Sunday 29 September 2024

शिवोपासना से मृत्यु पर विजय (पद्म पुराण)

 


ओम् नमः शिवाय
शिवोपासना से मृत्यु पर विजय (पद्म पुराण)...
"आज आप बहुत ही उदास दिख रहे हैं, आपकी चिंता का क्या कारण है? आपको चिंतित देखकर मेरा हृदय अत्यंत व्याकुल हो रहा है"| महामुनि मृगश्रृंग के पौत्र श्री मार्कंडेय जी ने अपने पिता महामहिम मृकंडु जी से अत्यंत विनम्रता से पूछा | मृकंडु जी ने उत्तर दिया, " पुत्र ! तुम्हारी माता मरुद्वती को जब कोई संतान नहीं थी, तब हम दोनों ने संतान प्राप्ति हेतु पिनाकधारी भगवान् आशुतोष शिव को तपस्या द्वारा प्रसन्न किया| भगवान शंकर ने प्रकट होकर वर मांगने को कहा और हमने श्री पार्वतीवल्लभ जी से संतान प्राप्ति की याचना की | त्रिपुरारी बोले, " तुम गुणज्ञ, सर्वज्ञ, कुलदीपक, अत्यंत तेजस्वी, मेधावी और अद्भुत सोलह वर्ष की आयु वाला पुत्र चाहते हो या गुणहीन परन्तु दीर्घ जीवी पुत्र?" इस पर मैंने भगवान् शशांक शेखर से निवेदन किया, "प्रभु ! मैं मुर्ख, गुणहीन पुत्र नहीं चाहता| अल्पायु ही सही, परन्तु मुझे अनुपम, गुणवान, मेधावी, तेजस्वी और सर्वज्ञ पुत्र ही अभीष्ट है"| भगवान् भोलेनाथ "तथास्तु" कहकर अंतर्ध्यान हो गए | और चंद्रशेखर भगवान् की कृपा से तुम में सभी अद्भुत गुण विद्यमान हैं और हम दोनों ही दम्पति अत्यंत सुखी और गौरान्वित हैं तुम से | परन्तु पुत्र ! अब तुम्हारा सोलहवा वर्ष समाप्त हो चला है" |
श्री मार्कंडेय जी ने अत्यंत गंभीरता से पिता को आश्वस्त करते हुए कहा ," पिता श्री ! आप मेरे लिए चिंता न करें | भगवान् आशुतोष अभीष्ट फलदाता हैं| मैं उनके मंगलमय चरणों का आश्रय लेकर, उनकी उपासना करके अमरत्व प्राप्त करने का प्रयत्न करूंगा |"
तदनंतर श्री मार्कंडेय जी ने माता-पिता की चरणधूलि मस्तक पर धारण कर भगवान् शंकर का स्मरण करते हुए दक्षिण समुद्र के तट पर पहुँचकर शिवलिंग (मारकंडेश्वर शिवलिंग) की स्थापना की और त्रिकाल स्नान कर बड़ी ही श्रद्धा से भगवान् की उपासना करने लगे | मृत्यु के दिन श्री मार्कंडेय जी अपने आराध्य की पूजा करके स्तोत्र पाठ करना ही चाहते थे कि तभी उनके कोमल कंठ में काल का कठोर पाश पड़ गया | मार्कंडेय जी ने शिवलिंग को कस कर पकड़ लिया और भगवान् को पुकारने लगे | काल ने जैसे ही पाश खींचना चाहा, शिवलिंग से भगवान् शंकर प्रकट हो गए और उन्होंने अत्यंत क्रोध से काल के वक्ष पर कठोर पदाघात किया | काल दूर जा गिरे और पीड़ा और भय से छटपटाने लगे | काल की दुर्दशा और अपने आराध्य के रूप लावण्या को देखकर श्री मार्कडेय जी की प्रसन्नता की कोई सीमा नहीं रही | उन्होंने आशुतोष भगवान के चरणों में अपना मस्तक रख दिया और हृदय से भक्ति रस की नवीन मंदाकिनी वाणी द्वारा स्तुति के रूप में प्रवाहित होने लगी,
"चन्द्रशेखरमाश्र्ये मम कि करिष्यति वै यम: "
अर्थात "मैं तो चंद्रशेखर के आश्रय में हूँ, तो यह यम मेरा क्या बिगाड़ सकता है" |
देवादिदेव महादेव जी ने उन्हें अमरत्व प्रदान किया | आज महाऋषि मार्कंडेय जी सनातन धर्म के सात चिरंजीविओं में से एक हैं... (यह सात कल्पांत जीवी हैं- काग भशुन्दी जी, श्री हनुमान जी, वेद व्यास जी, रजा बलि, परशुराम जी , अश्वथामा और महाऋषि मार्कंडेय जी) | चिरंजीवी महाऋषि मार्कंडेय जी ने फिर महामृत्युंजय मंत्र , महामृत्युंजय स्तोत्र और मार्कंडेय पुराण की रचना की |
ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगंधिम पुष्टिवर्धनम |
उर्वारुकमिव बन्धनात मृत्युर्मुक्षीय मामृतात ||
हर हर महादेव... ॐ नमः शिवाय…
 

श्रीराम ज्योतिष सदन पंडित आशु बहुगुणा

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