।। अघोर में मुंड (कपाल, खोपड़ी,महाशंख) का महत्व।।
आज कल आपने देखा ही होता फेसबुक और अन्य मीडिया और कई फ़ोटो में तंत्र से जुड़े लोग और अघोरी साधक हाथ में मुंड लिए दिखाई देते हे ,तो लोगो जिज्ञासा होती हे ।पर असल में में मुंड को लेकर कई नियम होते हे ,वो सब को पता नहीं होता ।हर अघोरी या तंत्र साधक मुंड धारण नहीं कर सकता।और नहीं कोई उसे लेकर एक स्थान से दुशरे स्थान जा सकता हे ।1
1 मूण्डधारण वो ही साधक या अघोरी कर सकता हे जिसका सहस्त्रार्थ जागृत हो चूका हो।
2 मुंड हर किसी इन्शान का धारण नहीं कर सकते ,न वो जला हुवा हो नहीं कही से खंडित हो।
3 आपने देखा होगा की एक अघोरी या तंत्र में निपुर्ण साधू का दाह संसकार नहीं होता उसकी समाधी लगती हे ।ऐसे ही साधक का मुंड नियम के हिसाब से निकाल कर उसे संशोधित कर उसका संस्कार किया जाता हे ।उसके बाद उसका उपयोग किया जा सकता हे ।
4जेसे मंदिर की मूर्ति को लेकर आप हर जगह गुम नहीं सकते ।उसका प्राणप्रतिष्ठा करके आशन दिया जाता हे वेसे ही कोई भी साधक या अघोरी मूण्ड का दिखावा करने के लिए उसे लेकर नहीं घूम सकता पर अपने साधना स्थान पर उसकी प्राणप्रतिष्ठा करके मूण्ड को साधा जाता हे ।
5 एक साधक या अघोरी का ही मूण्ड इसलिए काम आता हे की उसका सहस्त्रार्थ पहले ही जागृत हो चूका हिता हे .और उस साधक ने जो पूर्व साधनाए की होती हे उसका भी फल नए साधक को मददरूप होता हे ।
6 एक अघोरी अपनी साधना ओ का और सिद्धि ओ का संचय मूण्ड में करता हे और समय पर उसका प्रयोग करता हे ।
7 कोई भी साधक ,साधू ,अघोरी ,तांत्रिक मूण्ड का उपयोग लोगो को भयभित करने या दिखावा करने के लिए नहीं ,पर अपनी साधनाओ में सहायता के लिए प्रयोग कर सकता हे और उसे गोपनीय ही रखा जाता हे
8 अघोरी के लिए एक सिद्ध मूण्ड ही उसका सब कुछ होता हे ।जिसकी प्राणप्रतिष्ठा करके उसकी पूजा करता हे ।
8 किस्मत वाले होते हे वो अघोरी जिसको अपने गुरूजी का चरणकमल महाप्रशाद और मुण्ड मिलता हे असल में वो ही शिष्य उस अघोरी गुरूजी का वारिश होता हे ।
(पर आज कल आपने देखा ही होता की हर कोई एरा गेरा नथहु खेरा अपने आप को सिद्ध अघोरी या बड़ा तांत्रिक दिखाने की लिए किसी खंडित या जले हुवे टूटे हुवे मूण्ड का दिखावा करता हे। जो लोगो में अंधश्रद्धा फेलता हे और भयभीत करता हे )
।।अघोर में श्रद्धा हे पर अंधश्रद्धा को कोई स्थान नहीं हे।अघोर सरल होता हे भयंकर नहीं ।।
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