी संख्या श्रद्धालु हनुमान चालीसा का पाठ भी करते हैं।
यदि कोई व्यक्ति पूरी हनुमान चालीसा का पाठ करने में असमर्थ रहता है तो वह अपनी मनोकामना के अनुसार केवल कुछ पंक्तियों का भी जप कर सकता है।
शिव पंचाक्षर स्तोत्र
शिव को प्रसन्न करने की चाह तथा उनकी शरणागत पाने के लिए भगवान शिव का पंचाक्षरी मंत्र बहुत महत्व रखता है. इस व्रत के साथ ही शिव भगवान का व्रत तथा पूजन अवश्य करना चाहिए. शिव व्रत करने वाले व्यक्ति सांसारिक भोगों को भोगने के पश्चात अंत में शिवलोक में जाते है. चतुर्दशी तिथि को इस पंचाक्षरी मंत्र का जाप अवश्य ही किया जाना चाहिए ऎसा करने से मनुष्य सभी तीर्थों के स्नान का फल प्राप्त करता है. जो व्यक्ति शिव की भक्ति से अछूते रहते हैं वह हमेशा जन्म-मरण के चक्र में घूमते रहते हैं.
भगवान शिव का पूजन कर भक्तगण उनका आशीर्वाद प्राप्त कर अपनी समस्त मनोकामनाओं को पूर्ण करने का वर माँगते हैं. शिवलिंग पर बेल वृक्ष के पत्ते चढा़ने चाहिए. धतूरे के पुष्पों से शिवलिंग पर पूजन करना चाहिए. भगवान शिव को बिल्वपत्र तथा धतूरे के फूल बहुत प्रिय हैं. इसलिए शिव पूजन में इनका प्रयोग करना चाहिए. इस दिन "ऊँ नम: शिवाय" का जाप 108 बार करना चाहिए. महामृत्युंजय मंत्र का जाप शिव भगवान को प्रसन्न करने का तथा सभी प्रकार की बाधाओं को दूर करने का महामंत्र है.
भगवान शिव पर जिस पर कृपा करते हैं उनका उद्धार हो जाता है. भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए कई स्तुतियों की रचना प्राप्त होती है इन सभी के मध्य में शिव पंचाक्षर स्त्रोत एक महत्वपूर्ण मंत्र साधना है. इसका प्रतिदिन जाप करने से भगवान शंकर शीघ्र ही प्रसन्न हो जाते हैं तथ औनका आशिर्वाद एवं सानिध्य प्राप्त होता है.
शिव पंचाक्षर स्त्रोत |
नागेंद्रहाराय त्रिलोचनाय भस्मांग रागाय महेश्वराय
नित्याय शुद्धाय दिगंबराय तस्मे न काराय नम: शिवाय:॥
मंदाकिनी सलिल चंदन चर्चिताय नंदीश्वर प्रमथनाथ महेश्वराय
मंदारपुष्प बहुपुष्प सुपूजिताय तस्मे म काराय नम: शिवाय:॥
शिवाय गौरी वदनाब्जवृंद सूर्याय दक्षाध्वरनाशकाय
श्री नीलकंठाय वृषभद्धजाय तस्मै शि काराय नम: शिवाय:॥
वषिष्ठ कुभोदव गौतमाय मुनींद्र देवार्चित शेखराय
चंद्रार्क वैश्वानर लोचनाय तस्मै व काराय नम: शिवाय:॥
यज्ञस्वरूपाय जटाधराय पिनाकस्ताय सनातनाय
दिव्याय देवाय दिगंबराय तस्मै य काराय नम: शिवाय:॥
पंचाक्षरमिदं पुण्यं य: पठेत शिव सन्निधौ
शिवलोकं वाप्नोति शिवेन सह मोदते॥
नागेंद्रहाराय त्रिलोचनाय भस्मांग रागाय महेश्वराय|
नित्याय शुद्धाय दिगंबराय तस्मे "न" काराय नमः शिवायः॥
इस मंत्र के अर्थ में हम इस बात को समक्ष सकते हैं जो इस प्रकार है कि हे प्रभु महेश्वर आप नागराज को गले हार रूप में धारण करते हैं आप तीन नेत्रों वाले भस्म को अलंकार के रुप में धारण करके अनादि एवं अनंत शुद्ध हैं. आप आकाश को वस्त्र सामान धारण करने वाले हैं. मै आपके ‘न’स्वरूप को नमस्कार करता हूँ आप चन्दन से लिप्त गंगा को अपने सर पर धारण करके नन्दी एवं अन्य गणों के स्वामी महेश्वर हैं आप सदा मन्दार एवं अन्य पुष्पों द्वारा पुजित हैं. हे भगवन मैं आपके ‘म्’ स्वरूप को नमस्कार करता हूं.
धर्म ध्वज को धारण करने वाले नीलकण्ठ प्रभु तथा ‘शि’ अक्षर वाले महाप्रभु, आपने ही दक्ष के अंहकार स्वरुप यज्ञ का नाश किया था. माता गौरी को सूर्य सामान तेज प्रदान करने वाले प्रभु शिव को मै नमन करता हूँ.
देवगणो एवं वषिष्ठ, अगस्त्य, गौतम आदि मुनियों द्वारा पूज्य महादेव जिनके लिए सूर्य, चन्द्रमा एवं अग्नि त्रिनेत्र सामन हैं. हे प्रभु मेरा आपके ‘व्’ अक्षर वाले स्वरूप को नमस्कार है. हे यज्ञस्वरूप, जटाधारी शिव आप आदि, मध्य एवं अंत से रहित हैं आप सनातन हैं, हे प्रभु आप दिव्य अम्बर धारी शिव हैं मैं आपके ‘शि’ स्वरुप को मैं नमस्कार करता हूं
इस प्रकार जो कोई भी शिव के इस पंचाक्षर मंत्र का नित्य चिंतन-मनन ध्यान करता है वह शिव लोक को प्राप्त करता है|
भगवान शिव का पूजन कर भक्तगण उनका आशीर्वाद प्राप्त कर अपनी समस्त मनोकामनाओं को पूर्ण करने का वर माँगते हैं. शिवलिंग पर बेल वृक्ष के पत्ते चढा़ने चाहिए. धतूरे के पुष्पों से शिवलिंग पर पूजन करना चाहिए. भगवान शिव को बिल्वपत्र तथा धतूरे के फूल बहुत प्रिय हैं. इसलिए शिव पूजन में इनका प्रयोग करना चाहिए. इस दिन "ऊँ नम: शिवाय" का जाप 108 बार करना चाहिए. महामृत्युंजय मंत्र का जाप शिव भगवान को प्रसन्न करने का तथा सभी प्रकार की बाधाओं को दूर करने का महामंत्र है.
भगवान शिव पर जिस पर कृपा करते हैं उनका उद्धार हो जाता है. भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए कई स्तुतियों की रचना प्राप्त होती है इन सभी के मध्य में शिव पंचाक्षर स्त्रोत एक महत्वपूर्ण मंत्र साधना है. इसका प्रतिदिन जाप करने से भगवान शंकर शीघ्र ही प्रसन्न हो जाते हैं तथ औनका आशिर्वाद एवं सानिध्य प्राप्त होता है.
शिव पंचाक्षर स्त्रोत |
नागेंद्रहाराय त्रिलोचनाय भस्मांग रागाय महेश्वराय
नित्याय शुद्धाय दिगंबराय तस्मे न काराय नम: शिवाय:॥
मंदाकिनी सलिल चंदन चर्चिताय नंदीश्वर प्रमथनाथ महेश्वराय
मंदारपुष्प बहुपुष्प सुपूजिताय तस्मे म काराय नम: शिवाय:॥
शिवाय गौरी वदनाब्जवृंद सूर्याय दक्षाध्वरनाशकाय
श्री नीलकंठाय वृषभद्धजाय तस्मै शि काराय नम: शिवाय:॥
वषिष्ठ कुभोदव गौतमाय मुनींद्र देवार्चित शेखराय
चंद्रार्क वैश्वानर लोचनाय तस्मै व काराय नम: शिवाय:॥
यज्ञस्वरूपाय जटाधराय पिनाकस्ताय सनातनाय
दिव्याय देवाय दिगंबराय तस्मै य काराय नम: शिवाय:॥
पंचाक्षरमिदं पुण्यं य: पठेत शिव सन्निधौ
शिवलोकं वाप्नोति शिवेन सह मोदते॥
नागेंद्रहाराय त्रिलोचनाय भस्मांग रागाय महेश्वराय|
नित्याय शुद्धाय दिगंबराय तस्मे "न" काराय नमः शिवायः॥
इस मंत्र के अर्थ में हम इस बात को समक्ष सकते हैं जो इस प्रकार है कि हे प्रभु महेश्वर आप नागराज को गले हार रूप में धारण करते हैं आप तीन नेत्रों वाले भस्म को अलंकार के रुप में धारण करके अनादि एवं अनंत शुद्ध हैं. आप आकाश को वस्त्र सामान धारण करने वाले हैं. मै आपके ‘न’स्वरूप को नमस्कार करता हूँ आप चन्दन से लिप्त गंगा को अपने सर पर धारण करके नन्दी एवं अन्य गणों के स्वामी महेश्वर हैं आप सदा मन्दार एवं अन्य पुष्पों द्वारा पुजित हैं. हे भगवन मैं आपके ‘म्’ स्वरूप को नमस्कार करता हूं.
धर्म ध्वज को धारण करने वाले नीलकण्ठ प्रभु तथा ‘शि’ अक्षर वाले महाप्रभु, आपने ही दक्ष के अंहकार स्वरुप यज्ञ का नाश किया था. माता गौरी को सूर्य सामान तेज प्रदान करने वाले प्रभु शिव को मै नमन करता हूँ.
देवगणो एवं वषिष्ठ, अगस्त्य, गौतम आदि मुनियों द्वारा पूज्य महादेव जिनके लिए सूर्य, चन्द्रमा एवं अग्नि त्रिनेत्र सामन हैं. हे प्रभु मेरा आपके ‘व्’ अक्षर वाले स्वरूप को नमस्कार है. हे यज्ञस्वरूप, जटाधारी शिव आप आदि, मध्य एवं अंत से रहित हैं आप सनातन हैं, हे प्रभु आप दिव्य अम्बर धारी शिव हैं मैं आपके ‘शि’ स्वरुप को मैं नमस्कार करता हूं
इस प्रकार जो कोई भी शिव के इस पंचाक्षर मंत्र का नित्य चिंतन-मनन ध्यान करता है वह शिव लोक को प्राप्त करता है|
श्री नरसिंह विजय रक्षा कवच
त्रैलोक्य-विजय श्रीनृसिंह कवच
।। पूर्व-पीठिका : श्री नारद उवाच ।।
इन्द्रादि-देव-वृन्देश ! ईश्वर, जगत्-पते ! महा-विष्णोर्नृसिंहस्य, कवचं ब्रूहि मे प्रभो !
यस्य प्रपठनाद् विद्वांस्त्रैलोक्य-विजयी भवेत् ।।१
।। श्री प्रजापतिरुवाच ।।
श्रृणु नारद ! वक्ष्यामि, पुत्र-श्रेष्ठ, तपोधन ! कवचं नृसिंहस्य तु, त्रैलोक्य-विजयाभिधम् ।।
यस्य पठनाद् वाग्मी, त्रैलोक्य-विजयी भवेत् । स्रष्टाऽहं जगतां वत्स ! पठनाद् धारणाद् यतः ।।
लक्ष्मीर्जगत्-त्रयं पाति, संहर्ता च महेश्वरः । पठनाद् धारणाद् देवाः बभूवुश्च दिगीश्वराः ।।
ब्रह्म-मन्त्र-मयं वक्ष्ये, भ्रान्त्यादि-विनिवारकं । यस्य प्रसादाद् दुर्वासास्त्रैलोक्य-विजयी भवेत् ।।
पठनाद् धारणाद् यस्य, शास्ता च क्रोध-भैरवः ।।
त्रैलोक्य-विजयस्यास्य, कवचस्य प्रजापतिः । ऋषिश्छन्दश्च गायत्री, नृसिंहो देवता विभुः ।
क्ष्रौं वीजं, हुं शक्तिः, फट् कीलकं, ममाभीष्ट-सिद्धयर्थे जपे विनियोगः ।।
।। मूल-पाठ ।।
विनियोगः- ॐ अस्य त्रैलोक्य-विजय-नाम श्रीनृसिंह-कवचस्य श्रीप्रजापतिः ऋषिः, गायत्री छन्दः, श्रीनृसिंहः देवता, क्ष्रौं वीजं, हुं शक्तिः, फट् कीलकं ममाभीष्ट सिद्धयर्थे जपे विनियोगः ।
ऋष्यादि-न्यासः- श्रीप्रजापति-ऋषये नमः शिरसि, गायत्री-छन्दसे नमः मुखे, श्रीनृसिंह-देवतायै नमः हृदि, क्ष्रौं वीजाय नमः गुह्ये, हुं शक्तये नमः नाभौ, फट् कीलकाय नमः पादयोः ममाभीष्ट सिद्धयर्थे जपे विनियोगाय नमः सर्वाङ्गे ।
ॐ उग्र-वीरं महा-विष्णुं, ज्वलन्तं सर्वतोमुखम् । नृसिंहं भीषणं भद्रं, मृत्यु-मृत्युं नमाम्यहम् ।।१
क्ष्रौं वीजं मे शिरः पातु, चन्द्र-वर्णो महा-मनुः । कण्ठं पातु ध्रुवं क्ष्रौं हृद्, भगवते चक्षुषी मे ।
नरसिंहाय च ज्वाला-मालिने पातु कर्णकम् ।।२
दीप्त-दंष्ट्राय च तथाऽग्नि-नेत्राय च नासिकां । सर्व-रक्षोघ्नाय तथा, सर्व-भूत-हिताय च ।।३
सर्व-ज्वर-विनाशाय, दह-दह पद-द्वयम् । रक्ष-रक्ष वर्म-मन्त्रः, स्वाहा पातु मुखं मम ।।४
ॐ रामचन्द्राय नमः, पातु च हृदयं मम । क्लीं पायात् पार्श्व-युग्मं च, तारो नमः पदं ततः ।।५
नारायणाय नाभिं च, आं ह्रीं क्रों क्ष्रौं चैव हुं फट् । षडक्षरः कटिं पातु, ॐ नमो भगवतेऽयम् ।।६
वासुदेवाय च पृष्ठं, क्लीं कृष्णाय ऊरु-द्वयं । क्लीं कृष्णाय सदा पातु, जानुनी च मनूत्तमः ।।७
क्लीं ग्लौं क्लीं श्यामलाङ्गाय नमः पायात् पद-द्वयं । क्ष्रौं नृसिंहाय क्ष्रौं चैव, सर्वाङ्गे मे सदाऽवतु ।।८
।। फल-श्रुति ।।
इति ते कथितं वत्स ! सर्व-मन्त्रौघ-विग्रहं । तव स्नेहान्मया ख्यातं, प्रवक्तव्यं न कस्यचित् ।।
गुरु-पूजां विधायाथ, गृह्णीयात् कवचं ततः । सर्व-पुण्य-युतो भूत्वा, सर्व-सिद्धि-युतो भवेत् ।।
शतमष्टोत्तरं चास्य, पुरश्चर्या-विधिः स्मृता । हवनादीन् दशांशेन, कृत्वा साधक-सत्तमः ।।
ततस्तु सिद्ध-कवचः, पुण्यात्मा मदनोपमः । स्पर्द्धामूद्धूय भवने, लक्ष्मीर्वाणि वसेत ततः ।।
पुष्पाञ्जल्यष्टकं दत्त्वा, मूलेनैव पठेत् सकृत् । अपि वर्ष-सहस्राणां, पूजायां फलमाप्नुयात् ।।
भूर्जे विलिख्य गुटिकां, स्वर्णस्थां धारयेद् यदि । कण्ठे वा दक्षिणे बाहौ, नरसिंहो भवेत् स्वयम् ।।
योषिद्-वाम-भुजे चैव, पुरुषो दक्षिणे-करे । बिभृयात् कवचं पुण्यं, सर्व-सिद्धि-युतो भवेत् ।।
काक-वन्ध्या च या नारी, मृत-वत्सा च या भवेत् । जन्म-वन्ध्या नष्ट-पुत्रा, बहु-पुत्र-वती भवेत् ।।
कवचस्य प्रसादेन, जीवन्मुक्तो भवेन्नरः । त्रैलोक्यं क्षोभयेत् सदा, त्रैलोक्य-विजयी भवेत् ।।
भूत-प्रेत-पिशाचाश्च, राक्षसा दानवाश्च ये । तं दृष्ट्वा प्रपलायन्ते, देशाद् देशान्तरे ध्रुवम् ।।
यस्मिन् गृहे च कवचं, ग्रामे वा यदि तिष्ठति । तद्-देशं तु परित्यज्य, प्रयान्ति ह्यति-दूरतः ।।
।। इति ब्रह्म-संहितायां त्रैलोक्य-विजयं नाम नृसिंह-कवचम् ।।
‘पूर्व-पीठिका’ और ‘फल-श्रुति’ के अनुसार उक्त ‘श्रीनृसिंह कवच’ का १०८ पाठ करने से इसका ‘पुरश्चरण’ होता है । दशांश अर्थात् ११ पाठ द्वारा ‘हवन’ और एक-एक पाठ द्वारा ‘तर्पण’, ‘मार्जन’ कर एक ब्राह्मण को भोजन कराने से यह ‘कवच-स्तोत्र’ सिद्ध हो जाता है । तब इसका प्रयोग कर विविध प्रकार की कामनाओं की पूर्ति की जा सकती है । कामनाओं का उल्लेख ‘पूर्व-पीठिका’ और ‘फल-श्रुति’ में किया गया है । यहाँ दिये गये ‘यन्त्र’ को भोज-पत्र पर लिखकर ‘ताबीज’ के रुप में कण्ठ़ या भुजा में धारण करने से अनेक कामनाओं की पूर्ति होती है ।
।। पूर्व-पीठिका : श्री नारद उवाच ।।
इन्द्रादि-देव-वृन्देश ! ईश्वर, जगत्-पते ! महा-विष्णोर्नृसिंहस्य, कवचं ब्रूहि मे प्रभो !
यस्य प्रपठनाद् विद्वांस्त्रैलोक्य-विजयी भवेत् ।।१
।। श्री प्रजापतिरुवाच ।।
श्रृणु नारद ! वक्ष्यामि, पुत्र-श्रेष्ठ, तपोधन ! कवचं नृसिंहस्य तु, त्रैलोक्य-विजयाभिधम् ।।
यस्य पठनाद् वाग्मी, त्रैलोक्य-विजयी भवेत् । स्रष्टाऽहं जगतां वत्स ! पठनाद् धारणाद् यतः ।।
लक्ष्मीर्जगत्-त्रयं पाति, संहर्ता च महेश्वरः । पठनाद् धारणाद् देवाः बभूवुश्च दिगीश्वराः ।।
ब्रह्म-मन्त्र-मयं वक्ष्ये, भ्रान्त्यादि-विनिवारकं । यस्य प्रसादाद् दुर्वासास्त्रैलोक्य-विजयी भवेत् ।।
पठनाद् धारणाद् यस्य, शास्ता च क्रोध-भैरवः ।।
त्रैलोक्य-विजयस्यास्य, कवचस्य प्रजापतिः । ऋषिश्छन्दश्च गायत्री, नृसिंहो देवता विभुः ।
क्ष्रौं वीजं, हुं शक्तिः, फट् कीलकं, ममाभीष्ट-सिद्धयर्थे जपे विनियोगः ।।
।। मूल-पाठ ।।
विनियोगः- ॐ अस्य त्रैलोक्य-विजय-नाम श्रीनृसिंह-कवचस्य श्रीप्रजापतिः ऋषिः, गायत्री छन्दः, श्रीनृसिंहः देवता, क्ष्रौं वीजं, हुं शक्तिः, फट् कीलकं ममाभीष्ट सिद्धयर्थे जपे विनियोगः ।
ऋष्यादि-न्यासः- श्रीप्रजापति-ऋषये नमः शिरसि, गायत्री-छन्दसे नमः मुखे, श्रीनृसिंह-देवतायै नमः हृदि, क्ष्रौं वीजाय नमः गुह्ये, हुं शक्तये नमः नाभौ, फट् कीलकाय नमः पादयोः ममाभीष्ट सिद्धयर्थे जपे विनियोगाय नमः सर्वाङ्गे ।
ॐ उग्र-वीरं महा-विष्णुं, ज्वलन्तं सर्वतोमुखम् । नृसिंहं भीषणं भद्रं, मृत्यु-मृत्युं नमाम्यहम् ।।१
क्ष्रौं वीजं मे शिरः पातु, चन्द्र-वर्णो महा-मनुः । कण्ठं पातु ध्रुवं क्ष्रौं हृद्, भगवते चक्षुषी मे ।
नरसिंहाय च ज्वाला-मालिने पातु कर्णकम् ।।२
दीप्त-दंष्ट्राय च तथाऽग्नि-नेत्राय च नासिकां । सर्व-रक्षोघ्नाय तथा, सर्व-भूत-हिताय च ।।३
सर्व-ज्वर-विनाशाय, दह-दह पद-द्वयम् । रक्ष-रक्ष वर्म-मन्त्रः, स्वाहा पातु मुखं मम ।।४
ॐ रामचन्द्राय नमः, पातु च हृदयं मम । क्लीं पायात् पार्श्व-युग्मं च, तारो नमः पदं ततः ।।५
नारायणाय नाभिं च, आं ह्रीं क्रों क्ष्रौं चैव हुं फट् । षडक्षरः कटिं पातु, ॐ नमो भगवतेऽयम् ।।६
वासुदेवाय च पृष्ठं, क्लीं कृष्णाय ऊरु-द्वयं । क्लीं कृष्णाय सदा पातु, जानुनी च मनूत्तमः ।।७
क्लीं ग्लौं क्लीं श्यामलाङ्गाय नमः पायात् पद-द्वयं । क्ष्रौं नृसिंहाय क्ष्रौं चैव, सर्वाङ्गे मे सदाऽवतु ।।८
।। फल-श्रुति ।।
इति ते कथितं वत्स ! सर्व-मन्त्रौघ-विग्रहं । तव स्नेहान्मया ख्यातं, प्रवक्तव्यं न कस्यचित् ।।
गुरु-पूजां विधायाथ, गृह्णीयात् कवचं ततः । सर्व-पुण्य-युतो भूत्वा, सर्व-सिद्धि-युतो भवेत् ।।
शतमष्टोत्तरं चास्य, पुरश्चर्या-विधिः स्मृता । हवनादीन् दशांशेन, कृत्वा साधक-सत्तमः ।।
ततस्तु सिद्ध-कवचः, पुण्यात्मा मदनोपमः । स्पर्द्धामूद्धूय भवने, लक्ष्मीर्वाणि वसेत ततः ।।
पुष्पाञ्जल्यष्टकं दत्त्वा, मूलेनैव पठेत् सकृत् । अपि वर्ष-सहस्राणां, पूजायां फलमाप्नुयात् ।।
भूर्जे विलिख्य गुटिकां, स्वर्णस्थां धारयेद् यदि । कण्ठे वा दक्षिणे बाहौ, नरसिंहो भवेत् स्वयम् ।।
योषिद्-वाम-भुजे चैव, पुरुषो दक्षिणे-करे । बिभृयात् कवचं पुण्यं, सर्व-सिद्धि-युतो भवेत् ।।
काक-वन्ध्या च या नारी, मृत-वत्सा च या भवेत् । जन्म-वन्ध्या नष्ट-पुत्रा, बहु-पुत्र-वती भवेत् ।।
कवचस्य प्रसादेन, जीवन्मुक्तो भवेन्नरः । त्रैलोक्यं क्षोभयेत् सदा, त्रैलोक्य-विजयी भवेत् ।।
भूत-प्रेत-पिशाचाश्च, राक्षसा दानवाश्च ये । तं दृष्ट्वा प्रपलायन्ते, देशाद् देशान्तरे ध्रुवम् ।।
यस्मिन् गृहे च कवचं, ग्रामे वा यदि तिष्ठति । तद्-देशं तु परित्यज्य, प्रयान्ति ह्यति-दूरतः ।।
।। इति ब्रह्म-संहितायां त्रैलोक्य-विजयं नाम नृसिंह-कवचम् ।।
‘पूर्व-पीठिका’ और ‘फल-श्रुति’ के अनुसार उक्त ‘श्रीनृसिंह कवच’ का १०८ पाठ करने से इसका ‘पुरश्चरण’ होता है । दशांश अर्थात् ११ पाठ द्वारा ‘हवन’ और एक-एक पाठ द्वारा ‘तर्पण’, ‘मार्जन’ कर एक ब्राह्मण को भोजन कराने से यह ‘कवच-स्तोत्र’ सिद्ध हो जाता है । तब इसका प्रयोग कर विविध प्रकार की कामनाओं की पूर्ति की जा सकती है । कामनाओं का उल्लेख ‘पूर्व-पीठिका’ और ‘फल-श्रुति’ में किया गया है । यहाँ दिये गये ‘यन्त्र’ को भोज-पत्र पर लिखकर ‘ताबीज’ के रुप में कण्ठ़ या भुजा में धारण करने से अनेक कामनाओं की पूर्ति होती है ।
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