अपने साधनात्मक जीवन के प्रारंभ में गुरु साधना के उपरांत मेरे द्वारा सफलतापूर्वक की गई प्रथम साधना माँ काली की यह विलक्षण साधना है| सन्यासी साधकों द्वारा मूलतः श्मशान सिद्धि हेतु की जाने वाली यह उग्र प्रवृत्ति की साधना जीवन की जीवन्तता में बाधक बनी प्रत्येक परिस्थिति के निवारण में सक्षम है| इस अद्वितीय साधना द्वारा मैंने माँ काली की कृपा के साथ उनके बिम्बात्मक दर्शन भी प्राप्त किए हैं|
कृष्ण पक्ष की अष्टमी से प्रारंभ कर २१ दिन तक की जाने वाली इस साधना में चंडी
यन्त्र के समक्ष प्रतिरात्रि कालिका अष्टक, जिस के उच्चारण मात्र से दिव्य आनंद की अनुभूति होती है, के ५१ पाठ करें|
विरंच्यादिदेवास्त्रयस्ते गुणास्त्रीँ, समाराध्य कालीं प्रधाना बभूवुः |
अनादिं सुरादिं मखादिं भवादिं, स्वरूपं त्वदीयं न विन्दन्ति देवाः || १ ||
जगन्मोहिनीयं तु वाग्वादिनीयं, सुहृदपोषिणी शत्रुसंहारणीयं |
वचस्तम्भनीयं किमुच्चाटनीयं, स्वरूपं त्वदीयं न विन्दन्ति देवाः || २ ||
इयं स्वर्गदात्री पुनः कल्पवल्ली, मनोजास्तु कामान्यथार्थ प्रकुर्यात |
तथा ते कृतार्था भवन्तीति नित्यं, स्वरूपं त्वदीयं न विन्दन्ति देवाः || ३ ||
सुरापानमत्ता सुभक्तानुरक्ता, लसत्पूतचित्ते सदाविर्भवस्ते |
जपध्यान पुजासुधाधौतपंका, स्वरूपं त्वदीयं न विन्दन्ति देवाः || ४ ||
चिदानन्दकन्द हसन्मन्दमन्द, शरच्चन्द्र कोटिप्रभापुन्ज बिम्बं |
मुनिनां कवीनां हृदि द्योतयन्तं, स्वरूपं त्वदीयं न विन्दन्ति देवाः || ५ ||
महामेघकाली सुरक्तापि शुभ्रा, कदाचिद्विचित्रा कृतिर्योगमाया |
न बाला न वृद्धा न कामातुरापि, स्वरूपं त्वदीयं न विन्दन्ति देवाः || ६ ||
क्षमास्वापराधं महागुप्तभावं, मय लोकमध्ये प्रकाशीकृतंयत् |
तवध्यान पूतेन चापल्यभावात्, स्वरूपं त्वदीयं न विन्दन्ति देवाः || ७ ||
यदि ध्यान युक्तं पठेद्यो मनुष्य, स्तदा सर्वलोके विशालो भवेच्च |
गृहे चाष्ट सिद्धिर्मृते चापि मुक्ति, स्वरूपं त्वदीयं न विन्दन्ति देवाः || ८ ||
साधनाकाल में एक समय भोजन करें, भूमि शयन करें तथा ब्रह्मचर्य का दृढ़ता से पालन करें|
यदि चंडी यन्त्र ताबीज रूप में है तो अनुष्ठान के उपरांत उसे धारण करने से साधना का लाभ जीवन पर्यन्त साधक के साथ बना रहता है|
श्रीराम ज्योतिष सदन पंडित आशु बहुगुणा
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